सितंबर 2018 शुरू हो चुका है. चार दिन बीत भी चुके हैं. इन चार दिनों में देश में बहुत कुछ हुआ है. कहीं बाढ़ आई है, तो कहीं गोभक्तों के हमले में बुजुर्ग का हाथ टूट गया है. कहीं बीएसपी के नेता की हत्या हुई है, तो इसी महीने में तेल के दाम हर रोज बढ़ रहे हैं. लेकिन इन सभी खबरों के अलावा कुछ और बड़े मसले हैं, जिनका गवाह बनने वाला है ये महीना. सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट में कुल 11 बड़े मामलों पर फैसला आना है, जिनकी सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस दीपक मिश्रा की कोर्ट में होनी है. जस्टिस दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं और इससे पहले वो सितंबर महीने में कुल 19 दिनों तक सुनवाई करेंगे. इस दौरान 11 मामलों पर फैसला आ सकता है, जिनकी सुनवाई पूरी हो चुकी है. कौन से हैं वो मामले और आप पर क्या पड़ेगा उन फैसलों का असर, आपको विस्तार से बताते हैं.
1. अयोध्या मामला : क्या संवैधानिक पीठ करेगी मामले की सुनवाई?
अयोध्या में राम मंदिर था या बाबरी मस्जिद, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है. लेकिन केस सिर्फ इतना ही नहीं है. अयोध्या को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में कई मामले चल रहे हैं. एक मामला ये है कि वहां मंदिर था या मस्जिद. दूसरा मामला ये है कि ज़मीन का मालिकाना हक किसका है. राम जन्म भूमि न्यास का, बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी का, शिया वक्फ बोर्ड का या फिर अखाड़े का. तीसरा मामला ये है कि मस्जिद किसने गिराई. और चौथा मामला सुप्रीम कोर्ट के 1994 के एक फैसले से जुड़ा है. जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की खंडपीठ के सामने जो मामला है, वो सुप्रीम कोर्ट के 1994 का एक फैसला है. इस्माइल फारुखी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में फैसला देते हुए कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है और मस्जिद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अंग नहीं है. इसी फैसले के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को फैसला देते हुए कहा था कि विवादित ज़मीन को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया जाए. जहां रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. बचा हुई एक तिहाई ज़मीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया. सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल सुनवाई इस बात पर हुई कि पूरे विवाद की सुनवाई तीन जजों की बेंच करेगी या फिर इसे पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाएगा. तीन जजों की बेंच ने सुनवाई पूरी कर ली है और फैसला सुरक्षित रखा है.
2. आधार से निजता का हनन होता है या नहीं?
आधार देश के लिए ज़रूरी है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट में इसपर सुनवाई हो चुकी है. अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि निजता मौलिक अधिकार है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में आधार के खिलाफ दलील ये दी गई कि आधार की वजह से लोगों की निजता का हनन हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने आधार मामले पर लगातार 38 दिनों तक सुनवाई की, जिसमें सरकार की ओर से कहा गया कि आधार से निजता का हनन नहीं होता है. वहीं विपक्ष की ओर से दलील दी गई कि आधार की वजह से डेटा लीक हो रहा है और लोगों की निजता का हनन हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 38 दिनों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है और अब सितंबर में इसपर फैसला आना है.
3. समलैंगिकता अपराध है या नहीं?
समलैंगिकता अपराध है या नहीं, इस बात को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. 11 दिसंबर 2013 को दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दो बालिगों के बीच आपसी सहमति से बने अप्राकृतिक संबंध को अपराध के दायरे में नहीं रखा जा सकता है. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को खारिज़ कर दिया और कहा कि समलैंगिकता अपराध है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई. वहां जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने मामले की सुनवाई कर ली है. अब सितंबर में इस बात का फैसला आना है कि समलैंगिकता अपराध है या फिर नहीं.
4. अडल्टरी केस : क्या शादीशुदा महिला का किसी दूसरे शादीशुदा पुरुष से संबंध बनाना अपराध है?
आईपीसी की एक धारा है 497. इस धारा के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी दूसरी शादीशुदा महिला के साथ सहमति से भी संबंध बनाता है तो संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ महिला का पति अडल्टरी का केस दर्ज करवा सकता है. 1954 और 1985 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ऐसे मामले में महिला को पीड़ित माना जाता है और उसके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं होता है. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में इस बात को लेकर याचिका दाखिल की गई थी कि जब अपराध में महिला और पुरुष दोनों ही शामिल हैं, तो सजा फिर पुरुष को ही क्यों मिलती है. ये लैंगिक भेदभाव है. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने इस मसले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया था. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच मामले की सुनवाई पूरी कर चुकी है और अब इसपर फैसला आना है.
5. एससी/ एसटी को प्रमोशन में आरक्षण मिलेगा या नहीं?
सरकारी नौकरियों में एससी और एसटी को आरक्षण दिया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत सरकार को नौकरियों में आरक्षण देने की शक्ति दी गई. 80 के दशक से देश के कई राज्य प्रमोशन में आरक्षण देने लगे. इनपर ब्रेक लगा नवंबर 1992 में जब मंडल केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण की व्यवस्था नियुक्ति के लिए है न कि प्रमोशन के लिए. इसी फैसले में ये कहा गया कि आरक्षण कुल पदों के 50% पर ही दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए 1995, 2000, 2001 में कई संविधान संशोधन किए. 2002 में इस सभी संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई. इस मामले को हम एम नागराज केस के नाम से जानते हैं. एम नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में फैसला देते हुए कहा ये सारे संशोधन वैध हैं लेकिन हर मामले में प्रमोशन में रिज़र्वेशन देने से पहले तीन बातों का ध्यान रखा जाए: पहला जिस समुदाय को ये लाभ दिया जा रहा है उसका प्रतिनिधित्व क्या वाकई बहुत कम है दूसरा क्या उम्मीदवार को नियुक्ति में आरक्षण का लाभ लेने के बाद भी आरक्षण की ज़रूरत है और तीसरा ये कि एक जूनियर अफसर को सीनियर बनाने से काम पर कितना फर्क पड़ेगा. केंद्र सरकार ने अदालत से ये कहा है कि नागराज केस में अदालत के फैसले से सरकारी नौकरियों में भर्तियां और प्रमोशन अटका हुआ है. फिर इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के अलावा दिल्ली, बंबई और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी फैसले दिए हैं. अलग-अलग समय पर आए इन सभी फैसलों में फर्क है. सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले पर 40 से ज़्यादा याचिकाएं लंबित हैं. इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 5 जून 2018 को कह दिया कि सरकार चाहे तो कानून के दायरे में रहकर प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है. फिर 11 जुलाई को कोर्ट ने ये कहा कि वो 7 जजों की एक संविधान पीठ बना सकती है ताकि ये तय हो सके कि क्या 2006 के एम नागराज केस से सचमुच नौकरियों में आरक्षण देने में समस्या है. अब मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है और 30 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित रख लिया गया है. कोर्ट को अब ये फैसला करना है कि क्या इस मामले को सात जजों की संवैधानिक पीठ को रेफर किया जाए या फिर नहीं.
6. कोर्ट में सुनवाई की रिकॉर्डिंग होगी या नहीं?
आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई का सीधा प्रसारण कोर्ट रूम से नहीं होता है. इसके अलावा समय-समय पर कोर्ट अलग-अलग मामलों में ये भी आदेश देता रहता है कि किसी फैसले की सुनवाई से जुड़ी खबरें मीडिया में छपेंगी या नहीं. जैसे हाल ही में पटना हाई कोर्ट ने एक आदेश दिया है कि मुजफ्फरपुर में 34 बच्चियों से रेप के मामले में चल रही सुनवाई पर कोई खबर नहीं छपेगी. अब सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि कोर्ट रूम में हो रही जिरह और फैसले की रिकॉर्डिंग और सीधा प्रसारण हो सकता है या नहीं. जोधपुर की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्र स्वप्निल त्रिपाठी की याचिका पर जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड को फैसला करना है. इस पूरे मसले पर सुनवाई हो चुकी है और 24 अगस्त को मामले में फैसला सुरक्षित रखा गया था. सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का सीधा प्रसारण होने से वकीलों और वादियों के साथ ही और भी लोगों को फायदा होगा.
7. क्या आरोप तय होने के बाद चुनाव नहीं लड़ सकेंगे नेता?
अगर किसी नेता को किसी भी केस में दो साल या उससे अधिक की सजा हुई है, तो वो सजा पूरी होने के दिन से अगले छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता है. लेकिन अब एक वकील अमित शर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दिया गया है और मांग की गई है कि ऐसे नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों में चार्जशीट दाखिल हो चुकी हो और जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान हो. चुनाव आयोग ने भी सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट में सुधार होना चाहिए, जिससे कि गंभीर अपराध वाले मामलों में मुकदमे का सामना करने वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जा सके. इसके लिए चुनाव आयोग ने ये भी कहा है कि उन्हीं नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए, जिनके खिलाफ चुनाव से छह महीने पहले केस दर्ज हुआ हो. अब सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि जिन नेताओं के खिलाफ गंभीर अपराध में मुकदमा तय हो चुका है, उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए या नहीं. ये मामला भी चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच के पास है.
8.दहेज प्रताड़ना : परिवार के सभी सदस्यों की गिरफ्तारी होगी या नहीं?
भारतीय दंड संहिता यानी कि आईपीसी की एक धारा है 498 A. ये धारा दहेज प्रताड़ना को लेकर है. इस धारा के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2017 को एक फैसला दिया था. फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे मामलों की जांच के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही किसी की गिरफ्तारी होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए.के. गोयल और जस्टिस यू.यू. ललित की बेंच ने कहा था कि परिवार कल्याण समिति में सामाजिक कार्यकर्ता, लीगल स्वयंसेवी और रिटायर्ड शख्स को शामिल किया जाएगा. इस समिति के कामकाज का आंकलन जिला जज समय-समय पर करते रहेंगे. कोर्ट ने कहा था कि बिना जांच के दहेज उत्पीड़न को लेकर परिवार के सभी सदस्यों की गिरफ्तारी न हो. सुप्रीम कोर्ट के दो जजों के फैसले के खिलाफ फिर से अपील की गई. 23 अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस की बेंच ने मामले की सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब इस मामले में सितंबर में फैसला आना है.
9.क्या सबरीमाला में मिलेगी महिलाओं को एंट्री?
केरल का सबरीमाला मंदिर ऐसा मंदिर है, जिसमें 10 साल की बच्ची से लेकर 50 साल की महिला को घुसने की इज़ाज़त नहीं है. इसे लेकर केरल हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. केरल हाई कोर्ट ने महिलाओं की पाबंदी को सही ठहराते हुए कहा था कि मंदिर जाने से पुरुषों को भी पहले 41 दिन का ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. महिलाएं मासिक धर्म की वजह से अपवित्र होती हैं और वो इसे पूरा नहीं कर सकती हैं. इसलिए वो मंदिर में नहीं जा सकती हैं. केरल हाइ कोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई पूरी कर ली है और अब इसपर फैसला आना है.
10. कैसे रोकी जा सकती है भीड़ की हिंसा?
देश में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई बार बहस हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने कई बार केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मॉब लिंचिंग के साथ ही पुलिस के भीड़ से निपटने के तरीके पर सवाल उठाए हैं. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने केंद्र सरकार से कहा था कि आप फैसले करें, नहीं तो हमें फैसला करना होगा. जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने सुनवाई पूरी कर ली है और अब फैसला आना है.