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मंजू गीत के बारे में

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मंजू गीत की पुस्तकें

मंजू गीत के लेख

समझ

5 जनवरी 2021
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मन के सांचे जो ढल जाए, प्रेम सुधा वो पी जाएं.. वो हमराही, हमसफ़र सबको कहां मिलता है? मन से ही जो ठोकर खा जाएं, फिर भला वो कहां जाएं? जज्बातों का ज़लज़ला है, जिंदगी में सुख दुःख का फलसफा है... कुछ कह जाए, कुछ रह जाएं.. पूर्ण करने को सबकों मनमीत कहां मिलता है? जीने के लिए साथी है पर साथ कहां मिलता है

माटी

25 दिसम्बर 2020
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माटी को संवारने वाला अन्न का दाता काली सड़कों पर अपने हक के लिए अड़ा है। खुले रूप से मिले सबको ताजा ताजा, पैकेटों में बंद होकर बिकने वाली चीजें, उनके हक और न्याय के लिए अड़ा है। लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था नारा... "जय जवान जय किसान" आज दोनों को एक दूसरे के सामने खड़ा देखा है। राजनिति ने बेटियां,

क्या जीना

4 सितम्बर 2020
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दिल क्या चाहें, कोई समझे ना.. खुद खुशी करने से अच्छा है कि किसी की खुशियों को सजाया जाएं, खुद को मारने से बेहतर है कि किसी के साथ जी लिया जाए,, बेमायने ही सही.... खुद पर यूं एक एहसान कर लिया जाए, शायद वक्त परेशानियों का कुछ कट जाए। भटके मन को राह दिखाना आसान कहां है? पर हर हाल में चलना ही बेहतरीन है

दूरी

2 सितम्बर 2020
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जिंदगी लंबी नहीं बड़ी हों कमी न हो जिंदगी में प्यार की घड़ी सांचा प्रेम हों तो मूरत बोले माटी की, दूरी ने कर दिया, तुझे और भी करीब तेरा ख्याल आकर ना जाए तो क्या करें। तुझसे दूर होकर, ऐसे वक्त गुजर रहा है, कि बिन होंठ हिले, मैंने तुझे पुकारा है। जब तेरे दिल में एहसास ही ना बचा मेरा तो मेरे होने या ना

लड़ रहे हैं

28 अगस्त 2020
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छूट गयी है जिंदगी की धूरी लड़ रहे हैं नेता कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं लोग धर्म को श्रेष्ठ बनाने के लिए लड़ रहे हैं बच्चे जीत के लिए लड़ रहा है युवा बेरोजगारी के लिए लड़ रहा है सैनिक सरहद बचाने के लिए लड़ रहा है वकील सच झूठ का जामा पहनाने के लिए लड़ रहा है मरीज जिंदगी पाने के लिए लड़ रही है औरत सम्मान

लड़ रहे हैं।

28 अगस्त 2020
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छूट गयी है जिंदगी की धूरी लड़ रहे हैं नेता कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं लोग धर्म को श्रेष्ठ बनाने के लिए लड़ रहे हैं बच्चे जीत के लिए लड़ रहा है युवा बेरोजगारी के लिए लड़ रहा है सैनिक सरहद बचाने के लिए लड़ रहा है वकील सच झूठ का जामा पहनाने के लिए लड़ रहा है मरीज जिंदगी पाने के लिए लड़ रही है औरत सम्मान

तलाश में

25 अगस्त 2020
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खड़ी है दिवारें बिन छत के हैं घर । रात अंधेरी सुबह की तलाश में है घर। नींव गहरी, टूटा फर्श बेहतर अर्श के इंतजार में है। दो कच्चे कांधे, दो दीह का बोझ संभाले, ढूंढते हैं संग दिल वर, जहां मिलें उन्हें खुशियों भरा कल। बेचैन रातें, टूटी नींद मां को सोने नहीं देती, ज़मीन कोरी, खुला आसमान छाया नहीं छत की

कपड़ा कम

25 अगस्त 2020
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पीर बढ़ावे जब चोट करें अपने सखी साखा, चाकरी करें ना मिले, मान स्वाभिमान से ज्यादा। खुद की समझ से बढ़ावे पैर, नासमझी में उलझ समझदार से, कौन चाकर कमावे बैर ... अनपढ़ माली पाल‌‌ पोस कर बगिया, अनपढ़ हाली खेत जोत कर अन्न उपजाए बढ़िया... पढ़ें लिखे बाबू साहेब पेन की नोंक से कुचले, ज़मीनी दुनिया... पढ़ें

आत्म निर्भर

25 अगस्त 2020
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आत्मिक बंधन

21 अगस्त 2020
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खुबसूरत रिश्ते आत्मा से जुड़े होते हैं। आत्मा से जुड़े एहसास चाहत लिए होते हैं।। रिश्ते तो किसी से कभी भी बन जाते हैं, पर बिना स्वार्थ के रिश्ते ही पवित्र और सच्चे होते हैं। हर बेगाने से बना रिश्ता महोब्बत नहीं होता, कुछ रिश्ते प्रेमी, प्रेमिका से भी ऊंचे कद (गुरू) लिए होते हैं। जिंदगी मांझी और ‌सां

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