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पंचमढ़ी चले भाग 1(यात्रा संस्मरण)

16 जुलाई 2020

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इंदौर के पास एक कस्बा राऊ नगर, रंगवासा रोड पे स्थित उमिया पैलेस बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर रोजाना की तरह महिलाओं,बच्चों और पुरुषों की हलचल।अचानक से राऊ नगर के जननायक भाई राजेश मंडले का आगमन।दोपहर के करीब साढ़े बारह बजे थे।संजय सर,अरुण सर,

विनोद बिस्ट बैठे बैठे सन्डे मना रहे थे।अचानक से पंचमढ़ी जाने का प्लान बना।राजेश भाई ने फटाफट एक टेम्पो ट्रैक्स बुक की और सारे लोग अपनी तैयारियों में लग गए।ठीक शाम साढ़े पांच बजे हमारी ट्रैक्स हमारे परिवारों के साथ खंडवा रोड पे दौड़ने लगी।बातों का सिलसिला,कुछ गाना बजाना,बच्चों की चिल्लमपों मची हुई थी। घाट की सुंदरता ,प्राकृतिक झरनों, वृक्षादित

पहाड़ों पर उतार चढ़ाव का मजा खंडवा रोड पर पूरा मिल रहा था।अचानक बड़वाह शहर आते ही ड्राइवर ने गाड़ी एक गेरेज पे खड़ी कर दी।निमाड़ की उमस सभी को सताने लगी।गाड़ी का थोड़ा काम करना जरूरी था , वहां करीब डेढ़ घंटा बीत गया।सभी इंतजार कर रहे थे,साथ ही उस घड़ी को कोंस रहे थे जब ये टूर प्लान हुआ।लेकिन भगवान जो करता है अच्छे के लिए ही करता है।गाड़ी तैयार सभी ने अपनी जगह ले ली।ड्राइवर ने मुंह में गुटखा दबाया और एक्सलरेटर पर पैर दबाया।फर्राटे से गाड़ी खंडवा की और दौड़ पड़ी।और हमारी थैलियों से चिप्स,बिस्किट्स,सेव परमल,आदि बाहर आने लगे।हम इंदोरियों को खाने पीने का बहुत शौक,जबान तो ऐसी चटोरी की इंदौर में पूरे देश कीऔर विदेश की डिशेज मिल जाती है।वैसे हमारें यहां के नमकीन, मिठाईयां,और घी में तर दाल बाफले एक बार कोई खा ले तो बार बार चटखारों के साथ याद रखें।

रात के तकरीबन ग्यारह बजे हमने खंडवा शहर पार कर लिया बीच में नया हरसूद ,नर्मदा नदी, पूनासा डेम,होते हुए गाड़ी पिपरिया की ओर तेजी से दौड़ पड़ी।सुनसान रास्ते पे ड्राइवर गुटखा मुंह में दबाए तेजी से लय में गाड़ी दौड़ा रहा था। अधिकांश लोग पंचमढ़ी के लिए इंदौर से व्हाया भोपाल पिपरिया जाते है।लेकिन हमने रोमांच के लिए यह रास्ता चुना,पर क्या करें रात ज्यादा होने के कारण सभी लोग नींद में ही रोमांच अनुभव कर रहे थे।

मुझे अक्सर सफ़र में नींद नहीं आती,इसीलिए मै रात्रि को ड्राइवर के पास वाली सीट सम्हाल लेता हूं।ताकि ड्राइवर को बातों मै लगाए रखूं और नींद से दूर रखुं।

गाड़ी सुनसान रास्ते पर तेजी से दौड़ रही थी कि अचानक ब्रेक चरमराए गाड़ी झटके से रुक गई।कुछ की नींद खुल गई।पता चल बिल्ली रास्ता काट गई।थोड़ी देर रुक कर फिर गाड़ी सांय सांय करते इस जंगल में अकेली दौड़ रही थी।रात के करीब ढाई बज चुके थे ।थकान के कारण मुझे भी नींद ने आगोश में ले लिया।

आगे भाग 2 में जारी है।

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पापा ऐसे थे

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हिन्दुस्तानी सैनिक

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पंद्रह जून की वह अंधेरी रात, सुकून से सो रहा था हर हिन्दुस्तानी।क्योंकि सीमा पे चीनियों को, सबक सिखा रहे थेजांबाज़ हिन्दुस्तानी।वो थे चीनी हजारों में,केवल पैंतीस सैनिकों के साथ थासंतोष हिन्दुस्तानी ।संयम और धैर्य के साथ, गया समझाने चीनियों को थावह वीर हिन्दुस्तानी।धोख

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एक था बचपन भाग 1(संस्मरण)

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एक था बचपन भाग 3 (संस्मरण)

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मजा तब शुरू होता जब सबसे छोटे बापू मामा गर्मी की छुट्टियों में गांव आते साथ में देवगांव के प्रसिद्ध पेडे जरूर लाते ।उनके आते ही हवेली कि रौनक बढ़ जाती ,क्योंकि मामा भले ही

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पहली पहली बारिश , करती है आप से गुजारिश,जरा भीग के तो देख,पूरी हो जाएगी सारी ख्वाहिश।मै तो तुझे कर दूंगी सरोबार,गर सर्दी खांसी हो गई तो हो जाएगा क्वारेंटाइन,दूर हो जाएगा घर बार।

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ना दिल को सुकून,ना मन को चैन,ना बाहर मिले आराम,ना घर में रहे बिना काम,दोस्तों ये ना तो है प्यार,और ना जॉब या कारोबार,ये तो बस है ,शादी के बाद का हाल ।

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