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मनीष कुमार प्रभात की डायरी

मनीष कुमार प्रभात

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manish kumar prabhat ki dir

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पुस्तक के भाग

1

दुर्गापूजा

18 अक्टूबर 2015
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अभी बुराई पर अच्छाई पर जीत के प्रतीकस्वरूप दुर्गापूजा और नवरात्रि चल रही है । इस अवसर पर भी अखवार में दुष्कर्मों की सूचनाएँ पढ़ कर बड़ा दुःख हो रहा है । क्या हो गया है उस देश को जहाँ नारी शक्ति का अवतार मानी जाती है । लगता है की कुछ लोगों के रूप में महिषाषुर ने फिर से जन्म लिया है । उन्हें ख़त्म करने क

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कहीं न कहीं तो तुम हो

18 अक्टूबर 2015
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जीवन के सफर में कब तुम्हें खो दियापता ही न चलावीरान राहों पर पत्ते खड़खड़ाए तोपता चला तुम साथ न होयह विश्वास नहीं कि तुम हो ही नहींतुम हो कहीं न सहीतुम छुटे खता मेरी कि योजना तुम्हारीसमझ नहीं पाया आज भीतेरा चेहरा देखने के भ्रम में पलकें उठाता हूँ राहें नजर आती कहती हैं हो कहीं तुम कहीं न कहीं तो तुम ह

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लिखना

22 अक्टूबर 2015
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लिखना कोई भावान्मेषी गीतया हो कोई सुमधुर संगीतदेने को एक अभिलाषारंग भरने को चित्र विलासाकवि की क्या पहचान कुची की राग वितानलेखक ने क्या रंग दिखायालेखनी ने जो कागज दमकाया

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