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मानव सेवी बाबा आमटे की जीवनी

31 अगस्त 2018

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जीवनी - मानवसेवी बाबा आमटे " अर्पित हो मेरा मनुज काय , बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय "

सामान्यतः प्रत्येक मनुष्य का सहज स्वभाव होता है कि वह जीवन में स्वयं के लिए बहुत कुछ करना चाहता है । अपने परिवार ,बंधु - बांधवों के प्रति ज़िम्मेदारियाँ निभाने के प्रति सजग रहता है , प्रतिबद्ध रहता है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो स्वकेंद्रित न होकर ,दूसरों के लिए ,समाज के लिए ,अपने देश के लिए सोचते हैं , जीवन में दूसरों के लिये कुछ कर गुजरने के लिये दृढ -संकल्पित होते हैं । उनका जीवन केवल लोककल्याण के लिये समर्पित रहता है , ऐसे ही महान व्यक्तित्व थे - बाबा आमटे।


बाबा - नामकरण एवं परिचय

बाबा आमटे का जन्म २६ दिसंबर ,१९१४ को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगणघाट तहसील में हुआ था।आपकी माता का नाम - लक्ष्मीबाई आमटे तथा पिता का नाम- देवीदास हरबाजी आमटे था। बाबा का मूल नाम मुरलीधर था लेकिन माता-पिता उन्हें प्यार से " बाबा " कहकर बुलाते थे । शनैः - शनैः उनका यही नाम अस्तित्व में आया और लोग उन्हें " बाबा आमटे " नाम से जानने लगे।

यद्यपि उनके पिताजी सरकारी नौकरी में लेखापाल थे तथापि वे ख़ानदानी अमीर थे। वरोरा जिला - चंद्रपूर के गोरजे तहसील में ज़मींदारी होने के कारण शैशवकाल से ही बाबा का जीवन , वैभव और विलासितापूर्ण बीता। वे सोने के पालने में सोते- झूलते थे , चाँदी की थाली में खाना खाते थे।उनके शाही परिधान और जूतियाँ उन्हें सामान्य बालकों से अलग रखती थी। बावज़ूद इसके ,उनके परिवार में जातिगत , सामाजिक भेदभाव , गौण था।उनका परिवार सभी को एक मानता था , ईश्वर की संतानें मानता था।


बाबा की चार बहनें और एक भाई था। जब वे चौदह वर्ष के थे उन्होंने बंदूक से सूअर का शिकार किया था। वे अपनी युवावस्था में शिकार करने तथा गाडियां तेज चलाने का शौक रखते थे । कालांतर में उन्होंने शिकार से दूरी बना ली । वे अंग्रेज़ी फिल्में देखते थे। अंग्रेजी फिल्में देखकर अखबारों में उनकी स्तरीय समीक्षाएं भी लिखते थे।

उनकी शालेय शिक्षा क्रिश्चियन मिशन स्कूल नागपुर में हुई और फिर नागपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. ए. , एल. एल. बी.की पढ़ाई की तथा कुछ समय तक उन्होंने वकालत भी की।


बाबा का कृतित्व -

वे महात्मा गांधी और विनोबा भावे के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे।इस प्रभाव के चलते उन्होंने संपूर्ण भारत के ग्रामीण इलाकों का भ्रमण किया। ग्रामीणों की समस्याओं ,अभावों को निकटता से देखा ,समझा। इस बीच वे राजगुरू के संपर्क में आये लेकिन राजगुरू गरम दल के और क्रांतिकारी होने के कारण वैचारिक मतभेद के चलते उनका झुकाव पुनः महात्मा गांधी की ओर हो गया।


एक बार वे एक गाँव की ओर बढ़ रहे थे।तेज़ बारिश हो रही थी। रास्ते में उन्हें एक कुष्ठरोगी दिखा।एक टपरी के नीचे कुछ लोग खड़े थे ,जैसे ही वह कुष्ठरोगी वहाँ खड़े होने के लिये पहुँचा सभी लोग उससे दूर हटने लगे।बाबा ने यह दृश्य देखा और वे विचलित हो गये। उन्होंने उस आदमी को अपने करीब बैठाया और अपने घर ले गये। तत्पश्चात उन्होंने कुष्ठरोग , कुष्ठरोग निवारण आदि पर ध्यान केन्द्रित कर इस विषय का गहन अध्ययन किया।कुष्ठरोग संबंधी भ्रांतियाँ जैसे ,यह बीमारी छूत की बीमारी है , जानलेवा है आदि को दूर करने का प्रयत्न किया। उन्होंने कुष्ठरोगियों की सेवा की और उनका इलाज भी करवाया। कुष्ठरोग पर विभिन्न अनुसंधान किये। उचित अनुसंधान हो , इसके लिये प्रायोगिक तौर पर उन्होंने कुष्ठरोग के बैक्टीरिया स्वयं के शरीर में प्रवेश करवा लिया। उनके इस कृत्य को देख परिवार के लोग स्तब्ध हो गए लेकिन कुष्ठरोगियों की समुचित चिकित्सा और पुनर्वास की संवेदनशीलता को देख परिवार ने उनका साथ दिया। उन्होंने १५ अगस्त १९४९ में वरोरा (चंद्रपूर) मे सात कुष्ठरोगियों के लिये " आनंदवन " की स्थापना की। इस महत्वपूर्ण महारोगी सेवा संस्था के लिये उनकी पत्नी ,साधनाताई , दो पुत्र , डॉ. विकास और डॉ. प्रकाश आमटे ने उन्हें आत्मीय साथ दिया।आनंदवन निराश ,हताश , समाज से बहिष्कृत , कुष्ठरोगियों के लिये आशा और उम्मीदों की किरण बन गया था।बाबा आमटे ने इसे जीवन पर्यंत अपनी कर्मभूमि बनाए रखा।यहाँ कुष्ठरोगी सम्मानजनक जीवन जीने लगे। बाबा ने " श्रम ही है श्रीराम हमारा " यह नारा दिया जिसके कारण देखते ही देखते हज़ारों कुष्ठरोगी अपने गलित हाथों के प्रति हीनभावना तजकर मेहनत करने लगे और समाज की मुख्य धारा से जुड़ गए।१९७३ में उन्होंने गड़चिरोली जिले के सुदूर आदिवासियों की सहायता के लिये " लोक जाति(बिरादरी) प्रकल्प " की स्थापना की।


उनके दो मराठी काव्य-संग्रह भी प्रसिद्ध हुए ।१) ज्वाला आणि फुले ( ज्वाला और पुष्प) २) उज्ज्वल उद्या साठी ( उज्ज्वल कल के लिये) आपकी रचनाओं में असाध्य रोगों से जूझते रोगियों का प्रतिबिंब दिखाई देता है। बाबा आमटे ने अपना संपूर्ण जीवन सामाजिक उन्नयन , सामाजिक एकता , वन्य जीव संरक्षण , नर्मदा बचाओ आंदोलन ,पर्यावरण संरक्षण इत्यादि के लिये समर्पित कर दिया।

प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान -

बाबा आमटे को मानवता की सेवा के लिये अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिले ,जिनमें से कुछ अधोलिखित हैं । ● पद्मश्री १९७१ ● रमन मेगसेसे अवार्ड १९८५ ● पद्म विभूषण ,१९८६

साथ ही निम्नलिखित पुरस्कार भी प्राप्त हुए -

१) राष्ट्रीय भूषण १९७८ , एफ. आई. ई. फाउंडेशन ,इचलकरंजी २) एन. डी.दीवान अवार्ड १९८० ,मुंबई ३) रामशास्त्री अवार्ड , १९८३ , रामशास्त्री प्रभुणे संस्थान , महाराष्ट्र ४) राजा राममोहन राय अवार्ड , १९८६ ,दिल्ली ५) जी. डी. बिरला इंटरनेशनल अवार्ड ,१९८७ , मानवता के विकास हेतु ६) टेम्पलटन अवार्ड ,१९९०( बाबा आमटे और चार्ल्स बिर्च को संयुक्त रुप से मिला) ७) आदिवासी सेवक अवार्ड , १९९१ , भारत सरकार ८) कुसुमाग्रज पुरस्कार , १९९१ ९) डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर दलित मित्र अवार्ड ,१९९२ ,भारत सरकार १०) कुष्ठ मित्र पुरस्कार ,१९९५ , विदर्भ महारोगी सेवा मंडल , अमरावती ,महाराष्ट्र ११) अपंग मित्र पुरस्कार १९९८ , कोल्हापूर १२) सावित्रीबाई फुले अवार्ड १९९८ , भारत सरकार १३) गाँधी शांति पुरस्कार १९९९ , १४) भारथवासा अवार्ड २००४ .


नागपूर ,पुणे ,मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट. की सम्मानजनक उपाधि दी गई। महात्मा गाँधी ने उन्हें " अभय साधक " यह नाम दिया था। बाबा आमटे कहते थे - " मैं महान नेता बनने के लिये काम नहीं करना चाहता वरन् ज़रुरतमंद , गरीब , निर्बल ,असहाय लोगों की सहायता करना चाहता हूं। नर ही नारायण है ....मैं नारायण सेवा करना चाहता हूं। " इन प्रेरक विचारों के धनी बाबा आमटे ने शब्दशः जीवन में उतारा और आजीवन नारायण सेवा की। जीवन की सांध्य बेला में भी वे मानव - सेवा में नीरत रहे ।

९ फरवरी २००८ को मानवता के इस सच्चे पुजारी का निधन हो गया। वे शारीरिक रुप से हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके मानवतावादी उदात्त विचार , सामान्यजन को दीपक की लौ की तरह राह दिखाते हैं , मानव जीवन का पथप्रदर्शन करते हैं। ऐसे महान और प्रेरक व्यक्तित्व को कोटिशः नमन।


डॉ,वसुधा गाडगिल , इंदौर , म. प्र.

मोबाइल नंबर 9406852480

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