मापनी -२१२२ २१२२ २१२२ २१२ सामंत- आ पदांत-दिख रहा
“गीतिका”
अटल बिन यह देश अपना आज कैसा दिख रहा
हर नजर नम हो रही पल बे-खबर सा दिख रहा
शब्द जिनके अब कभी सुर गीत गाएंगे नहीं
खो दिया हमने समय को अब इंसा दिख रहा।।
याद आती हैं वे बातें जो सदन में छप गई
झुक गए संख्या की खातिर नभ सितारा दिख रहा।।
खो दिया उस वक्त हमने देश के सपूत को
आज अर्थी वह उठी सबको जनाजा दिख रहा।।
जिंदगी से मौत होती कब बड़ी वे कह गए
दो घड़ी में जल गया सुंदर खजाना दिख रहा।।
सत्य होता है अटल झूठी अटल बातें नहीं
झूठ मलता हाथ अपना सत्य जाता दिख रहा।।
वक्त के गर साथ गौतम हो लिया होता तनिक
सच कहूँ तस्वीर होती इतर सपना दिख रहा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी