मैं अभिलाषा ,अनंत अभिलाषाओं को अंतरतम में समाहित किए उमड़ते भावसागर को शब्दों के माध्यमसे जीवंत करने का प्रयास कर रही हूं।मन,आत्माबुद्धि, विचार का बहता निर्झर है मेरा यह पेज।
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न्याय की आशाहर ओर हताशाप्रक्रिया है ढीलीडगर पथरीलीभटकते हैं दर-दरनहीं मिलता न्यायबांधे आंखों पर पट्टीखड़ी न्याय की देवीबाहुबल,धनबल काद्वारपाल है न्यायसूनी आंखें देखें सपनेबीतेंगे सदियां टूटे सपनेन्याय है स्वप्न इस व्यवस्था मेंअन्याय छुपा न्याय केमुखौटों मेंन्याय हार जाता हैअन्याय जीत जाता हैधूल चाटत
सौम्या यही नाम था उसका,हमारे पड़ोस में रहने वाले तिवारी जी की बेटी थी।आज उसे घर लाया जा रहा था, कहां से? कहीं बाहर गई थी क्या सौम्या? हां, पिछले कई दिनों से दिखी भी नहीं थी।मैंने पूछा भी था,तो टाल-मटोल वाला जबाव मिला था, लेकिन आज सारी कहानी सामने थी। आठवीं में ही पढ़ती थीसौम्या! बड़ी चुलबुली और प्या