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अनेकता में एकता की मिसाल...

21 जनवरी 2015

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अनेकता में एकता की मिसाल कैसे ?

हिंदू sanskriti जिस धरती पर समृद्ध हुई, उसकी आबादी के बारे में हम जान चुके हैं कि वह मूलतः चार जातियों का मिश्रण रही है. इन्हीं जातियों के बीच के वैवाहिक संबंधों ने हमारी संस्कृति को बहुरंगा स्वरूप प्रदान किया. विविधता में एकता हमारी सांस्कृतिक पहचान रही है. न स़िर्फ जातीय, बल्कि भाषाई आधार पर भी भारत की विविधता ग़ौर के क़ाबिल है. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग भाषाएं बोली जाती हैं. उत्पत्ति के लिहाज़ से उन्हें अलग-अलग भाषाई समूहों में वर्गीकृत किया जाता है. इन भाषाओं की अपनी लिपियां हैं, अपना साहित्य है और एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी. भाषाशास्त्रियों ने इस देश में बोली जाने वाली भाषाओं को कई वर्गों में विभाजित किया है. 76.4 फीसदी लोग आर्य भाषा समूह की बोली बोलते हैं, 20.6 फीसदी द्रविड़ और 3 फीसदी लोग शबर-कराती भाषाभाषी माने गए हैं.

मंगोल जाति के लोग तिब्बती-चीनी परिवार की भाषाएं बोलते हैं. इस भाषा पर आर्य भाषाओं का प्रभाव भी देखने को मिलता है. तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम द्रविड़ परिवार की मुख्य भाषाएं हैं, जो तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में बोली जाती हैं. द्रविड़ भाषाओं के अनेक शब्द और प्रयोग आर्य भाषाओं में आ गए हैं, जबकि संस्कृत के अनेक शब्द द्रविड़ भाषाओं में मिल गए हैं. फिर भी india के दक्षिणी राज्यों में उक्त चार भाषाएं ही प्रचलित हैं.

दक्षिण भारत से बाहर भी दो जगहों पर द्रविड़ भाषा बोले जाने के सबूत हैं. यह इस बात का सबूत है कि द्रविड़ लोग कभी भारत के दूसरे हिस्सों में भी फैले थे. उदाहरण के तौर पर, बलूचिस्तान की ब्रहुई भाषा द्रविड़ समूह की भाषा मानी जाती है, जबकि झारखंड के प्रमुख आदिवासी ओरांव जो भाषा बोलते हैं, वह भी द्रविड़ों से मिलती-जुलती है. भाषाओं के वर्गीकरण के संबंध में कई विवाद भी हैं. भाषाशास्त्रियों में इस बात को लेकर मतभिन्नता है कि ब्रहुई और ओरांव भाषाएं सच में द्रविड़ परिवार की भाषाएं हैं या किसी और परिवार की. आदिवासियों के बीच और भी कई बोलियां प्रचलित हैं, जो वर्गीकरण की दृष्टि से ऑष्ट्रिक एवं आग्नेय भाषा समूह में रखी जाती हैं. हिंदी, उर्दू, बांग्ला, मराठी, गुजराती, उड़िया, पंजाबी, असमी और कश्मीरी आदि आर्य भाषाएं बताई गई हैं, जो संस्कृत की परंपरा से उत्पन्न हुई हैं. भारत से बाहर आर्य भाषाओं का संबंध इंडो-जर्मन भाषा समूह से है. प्राचीन पारसी, यूनानी, लातीनी, केल्ट, त्युतनी, जर्मन और स्लाव आदि भाषाओं के साथ हमारी संस्कृति का बहुत निकट का संबंध था और वह नाता आज भी है. लातीनी प्राचीन इटली की भाषा थी और अब इटली, फ्रांस और स्पेन में उसकी वंशज भाषाएं मौजूद हैं.

इंडिया

anamika

anamika

गहन जानकारी प्रदान करने के लिए धन्यवाद।

24 मई 2015

डा० सचिन शर्मा

डा० सचिन शर्मा

ज्ञानवर्धक रचना.....

16 अप्रैल 2015

rajeev kumar sah

rajeev kumar sah

बहुत बढ़िया

8 अप्रैल 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

शोभित जी , आपका ये उत्तम लेख शब्दनगरी के ट्विटर एवं फेसबुक पेज पर प्रकाशित किया गया है . दिए गए लिंक्स पर जा कर आप अपना लेख देख सकते है .https://www.facebook.com/shabdanagari https://twitter.com/shabdanagari

26 फरवरी 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

रचना भारत की सामासिक संस्कृति एवं समृद्धि की मिसाल है

17 फरवरी 2015

शिव हरी ओम शुक्ला

शिव हरी ओम शुक्ला

अच्छी जानकारी बंधू

1 फरवरी 2015

31 जनवरी 2015

शालिनी कौशिक एडवोकेट

शालिनी कौशिक एडवोकेट

बहुत सार्थक प्रस्तुति .आभार

30 जनवरी 2015

परवीन कोमल

परवीन कोमल

अति उत्तम

28 जनवरी 2015

सोनू कुमार विज

सोनू कुमार विज

जानकारी अच्छी लगी

28 जनवरी 2015

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