*इस संसार में समाज के प्रमुख स्तम्भ स्त्री और पुरुष हैं | स्त्री और पुरुष का प्रथम सम्बंध पति और पत्नी का है, इनके आपसी संसर्ग से सन्तानोत्पत्ति होती है और परिवार बनता है | कई परिवार को मिलाकर समाज और उस समाज का एक मुखिया होता था जिसके कुशल नेतृत्व में वह समाज विकास करता जाता था | इस विकास के पीछे संयुक्त परिवारों का महत्तपूर्ण सहयोग माना जाता रहा है | सभी लोग परस्पर सहयोग की भावना रखते हुए एक दूसरे के सुख दुख के साथी हुआ करते थे | मातायें अपने बच्चों को प्रेम से अपना दुग्धपान कराके कहानियों एवं लोरियों के माध्यम से बीर बालकों की कथायें सुनाया करती थीं जिसका परिणाम यह होता था कि बचपन से ही बच्चे के चरित्र निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती थी | माँ की गोदी से निकलकर बालक परिवार की पाठशाला छोड़ कर गुरु की पाठशाला में प्रवेश करता था | गुरु गाँव अथवा शहर के वातावरण से पृथक जगंल के शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में छात्र को विद्या अध्ययन कराते थे और अध्ययनोपरांत छात्र चरित्रवान, सुशील, सहनशील, धैर्यवान एवं आज्ञापालक बनकर अपने घर वापस लौटते थे | तब वही बालक अनेक क्षेत्रों में अपना कार्यक्षेत्र स्थापित करके समाज व देश के विकास में सहभागिता निभाते थे , और देश उनके संस्कारों एवं सच्चरित्रता से स्वयं को गौरवान्वित होता था | इसका सारा श्रेय बचपन में ही अपने माता - पिता व दादा - दादी से मिले संस्कारों को ही जाता है | क्योंकि बालक हृदय बड़ा कोमल होता है | बचपन में ही जिस संस्कार का बीजारोपण उनके हृदय में हो जाता वही आजीवन पुष्पित एवं पल्लवित होता रहता है |* *आज परिवेश बदल गया है | न तो संयुक्त परिवार रह गये हैं और न ही वह प्राचीन सामाजिक ताना - बाना | न तो अब माँ द्वारा बच्चों को लोरियां ही सुनने को मिल रही हैं और न ही चरित्र निर्माण करने वाली कहानियाँ | और तो और अब तो मातायें अपना शारीरिक सौन्दर्य बनाये रखने के लिए बच्चों को दुग्धपान भी कराने से कतराने लगी हैं | चरित्र निर्माण या बालक द्वारा माँ का सम्मान कैसे होगा ?? गुरुकुल पद्धति वाली शिक्षा व्यवस्था भी समाप्त हो गयी है | बालक, बालिकाएं समान रुप से तकनीकी एवं गैर-तकनीकी हर क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं | किन्तु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज की सह-शिक्षा ने पाश्चात्य देशों की तरह हमारे देश में निरंकुश समाज को जन्म दिया है | जिसके परिणामस्वरुप युवक और युवतियों के आचार-विचार में काफी परिवर्तन आया है | आचरणहीनता, अशिष्टता तथा मर्यादा का निर्वाह न करना आम बात बन गयी है | शिक्षा संस्थाओं और शिक्षकों की बहुतायत होने के बावजूद भी समाज नैतिक पतन की और जा रहा है | इसके पीछे जो कारण प्रतीत होता है वह यह है कि शिक्षा का उद्देश्य लिखने-पढ़ने के योग्य बन जाना और शिक्षा के माध्यम से जीविकोपार्जन का साधन प्राप्त कर लेना है | आज की शिक्षा में न तो चरित्र निर्माण का विषय है और न ही यह हो पा रहा है जो कि चिंतनीय है |* *विचार कीजिए हम कहाँ थे और कहाँ आ गये और आगे की मंजिल कहाँ होगी ! समाज कैसा होगा यह विचारणीय है |*