*मानव शरीर को गोस्वामी तुलसीदास जी ने साधना का धाम बताते हुए लिखा है :--- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !! अर्थात :- चौरासी लाख योनियों में मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि है जिसे पाकर जीव लोक - परलोक दोनों ही सुधार सकता है | यहाँ तुलसी बाबा ने जो साधन लिखा है वह साधन आखिर क्या है ?? साधन का सीधा अर्थ है इष्ट ! सनातन धर्म में जहाँ ३३ करोड़ देवी - देवताओं को मान्यता मिली है प्रत्योक सनातन धर्मावलम्बी सभी को मानते हैं परंतु सबको मानने के बाद भी प्रत्येक व्यक्ति का कोई एक मुख्य देवता होता है जिसे ईष्ट देवता कहा जाता है | इस जीवन को सुधारने के लिए सभी के पास एक न एक ईष्ट का होना परमावश्यक है | जिस प्रकार वर्तमान में अदालत परिक्षेत्र में अनेक अधिवक्ता घूमा करते हैं और सबसे नमस्कार किया जाता है परंतु आपको अपना एक अधिवक्ता चुनना पड़ता है जो आपकी बात को न्यायाधीश तक पहुँचाता है | यही अधिवक्ता आपका ईष्ट हुआ | ईष्ट का सीधा अर्थ होता है लक्ष्य | आपको किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए एक लक्ष्य का निर्धारण करना ही पड़ेगा | बिना लक्ष्य के सफलता मिलना असम्भव है | अनेक ऋषियों - महर्षियों ने अपने ईष्ट का निर्धारण करके तपस्यायें करते हुए मोक्ष को प्राप्त तो हुए ही और साथ ही साथ संसार को दुर्लभ ज्ञान एवं एक सुदृढ मार्ग का अवलोकन भी कराया | जीवन में ईष्ट (लक्ष्य ) का होना बहुत ही आवश्यक है | लक्ष्य का अर्थ हुआ यह निर्धारण करना कि आपको करना क्या है और जाना कहाँ है ? आपको जीवन में बनना क्या है यह निर्धारण किये बिना आपकी जीवनरूपी गाड़ी दिशाहीन होकर चलती रहेगी जिसका न कोई गंतव्य निश्चित है और न ही विश्रामस्थल | इसलिए जीवन में ईष्ट (लक्ष्य) का होना परमावश्यक है |* *आज मनुष्य की हालत बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है | कारण कि या तो उनके ईष्ट नहीं हैं या फिर उन्हें अपने ईष्ट पर विश्वास नहीं रह गया है | प्राय: देखा जा रहा है कि मनुष्य के ऊपर कोई विपत्ति आती है तो वह मंदिरों की ओर दौड़ पड़ता है | हनुमान जी के मंदिर में पहुँचकर १०१ पाठ हनुमान चालीसा का किया एक किलो लड्डू की मनौती मानी और चल पड़ा | रास्ते में दुर्गा जी का मंदिर मिला वहाँ बैठकर कवच का पाठ करके मनौती मानकर निकल पड़ा | कहने का तात्पर्य यह है कि आज के मनुष्य को स्वयं किसी एक पर विश्वास नहीं रह गया है | सबके मंदिर जाना चाहिए सबकी पूजा करनी चाहिए परंतु इन सबके बीच में ही किसी पर दृढ विश्वास करके ईष्ट बनाना होगा तभी कल्याण निश्चित है | इन सबके बीच में एक चीज और है वह है आपका कर्मफल , जो कि आपको भोगना ही है ! परमतु यदि आपका ईष्ट सुदृढ है तो कर्मफल को सुधारा जा सकता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि देवताओं की प्रतिमायें बनाने के पहले मूर्तिकार ने भी अपना ईष्ट (लक्ष्य) निर्धारित किया होगा कि हमें किस देवता की मूर्ति बनानी है और कैसी बनानी है वह लक्ष्य हृदय में रखकर उसी के अनुसार मूर्तिकार ने एक सुंदर प्रतिमा बनाकर संसार के समक्ष प्रस्तुत किया | इसलिए जीवन में किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिए लक्ष्य का होना बहुत आवश्यक है , अन्यथा मनुष्य जीवन भर श्वान की भाँति इधर से उधर दौड़कर जीवन समाप्त कर देता है | विद्यार्थी अपने जीवन में जिस प्रकार एक लक्ष्य का निर्धारण करके चिकित्सक , अधिवक्ता एवं अभियंता बन जाता है उसी प्रकार सभी साधकों को भी ईष्ट (लक्ष्य) का निर्धारण करके ही साधना करनी चाहिए तभी साधना का फल मिल पायेगा |* *इस मानव जीवन को परमगति (मोक्ष) पाने के लिए ईष्ट का निर्धारण करके उसी दिशा में बढते रहने से ही गंतव्य की प्राप्ति हो पायेगी |*