निर्मल वर्मा अपने उपन्यास वे दिन में कहते हैं कि "हम उम्र भर कुछ पाने की उम्मीद में कई दरवाजों को खटखटाते रहते हैं और एक दिन किसी ऐसे दरवाजे से हमें कोई भीतर खींच लेता है, जिसे हमने कभी खटखटाया नहीं था। कितना अजीब है न किसी तिलिस्म से बंधे हम उम्र भर अपनी आकांक्षाओं के पीछे में भटकते रहते हैं। चाहनाओं हासिल करने की कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ते। परंतु हम पाते वही हैं जो हमारी नियति में निर्धारित है। हम अपनी आकांक्षाओं के लिए जितने उत्सुक होते हैं उतनी ही उत्सुकता से नियति भी हमारे लिए प्रतीक्षारत होती है। एक उम्र के बाद ज़िन्दगी हमें स्वीकार करना सिखा देती है।