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चरखा चलाती माँ

2 सितम्बर 2018

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आकांक्षा श्रीवास्तव। धागा बुनाती माँ...,बुनाती है सपनो की केसरी , समझ न पाओ मैं किसको बताऊ मैं"...बन्द कोठरी से अचानक सिसकने की दबी मध्म आवाज बाहर आने लगती हैं। कुछ छण बाद एक बार फिर मध्म आवाज बुदबुदाते हुए निकलती है..,"बेटो को देती है महल अटरिया ,बेटी को देती परदेश रे...,सिसकारियों के साथ ही बुदबुदाते शब्द धीरे धीरे ओर कमजोर पड़ने लगती है;"जग में जन्म क्यों लेती है बेटी ,आई क्यों विदाई वाली रात रे......अअअअअअअ बन्द दीवारी से अचानक एक हिचकी बंधती सांस निकलती है,और... एक बार फिर इतिहास के पन्नों पर एक और पिंजर जन्म ले लेती हैं। स्याह की सास तेजी से दौड़ कर बेटे बेटी और दामाद को बुलाकर लाती हैं। जब तक दरवाजा तोड़ कर खोला जाता है,तब तक बन्द कमरे में कैद स्याह एक पिंजर के हवाले खुद को सौप चुकी होती हैं। आखिर क्यों स्याह ने इतना बड़ा कदम उठाया ???ऐसा क्या हुआ था उसके साथ जो उसके भीतरी कलम ने स्याह के आगे की आने वाली कहानी को वही अंतिम कड़ी दे दी। स्याह एक पढ़ी लिखी लड़की थी जो अपने जीवन से ज्यादा अपने माता पिता के लिए सपने बुना करती थी। कुछ बनकर माँ बाप की नाक गांव में ऊंची करना चाहती थी। जिसे माँ बाबू अक्सर स्याह के बड़े भाई को तंज कसते हर रोज रात्रि के भोजन पर कहते; कुछ सिख अपनी बहन से ,हमारी लाडो से तू तो बस...."।रोज रोज के इस तंज से परेशान हो पवन ने एक पढ़ीलिखी अमीरजादी लड़की से ब्याह कर उसको घर ले आया। स्याह के माँ बाबू ये देख सन्न रह गए। उन्होंने स्याह को कोठरी से बाहर निकालते कहा तू बाहर देखते रह हम लोग कुछ आपसी जरूरी बात चीत कर ले। स्याह अभी समझने की कोशिश ही कर रही थी कि दरवाजा भाड़ से बन्द करने की आवाज आई...; स्याह चौखट पर बैठ निगरानी कम अपने दिमाग के घोड़े ज्यादा दौड़ाने लगी। आखिर क्या बात थी ऐसी जो आज मुझे हटा कर निर्णय लिया जा रहा,आखिर क्यों?? मैं भी तो इस घर का हिस्सा हूं...फिर मुझे छोड़ सब अंदर क्यों? गलती तो भाई ने कि तो चौखट पर पहरेदारी मेरी क्यों???स्याह के मन मे उसकी कलम जू के तरह रेंगती रही कौतूहलता से बुद्बुड़ाती हुए स्याह ज्यो मुड़ी उसने देखा उसके बड़े भाई के हाथों में कुछ कागज की पतरी है जो वो चन्द मिनट पहले आई भाभी को सौप रहा। तभी कमरे से मुँह लटकाए माँ बाबू जी निकले और स्याह को एक हलफनामा की तरह चन्द शब्दो मे ही अपना फरमान सुना देते है...परसो तेरा ब्याह है.." मगर बाबू जी किस्से??? बाबू जी स्याह की बात काटते हुए बाबू जी बोले अगर मगर कुछ नही परसो तेरा ब्याह है। स्याह की माँ तू पवन के साथ जाकर स्याह के लिए रश्मो रिवाज़ो की नयी चादरे ओर शादी के जोड़े का सामान जा कर के ले आ। मैं थोड़ा सरपंच जी के घर से होकर आता हूँ। स्याह कुछ समझने से पहले बाबू जी के दौड़ कर पैर पकड़ ली ,मुझे नही पता आप लोग क्यों ऐसा कर रहे? मगर ब्याह ....????तो जीवन का चक्र है,वो चक्र जिसे मेरे जीवन को एक नया नाम और हजारो काम के जिम्मे सौप दिए जाएंगे???? मैं अभी कुछ पढ़कर बनाना चाहती हूँ,आपको मान सम्मान ;बाबू जी पैर को झटकारते हुए सरपंच जी के घर को निकल पड़ते हैं। स्याह जमीन से लिपट कर रोती रहती है,तभी उसकी नजर उसकी भाभी पर जाती है,जिसके हाथ मे वो कागज की पतरी है; भाभी से लाख विनतियो के बाद स्याह उस कागज की पतरी को ज्यो त्यों पढ़ना शुरू करती है,उसके आंखों से झरझर आंसू के सैलाब गिरने लगती है। स्याह टूट कर एक बार फिर जमीन पर टूट कर बिखर जाती है। " उस कागज की पतरी पे लिखा था; मैं दयाराम अपने इकलौते वारिस पवन के नाम अपनी पूरी जमीन जायदाद उसके नाम कर रहा हूँ। " स्याह ये पढ़कर इसलिए टूट गयी,जिस बेटे ने बाबू जी की कभी इज्जत न कि आज ???उस पतरी पे स्याह का झूठों नाम न दर्ज था। न ही उसका कहि नाम जोड़ा गया। स्याह चौखट पर बैठकर बाबूजी का इन्तेजार करने लगी। बाबू जी के आते स्याह ने विन्रम भाव से उनसे लिपट कर रोने की चेष्टा की; बाबू जी खुद को रोक न पाए। उन्होंने रोते हुए स्याह को गले से लगा लिया...स्याह ने लिपटते बाबू जी से अपनी भड़ास खोल दी । बाबू जी आपने उस पतरी पे मेरा कहि जिक्र क्यों नही किया??? क्या भाई ही सबकुछ है? ?क्या मैं आपकी लाडली नही??? बोलिए बाबू जी; बाबू जी यह सुन चकित रह गए, क्योंकि उन्हें लगा था कि स्याह अपने शादी की चेष्टा पर सवाल बिखेरेंगी,लेकिन उसने कुछ अलग ही सवाल रख दिये। बाबू जी स्याह को लिपटा रोने लगे उन्होंने स्याह से माफी मांगते हुए कहा हम अपने होते हुए तेरी इज्जत की मटिया मेट नही होते देखना चाहते। अभी तू बच्ची है,इसीलिए मैंने ये कदम उठाए?स्याह मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर दे। मैंने तेरे सपनो को कुचल दिया,मुझे माफ़ कर दे लाडो????माफ कर दे....???? स्याह रोती हुई दौड़ कर अपने कमरे में चली गयी। रात भर स्याह की कलम उसकी भीतरी दीवार पर अपनी कहानी पहचान,अस्तित्व पर चर्चा करती रही,और आंखे उन्हें आँसू से सींचती रही। तभी स्याह की माँ स्याह के करीब गयी,स्याह माँ को देख मुँह मोड़ ली..., यह देख माँ को आज बेहद तकलीफ हुई। जिस बेटी पर उन्हें बेहद गुमान था,आज चन्द उलझनों के चक्कर मे उसके सपनो के पंख कतर दी। स्याह की माँ ने स्याह के सिर पर हाथ फेरते हुए उससे माफी मांगते हुए रोने लगी हमें माफ कर देना स्याह हम मजबूर हो गए मेरी बच्ची,मेरी लाडो।हम नही चाहते कोई कभी तुझे कुछ कहे,न हम तुझे पवन के हाथों सौप सकते है। उसने आज हमारे आत्मसम्मान को चोट पहुचाई है। तभी स्याह करवट पलटते बोली;" माँ आप तो चुप रहो, मत करो मुझसे बात आज आपने साबित कर दिया कि घर का वारिस सिर्फ पवन है न कि स्याह?? स्याह तो आजतक झूठी आवोहवा में जीती रही। आज तक सपनो को पूरा करने में कोई कसर न छोड़ी। फिर ऐसा फैसला क्यों माँ ???? हम अलग भी रह सकते थे। रही घर खर्च की बात तो मैं कल से ही अध्यापिका की कुर्सी पर बैठने वाली थी माँ ,कल मेरा चयन था। स्याह को रोकते हुए माँ ने एक बार फिर कहा स्याह तू बेटी है,माना आज तक हम तेरे सपनो को पिरोए लेकिन अब नही। लाडो समझ बात को , हमने ये फैसला तेरी भलाई के लिए,बात को काटते हुए स्याह बोली; कौन सी भलाई माँ?? किस चीज में भलाई ?? मुँह तो बेटे ने काला किया और सजा बेटी को???ये है भलाई????क्यों कि वो आपका वारिस है और मैं???वो घर का चिराग़ ओर मैं???? बस माँ मुझे कुछ नही सुनना। स्याह की माँ एक बार फिर डाँटकर बोली स्याह चुप कर तू भी मेरा चिराग है। लेकिन इस कली को बहुत दिनों तक तो अपने आँगन में नही रख सकती न। एक दिन तो उसे अपने घर जाकर खिलना है। स्याह बस हम तुझे कुछ पहले भेज रहे। स्याह अब सब कुछ समझ रही थी। स्याह ने मध्म आवाज में कहा माँ तेरी बेटी का घर तो ये था,जहाँ व्व हर रोज खिलती ओर खिलखिलाती थी। जिस परदेस को ये स्याह जानती नही ,उसका अपना घर कैसे??? माँ ने स्याह को सीने से लगा लिया,स्याह यही दुनिया है। मैं भी बहुत रोई थी ,बहुत जिद्द की। माँ अपनी बीते पोटली को खोल उसे दोहरा रही थी,मगर स्याह अपने दिल को आज हौंसले के जगह खुद को कमजोर अकेली महसूस करने लगी। आज इस घर मे उसका कोई न था। जिससे वो अपनी कहती,ओर उसको कोई सुनता। स्याह पूरी रात आंखे खोले इन्ही सवालों में बंधी रही, अगले दिन उसका ब्याह था। जहाँ सब खुश थे। वही स्याह रुआँसी। जैसे तैसे रश्मो रिवाज़ो के साथ स्याह का ब्याह रमेश से कर दिया गया। जिसे आज तक उसने देखा भी न था,मगर स्याह ने दिल पर पत्थर रख खुद से ये कसम खा ली ,जब अपना कोई है ही नही तो मैं किस लिए इन आँखों को बार बार भिंगो रही...।ब्याह होते विदाई की रशम आ गयी। स्याह के माँ बाबू जी जोर जोर से रोने लगे। उसे बार बार अपने पास रख लेने की चेष्टा करते। माँ कुछ यूं रोती मानो जैसे उसका करेजा फट रहा हो...; उसे रोकने की कोशिश करती। लेकिन स्याह ने आंखों से एक आंसू न गिराए। हाथ छुड़ाते रमेश के साथ आगे बढ़ ने लगी। बाबू जी स्याह को एक बार कार में बैठने से पहले गले लगा,बोले लाडो तुझे कभी कोई कमी हो तो बोलना,या तुझे कोई तकलीफ हो तो बताना मेरी बच्ची ,मेरी लाडो...माँ बाबू जी के आंसू पोछते हुए स्याह बोली ,मत रो आप अब ये लाडो कभी तकलीफ नही देगी। क्योंकि तेरी लाडो आज से एक " पिंजर " हो गयी । माँ का हाथ छुड़ाते हुए स्याह ने कहा ,अपना ख्याल रखना माँ तेरी स्याह अब कभी सपनो की जिक्र न करेगी। स्याह की विदाई हो गयी । माँ बाबू जी रोते रहे। उधर स्याह अपने नए आँगन पहुँच कर पलके उठा उन दीवारों को देखने लगी। जिसकी चर्चा माँ ने बीती रात की थी। सास ने तेवर दिखाते नजरो से स्याह को देखा;स्याह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। रमेश भी रश्म पूरे होते कमरे की ओर निकल पड़े। स्याह की ननद ने स्याह को उसका कमरा दिखते बोली भाभी आप थोड़ा आराम कर लीजिए फिर हम बात करेंगे। तभी स्याह की सास आगयी। भड़कते हुए बोली; देख स्याह तेरा ब्याह काम करने के लिए हुआ न कि पलँग तोड़ने के लिए??जल्दी से कपड़े बदल कर रसोई में आजा ,स्याह की ननद पूनम माँ को रोकते हुए माँ अभी तो भाभी चली आ रही। अब उसे ही तो जीवन भर रसोई सम्भालनी है। स्याह की सास ने पूनम को डांटते हुए बोली ,तू चुप कर। बिन दहेज लिए मुँह उठाये चली आई...; अरे इतने बड़े घर की बेटी,सम्पति है,लाडली है..उसमे से कुछ तो लाइ होती। वो तो हमारे किस्मत पर ताला लगा है,फुट गयी थी किस्मत जो हम इस बे दहेज बहु ले आए। बहु को तो लोग लक्ष्मी कहते है,क्योंकि जब वो आती है तो लाखों धन बटोर के लाती हैं। स्याह की सास इससे आगे बोलती,स्याह ने उन्हें जवाब दिया माँ आप चलो मैं कपड़े बदल आती हु। स्याह कपड़े बदल ज्यो बाहर आई सास ने किचन की ओर इशारे किये। स्याह चुपचाप किचन की ओर बढ़ उससे जिम्मेदारी समझ अवगत होने लगी। तभी पड़ोस की कुछ औरतें मुँह दिखाई की रश्म अदा करने को चली आई ,यहाँ स्याह को किचन में देखते ही बोली अरे ये क्या नई बहू रसोई में?? आते ही किचन संभाल ली,यहाँ हमारी बहु ने तो हमे ही किचन सौप दी है। स्याह की सास गुस्से में बोली आप सब अपने घर जाए हमारे यहाँ मुँह दिखाई की रश्म नही होती। स्याह ने अपना काम अच्छे से पूरा कर कमरे में चली गयी। अभी थोड़े देर भी न हुए होंगे कि तभी स्याह का पति रमेश दरवाजे की खुंनी लगाते बोला....क्यों मेरी पगली तैयार है न ! रमेश ने शराब ले रखी थी। स्याह कुछ समझती ओर जवाब देती कि रमेश उससे पहले चील कौवे की तरह नोचना शुरू कर दिया। स्याह चीखती रही,उससे सुनने वाला कोई न था। स्याह रोती रहती,इस तरह चुप रहकर सुबह सास की ताने दहेज न लाने की सुनती तो रात को पति के पीड़न को बर्दाश करती। उधर स्याह के भाई ने माँ बाबू जी को स्याह के ब्याह होते ही घर से बेघर कर दिया। कभी तो रोटी खाने को देता कभी वो भी नही। मा बाबू जी भी आज स्याह को याद कर रोने लगते। इधर स्याह मरणासन पर पड़ी थी जहाँ हर रोज उसका पति चील के तरह नोचता,स्याह के साथ न देने पर उसकी बेल्ट से बर्बरता पूर्वक उसकी पिटाई करता। स्याह उन दर्द से सहते हुए एक रात फैसला ली। क्यों न इस जड़ को ही खत्म कर दिया जाए। रोज रोज की ये मार से निपटारा क्यों न कर लिया जाए। स्याह पेट से थी...! उसने कोख की तरफ देख मुस्कुराते हुए बोली अगर ;" तू बेटा है तो मुझे तुझसे शिकायत है"। अगर तू बेटी है तो मुझे माफ़ करना तेरी माँ तुझे किसी के हथे नही चढ़ने देगी। स्याह कोख को पकड़कर रोने लगती हैं। तेरी माँ तुझे कभी" पिंजर" न बनने देगी। रोते हुए स्याह पास के मेज पर पड़ी कलम ओर कागज पर अपनी सारी आप बीती लिख दी। सबकी शिकवा शिकायत को थोप दी। खुद के ऊपर हुए जुल्म ओर बेटी होने का गुनाह लिख खरा खरा उतार दी,और पंखे पे फंदे टांग ...अपनी गर्दन उस पर रख फसा ली। स्याह ने एक बार फिर अपनी कोख को पकड़कर रोते हुए माफी मांगी और लोरी सुनने की कोशिश करने लगी....मममममममम...ममममम चरखा चलाती माँ , धागा बनाती माँ ,बुनाती है सपनो के केसरी ,स्याह रोती रही " समझ न पाऊँ मैं किसको बताऊ मैं...स्याह लम्बी सिसकारियों के साथ ऊनी कोख से माफी मांगते हुए आज तेरी पिंजर माँ तुझे ओर खुद को इस दुनिया से आजाद कर रही। रुंधे गले से स्याह...ने अपने माँ की लोरियों को पूरा करने की कोशिश की... जग में जन्म क्यों लेती है बेटी आई क्यों बिदाई वाली रात रे, आई क्यों उसने फंदे को मजबूती देते हुए कुर्सी को पीछे धकेलते हुए खुद को आजाद कर ली। स्याह की पिंजर आज इस दुनिया से आजाद हो गयी। बाहर खड़ी सास ने जबतक दरवाजा तोड़वाया तब तक स्याह और उसकी अजन्मी बच्ची इस दुनिया को छोड़ कही दूर चले गए। बिस्तर पर पड़े पतरी को उठाती ननद पूनम पढ़ कर आँसूओ से लिप्त हो जाती है। गांव वालों को पता लगते उसके माँ बाबू जी को खबर होती है। स्याह को देख उसके बाबू जी जोर जोर से रोने लगते है,लाडो लाडो....उठ मेरी लाडो। पूनम बाबू जी के कंधे पर हाथ रखती हुए बाबू जी को स्याह का लिखा पतरी थमाती है,जिसे पढ़ बाबू जी जमीन पर गिर पड़ते हैं। स्याह ने उस पर ,; वो हर गुनाह जुर्म लिख दिया जो आज तक उसके साथ हुआ और क्यों हुआ वो भी। स्याह ने अपने खत में नीचे लिखा..." बाबू जी हो सके तो अगली जन्म मुझे अपने पास से जुदा मत करना..." आज आपकी स्याह ही नही..., स्याह के साथ पल रही बच्ची को भी लिए जा रही। पिता स्याह को गोद मे उठाने लगे लिपट कर रोने लगे। मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई मेरी बच्ची। मेरी लाडो। हे भगवान तूने मुझे क्यों नही सजा सुनाई,मेरी लाडो को क्यों???माँ स्याह से लिपट कर उसे पागलो की तरह चूमती रही दुआ करती रही अभी ठीक हो जाएगी स्याह के बाबू देखना लाडो अभी बोलेगी...स्याह के बाबू जी स्याह की माँ को गले लगाते बोले स्याह कभी नही बोलेगी कभी नही...! हे भगवान तुमसे दुआ नही भीख मांगता हूं " अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीज्यो" क्योंकि आज बाबू जी उस दर्द को समझ सके। जिस घर का वारिस बनाए आज उसने अपने माँ बाप को घर से बेघर कर दिया। खाने को तरसा दिया। आज उन्हें स्याह की वो हर बात याद आरही थी। यदि आज स्याह के बाबू जी स्याह को पढ़ा कर उसके सपने पूरे करने देते तो शायद स्याह भी उनके पास होती है। माँ बाबू जी भी सुखी रहते,स्याह भी अपने सपनो को बुन रही होती...!





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