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मनी-प्लांट

20 अक्टूबर 2023

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मनी-प्लांट

(1)

क्या कर रही हो दादी? इस पौधे को क्यों तोड़ रही हो? क्या दिक्कत हो रही है इनसे तुमको? बोलती क्यों नहीं दादी? अपने पोते के एक के बाद एक प्रश्नों को अनसुना कर मिथलेश कुमारी अपने काम में लगी रहीं। अर्णव से रहा नहीं गया तो उसने फिर से पूछा क्यों उखाड़ रही हो इन पौधों को दादी? उखाड़ कर एक तरफ रखे हुए पौधों की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा इन सबको बाहर फेंक कर आओ। पर क्यों दादी? कितने तो अच्छे लगते हैं ये और अब तो इनमें सुन्दर-सुन्दर फूल भी आने लगे थे। अर्णव ने कहा तो मिथलेश ने प्यार से अर्णव के गालों पर हाथ फेरकर कहा कि बेटा इन सब पौधों में कांटे हैं और कांटेदार पौधे घर में नहीं होने चाहिए। “क्यों नहीं होने चाहिए”, अर्णव ने स्वाभाविक प्रश्न किया। फेंककर आ जा तो फिर बताती हूँ। नहीं बताओ। पोते की जिद के आगे दादी को झुकना ही था। अच्छा सुनो। मिथलेश ने अर्णव को पेड़-पौधों के बारे में प्रचलित बहुत सी मान्यताओं के बारे में बताया। अर्णव अब संतुष्ट था। उसने ख़ुशी-ख़ुशी सारे उखाड़े हुए पौधे उठाये और बाहर जाकर सड़क के दूसरी ओर उन्हें लगा आया। अर्णव को पेड़-पौधों से बहुत प्यार है। गमलों में उगे छोटे से छोटे से पौधे की बहुत देखभाल रखता है। जब कभी भी उसके विद्यालय या मोहल्ले में पौधारोपण का आयोजन होता तो वह बढ़-चढ़ कर सम्मिलित होता है। घर के सामने पार्क में लगाये गए पौधों का उसने इतना अच्छे से ध्यान रखा था कि सारे पौधे खूब हरे-भरे होकर शोभायमान थे। वह पार्क उस मोहल्ले का सबसे हरा-भरा और खूबसूरत पार्क बन गया था। अर्णव उस पार्क को देखकर बहुत ही हर्ष का अनुभव करता है। मोहल्ले के अन्दर उसकी पहचान एक प्रकृति प्रेमी के रूप में बन चुकी है। अर्णव जबतक लौटकर आया तबतक मिथलेश अपने कमरे में सोने के लिए जा चुकी थीं। कई सारे गमले खाली हो चुके थे। अर्णव ने उन्हें सोते हुए देखा तो डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा। अर्णव अपने कमरे को ओर जा रहा था कि उसे अपने पापा की जोर से बोलने की आवाज सुनाई दी। अर्णव दुखी हो गया। वह अनमने मन से अपने बिस्तर पर लेट गया। मम्मी और पापा की आवाज उसे अभी भी सुनाई दे रही थी।

(2)

सुमन और अजय की अच्छी-खासी गृहस्थी के  मुसीबत में पड़ने की शुरुआत उसी दिन हो गई थी जब अजय ने साझेदारी में औरैया में एक राइस मिल डालने की योजना बनाई थी। राइस मिल तो नहीं चली अपितु अजय का जमा-जमाया व्यापार भी राइस मिल से होने वाले घाटे की चपेट में आ गया। पहले तो अजय को यह शुरुआत का सामान्य नुकसान ही जान पड़ा परन्तु धीरे-धीरे पता चला कि अजय का साझीदार राइस मिल की पूँजी अपने निजी व्यापार की तरफ डाइवर्ट कर रहा था। विवाद हुआ तो दोनों पक्षों की तरफ से मुक़दमे कर दिए गए। राइस मिल बंद हो गई और ऊपर से मुकदमों का झंझट। अजय के लिए अपने हार्डवेयर के व्यापार पर ध्यान देना भी मुश्किल हो गया। इसका परिणाम ये हुआ कि अजय के परिवार को आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ रही थी। मुक़दमे के समझौते की बात की गई तो साझेदार ने असम्भव शर्तें रख दीं। लिहाज़ा अजय के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था। खर्चे अपने ढर्रों में ढल चुके थे। कर्मचारियों और मजदूरों के वेतन, राइस मिल के लिए लिये गए ऋण का भुगतान, मकान की किश्तें, स्कूल की फीस, दवाइयों का ख़र्च आदि-आदि सब खर्चे अजय के सिर पर सवार थे। अजय की परेशानी देखकर सुमन और मिथलेश भी परेशान रहती थीं परन्तु अर्णव को यह सबकुछ नहीं पता था। सारे जतन करके भी उबरना मुश्किल हो रहा था। पूजा-पाठ का भी कोई लाभ नहीं हुआ। जो भी टोटके पता चलते, सुमन और मिथलेश उसे किसी उम्मीद से पूरे करतीं। मज़ार पर चादर चढ़ाकर लौटी सुमन ने अजय को अपना सिर पकड़कर बैठे देखा। चाय बनाकर अजय को देकर उसकी परेशानी के बारे में पूछते ही वह बिफर गया। उस दिन अजय के हार्डवेयर के धंधे में भी कोई बड़ा नुकसान हो गया था। “तुमसे घर के खर्चे तो कण्ट्रोल होते नहीं, कितनी बार कहा है कि खुले हाथ से खर्च करना बंद कर दो, पर नहीं, और ऊपर से आज”, अजय बोल रहा था। और आज तो अपने पुराने व्यवसाय में भी ग्रहण लग गया। सुमन ने कुछ नहीं कहा। सुमन जानती थी कि अजय कितना परेशान है। वैसे भी ऐसे दिन न देखने पड़ते तो अजय कभी उसके हाथ नहीं रोकता। सुमन को अजय से मालूम हुआ कि उसकी डिपो में ऊँचाई से गिरकर एक कर्मचारी की मौत हो गई और मुआवज़े के तौर पर दस लाख रूपये देने पर ही समझौता हो सकता है नहीं तो क्रिमिनल केस दर्ज हो जाएगा तो एक और मुसीबत गले पड़ जायेगी। अजय की आवाज में रोने के स्तर तक की विवशता महसूश कर रही थी सुमन। “अर्णव की फीस भी देनी है और मकान की किश्त का भी समय हो गया है, कैसे होगा ये सब”, अजय अपने सिर में शेष बचे बालों में दोनों हाथों की उंगलियाँ घुसेढ़कर खींचते हुए बोल रहा था। अजय और सुमन हमेशा ध्यान रखते थे कि अर्णव को कभी इन सब बातों का पता नहीं चले ताकि उसका बाल-मन किसी भी तरह से आहत न हो।

(3)

बिस्तर पर लेटे-लेटे अर्णव के कानों में पापा के शब्द गूँज रहे थे जो उसने अजय और सुमन के ना चाहते हुए भी सुन लिए थे। पुत्र की उम्र चाहे कितनी ही कम हो पर अपने पिता की मुसीबत की भनक पुत्र की उम्र और समझदारी में एकाएक इजाफ़ा कर देती है। अर्णव समझ गया था कि घर में सबकुछ सामान्य नहीं है। अपने बालमन से बहुत सारे उपाय सोच रहा था पर उसे वो उपाय पर्याप्त नहीं समझ आ रहे थे। नींद आने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। नींद तो अर्णव की आँखों से कोसों दूर खड़ी थी। सामान्यतय: दोपहर के खाने के बाद अर्णव इस समय गहरी नींद ले रहा होता था। अर्णव अपनी दादी के जागने के समय की प्रतीक्षा में था। अर्णव अपने कमरे से उठा और दादी के बिस्तर पर जाकर उनके ऊपर हाथ रखकर लेट गया। मिथलेश की नींद खुली तो उन्होंने अर्णव को अपने बिस्तर पर देखकर उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा। अर्णव तुरंत ही दादी से चिपट गया। क्या हुआ बेटा, किसी ने कुछ कहा तुझसे। अर्णव ने इंकार में सिर हिलाया। पापा या मम्मी ने डांटा है। अर्णव ने फिर से इंकार में सिर हिलाया और दादी को और जोर से कस लिया। क्या बात है बेटा, बताएगा नहीं तो दादी तुम्हारी समस्या का हल कैसे निकालेगी। मिथलेश ने देखा कि अभी अर्णव कुछ भी बताने के मूड में नहीं है तो उन्होंने बात बदल दी। अच्छा बता जो गमले खाली हो गए हैं उनका क्या करेगा। अर्णव का ध्यान अब अपनी दादी की बातों की ओर गया। वैसे भी उसका मनपसंद विषय था ये। दादी उन गमलों में फूलों के पौधे लगा देते हैं। बिलकुल ठीक, कौन से फूल लगाने हैं। गुलाब लगा देते हैं इंग्लिश वाले, बहुत सुन्दर होते हैं। सुन्दर तो होते हैं पर उनमें कांटे भी होते हैं। तो फिर वो नहीं लगायेंगे। रेन लिली, गेंदा, गुलदाउदी लगा देते हैं। ठीक है बेटा, पर मौसम के अनुसार ही लगेंगे। मिथलेश ने स्नेह से अर्णव के बालों के बीच में अपनी उँगलियों को धीरे-धीरे फेरना चालू कर दिया। दादी, क्या कोई ऐसा पौधा नहीं होता जिसपे पैसा उग जाता हो। मिथलेश अर्णव के इस मासूम सवाल से मुस्कुराकर रह गई। नहीं मेरे बच्चे। होता तो कितना अच्छा होता, अर्णव को जैसे पैसों के पौधे के न होने का अफ़सोस हुआ हो। किसी पौधे पर पैसे तो नहीं उगते पर हाँ एक ऐसा पौधा है जिसे लगाने से कहते हैं कि घर में पैसों की कमी दूर हो जाती है, मिथलेश ने अपने पोते को अफ़सोस में डूबा देखकर उसे दिलासे के सबब से कहा। अर्णव की आँखों में चमक आ गई। उठकर बैठ गया अर्णव। कौन सा पौधा होता है ऐसा दादी? बताओ ना जल्दी से मैं कल ही लेकर आऊँगा। मिथलेश को लेशमात्र भी आभाष नहीं था कि अर्णव ने अजय की बातें सुन ली थीं। उन्हें अर्णव का उतावलापन बाल-सुलभ उत्सुकता ही समझ पड़ी। खरीद के ला तो सकते हो पर कहते हैं कि अगर मनी-प्लांट का फायदा लेना है तो उसे चुराकर अपने घर में लगाना चाहिए। यह सुनकर अर्णव की आँखों की चमक फीकी पड़ गई। फिर तो कोई फायदा नहीं अर्णव ने कहा। कोई और पौधा लगा ले बेटा, तुझे मनी-प्लांट ही क्यों लगाना है। अर्णव ने अपनी दादी के इस सवाल का कोई जबाब नहीं दिया। पर दादी चोरी करना तो बुरी बात है। हाँ सो तो है बेटा। पर सब जानते हैं इस चोरी के बारे में। इसलिए लोग चुरा कर लगा लेते हैं। वैसे एक तरह से ये पौधे की फ़सल बढ़ाने में सहायक ही है। हम्म, अर्णव कुछ सोच में पड़ गया। अर्णव एक-एक कर अपने सभी दोस्तों और आस-पड़ोस के घरों में पूँछ कर आ गया परन्तु किसी भी घर में मनी-प्लांट नहीं लगा था।

(4)

अर्णव और उसके स्कूल के अन्य छात्र आज एक ट्रिप पर संग्राहलय की सैर पर निकले हुए हैं। सभी बच्चे अत्यधिक उल्लास से भरे हुए हैं। अर्णव वैसे तो अपने परिवार के साथ बहुत जगह की सैर को जा चुका था परन्तु अपने सहपाठियों के साथ ये पहली सैर थी। अपने अन्य सहपाठियों की तरह अर्णव भी उल्लास से भरा हुआ था। बच्चों की बसें एक-एक करके संग्रहालय के किनारे सड़क पर खड़ी होती जा रहीं थीं। अर्णव का बडी निखिल को बनाया गया था। निखिल अर्णव से उम्र और क्लास में अधिक था। सीनियर बडी को अपने जूनियर बडी का ध्यान रखना था इसलिए निखिल अर्णव का पूरा ध्यान रखे हुए था। निखिल अर्णव का अच्छे से हाथ पकड़े हुए था। तभी अर्णव ने वहाँ पर एक मिल्कबार देखा तो निखिल से बोला कि भईया मुझे फ्लेवर मिल्क पीना है। मम्मी से लाये हुए सौ रूपये के नोट को निखिल को दिखाते हुए अर्णव ने कहा। नहीं ये अलाउड नहीं है। टीचर ने देख लिया तो पनिशमेंट मिल सकता है। नहीं देख पायेगी भईया, चलिए न दोनों लोग जल्दी से पीकर आ जाते हैं। अच्छा पियेंगे नहीं, बस जल्दी से खरीदकर ले आते हैं। जब तक अपना अन्दर जाने का नम्बर आएगा तबतक तो हम लोग पीकर समाप्त करे चुके होंगे। मिल्कबार के पास पहुँच चुके थे दोनों। उन्होंने दो टेट्रा-पैक मिल्क लेकर सौ का नोट बढ़ा दिया। दुकानदार पैसे वापस करने के लिए जा ही रहा था कि उन दोनों को देखकर कुछ और बच्चे भी एकाएक दुकान पर आ गए। दुकानदार इतने सारे ग्राहकों को देखकर खुश हो रहा था और बच्चों को जल्दी-जल्दी उनकी पसंद की बिक्री में मशगूल हो गया। भईया मेरे पैसे वापस दो पहले, निखिल ने कहा। पैसे वापस लेकर जब निखिल मुड़ा तो वहाँ पर अर्णव नहीं था।  निखिल के तो जैसे हाथों के तोते उड़ गए, वह बहुत घबरा गया। अब उसके पास अपने टीचर को सूचना देने के अलावा कोई और उपाय नहीं था। अर्णव की खोजबीन चालू हो चुकी थी।

(5)

अर्णव अपने होठों से फ्लेवर मिल्क की स्ट्रॉ लगाये हुए धीरे-धीरे सिप कर रहा था और एक ओर तेजी से बढ़ा जा रहा था। निखिल दूकानदार से बचे हुए पैसे लेने में अभी भी व्यस्त था।  मिल्कबार से लगभग पचास-साठ  मीटर की दूरी पर अर्णव की निगाहें जमी हुई थीं। अर्णव ने अपने मन में सोचा कि काश उसने सही पहचाना हो तो उसके घर की बहुत सी समस्याएं दूर हो सकती हैं। अर्णव उस मकान की ओर तेजी से बढ़ चला।  अर्णव जब उस मकान के और पास पहुँचा तो उसने एक गहरी साँस ली। उसे यह काम करके बहुत ही शीघ्रता से वापस जाना था।

(6)

उस मकान में तरह-तरह के पेड़-पौधे लगे हुए थे जिनको किसी माली के सुघड़ हाथों ने  बड़े ही करीने से काट-छांट कर बहुत ही आकर्षक रूप दिया गया था। भांति-भांति के फूलों की श्रंखलाएँ मौजूद थीं। अर्णव जैसा बच्चा भी समझ गया था कि ये किसी संपन्न परिवार का आवास था। अर्णव की निगाहें बिलकुल उस सर्पिल बेल पर जाकर रुकी जिसके पत्तों ने बरामदे के किनारे पर बने गोल खम्बे पर चढ़ने के बाद छत तक पहुँच कर पूरे छज्जे को घेर रखा था। छज्जे से उतरकर बेल बाउंड्री-वाल तक आ गई थी। उसने ध्यान से देखा और आश्वत हुआ कि यह वही बेल थी जिसको वह नर्सरी के माली के पास देख कर आया था। अर्णव बुदबुदाया, “मेरा अंदाजा दूर से भी कितना सही था, ये तो मनी-प्लांट ही है। अर्णव ने जल्दी से मिल्क को सुड़का और खाली टेट्रा-पैक फेंकने के बाद उछल कर मनी-प्लांट तक पहुँचने का प्रयास करने लगा। परन्तु बाउंड्री-वाल अर्णव के कद के हिसाब से बहुत ऊँची थी। उसे समझ आ गया था कि कितने भी प्रयास कर ले परन्तु वह इस बेल को छू भी नहीं पायेगा। तभी उसे वहाँ तेजी से आती हुई एक कार दिखाई दी। अर्णव किनारे हो गया। कार बंगले के मेनगेट पर पहुँचकर खड़ी हो गई। कार से एक किशोर उतरा और बंगले का दरवाजा खोलकर अन्दर चला गया। अर्णव को लगा कि शायद भगवान ने उसकी मदद करने के लिए ही उस किशोर को वहां कार से भेजा है। बंगले का दरवाजा खुल चुका था। अर्णव के मन में एक खतरनाक योजना आकार ले रही थी। थोड़ी देर उहापोह के बाद उसने निश्चय कर लिया कि जो उसने सोचा है वह वही करेगा। गेट तो खुला हुआ ही है और फिर ये चोरी थोड़ी कहलाएगी। दादी ने बताया भी था कि मनी-प्लांट की चोरी के बारे में तो सभी जानते हैं तो ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। परन्तु अभी भी किसी के घर में बिना अनुमति के घुसने में उसे हिचक हो रही थी। उस मनी-प्लांट के आकर्षण और उसको चुराकर ले जाने की तीव्र इच्छा के चलते वह ये भी भूल गया कि वह अपने स्कूल ट्रिप पर आया हुआ है। अर्णव ने अपने मन को एकबारगी फिर से समझाया कि यह चोरी नहीं और दिल मजबूत करके गेट से अन्दर घुस गया और सीधे बरामदे के पास पहुँच गया। मनी-प्लांट की एक डाल को तोड़कर अपने बैग में रख लिया। बैग की जिप बंद करके वह घूमा ही था कि गेट की तरफ देखते ही उसकी जान निकल गई।  दो लम्बे-चौड़े खतरनाक कुत्ते अपने जबड़ों को खोलकर दांत निकालकर गुस्से में खड़े थे। अर्णव को कुछ समझ आता उससे पहले ही वो दोनों उसकी तरफ दौड़ पड़े।  अर्णव पहले बरामदे की तरफ भागा, कुत्ते भी उसके पीछे बरामदे तक आ गए थे। अर्णव को लगा कि बस यही एक मौका है और पूरा जोर लगाकर वह मेनगेट की ओर भागा। कुत्ते भी बरामदे का एक चक्कर काट  कर उसके पीछे दौड़ पड़े। मेनगेट तक पहुँचते-पहुँचते अर्णव कुत्तों की पहुँच में आ चुका था। अर्णव ने गेट के पलड़े को बंद करना चाहा परन्तु एक बच्चे के हिसाब से वह गेट बहुत भारी था। उसके गेट बंद करने से पहले ही कुत्ते उसके पास पहुँच चुके थे।

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हर कोई इस घटना से स्तब्ध था। स्कूल वालों के खिलाफ कई एन०जी०ओ० के कार्यकर्त्ता लगातार नारे लगा रहे थे। स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर अपने-अपने घरों से भागकर छिपते फिर रहे थे। समाचार पत्र इस दुखद घटना के विवरणों से भरे पड़े थे। पालतू कुत्तों का इतना हिंसक व्यवहार लोगों के लिए भय का कारण बना हुआ था। लोग चर्चा कर रहे थे कि कुत्तों ने एक बच्चे को कितनी बीभत्स मौत दी थी। अर्णव का शरीर पोस्ट-मोर्टेम के बाद उसके घर पहुँच चुका था। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से पूरी घटना का पता चल चुका था। अजय और सुमन की तो जैसे पूरी दुनिया ही उजाड़ हो चुकी थी। रो-रोकर उनके आँसू सूख चुके थे। मिथलेश कुमारी अपने सर को अपने हाथों से पकड़ कर जोर-जोर से विलाप करने लगीं। हाय, मैंने मार डाला अपना फूल सा बच्चा। मैं हत्यारिन हूँ अपने अर्णव की। मैंने भेजा था वो साँप जिसने मेरे बच्चे को डस लिया। अजय और सुमन मिथलेश को समझा रहे थे कि नहीं माँ उसे किसी साँप ने नहीं डसा, वो तो कुत्तों के काटने से मरा है माँजी। उन्हें लगा कि माँजी का अपने प्रिय पोते की मौत की वजह से मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। माँजी पानी पी लो। मोहल्ले की एक औरत ने सहानुभूति पूर्वक पानी का गिलास मिथलेश कुमारी के सामने किया। नहीं दूर रहो मुझसे, मैं बहुत बड़ी पापी हूँ, डायन हूँ जो अपने ही बच्चे को खा गई, हाय डस लिया साँप ने मेरे बच्चे को। “माँजी अर्णव को साँप ने नहीं काटा”, अजय ने लगभग चीखते हुए कहा। “नहीं अर्णव को मैंने डसा है”, मिथलेश रो रोकर लगातार कहे जा रही थी मैंने डसवाया है साँप से। मिथलेश उठीं और अन्दर से अर्णव का स्कूल बैग लेकर आ गईं। वहाँ पर मौजूद सभी लोग मिथलेश को ही देख रहे थे। मिथलेश ने बैग खोला और उसमें से मनी-प्लांट निकाला और सबके सामने करके चीखकर बोलीं, “ये है वो साँप जिसने मेरे बच्चे को डस लिया”। किसी को भी कुछ समझ नहीं आया। मिथलेश बेहोश हो चुकी थीं। सभी लोगों ने अजय की सहायता करते हुए उन्हें उनके बेडरूम में पहुंचाया। सुमन एक दीवाल से टिककर निढ़ाल होकर बैठ गई। उसे अभी भी अर्णव के जाने का यकीन नहीं हो रहा था। अजय को समझ नहीं आ रहा था कि अर्णव के बैग में मनी-प्लांट कैसे आया।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "

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दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

किसी पौधे पर पैसे तो नहीं उगते पर हाँ एक ऐसा पौधा है जिसे लगाने से कहते हैं कि घर में पैसों की कमी दूर हो जाती है

15 नवम्बर 2023

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

मम्मी से लाये हुए सौ रूपये के नोट को निखिल को दिखाते हुए अर्णव ने कहा। नहीं ये अलाउड नहीं है। टीचर ने देख लिया तो पनिशमेंट मिल सकता है। नहीं देख पायेगी भईया, चलिए न दोनों लोग जल्दी से पीकर आ जाते हैं।................................................................................................................................... इसी कहानी से

31 अक्टूबर 2023

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नील पदम् की कहानियाँ
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मनी-प्लांट

20 अक्टूबर 2023
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मनी-प्लांट (1) क्या कर रही हो दादी? इस पौधे को क्यों तोड़ रही हो? क्या दिक्कत हो रही है इनसे तुमको? बोलती क्यों नहीं दादी? अपने पोते के एक के बाद एक प्रश्नों को अनसुना कर मिथलेश कुमारी अपने काम में

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समर की अमर दोस्ती

24 सितम्बर 2023
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डोरबेल की कर्कश आवाज से उन दोनों की नींद खुल गई। हड़बड़ाते हुए मिश्रा जी और उनकी पत्नी उठे। मिश्रा जी ने तुरंत लाइट जलाकर घड़ी पर नज़र डाली। “अरे! बाप रे बाप, पाँच बज गए, तुमने उठाया क्यों नहीं”, मिश्रा

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