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निहारता हूँ शून्य

29 जनवरी 2020

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काँच के पीछे सिमटते हुए

मन ही मन

थिरक रहे अंतर के घुँघरू

समर्पण या ख़ौफ़ के शब्दों में

निहारता हूँ शून्य

निरन्तर....निरन्तर...

झरते शब्दों की

हँसी निष्कासित

निस्पन्द है
दो पलों की छाया में

निहारता हूँ शून्य

निरन्तर....निरन्तर...

अहं का लम्बा अंतराल

अज्ञात दिशाओं में गुम

समझौता या नाकारा सी भूमिका

विश्वास की टूटी आस्थाओं में

निहारता हूँ शून्य

निरन्तर....निरन्तर...

अग्निमुख रक्तों रंगी

स्मृतियों का सब दर्द

देह त्याग के आंसू

अंतस में सजल विवशता लिए

निहारता हूँ शून्य

निरन्तर....निरन्तर...

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