मन खिन्न है उदास है
बेक़रार है ।
भरोसे को उसने
हमारे रौंद दिया है।
दिखा के सब्ज़ बाग़
उसने हमको छला है।
अन्याय हमारे साथ
खुलेआम हुआ है,,,
मन खिन्न है ,उदास है,
दुःख रहा है।
ग़लत निर्णय ने
किसी के प्रतिभा
को किसी की
शर्मसार किया है।
भरोसा, विश्वास,
निष्पक्ष जैसे शब्दों
का उपहास हुआ है
भरोसे को हमारे
उसनेतो़ड दिया है।
छवि को अपनी
उसने धूमिल किया है।
ख़ातून तू इतनी
भोली क्यों है बता
अंधे ने बांटी है जब भी
शीरनी पेटअपनों
का ही भरा है।
क़लम में है ताक़त
मैं चुप न रहूंगी।
जब भी होगा अन्याय
मैं लिखती रहूंगी।
मौलिक रचना
सय्यदा खा़तून,, ✍️
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