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poonamsingh के बारे में

मुझे कवितायेँ एवम गीत लिखना पसंद..

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poonamsingh के लेख

मासूमियत का क़त्ल

15 अप्रैल 2018
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कभी सूरज की रौशनी बन करमेरे आँगन में बिखर जाती, मेरे मन के हर कोने को जगमगाती कभी चाँदनी बन कर मेरे आँगन में पसर जाती ,मेरे अंदर तक शीतलता भर जाती। कभी खुशबु बन कर ,मेरे आँगन से गुजर जाती। मेरे आस पास क्या वह तो ,अंदर तक मुझे महका ती ,कई दिनों तक जब।,देखा नहीं अ

व्यथा

11 फरवरी 2018
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" अरे भोलेनाथ आप कांप क्यों रहे हैं ? और खिन्न भी लग रहे हैं " थोड़ी देर यूं ही मौन छाया रहा l " कुछ कहिये ना भोलेनाथआप की अस्वस्थता का क्या कारण है ?अरे नारद सुबह से इन पृथ्वीवासियों ने दूध, दही ,शहद से नहला नहलाकर मुझे अस्वस्थ कर दिया lऔर प्रभु खिन्नता का राज ...नारद जिस देश की जनसंख्या एक अरब से

ख़्वाब

20 जनवरी 2018
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दिल तो देना मगर दिल का दर्द नही देना, आँख तो देना मगर आँखों में आंसू नही देना, ख्वाब तो बुनती है हर एक नज़र, ऐ खुदा! कभी इन ख्वाबों को टूटने नही देना

अपील

11 सितम्बर 2017
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अपीलदुनिया की हर माँ से अपील आज तुम अपने आँसुओ को मत रोकना बह जाने दो दर्द की बाढ़ में दुनिया को आज तुम अपनी आवाज़ को मत दबाना जग जाने दो आज हर इंसान को आज तुम अपनी कराहट इतना खुल कर लो इंसान क्या भगवान को भीदर्द का अहसास हो आज की रात तुम मत सोना वरना दुनिया सो जाएगीयदि आज तुम कमज़ोर पड़ गयी तो तुम

बेसहारा

9 सितम्बर 2017
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इस टूटे फूटे जर्जर मकान मेंरहते हैं कई किराएदार'जो अब सिर्फ बकाएदार बन गए हैं..एक जोड़ी आखेंजो परदेश गए बेटे की याद मेंपथरा गई हैं..एक जोड़ी कान जो अबबापू की राह पर चल पड़े हैंलेकिन बुरा क्या, अच्छा भीनहीं सुन पाते..इस मकान की कभी, लॉ एण्ड आर्डर रही जीभ,वक़्त की मारी लड़खड़ा रही है.दो जोड़ी हाथ जिन्होंन

मयखाना

22 जून 2017
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सबके दिल को ठेस लगी हैक्यों मय खाने में भीड़ लगी हैसब मंदिर मस्जिद छोड़ गएक्यों मय खाने में बैठ गएजाति धर्म की बात यहाँ परसबकी सब बेकार गयीइक इक बूंद गले से उतरीसबके दिल को जोड़ गयीन कोई हिन्दू न कोई मुस्लिमसब के सब हुएहम प्यालाहम ख्यालाहम निवाला

मेरी पाती

9 फरवरी 2017
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बादल की छाती परओस की स्याही सेसूरज की किरणों सेलिखी मैंने पातीभावनाओं को चुन चुनशब्दों में पिरो करसजा मैंने दीजिसे विविध भांतिऐ चंचल हवा सुन लेमेरा तू कहनाले जा उड़ा कर इसेजहाँ बस्ता हो मेरा साथी

मेरी ईर्ष्या ..!!

22 अप्रैल 2015
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क्यों हम अपने दुख़ ज्यादा दूसरों के सुख से दुखी होते हैं क्यों ईर्ष्या की आग में तप कर कुंदन तो नहीं सिर्फ कोयला बन सुलगते हैं इतना सुलगे कि अपनी ख़ुशी की चमक भी धुंदली लगने लगी नहीं देख पाए अपना सुख अपना आनंद सिर्फ कुढ़ते रहे- कुढ़ते रहे अपने विचारों से क्यों मेरा पडोसी आगे बढ़ गया और मैं

पति व्रता ..!!

21 अप्रैल 2015
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कहतें हैं हाथों की लकीरों में ही हमारा भाग्य छुपा होता है लेकिन मै ने तो हमेशा उसके हाथों में पड़ी दरारों और र्रिसते खून को ही देखा है उसके चेहरे पर पड़ी धूल सूरज की रौशनी में स्वर्णरज सी दमक रही है फटे मैले आँचल में छुपे नव यौवन की मादकता अंग अंग से छलक रही है पैरों में पड़ी पाजेब

वक़्त वक़्त की बात

19 अप्रैल 2015
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जाने कब चुपचाप बुढ़ापा दबे पांव आ बैठा कब मेरी बाहें पकड़ी बाहु पाश में मुझ को जकड़ा आज जवानी जर्जर पिंजर थर थर करता बाहु बली आखों पर मोटा चश्मा पूरी बत्तीसी है नकली साथ छोड़ते सारे अपने मुंह मोड़ता अपना जाया अब किसको अपना समझूँ या कौन हुआ है पराया दो पैरों पर उड़ता था अब तीन पर

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