shabd-logo

शब्द ऊर्जा है

9 सितम्बर 2018

124 बार देखा गया 124

दिल-नशीं हर्फ़


सुनने को


बेताब हो दिल


कान को


सुनाई दें


ज़हर बुझे बदतरीन बोल


क़हर ढाते हर्फ़


नफ़रत के कुँए से


निकलकर आते हर्फ़


तबाही का सबब


बनते हर्फ़


भरा हो जिनमें


ख़ौफ़ और दर्प


तो


कुछ तो ज़रूर करोगे.....


कान बंद करोगे ?


बे-सदा आसमान से


कहोगे-


निगल जाओ इन्हें


या


भाग जाओगे


सुनने सुरीला राग



वहाँ


जहाँ


बाग़ की फ़ज़ा


बदलने के इंतज़ार में


दुबककर बैठी है


मासूम कोयल!


शब्द ऊर्जा है


रूप बदलकर


ब्रह्माण्ड में रहेगा


सामूहिक चेतना में


रचेगा-बसेगा


सोचो!


समाज कैसा बनेगा ?


© रवीन्द्र सिंह यादव

रवीन्द्र सिंह यादव की अन्य किताबें

रेणु

रेणु

आदरणीय रविन्द्र जी -- देश समाज में बढ़ रही वाचालता के लिए ये शब्द बहुत सार्थक हैं | हर कोई अपने मन का जहर उतारने को आतुर दिखता है | शब्द सामूहिक चेतना का आधार है -- सचमुच अनेक रूपों में सृष्टि में व्याप्त रहेगा ,पर हम सार्थक शब्दों के साक्षी बनें तो बेहतर !!!!!! सादर

9 सितम्बर 2018

35
रचनाएँ
aaspaas
0.0
हमारे आसपास जो कुछ घटित हो रहा है वह हमें प्रभावित किये बिना नहीं रहता .हम चाहें तो वस्तुस्थिति से आँखें चुरा सकते हैं. शब्द जब विस्फोट की तरह हमारे भीतर से बाहर आता है तो गूढ़ अर्थों से लबरेज़ होता है.
1

मदारी

6 नवम्बर 2016
0
4
1

मदारी फिर घूम रहा हैपिटारा लेकर बातें दोहराएगा चटखारा लेकर मज़मा लगाकर चुरा लेगा आँखों का सुरमा बताएगा पते की बात कह उठेंगे हाय अम्मा बनाएगा अपने और अपनों के काम मन रंजित कर चकमा देकर

2

विश्वास

8 नवम्बर 2016
0
4
1

दिल्ली में छायी प्रदूषित धुंध नेजीना मुहाल कर दिया जागरूक लोगों ने पर्यावरण -संरक्षण का ख्याल कर लिया नेताओं के बयान आये फ़ौरी सरकारी समाधान आये राजनीति की बिसात बिछी दोषारोपण का दौर आरम्भ हुआ ज़हरीली हवा में श्वांस लेने वालों की तकलीफ़ों का अ

3

अप्रैल -फूल

20 नवम्बर 2016
0
4
3

भारत सरकार ने8 नवम्बर 2016 को रात 8 बजे हज़ार पांच सौ के नोटों को अमान्य किये जाने की घोषणा कीअगले चार घंटों में देश एटीएम के आगे कतारों में खड़ा हो गयासयाने लोग सोना खरीदते

4

अपनत्व

4 जनवरी 2017
0
7
4

सभ्यता की सीढ़ियाँ सहेजता समाज नैतिकता के अदृश्य बोझ से लड़खड़ा रहा है निजता की परिधि हम से मैं तक सिकुड़ चुकी है. उन्नत उजालों में दिखता नहीं आदमियत का भाव स्वार्थ की अँधेरी रात में अपनत्व का

5

मैं वर्तमान की बेटी हूँ

21 जनवरी 2017
0
4
2

यह रचना "बेटियाँ" प्रतियोगिता में सम्मलित की गयी है। इस पर वोट करने के लिए इस रचना के अंत में दिए गए वोट के बटन पर क्लिक करें।रचनाकार- Ravindra Singh Yadavविधा- कविता बीसवीं सदी में,प्रेमचंद की निर्मला थी बेटी ,इक्कीसवीं सदी में,

6

आया ऋतुराज बसंत

5 फरवरी 2017
0
4
1

शिशिर का प्रकोप ढलान पर आया ऋतुराज बसंत दालान परखेत-खलिहान / बाग़ -बग़ीचे पीलिमा का सुरभित आभामंडल, गुनगुनी धूप पुष्प-पत्तों ने पहने ओस के कुंडल। सरसों के पीले फूल गेंहूँ-जौ की नवोदित बालियां / दहकते ढाक - पलाश, सृष्टि का साकार सौंदर्य मोहक हो

7

ये कहाँ से आ गयी बहार है

13 फरवरी 2017
0
3
3

ये कहाँ से आ गयी बहार है ,बंद तोमेरी गली का द्वार है।

8

बारिश फिर आ गयी

25 जून 2017
0
4
4

बारिश फिर आ गयीउनींदे सपनों कोहलके -हलके छींटों नेजगा दिया ठंडी नम हवाओं ने खोलकर झरोखे धीरे से कुछ कानों में कह दिया।बारिश में उतरे हैं कई रंगख़्वाहिशें सवार होती हैं मेघों परयादों के टुकड़े इकट्ठे हुएतो अरमानों की नाव बही रेलों पर ह

9

सामाजिक समरसता

10 जुलाई 2017
0
1
3

29 जून 2017 का एक चित्र मुझे परेशान किये था। राजकोट में प्रधानमंत्री का 9 किलोमीटर लम्बा रोड शो लोग अनुमानित ख़र्च 70 करोड़ रुपये तक बता रहे हैं। 9 जुलाई 2017 का दूसरा

10

इकहत्तरवां स्वाधीनता-दिवस

15 अगस्त 2017
0
3
4

अँग्रेज़ी हुक़ूमत केग़ुलाम थे हम15 अगस्त 1947 से पूर्वअपनी नागरिकताब्रिटिश-इंडियनलिखते थे हम आज़ादी से पूर्व।ऋष

11

सरकारी बंद लिफ़ाफ़ा

13 सितम्बर 2017
0
1
1

एक एनजीओ की याचिका परमाननीय सर्वोच्च न्यायालय नेभारत सरकार को आदेश दिया केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने कल 105 क़ानून बनाने वाले आदरणी

12

खाता नम्बर

18 सितम्बर 2017
0
1
0

ग़ौर से देखो गुलशन में बयाबान का साया है ,ज़ाहिर-सी बात है आज फ़ज़ा ने जताया है। इक दिन मदहोश हवाऐं कानों में कहती गुज़र गयीं, उम्मीद-ओ-ख़्वाब का दिया हमने ही बुझाया है। आपने अपना खाता नम्बर विश्वास में किसी को बताया है,

13

अपनी अस्मिता क़ुर्बान करनी चाहिए थी ?

27 सितम्बर 2017
0
1
1

कुलपति साहब तो क्या उस छात्रा को संस्थान की अस्मिता के लिए अपनी अस्मिता क़ुर्बान करनी चाहिए थी ?बीएचयू के मुखिया को ऐसी बयानबाज़ी करनी चाहिए थी ?सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ता मनुष्य पशुओं से अधिक पाशविक व्यवहार पर उतर आया है साइकिल पर शाम साढ़े छह बजे बीएचयू कैम्पस में हॉस

14

अभावों के होते हैं ख़ूबसूरत स्वभाव

3 अक्टूबर 2017
0
1
2

आज एक चित्र देखा मासूम फटेहाल भाई-बहन किसी आसन्न आशंका से डरे हुए हैं और बहन अपने भाई की गोद में उसके चीथड़े

15

करवा चौथ

8 अक्टूबर 2017
0
0
0

कार्तिक-कृष्णपक्ष चौथ का चाँद देखती हैं सुहागिनें आटा छलनी से.... उर्ध्व-क्षैतिज तारों के जाल से दिखता चाँद सुनाता है दो दिलों का अंतर्नाद। सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प होता नहीं जिसका विकल्प एक ही अक्स समाया रहता आँख से ह्रदय तक जीवनसाथी को समर्पित निर्जला व्रत चंद्रोदय तक। छलनी से छनकर आती

16

डाकिया

10 नवम्बर 2017
0
4
2

डाकिया अब भी आता है बस्तियों में थैले में नीरस डाक लेकर, पहले आता था जज़्बातों से लबालब थैले में आशावान सरस डाक लेकर। गाँव से शहर चला बेटा या चली बेटी तो माँ कहती थी -पहुँचने पर चिट्ठी ज़रूर भेजना बेटा या बेटी चिट्ठी लिखते थे क़ायदे भरपूर लिखते थे बड़ों को प्रणाम छो

17

चलो अब चाँद से मिलने ....

24 नवम्बर 2017
0
5
1

चलो अब चाँद से मिलनेछत पर चाँदनी शरमा रही है ख़्वाबों के सुंदर नगर में रात पूनम की बारात यादों की ला रही है। चाँद की ज़ेबाई सुकूं-ए-दिल लाई रंग-रूप बदलकर आ गयी बैरन तन्हाई रूठने-मनाने पलकों की गली से एक शोख़

18

होली की कथा

2 मार्च 2018
0
7
4

हमारी पौराणिक कथाऐं कहती हैं होली की कथा निष्ठुर ,एक थे भक्त प्रह्लाद पिता जिनका हिरण्यकशिपु असुर। थी उनकी बुआ होलिका थी ममतामयी माता कयाधु ,दैत्य कुल में जन्मे चिरंजीवी प्रह्लाद साधु। ईश्वर भक्ति से हो जाय विचलित प्रह्लाद पिता ने किये नाना प्रकार के उपाय, हो जाय ज

19

मूर्ति

9 मार्च 2018
0
0
0

सोचता हूँ गढ़ दूँ मैं भी अपनी मिट्टी की मूर्ति, ताकि होती रहे मेरे अहंकारी-सुख की क्षतिपूर्ति। मिट्टी-पानी का अनुपात अभी तय नहीं हो पाया है, कभी मिट्टी कम तो कभी पर्याप्त पानी न मिल पाया है। जिस दिन मिट्टी-पानी का अनुपात तय हो जायेगा, एक सुगढ़ निष्प्राण शरीर उभर आयेगा। कोई क़द्र-दां ख़रीदार भी होगा रखे

20

किसान के पैरों में छाले

14 मार्च 2018
0
1
2

सरकारी फ़ाइल में रहती है एक रेखा जिनके बीच खींची गयी है क्या आपने देखा ..?सम्वेदनाविहीन सत्ता के केंद्र को अपनी आवाज़ सुनाने चलते हैं पैदल किसान 180 किलोमीटरचलते-चलते घिस जाती हैं चप्पलें डामर की सड़क बन जाती है हीटर। सत्ता के गलियारों तक आते-आते घिसकर टूट जाती हैं चप्पलें घर्षण से तलवों में फूट पड़त

21

बर्फ़

29 मार्च 2018
0
0
0

सुदूर पर्वत परबर्फ़ पिघलेगीप्राचीनकाल से बहतीनिर्मल नदिया में बहेगीअच्छे दिन कीबाट जोहतेकिसान के लिएसौग़ात बन जायेगीप्यासे जानवरों कागला तर करेगीभोले पंछियों कीजलक्रीड़ा मेंविस्तार करेगीलू के थपेड़ों की तासीरख़ुशनुमा करेगीएक बूढ़ा प्यासा अकड़ी

22

कीलों वाला बिस्तर

2 अप्रैल 2018
0
0
0

शायरों, कवियों की कल्पना में होता था काँटों वाला बिस्तर, चंगों ने बना दिया है अब भाले-सी कीलों वाला रूह कंपाने वाला बिस्तर। अँग्रेज़ीदां लोगों ने इसे ANTI HOMELESS IRON SPIKES कहा है,ग़रीबों ने अमीरों की दुत्कार को ज़माना-दर-ज़माना सहजता से सहा है। महानगर मुम्बई में एक निजी बैंक के बाहर ख़ाली पड़े

23

सुमन और सुगंध

26 अप्रैल 2018
0
4
3

सुगंध साथ सुमन के महकती ख़ुशी से रहती है, ये ज़ंजीर न बंधन के चहकती ख़ुशी से रहती है। फूल खिलते हैं हसीं रुख़ देने नज़ारों को, तितलियाँ आ जाती हैं बनाने ख़ुशनुमा बहारों को। कभी ढलकता है कजरारी आँख से उदास काजल, कहीं रुख़ से सरक जाता है भीगा आँचल। परिंदे भी आते हैं ख़ामोश चमन में पयाम-ए-अम्न लेकर, न लौटा

24

मेहमान को जूते में परोसी मिठाई.....

15 मई 2018
0
2
0

समाचार आया है-"इज़राइली राजकीय भोज में जापानी प्रधानमंत्री को जूते में परोसी मिठाई!" ग़ज़ब है जूते को टेबल पर सजाने की ढिठाई !!दम्भ और आक्रामकता में डूबा एक अहंकारी देश भूल गया है मेहमान-नवाज़ी का पाक परिवेश परोसता है मिठाई मेहमान को चॉकलेट से बने जूते में आधुनिकता की अंधी दौड़ में इस रचनात्मक (?) मज़ाक़

25

शब्द ऊर्जा है

9 सितम्बर 2018
0
3
1

दिल-नशीं हर्फ़सुनने कोबेताब हो दिलकान कोसुनाई देंज़हर बुझे बदतरीन बोलक़हर ढाते हर्फ़नफ़रत के कुँए सेनिकलकर आते हर्फ़तबाही का सबबबनते हर्फ़भरा हो जिनमेंख़ौफ़ और दर्पतोकुछ तो ज़रूर करोगे.....कान बंद करोगे ?बे-सदा आसमान सेकहोगे-निगल जाओ इन्हेंयाभाग जाओगेसुनने सुरीला रागवहाँजहाँबाग़

26

हो सके तो मुझे माफ़ करना नम्बी!

19 सितम्बर 2018
0
3
3

समाचार आया है -"इसरो के वैज्ञानिक को मिला 24 साल बाद न्याय"न्याय के लिये दुरूह संघर्ष नम्बी नारायण लड़ते रहे चौबीस वर्ष इसरो जासूसी-काण्ड में पचास दिन जेल में रहे पुलिसिया यातनाओं के थर्ड डिग्री टॉर्चर भी सहे सत्ता और सियासत के खेल में प

27

#MeeToo मी टू सैलाब ( वर्ण पिरामिड )

29 अक्टूबर 2018
0
0
0

येमी टू ले आया रज़ामंदी दोगलापन बीमार ज़ेहन मंज़र-ए-आम पे !वो मर्द मासूम कैसे होगा छीनता हक़ कुचलता रूह दफ़्नकर ज़मीर !क्यों इश्क़ रोमांस बदनाम मी टू सैलाब लाया है लगाम ज़बरदस्ती को "न"न मानो सामान औरत को रूह से रूह करो महसूस है ज़ाती दिलचस्पी। है चढ़ी सभ्यता दो सीढ़ियाँ दिल ह

28

नदी तुम माँ क्यों हो...?

22 नवम्बर 2018
0
1
1

नदी तुम माँ क्यों हो...?सभ्यता की वाहक क्यों हो...?आज ज़ार-ज़ार रोती क्यों हो...? बात पुराने ज़माने की है जब गूगल जीपीएसस्मार्ट फोन कृत्रिम उपग्रह पृथ्वी के नक़्शे दिशासूचक यंत्र आदि नहीं थे एक आदमीअपने झुण्ड से जंगल की भूलभुलैया-सी पगडं

29

सड़क पर प्रसव

16 जनवरी 2019
0
3
1

वक़्त का विप्लव सड़क पर प्रसव राजधानी में पथरीला ज़मीर कराहती बेघर नारी झेलती जनवरी की ठण्ड और प्रसव-पीर प्रसवोपराँत जच्चा-बच्चा 18 घँटे तड़पे सड़क पर ज़माने से लड़ने पहुँचाये गये अस्पताल के बिस्तर परहालात प्रतिकूल फिर भी नहीं टूटी साँसेंकरतीं वक़्त से दो-दो हाथ जिजीविषा की फाँसें जब एनजीओ उठाते हैं दीन

30

स्टोन क्रशर

4 फरवरी 2019
0
1
1

पथरीले हठीले हरियाली से सजे पहाड़ ग़ाएब हो रहे हैं बसुंधरा के शृंगार खंडित हो रहे हैं एक अवसरवादी सर्वे के परिणाम पढ़कर जानकारों से मशवरा ले स्टोन क्रशर ख़रीदकर एक दल में शामिल हो गया चँदा भरपूर दिया संयोगवश / धाँधली करके हवा का रुख़ सुविधानुसार हुआ पत्थर खदान का ठेका मिला कारोबार में बरकत हुई कुछ और स्ट

31

कन्धों पर सरहद के जाँबाज़ प्रहरी आ गये

16 फरवरी 2019
0
1
1

मातम का माहौल है कन्धों पर सरहद केजाँबाज़ प्रहरी आ गये देश में शब्दाडम्बर के उन्मादी बादल छा गये रणबाँकुरों का रक्त सड़कों पर बहा भारत ने आतंक का ख़ूनी ज़ख़्म सहा बदला! बदला!!आज पुकारे देश हमारागूँज रहा है गली-चौराहे पर बस यही नारा बदला हम लेंगे फिर वे लेंगे.... बदला हम लेंगे फिर वे लेंगे....हम.... फिर

32

अभिनंदन

1 मार्च 2019
0
3
1

ओ अभिनंदन है अभिनंदनआज महके हैं माटी और चंदन पराक्रम की लिख इबारत लौट आये अपने भारत राजा पौरुष की तरह याद किये जाओगे भावी पीढ़ियों को सैनिक पर गर्व कराओगेमिले कामयाबी की मंज़िल-दर-मंज़िल सजती रहेगी अब आपकी शौर्य-गाथा से महफ़िल भारत की मा

33

पर्यावरण अधिकारी

24 जून 2019
0
2
1

प्रकृति की, स्तब्धकारी ख़ामोशी की, गहन व्याख्या करते-करते, पुरखा-पुरखिन भी निढाल हो गये, सागर, नदियाँ, झरने, पर्वत-पहाड़, पोखर-ताल, जीवधारी, हरियाली, झाड़-झँखाड़,क्या मानव के मातहत निहाल हो गये?नहीं!... कदापि नहीं!!औद्योगिक क्राँति, पूँजी का ध्रुवीकरण, बेचारा सहमा सकुचाया मा

34

क्या-क्या नहीं करता है पेड़ दिनभर...

30 जुलाई 2019
0
1
1

दिनकर की धूप पाकर भोजन बनाता है पेड़ दिनभर,लक्ष्यहीन अतरंगित असम्पृक्त को भटकन से उबारता है पेड़ दिनभर। चतुर्दिक फैली ज़हरीली हवा निगलता है पेड़ दिनभर, मुफ़्त मयस्सर प्राणवायु उगलता है पेड़ दिनभर। नीले शून्य में बादलों को दिलभर रिझाता है पेड़ दिनभर, आते-जाते थके-हारे परि

35

नशेमन

19 अगस्त 2019
0
1
1

निर्माण नशेमन का नित करती, वह नन्हीं चिड़िया ज़िद करती। तिनके अब बहुत दूर-दूर मिलते, मोहब्बत के नक़्श-ए-क़दम नहीं मिलते।ख़ामोशियों में डूबी चिड़िया उदास नहीं, दरिया-ए-ग़म का किनारा भी पास नहीं। दिल में ख़लिश ता-उम्र सब्र का साथ लिये, गुज़रना है ख़ामोशी से हाथ में हाथ लिये। शजर

---

किताब पढ़िए