*धरती पर मनुष्य के विकास में मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम प्रमुख था | तब मनुष्य एक ही धर्म जानता था :- "मानव धर्म" | एक दूसरे के सुख - दुख समाज के सभी लोग सहभागिता करते थे | किसी गाँव या कबीले में यदि किसी एक व्यक्ति के यहाँ कोई उत्सव होता था तो वह पूरे गाँ का उत्सव बन जाता था , और यदि किसी के यहाँ किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी तो यह पूरे गाँव का दुख होता था और उस रात्रि पूरे गाँव में चूल्हा नहीं जलता था | यह था आपसी प्रेम और मानवती | प्राचीन कहानियाँ पढी जायँ तो मनुष्य का मनुष्य से ही नहीं अपितु पशु - पक्षियों से भी प्रेम भरा व्यवहार देखने को मिलता है | और पशु - पक्षी भी मनुष्य के दुख में दुखी एवं सुख में प्रसन्न होकर भाव - भंगिमा प्रदर्शित करते थे | रामायण का वह प्रसंग बरबस ही याद आ जाता है जब राक्षसराज रावण जगतजननी जगदम्बा माता सीता का हरण करके ले जा रहा था तब कोई मनुष्य सहायता करने वाला नहीं था , वहाँ पर सीता को बचाने का प्रयास एक गीध (जटायु) ने करने का प्रयास किया भले ही वह वीरगति को प्राप्त हो गया परंतु प्रयास तो किया एक अबला को बचाने का | यह था पारस्परिक प्रेम का अद्भुत उदाहरण | धीरे - धीरे मनुष्य अपनी मनुष्यता भूलता चला गया और इसका परिणाम हमें एक विकृत समाज के रूप में देखने को मिल रहा है |* *आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य एक दूसरे को पहचानने से इन्कार कर दे रहा है | गाँव तो अभी कुछ सीमा तक ठीक कहे जा सकते हैं परंतु महानगरों में पड़ोसी एक दूसरे को न तो जानते हैं और न ही जानने का प्रयास ही करते है | सब अपरिचित की तरह जीवनयापन कर रहे हैं | किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है | किसी अनहोनी घटना पर किसी की सहायता मिल पायेगी इसका भरोसा कैसे कर लिया जाय | सब कुछ पा लेने पर भी मनुष्य स्वयं को अकेला पाता है | इसका दोषी कौन है ?? मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" समाज के लोगों से पूछना चाहता हूँ कि आज जिस तरह चोरी , डकैती , बलात्कार तक हो रहे हैं और मनुष्य वहाँ से आँखें बन्द करके निकल लेता है तो दोषी कौन है ?? जब भी अपराध की कोई बड़ी घटना हो जाती है, तो सारा ठीकरा पुलिस के सिर फोड़ा जाता है | नि:संदेह पुलिस की जवाबदेही का प्रसंग उठना चाहिए, पर हमें यह भी सोचना होगा कि अपराधों में बढ़ोतरी के पीछे समाज में बढ़ रही मनुष्य की मनुष्य के प्रति दूरी प्रमुख कारण है | महिलाओं एवं बुजुर्गों की उपेक्षा और उनके बढ़ते जाते अकेलेपन के लिए क्या सरकार को दोषी ठहराया जा सकता है ?? यह तो हमारे पारिवारिक मूल्यों के तिरोहित होने का ही परिणाम है | जब तक मनुष्य - मनुष्य के प्रति पुन: संवेदनशील नहीं होगा तब तक अपराधों को रोक पाना असम्भव है |* *आज पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों का पतन जिस तरह हो रहा है यदि इसे न सम्हाला गया तो आने वाला समय और भी विकृत ही होगा |*