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परवीन कोमल के बारे में

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परवीन कोमल के लेख

शब्द नगरी ने निशब्द को आवाज़ दी

28 जनवरी 2015
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आज ही नेट पर शब्द खोज रहा था तो ये खजाना हाथ आ गया और मैंने भी ठान लिआ कि मालामाल हुआ जाये :डी मज़ा आ रहा है हिंदी में दौड़ते हुए ..........................याहू ....

उल्लुओं के कुछ पट्ठों ने मुल्क का मिजाज़ बिगाड़ दिया

28 जनवरी 2015
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उल्लुओं के कुछ पट्ठों ने मुल्क का मिजाज़ बिगाड़ दिया हिन्द में रहते हैं हिन्द का खाते हैं हिन्द का पहनते हैं हिन्द का लुटाते हैं जब चाहा भौंक लिए जब चाहा दहाड़ दिया उल्लुओं के कुछ पट्ठों ने मुल्क का मिजाज़ बिगाड़ दिया सांस भारत में लेते हैं बिजली भारत की जलाते हैं बिरयानी दिल्ली की खाते हैं खुजल

लोटन कबूतर को अटरिआ पे मत चढ्ने दो

28 जनवरी 2015
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लोटन कबूतर को अटरिआ पे मत चढ्ने दो लोटन कबूतर को अटरिआ पे मत चढ्ने दो जिधर से आया है उधर ही बढने दो हो सकता है ये कबूतर आतमघाती हो बेगानी शादी में दुल्ला बाराती हो इस के अन्डों में भी ज़हर हो सकता है इस की गुटर गूं में भी कहर हो सकता है बारूद के ढेर से पैदा हुआ ये परिन्दा नादान नहीं इस्का कोइ राम

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