*सनातन धर्म में मानव जीवन का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति होना बताया गया है | प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर चाहे जैसे कर्म - कुकर्म करता रहे परंतु चौथेपन में वह मोक्ष की कामना अवश्य करता है | प्राय: यह प्रश्न उठा करते हैं कि मोक्ष की प्राप्ति तो सभी चाहते हैं परंतु मृत्यु के बाद मनुष्य को क्या गति प्राप्त होती है | इसका उदाहरण हमें हमारे धार्मिक ग्रंथों में देखने को मिलता है | गीता में स्वयं योगेश्वर श्री कृष्ण कहते हैं :-- "ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ! जघन्यगुण वृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसा: !!" अर्थात :- सत्त्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस पुरुष अधोगति को अर्थात कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं | इसको और सरल भाषा में ये कहा जा सकता है कि कर्मों पर आधारित जीव की ३ तरह की गतियां होती हैं :- १- उर्ध्व गति, २- स्थिर गति और ३- अधो गति | प्रत्येक जीव की ये ३ तरह की गतियां होती हैं | यदि कोई मनुष्यात्मा मरकर उर्ध्व गति को प्राप्त होती है तो वह देवलोक को गमन करती है | स्थिर गति का अर्थ है कि वह फिर से मनुष्य बनकर वह सब कार्य फिर से करेगा, जो कि वह कर चुका है | अधोगति का अर्थ है कि अब वह संभवत: मनुष्य योनि से नीचे गिरकर किसी पशु योनि में जाएगा या यदि उसकी गिरावट और भी अधिक है तो वह उससे भी नीचे की योनि में जा सकता है अर्थात नीचे गिरने के बाद कहां जाकर वह अटकेगा, कुछ कह नहीं सकते | कहने का तात्पर्य यह है कि जीव के अगली योनि या मोक्ष का निर्धारण उसके कर्मों के आधार पर ही होता है |* *आज प्राय: देखने को मिलता है कि बहुतायत की संख्या में लोग मठों , मन्दिरों एवं ज्योतिषियों के पास लाईन लगाकर यह जानने की उत्कण्ठा रखते हैं कि उनका भविष्य क्या होगा ?? आज तो सोशल मीडिया के माध्यम से भी अनेकों विद्वान लोगों का भविष्य बता रहे हैं | परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का यही मानना है कि ऐसा जानने की इच्छा करने वाले लोग या तो धर्मग्रंथों को मानते नहीं हैं और यदि मानते भी हैं तो उनका विश्वास दृढ नहीं है | क्योंकि लगभग प्रत्येक धर्मग्रंथ में यही पढने को मिलता है कि "भाग्य का निर्माण कर्मोंं के आधार पर ही होता है" बाबा तुलसीदास जी ने तो मानस में स्पष्ट कह दिया है कि :- "काहु न कोउ सुख दुख कर दाता ! निज कृत कर्म भोग सब ताता !! मानस की यह चौपाई पढ लेने के बाद मनुष्य को स्वयं समझ जाना चाहिए कि हमारा भविष्य कैसा होगा | मोक्ष मिलना या न मिलना हमारे ही हाथ में हैं | यह भी कहा जा सकता है कि हमको जीवन मरण के इस चक्र से छुटकारा यदि हमें कोई दिला सकता है तो वह हम स्वयं एवं कर्म हैं | आज जिस प्रकार का वातावरण विकसित हो गया है उसे देखकर तो यही लगता है कि ऊर्ध्वगति प्राप्त करने वालों की संख्या कम एवं अधोगति का संख्याबल ज्यादा ही है |* *हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि यदि ऊर्ध्वगति को न प्राप्त हों सकें तो अधोगति से भी बचे रहें एवं स्थिर गति प्राप्त करके पुन: मनुष्य होकर प्रायश्चित कर सकें |*