ये खबर सुनके आपको लगेगा कि सड़कों पर लोग नहीं घूम रहे, जिंदा लाशें घूम रही हैं. ‘जॉम्बीज’ से भरा हो जैसे अपना समाज. इनका दिमाग नहीं चल रहा है. इन्हें बस खून की तलाश है. लोगों की जान लेनी है. जिंदगी खराब करनी है. ऐसा न होता तो क्यों एक 3 साल की मासूम जोकि दिल की रोगी है, उसके साथ दुष्कर्म होता. मामला राजस्थान के झुंझनू इलाके का है. यहां एक 3 साल की बच्ची अपने ननिहाल आई हुई थी. घर के बाहर खेल रही थी. इसी बीच दौसा जिले के मंडावरी का रहने वाला विनोद कुमार वहां पर बर्तन बेंचने के लिए गुजर रहा था. तारीख थी 2 अगस्त. बच्ची को अकेला देख उसने घर में ही उसके साथ ज्यादती की. बच्ची को लहुलुहान कर दिया. इसी बीच उसकी नानी वहां आ गईं. विनोद वहां से तो भाग निकला. पर कानून के हाथों से बच नहीं पाया. एक महीने से भी कम समय के अंदर उसको उसके किए की सजा दे दी गई है. कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई है.
ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि बच्ची की नानी ने विनोद को देख लिया था. उसी शाम परिवार ने थाने में जाकर मामला दर्ज करवाया. मामले को दबाने की नहीं सोची. पुलिस ने भी मामले को गंभीरता से लिया. तेजी दिखाई. अगले ही दिन चिड़ावा से विनोद को गिरफ्तार कर लिया गया. मात्र 9 दिन के अंदर यानी 13 अगस्त को आरोपी के खिलाफ चालान पेश कर दिया. और अब इस 3 साल की मासूम के बलात्कार के आरोपी पर कोर्ट ने भी बिना देरी अपना डंडा चलाया है. उसपे कोई रहम न दिखाते हुए मौत की सजा सुनाई है. जज ने कहा- ऐसे लोगों को समाज में रहने का हक नहीं है.
आरोपी को मौत की सजा सुनाते वक्त जज निरजा दधीच भावुक भी हो गईं. जजमेंट में एक कविता भी लिख दी. उसे सबको सुनना चाहिए. देखिए क्या लिखा उन्होंने –
वह मासूम नाज़ुक 25 आंगन की कली थी
मां-बाप की आंख का तारा थी
अरमानों से बनी थी
जिसकी मासूम अदाओं से मां-बाप का दिल बन जाता था
छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल नहीं पाती थी
देखकर जिसकी मासूमियत उदासी बन जाती थी
जिसने जीवन के केवल तीन बसंत ही देखे थे
उससे यह हुआ अन्याय कैसे विधि के लिखे थे
एक 3 साल की बेटी पर यह कैसा अत्याचार हुआ
एक बच्ची को दंगों से बचा नहीं सके ऐसा मुल्क लाचार हुआ
उस बच्ची पर जुल्म हुआ वह कितना रोई होगी
मेरा कलेजा फट गया तो मां कैसे सोई होगी
इस मासूम को देख मन में प्यार भर जाता है
देखा उसी को मन में कुछ हैवान उतर आता है
कपड़ों के कारण होते हैं रेप, कहे उन्हें कैसे बतलाऊं मैं
आज के 3 साल की बच्ची को साड़ी कैसे पहनाऊं मैं
अगर अब भी न सुधर सके तो एक दिन ऐसा आएगा
इस देश को बेटी देने में भगवान भी घबराएगा
जज की ये कविता कितना बोलती है. इस समाज को आईना दिखाती है. सच ही कहा कि जैसे हालात हैं, इस देश को बेटी देने में भगवान भी घबराएगा. जज ने अपने फैसले में ये भी कहा कि इस तरह के काम कर सजा पाने वाले लोगों को समाज में सुधार का कोई हक नहीं मिलना चाहिए. आज हालात इतने खराब हो गए हैं कि अपने ही घर में 3 साल की मासूम बच्ची को अकेले छोड़ना सुरक्षित नहीं है. इस तरह के मामलों में अभिभावकों की स्थिति समाज में क्या होती है. इस पर भी विचार करना चाहिए. क्या इसे उनकी सोशल डेथ नहीं माना जाए. जज ने एकदम सही सवाल उठाया है यहां. जिस परिवार पर ये बीतता है, उसके लिए ये सोशल डेथ की तरह ही है. क्योंकि खुद को सोशल बताने वाले लोग ही ऐसे परिवार का साथ नहीं देते. जोकि बिल्कुल ठीक नहीं. पर ये कब तक. ऐसा करके ये समाज ज्यादा दिन खुद को बचा नहीं पाएगा. एक्सपोज हो रहा है और होता ही जाएगा.