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अमरावती बनी पुरे मोहल्ले की अम्मा 

9 अक्टूबर 2022

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अमरावती का ध्यान घर और बच्चों में बिलकुल नहीं रहता था  और इस बात की गवाही घर खुद चीख-चीख कर दे रहा था | कभी कोई चीज़ उसकी सही जगह पर नहीं होती थी और ज्यादातर घर अस्त-व्यस्त ही होता था। कभी-कभी तो राम अमोल पाठक जी का भी संयम टूट जाता था, घर की गंदगी और बच्चों की हालत देख नाराज हो जाया करते थे । पर ज्यादातर बहस में पढ़ने के बजाय वो स्वयं ही घर सहेज लिया करते थे |

 

बस इसी तरह राम अमोल पाठक जी की दुनिया चलती रही, पहले हफ्ते बीता , फिर महीना और फिर कई साल भी बीत गए । अब अमरावती और राम अमोल पाठक जी की उम्र 35 -40 के बीच रही होगी, बड़ा बेटा चंदन 13-14  साल का और पूर्णिमा कोई 8-9 साल की हो चुकी थी।

 

नंदन जो परिवार का सबसे छोटा सदस्य हुआ करता था अब वो परिवार का सबसे छोटा सदस्य नहीं रहा क्योंकि उसका छोटा भाई चंपक अब आ चुका था |  यानी कि राम अमोल पाठक और अमरावती को एक और बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने चंपक रखा। 

 

नंदन जो राम अमोल पाठक जी का मंझला  बेटा था अभी कोई 5-6  साल का था, वह स्वभाव से काफी जिद्दी था, उसकी भावनाएं ज्यादातर अति की ओर होती थी । उसे अक्सर खुशी से  हंसते-कूदते  या फिर गुस्से में लाल-पीला होते हुए ही देखा जाता था और अमरावती उसके स्वभाव का बखूबी लाभ उठाना जानती थी । अमरावती जिसने एडिटर साहब के आगे कभी कुछ बोला नहीं उनके आगे अपनी बात रखने का माध्यम मिल गया था, और वो माध्यम था नंदन | अमरावती को जिस चीज़ की इच्छा होती उदहारण के तौर पर मेले जाने की इच्छा या सिनेमा जाने की इच्छा तो बस नंदन को सीखा-पढ़ा कर राम अमोल पाठक जी के आगे कर देती | नंदन राम अमोल पाठक जीके आगे ज़िद कर धूम मचा देता और उसकी ज़िद के आगे राम अमोल पाठक जी हार जाते और बिना मुँह खोले अमरावती की इच्छा पूरी हो जाती

 

ऐसा नहीं है कि अमरावती ने अपने बाकी बच्चों को माध्यम बनाने की कोशिश नहीं की पर जब भी वो \ अपने बड़े बेटे चंदन को भी अक्सर माध्यम बनाने की कोशिश करती है उसे कुछ सिखाती अपने पापा से कहने को कहती या जिद करने को कहती | पर चन्दन अमरावती के मुताबिक काम नहीं करता था । या तो बड़े बेटे चंदन में पापा के गुण ज्यादा थे या उसे सही-गलत की उसकी अपनी समझ थी, चाहे कारण जो भी हो पर चन्दन अमरावती के कहे अनुसार नहीं चलता था । पूर्णिमा को भी बहुत कच्ची उम्र में घर के काम-काज में लगा दिया था इसलिए उस में इतना आत्मविश्वास नहीं था कि अपने पापा के आगे अपनी बात रख सकती थी और ज़िद कर सकती थी । पूर्णिमा जिम्मेदारियों की बोझ से लड़ी हुई थी | घर की देख-रेख के अलावा चम्पक का ध्यान रखना भी पूर्णिमा की ही जिम्मेदारी थी | 

 

पर अब अमरावती का घर पहले से ज्यादा बेहतर दिख रहा था, साफ सुथरा और सजा हुआ क्योंकि 9 वर्षीय पूर्णिमा घर के काम में निपुण हो गई है, बड़े और छोटे भाइयों  की जरूरत और नखरे पूरा करने की जिम्मेदारी भी पूर्णिमा बखूबी निभा रही है | पर पढ़ाई में पूर्णिमा को ज़रा भी रूचि नहीं थी | 

 

अमरावती की पड़ोसन राधा शर्मा के अब दो बच्चे थे 10 साल और 12 साल के हो चुके थे  राधा अपने बच्चों को बहुत ही नीति-नियमों से पाल रही थी, उसके बच्चे से शाम के वक्त ही घर से बाहर निकलते थे ।

 

ठीक इसके विपरीत अमरावती के बच्चे शाम में ही घर के अंदर जाते, जब उनके पिता जी के घर लौटने का वक़्त होता था | 

 

अमरावती ने इतने सालों में कई बार राधा मिश्रा को औरत मंडली का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करती है  पर राधा ने  कोई भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। शायद इसलिए अमरावती राधा को नापसंद करने लगीं | 



इतने सालों में कई चीजें बदल गई थी अमरावती ही चुगली-मंडली की मुख्य सदस्य बन गई थी और कमला की मार्गदर्शक भी।

 

एक रोज दोपहर कमला अमरावती के घर आई, पूर्णिमा कुर्सियां बाहर लगाती है दोनों सहेलियों के बातों का सिलसिला शुरू हो गया।

 

कमला ( अमरावती से ) - ( बड़ी दिलचस्पी से ) आपकी आज-कल में राधा रानी से बात हुई है या नहीं ?

 

अमरावती ( कमला से ) - ना रे बाबा !  मुझे उस राधा रानी से बात ही नहीं करनी | अपने आप को बहुत काबिल समझती है | खुद को हम लोगों से बेहतर समझती है  | कितनी बार उस राधा-रानी से कहा, दिन भर अकेली बैठी रहती हो , हम लोग के साथ बैठा करो, बातें  किया करो | पर नहीं राधा रानी खुद को मैडम समझती हैं  | 

 

कमला ( अमरावती से ) -   राधा-रानी खुद को सिर्फ मैडम समझती नहीं है  वह सचमुच मैडम बन चुकी है | 

 

कमला ( अमरावती से ) - आपको पता नहीं क्या ? महीने भर से  मोहल्ले के बच्चे उससे ट्यूशन पढ़ रहे हैं | 

 

अमरावती ( कमला से ) -  अच्छा, मैं ज्यादातर तो घर पर होती नहीं, शायद इसलिए मुझे मालूम नहीं ।

 

कमला ( अमरावती से ) -  मैडम राधा-रानी की मोहल्ले में बहुत तारीफें हो रही हैं |  मैडम राधा रानी के ट्यूशन की | 

 

अमरावती ( कमला से ) -  (ताना कसते हुए ) अच्छा तो मैडम, अपने आप को हम लोगों से ज्यादा पढ़ी-लिखी समझती हैं |

 

कमला  (अमरावती से ) -  सिर्फ समझती नहीं है, मैडम राधा-रानी सच में ग्रेजुएट है | 

 

अमरावती ( कमला से ) -  चुप रहो !  उसकी ज्यादा तारीफ ना करो | 

 

अमरावती ( कमला से ) - ( शैतानी मुस्कान देते हुए ) इस राधा-रानी की तारीफ़ तो अब मैं  करवाउंगी |  

 

कमला (अमरावती से ) -  मैं कुछ समझी नहीं ?

 

अमरावती ( कमला से ) - पहले और पास आ फिर समझाती हूँ | 

 

फिर अमरावती और कमला लंबे समय तक खुसुर-फुसुर सी धीमी आवाज़ में बातें करते रहे | 

 

पूर्णिमा वहीं बैठी हुई थी, जब उस से रहा न गया तो पूछ बैठी | 

 

पूर्णिमा ( अमरावती से मां ) -  क्या बात कर रही हो मुझे भी बताओ ना | 

 

पूर्णिमा ( कमला से ) - कमला चाची क्या बात कर रही हो मुझे भी बताओ | 

 

कमला ( पूर्णिमा से ) - ( मुस्कुराकर ) सब बता दूंगी, बस थोड़ी बड़ी तो हो जा | 

 

फिर  कमला और अमरावती बाहर जाने लगते हैं और अमरावती जाते हुए पूर्णिमा से कहती है | 

 

अमरावती पूर्णिमा  मैं थोड़ा बाहर से आती हूं, तुम शाम का  खाने का काम शुरू करो, भैया को क्या चाहिए हो दे देना और नंदन भी सिन्हा जी के यहाँ खेल रहा है उसे ले आना और चंपक का भी ध्यान रखना | 

 

पूर्णिमा ( अमरावती से ) -  हां ठीक है मां | 

 

मोहल्ले में थोड़ा आगे जाते जाते ही कमला बोल पड़ती है | 

 

कमला ( अपने घर के बाहर बैठी महिला से ) क्या बात है शीला बच्चे दिखाई नहीं दे रहे ?



घर के बाहर बैठी शीला ( कमला से ) -  अरे अमरावती भाभी की पड़ोसन है ना राधा मिश्रा |  बड़ा अच्छा पढ़ाती है बच्चों को |  राधा मैडम का ट्यूशन फीस भी बहुत कम है, एक महीने से मेरे बच्चे ट्यूशन पढ़ने जा रहे हैं, इसके पापा कह रहे थे  कि हमारे बड़े  बेटे की पढ़ाई में बहुत सुधार है ।

 

कमला ( घर के बाहर बैठे शीला से )- मियां-बीवी का झगड़ा हुआ है इसलिए ट्यूशन पढ़ा रही है और कोई बात नहीं है | 

 

शीला ( कमला से ) -  ये क्या कह रही हो ? मियां बीवी के झगड़े का ट्यूशन से क्या लेना देना | 

 

कमला ( शीला से ) - वो  अमरावती भाभी की पड़ोसन है, अमरावती भाभी से कोई बात छुपी नहीं है | 

 

शीला ( अमरावती से ) -  अमरावती भाभी  ! ये  कमला क्या कह रही है ? आखिर बात क्या है ?

 

तभी वहां दो तीन औरतें और आ जाती हैं, औरतों की भीड़ बढ़ती देख अमरावती चेहरे पर चमक आ जाती है और  वो कहानी कहानी शुरू कर देती है | 

 

अमरावती ( वहां खड़ी औरतों से ) - ( ताना कसते हुए ) अरे ये  राधा रानी बड़ी नकचढ़ी है, मिश्रा जी की एक नहीं सुनती  | आए दिन इन दोनों का झगड़ा होता रहता है, ज्यादा पढ़ी लिखी है ना इसलिएभरत मिश्रा जी के काबू में नहीं आती | 

 

अमरावती ( वहां खड़ी औरतों से ) -  एक दिन तो इस राधा रानी ने हद ही कर दी, बहुत बुरा भला कह दिया भरत मिश्रा जी को | 

 

वहां खड़ी औरतें (अमरावती से ) -  (आश्चर्यचकित होकर )  क्या सच में भाभी ?

 

अमरावती ( वहां खड़ी औरतों से ) - और नहीं तो क्या ? एक दिन जब राधा-रानी ने भरत मिश्रा जी को बहुत ज्यादा खरी-खोटी सुना दी तब से भरत मिश्रा जी ने खर्चा पानी देना बंद कर दिया है, इसलिए यह ट्यूशन शुरू हुआ है | 

 

अमरावती और कमला ने अपना-अपना काम कर दिया और अपने अपने घर लौट गयीं | बस क्या था जो मोहल्ले की औरतें राधा मिश्रा को सम्मानपूर्वक राधा मैडम के नाम से बुला रही थीं अब राधा रानी के नाम से बुलाने लगीं | 

 

जब अमरावती घर पहुंची तो राम अमोल पाठक जी पहले से घर पर थे और भरत मिश्रा और उनकी बीवी राधा भी उनके ही घर पर आए हुए थे | 

 

उन्हें घर पर देख कर चौंकते हुए अमरावती ने कहा | 

 

अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) -  आप आ  गए | 

 

राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - हाँ  अभी-अभी आया | 

 

राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) -  चन्दन की माँ ! देखो राधा भाभी क्या कह रही हैं ?  

 

राधा मिश्रा ( अमरावती से ) -  भाभी जी !  मैंने खाली समय में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया है, आपके बच्चे मेरे बच्चे भी तो हैं, आप इन्हें मेरे घर भेज दिया करें और पढ़ाई की चिंता से निश्चिंत हो जाएं | 

 

अमरावती तो कुछ नहीं कहती पर राम अमोल पाठक जी बोल पड़ते हैं | 

 

राम अमोल पाठक जी  (भरत मिश्रा और उनकी बीवी राधा से ) -   फीस के नाम पर कुछ तो लेना पड़ेगा तभी बच्चे अपनी जिम्मेदारी समझेंगे | 

 

भरत मिश्रा (  राम अमोल पाठक जी से  ) - आप  उसकी तनिक भी चिंता ना करें, राधा सब संभाल लेगी | 

 

और फिर भरत मिश्रा और उनकी बीवी अपने घर चले जाते हैं  ।

 

उनके जाने के  राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से )  - बड़े अच्छे लोग हैं, अच्छे लोग का पास रहना मायने रखता है । क्या बोलती हो चंदन की माँ ? मैं सही कह रहा हूं ना | 

 

अमरावती (राम अमोल पाठक जी से ) -  हाँ-हाँ  बिल्कुल सही बात है | 

 

अमरावती राम अमोल पाठक जी की बात से कतई सहमत नहीं थी ।अमरावती अभी-अभी राधा के लिए इतना बुरा कर लौट रही थी और वहीं वो ही राधा अमरावती के बच्चों को मुफ्त ट्यूशन पढ़ाना चाहती थी । यह सब देखने और सुनने के बाद भी अमरावती को अपने किए का कोई पछतावा ना था ।

 

अमरावती रसोई जाकर धीमी आवाज में -   राधा अपने आप को समझती क्या है? मेरे बच्चों को  पढ़ाएगी, मेरी पूर्णिमा को अपने जैसी घर की मूर्ति बनाएगी | 

अमरावती  धीमी आवाज में हंसकर -

राधा रानी तुम मेरे बच्चों को क्या किसी बच्चे को नहीं पढ़ा पाओगी, आज जो करके आई हूं ना ! कोई अपने बच्चों को नहीं भेजेगा तुझसे पढ़ने | बड़ी विद्वान बनी फिर रही थी 

 

और अमरावती मुस्कुरा-मुस्कुरा कर  गाना गुनगुनाते हुए रोटियां बनाने लगती है | 

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रचनाएँ
अमरावती के छलावे
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"अमरावती के छलावे" यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है और इसके हर पात्र भी काल्पनिक हैं | "अमरावती के छलावे" कहानी है अनोखी किरदार अमरावती के जीवन से जुड़े किरदारों के जीवन यानि जिंदगी की | जिंदगी की बात की जाए तो जिंदगी में वक्त आमतौर पर दो रूपों में आता है-एक तो अच्छा वक्त और दूसरा बुरा वक्त। अच्छे वक्त की कोई खास परिभाषा नहीं है पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है और बुरा वक्त, इसी कई परिभाषाएँ हैं उनमें से एक है परीक्षा की घड़ी। जिस समय हमारे आसपास के व्यक्तित्व खास कर उनकी पत्नी अमरावती का एक नया रूप निकल कर सामने आता है और परेशानियाँ और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं। इस कहानी के एक महत्त्वपूर्ण किरदारों में से एक हैं एडिटर साहब राम अमोल पाठक जी, अमरावती के पति | इस अध्याय में कहानी इनके ही इर्द-गिर्द ही घूमती नज़र आएगी। जिनके लिए कहा जा सकता है कि उनकी जिंदगी में अच्छा वक्त करीब 18-19 वर्षों तक रहा और उसके बाद आई परीक्षा की घड़ी यानी कि बुरा वक्त जब उनके आसपास के व्यक्तित्व यानी पर्सनैलिटीज़ का नया रूप उनको देखने को मिला और नए तजुर्बे हुए। इस कहानी की शुरुआत मैं बिल्कुल शुरू से करती हुं, बात जमाने की है जब इंटरनेट की मौजूदगी हमारी जीवन में नहीं के बराबर थी और कविताएं, कहानियां और किताबें हमारे मोबाइल स्क्रीन या लैपटॉप स्क्रीन पर नहीं बल्कि कागज पर छपा करती थीं।
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