*इस सकल सृष्टि में उत्पन्न चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ , इस सम्पूर्ण सृष्टि के शासक / पालक ईश्वर का युवराज मनुष्य अपने अलख निरंजन सत चित आनंग स्वरूप को भूलकर स्वयं ही याचक बन बैठा है | स्वयं को दीन हीन व दुर्बल दर्शाने वाला मनुष्य उस अविनाशी ईश्वर का अंश होने के कारण आत्मा रूप में अजर अमर अविनाशी है | उसकी आत्मा नित्य , सनातन एवं पुरातन है | ईश्वर अंश होने के कारण मनुष्य में ब्रह्नस्वरूप हो जाने की क्षमता एवं सामर्थ्य है क्योंकि इस संसार के मालिक का सच्चा उत्तराधिकारी तो मनुष्य ही है परंतु मनुष्य को यह बात शायद विस्मृत हो गयी है | मनुष्य स्वयं की शक्ति की अनभिज्ञता के कारण ही याचक बनता रहा है | प्राय: वह वासना , तृष्णा एवं कामना का भिक्षापात्र लिए दूसरों के सामने फैलाता रहता है | वह कभी वासना की याचना करता है तो कभी कामना की , कभी लोभ में गिरता है तो कभी क्रोध में फुंफकारता है , कभी मोह में अपने कर्तव्यों की अवहेलना तक करता दिखाई पड़ता है | विचारणीय यह है कि जो मनुष्य अपने कर्नों के माध्यम से ब्रह्मलोक तक को प्राप्त करने की क्षमता रखता हो उसके द्वारा दीन हीन बनकर याचक का कार्य करना कितना लज्जाजनक एवं निंदनीय है |* *आज संसार की चकाचौंध में मनुष्य स्वयं को पहचान पाने में असमर्थवान प्रतीत हो रहा है | यदि इसका कारण खोजा जाय तो एक तो मनुष्य की अज्ञानता दूसरे उनको मिलने वाले सद्गुरु भी हैं | आज का मनुष्य ऐसे ही सद्गुरुओं की खोज करके दीक्षा लेना चाहता है जिसके पीछे एक भीड़ खड़ी हो और चमक दमक से परिपूर्ण हो गुरुआश्रम | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि गुरु का आश्रम बाहरी कृतिम प्रकाश से आच्छादित हो या न हो परंतु आंतरिक ज्ञान एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण अवश्य होना चाहिए | आज व्यक्ति के मोह , लोभ एवं क्रोथ बढने का एक कारण यह भी है कि जिन्हें हम अपना मार्गदर्शक मानते हैं उनमें यह गुण पहले से ही उपलब्ध होते हैं ! अब यदि हम किसी से कुछ पाने की इच्छा लेकर किसी के पास गये हैं तो सम्बन्धित व्यक्ति हमें वही दे पायेगा जो उसके पास है | आज स्वयं को पहचानने की शिक्षा मिलना दिखावा मात्र बनकर रह गयी है | यही कारण है कि मनुष्य आज अनेक परेशानियों से घिरकर दर - दर भटक रहा है | आज आवश्यकता है स्वयं को पहचानने की ! जब मनुष्य स्वयं को , स्वयं की शक्तियों को पहचान जाता है तब उसके अज्ञान का अंधेरा समाप्त हो जाता है और उसका भटकाव बन्द हो जाता है |* *उपरोक्त अंधेरे को समाप्त करने के लिए हमें सर्वप्रथम चित्तशुद्धि करना पड़ेगा | इसके लिए अभ्यास , वैराग्य , ईश्वर की शरणागति , निष्काम कर्म आदि अनेक उपाय हैं | किसी भी उपाय का अवलंबन करके हम अपने शुद्ध स्वरूप को पा सकते हैं |*