अपनों से दो शब्द
“जब अनैतिक शक्ति संस्था-प्रधान के सिंहासन में पदास्थापित हो जाती है तो
व्यवस्थाएँ तो चरमराती ही हैं, नैतिक शक्ति को अवसर भी नहीं मिलता और इसका
नंगा-नृत्य संस्था को मर्यादा हीन कर देता है ।” इस चिरंतन सत्य को उद्घाटित करता
है, यह लघु उपन्यास - ‘शिक्षा के ऑसू’। यह उपन्यास झारखंड राज्य के प्राथमिक
शिक्षा-दान जैसे पवित्र संस्थानों से जुड़े कनिष्ठ से लेकर वरिष्ठ कर्मियों में
व्याप्त भ्रष्टाचार का जीता जागता दस्तावेज है। इसका केन्द्रीय पात्र भोला, एक ऐसा
चरित्र है जो सिर्फ अपने विद्यालय-प्रधान बदलू की अनैतिकता से ही तिरस्कृत नहीं
होता अपितु बैक डोर अर्थात् रिश्वत के कारण प्रखण्ड, अनुमण्डल, जिला एवं प्रमण्डल
से लेकर राज्य स्तर के अधिकारियों की उदासीनता व अनदेखी का शिकार भी होता है। वह
कहीं जबर्दश्त कोपभाजन बनता है तो कहीं उपहास का पात्र । पर उसे कोई मलाल नहीं है,
क्योंकि उसे अपनी कर्तव्यपरायणता पर पूर्ण विश्वास है।
चूँकि साहित्य सदा से समाज का दर्पण होता आया है और समाज को उनका वास्तविक
स्वरूप दिखाता आया है, एतदर्थ उसी कड़ी का एक लघु प्रयास है, यह उपन्यास । आशा
करता हूँ कि यह आपको अवश्य पसंद होगा।
भवदीय
: सकलदेव
1.
झारखण्ड प्रांत के साहिबगंज जिले में उद्धव मुनी के नाम से बने उधवा नामक एक
गाँव है । अब यह एक प्रखण्ड बन गया है ।सरकारी शिक्षण-संस्थानों में यहाँ एक हाई
स्कूल है और एक मिडिल स्कूल । बदलू और भोला इसी मिडिल स्कूल, उधवा में शिक्षक थे ।
बगल के हाई स्कूल में शिक्षक की कमी हो गई तो इन दोनों को हाई स्कूल में
प्रतिनियुक्त कर दिया गया । दोनों में अच्छी खासी दोस्ती थी । ऐसा देखा गया था कि
भोला बदलू की ही मदद किया करते थे , जब कभी उन्हें पैसे की कमी होती थी। ठाकुर
बाबू जी इसी मिडिल स्कूल के हेड मास्टर थे और वह प्रखण्ड कार्यालय उधवा में लंबे
समय से प्रतिनियोजित थे । फलतः विद्यालय के काम - काज में बाधाएं आती थी और इसलिए
वहां पर एक स्थाई हेड मास्टर की जरूरत थी । उधर मिडिल स्कूल उधवा में वित्त विभाग
की ओर से बीस लाख रुपए में बिल्डिंग का निर्माण कराना था, इससे अच्छा खासा लाभ का
अवसर रहता है । बदलू जैसा नाम था वैसा उनका काम था। ठाकुर बाबू की मंत्रणा एवं एम.
एल. ए. और जिलाधिकारी की सिफारिशों की मदद से बदलू प्रतिनियुक्ति समाप्त करवा लिया
और मिडिल स्कूल उधवा में हेड मास्टर बन गया। मौके का खूब फ़ायदा उठाया , कमाया,
अपना घर सजाया । एक बार तो डेढ. लाख का चेक भी अपने ही नाम से काट लिया था ।
मिलीभगत ऐसी थी कि अफसर भी इन्हें कुछ नहीं करते .......। दूसरी ओर विद्यालय में
पठन पाठन बिल्कुल शिथिल हो गया था । बिलम्ब से विद्यालय आना, विद्यालय से पूर्व भागना,
ऑफिस का चक्कर लगाना बदलू की नियति थी। फलतः अन्य शिक्षक भी ऐसे ही अकर्मण्य हो
गये थे । आखिर मिया गया घर तो दाहिने बाॅये हर वाली कहावत चरितार्थ होना स्वाभाविक
था। भोला को सारी खबरें शुभ मास्टर दिया करते थे।
शुभ मास्टर कह रहे थे - जानते है भोला सर! ये बदलू है न , किसा भी टीचर को कुछ
नहीं कहता है। वह जानता है कि यदि इन टीचरों को मैं कसॅूगा तो ये मुझे नहीं
छोड़ेंगे।चोर को चोर से ही डर बना हुआ है। फलतः कौन कब स्कूल आता है और कब जाता है
, इस पर ध्यान ही नहीं देता है। बच्चे भी बस सिर्फ उपस्थिति बनने का ईंतजार करते
हैं, फिर झुंड-के-झुंड बस्ते समेटकर घर की राह पकड़ लेते हैं । सबसे बड़ा नुकसान
अगर किसी को होता है तो इन मासूम बच्चों का । पढ़ाई-लिखाई एकदम खतम। कुछ मिड डे
मिल के लिए टिके रहते हैं। अंडे कभी बॅटते हैं तो कभी नहीं बॅटते। मगर हाँ, बिल तो
उपस्थिति के मुताविक जरुर बन जाता है ।
भोला दीर्घ निश्वास लेकर कहा था- सुनो माई डियर शुभ! करीब-करीब प्रत्येक स्कूल
में ऐसा ही होता है । सब मिलजुलकर लूट मचा के रखा है। पदाधिकारी भी सब जानते हैं
मगर सब के सबगऑखों में पट्टी बाॅधे हुए हैं , और हाॅ उन्हें भी घर बैठे सौगात जो
मिल जाता है।जब इन्हें सौगात नहीं मिलता है तब स्कूल भिजिट कर त्रुटियाॅ दिखाते
हुए स्पष्टीकरण पूछतें हैं। तब फिर सौगात से ही निबटारा होता है, सुधार से नहीं।
2.
इसी बीच भोला का भी प्रतिनियोजन टूट गया और वह भी अपने मिडिल स्कूल उधवा आ गए।
एक महीने तक भोला स्थिति का समीक्षा करता रहा। बदलू का लेट आना तुरंत बाइक लेकर
चले जाना फिर आना यही सिलसिला जारी था। पठन.पाठन चरमरा गई थी। भोला को यह सब देखा
नहीं जा रहा था । वह मन ही मन सोचता ‘जो होता है सो होने दो यह पौरुषहीन कथन है,
हम जो चाहेंगे वह होगा इन शब्दों में जीवन है।’
उनकी सोच थी कि प्रभु ने मनुष्य को पृथ्वी पर इस निमित्त नहीं भेजा है कि वह
हर दिन सुख - सुविधाओं के जोड़तोड़ में रहे। सुविधायुक्त जीवन की अभिलाषा उस मार्ग
से विपथ होना और उस दावित्व से मुॅह मोड़ना है जो उसके लिए निर्धारित है। वह
शिक्षक के साथ मेॅहीॅ दास के शिष्य भी थे और आर एस एस के अच्छे कार्यकर्ता रह चुके
थे , साहिबगंज जिले के बौद्धिक प्रमुख तक । आध्यात्म से ओतप्रोत उनका जीवन
गीत-संगीत से भरा था। इस कारण बच्चों के बहुत ही चहेते थे और इन्हें वे अपने क्लास
में आने के लिए आग्रह किया करते, गीत गाने कहते, कहानी सुनाने कहते......। भोला
बच्चों की इन मांगों को बड़ी तन्मयता से पूरा करता। । इससे भोला को आध्यात्मिक
खुराक भी मिलता था। भोला अपने प्रियजनों, शिक्षक मित्रों को अक्सर कहा करता था
’कर्म ही पूजा है, ईश्वर की आराधना इसी भाव से करो .....। ’ । मौलिकता जैसे गुण
भोला में कुट-कुट कर भरा था। यह उसे नवसृजन के लिय प्रेरित करती थी। बच्चों की
उन्नति के लिए सतत प्रयत्नशील रखती थी । बच्चों के माता- पिता भी इन्हें बड़ी
श्रद्धा से देखा करते।
3.
भोला को ठाकुर बाबू अच्छी तरह समझा दिए थे कि वह बदलू से सीनियर टीचर है ।
नीलू बाबू विद्यालय के प्रेसिडेंट थे। नीलू बाबू से वह पहले ही आग्रह कर चुके थे
कि वह आज की समिति की बैठक में अपनी कुछ बातें रखेगा । बैठक में सब जम कर बैठे थे
। नीलू बाबू ने भोला को इशारा किया और समिति के सभी सदस्यों से कहा कि भोला जी कुछ
कहना चाहते हैं। भोला खड़े होकर बोलने लगे कि बरसों से मैं अपने प्रधानाध्यापक के
काम में काफी रुचि ले कर हाथ बटाता आया हूॅ और अब मुझे नेतृत्व करने की इच्छा है ,
मैं बदलू से सीनीयर भी हूॅ और इच्छा पूरी करने का एक अवसर प्रधानाध्यापक की हैसियत
से मुझे मिलना चाहिए और इसलिए मैं विद्यालय का प्रभार चाहता हूँ । मुझे प्रभार
दिया जाए। इतना कह कर भोला बैठ गया, उसके बाद नीलू बाबू बदलू औल ठाकुर बाबू से
जानना चाहे कि क्या वाकई भोला सीनियर टीचर है । ठाकुर बाबू डिफाइन कर दिए कि भोला
बदलू से वाकई सीनियर टीचर है। अब प्रभार देना और न देना बदलू का काम है । यहाॅ
बदलू साईलेंट हो गया। मानो उन्हें साॅप छू गया हो......। ठाकुर बाबू 2 महीने के
बाद प्रभार दिया जाएगा, ऐसा कहकर बीच बचाव किया। भोला ने फिर रिक्वेस्ट किया कि जब
मैं सीनियर हूं और 2 महीने के बाद प्रभार दिया जाएगा तो इसे प्रस्ताव में लिख लिया
जाए परंतु ठाकुर बाबू इस जगह पर एक नाटक खेल गए कि नहीं प्रस्ताव लिखने की जरूरत
नहीं है। और फिर भोला का किया गया प्रस्ताव ननरिकॉर्ड बनकर रह गया। यहाॅ समस्या का
बीजारोपण ठाकुर बाबू की कुमंत्रणा का देन नहीं तो और क्या कहा जा सकता है? इनकी इस
कुप्रवृत्ति का परिणाम तब देखा गया जब इनका विदाई समारोह हो रहा था, बदलू की भी
समारोह-आयोजन में रुचि नहीं देखी गई , सिर्फ अपने ही स्कूल के शिक्षक और करीब 20
बच्चे ही उपस्थित थे, जबकि ठाकुर बाबू उधवा प्रखंड के ही नहीं अपितु साहिबगंज जिले
के नामी शिक्षकों में से एक थे परन्तु जैसा क्रिया कलाप वैसा अंत तो स्वाभाविक ही
है न !
4.
भोला को नीलू बाबू ने सजेस्ट किया कि भोला जी आप ऊपर के अधिकारी का आदेश ले कर
आइए। भोला मन ही मन सोचने लगा यहाँ से काम
निबटने वाला नहीं है, अतः वह पदाधिकारी का ही सहारा लेगा ।यहाँ परंपरा और नैतिकता की कोई पूछ नहीं है । 1
महीने के बाद जब पुनः समिति की बैठक बुलाई गई तो भोला इसबार एक आवेदन बदलू की ओर
बढ़ाया पर इस बार बदल साफ इन्कार कर दिया कि प्रभार नहीं दूँगा और आपका
आवेदन भी नहीं लूॅगा , लिया भी नहीं एक तानाशाह की भांति। नीलू बाबू ,भगत बाबू एवं
समिति के सदस्यों ने बरीयता का सम्माान करते हुए इसे स्वीकार करने की बात कही,
बदलू ने सबको झाड़ दिया और यहाँ तक कह डाला ’’स्टोप दिस मेटर’’ मानो वही
सर्वेसर्वा हो। नीलू बाबू यद्यपि एक ग्रेजुएट अध्यक्ष थे तथापि स्वार्थ निर्विघ्न
रहे इसलिए बदलू के सामने गूंगे हो गए। भोला ने प्रत्यक्ष देखा कि लोभवृत्ति वाकई
पढ़े लिखे को भी तेजहीन कर देती है। परन्तु भोला आज कसम खा लिया था कि बदलू जैसे
अनैतिक शिक्षक को वह हेडमास्टर की कुर्सी से उतारक ही दम लेगा । गीता का वह
श्लाकार्थ भोला के मन में गूंजने लगा कि ‘ असत् की कोई सत्ता नहीं और सत् का अभाव
नहीं होता।’
5.
भोला टाईपिंग जानता था। आवेदन टाईप किया, स्कूल इंस्पेक्टर सह एरिया आॅफसर,
प्रखंड उधवा के बोधन साहब को लिख दिया , उसकी एक कॉपी जिला साहिबगंज भेज दी गई, एक
कॉफी कमिश्नरी भेज दी गई । स्कूल इंस्पेक्टर भोला को आश्वासन पर आश्वासन दे रहे थे
पर ......। बदलू को सब कुछ मालूम हो गया और वह छट पटाने लगा कि कैसे भोला को इस
स्कूल से हटाया जाय। भोला योग्य शिक्षक थे पर अब कुर्सी बचाने के लिए वह उसे अपना
कांटा समझने लगा। हाई स्कूल के हेड मास्टर से मिला , हाईस्कूल के प्रेसिडेंट से
मिला कि कैसे उसे हाईस्कूल भेजा जाए । रात दिन यही चर्चा का विषय विद्यालय में
अंदर ही अंदर चल रहा था। महाभारत के शकुनी की तरह अकर्मण और बिकर्मण नामक बदलू के
दो मित्र इन्हें दुर्योधन बना डाले थे। ठाकुर बाबू ने भोला को बताया भी था कि ये
तीनों स्कूल में वाईन रखते हैं और यदा-कदा पीते भी रहते हैं।
6.
एक दिन बदलू भोला को क्लास से बाहर बुलाकर आॅफिस ले गया और कुरसी की ओर इशारा
करते हुए बैठने कहा। उस समय वहाॅ बदलू का शकुनी दोस्त अकर्मण और दो पड़ोस के
शिक्षक एजा और खान बाबू भी थे। ’’भोला जी आपका हाईस्कूल में फिर से प्रतिनियोजन हो
गया है, आपको बिरमित करना पड़ रहा है , आप लेटर रीसीभ कीजिए।’’ लेटर देते हुए बदलू
ने भोला से कहा। भोला समझ गया कि यह एकदम साजिश है, उसे हटाने का। बदलू के लिए वह
बहुत भारी हो गया है। भोला यहीं रहने की इच्छा जाहिर की, मगर द्वेषभाव भला प्रेम-परामर्श की भाषा कब
सुना है!’’ द्वेष इतना बढ़ गया था कि भोला को पूर्वाह्न में बिरमित कर दिया था
बदलू ने । वाकई कुछ लोग स्वार्थ साधने के लिए , किसी भी हद तक गिरने के लिए तैयार
हो जाते है । भोला नाम था पर इतना भी भोला नहीं था कि वह उलझ जाय , वह विचारने लगा
- ‘यदि मैं इस आदेश का पालन न करूँ तो ऑफिसर के चंगुल में मुझे फॅसाया जा सकता है,
जैसा कि आजकल होता है, फिर बदलू के लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात नहीं है। चिट्ठी
लेकर हाई स्कूल जाना ही बेहतर है’ और भोला निकल पड़ा। सुपन मास्टर भोला के अच्छे
दोस्तों में से थे, बहुत दुःखी हुए थे। कुछ छात्र-छात्राओं की आॅखें भर आयीं थी
किन्तु भोला सरकारी नियमों की बात कहा और फिर आने का आश्वासन देकर हाईस्कूल की ओर
चल पड़े। वहाॅ जाकर भोला मास्टर ने फेसबुक में एक कविता पोस्ट किया था-
‘अंधकार से न घबराएॅ’
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन,
मूर्खों को क्या है अनुशासन?
सभी मूर्ख जब मिल जाते हैं,
पंडित को चकमा दे देते हैं।
इसे संवारने जो जाते हैं,
जूते चप्पल खा लेते हैं।
ईशा , बापू ... ने प्राण गॅवाये,
सुधार क्या मूर्खों को पाये?
पर, निराश क्या हुआ जाए!
दीप कुछ तम में जलाएॅ।
अंधकार में दीप जलाएॅ,
उजाला अंतरतम हो जाए।
जो स्वयं आलोकित होना चाहें,
अंधकार से न घबराएॅ।
7.
वाकई आज के दौर में अनुशासनहीन आचरण करने वाले व्यक्ति ही चमकते-दमकते नजर आते
हैं और अनुशासित जन टिमटिमाते रहते हैं। परन्तु नैतिकता व आध्यात्मिकता के रंग में
रंगे भोला का दिल जानता है कि सत्य की नैया डोलती है पर डूबती नहीं । एतदर्थ वह
सत्य का उद्घाटन करने के लिए कटिबद्ध् हो जाता है । वह समय का इंतजार करने लगा
परन्तु हाईस्कूल में वह चुपचाप बैठा नहीं रहा । भगत बाबू समिति के सदस्य थे और एक
बार बदलू को भरी सभा में नशा सेवन के कारण फटकार लगा चुके थे, वे बदलू को अपने
विद्यालय के हेडमास्टर के रुप में देखना अपना अपमान समझते थे। इनसे मिलकर भोला आर
टी एक्ट से विद्यालय के वित्तीय घोटाले का दस्तावेज मंगाया। डेढ़ लाख की अवैद्य
निकासी हुई थी और भी बहुत सारी गड़बडि़याॅ थी। महामहीम राज्यपाल को लिखा गया।
स्कूल इंस्पेक्टर कम एरिया आॅफसर उधवा के बोधन साहब के पास जाॅच आई, मगर रिश्वत के
भॅवर में सब रफा दफा हो गया......।
8.
आज जब एक साल बाद भोला का प्रतिनियोजन टूटा , अपना स्कूल आया तो देखा दो नये
शिक्षक और आए थे। इनसे मालूम हुआ कि बदलू का व्यवहार इनके साथ भी खड़ूस जैसा ही
रहता है। भोला बदलू हेडमास्टर के एगेंस्ट में पुनः अर्जी टाईप किया , स्कूल
इंस्पेक्टर सह एरिया आॅफिसरउधवा के बोधन साहब को दिया। पहले की भाॅति ये साहब
निष्क्रिय रहे। मुहॅ खाय तो आॅख लजाय वाली बात चरितार्थ थी। इन्हें शिक्षासुधार से
कभी प्रयोजन रहा भी नहीं । भोला जिले के सभी अधिकारियों को अर्जी भेज दिया जिसमें
मुखिया, समितिसदस्यों से लेकर वार्डसदस्यों ने भी दस्तखत कर दिया। इस स्कूल के
मास्टर अनल, शुभ, मयमूल ज्ञानी आदि सभी भोला को हेडमास्टर बनाने के पक्षधर थे और
भरपूर सहयोग कर रहे थे। इसके कारण बदलू समेत उनके गुर्गों में खलबली थी, और वे भी
एन्टी-इंभारामेंट क्रियेट करने में जुटे थे। सोंकोर बाबू भोला को सुना रहे थे कि
एक बार बदलू उसकी बूढ़ी माताजी को 6 हजार का एक गड्डी थमा कर यह कहकर चला
गया कि इसे रखो, सोंकोर आयेगा तो
देना। बदलू भोवोन और सोंकोर बाबू जैसे एक्टीभ सदस्यों को बहका रहे थे कि वे लिख
दें कि भोला उनसे धोखे में दस्तखत करा लिया है परन्तु कोई भी सदस्य इनके झांसे में
नहीं आ रहे थे। भोवोन और सोंकोरदा तो यहां तक कहा करते थे कि भोला मास्टर के आने
पर तो स्कूल में रौनक आ गया है। भोला इन बातों से इन्सपायर होते। ऐसे भी भोला काफी
इन्सपायर थे क्योंकि उन्हें मुख्यमंत्री की ओर से प्रखण्डस्तरीय शिक्षक सम्मान
पुरस्कार भी मिला था जिसमें 5 हजार रुपये, शाॅल और एक प्रशस्ति पत्र था। इससे बदलू
भोला से खूब जलता था।
9.
एक पखवाड़े तक भोला जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द के कार्यालय आदेश का इंतजार
करता रहा मगर कोई टुंग-फुॅगसुनने न मिला। मिले भी तो कैसे , आखिर बेनीफिसीयल
कार्यालय आदेश खैरात में भला कब किनको मिला है़? भोला जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द
से मिला, अर्जियों की काॅपियाॅ, वरीयता का सबूत व जनता जनार्दन की इच्छा सबके सब
साग्रह दिखाए। कुछ अलग से और बातें हुई। कलर्क को बुलाया गया। साहब ने फरमाया भोला
जी की मांग बिल्कुल जायज है , आजही इनकी चिट्ठी बना दो । ‘ भोला जी आप चिट्ठी लेकर
ही जाइएगा, उधवा मध्य विद्यालय में आपको ही प्रभारी हेडमास्टरी दिया जाएगा, आप ही
अर्हता रखते हैं’ साहब ने कहा ।शाम तक चिट्ठी बन गई। चिट्ठी का विषय था-‘ श्री
भोला को मध्य विद्यालय उधवा का प्रभारी प्रधानाध्यापक नियुक्त किया
जाता है और बबलू को आदेश दिया जाता है कि वह अपने जिम्मे का संपूर्ण
विद्यालय प्रभार तीन दिनों के अंदर भोला को सौंप दें ।’ भोला चिट्ठी
लेकर घर आया। दूसरे ही दिन वह बी.आर.सी. में चिट्ठियों को मजहर बाबू से रीसीभ
कराया। मजहर बाबू बदलू को काॅल किया, चिट्ठी रीसीभ कराई। भोला स्कूल में वाच कर
रहा था, बदलू नदारत है। लगातार दो दिनों तक आकस्मिक अवकाश चढ़ गया। शुभ मास्टर
बदलू को बरहरवा में सुबह 6 बजे एरिया आॅफिसर के डेरे में देखा था। बदलू
आॅफिस-आर्डर को जो भोला के लिए हेडमास्टरी के नितित्त रीलीज हुई थी उसे रोकने के
जुगत में हाथ-पैर मारने लगा था। मानो बदलू का हेडमास्टरी नहीं जा रही हो अपितु
उनके प्राण ही निकल रहे हों ।
10.
जिला शिक्षा अधीक्षक के आदेश के मुताविक तो भोला को हेडमास्टरी मिल गई थी और
वह सही ढंग से विद्यालय का संचालन कर रहा था, जैसे समय पर सफाई, प्रार्थना, वर्ग-संचालन
आदि। उधर बदलू के कार्यालयों और साहबों के पीछे दौड़-धूप लगाने के सिलसिले में और
अधिक इजाफा हो गया था। विद्यालय के एक उमर नामक शिक्षक तो मार-पीट कराने में तुले
हुए थे। साजिशें रचने में माहीर खेलाड़ी थे । कहा जाता है कि उनका पिताजी भी वैसा
ही थे । कई बार भोला को उकसाया भी था ,पर भोला अनासक्त साधक जो ठहरे ,उनके उकसावे
में वे भला कैसे आते। भोला गीता का श्लोक मन ही मन दोहराते ‘योगस्थः कुरु
कर्माणि संगम् त्यक्त्वा धनंजय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।’
इससे भोला को बल मिलता था और तनावमुक्त रहकर अपने काम में लीन रहता था।
11.
दूसरे शिक्षकों से भोला को पता लग गया था कि बदलू जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द
के प्रदत्तादेश का अनुपालन नहीं करने वाला है और इसके लिए वह उधवा के बीईईओ बोधन
साहब से कुछ लिखवाया है और जिल शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द को दिया है। बोधन साहब की
रिश्वखोरी पूरे साहिबगंज जिले मे सभी जानते हैं। वह अपना परसेंटेज तो वह शिक्षकों
को फोन पर बुलाकर लेता है। भैंसमारी मिडिल स्कूल में तो वह सुनाम सर के मिले हुए
हेडमास्टरी को नहीं होने दिया था सिर्फ रुपये न मिलने के कारण। 20 हजार रुपये का
डिमांड था। साहिबगंज जिले के शिक्षक नेता बहादुर बाबू तो आरडीडीई साहब के सामने
इनको इसी रिश्वती हरकत के कारण सबके सामने सवाल-जवाब करवाया था इसमें भोला को भी
आरडीडीई साहब ने अपनी बात रखने का मौका दिया था। पर रिश्वत की काली कोठरी में तो
सभी काले ही निकले। सब धान बाईस पसेरी हो गया। उधवा की प्रमुख साहिबा द्वारा इस
बोधन साहब पर तो मुकदमा ही चल गया, जो कि जगजाहिर है। एकबार तो शिक्षक सम्मेलन न
होने पर भी इन्होंने उधवा प्रखंड के कार्यक्रम अधिकारियों के साथ मिलकर एकदम
मिथ्या रिपोर्ट जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द साहब को भेजा था। पर आश्चर्य ! सब कुछ
जानते हुए भी जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द साहब द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई ।
सरस्वती के अधिकारिय की यह रवैया क्या शिक्षा के सिंहासन को कलुषित नहीं करता ? यहाँ
चोर-चोर मौसेरे भाई वाली उक्ति एकदम सोलह आने फिट बैठती है।
12.
भोला उधवा बीईईओ बोधन साहब से मिला। जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द साहब के आदेश
का बदलू द्वारा अनुपालनार्थ गुहार लगाई। ‘ मैं आपका स्कूल नही नहीं
जाऊॅगा ,आप लोग खुद मिल-बैठकर समाधान कर लीजिए समझे कि नहीं, हाँ’ बोधन साहब
ने कहा। वाकई पैसे की मार ने बोधन के सुबोधपन का अपहरण कर लिया था। दुर्योधन की
भाॅति धर्म जानते हुए भी धर्म में उनमें प्रवृत्ति नहीं थी। कर्तव्य-बोध लुप्त हो
गया था। भोला फिर आवेदन टाईप किया और बीईईओ बोधन साहब , अपने अनुमण्डलाधिकारी,
जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द साहब एवं जिले के अन्य वरिष्ट अधिकारियों को जिला
शिक्षा अधीक्षक के आदेश का बदलू दृवारा अनुपालन करवाने के लिए मिन्नतें करते हुए
सबको भेज दिया। 25 दिन बीत गए परन्तु कहीं से काई खबर नहीं , मानों सभी पदाधिकारी
एक साथ छुट्टी में चलें गए हों। एकदम साईलेंटट। बीईईओ सह एरिया आॅफिसर बोधन साहब
बिल्कुल अबोघ थे ही, जबकि जनाब नियंत्री पदाधिकारी थे । जिला शिक्षा अधीक्षक
जयहिन्द भी अपने ही आदेश का गला खुद घोंटने में मजबूर लग रहे थे। कोई एक्शन नहीं।
फिर भी भोला का साकारात्मक नजरिया डगमगाता नहीं था । वह एक बार डीएसई जयहिन्द साहब
को वाट्सएप पर लिखा भी था -
चन्र्द टरै सूरज टरै , टरै जगत व्यवहार ।
पर दृढ़ श्री जयहिंद के , टरै न लिए विचार ।।
परन्तु मानो हनुमान जी समुद्र लांघने की अपनी क्षमता भूल गए हों। साहिबगंज में
रह रहे भोला के कुछ सुहृद मित्रों ने बताया था कि जिले के भूतपूर्व डीएसई बीराम
वाले शिक्षक बदलू हैं, इसलिए बुखारी आदि शिक्षक नेता बदलू के ही पक्ष में डीएसई
जयहिन्द साहब को साम-दाम-दण्ड-भेद से निष्क्रिय व निस्तेज बना डाले थे।। जब
चाहरदीवारी ही फसल चरे तो कौन बचाये !
13.
शिक्षा की इस लंगड़ी व्यवस्था के स्वरुप से ऐसे तो सभी परिचित हैं पर भोला इसे
अपने स्तर से और अधिक हाईलाईट करने का मन बना लिया था ताकि व्यवस्थापकों को अपने
कर्मियों की काली करतूतों का सम्यक् पता लगे । निरीह बन रही शिक्षक की परिभाषा को
वह बदलना चाहता था। भोला ने बदलू के अवज्ञा वाले समाचार को मिडिया में दे दिया ।
’मध्य विद्यालय उधवा में हेडमास्टर बदलू द्वारा वरीय अधिकारी के आदेश का अनुपालन
नहीं किया जा रहा है, इस विद्यालय के वरीय शिक्षक भोला ने उच्चाधिकारियों से
शिकायत की है।’ दैनिक जागरन और हिन्दुस्तान अखवार में छप गया। प्रभात खबर में भी
कुछ बदलकर 5 दिनों बाद छपा। इसी आशय का एक आवेदन भोला ने मुख्य मंत्री संवाद में
भी दे दिया, क्योंकि यहाॅ तो कोई कार्रवाई देखी ही नहीं गई। उधर आवेदन की
प्रतिलिपि आरडीडीई, शिक्षा सचिव, मुख्य सचिव , डायरेक्टर और माननीय राज्यपाल को भी
भोला ने प्रेषित कर दिया था। एमएलए भी भोला के लिए फोन किया , परन्तु बदलू के
चाॅदी के जूते के मार के सामने सबके सब व्यर्थ हुआ। अंधेर नगरी चैपट राजा, टके सेर
भाजी टके सेर खाजा- भारतेन्दु का यह कथन प्रासंगिक हो गया।
14.
उस दिन साहिबगंज डीएसई जयहिन्द चेम्बर में अकेले भोजन कर रहे थे। भोला अंदर
प्रवेश किया।
भोला- प्रणाम सर ! जयहिन्द सिर हिलाते हुए- कहिए भोला जी क्या हाल है ? भोला
खाली कुर्सी पर बैठते हुए- सर ! एक दिन आप मेरा स्कूल आईए और प्रभार की समस्या का
समाधान कर दीजिए। जयहिन्द- पेपरवा में इसब कैसे आ गया हो, पहिले इ बताओ तो।
भोला- पत्रकार और हम कुछ शिक्षक लोग
शाम को एक जगह बैठते हैं, उसी में चर्चा हुई थी, बस वे निकाल दिये पेपर में।
जयहिन्द- ओ हमको सिखाते हैं, तेा ये बताईए कि चिठिया का पत्रांक वे कैसे जान
गए?
भोला निरुत्तर हो गया , पर धीरे से- हाॅ सर माॅग लिया था।
जयहिन्द- और आप दे दिए , यही न ! और मुख्यमंत्री संवाद में के दिया? देखिएगा ?
......। अहो राहुलजी मुख्यमंत्री संवाद का फाईल लाओ तो हो।
राहुल कलर्क एक फाईल लाकर दिया और डीएसई जयहिन्द के कहने पर भोला को सब दिखाया
गया । भोला सबकुछ जानता था ही। वह चुपचाप सब देखता रहा। तब तक डीएसई साहब का भोजन
भी हो गया। हाथ-मुहॅ धोकर कुर्सी पर बैठते गए ।
जयहिन्द- जाईए अब वहीं से फैसला होगा। अब हम क्या करेंगे ? आप बहुत आगे बढ़ गए
हैं।
भोला- सर! मेरी समझ में जो आई, मैने कर दिया ,लेकिन समाधान तो आप ही न करेंगे।
जयहिन्द- ठीक है जाईए। माथा खराब मत कीजिए।
भोला- प्रणाम सर ! आते हैं सर।
15.
बाहर निकल कर भोला पैदल ही स्टेशन की ओ चला। वह अपने शिक्षक मित्र अजय की कही
बातों पर मन ही मन विचार करने लगे जो एक अच्छे विचारवान व्यक्ति थे। बुखारी
,सिन्हा आदि शिक्षक नेता डीएसई जयहिन्द बाबू को आपके विरोध में तैयार कर रहे हैं।
ये लोग लगे हुए हैं कि भोला को किसी भी शर्त पर उधवा मिडिल स्कूल का प्रभारी नहीं
होने देना है और इसके लिए मोटी रकम का इस्तेमाल किया जा रहा है। पेपर में न्यूज और
मुख्यमंत्री संवाद की बातें तो बस एक बहाना है उन्हें हटाने का। यह उस समय बिल्कुल
ही क्लीयर हो गया जब बुखारी बाबू शिक्षक- सम्मेलन के दिन भोला से कहा था ‘ भोला जी
हम लोग मजबूर थे, बबलू का पक्ष लेने के लिए.............।’‘ भोला समझ गया था
कि ये लोग वाकई एक नम्बर के चमचे ठहरे। शिक्षक से लेना ,अपना शेयर रखना ओर साहबों
के चरणों में पूजना- यही है शिक्षक की सेवा। साहब भी ऐसे ही शिक्षक-गुर्गो से घिरे
रहते हैं ताकि पौ- बारह होता रहे। परन्तु जिले में ऐसे भी डीएसई आए हैं जो ऐसे
गुर्गों से दूरी बनाये रखते थे पर जयहिन्द साहब को इससे भला क्या प्रयोजन।
16.
’मरता क्या नहीं करता और आरत के चित रहत न चेतू ’ जैसी कहावतें भोला के जीवन
में घटित हो रही थी। पर उन्होंने संकल्प किया है कि वह बदलू जैसे रंग बदलने वाले
और विद्यालय - हित की अनदेखी करने वाले शिक्षक को हेडमास्टर के रुप में नहीं देखना
चाहता है ओर उसके अंदर में काम करना और जुर्म सहना तो बिल्कुल असंभव। पदाधिकारी
चाहे उनका साथ दे या न दे पर वह अपना शिक्षक-धर्म अवश्य निभायेगा। गुणवतापूर्ण
शिक्षा का ढिंढोरा पीटने वाले पदाधिकारियों को चुनौती देने का मन भोला ने
बना लिया। 15 दिनों के इंतजार के बाद उसने अर्जियों का पूरा सेट तैयार किया और
मुख्य सचिव, शिक्षा सचिव, निदेशक, क्षेत्रीय उपनिदेशक, डीईओ, उपायुक्त,
अनुमण्डलाधिकारी, कुबोधन बने एरिया आॅफिसर सह बीईईओ के अलावे उधवा प्रखण्ड के
बीडीओ को भी प्रतिलिपि दे दी। साहिबगंज डीएसई जयहिन्द और एरिया आॅफिसर को रिमाईंडर
भी भेजा गया। बीडीओ को प्रखण्ड के अध्यक्ष
होते हैं । अतः अपने स्कूल से लेकर सारी बातें भोला ने विनम्रता पूर्वक कह डाली।
बीडीओ ने हेड क्लर्क को सारी बातें समझायीं। बोधन बीईईओ जो अचेत रहा करते थे उनको
संबोधित करते हुए आदेश निकाल कर बीडीओ ने उन्हें उसी दिन रीसीभ कराया। बोधन बीईईओ
की कलम उठी , उन्होंने उसी पत्र में ही लिखा ,अलग से नहीं, मानो कागज की कमी हो: -
‘श्री बदलू, प्रधानाध्यापक मिडिल स्कूल उधवा को आदेश दिया जाता है कि वह पत्र
पाते ही भोला को प्रभार सौंपकर अधोहस्ताक्षरी को सूचित करें।’ - बदलू को फोन
से बुलाकर पत्रादेश रीसीभ कराया गया। भोला को उसकी छाया-प्रति बीपीओफटल भगत जी ने
किसी को न बताने की बात करके दी, मानों सच से लड़ने की क्षमता का सर्वथा लोप हो
गया हो।
17.
भोला चेलेंजिंग एक्टीभीटी में था। स्कूल आया और स्कूल के आदेश -पंजी में लिख
डाला-’ प्रखण्ड शिक्षा प्रसार पदाधिकरी के ज्ञापांक 292 दिनांक16. 07. 2016 के
आलोक में श्री बदलू को विद्यालय प्रभार से मुक्त कर मुझे अथात् भोला को प्रभार
दिया गया है। अतः सभी शिक्षक श्रीबदलू के अनधिकृत हस्ताक्षर से सावधान रहें।’ इस
आशय के आदेश-प़त्र की छाया प्रति उस पेज में पिन-अप भी कर दिया। विद्यालय में
प्रभार को लेकर तनाव का माहौल बन गया था। सभी शिक्षक समय पर विद्यालय आते, क्लास
जाते, समय पर प्रस्थान करते । सबको इस बात का डर था कि इस स्कूल में किसी भी समय
कोई भी आॅफिसर आ सकते हैं । यह भोला के कलम का असर था। नीलू बाबू स्कूल
प्रेसीडेंट, अकर्मण, बिकर्मण और उमर जैसे शिक्षक मित्र , नव नियुक्त शिक्षक मिहिर
को विद्यालय के प्रभारी बनाने के लिए उनका ब्रेनवाश करने में जुट गए। इस षड्यंत्र
में उमर की भूमिका सभी शिक्षक समझ रहे थे, इनको तो यह संस्कार विरासत में मिली थी।
कहा जाता है कि ऐसे ही कुटीयल रवैये के कारण इनके दो बड़े भाईयों का जीवन
जहन्नुम-सदृश हो गया था। बडी बात ये थी कि मिहिर के प्रभारी बनने से फ्रेंचलिभ आदि
की स्पष्ट आशाएॅ थी क्योंकि मिहिर स्वयं फ्रेंचलिभ के मुहताज थे। पर
विद्यालय-प्रेमी शिक्षक और पब्लिक भोला को ही हेडमास्टर बनाने के पक्ष में थे।
मुखिया और भगत बाबू बोधन बीईईओ को सुबोध देने के प्रयास में अक्सर जाया करते थे,
पर ये साहब सुधार की भाषा समझने से गए। इनके होठ में तो बस नोट ही थे। इनके द्वारा
अड़ंगा लगा दिये जाने से मामला और गंभीर हो गया था। उधर बदलू प्रभार न देने के लिए
एंड़ी चोटी एक कर दिया था। एक दिन तो वह बालेरो में अकर्मण के अलावे अपने नेता
भतीजे को लेकर एम एल ए का चौखट तक लांघ आया। बदलू भी अब हेडमास्टरी छोड़ने को
तैयार हो गए थे मगर वह भी भोला को न देकर मिहिर के पक्ष में हो गए । एम एल ए साहब
भी अब यही राग अलापने लग गए थे। एम एल ए साहब को वोट बैंक का मिथ्या-लालच दिखाया
गया था , फलतः ये बाबू इनके झांसे में आ गए थे। नीलू बाबू स्कूल प्रेसीडेंट का भी
यही राग बन गया था, सब यही बता रहे थे कि इनका अपना कोई वजूद नहीं है ,ये बाबू
सदैव तेल के माथे में ही तेल डालकर अपना उल्लू सीधा कर लिया करते हैं। विद्यालय
प्रबंधन समिति के अधिकांश सदस्यों एवं विद्यालय के प्रेसीडेंट का यही दोहरा चरित्र
विद्यालय के विकाश का बाधक है। योग्य व्यक्तियों के साईलेंट मोड में रहने के कारण
ही तो ऐसे खल-चरित्र को नेतृत्व करने का अवसर मिल जाता है। दरअसल बूरे लोग इसलिए
बुराई नहीं करते कि वे बूरे हैं बल्कि इसलिए बुराई करते हैं क्योंकि अच्छे लोग
निष्क्रियहैं। पर भोला ऐसे निष्क्रिय लोगों में नहीं है , वह इस धारा के विपरीत
चलने के लिए कृतसंकल्प है। जरुरत है, भोला जैसे योग्य व्यक्तियों को आगे आने की।
भोला की यह कविता गौर तलब है जिसे उन्होंने फेसबुक और व्हाट्एप में डीएसई जयहिन्द
साहब को भी पोस्ट किया था--
शिक्षक राष्ट्रनिर्माता है,
अधिकारी नीति निर्माता है।
प्रबु़द्ध जनों की अनदेखी में,
बाल-पुष्प मुर्झाता है।
सर ! यदि मिला हुआ प्रभार,
न रहा बरकरार,
तो नैतिकता शर्मसार,
होगा तमस का अधिकार,
हे प्रभु सर्वाधार !
कौन करेगा विचार ?
मेरा शिक्षक जाता हार,
जय हिन्द ही आधार,
नैतिकता का पतवार ,
कौन करेंगे बेड़ापार,
कोर्ट दूजा है आधार,
जब होता नर लाचार ,
मेरा तप होगा आधार ,
सबको दूॅगा तब ललकार ,
निश्चित होगा उचित विचार ।।
पर असर, उसी तरह जैसे आप
भैंस के आगे बीणा बजा रहें और वह पागुर करने में मस्त है।
18.
भोला डीएसई जयहिन्द साहब के कार्यालय आदेश का हवाला देकर बैंक मैनेजर को एक
आवेदन दे दिया ताकि रुपये की अवैद्य निकासी न हो क्योंकि बदलू द्वारा पहले भी
अवैद्य निकासी हो चुकी थी। बैंक मैनेजर ने निकासी रोक दी। मिड डे मिल बंद हो गया।
अब तो स्कूल प्रेसीडेंट नीलू बाबू एवं ,सचिव बदलू आदि की बुद्धि चकरा गई। बदलू तो भोला से दूरी बनाये था ताकि बात
बतौवल न हो जाय परन्तु प्रेसीडेंट नीलू बाबू भोला से वाक् युद्ध करने आ गए। भोला
भी साफ लहजे में कह डाला कि आपको उचित लगे वह कर सकते हैं। यह तो डीएसई जयहिन्द
साहब के कार्यालय आदेश का प्रभाव है। आप डीएसई जयहिन्द साहब से मिलिए। नीलू बाबू
भोला की एक्टीभीटी से वाकिफ थे कि भोला कथनी और करनी में एक है। इन्हें हिलाना
संभव नहीं, स्थिति भांप कर तुरत सरक गए। अब ये लोग उधवा बीईईओ बोधन साहब के पास
पहुॅचे। जरा-सी चर्चा में इनको सब कुछ बोध हो गया कि ये सब मेरे ही अबोध व अचेत
बैठे रहने का ही तो परिणाम है। आव देखा न ताव साहब जी निकासी चालू कराने के लिए
बैंक मैनेजर से मिले। बैंक मैनेजर साहब भोला का दिया हुआ आवेदन दिखाया । दोनों
साहबों के बीच कुछ डिस्कस हुआ। अंततः निकासी चालू हुई । मिड डे मिल फिर से बहाल
हुआ । इस तरह बोधन बीईईओ के हस्तक्षेप से भोला का स्ट्रगल मात खा गया। यह खबर
दूसरे दिन अखबार में छपी कि बोधन बीई ईओ के हस्तक्षेप से मध्य विद्यालय उधवा की
मिड डे मिल की राशी की निकासी चालू हुई जिसे उस विद्यालय के वरीय शिक्षक भोला ने
डीएसई जयहिन्द साहब, साहिबगंज के कार्यालय आदेश पत्रांक 1173 दिनांक 16.07.2016 का
हवाला देकर बैंक मैनेजर को एक आवेदन देकर बंद करवा दिया था ताकि पदाधिकारियों पर
दबाव पडे़। पर जब खुद डीएसई साहब ही रहे बेसुध तो भला और कोई् क्यों ले सुध। जब
अधीक्षक ही हो गए भक्षक तो भला कोई क्यों बने रक्षक। भोला के एक परम मित्र ने भोला
के दर्द को गहराई से समझा था और इनके जैसे शिक्षकों की भावनाओं को आवाज देते हुए
’अनैतिकता’ शीर्षक से एक कविता फेसबुक में अपलोड किया था , जो इसप्रकार है-
सर ! अनैतिकता का जड़,
गया इतना भीतर,
नाम न लेता कि जाऊँ मै उखड़,
व्यवस्था हो गई गड़बड़,
कैसे लेंगे बच्चे पढ़,
सब रह जायेंगे अनपढ़,
उनका खो रहा अवसर,
सर ! लें जरा खबर !
शिक्षा जायेगी जो मर !
सर ! आप हैं अफसर !
मेरा क्या असर ,
मैं कहता जोड़ी कर ,
सर ! अगर न ले तो खबर,
हाय ! मेरा शिक्षकत्व जाता मर - - - -।
18.
बी आर सी, उधवा में बैजू नामक एक सी आर पी था जो मिडिल स्कूल उधवा में हो रहे
भोला बाबू के संघर्ष के एक-एक प्वाइंट से वाकिफ था, उन्होंने भोला को बैंक एकाउन्ट
में अपना नाम प्रविष्ट करने की युक्ति बताई। इसके अनुसार भोला अपने नाम को एकउंट
में प्रविष्ट करने के लिए आवेदन टाईप किया जिसमें डीएसई के पत्रांक 1173 दिनांक
16/07/2016 के कार्यालय आदेश का जिक्र था, इसी में भोला को मध्य विद्यालय उधवा का
प्रभारी बनाया गया था। इसे लेकर वह बीईईओ उधवा बोधन के पास अग्रसारण हेतु ले गया।
बीईईओ बोधन भोला को देखते ही बैठने तो कहा पर भोला के आवेदन बढ़ाने पर हस्ताक्षर
करने से इन्कार कर दिया और कहा क्या आपको बदलू ने प्रभार दिया ?
भोला - नहीं सर।
बीईईओ बोधन -तो हम कैसे आपको नाम बैंक में जोड़ देंगे?
भोला -डीएसई कें आदेश के आधार पर तो आप जोड़ ही सकते हैं। आप हमारे
कन्ट्रोलिंग.... आॅफिसर हैं। बीईईओ बोधन -नहीं हम ये काम नहीं करेंगे। भोला -क्यों
सर ? बीईईओ बोधन- भोला जी, आप समझते नहीं है। मैं आपको एक नेक सलाह देता हॅू ।
प्रभार फूलों का सेज नहीं अपितु काॅटों का ताज है। आपके जैसे शिक्षक को इससे दूर
ही रहना बेहतर है।
भोला - पर मैं सर्विस करता हॅू, क्या मैं इस दायित्व से अंत तक बचा रह सकता
हॅू ?
बीईईओ बोधन - नहीं तो। (भोला की ओर ताकता हुआ बोधन खामोश हो गया था )
भोला - यदि नहीं तो फिर मुझे इससे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए, और मैं तो विद्यालय
प्रभार एक अवसर के रुप में लेना चाहता हॅू ,सर। आपसे मैं रिक्वेस्ट करता हॅू कि
मुझे यह अवसर दिया जाय, सर।
बीईईओ बोधन - आपकी भावना सही है, हमें कुछ सोचने -विचारने दीजिए।
भोला - ओके सर। प्रणाम सर। आता हूँ, सर।
भोला घर की ओर चला। उसे बदलू की वह बात अक्षरशः याद आ गई जिसमें बीईईओ बोधन ने
10 हजार रुपये लिए बिना प्रभार नहीं देने की बात कही थी। पर भोला भला इतनी बड़ी
रकम क्यों देगा। चोरी का धन है जो वह मोरी में डालेगा। वह यह भी जानताथा कि यद्यपि
विद्यालय-प्रभार फूलों का सेज नहीं अपितु कांटो का ताज है तथापि उसके मन में कुछ
राज है पर वह अधिकारियों का मुहताज है , करे तो क्या करे। परन्तु बीईईओ बोधन
ने ठुकराकर भोला की आत्मशक्ति को जगा दिया था।
20.
उस दिन पूर्वी उधवा के मुखिया मनोरम व वार्ड सदस्य गण, उधवा मिडिल स्कूल के
प्रबंधन समिति-सदस्य गण और कुछ स्कूल से रुचि रखने वाले सज्जन स्कूल आ गए। पेपर
में निकले खबरों का हवाला देते हुए वे बदलू से सवाल-जबाव करने लगे।
आप डीएसई के आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहे है?
आपके गलत हरकत के कारण हमलोगों के स्कूल की बदनामी हो रही हैं। आप कुर्सी क्यो
नहीं छोड़ते हैं?
सभी सदस्य इस बात को दुहराने लगे।
मुखिया सीधे प्रश्न करने लगे- आप आज भोला को प्रभार देते हैं या नहीं ?
इसी समय शुभ मास्टर बदलू पर गरमा रहा था - आपकी बात नहीं मानेंगे। आप
हेडमास्टर नहीं हैं।
किसी ने कहा - आप कैसा हेडमास्टर हैं कि आपका सहायक आपकी बगावत कर रहा है?
एक बंगाली महिला ने तो यहाँ तक कह दी कि ये बदलू मास्टर आमारदेर एई स्कूलटा के
खेये गालो।
बदलू इतने लागों से उलझ तो रहे थे पर अपमानित भी खूब हो रहे थे।
भोला डीएसई कार्यालय से कुछ दस्तावेज निकालकर लाया था जिसमें बदलू द्वारा भोला
पर मिथ्या अरोप मढ़ा गया था। उसमें लिखा था कि भोला स्कूल में गप्पें करता रहता
है। मनमाने ढंग से क्लास लेता है। बच्चे भागते हैं तो रोकता नहीं है......। भोला
इन बातों से काफी आहत था। क्योंकि उनके शिक्षकत्व को चोट पहुॅचाया गया था। उनकी
तपस्या को कलंकित करने की कोशिस की गई थी । वह भी एक ऐसे चरित्र द्वारा जो अपना
सिर उठाकर चलने लायक नहीं रह गया था।
भोला खड़े होकर सबसे इजाजत लेकर कहने लगा- बदलू बाबू! प्रभार मेरे लिए कोई
महत्व नहीं रखता। आप अपने मन का हेडमास्टर बने रहिए। परन्तु आपने मेरे शिक्षकत्व
को बदनाम करने के लिए कलम चला दी। आपकी कलम नहीं टूट गई......।
पढ़ाई-लिखाई के मामले में आप मुझसे कभी आगे रहे हैं क्या? धिक्कार है आपके
जैसे एच एम को।आप हेडमास्टर थे ,यदि आपको लग रहा था मुझसे गलती हो रही थी तो मुझे
टोकते ,समझाने का प्रयास करते। अरे। आपतो हेडमास्टर की कुर्सी को घिना दिये साहब।
सबने कहा- एकदम सही कह रहे हैं भोला सर। बदलू खामोश था। मानों उनके मूॅह में
थप्पड़ जड़ दिए गए हों।
ये डीएसई को लिखते हैं कि यदि मेरी हेडमास्टरी छिन ली गई तो मेरा मानसिक
संतुलन बिगड़ सकता है। सोचिए आपलोग संस्था जाय जहन्नुम में, पर हाॅ , इनका मानसिक
संतुलन और कुर्सी सलामत रहना चाहिए। यह सुनकर सब हॅसने लगे ।
ये साहब, नये मास्टर सत्तो बाबू को तैयार करते हैं कि हम आपको प्रभार दे देंगे
और एक- दो महीने के बाद पुनः हमको दे दीजिगा। बुलावें क्लास से सत्तो को ?यह सच या
झूठ ?
सबने मना किया , कहा - छोडि़ये भोला जी बहुत हुआ। बैठिये आप ।
भोला बैठ गया ।
21.
मुखिया मनोरम बाबू अंदर से क्रुद्ध पर बाहर से शांत थे।
बदलू के पास थे ही , खड़े हाकर उनसे- मास्टर साहब! बात तो बहुत हो गई। अब
हमलोगों सिर्फ यही बतलाईए कि आज आप भोला को प्रभार देते हैं या नहीं ?
नहीं देंगे। तब, हमलोगों की जो
ईच्छा हो कर सकते है न?
करिए।
पत्रकार राजेश भी वहीं था। मुखिया समेत सब खड़े हो गए।
मुखिया ने सबको कहा-चलिये भाई देखते हैं हम लोग कुछ कर सकते हैं या नहीं।
सब गुनगुनाते-भुनभुनाते स्कूल आहाते से बाहर एक बगीचे में बैठ गए।एरिया आॅफिसर
सह बीईईओ, उधवा बोधन को संबोधित करते हुए एक आवेदन तैयार किया गया। इसे पत्रकार
राजेश ने लिखा था। विषय था- मिडिल स्कूल उधवा में बदलू , हेडमास्टर दृवारा डीएसई
के आदेश का अनुपालन 3 दिनों के अंदर सुनिश्चित करवाया जाय अन्यथा हम ग्रामीण स्कूल
में ताला लगाने को बाध्य हो जायेंगे। सामूहिक हस्ताक्षर हुए। बीईईओ, उधवा बोधन के
बीआरसी में दे दिया गया। तीन दिन बीत गए। पर बोधन का कोई अता पता नहीं। बिल्कुल
संज्ञान रहित। मानों लंबी छुट्टी में हों। मुखिया मनोरम उधवा बीडीओ से मिले। आवेदन
की काॅपी दी गई। पर ये हाकिम एक्शन लेना तो दूर उलटे मुखिया जी को डराने लगे कि
भूलकर भी स्कूल में ताला-माला न लगाएॅ। मुखिया मनोरम को यह समझने में देर न लगी कि
यहाॅ भी पैरवी हो गई है। कल ही क्वीक एक्श न की बात करने वाला साहब को लगता है आज
साॅप छू गया है। सबके सब पल्ला झाड़ते नजर आ रहे थे । केवल कुर्सी के लिए शोभा की
मूरत-मात्र है। परिवर्तन और सुधार की बातें इनके लिए केवलड़ अलफाज-मात्र नहीं तो और
क्या कहा जा सकता है! भोला भी इन साहब से रुबरु हुए थे। उन्हें भी यही सुनाई गई थी
कि आप अपने साहब से मिलिए, कहकर सिर्फ डीएसई का मोबाईल नंबर मांगा था । वही
दायित्व-पलायन वाली नीति।
भोला अक्सर कहता भी था- शहर आपका, गवाह आपके, हाकिम भी आपके कसूर तो मेरा ही न
होगा। भोला इस राज को जानता था कि यदि स्कूल में ताला लगाया जायेगा तो ये साहब लोग
उसे दूसरे जगह स्थानान्तरित कर सकते हैं, फिर तो मुॅह की खानी पड़ेगी । परिवर्तन
करने का उनका संकल्प पूरा नहीं हो पायेगा। इसके लिए उन्हे स्कूल में बने रहना बहुत
जरुरी है। और इसलिए भोला ने मुखिया मनोरम को इस राज की बात समझाकर ताला लगाने से
मना कर दिया ।
22.
उस दिन भोला दो मंजिले से बरामदे पर पैर रखा था। यहीं पर सहायक शिक्षक मिहिर,
अकर्मण और मयमूल बैठे कुछ बातें कर रहे थे। बदलू हेडमास्टर खड़े-खड़े अकर्मण को कह
रहे थे- अकर्मण जी !क्लास फोर के बच्चे देखिए कितना हल्ला कर रहा है, जरा वहीं
जाकर बैठिए न। यह कहकर बदलू आॅफिस की ओर चले गए। बच्चे सचमुच क्लास से बाहर
इधर-उधर दौड़ते हुए शोर मचा रहे थे। अकर्मण बाबू बदलू की बात सुनते ही क्लास की ओर
जाने के लिए कुर्सी से उठने लगे। तभी मिहिर मास्टर उनके कंधे में हाथ रखकर दबाते
हुए कहा- बैठिए कहाॅ जाइएगा। फिर क्या था, अकर्मण भी अकर्मण्य होकर बैठ गया। बच्चे
शोर मचाते रह गए। भोला मिहिर की यह चापलूसीपन देख रहा था। एक हेडमास्टर की इस
प्रकार की इनसल्टी उसे अंदर तक झकझोर दिया था। पर वह अपने आवेग को रोक लिया था।
उचित समय व स्थान पर इसे रखना ही उचित समझा।
यद्यपि इस दौर में भोला का बदलू के साथ हेडमास्टरी को लेकर कागजी जंग जारी था।
दोनों के बीच छत्तीस का आॅकड़ा था । दानों में ठीक से बातचीत तक नहीं होती थी।
दोनों एक दूसरे को पराजित करने में लगे थे। तथापि भोला बदलू की हेडमास्टरी के
कार्य में पूरा सहयोग करता था।
बदलू के बिलम्ब से स्कूल आने पर वह सफाई, प्रार्थना , क्लास आदि के संचालन में
त्तपर रहता था। एक बार तो वह बदलू को यहाॅ तक कहा था- आपसे अनुरोध है कि आप कृपया
मेरा विषय रुटिंग में ठीक करें, मुझे अपने मन से क्लास जाना पड़ रहा है।
परन्तु आज इसी मिहिर को अकर्मण, बिकर्मण, उमर ,स्कूल प्रबंधन प्रेसीडेंट नीलू
बाबू और बदलू आदि सभी हेडमास्टर बनाने की मंत्रणा में जुटे थे। क्योंकि ये लोग
अच्छा तो चाहते थे परन्तु अपने से अधिक अच्छा भोला के खिलाफ थे। यही तो संसार है।
संसार में माता, पिता और गुरु के अतिरिक्त और कोई नहीं जो अपने संतान व शिष्य को
अपने से अच्छा देखकर गौरवान्वित हों।
23.
राजनीति-कार्यकर्ता के रुप में पले बढ़े अकर्मण बाबू अधेड़ उम्र में शिक्षा
मित्र में चयनित हुए थे। इसलिए स्कूल के साथ राजनीति का चस्का छूट नहीं रहा था।
स्कूल के ईर्द-गिर्द किसी नेता के आने पर ये स्कूल में रह नहीं पाते थे। हाजरी
बनाकर चलते बनते। साथ में बिकर्मण बाबू को भी लेते चलते। बदलू इनसे इतना डरते थे
कि कभी भी कुछ नहीं बोल पाते। बोलते भी कैसे, खुद जो लापरवाह ठहरे।
बिकर्मण बाबू भी कहते थे - अकर्मण बाबू से सकना मुश्किल है। मुॅहजोर इतना है कि गलती करके भी सीनाजोरी दिखाने में
कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। हर एक बात में दबंगई। कौन लगे उनका मुॅह
उमर बाबू सबसे सक्रिय शिक्षा मित्र थे। वे एकबार भोला को सुना रहे थे- सर ! ये
अकर्मण बाबू शिक्षक प्रतिनिधि बनने के लिए एॅड़ी चोटी एक कर डाले थे। क्या जो
मिलता है इस पद में! भोला जब कभी बच्चो को व्यायाम कराते ये बाबू बैठकर खामियाॅ
ढूढ़ते। जोर-जोर से बातें कर डिस्टर्ब करने का प्रयास करते। कभी-कभी इतनी ऊॅची
आवाज में बोलते थे कि भोला बच्चे को ठीक से कमाण्ड तक नहीं दे पाते। तंग होकर भोला
विपरीत दिशा में चले जाते। इनके मुॅह में पेट की बात आ ही जाती- देखते हैं कितना
सुधार करते हैं ये। ये जितना करे हमें कुछ नहीं करना है। मिसीर बाबू तो गाली तक दे
डालते।
शुभ मास्टर इनके बीच बैठकर सारी बातें सुनते और बाद में भोला को सुनाते- सर!
ये अकर्मण और मिसीर इतना गिरा हुआ मास्टर है कि ये बैठे-बैठे आपको तो केवल गाली ही
देता है। इतनी गंदी गाली कि बोलने लायक नहीं है सर। इस पर भोला कहता - क्या करोगे
! इन लोगों कासंस्कार ही खतम है। ऊॅचे कुल में जन्म लिया, करनी ऊॅच न होय। सुवरन
कलश सुरा भरा साधु निंदै सोय।। नाम वाले ही तो बदनाम होते हैं। वो गाना नहीं सुना
शुभ ! जो है नाम वाला वही तो बदनाम है। जो जितना अच्छा करता है उसका उतना ही बिरोध
होता है। इनकी कमजोरी यही है कि इन्हें मेरी अच्छाई बर्दाश्त नहीं हो रही है। इससे
हमें टूटना नहीं है।
इसी समय भोला का एक परम मित्र एक कविता फेसबुक में अपलोड किया था , शीर्षक था
.. जमाना ।
अच्छा करो तो जलता है ,
बुरा करो तो हॅसता है ।
कुछ न करो तो निकम्मा
कहते नहीं अघाता है ।।
बहरे बन जो कर्मलीन हो ,
आगे बढ़ता जाता है।
जमाना उनको अंगीकार कर ,
पुष्पमाल पहनाता है।।
जमाने से अपेक्षा न करो ,
अपेक्षा निर्बल करती है ।
’ एकला चोलो ’ की वांछा ही तो ,
मन को संबल देती है।।
महाजनों का पंथ यही है ,
महामानव बनाता है।
इतर पंथ भौतिकता में ,
जीवन मूल्य चुराता है ।।
24.
हर मोर्चे पर जूझ रहे थे भोला। प्रभार का संघर्ष यथावत था। साहिबगंज, डीएसई
जयहिन्द के आदेश के आज 35 दिन गुजर गए थे। कहीं से कोई एक्शन नहीं होते देख भोला
आज साहिबगंज उपायुक्त महेश प्रसाद सिंह को फोन लगा दिया। दो-तीन बार रींग होते ही
डीसी साहब- हेलो......... ।
भोला- प्रणाम सर।
डीसी साहब- प्रणाम।
भोला- सर, मैं उधवा मिडिल स्कूल का शिक्षक भोला बोल रहा हॅू।
डीसी साहब- हाँ बोलिए।
भोला- सर, साहिबगंज, डीएसई जयहिन्द के आदेश के आज 35 दिन गुजर गए हैं। अभी तक
मेरे हेडमास्टर द्वारा इस आदेश का पालन नहीं किया गया है,सर। आपसे इस संबंध में
कुछ पहल के लिए ही फोन लगाने का साहस किया हूँ, सर।
डीसी साहब थोड़ा कड़क कर - आप डीएसई साहब से जाकर मिलिए, समझे।
भोला- मिला हॅू, सर पर कुछ नहीं हुआ।
ठीक है तो फिर....... मिलिए - कहकर डीसी साहब फोन रख देते हैं।
बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है - टोपी टोपी सब एक ही होते हैं। एक बड़े आॅफिसर
दूसरेनीचे के आॅफिसरों की गलतियों पर अक्सर नजर अंदाज करते हैं। ये जोखिम उठाने से
बचते हैं। यहीं से भ्रष्टाचार का नंगा नृत्य आरंभ होता है । परन्तु हाॅ,
क्लक्टर-स्तर के आॅफिसर यदि लक्ष्य निर्धारित कर कानूनी ढंग से काम
करे तो अन्य आॅफिसरों को मुख्य धारा में चलने के लिए विवश होना पड़ता है। । पर ऐसा
बिरले देखा जाता है। जो होता है सो हाने दो वाली, पुरुषार्थहीन उक्ति सर्वत्र
चरितार्थ होते नजर आती है।
दरअसल ईच्छा-शक्ति ही हमें कुछ विशेष करने करने के लिए प्रेरित करती है।
स्वाध्याय, साधना ,सत्प्रेरणा आदि श्रेष्ठ गुणों से रहित व्यक्ति के ऊॅचे-से-ऊॅचे पदों में असीन रहने के बावजूद उनमें
श्रेष्ठ कार्य के प्रति ईच्छा-शक्ति का सर्वथा अभाव देखा जाता है ।ये सद्गुण मानव
को प्रमाद व आलस्यादि दुर्गुणों से बचाकर कर्मयोद्धा बनाता है। कीचड़ में फॅसा हुआ
युद्ध का वृद्ध हाथी उठ नहीं पा रहा था पर रणभेरी की आवाज सुनते ही ईच्छा-शक्ति
इतनी प्रबल हो जाती है कि वह एक ही झपट्टे में कीचड़ से बाहर हो जाता है। यही है
सत्प्रेरणा।
25.
साहिबगंज डीएसई जयहिन्द साहब के आदेश की अवज्ञा का समचार दूसरे ही दिन फिर छप
गया। कुल मिलाकर 40 दिनों में 8 बार छपा था। एक बार मुख्यमंत्री संवाद में भी भोला
ने दिया था। ऐसे में डीएसई जयहिन्द साहब ने इसे प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था।
मिडिया जबकि प्रजातंत्र का श्रेष्ठ स्तंम्भ माना जाता है । श्रेष्ठ व्यक्तियों
द्वारा इसे तब बुरा करार दिया जाता है जब वे सच का सामना करने के योग्य नहीं रह
जाते। क्योंकि जग हॅसाई भी तो उन्हीं की हो रही होती है जो गलतियाॅ कर गलतियों में
परदा डालने का प्रयास करते हैं।
स्थिति ऐसी हो गई थी अब इस चेप्टर को क्लोज करना डीएसई जयहिन्द साहब के लिए
अति आवशयक हो गया था। 2016 के अगस्त माह की 27 वीं तारीख के पूर्वाह्न 10 बज चुके
थे। सभी टीचर अपने-अपने वर्ग में थे और अपने वेश में भी थे।सबको मालूम था कि आज
उधवा मिडिल स्कूल में डीएसई जयहिन्द साहब का आगमन है । वे अपने आने की पूर्व की
सूचना बदलू और भोला को पूर्व-संध्या में ही दे चुके थे। आज बदलू बाबू सुबह से ही
स्कूल की साफ-सफाई में व्यस्त थे। भाड़े की मशीन से शौचालय आदि में पानी भरे जा
रहे थे। स्कूल प्रांगन में पानी का छिड़काव अच्छी तरह कर दिया गया था। देखकर ही
ऐसा प्रतीत हो रहा था कि आज अवशय ही स्कूल में कुछ हाने वाला है। 11 बजे एक चार
चकिया गाड़ी आई स्कूल के बीच प्रांगन मेंआकर रुक गई । अपने एक लिपिक के साथ डीएसई
जयहिन्द साहब बाहर आये। बदलू और अकर्मण बाबू सबसे पहले सलाम ठोके। बदलू को आदेश
हुआ कि सभी शिक्षकों को डीएसई साहब के सामने बुलाया जाय। इशारा मिलते ही शुभ
मास्टर सबसे पहले भोला को बुलाने ऊपर जाने के लिए जीने की ओर लपका। अब तक सभी
शिक्षक डीएसई जयहिन्द साहब के बगल में थे। मुखिया मनोरम, प्रबंधन समिति के सदस्य
गण, वार्ड सदस्य गण और कुछ ग्रामीण देखते ही देखते आ गए थे। डीएसई साहब ने माता
वाहिनी के माताओ को भी अपने सामने हाजिर होने का फरमान जारी किया। वे भी आ गईं।
महफिल सज गई थी। इसी बीच समस्या का जड़ उधवा प्रखण्ड के बीईईओ बोधन भी आ गए। मामले
को किसी के भी पक्ष में मोड़ने की औकाद रखने वाले साहिबगंज के शिक्षक संघ के नेता
बुखारी बाबू अपने मित्र सिन्हा साहब के साथ आ बिराजे। ये बाबू लोग सामदामदण्डभेद
नीति का प्रयोग कर डीएसई जयहिन्द साहब को पहले से ही पराजित कर चुकु थे और यह तय
कर चुके थे कि इस स्कूल के दानों शिक्षक बदलू और भोला के बदले तीसरे नव नियुक्त
शिक्षक मिहिर बाबू को स्कूल के हेडमास्टर का दायित्व सौंपा जायेगा।
अब केवल औपचारिकता पूरी कर वैधानिक मुहर लगाना शेष रह गया था जो आज पूरी करने
के लिए सभी महारथी चक्रव्यूह की रचना कर बैठ गए, जैसा कि अक्सर और अन्य विषयों में
हुआ करता है। परन्तु आज जनमत की अदालत लगी थी। जनमत मुखर नहीं थी। दबी हुई जुबान।
भाव स्पष्ट था। पर उस भाव को ध्वनि दे तो कौन! भाव को मोडने-सिकोड़ने वाले स्वयं
ही पूर्वाग्रह से ऐसे ग्रसित थे जैसे महाभारत के धृतराष्ट्र। फलतः डीएसई जयहिन्द
को भी अपने तय एजेण्डे के मुताविक फैसले लेने थे।
26. जन- अदालत
कौन हैं संयोजिका?
हम हैं सर।
बच्चों का खाना ठीक से बनता है न? पैसे एकाउण्ट में आते हैं या नहीं ?
आदि नाटकीय प्रश्नोत्तर के बाद डीएसई जयहिन्द साहब सभी माताओं की ओर देखते हुए
पूछे - अच्छा ये बताओ स्कूल में ये भोला और बदलू के चलते पढ़ाई में कोनो बाधा- उधा
या कोनो झगड़ा-उगड़ा हुआ है? कुछ पता है?
सभी माताएॅ एक स्वर में बोल उठी- नहीं सर.....। नहीं सर ! हमलोगों ने इस प्रकार
की कोई भी झगड़-उगड़ा नहीं देखी।
डीएसई जयहिन्द कुछ देर स्तब्ध हो गए....... । फिर उपस्थिति पंजी में दर्ज
टीचरों को एक- एक कर सबसे यही प्रश्न उन्होंने किया- अच्छा ये बताओ स्कूल में ये
भोला और बदलू के चलते बच्चों की पढ़ाई में कोनो बाधा या कोनो झगड़ा हुआ है? कुछ
पता है? कोई विवाद हुआ?
सभी टीचर एक ही बात बताये जा रहे थे कि उन दोनों में कागजी लड़ाई हो रही थी
मगर बच्चों की पढ़ाई में कोई बाधा या कोई झगड़ा कभी नहीं हुआ।
इसकी पुष्टि सामने बैठे व खड़े सभी श्रोताओं व दर्शकों में से किसी ने आवाज
देकर की तो किसी ने गुनगुनाकर की। जन अदालत में एक भी स्वर ऐसा नहीं मिला जो भोला
और बदलू के बीच विवाद का विषय बताये । अंत में बदलू ने भी कह दिया - हम दानों में
कोई झगड़ा नहीं है और प्रभार के संबंध में भी मुझे कुछ भी नहीं कहना है। सर की जो
ईच्छा.......।
यहाॅ बदलू का दोहरा चरित्र देख उपस्थित सभी व्यक्ति दबे जुबान से एक दूसरे को
देख रहे थे। बदलू आज वाकई बिल्कुल बदली बदली सी बातें कर रहा था। उस दिन बैठक में
साफ-साफ कह दिया था कि प्रभार नहीं दॅूगा और आज का राग बिल्कुल अलग । रहस्य भरा ।
इन्हें बता जो दिया गया था कि आपकी कुर्सी छिन गई।
भोला की बारी का सबको ईंतजार था। डीएसई जयहिन्द ने भोला से कहा आपको क्या कहना
है भोलाजी? भोला खड़े होकर बोलने लगे- ’मैं अब तक सहायक शिक्षक के रुप में कार्य
करता आ रहा हॅू। जो भी प्रधानाध्यपक रहें हैं, मैंने पूरी ईमानदारी के साथ उनका
सहयोग किया है, सर। विद्यालय के प्रत्येक क्रियाकलाप में बढ़ चढकर सहयोग किया है,
सर। अब मैं विद्यालय का वरीय शिक्षक हॅू,। अभिभावक गण भी मुझसे प्रधानाध्यापक का
दायित्व लेने के लिए आग्रह कर रहे थे। साथ ही इस दायित्व को मैं एक अवसर के रुप
में लेना भी चाह रहा था। इसलिए मैंने श्रीमान् को आवेदन दिया है। मेरे समर्थन में
मुखिया, प्रबंधन समिति के सदस्यों ,वार्ड सदस्यों आदि ने भी मिलकर एक प्रतिवेदन
श्रीमान् को दिया था। श्रीमान् का आदेश भी मिला है कि भोला को मध्य विद्यालय उधवा
में प्रधानाध्यापक के रुप में प्रतिनियुक्त किया जाता है। आज 41 दिन गुजर रहा है ,
अभी तक श्रीमान् के आदेश का पालन श्री बदलू द्वारा नहीं किया गया है अर्थात् वे
मुझे प्रभार नहीं सौंप रहे हैं। अतः मैं श्रीमान् से प्रार्थना करता हॅू कि
श्रीमान् के आदेश का पालन हो और मुझे प्रधानाध्यापक के रुप में कार्य करने का अवसर
दिया जाय। बस मुझे और कुछ नहीं कहना है।’
सबके सब भोला की ओर देख रहे थे। और फिर भोला हट कर सब शिक्षक के बीच खड़े हो
गए थे। सभी डीएसई जयहिन्द की ओर उनकी राय सुनुने के लिए उत्सुक होकर देख रहे थे।
परन्तु भोला को सब पता था .......। राजमहल के सलम मास्टर जो डीएसई जयहिन्द के बहुत
करीबी थे , भोला को फोन से सब कुछ बता दिया था।
27.
डीएसई जयहिन्द कभी भोला को देखते तो कभी उपस्थित लोगों की ओर और बोलने
लगे-’‘भोला मंडल जी योग्य समझकर ही मैंने आपको आदेश दिया था। परन्तु आप पेपरवाजी
क्यों कर दिये ? वो भी एक दो बार नहीं सात-आठ बार......। इतने पर भी मन नहीं भरा
तो मुख्यमंत्री संवाद में भी दे दिये......! ऐसी स्थिति में आपको प्रभार कैसे दे
सकता हॅू !’‘
भोला मन ही मन सोंच रहा था- ‘‘ये साहब! आप आज यहाॅ ऐसे थोड़े ही आ गए हो! आपको
तो पेपरवाजी और मुख्यमंत्री संवाद के कारण बाध्य होकर ही आना पड़ा है, जगहॅसाई
होने लगी तब। उधवा बिडीओ का फोन गया सो अलग। मेरे स्मरण-आवेदन-पत्र पर तो आपकी नजर
जा ही नहीं रही थी। मुझे आपका इरादा पता है साहब! आप बिल्कुल बिक चुके हैं। ये
बीईईओ बोधन.......भी बस आपसे कम थोड़े हैं ! आपलोगों के साथ वही कहावत एकदम सटीक बैठती
है - हाथी के दाॅत दिखाने के और , खाने के कुछ और। कहना कुछ और करना कुछ और । और
ये बुखारी, सिन्हा तो औवल दर्जे के दलाल ठहरे। आज मेरे कारण ही सबको दौड़ना पड़ा।
मैं हारुॅ या जीतूॅ मेरे लिए सब बराबर है। पर आज ये सबके सब एक दम नंगे हो चुके
,नंगे। आखिर लोभी -लालची को यश कब मिला है!’‘
डीएसई जयहिन्द साहब भोला की गलतियाॅ सबको समझा रहे थे। पर जन-अदालत के बीच
उनकी दलील थोथी सिद्ध हो रही थी। पेपर में समाचार प्रकाशन तो साफ-सुथरे आदमी ही
करेंगे। जिनके राज खुलेंगे वे तिलमिलायेंगे ही। जब बिल्ली खिसिएगी तो खंभा नोचेगी
नहीं तो और क्या करेगी ! पर अफसोस इस बात की हुई कि इस तथ्यपूर्ण बातों को सबके
सामने कोई रख नहीं पाया। इस बात की वकालत नहीं हो सकी। क्योंकि वकील कोई था ही
नहीं। डीएसई जयहिन्द स्वयं हाकिम थे, सवयं गवाह और जिले के इस लोक अदालत का
न्यायधीश भी स्वयं थे,0
तो पाठक वृन्द सोंच सकते हैं कि फैसले
किनके पक्ष में होंगे!
मनोरम बाबू पान खाने गए थे। वहीं वह दुकान में सबको सुना रहे थे कि‘‘
मुख्यमंत्री संवाद में कोई आवेदन देता है तो वह अपराध नहीं है। वह तो हक की लड़ाई
है। इसमें डीएसई को बुरा मानना एकदम गलत हुआ।’’
पर मुखिया जी सीधे-साधे आदमी ठहरे। सभा में बात रख पाते तो बात कुछ और होती।
नीलू बाबू स्कूल प्रसीडेंट थे। बोलक्कड़ थे। पर ये वजन को देखकर ही अपनी बात रखते
थे ताकि हल्का न हो जाय। टीचरों को तटस्थ रहना ही अच्छा लगा, इसलिए वे कोई
प्रतिवाद करने से बचे रहे। जन समूह में सबके सब मुक श्रोता बने रह गए। समाज के
अच्छे लोगों का मौन भ्रष्टाचारियों को सुनहरा अवसर तो सदा से प्रदान करता आया है।
आज इस जन अदालत में बस यही हुआ।
28.
हाँ, तो आपलोग फैसला सुनना चाहते हैं। मैंने फैसला कर
लिया है। इस विद्यालय के नवनियुक्त शिक्षक श्रीमिहिर जी को प्रभारी प्रधानाघ्यापक
के रुप में प्राधिकृत करता हॅू क्योंकि बदलू और भोला दोनों में लंबे समय से विवाद
चल रहा है। सब बोल उठे- ये बदलू मास्टर के बखेड़े के कारण ऐसा हुआ। मुखिया जी
सदस्यों के बीच फुसफुसाते हुए कह रहे थे- भोला ने खर्चा नहीं किया, वजन नहीं दिया
, जमाना तो मनी का है न। नो मनी दुनिया फना फनी। इस स्कूल के शिक्षा मित्र अकर्मण,
विकर्मण, मिसिर और उमर की खुशी साफ-साफ झलक रही थी। उनके ईशारे में चलने वाले
हेडमास्टर मिल गये थे। जैसा करना चाहेंगे, करेंगे।मायूस थे तो शिक्षाप्रेमी ग्रामीण जो
भोला की सक्रियता से परिचित थे। स्कूल के बच्चे दुखी थे , जो भोला सर को हेडमास्टर के रुप में देखना चाह
रहे थे। बदलू तो हार स्वीकार कर चुके थे, पर वह अपने को
विजयी मान रहे थे। क्योंकि वह भोला को रोकने में सफल हो गए थे। इस डाह के लिए वह
साम दाम दण्ड भेद चारों नीतियों का भरपूर उपयोग किये थे । भोला को इस बात का गर्व
था कि वह बदलू जैसे अनैतिक हेडमास्टर को हटाने में सफल रहे और अब वह मिहिर हेड सर
की अनुपस्थिति में स्कूल में हेउमास्टरी कर सकेंगे। फिर डीएसई जयहिन्द ने निरीक्षण
पंजी की मांग की। बदलू दौड़कर एक पंजी लाया और जयहिन्द की मेज में खोलकर रख दिया।
जयहिन्द लिखने लगे-‘‘ दो शिक्षकों अर्थात् बदलू और भोला के बीच विद्यालय प्रभार को
लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था।इसलिए इस विद्यालय के नवनियुक्त शिक्षक श्री
मिहिर जी को विद्यालय प्रभारी के रुप में प्राधिकृत किया जाता है।’’ फिर डीएसई
जयहिन्द समेत सभी आगन्तुकों को आदर पूर्वक कार्यालय कक्ष कें लेजाया गया । फल व
मिठाईयाॅ परोसी गई। भोला डीएसई जयहिन्द को पंखा झेल रहे थे। यह देख बदलू थोड़ा
उदास नजर आ रहे थे। बदलू सोच रहे थे कि ‘‘ओह! मैंने इतना वजन दिया, फिर भी मेरी
कुर्सी न बची!‘‘ पर भोला हार कर भी जीत गया था।
डीएसई जयहिन्द अपनी गाड़ी में सवार होकर चले गए।
5 दिनों के बाद साहिबगंज डीएसई कार्यालय के प्रांगन में ही शिक्षकों का
सम्मेलन था। जगबहादुर बाबू, बुखारी बाबू आदि पहले से ही व्यवस्था में तैनात थे।
भोला मास्टर अकेले में पाकर बुखारी को सलाम ठोका था। बुखारी ने भोला से कहा था-
भोला जी हमलोग मजबूर हो गए थे। प्रभार तो उधवा मिडिल स्कूल का आपको ही मिलना चाहिए
था।
इसपर भोला ने कहा था- सचिव वैद्य गुरु तीनी ज्यों, प्रिय बोलहीं भय आस। राज
धर्म तन तीनी कर, होईहिं बेगहिं नास।। आप तो सचिव और गुरु दानों ठहरे और डीएसई
जयहिन्द वैद्य। फिर जिले में शिक्षा-धर्म और शिक्षा का रोगी हो जाना बिल्कुल तय है
न बुखारी बाबू !
इस पर बुखारी खामोश होकर भोला को इस प्रकार देख रहे थे , मानो अपने किए अपराध की स्वीकृति प्रदान कर रहे
हो।
नवनियुक्त शिक्षक मिहिर प्रभारी बनाए गये थे, भोला से पुछ रहे थे- सर! आपका
प्रोमोशन कब होगा ? मानो यह कहना चाह रहे थे कि आपको ही प्रभारी होना चाहिए।
आरडीडीई, दुमका कार्यालय से दिनांक से पत्रांक 986 दिनांक 02 सितंबर 2016 को
भेजे गए कार्यालय आदेश विविद्यालयआया। एक प्रति भोला को मिला और एक प्रति बदलू को।
इसमें डीएसई साहिबगंज के ज्ञापांक 1173/दिनांक 16/07/2016 का उल्लेख करते हुए बदलू
को आदेश दिया गया था -‘श्रीभोला मंडल को रा0 म0 वि0 उधवा का प्रभारी प्रधानाध्यापक
बनाया गया है। आपके दृवारा अब तक आदेश का अनुपालन नहीं करना सरकारी कर्मचारी के
आचार संहिता के बिल्कुल बिपरीत है। अतः आपको आदेश दिया जाता हे कि एक सप्ताह के
अंदर स्कूल का सम्पूर्ण प्रभार प्रभारी को सौंपतें हुए अनुपालन प्रतिवेदन भेजना
सुनिश्चित करें। समय सीमा के अंदर आपके द्वारा प्रभार नहीं दिया जाता हे तो आदेश
की अवहेलना के आरोप में आप पर अनुशासनिक कार्रवाई हेतु विभाग को प्रतिवेदित कर
दिया जायेगा।’
पर यह आदेश व्यर्थ हुआ। क्या वर्षा जब कृषि सुखाने। फसल को तो डीएसई जयहिन्द
पहले ही तप्त धूपदेकर सुखा डाले थे। या यों कहा जाय कि डीएसई जयहिन्द ओले बनकर
लहलहाते फसल को कुचल डाले थे।...........
29.
दिनांक 31/08/2016 को भोला अपने सेवा पुस्तिका को लेकर उधवा के इंस्पेक्टर
बोधन साहब के पास गए थे। इंस्पेक्टर साहब सेवा पुस्तिका में जो कार्य थाउसे वह खुशी-खुशी कर
देते हैं। फिर बड़े प्रेम से भोला को बैठने कहते हैं-
बैठिए भोला जी !
भोला को आश्चर्य होता है कि जो बोधन साहब विरोधी थे, उनके द्वारा आज इस तरह का
आदर क्यों दिया जा रहा है ! ऐसे सुंदर बोध के पीछे कोई चाल तो नहीं ! भोला भी
कुर्सी में बैठ गया।
इंस्पेक्टर साहब कहते हैं- भोला जी हम लोग चाह करके भी अच्छा काम नहीं कर सकते
हैं। आप जैसे अच्छे शिक्षक को चाहने वाले भी आखिर कितने हैं!
भोला मन नही मन सोचा आखिर अच्छे शिक्षक को आपको तो स्थान देना चाहिए साहब!
दूसरी बात उन्होंने कह डाला - भेाला जी आपके लिए आपका विद्यालय आने वाला कल
बहुत ही पेनफुल होने वाला है।
भोला बड़े सकते में आ गया। आखिर मेरा विद्यालय मेरे लिए पेनफुल क्यों होगा ?
वह बिल्कुल आश्चर्यचकित हो गया सुनकर। फिर एक सवाल और उठा दिया- भोला जी जितना
जल्दी हो सके आप अपने इस विद्यालय को छोड़ दीजिए । और इसी बीच दो - तीन शिक्षिकाएं
कार्यालय में साहब के सामने आ गई। भोला सिर्फ इतना ही कहा कि सर मैं अपने विद्यालय
में कुछ अच्छा करके निकलूंगा और भोला प्रणाम कर कार्यालय से निकल गया । घर आया ।
एकांत में बैठ कर भोला सोचता रहा कि आखिर मेरा विद्यालय मेरे लिए पेनफुल क्यों
होगा ! इसलिए न कि इस विद्यालय में सभी गुटबाजी करेंगे, साहब भी दबोचने का अवसर
तलासेंगे इत्यादि। तो भोला मन ही मन ठान लिया कि चाहे कोई गुटबाजी करें या जो करें
भोला चुनौतियों को स्वीकार करेगा , एक नया इतिहास रचेगा। बस समय पर विद्यालय जाता
था और जाता रहेगा और समय तक विद्यालय में रहेगा। बच्चे भगवान के रूप माने जाते हैं
और बच्चे को सिर्फ पढ़ाना है, बच्चों के साथ रागात्मक संबंध जोड़कर रखेगा ।
समर्पित भाव से उनकी सेवा करेगा । फिर भोला के लिए विद्यालय पेनफुल कैसे बन सकता
है और बस इस संकल्प को साकार करने के लिए समर्पित हो गया। अब रही बात विद्यालय
छोड़ने की तो वह छोड़ना चाहता नहीं है, उसको ऐसा लगा कि इंस्पेक्टर बोधन साहब चाह
रहे थे कि भोला अगर अपनी इच्छा जाहिर करे तो उनका दूसरे जगह प्रतिनियोजन कर दिया
जाएगा। फिर भोला मन ही मन सोचने लगा कि क्या इंस्पेक्टर का सजेशन सावधान करना है, डराना है या फिर शिक्षा में गुणात्मक विकास
करना है। वह बहुत गंभीरता से विचार करने लगा कि अगर हमारे पदाधिकारी गुणवान
विद्वान या कर्मठ भोला जैसे शिक्षक का सहयोग नहीं करेंगे तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
की जो बातें आती है वह बिल्कुल खोखली बातें है। आदर्श की बातें जमीन पर उतारी नहीं
गई तो हमारे अधिकारियों की बातें निरर्थक है । अंधेर नगरी चैपट राजा टके सेर भाजी,
टके सेर खाजा। पर, भोला इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि अंधकार को क्या धिक्कारें,
अच्छा है एक दीप जलाएं। समस्याओं का रोना अपना दीदा खोना।
30
श्रीमिहिर बाबू मिडिल स्कूल उधवा के हेडमास्टर बन गए थे। उपस्थिति पंजी में
उनका नाम एक नंबर में दर्ज हुआ पर श्रीबदलू का नाम दूसरे नंबर में दर्ज हुआ, जो
पहले एक नंबर में हुआ करता था। तीसरे नंबर में भोला का नाम था। अगस्त 2016 के
अंतिम सप्ताह में भोला ने मिहिर के सामने आपत्ति रखी- मिहिर जी विद्यालय के सभी
अभिलेखों में मेरा नाम बदलू से आगे रहा है। परन्तु बदलू ने विद्यालय- अभिलेखों के
साथ छेड़-छाड़ किया है और मेरानाम अपने नाम के बाद कर दिया है। इसलिए अब आगे इसपर
सुधार किया जाय, ऐसा आपसे मेरा निवेदन है। मिहिर भी माहिर निकले।तुरन्त बदलू को
बुलाया। भोला की आपत्ति सुनाई। बदलू ,भोला के रुख-रवैये से वाकिफ हो गया था, फलतः
उनको सच के सामने झुकना पड़ा। तय हो गया कि माह सितंबर 2016 से श्रीभोला का नाम
बदलू से पहले दर्ज होगा। अतः माह सितंबर 2016 से उपस्थिति पंजी में मिहिर के बाद
भोला का नाम दर्ज हो गया उसके बाद बदलू का । सरकरी नियम के मुताविक दूसरे नंबर के
टीचर ही हेड की अनुपस्थिति में विद्यालय के चार्ज में रहेंगे। मिहिर जब छुट्टी में
जाते तो भोला हेडमास्टर की कुर्सी में बैठ जाते, बदलू को यह अहसास कराने के लिए कि
वरीयता क्या चीज, इसके राज-रहस्य को स्वीकार करें। पर बदलू आॅफिस के काम से जकड़े
रहते थे।
एक दिन मिहिर और बदलू मिलकर सीडी की बात कर रहे थे कि साहिबगंज सीडी जमा करने
जाना है। उसी समय भोला आॅफिस में प्रवेश किया था। उuनकी बात को सुना
भी था और देखा भी कि सीडी मिहिर के सामने मेज पर रखी है। भोला ने मिहिर से कहा था-
मिहिर जी मेरे घर में क्ंम्प्यूटर है, सीडी मुझको दे दीजिएगा मैं इसके डाटा को
उसमें सेभ कर दॅूगा। कभी कुछ जोड़ना या घटाना हो तो मैं आपकी मदद करुॅगा।
इस पर बदलू तुरंत उबल पड़ा- नहीं, ये आॅफिसियल चीज है, आपको नहीं दिया जायेगा।
भोला गुस्साया। पर वह चुप रहा। अपने को शांत रखा।
बदलू अनुपस्थिति विरणी बनाता था जिसमें भोला का नाम तीसरे नंबर में कर देता
था। इसको लेकर भोला ने आपत्ति जतायी थी पर बदलू सुनता ही नहीं था। माह जनवरी 2017
का माह था। बदलू अनुपस्थिति विवरणी का खर्चा मांगने भोला के पास गया था। भोला मौके
की तलाश में था। उसने दिसंबर 2016 की अनुपस्थिति विरणी मांगी जिसमें नाम के
क्रमांक में सुधार नहीं था। भोला गरमा गया। गुस्सा एकदम आपे से बाहर हो गया।बाेलने
लगा- मेरा नाम तीन नंबर में क्यों है? बार-बार बोला जा रहा है फिर आप अपनी उल्टी
हरकत से बाज नहीं आ रहें हैं। मर्यादा का पालन कीजिए। उस दिन भी आप सीडी को लेकर
मर्यादा हीन बात कर गए कि ये आॅफिसियल चीज है, आपको नहीं दिया जायेगा। मैं खामोश
रहा। क्या मैं आॅफिस के बाहर का स्टाफ हॅू। मिहिर, भोला को शांत करने का प्रयास कर
रहा था पर भोला अपनी भड़ास निकाले जा रहा था।
फिर गरजे- जुलाई और अगस्त 2016 की अनुपस्थिति विरणी में इसने हेडमास्टर की
हैसियत से हस्ताक्षर क्यों किया, जबकि ये प्रभार मुक्त हो गए थे?
इस पर बदलू ने धीरे से कहा -फोर लिखकर हस्ताक्षर किये थे।
भोला फिर गरजा- निकालिए एबसेंटी, दिखाईए, कहाॅ फोर लिखा है? बदलू उत्तर नहीं
दे पा रहा था। कहीं फोर-मोर लिखा था ही नहीं, क्या दिखाता। भोला की बातों में
विश्वास झलक रहा था क्योंकि उसके पास एबसेंटी की छाया प्रति मौजूद थी। भोला
मर्यादा की दुहाई बार- बार दे रहा था। वह कह रहा था- पढ़े लिखे हैं, शिक्षक हैं,
ऐसे लोगों को बोलना क्यो पड़ेगा ! बोलें तो हम झगड़ालू कहलाएॅ। नहीं बोलें तो आपको
दबोचा जाएगा।
मिहिर मास्टर ने पुनः बीचबचाव किया। भोला को आश्वस्त किया। बदलू आॅफिस से बाहर
चला गया। शुभ मास्टर ने कहा- देखिए सर! इनकी नौकरी अब शेष है। थोड़ा माफ कर दीजिए
सर! अकर्मण भी आॅफिस में ही था। उसने भी कहा - किसी की मर्यादा के साथ छेड़-छाड़
करना सरासर गलत है।
31.
निदेशक, प्राथमिक शिक्षा, झारखण्ड के दया नंद झा, भा0प्र0से0 ने अपने कार्यालय
आदेश जारी किये थे। ज्ञापांक था-1658 राॅची, दिनांक 20/09/2016। यह आदेश राज्य के
सभी जिला शि क्षा अधीक्षकों को प्रेषित किया गया था। इस आदेश के अनुसार जहाॅ
सरकारी शिक्षक कार्यरत थे वहाॅ, नवनियुक्त शिक्षकों कों परिवीक्षा अवधि में रहने
के कारण विद्यालय प्रभार देना अनुचित कहा गया था। सिर्फ वहीं उन्हें प्रभार दिया
जा सकता था जहाॅ कि सरकारी शिक्षक नहीं थे। इस आदेश के आलोक में आवश्यक कार्रवाई
करने की हिदायत दी गई थी। भोला मास्टर ने पुनः आवेदन तैयार किया। पहले की तरह फिर
भोला ने प्रखंड , जिला, क्षेत्रीय और राज्य स्तर के अधिकारियोको लिखा। पर असर, बिल्कुल बेअसर। प्रखण्ड ,जिले और राज्य स्तर
के सभी अधिकारियों को तो मानो भोला जैसे मास्टर के आवेदन को देखना, पढ़ना तो दूर
छूने तक की फूर्सत न हों। क्षेत्रीय कार्यालय दुमका से एक फरमान आया। पत्रांक
था-1404 और दिनांक था -05 नवम्बर 2016 । इस कार्यालय आदेश के अनुसार भोला को
आरडीडीई महोदय ने सभी अभिलेखों एवं साक्ष्यों के साथ दिनांक 18/11/2016 को
पूर्वाह्न 11 बजे बुलाया गया था। यह एक प्रकार से अदालती सुनवाई थी। इसमें सुनवाई
के उपरान्त कुछ निर्णय की उम्मीद थी। भोला अपने आवेदन के प्रति प्रतिबद्ध था ही।
तारीक और समय के मुताविक भोला दुमका आरडीडीई कार्यालय पहुॅच गए। पर आरडीडीइ साहब
कार्यालय से बाहर थे। खान थे बड़ा बाबू। गुप्त बातें भोला को समझाने लगे। उसने
भोला को कह दिया कि साहब बोल रहे थे ,कुछ मैनेज तो वो कर ही देंगे, बुला लीजिए।
इसलिए मैंने आदेश निकाल दिया था। उन्होंने भोला को सजेस्ट किया। साहब तो आज नहीं है।
साहब के आने पर उनसे बात कर आपको बुला लिया जायेगा। मोबाईल नम्बर ले लीजिए। भोला
को खान बड़ा बाबू अपना मोबाईल नम्बर दे कर वापस घर भेज दिया। भोला घर आ गया।
एक सप्ताह के बाद आरडीडीई कार्यालय के बड़े बाबू खान साहब ने भोला को फोन पर
खबर दिया कि आप आ जाइए। भोला तो भोला ही ठहरा। विद्यालय अभिलेख एवं अन्यान्य
दस्तावेजों के साथ वहदिनांक-01 दिसंबर 2016 को पुनः रवाना हुआ। कुछ सामान्य
बात-चीत के बाद बड़े बाबू खान साहब ने भोला को एकान्त में चलने का इशारा किया।
दानों चले गए जहाॅ उनकी बातें कोई सुन न सके।
खान साहब- मास्टर साहब! आप कितना खर्च कीजिएगा ? मैं सख्त कार्यालय आदेश निकाल
दॅूगा। आपको प्रभार अवश्य मिलेगा।
भोला मास्टर- कितना खर्च होगा सर ?
खान साहब-आप कितना देंगे ?
भोला मास्टर- आप ही सुनाइए सर ।
खान साहब- बीस हजार से कम में नहीे होगा, मास्टर साहब।
भोला मास्टर- देखिए सर! मैंने तो कोई अपराध नहीं किया है। मेरा तो यह जेनवीन
मांग है, सर। इसमें इतना हैवी डिमांड! मैं एक-दा हजार आॅफिस में सबको मिठाई खाने
भर के लिए दे सकता हॅू।
खान साहब- इतना कम में भला कोई इन्टेरेस्ट क्यों लेगा!
भोला मास्टर- इससे अधिक मुझसे संभव नहीं है सर!
खान साहब- तो ठीक है आप बैठिए। साहब को आने दीजिए, बात कर लीजिएगा।
अपराह्न के 2 बजे तक भोला बैठा रहा। भोला को तो भनक लग ही गया था कि ये लोग
केवल पैसे के लिए ही मुझे यहाॅ बुलाये है। बगैर माल के काम नहीं बनेगा। यही तो है
हमारे विभाग की राम कहानी। बगैर चढ़ावे के कोई देवता आशीर्वाद नहीं देता। और इसके
लिए चढ़ौवा उचित भी नहीं। एच एम बनने के लिए खर्च ! भोला यही सब सोंच रहा
था।
जैसे ही साहब आए कि खान साहब तुरंत साहब के चेम्बर में कुछ कागजातों के साथ गए
थे। 20 मिनट बाद भोला को अंदर जाने की इजाजत मिली। प्रणामादि कर भोला खड़ा था।
साहब का इशारा पाकर खाली पड़े चेयर में बैठ गए। बड़े बाबू खान साहब भी अंदर आ गए
थे। उन्होंने भोला की ओर इशारा कर साहब का ध्यान आकृष्ट किया।
आरडीडीई साहब- हाॅ क्या बात है मास्टर साहब?
भोला मास्टर अपनी सारी बातें एक-एक दस्तावेज के माध्यम से कहने लगे। सर्वप्रथम
साहिबगंज डीएसई जयहिन्द-प्रदत्त ज्ञापांक 1173 दिनांक 16 जुलाई 2016 का कार्यालय
आदेश दिखाया। इसके तहत ही भोला को म0 वि0 उधवा के एच एम का प्रभार दिया गया था। इस
आदेश की अवज्ञा इस स्कूल के मास्टर बदलू द्वारा किया गया था। डीएसई जयहिन्द और
उधवा बीईईओ सह एरिया आॅफिसर बोधन द्वारा कोई एक्श्न न लिये जाने, आदि घटनाक्रम को
सिलसिलेवार ढंग से साहब के समक्ष भोला ने रखा। विद्यालय में वरीयता को प्रमाणित
करने वाले अभिलेखों में वेतन नामावली की छाया प्रति, उपस्थिति पंजी की छायाप्रति
आदि सभी भोला ने आरडीडीई साहब को दिखाया। भोला की प्रतिबद्धता से अभिभूत आरडीडीई
साहब ने मुश्किल से सिर्फ आश्वस्त करते हुए कहा था- मास्टर साहब आप अपना सभी
दस्तावेज बड़ा बाबू को दे दीजिए। शीघ्र ही एक आदेश साहिबगंज डीएसई जयहिन्द को भेज
देंगे। आप इतमिनान रहिए। आपका काम हो जाएगा। भोला को सारी बातें समझ में आ गई कि
काम क्या खाक होगा ! ये बाबू लोग नौकरी करते हैं सेवा नहीं। ये भाव के नहीं,
दाव-पेंच के भूखे हैं। इन्हें शिक्षा का नहीं अपना विकास चाहिए। यही सब विचारता
हुआ मास्टर भोला बाबू घर की ओर प्रस्थान कर गए।
रास्ते में ही इनके मन में एक कविता गुंजने लगी -
शिक्षा आॅसू बहा रही है।
रूटीन बना है शानदार,
शिक्षा की है जागी आसार।
पर शिक्षक-टोटा देगा मार,
कौन करे ! शिक्षा-विस्तार !
हाॅ, शिक्षा आॅसू बहा रही है।
नित नये प्रयोग देखकर,
शिक्षक रोता बिलख-बिलखकर।
चाहकर भी कुछ कर नहीं पाता,
रिपोर्ट बनाते दिवस-दिवस भर।
हाॅ, शिक्षा आॅसू बहा रही है।
ड्यूटी का तो ढोल बजा है,
कर्म-योग पंगु बना है।
कर्म-योग साधे बगैर,
न होगी शिक्षा की खैर।
हाॅ, शिक्षा आॅसू बहा रही है।
उठो बाबुओं! दफ्तर छोड़ो,
विद्यालय से नाता जोड़ो।
कर्म पंथ को धर्म बनाओ,
यथार्थ यही स्वीकार करो।
हाॅ, शिक्षा आॅसू बहा रही है।
32.
मनोर सर, महासचिव अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ ने वाह्ट्सेप के जिला बदलाव
ग्रुप में दिनांक: 13 सितम्बर 2017 पोस्ट किया था:- “जिला शिक्षा अधीक्षक साहिबगंज
से कुछ अनसुलझे प्रश्न :- आज जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय में उपायुक्त , उप
विकास आयुक्त एवं अन्य वरीय पदाधिकारी के द्वारा निरीक्षण किया गया , हो सकता हैं
कुछ पर करवाई हो , कुछ बच भी जाएँ परन्तु यह चिंतन का विषय हैं कि क्यों यह
निरीक्षण किया गया , आरोप - प्रत्यारोप का भी दौर कुछ दिन चलेगा , परन्तु अपने मन
में झाॅकने की जरुरत हैं कि क्यों शिक्षक का कार्य जानबूझ कर रोका जाता हैं ? चाहे
वो वेतन निर्धारण हो , स्थानान्तरण हो या सेवानिवृति लाभ आदि देने का हो । नव -
नियुक्त शिक्षको का मार्च 17 से वेतन रोका गया, 6 माह हो गए। लिपिक का हस्ताक्षर
कब का कर दिया गया हैं , परन्तु आदेश 11 am तक नहीं निकला ,
जब शपथ पत्र पर ही आदेश देना था तो अनुमोदन का इंतज़ार क्यों किया जा रहा था ? आखिर
कार्यालय की मंशा क्या हैं ? आज 13 तारीख हैं 7 दिन बाद पूजा शुरू हैं , आदेश
स्थापनाहुॅचने में 5 दिन लग ही जायेगा । राजमहल कोषागार का यदि लिंक फ़ैल रहा तो
शिक्षक परिवार के दशहरा मन गया । जिला शिक्षा अधीक्षक महोदय आपने ठीक कहा था -
नव-नियुक्त शिक्षकों को कि दशहरा में खIता चेक करना ।
सेवानिवृत शिक्षक तपन रॉय , धरमचंद साह का 2 साल से आपके कार्यालय के हठधर्मिता के
कारण पेंशन चालू नहीं हो सका । दशहरा मुबारक हो जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय के
सभी पदाधिकारियों एवं कर्मियों को”
इस पर भोला ने कमेंट किया था 14 सितम्बर 2017 के भोर को
“ अमीर गरीब ,ऊंच-नीच, छोटे-बड़े कोई भी क्यों न हो, जिन्हें लोकलाज न हो,
उनकी आप चाहे कितनों ही आलोचना करें या जग उनकी कितनों ही आलोचना करें , उन्हें
यदि इज्जत, पद- प्रतिष्ठा प्यारी नहीं है ; तो आलोचनाओं से कोई भी फर्क उनको नहीं
पढ़ सकता।” अब क्या था इसी दिन शाम तक स्पष्टीकरण पृछा आदेश निकल गया। डी एस ई
जयहिंद ने भोला के ऊपर यह आरोप लगा दिया कि इन्होंने असंसदीय शब्दों का प्रयोग
किया है । अतः इनके ऊपर प्रपत्र ‘क’ लगाया जा सकता है । तत्काल भोला का वेतन
स्थगित किया जाता है। और तो और 6 बिंदुओं में स्पष्टीकरण भी पूछा गया । स्पष्टीकरण
ऐसा कि आज तक किसी शिक्षक को नहीं पूछा गया । मेडिकल बोर्ड का सर्टिफिकेट और
शैक्षणिक क्रियाकलाप का स्वछता प्रमाण पत्र। और सबसे बड़ी पीड़ादायक बिंदु यह था
कि अपने विद्यालय से 12 वर्षों का पाठ योजना पंजी की छायाप्रति एवं मूल प्रति
उपलब्ध करना है _ _ _आदि । 4 पेज का स्पष्टीकरण था जिसके एक पेज में यह भी लिखा था
जो आपने पहले इसी कथा के अंश में पढ़ा है क्रमाक- 14 में ।
उस दिन साहिबगंज डीएसई जयहिन्द चेम्बर में अकेले भोजन कर रहे थे। भोला अंदर
प्रवेश किया।
भोला- प्रणाम सर ! जयहिन्द सिर हिलाते हुए- कहिए भोला जी क्या हाल है ? भोला
खाली कुर्सी पर बैठते हुए- सर ! एक दिन आप मेरा स्कूल आईए और प्रभार की समस्या का
समाधान कर दीजिए। जयहिन्द- पेपरवा में इसब कैसे आ गया हो, पहिले इ बताओ तो।
भोला- पत्रकार और कुछ हम कुछ शिक्षक लोग शाम को एक जगह बैठते हैं, उसी में
चर्चा हुई थी, बस वे निकाल दिये पेपर में।
जयहिन्द- ओ हमको सिखाते हैं, तेा ये बताईए कि चिठिया का पत्रांक वे कैसे जान
गए?
भोला निरुत्तर हो गया , पर धीरे से- हाॅ सर माॅग लिया था।
जयहिन्द- और आप दे दिए , यही न ! और मुख्यमंत्री संवाद में के दिया? देखिएगा ?
......। अहो राहुलजी मुख्यमंत्री संवाद का फाईल लाओ तो हो।
राहुल कलर्क एक फाईल लाकर दिया और डीएसई जयहिन्द के कहने पर भोला को सब दिखाया
गया । भोला सबकुछ जानता था ही। वह चुपचाप सब देखता रहा। तब तक डीएसई साहब का भोजन
भी हो गया। हाथ-मुहॅ धोकर कुर्सी पर बैठते गए ।
जयहिन्द- जाईए अब वहीं से फैसला होगा। अब हम क्या करेंगे ? आप बहुत आगे बढ़
गए।
भोला- सर! मेरी समझ में जो आई, मैने कर दिया ,लेकिन समाधान तो आप ही न करेंगे।
जयहिन्द- ठीक है जाईए। माथा खराब मत कीजिए।
भोला- प्रणाम सर ! आते हैं सर।
विद्वान लिपिक महोदयों द्वारा स्पष्टीकरण पृच्छादेश की चिठ्ठी थी:-
कार्यालय जिला शिक्षा अधीक्षक साहिबगंज
पत्रांक: 1785/
प्रेषक:- जिला शिक्षा अधीक्षक साहेबगंज।
सेवा में ,
श्री भोला प्रसाद , शिक्षक मध्य विद्यालय उधवा अंचल उधवा साहिबगंज ।
साहिबगंज , दिनांक: 14.9.2017 विषय: WhatsApp
मोबाइल नंबर:_ _ _
द्वारा आपके उच्चाधिचकारी को असंसदीय भाषा का प्रयोग करने के संबंध में
स्पष्टीकरण।
प्रसंग:- आपके द्वारा भेजे गए WhatsApp दिनांक 26-08-2017
का स्पष्टीकरण ।
महाशय,
उपर्युक्त विषय के प्रसंग में आपका व्यक्तिगत ध्यान आकृष्ट करते हुए कहना है
कि प्रासंगिक तिथि को आपने जो अधोहस्ताक्षरी को WhatsApp
पर संदेश भेजा है
उससे यह प्रमाणित होता है कि आप शिक्षण कार्य में अभिरुचि नहीं रखते हैं बल्कि पत्रकारिता
का कार्य में ज्यादा ध्यान देते हैं। इतना ही नहीं आपने जिस भाषा का प्रयोग किया
है इससे आपकी उद्दंडता प्रदर्शित होती है। एक शिक्षक होने के नाते आपको सरकारी
नियमों की ज्ञापांक संख्या 3/आर12617-26 ए 3213 दिनांक 03.1957 एवं 5302 दिनांक
24.04 1962 की भी जानकारी नहीं है कि उच्चाधिकारी को कैसे आवेदन समर्पित किया जाए।
पुनः दिनांक 14.09.2017 को आपने अपने विषययांकित मोबाइल नंबर से मेरे ऊपर झूठे एवं
मनगढ़ंत आरोप लगाकर उद्दंडता का प्रदर्शन किया । ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी
मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। क्यों नहीं आपके विरुद्ध प्रपत्र ‘क’ गठित कर निलंबन
की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए? निम्नांकित बिंदुओं पर अपना स्पष्टीकरण पत्र निर्गत
की तिथि से तीन दिनों के अंदर प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी के माध्यम से
अधोहस्ताक्षरी को भेजें ।
01. आपनेअपने मोबाइल नंबर _ _ _ द्वारा मेरे मोबाइल पर असंसदीय भाषा का प्रयोग
किया ? 02. दिनांक 26.08. 2017 को अवकाश लेकर अधोहस्ताक्षरी कार्यालय आए थे कि
नहीं साक्ष्य प्रस्तुत करें।
03 . अपने स्पष्टीकरण के साथ जब से मध्य विद्यालय उधवा में पदस्थापित हैं तब
से अद्यतन पाठ टीका की अभिप्रमाणित प्रति एवं मूल प्रति भी भेजें।
04. आप मानसिक रूप से स्वस्थ हैं इसके लिए मेडिकल बोर्ड का प्रमाण-पत्र भेजें।
05. प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी से एक शिक्षण कार्य से संबंधित स्वछता
प्रमाण-पत्र भी अपने स्पष्टीकरण के साथ भेजें ।
06. आपने किस अधिकार के तहत प्रेसवार्त्ता किया स्पष्ट करें।
जब तक आपका संतोषजनक स्पष्टीकरण प्राप्त नहीं हो जाता तब तक आप का वेतन स्थगित
किया जाता है ।
विश्वासभाजन हस्ताक्षर अस्पष्ट
14.09.2017
जिला शिक्षा अधीक्षक साहिबगंज
33.
मध्य विद्यालय, उधवा की बिडम्बना
2017 के अगस्त माह की 30 तारीख। आज भोला के उधवा मध्य विद्यालय में सभी शिक्षक
मीटिंग कर रहे थे। इसमें बदलू ,अकरमण,विकरमण, मयमूल,संतु ,शुभ ,उमर, अनल ,ज्ञानी
,मिसीर आदि सभी शिक्षक उपस्थित थे। भोला को इस बैठक का अध्यक्ष बना दिया गया
क्योंकि मिहिर जो हेड मास्टर थे वह रांची चले गए थे। बैठक का विषय बना विद्यालय
में पढ़ाई लिखाई कैसे ठीक से हो। सबसे पहले ज्ञानी जी को बोलते हुए देखा। ज्ञानी
जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात रखी की पढ़ाई लिखाई के लिए शिक्षक का ठहराव बहुत
जरूरी है। इस प्रस्ताव को अकरमण बाबू ने एक कागज में लिपिबद्द किया। इसी बीच बदलू
ने एक विषय रख दी कि क्लास चौथे के बच्चे गणित में कुछ नहीं जानते हैं । क्योंकि
क्लास चौथे में शुभ मास्टर गणित पढ़ाते हैं। इससे शुभ को बहुत गहरी चोट सी लगी और
वह उबल पड़ा । चौथा का बच्चा क्या अचानक चौथा में ही पढ़ने
लगा है। उसकी जड़ तो दर्जा 1,2,3, से ही कमजोर होकर आया है और यह बात सभी
जानते हैं। जो बच्चा आज क्लास 4 में है वह दर्जा 1,2,3 से ही कमजोर हो कर के ही
आये है। इस बात को शुभम ने रखा पर सभा में ऐसा कोई नहीं था जो शुभ की बातों का
समर्थन करता । नतीजा यह हुआ कि शुभ की बातें ऐसे ही उड़ गई। उमर और मिसीर ने भी
अपनी बातें रखीं। कुल मिलाकर के यही देखा गया कि मिहिर मास्टर जो अक्सर विद्यालय
से इधर-उधर चले जाते हैं और उसकी इस कमजोरी को ये सब के सब छिपाने में लगे हुए
हैं। यह बैठक की समाप्ति में ज्ञानी और शुभ दोनों ने भोला को बताया :- “क्या बताएं
सर ये लोग मिहीर को हेड मास्टर बना कर पछता रहे हैं । मिहिर हेडमास्टर को बचाए
रखने के पीछे एक बहुत बड़ी कमाई का राज है सर। करेगा तो करेगा क्या । यही तो फेक्ट
है।” जब सब चले गए तो बदलू और अकरमण विद्यालय के प्रांगण में मौजूद था। भोला ने
अकरमण को बदलू के समक्ष कहा- आप कितनों मीटिंग-उटींग कर लीजिए। कितनों बैठक कर
लीजिए। पढ़ाई के बारे में कितनों सोच लीजिए। शिक्षक के ठहराव के बारे में विचार कर
लीजिए। अपनी बात रख लीजिए । एक बात अच्छी तरह जान लीजिए एक हेडमास्टर ढील तो
विद्यालय जाएगा बिल्कुल हील। आकाश में कितने तारे हैं परंतु सिर्फ एक चंद्रमा से
रात की उजियारी बढ़ जाती है- “एकः चन्द्रः जगत चक्षुः नक्षत्रै किं प्रयोजनम्” ।
तारे टिमटिमाते रहते हैं। ऐसी ही इस उधवा विद्यालय की स्थिति है। टीचर तो बहुत है।
परंतु सभी टिमटिमाते हैं। क्योंकि समर्पण कम दिखावा अधिक है। भोला ने इतना कहकर
अपनी बाईक में हॅसते हुए किक मार दी । यही है वस्तुस्थिति। यद्यपि सब चाहता है कि
विद्यालय में पढ़ाई ठीक से हो । भोला मन ही मन सोचता हुआ घर आ रहा था कि यदि यहाँ
सभी शिक्षक पढ़ाई अच्छा चाहते हैं । समय पर विद्यालय लगे। समय पर छुट्टी हो। सभी
शिक्षकों का शत-प्रतिशत विद्यालय में ठहराव हो। तो आखिर भोला तो यही करना चाहता है
। यही करना चाहता था। फिर सारे के सारे एकत्र होकर षड्यंत्र के तहत भोला की
हेडमास्टरी क्यों नहीं होने दी? वाकई यथार्थ यही है, रियलिटी यही है, वास्तविकता
यही है कि ये चाहते तो हैं सब कुछ ठीक हो पर मूल रूप से नहीं चाहते। केवल दिखावा
करना चाहते हैं। ऐसे दोहरे चरित्र से कभी भी पठन पाठन ठीक नहीं हो सकता। आवश्यकता
इस बात की है कि ये अपनी सोच बदले, नजरिया बदले , अपनी कथनी और करनी को एक करें,
सच को स्वीकार करें, यथार्थ को अंगीकार करें। वगैर यथार्थ को अंगीकार किए ये सही
रूप में अपना कार्य नहीं कर सकते। यही तो हो रहा है आज भोला के उधवा मध्य विद्यालय
में ।
इस बैठक के 3 दिन ही बीते थे। भोला स्कूल इंचार्ज में थे। भोला ने हाउस
निर्माण के लिए सब शिक्षकों से बैठने का आग्रह कर रहे थे पर सबके सब घर जाने को
व्याकुल ।
अकरमण – मैं कुछ नहीं करूँगा ।
विकरमण- जरूरी काम है, जाता हूँ , सर।
अनल- आज छोड़ दीजिए, सर ।
उमर- आज छोड़ ही दीजिए, सर।
कुछ तटस्थ थे। केवल ज्ञानी ही कार्य करने के मूड दिखे। भोला दृढ़ता पूर्वक
रजिस्ट्रर लेकर बैठ गए तो फिर करीब 40 मिनट सबने काम किया । इसी भागमभाग के कारण
इस विद्यालय के अधिकांश बच्चे बुधुवा ही है। जबकि अधिकांश शिक्षकों का निवास
विद्यालय के इर्द- गिर्द ही है। क्या ये ईश्वरीय अवदान के पात्र हो सकते हैं ?
बहुत बड़ी विडंबना यह है कि इस उधवा मध्य विद्यालय में न किसी शिक्षक को
हेडमास्टर से कोई शिकायत है और न हेडमास्टर को किन्हीं शिक्षकों से । दूसरी ओर न
हेडमास्टर को प्रबंधन समिति के अध्यक्ष नीलू बाबू से कोई शिकायत है और न नीलू बाबू
को हेड मास्टर से । प्रबंधन समिति के सभी मेंबर अध्यक्ष के सामने बिल्कुल मौन
स्वीकृति दिए रहते हैं। संजोयिका जी जो कि प्रबंधन समिति की बहुत बड़ी कड़ी है, वह
भी बेपढ़ी है ,कुछ लिख भी नहीं सकती । वह भी साइलेंट मोड में रहती है। और इस तरह
से परम शांति पूर्वक सब कुछ चलता रहता है बिना किसी रोक टोक के इनके बीच पौबारह का
खेल ।दुख अगर है तो विद्यालय के उन बच्चे- बच्चियों को कि इतने सारे शिक्षकों
के बावजूद इन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती। पुस्तक पढ़ना तो बहुत दूर
मिडडे भोजन-भात की बात आती है, तोवह भी इन्हें ढंग से
नहीं मिलता। सिक्स, सेवेन और और एईट के बच्चे-बच्चियाॅ तो भोजन नहीं के बराबर करते
हैं।जो करते
हैं वे न तो सिलसिलेवार ढंग से पंक्तिबद्ध होकर बैठते हैं और न बैठाए जाते
हैं। येन केन प्रकारेण भोजन प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है।
34.
उस समय रात्रि के 9:00 बज रहे थे। भोला के मोबाइल में वंदे मातरम का रिंगटोन
बजा। भोला नित्य की तरह छत पर आसन जमाए हरमोनियम में संगीत का रियाज कर रहे थे ।
बेटी संपा मोबाइल ले जाकर पापा को दे दी। भोला ने देखा कि यह नंबर सेव नहीं है।
कोई नया नंबर है। फोन रिसीव किया - हेलो, कौन ? उधर से आवाज आई- तुम भोला हो ?
भोला- हाँ, आप कौन हैं भाई ? आवाज- हम मंगलू मिसिर बोला रहे हैं। पहचाने हमको ?
भोला- कौन मंगलू ? आवाज- अबे, अनजान बनते हो । मिसिर मास्टर का भाई, जो तुम्हारे
ही साथ हैं, मध्य विद्यालय उधवा में । भोला- हाँ क्या हुआ ?कहिए । आवाज- आज तुम
मेरे भतीजा के साथ बहुत अपमानजनक व्यवहार किए हो। दिन भर वह बच्चा खाना नहीं खाया।
किसी से बात नहीं किया। वह मेरा इकलौता भतीजा है। उसको कुछ हो जाता तब? कल
तुम्हारी विधि उतारी जाएगी । पत्रकार आएगा । स्कूल में कल पुलिस भी आएगी ।अच्छी
तरह सबके सामने तुम्हारी विधि उतारी जाएगी । अभी इसीलिए फोन कर रहे हैं ताकि तुम
रात भर ठीक से सो न सको । कल आना स्कूल सब कुछ सामने हो जाएगा। भोला- ऐसी क्या बात
हो गई भाई?अब थोड़ी बहुत डांट फटकार नहीं करेंगे तो बच्चे को पढ़ाना भी तो संभव
नहीं है । थोड़ा शोर कर रहा था, सभी बच्चे को डांटा गया , अब अपने ऊपर कोई ले ले
तो मैं क्या कर सकता हूं _ _ _ । और मुझसे कोई गलती हो गई है तो मैं इसके लिए माफी
चाहता हूँ । आवाज- माफी होगा याक्या होगा कल सबके सामने होगा। यह कहकर उधर से
फोन काट दी गई। इतनी सारी बातें संपा पापा के पीछे सुन चुकी थी । तुरंत गई और मम्मी
को सब बता दी। बेटी मिष्टू, बेटा रवि भी दीदी
के साथ सुन लिया था। घर में सभी भयभीत हो गए थे कि पापा को किसी ने मोबाइल फोन पर
मारने पीटने की धमकी दी है । भोला की पत्नी गीता पुरी तरह भयाक्रांत हो गई। बात
क्या है , जानने के लिए सब व्याकुल हो गए थे। सब भोला को घेरे थे । भोला ने कहा कि
फोन करने वाला आदमी मेरा जाना पहचाना है और वह है मिसिर मास्टर का भाई मंगलू मिसिर
। ‘मंगलू मिसिर’ यह नाम सुनते ही गीता, संपा , मिष्टू, रवि सभी जान गए। गीता उसे
पहचानती थी। बोली- “अरे बाबा! वो तो बहुत झगड़ालू प्रकृति का आदमी है। उससे दूर
रहने में ही भलाई है। मुझे तो ऐसे लोगों से डर लगता है, जी। तुम्हरा स्कूल ठीक
नहीं है जी। तुम तो उधवा हाई स्कूल में डिप्टेशन में ही शांति से था। मैं कहती हूँ
कुछ पैसा-कौड़ी दे दा के उस स्कूल से बदली करवा लो , पर तुम भी कम जिद्दी नहीं हो।
कुछ हो गया तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।” पति-स्नेह के कारण गीता डरी हुई थी।
परन्तु भोला ने सबको आश्वस्त किया- “कहने से करना कहीं कठिन है, घबराओ मत, ऐसा कुछ
भी नहीं होगा”।
फिर स्कूल की आज के क्लास की वह
सामान्य सी बातें सबको सुनाई । अक्सर प्रतिदिन जैसे पढ़ाने-लिखाने के दरमयान
शोरगुल के कारण बच्चों को थोड़ी-बहुत फटकार लगाई जाती ही है। पढ़ाने समय बात कर
रहाथा तो उसके भतीजे को
भी औरों की तरह डाॅटा था, और कुछ खास तो नहीं । इसे तिल को ताड़ बनाने के पिछे
रहस्य कुछ और है। भोला को फैक्ट अच्छी तरह समझ में आ गई कि यह डराने व हतोत्साहित
करने का उनके स्कूल के ही कुछ चालबाज शिक्षकों का षड्यंत्र है । उन्होंने
सबको समझाया।
एक दिन की बात है, मनोरम मुखिया और
भोला उपस्थिति पंजी का फोटो ले रहा थे, मिसिर पारा मास्टर के डूप्लीकेट हाजरी का।
इसे कुछ शिक्षकों ने देखा लिया था। अकरमण हाजरी बनाया था। पन्द्रह दिनों का , जब
मिसिर मास्टर टूर में गए थे। अकरमण सभी पारा मास्टर का मास्टर माईंड था और
डूप्लीकेट हाजरी बनाने का उस्ताद। भोला को दबाना उनका और बदलू सहित मिसिर आदि का
मुख्य मकसद बन गया था। इसलिए बच्चे के माध्यम से वह भोला पर मनगढ़ंत आरोप मढ़ने का
प्रयास कर रहा है था। द्वेष ने इन्हें शिक्षकत्व के गरिमामय मर्यादा से नीचे गिरा
दिया था । वास्तव में पुरूषार्थ करने वालों के साथ तो ऐसा होता ही है। यही सब डर-
भय के कारण ही तो आदमी, आदमी न रह कर खिलौना बन जाता है। कुछ कर नहीं पाता है।
भोला ने उमर को फोन लगाया। उन्हेंसारी बातों से अवगत कराया। उमर कन्नी काट-काट
कर बातें कर रहा था क्योंकि वह मिसिर का पड़ोसी था और इनके पिता के साथ उनके पिता
से पुराना बैर था , इसलिए उनके विपक्ष में कुछ बोलना वह अनुचित समझता था। सिर्फ
मोबाइल नंबर दिया और कहा- सर ! आप स्वयं मिसिर मास्टर जी से बात कर लीजिए ।
मोबाइल नंबर लेकर भोला ने मिसिर मास्टर साहब को फोन लगाया। इस समय तक समय
11:00 बज गए थे। मिसिर मास्टर सो गए थे। दो-तीन बार रिंग होने के बाद मिसिर मास्टर
ने फोन उठाया और पूछा- कौन इतनी रात को फोन कर रहे हैं ? भोला- मिसिर बाबू ! मैं
भोला बोल रहा हूँ । मिसिर - हां बोलिए सर क्या बात है? भोला- मिसिर बाबू! मुझसे
कौन-सी गलती हो गई ,जो आपके छोटे भाई मंगलू मिसिर मुझे डांट फटकार कर रहे हैं ? और
कह रहे हैं कि कल विद्यालय में आप की विधि उतारी जाएगी । यदि मुझसे कुछ गलती हो गई
है मिसिर बाबू तो हमें क्षमा कर दीजिएगा। पढ़ाने-लिखाने के दरमयान बच्चे को थोड़ी
बहुत डांट फटकार करना ही पड़ता है । यह तो आप भी जानते हैं। थोड़ा उनको समझा
दीजिएगा, मिसिर बाबू ।
मिसिर- आप निश्चिंत होकर सो जाइए। कल कुछ भी नहीं होगा। हम लोग घर में विचार
कर लिए है। ठीक है , भोला सर ! आप शांति से सो जाइए। कल आपके बिरूद्ध कुछ भी नहीं
होगा। इतना कहकर मिसिर मास्टर फोन रखने के लिए कहा।
भोला - ठीक है।
भोला ने फोन काट दिया। सभी सोना चाहता रहे थे। इस समय पति-स्नेह से सनी गीता
को और पितृ-प्रेम से सने संपा- मिष्टू - रविसंतान-त्रय को भी शान्ति मिली। परंतु
गीता ने भोला को सजेस्ट किया - मुखिया और नीलू बाबू को खबर कर दो। हो सकताहै मंगलूहंगामा खड़ा
करे।
भोला -अच्छा सवेरे देख लेंगे। तुम चिंता मत करो । सो जा माई डियर।
अपने कर्म पर भरोसा था भोला को । आत्मविश्वास था। ग्रामीण , छात्र-छत्राएॅ
उनके साथ अवश्य होंगे । क्योंकि उन्होंने विद्यालय में अपना अमूल्य योगदान दिया था। ऐसा कोई
नहीं है जो उन पर उंगली खड़ा करे और मिसिर मास्टर एवं उसके भाई मंगलू मिसिर पर
भरोसा करे और उनकी बातों पर पड़े। अकरमन मास्टर भी बेबस हो जाएगा। उनके व्यक्तित्व
के सामने सभी बौने हो जाएंगे । मंगलू मिसिर को भला उधवा में कौन नहीं जानताहै। उनकी पूरी जिंदगी
420 की रही है। मेरा तप-बल
ही मेरा साथ देगा। क्रिया सिद्धि सत्वे भवति महतां न उपकरणे -- ऐसा सोचते हुए भोला
की आॅखें लग गई।
दूसरे दिन सुबह 6:00 बजे भोला मनोरम मुखिया जी को सारी बातें बता दी कि वह समय
पर विद्यालय पहुंचे। उधर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष नीलू बाबू को भी बता दिया गया।
भोला समय पर स्कूल पहुंचा। परंतु मंगलू मिसिर का कहीं कोई अता-पता नहीं था। नीलू
बाबू के आते ही भोला उनको अवगत करा दिया कि उधर से कोई नहीं दिखाई दे रहा है इसलिए
इस पर और कुछ भी टीका-टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है। कुछ देर बाद मनोरम बाबू
जी आ गए । उन्हें भी इस बात से अवगत करा दिया गया ।
इस प्रकार मामला शांत हो गया। परंतु
भोला जैसे कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक को बहुत बड़ा सबक मिल गया। 28 वर्षों की नौकरी में
इसी प्रकार अंतू नेता ने भी उसे दबाने का षड्यंत्र रचा था। परंतु पूरे क्लास में
वह भी मुंह के बल गिरा था। जब सभी बच्चे-बच्चियाॅ एक स्वर में भोला के पक्ष में
खड़ा हो गये थे। वह अपने को अच्छा खासा नेता मानता है और उधवा के लोग उसे नेताजी
कह कर के पुकारते हैं । पर ईर्ष्यालु इतने कमजोर होते हैं कि वे ईर्ष्या की आग में
खुद जल जाते हैं। दूसरे को थोड़ा परेशान जरूर करते हैं परंतु उसका प्रभाव सीमित
होता है। भोला के सेवाकाल में यही दो व्यक्ति थे, जो बच्चों को
मोहरा बनाकर उसे नीचा दिखाने का कु-प्रयास किया था। इनके अतिरिक्त आज तक किसी
बच्चे के माता-पिता या अभिभावक ने भोला के ऊपर उंगली खड़ी नहीं किया। सबके दिल में
भोला के प्रति श्रद्धा है। और हो भी तो क्यों नहीं। जब व्यक्ति मनसा-वाचा-कर्मणा
एक हो जाताहै तब वह व्यष्टि का न होकर समष्टि का हो जाता
है। उनके स्वयं के जीवन का ही लोकार्पण हो जाता है। इतना होने के बावजूद भी
अच्छाईयों और बुराईयों के बीच हमेशा द्वंद्व रहता ही है। बुराईयों को अच्छाईयां
अच्छी नहीं लगती। रावण को राम कभी अच्छे नहीं लगे तो कंस को कृष्ण । अर्थात्
बुराईयों को अच्छाईयां हजम नहीं होती। अवसर बीत जाने के बाद इस रहस्य को मानव मन
समझ पाता है। काश ! अगर समय रहते समय की पहचान हो पाती।
35. जनसुनवाई
मध्य विद्यालय उधवा के ही शिक्षक ज्ञानी अपने बरामदे में बैठकर सत्यार्थ
प्रकाश पढ़ रहे थे। भोला उसी होकर गुजर रहे थे ।ज्ञानी को देखकर रूक गए । ज्ञानी
तुरंत एक कुर्सी मंगाया और भोला को बैठने कहा। दोनों बैठ कर बातें करने लगे।ज्ञानी
ने बगल मे रखे अखबार को उठाया , फिर पढ़ कर सुनाया भी - 2017 के सितंबर माह के
मध्य में साहिबगंज के उपायुक्त डॉ. शैलेन्द्र कुमार ने एक आदेश जारी किया - “
झारखंड सरकार, उपायुक्त कार्यालय साहेबगंज।
आम सूचना
साहिबगंज जिला अंतर्गत जिला शिक्षा पदाधिकारी, जिला शिक्षा अधीक्षक ,प्रखंड
संसाधन केंद्र, संकुल संसाधन केंद्र के सभी पदाधिकारियों एवं अन्य कर्मी गण तथा
सभी शिक्षक एवं शिक्षक संघ को सूचित किया जाता है कि जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं
जिला शिक्षा अधीक्षक सहायक कार्यालय से संबंधित लंबित मामले यथा पेंशन, पदोन्नति
,वेतन पुनरीक्षण, सेवा सत्यापन, प्रमाण-पत्रों का सत्यापन एवं अन्य बिंदुओं से
संबंधित शिकायतों के त्वरित निष्पादन हेतु अधोहस्ताक्षरी की अध्यक्षता में उपविकास
आयुक्त साहिबगंज, अपर समाहर्त्ता साहिबगंज की उपस्थिति में दिनांक ____ 2017 को
10:00 बजे सिद्धू कान्हू सभा भवन में जनसुनवाई निर्धारित की गई है, अनुरोध है कि
जनसुनवाई में अपना-अपना पक्ष रखने हेतु आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
हस्ताक्षर अस्पष्ट
डॉ. शैलेन्द्र कुमार
भारतीय प्रशासनिक सेवा उपायुक्त साहिबगंज”
‘इस प्रकार का आदेश इससे से पहले कभी नहीं सुना ज्ञानी बाबू” भोला ने सहजता से
कहा।
अखबार समेटते हए ज्ञानी ने आगे कहा – बेशक सर ! साहिबगंज जिले में कभी नहीं
निकला था कि एक उपायुक्त महोदय अपनी अध्यक्षता में शिक्षकों की समस्याओं की
जनसुनवाई करें। । वाह्ट्सेप के माध्यम से शिक्षा विभाग से जुड़े सभीपदाधिकारियों
एवं कर्मियों को शीघ्र ही यह खबर मिल गई । इसके बावजूद मनोर जो कि अखिल झारखंड
प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला महासचिव थे , शीघ्र ही उन्होंने व्यक्तिगत रूप से भी
शिक्षकों को इसकी खबर दी कि वे अपनी-अपनी समस्याओं को लेकर होने वाली जनसुनवाई में
उपस्थित हों और अपने विषय को उपायुक्त महोदय , डॉ. शैलेन्द्र और नम्रता सहाय उपविकास महोदया
के समक्ष रखें। ऐसे तो जिले में और भी शिक्षक संघी नेता थे जैसे - बुखारी बाबू
,रायबहादुर बाबू , बिनोदा बाबू, उमेश झा बाबू आदि परंतु अजप्ता से जुड़े मनोर ,
सागुनन , गणेश्वर आदि की तरह रुचिकिन्हीं ने नहीं दिखाई।”
गंभीर स्वांस लेकर भोला ने कहा - वास्तव में लोकसंग्रह और लोक संस्कार का
पुनीत कार्य में सबकी रूचि एक जैसी नहीं होती , ज्ञानी बाबू । कुछ की रूचि केवल
वाह्य दिखावे मात्र की होती है, तो कुछ की वर्चस्व कायम करने की, या यूं कहें कि
लोकेषणा की निकृष्ट भावना की।
मुस्कुराते हुए ज्ञानी ने कहा - और कुछेक तो केवल अर्थोपार्जन की लिप्सा से
दफ़्तर में मंडराते रहते हैं, जैसे लगता है कि इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य ही है-
अर्थोपार्जन, जबकि वे हैं शिक्षक के गरिमामय पद में ।
भोला मोबाइल में वाह्ट्सेप मेसेज देखते हुए बोले – कई शिक्षक संघ है, पर
अजप्ता के नेताओं ने तो उक्त समाचार कोवाह्ट्सेप के माध्यम से जिला के बदलाव दल
एवं सबल शिक्षक दल में मेसेज तो कर ही दिया, बावजूद
इसके इन्होंनेव्यक्तिगत रुप से भी बहुतों को फोन किया। मुझे भी मनोर महासचिव ने
व्यक्तिगत नंबर पर वाह्ट्सेप में मैसेज किया। प्रमंडलीय अध्यक्ष गणेश्वर मास्टर ने
भी मुझको खबर दी कि आप अपनी समस्या को लेकर अवश्य ही जन सुनवाई के दिन आवें और वह
भी अपने सभी दस्तावेज के साथ।
ज्ञानी- एबसोल्यूटली राईट सर! जिले में इस प्रकार से एक माहौल बन गया है कि
जिला शिक्षा अधीक्षक, श्रीजय हिंद की भ्रष्टाचार की नीति के विरुद्ध उपायुक्त
महोदय ने इस प्रकार का कदम उठाया है । एक ओर उपायुक्त महोदय की सराहना हो रही है
तो दूसरी ओर जिला शिक्षा अधीक्षक जय हिंद की भर्त्सना । क्योंकि उनकी कार्यशैली से
जिले भर में कोई भी सज्जन खुश नहीं थे। उपायुक्त डा. शैलेन्द्र कुमार महोदय के
समक्ष बहुत सारे शिक्षक-शिक्षिकाओं ने शिकायत की थी, इससे से तंग आकर यह कदम उठाया
गया था। इसमें अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ की अहम भूमिका थी।
भोला ने कुर्सी छोड़ते हुए कहा था- ईश्वरेच्छा बलीयसी, ज्ञानी बाबू !”
शाम के 5:00 बज चुके थे भोला अपने घर को चल दिया।
36.
निर्धारित तिथि एवं समय के अनुसार साहेबगंज जिले के सिद्धू कान्हू सभा भवन के
इर्द-गिर्द शिक्षक एकत्रित होने शुरू हो गए थे। भोला भी निर्धारित समय पर पहुँच
चुका था। शिक्षक संघ के नेता बुखारी बाबू भी अपनी मंडली के साथ चर्चा में व्यस्त
दिख रहे थे। भोला ने उनको प्रणामी दी। शिक्षकों में आपसी वार्तालाप चल रहा था ।
इसी बीच दिखाई पड़ा कि जिला शिक्षा अधीक्षक श्री जय हिंद भी पहुॅच गए । परंतु
हैरतअंगेज बात यह थी कि टोटो गाड़ी में जय हिंद बाबू स्वयं साउंड सिस्टम लेकर
पधारे थे । उतारने के लिए कोई शिक्षक हाथ नहीं लगा रहे थे। सब के सब खड़े-खड़े
बातें कर रहे थे और कुछ यों ही देख रहे थे, जैस उन्हें जानते ही नहीं । सिस्टम
रखने के लिए जब उन्होंने सभा भवन के दरवाजे की ओर देखा तो वह बंद था। फिर उनके
अंदर चाभी मंगाने की बेचैनी दिखाई दी। जोर से उन्होंने पुकारा भी—“अरे चाभी भी
नहीं आया है, अजीब बात है !” अभी तक धीरे-धीरे शिक्षक डीएसई साहब के इर्द-गिर्द
एकत्रित होना शुरू हो गये थे। भोला ने भी उनको प्रणाम किया। सभा भवन का दरवाजा खुल
गया। फिर धीरे- धीरे शिक्षक गण सभा-भवन में बैठने लगे । भोला अपने चहेते अजप्ता के
महासचिव मनोर की तलाश में थे। कुछ ही देर बाद मनोर बाबू और सगुनन भी पहुॅच गए। फिर
भोला ने उन लोगों के समक्ष अपनी बातें रखीं, दोनों को आवेदन की एक- एक प्रति भी
दी। धीरे-धीरे सभा भवन शिक्षक वृंदों से खचाखच भर गया। करीब 11 बजे उपविकास महोदया
नम्रता सहाय पहुँच गईं। 10 मिनट बाद उपायुक्त डॉक्टर शैलेंद्र कुमार भी पधार गए।
शिक्षक- शिक्षिकाओं ने उनका खड़े होकर स्वागत किया। इसके पश्चात् सभा की कार्यवाही
प्रारंभ हो गई। सर्वप्रथम जिला शिक्षा अधीक्षक श्रीजय हिंद ने सभा में उपस्थित
पदधिकारियों, संघ के अधिकारियों एवं शिक्षकों का स्वागत व अभिनंदन किया। उपविकास
महोदया नम्रता सहाय ने भी उपस्थित सभी कर्मियों के समक्ष सारगर्भित उद्बोधन
प्रस्तुत कीं। इसके पश्चात् उपायुक्त महोदय के कार्यक्रम-उद्घाटन-भाषण के बाद
कार्यक्रम आरंभ हुआ । शिक्षकों के शिकायतीओ-आवेदन-पत्र जमा
होने लगे। शीघ्र ही करीब दो सौ आवेदन कलेक्ट हो गया ।
सर्व प्रथम शिक्षक संघ के जाने-माने नेता बुखारी बाबू अपना वक्तव्य प्रस्तुत
करने के लिए माईक पर उपस्थित हुए। अपनी सप्त-सूत्री माँगों के लिए वे करीब 17 मिनट
तक ले चुके थे। उपायुक्त महोदय उनकी ओर बार-बार देख रहे थे। सुपन मास्टर जो भोला
के बहुत अच्छे दोस्त थे, बगल में ही बैठे थे, उन्होंने भोला से कहा- “बुखारी बाबू
कितना समय ले रहे हैं, यह ठीक नहीं है,सर ! जैसे लगता है यह सब का ठेका ले चुके
हैं।”
तभी देखा गया कि उपायुक्त महोदय माइक्रोफोन मांग रहे हैं। ऑपरेटर ने उपायुक्त
महोदय को माइक्रोफोन दे दिया। माइक्रोफोन लेते ही उन्होंने कहा “सॉरी मास्टर साहब!
आप अपना वक्तव्य पेश कर चुके हैं। अब प्रत्येक शिक्षकों को अपनी- अपनी समस्या
स्वयं रखने दें ” बुखारी बाबू सॉरी सर, कह कर मंच से नीचे उतर गए। तत्पश्चात जमा
लिए गए आवेदनों के अनुसार मंच से शिक्षकों के नाम पुकारे जाने लगे और शिक्षकों ने
बारी-बारी से अपनी समस्याएॅ रखनी आरंभ कर दी। जिला शिक्षा अधीक्षक को उनका यथोचित
उत्तर देने के लिए उपायुक्त महोदय ताकीद करते थे और उन्हें जवाब देना पड़ता था।
कहीं वे अपनी गलती स्वीकार करते, कहीं अनाप-शनाप जवाब देते । बहुत सारे प्रखंड
शिक्षा प्रसार पदाधिकारी भी इस घेरे में आ गए और उन्हें भी बार-बार उपायुक्त महोदय
के समक्ष उपस्थित होकर शिक्षकों की समस्या का जवाब देना पड़ता था। सनसनीखेज जवाब
से सभा भवन तालियों से गूंज उठता था । भोला की बारी आई। उन्हें भी माइक्रोफोन मिला।
उन्होंने कहा “सर 2014 से ही मैं वरीयता का आधार दिखाते हुए अपने मध्य विद्यालय उधवा में प्रभारी
प्रधानाध्यापक के लिए जिला शिक्षा अधीक्षक महोदय को आवेदन देता आया हूँ , परंतु
कभी भी मेरे आवेदन पर ध्यान नहीं दिया, सदैव अनदेखी की गई । जब मैं एक बार व्यक्तिगत
रूप से इनसे मिला, तब कहीं मुझे प्रभारी प्रधानाध्यापक का आदेश मिला। परंतु मेरे
विद्यालय के प्रधानाध्यापक, श्रीबदलू महोदय ने 41 दिनों तक डीएसई साहब के आदेश की
अवहेलना करते रहे और मैं जिला शिक्षा अधीक्षक महोदय को लिखता रहा, परंतु इस पर
इनका कोई ध्यान नहीं गया। 42 वें दिन डीएसई श्री जय हिंद और साथ में उधवा के बीईईओ
बोधन कुमार , जिले के जाने माने शिक्षक संघ के नेता श्री बुखारी बाबू और सिन्हा
मास्टर विद्यालय पहुँचे थे। ये चारों मिलकर मनगढंत ईशू सबके सामने रख दिया कि 2
शिक्षकों में विवाद था और इसी कारण बीए प्रशिक्षित शिक्षक मिहिर को प्रभार दिया
गया ।” इतना कहना था कि अपर समाहर्त्ता श्री बिनमोल सिंह, महोदय बीच में भोला को
टोक-रोक दोनों करने से न चुके , जिन्होंने कि मुख्य मंत्री जन संवाद मे श्री जय
हिन्द के साथ षड्यंत्र रचकर भोला के विषय को उलझा दिया था, टालते हुए कहा था
“अच्छा-अच्छा चलिए हम इस विषय को देख लेंगे , वही मुख्य मंत्री संवाद का मेटर है
न, डी एस ई साहब ? ” और माइक्रोफ़ोन जिला शिक्षा अधीक्षक महोदय की ओर बढ़ा दिए थे
। पूर्वाग्रहग्रसित श्री जय हिन्द विषय को मोड़ते हुए कहने लगे “चुंकि बीए
प्रशिक्षित शिक्षक सबसे सीनियर हैं, इसलिए उनको
प्रभार दे दिया गया था ।” भोला अपनी बात जोरदार शब्दों में रख नहीं पाए क्योंकि
उनके ऊपर एक मानसिक दबाव था, स्पष्टीकरण का । इनसे मेडिकल बोर्ड का प्रमाण-पत्र
,12 वर्षों की पाठ योजना पंजी, आदि की मांग की गई थी और साथ में इनका वेतन बंद
करने का आदेश था। इसके बचाव पक्ष में शिक्षक संघ अजप्ता के महासचिव मनोर मास्टर,
डी एस ई पर दबाव बनाए हुए थे कि, “इस प्रकार का आदेश निकालना शिक्षक को प्रताड़ित
करने जैसा है। इस आदेश को यदि वापस नहीं लिया गया तो जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय
के बहुत सारे मुद्दे उठाए जाएंगे ।” फलतः, भोला भी अपनी जगह पर बैठ गए ।
कोपमय हर्ष से हर्षित डीएसई साहब ने यह भी कह दिया कि “अब तो मध्य विद्यालय
उधवा बढ़िया से चल रहा है” , इस विषय पर भोला के पास कहने की बहुत-सी बातें थी कि
नए प्रभारी प्रधानाध्यापक, मिहिर मास्टर विद्यालय ठीक से नहीं चला पा रहे हैं ,
अपितु वे तो विद्यालय से गायब भी रहते हैं, अपने कंपीटीशन की तैयारी में व्यस्त
रहते हैं, उपस्थिति पंजी तक छिपा कर रखते हैं और दूसरे दिन प्रकट करते हैं, बैक
डेट से हाजरी बनाते हैं, तो कभी एडवांस। अतिरिक्त आकस्मिक अवकाश भी ले चुके हैं,
परिवीक्षा अवधि में रहने के कारण 3 वर्ष की सेवा बगैर पूरी किए न तो मेडिकल मिल
सकता है और न ही अर्जित अवकाश तो फिर किस प्रकार बिना मेडिकल और बिना अर्जित अवकाश
के ये पूरा वेतन ले चुके हैं? , अभी तक हाउस का निर्माण (प्रार्थना सभा का आकर्षक
रूप) भी नहीं कर पाए हैं। फिलहाल दो एनआरबीसी शिक्षक नियुक्त हैं। एक अजयसिंह और
दूसरे रुबिया , जोकि ड्रॉप आउट बच्चे को पढ़ाने के लिए बहाल किए गए हैं। परंतु
यहां होता यह है कि बेफिक्रे शिक्षक बंधु बेफिक्री में रहते हैं, या तो टेबल टाकिंग करते हैं। या घर में रहते
हैं। इन लोगों के अकर्मण्यता में इन दोनों एनआरबीसी के शिक्षकों को मिहिर
हेडमास्टर क्लास भेज देते हैं। ड्रॉपआउट बच्चे के क्लास का कहीं कोई नामोनिशान भी
नहीं है। बांकी शिक्षक भी तटस्थ देखते रहते हैं , इत्यादि। परंतु इन बिन्दुओं को
सबके सामने रखना भोला जैसे शिक्षक के लिए उचित नहीं था, अपने आपको महत्वहीन करने
जैसा था और इसलिए उन्होंने इन बिन्दुओं को सदन के सामने नहीं रखा । परिणाम स्वरुप
भोला का विषय दमदार नहीं हो पाया , लटका ही रह गया। परन्तु, भोला को कोई गम नहीं
है , वह सफलता-असफलता उभय स्थिति में अनासक्त है।
एस आर पी दीन बंधु मास्टर, मध्यान्ह भोजन के चावल के वितरण में सुधार संबंधी
तथ्य एवं 24 शिक्षकों के अवैध तरीकेसे हुए प्रमोशन की बात रखीं। इस विषय से सभा
भवन स्तब्ध हो गया था। इनके प्रत्युत्तर में बुखारी बाबू ने ‘चाटुकार’ शब्द का
प्रयोग कर दिया था । सभाध्यक्ष की उपयुक्त समझ रखने वाले उपायुक्त महोदय बीच में
टोक दिए थे कि “आप एक शिक्षक हो करके इस प्रकार अमर्यादित शब्द का इस्तेमाल करते
हैं। यह आपको शोभा नहीं देती।” इस पर बुखारी बाबू ने उपायुक्त महोदय से माफ़ी भी
मांगी थी। तालियों की गड़गड़ाहट से सभा भवन गूँज उठा था।
जिला शिक्षा अधीक्षक के साथ एक दिलचस्प विवाद फूल पाराशर मास्टर का था,
योग्यता बढ़ाने को लेकर। साहब फूल मास्टर को परमिशन नहीं दे रहे थे। लटकाए हुए थे
,मानो अकर्मण्यता ने रस्सियों की भाॅति उसे चारों तरफ से जकड़ रखा था। उपायुक्त
महोदय ने इसे अनावश्यक टालमटोल कर शिक्षकों को परेशान करने का विषय बताया।
अंततोगत्वा डी एस ई साहब को अपनी गलती माननी पड़ी और शीघ्र परमिशन देने का आश्वासन
दिया। बस क्या था, सभा भवन गड़गड़गड़गड़ तालियों से गूँज उठा ।
अपने समापन आशीर्वचन में उपयुक्त महोदय ने उपस्थित कर्मियों को यथोचित
मार्गदर्शन किया, जिसमें कर्तव्य
परायणता की सीख थी। सरकार के सर्कुलरको ध्यान में रखते हुए कार्य करने की हिदायत
दी गई थी। जिला शिक्षा अधीक्षक और प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी को खास कर यह
हिदायत दी गई कि शीघ्र किसी भी शिक्षक का वेतन बंद नहीं कर सकते । पहले आप
स्पष्टीकरण पूछें, स्पष्टीकरण न देने या संतोषजनक न होने की स्थिति में ही ऐसा
किया जा सकता है।
जनसुनवाई के दूसरे ही दिन क्रमशः दैनिक समाचार पत्र- ‘दैनिक जागरण’ और
‘हिन्दुस्तान’ में मोटे- मोटे अक्षरों में खबरें छपी थी- ‘समस्याओं के निराकरण को
मांनिटरिंग सेल का होगा गठन’ , ‘शिक्षकों ने लगा दी शिकायतों की झड़ी’ ।
विद्यालय में टीफीन का समय था, भोला, ज्ञानी, संतू शुभ, मयमूल और अनल आदि
मास्टर अखबार में छपे समाचार की समीक्षा कर रहे थे। ज्ञानी मास्टर ने गंभीर ज्ञान
का बखान किया था- “मदमत्त गजराज के माथे में महावत अंकुश न लगाए तो वह उछृंखल हो
जाता है, सर ”! यह सुन सबने कहा था - “ वाह भाई वाह! कमाल की समीक्षा की आपने भाई,
ज्ञानी” । ‘ एक होता है साईबर अटैक लेकिन यह तो उपायुक्त महोदय का एडमिनिस्ट्रेटिव
अटेक है, डी एस ई महोदय की कार्य प्रणाली पर, सुधार व आत्मावलोकन के लिए’ भोला ने
अपने भोलेपन से कहा था ।
सभी शिक्षक- बन्धु हॅसते हुए यही सब चर्चा करते हुए चाय पीने चले गए ।
37.
रात्रि के 9:00 बज चुके थे। दोनों प्राणी भोला और गीता सोने की तैयारी में थे।
रोज की भांति लेटे-लेटे कुछ बातें करने लगे। गीता बोली ‘ क्या हुआ यह सब लड़ झगड़
के। जय हिंद को 5000 देकर । क्या मिला, अंततः हेडमास्टरी तो तुम्हें नहीं मिली !’
अच्छा हुआ । कैसे ?
भोला करवट लेकर सुनाने लगा - ‘पूस की रात’ प्रेमचंद की एक कहानी है।
इसमेंहल्कू किसान है जो खेत की रखवाली में रातभर ठंड से कांपता रहा । आम के पत्ते
का अलाव लगा कर शरीर को गरम किया था। भोर-भोर को गाढ़ी नींद आ गई। बेला उठ गया था।
फिर भी नींद नहीं टूटी। खेत नीलगाय रौंद गई। सुबह उनकी पत्नी मुन्नी आई। देखती है,
खेत में फसल खतम हो चुका है। उसका आदमी बेफिक्र सोया हुआ है। मुन्नी उसे उठाती है।
हल्कू अकचका कर उठता है। दोनों मिलकर खेत देखने लगते हैं। दोनों काफी चिंतित होते
हैं। मुन्नी कहती है- फसल तो नष्ट हो गया, फसल बोने में जो खर्च हुआ ,उस का कर्ज
कैसे चुकाओगे ? इस पर हल्कू ने कहा था- मजदूरी करके चुका दूंगा। मजदूरी करके। अच्छा
हुआ कि फसल नष्ट हो गया। ठंड में खेत आना नहीं पड़ेगा ।ठंड से तो बचेंगे। हां ठंड
से तो बचेंगे। यही बात है मेरी गीता। हमें हेडमास्टरी नहीं मिला अच्छा हुआ। कम से
कम हम टेंशन से तो बचे। इस हेडमास्टरी में इतना टेंशन है कि अपना जमीर खत्म हो
जाती है। सब की जी हुजूरी करनी पड़ती। चाहे स्कूल का मास्टर हो ,चाहे प्रबंधन
समिति या चाहे प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी हो या डीएसी जय हिंद ।सबकी जी
हुजूरी करते-करते अपना व्यक्तित्व बिल्कुल नीचे गिर जाता है। इससे तो मैं बचा ।
हल्कू की तरह। वह ठंड से बचा और मैं अपने व्यक्तित्व गिरने से बचा। क्योंकि मेरे
स्कूल में स्थानीय पारा शिक्षकों का जबर्दस्त शिकंजा है। इनमें कुछ नेता हैं,
जिनकी ऊपर तक पहुँच है । इन्हें पढ़ाई-लिखाई से मतलब नहीं के बराबर है ये
हेडमास्टरों को कठपुतली बनाकर रखते हैं, कमाने हैं, ऐसी स्थिति में मैं भी अपना व्यक्ति
खोकर अस्तित्वहीन हो जाता । गीता गंभीर श्वांस लेते हुए बोली- बिल्कुल ठीक कहते हो
जी, और फिर दो नों सो गए। मानो उनका कुछ भी नहीं खोया, क्योंकि जमीर जो बची ।
अनल मास्टर का साला प्रकाश, अपने बरहरवा वाले घर के एक कमरे में लेटा हुआ था।
बगल के कमरे में मिहिर मास्टर और उसका एक दोस्त बात कर रहे थे। मिहिर अपने दोस्त
को सुना रहा था –‘मैं 1 दिन स्कूल नहीं आया था, रजिस्टर छुपा दिया था, तो जानते
हैं भोला ने एक सफेद कागज में सभी शिक्षकों का हस्ताक्षर करवा लिया और मेरे जगह
मेंआकस्मिक अवकाश बैठा दिया। मैं दूसरे दिन विद्यालय आया, रजिस्टर निकाला और मैंने
भी और सभी शिक्षकों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की बैक डेट से और वर्तमान का । उसके
बाद भोला मुझे वह पेपर ला कर देता है, जिसमें कि सबका हस्ताक्षर लिया था और मेरा
आकस्मिक अवकाश बैठाया था। बताइए तो, जब सब का हस्ताक्षर हो ही गया तो वह कागज देने
की क्या आवश्यकता थी। इसी गुस्से से तो मैंने उसके पाठ टिप्पणी पंजी में हस्ताक्षर
नहीं किया। अब देखते हैं वह क्या करता है !’
मिहिर का दोस्त कोई प्रतिक्रिया दिए बिना सुन रहे थे, मानो वे मौन समर्थन कर
रहे थे कि भोला मास्टर ने जो किया वह गलत नहीं है। प्रकाश भोला का नाम सुनकर रह
नहीं पाया क्योंकि वह भोला का विद्यार्थी रहा था। अपने कमरे से बाहरनिकला और जाकर
पूछा आपके स्कूल में अकर्मण मास्टर कैसा आदमी है ? मिहिर- अरे भाई ! वह तो एक नंबर
का हरामी है। सब समस्याओं का जड़ वही है, मध्य विद्यालय उधवा में। प्रकाश- और भोला
मास्टर कैसा मास्टर है?
मिहिर- अरे भाई! वह तो इतना परिश्रमी है कि उसके जोड़ का कोई उदाहरण ही नहीं
मिलता।
प्रकाश- सर ! वे तो मुझको बढ़ाएं हैं। मेरा गुरुजी है।
यह सुनते ही मिहिर की बोलती बंद हो गई। प्रकाश का मुंह ताकने लगा। आगे की
बातें बंद हो गई। उसके समझ में यह आ गई कि प्रकाश ने भोला के बारे में कही गई सारी
बातें सुन ली है और उसके कान में पड़ेगी ही।
घर आकर प्रकाश ने सारी बातें अनल को सुनाई और अनल ने भोला को और ज्ञानी को।
अनल ने कहा था-‘ मिहिरवा तो अकमणवा का गले का हार बनता है। उसके इशारे में उठता और
बैठता है। उसकी उंगलियाॅ पकड़कर ही चलता है और अपरोक्ष में -‘ हरामी’ ऐसी भाषा !
वाकई यही मूल्यांकन है अकरमण का।’ ज्ञानी ने कहा था- ‘राम मिलाया जोड़ी एक अंधा
दूजा कोढ़ी।’
38.
जनसुनवाई में जय हिंद की यह कथन कि ‘नए शिक्षक बहुत अच्छी तरह विद्यालय चला रहे
हैं’- भोला के मन में खटक रहा था , क्योंकि यह एक झूठ था जिसे भोला झूठ साबित नहीं
कर पा रहा था। भोला को यह बात खटक रही थी कि इस झूठ को कैसे जगजाहिर किया जाए कि
नए शिक्षक सही तरीके से विद्यालय नहीं चला पा रहे हैं। मिड डे मिल और ड्रेस से
होने वाले लाभ की राशि विद्यालय विकास में न लगा कर सचिव, अध्यक्ष एवं सदस्यों में
बांट कर खा जाना भोला जैसे महत्वाकांक्षी शिक्षक के लिए चुप्पी साधे रहना असह्य
था। भोला इसी विचार में डूबता – उठता, प्रत्येक रविवार की भांति आज भी अपने गांव
के घर हरचंदपुर आया था। गांव के ही नवनिर्मित संतमत सत्संग मंदिर में दोपहर को
लेटा था। विचार यही चल रहा था कि नए शिक्षक क्या वाकई सही तरीके से विद्यालय चला
रहे हैं! उसे असक्षम कैसे साबित किया जा सकता है ! क्या मैं उससे कमतर हूँ ! क्या
मैं उनको चुनौती नहीं दे सकता ! डी एस ई जयहिन्द का विचार क्या गलत नहीं हो सकता !
क्या मैं इसे सिद्ध नहीं कर सकता ! यही सब सोचते -सोचते भोला की आंखें लग गई और वह
गहरी नींद में चला गया। वह स्वप्न लोक में चला गया । उसकी आत्मा उसके ही अपर रूप
में खड़ी होकर उसे फटकार रही थी- ‘भोला तुम कब तक भोला बनकर रहोगे ? तुम वे गीत
भूल गए, जिसे तुमने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रांची-शिविर-समापन समारोह में
हजारों की उपस्थिति में गाकर सबको आत्म-गौरव का अहसास कराया था ? –
ध्येय मार्ग पर चले वीर तो
ध्येय मार्ग पर चले वीर तो पीछे अब न निहारो
हिम्मत कभी न हारो॥
तुम मनुष्य हो शक्ति तुम्हारे जीवन का संबल है
और तुम्हारा अतुलित साहस गिरी की भाँति अचल है
तो साथी केवल पल-भर को मोह-माया बिसारो॥
हिम्मत कभी न हारो ॥१॥
मत देखो कितनी दूरी है कितना लम्बा मग है
और न सोचो साथ तुम्हारे आज कहाँ तक जग है
लक्ष्य-प्राति की बलिवेदी पर अपना तन मन वारो
हिम्मत कभी न हारो ॥२॥
आज तुम्हारे साहस पर ही मुक्ति सुधा निर्भर है
आज तुम्हारे स्वर के साथी कोटि कंठ के स्वर है
तो साथी बढ़ चलो मार्ग पर आगे सदा निहारो॥
हिम्मत कभी न हारो’ ॥३॥
भोला नींद में ही इस गीत की सस्वर आवृत्ति कर रहा था। मंदिर व्यवस्थापक मास्टर
दिनेश अंदर के कमरे से भोला के गीत की बुदबदाने की आवाज सुन रहे थे और हंस भी रहे
थे । गीत शेष होने के बाद फिर वही फटकार- ‘क्या तुम त्याग और समर्पण की शक्ति बिसर
गए हो। क्या तुम सरदार वल्लभ भाई पटेल की उक्ति भूल गया - आपकी अच्छाई आपके मार्ग
में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना
मजबूत हाथों से कीजिय । , ‘पहला पाठ’ कहानी क्या तुम भूल गए, जिसमें अन्याय के
विरुद्ध लड़ने में एक शिक्षक के सीने में बंदूक तान दी गई थी , और वह शिक्षक
हिम्मत के साथ खड़ा था। मैक्सिमम शिक्षक तो मेंढक सिंड्रोम से ग्रसित हैं, तुम तो
इसको तोड़ो, मेरे यार ! तुम भूल गए कि तुम महर्षि मेंही जैसे सिद्ध संत के शिष्य
हो ? याद रखो कि तुम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला बौद्धिक प्रमुख के दायित्व
में रह चुके हो ! उसके संस्कार क्या तुम्हारे हृदय में नहीं है ? जिंदगी का यह
मकसद नहीं कि तुम यूं ही जानवरों की तरह खाओ और पड़े रहो या दूसरे से संचालित होते
रहो। तुम मनुष्य हो, तुम मनु के संतान हो, तुम्हारा जीवन ध्येय निष्ठ होना चाहिए ।
क्या तुम इन तथ्यों को भूल गया ? हर युग में प्रत्येक मनुष्य को महाभारत जैसी
परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और वह अर्जुन की तरह अवसाद से ग्रस्त होकर
जीवन रूपी महाभारत से पलायन करना चाहता है। भगवान के अनुसार पलायन करना कायरता है
और इस कायरता के लिए उसके अंदर आत्म रूपी ब्रह्म उसे कभी क्षमा नहीं करता अर्थात
मैं भी तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता’।
‘मैं पलायन नहीं करूंगा , मैं पलायन नहीं करूंगा, मैं पलायन नहीं करूंगा’—भोला
जोर-जोर से बोल रहा था, तभी दिनेश मास्टर दरवाजा खोलकर देखा तो भोला बैठा
हुआ इधर-देख रहा था। दिनेश- क्या बात है, नींद में कहां पलायन की बात हो रहे थे ,
भोला जी ?
भोला -ओह ! सपना देख रहा था , मामा जी।
दिनेश- कुछ देर पहले तुम्हारे मुंह से - ‘ध्येय मार्ग पर चले वीर तो पीछे अब न
निहारो’ वाला गीत सुनाई पड़ा था।
दिनेश मास्टर को भोला ने अपने आत्म साक्षात्कार की सपने वाली पूरी कहानी सुनाई
और भाव विह्वल होकर बोला- ‘दिनेश मामाजी! अब मैं पलायन नहीं करूंगा । दृढ़ता के
साथ संघर्ष करूंगा। गुरु महाराज के चरणों में प्रणाम करता हूं कि वह मुझे शक्ति
दे, संघर्ष करने की’ , और भोला उठकर गुरु महाराज के सजे हुए मंचासीन चित्र पर
नतमस्तक किया। उनके आंखों में आंसू छलक आए थे। ऐसे तो वह पूर्व से ही ढृढ़
प्रतिज्ञ था, परंतु आज के सपने वाली घटना से उसकी आत्मा और अधिक बलवती हो गई।
संकल्पवान हो गई। कहा भी गया है- ‘संकल्पात् सिद्धि:।’
39.
झारखंड स्थापना दिवस पर में स्कूली बच्चों को लेकर प्रभात फेरी निकालनी थी।
उमर मास्टर, मिहिर हेडमास्टर को समझने में लगे थे कि प्रभात फेरी नहीं निकाली जानी
चाहिए। अकरमण, बिकरमण, बदलू आदि सबने अपनी-अपनी सहमति की मुहर भी लगा दी। बिलकुल
तय हो गया था कि प्रभात फेरी नहीं निकाली जाएगी । भोला बैठे-बैठे सब सुन रहा था।
ऑफिस में इस समय वह अकेले था। फूल पाराशर को फोन लगाया । पता लगा कि प्रभात फेरी
अवश्य निकलनी चाहिए। आराधना मैडम का आदेश भी पाराशर ने तुरंत भेज दिया । भोला
बरामदे पर टहल रहे मिहिर हेडमास्टर के पास गया और व्हाट्सेप ओपेन कर आराधना मैडम
का आदेश दिखाकर कहा ‘ मिहिर जी , आराधना मैडम के आदेशनुसार आज प्रभात फेरी निकालना
अनिवार्य है। मैं तो कहता हूँ कि टाल-मटोल कर काम से जी चुराना अच्छी बात नहीं
है।’ यह सुनते ही पासा पलट गया। प्रभात फेरी की तैयारी आरंभ हो गई। भोला मास्टर
बैनर में मोटे-मोटे सुंदर अक्षरों में लिखा- ‘झारखंड स्थापना दिवस’ और साथ ही इन
स्लोगनों को भी प्रिंट कराया सुदेव के दुकान से :-
आज क्या है -15 नवंबर,
15 नवंबर -अमर रहे ,
आज क्या है- झारखंड दिवस,
झारखंड दिवस- अमर रहे,
बिरसा मुंडा- अमर रहे,
सिद्धू कान्हू- अमर रहे,
शिक्षा का ऐसा दीप जले- रहे बाल सब खिले-खिले ,
शिक्षक शिक्षा दान करें- नैतिकता का मान करें, अधिकारी न अपमान करें - न रहे
कोई दलाल - मेरा झारखंड हो खुशहाल।,
बदलता झारखंड –बढ़ता झारखंड,
नहीं रुकेंगे नहीं थकेंगे,
मंजिल पर ही लेंगे दम।
आओ मिलकर सपने को,
सच कर दिखलाएं हम।।
प्रभात फेरी में उमर नहीं गया जो पहले से ही नहीं जाने का मन बना कर प्रभात
फेरी के कार्यक्रम को स्थगित करने के फेर में लगा था। विकरमण भी नहीं गया और शुभ
मास्टर भी नहीं गया। आज की प्रभात फेरी में देखा यह गया कि बच्चों से भी आगे- आगे
मिहिर हेड मास्टर और अकरमण चल रहे थे ।बच्चों के बीच में भोला मास्टर, संतू
मास्टर, ज्ञानी मास्टरऔर अनल चल रहे थे और नारा लगाने में बच्चों की मदद कर रहे
थे। बच्चे जब यह नारा लगाते थे कि ‘शिक्षा का ऐसा दीप जले, रहे बाल सब खिले-खिले,
शिक्षक शिक्षा दान करें, नैतिकता का मान करें, अधिकारी न अपमान करें, न रहे कोई
दलाल, हमारा झारखंड हो खुशहाल’ तो इन नारों से अकरमण नाराज हो जाते थे और बच्चों
से कहते ‘अरे ! कितने बार इन नारों को बोलोगे, दूसरा नारा लगाओ।’ ज्ञानी मास्टर
भोला की ओर मुस्कुराते हुए कहा –‘ गौर कीजिए सर! अकरमणवा को बच्चों के ये अच्छी
बातें हजम नहीं हो रही है।’ वजह साफ था। यही वह जड़ था जो मध्य विद्यालय उधवा को
अकर्मण्यता के दलदल में धकेल रखा था। इन्हें कोई भी प्रेरणा दायक कथन या प्रवचन
नहीं सुहाता था। प्रार्थना सभा के समय में भी जैसे ही बच्चे सुभाषित शुरू करते ,
ये या तो दूसरे शिक्षकों से गप्पे लड़ाते या नहीं तो कुर्सी में बैठ जाते । कभी भी
इनमें इनकी रूचि नहीं देखी गई। ज्ञानी ने अनल को एक सुक्ति सुनाई- ‘ऐसे व्यक्ति
वाकई महत्वहीन हो जाते हैं क्योंकि वे महत्वपूर्ण बातों को महत्व जो नहीं देते
हैं।’ भोला, संतू दोनों ने समर्थन किया- ‘बिलकुल सही बात।’
40.
कल बाल दिवस था। इसके खर्चे के लिए अकरमण, बिकरमण, उमर और मिहिर हेडमास्टर
सबने मिलकर बच्चों की हाजिरी की संख्या बढ़ाई थी ताकि बाल दिवस पर बांटे जाने वाले
बिस्किट आदि का खर्च मेंटनेंस हो सके । बच्चों के लिए बिस्किट और शिक्षकों के लिए
मिठाइयां मंगाई गई थी। पर शुभ मास्टर को मिठाई नहीं मिली क्योंकि वह कुछ पहले ही
विद्यालय से निकल गए थे। आज शुभ को रिजल्ट तैयार करने के लिए मिहिर ने कुछ
दस्तावेज दिए थे । शुभ ने कल की मिठाई की बात उठा दी ।
मेरा हिस्सा कहां गया। मुझे दीजिए। आपने हाजरी की संख्या बढ़ाई थी , तो मेरी
मिठाई दीजिए।
मिठाई कल ही दी गई थी, आप भाग क्यों गए थे ?
भागे तो क्या हुआ, मेरा हिस्सा भी चला जाएगा, मेरे हिस्से की मिठाई नहीं
मिलेगी, तो मैं काम भी नहीं करूंगा
काम नहीं करोगे ? अभी बीईईओ फोन लगाता हूँ ।
लगाओ फोन, देखते हैं क्या होता है।
बहुत ज्यादा बनते हैं आप ।
तुम इतना गरम दिखाओगे ?
हाँ क्या कर लोगे ? मैं आदिवासी एक्ट में तुम्हारे नाम से केस ठोकूंगा।
इसी की गरमी दिखाते हो ? करो केस । मैं भी देखूंगा । आदिवासी एक्ट में फैसले
क्या सिर्फ आदिवासी के पक्ष में ऑखें बंद करके लिए जाते हैं, क्या ?
तुम मेरे शरीर में हाथ लगा ही दिया न !
हाथ लगाया हूँ कि क्या किया हूँ, सभी मास्टर देख रहें है। दुनिया अंधी नहीं
हैं ।
दोनों आमने-सामने हो गए थे। हाथापाई की नौबत आ गई थी। तू-तू मैं-मैं की आवाज
से सभी शिक्षक ऑफिस में जमा हो गए थे, परंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि मिहिर
मास्टर के गुर्गे उनके समर्थन में थे और ये सब के सब शुभ मास्टर की गलती ठहरा रहे
थे कि जब आप पहले घर चले गए तो आज हिस्सा नहीं मांग सकते । तुम्हारा इस तरह
गुस्साना गलत है _ _ आदि। भोला, अनल, संतू और ज्ञानी मौन थे। ये लोग ऐसा चाहते भी
थे कि थोड़ी-बहुत हाय-हुज्जत हुए बिना व्यवस्था में परिवर्तन संभव नहीं है।
पदाधिकारी को फोन लगाने की धमकी देना एक हेडमास्टर के लिए उचित नहीं कहा जा सकता।
भोला तो इसी ताक में था भी कि झंझट बढ़े और पदाधिकारियों की जाॅच हो ताकि स्कूल
में घटित काले धंधों का खुलासा हो सके। डरने से और डराया जाता है। हिम्मतवाज को
भगवान भी मदद करते हैं । कहा भी गया है –‘हिम्मते मर्दा मददे खुदा।’
डराने का ड्रामा शुरू भी हो गया। शाम को मिहिर हेडमास्टर , अनल मास्टर को धमकी
दिया कि –‘आप स्कूल प्रांगण में ट्यूशन पढ़ाना बंद कर दें। पब्लिक का कंप्लेन है।’
बात बिल्कुल सपष्ट थी कि वह अनल को डरा धमका कर अपने समर्थन में लेना चाह रहा था
या फिर वह चाहता था कि वह शुभ का साथ न दें। अनल ने भोला से सजेशन मांगा। भोला ने
नीलू बाबू को फोन करने की सलाह दी । नीलू बाबू ने मिहिर से कहा – ‘ट्यूशन से स्कूल
को भला क्या नुकसान है और कौन कम्पलेन किया है ? इस प्रकार की हीन भावना मत रख,
मेरे यार।’ सच के सामने मिहिर साइलेंट हो गया । उधर मिहिर ने ज्ञानी से कहा था
‘आपने शुभ को कुछ क्यों नहीं कहा ?’ इस पर ज्ञानी ने कहा था- ‘आपने फोन की धमकी
क्यों दी ?, इस तरह से तो आप शिक्षकों के झगड़े की बात पदाधिकारी को कह कर सबको
डराएंगे।’ इस पर मिहिर की बोलती बंद हो गई ,परंतु भोला से वह कुछ भी नहीं कह पाया
क्योंकि भोला के पास उसके संबंध में ढेर सारे कच्चे चिट्ठे मौजूद जो थे। मिड डे
मील में पैसा बनाने के लिए अनुपस्थित बच्चे को भी उपस्थित कर दिया जाता है। इसी
महीने की 1 तारीख को भोला स्कूल में नहीं था ।मिहिर हेड मास्टर ने हाजिरी ली, तो
उस दिन वह करीब 30 बच्चों की संख्या बढ़ा दी, जबकि महीने के किसी भी दिन उतनी
उपस्थिति नहीं होती है। मिहिर मास्टर का दाहिना हाथ माने जाने वाले विकरमण का तो
यह प्रति दिन का काम है ताकि प्रत्येक दिन उसे शेयर मिलता रहे। अक्टूबर महीने में
1 दिन मिहिर विद्यालय नहीं आ सका ।सोमवार का दिन था। शनिवार को ही घर गया हुआ था ।
बिकरमण ने मिहिर के लिए हाजिरी बही छिपा दी थी ताकि आकस्मिक अवकाश बचाया जा सके।
इस दिन की हाजिरी सभी शिक्षकों ने एक प्लेन पेपर में बनाई थी, जिसका प्रमाण अभी भी
भोला के पास है । वक्त पड़ने पर इसे वह पदाधिकारी को दिखा सकता है। इसकी डर मिहिर
को है। 2016 के नवंबर-दिसंबर में मिहिर ने निर्धारित आकस्मिक अवकाश से अधिक अवकाश
में रहा था , पर उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कैसे पूरा वेतन निकाला था
, इसकी जानकारी भी भोला के पास है। यही वजह है कि वह भोला को इन दोनों महीने की
पंजी नहीं दिखाते हैं। परंतु पदाधिकारी के आने पर तो ये सारे कच्चे चिट्ठे निकल ही
जाएंगे।
सदैव बिलम्ब से आने वाले मिहिर, स्थापना दिवस समारोह के दूसरे दिन 8 बजकर 10
मिनट में ही स्कूल घुस गए थे , ऐसा कभी न देखा गया था। प्रार्थना की घंटी 8 बजकर
15 मिनट में ही लग गई । उमर, बिकरमण, मिसिर सहज नहीं दिख रहे थे। दिल के भाव चेहरे
बयां कर रहे थे। उमर बच्चों से जी. के. कराने लगे। मिहिर गलतियों को सुधारने में
लगे थे। बिकरमण बच्चों से समय पर स्कूल आने की हिदायत दे रहे थे। मिसिर , बिकरमण
की बातों का पुरजोर समर्थन करते हुए बरस रहे थे। बिकरमण पुनः दुहरा रहे थे। मिहिर
हेडमास्टर भी यही दुहराने लगे। चारों की बातें ऐसे टकरा रही थीं मानो गाॅव की
अनपढ़ औरतें झगड़ रहीं हो। शुभ मास्टर भी स्कूल आ गया था। सबके निशाने पर यही तो
थे। समय पर स्कूल आने की धमकी शुभ मास्टर पर ही थी, बच्चे केवल माध्यम थे। कल हुए
मिहिर के साथ होट- टाकिंग के कारण शुभ को दबाने और मुंह बंद करने की घिनौनी हरकत
थी। शुभ की कमजोरी यही थी कि वह लेट से स्कूल आता था। उसकी इसी कमजोरी के जख्म पर
ये चारों बाबू नमक छिड़क रहे थे। टीफिन के समय भोला , ज्ञानी और शुभ आज की हरकत पर
विचार कर रहे थे। ‘इस प्रकार की एक्टीभीटी से सफलता तो दूर मनमुटाव और अधिक
बढ़ेगा, सर’ ज्ञानी बाबू ने कहा। भोला ने गंभीर स्वांस लेते हुए स्वामी विवेकानंद
की उक्ति रखी- ‘चालाकी से महान कार्य नहीं हो सकता।’ शुभ ने कहा था- ‘हाँ सर! मृषा
न होई देव ऋषि वाणी।’ अर्थात् देवता और ऋषियों की वाणी झूठ नहीं होती ।
41.
बैजू बाबू बीआरपी साहब ने भोला की ओर मोबाइल बढ़ाते हुए कहा – भोला बाबू, फटल
भगत बाबू आपसे बात करना चाहते हैं ।
मोबाइल कान से लगाते हुए भोला ने कहा -कहिए फटल बाबू क्या बात है।
देखिए भोला बाबू, प्रशिक्षण पूर्व मूल्यांकन के प्रश्न-पत्र की छाया प्रति
नहीं करा पाए हैं । इसीलिए आप शॉर्टकट में 8-10 प्रश्न श्यामपट्ट पर लिखा दीजिए।
मेरी बात सुनी जाए फटल बाबू ,ऐसा है कि प्रशिक्षण पूर्व मूल्यांकन की उत्तर
पुस्तिका जिला भेजी जाती है। इसलिए श्यामपट्ट पर लिखा जाना गलत होगा। आप शीघ्र आकर
प्रशिक्षण पूर्व मूल्यांकन का प्रश्न पत्र सभी प्रतिभागियों को उपलब्ध कराइए।
हां ,मैं जानता हूं कि प्रशिक्षण पूर्व मूल्यांकन की उत्तर पुस्तिका जिला भेजी
जाती है, परंतु आप श्यामपट्ट पर 8-10 प्रश्न लिखकर काम चलाइए।
फटल भगत की बातों से भोला को एहसास हो गया कि यह केवल हर कार्य में खानापूर्ति
करते हैं। ये व्यक्ति मुझसे नहीं मानने वाले हैं । ऊपर खबर करनी ही पड़ेगी। यह
सोचकर भोला ने एपीओ, साहिबगंज श्री राजेंद्र सर को डायल कर दिया। फोन निशाने पर लग
गया।
सर! मैं भोला बोल रहा हूँ , बीआरसी, उधवा से।
हाँ, भोला जी,कहिए बुनियाद प्रशिक्षण आरंभ हो गया आपके यहाँ ?
यही बताने के लिए फोन किया हूँ, सर! बीपीओ , फटल भगत प्रशिक्षण पूर्व
मूल्यांकन का प्रश्न-पत्र उपलब्ध कराने से इनकार कर रहे हैं , और अभी 11 बज चुके
हैं, परन्तु प्रशिक्षण से संबंधित कोई भी सामग्री प्रतिभागियों को नहीं दिया गया
है। प्रश्न श्याम पट पर लिखने का आदेश परमा रहे हैं।
ऐसी बात है, ये तो बड़ी विकट समस्या है। प्रशिक्षण की सामग्री तो बीआरसी को
उपलब्ध करा दी गई है। फिर भी कोताही! अच्छा ठीक है। तुरंत हम इस पर एक्शन लेते
हैं। आधे घंटे के अंदर अगर सबकुछ मुहैया न कराई गई तो आप फिर से फोन करिएगा।
‘ओके सर’ ‘कह कर बोला फोन काट दिया।
देखा यह गया कि मात्र 20 मिनट के अंदर कॉपी, कलम, चार्ट पेपर, और प्रशिक्षण
पूर्व मूल्यांकन का प्रश्न-पत्र आदि सदन में आ गया और प्रशिक्षण विधिवत आरंभ हो
गया। दोपहर 2:00 बजे सभी प्रतिभागी भोजन कर रहे थे । भोला भी सब के साथ पंक्ति में
बैठकर भोजन कर रहे थे। सत्तार दियारा क्षेत्र के पारा शिक्षक थे जो भोला के बगल
में ही बैठे थे। उसने कहा- चावल पचपच करता है।
कैलाश सरकारी शिक्षक थे उन्होंने तो कह डाला कि - लगता है चावल मिड डे मील का
है।
फिर कई शिक्षक के मुंह से यही आवाज आई कि बेशक यह मिड डे मील का ही चावल है।
अरे यार बुनियाद प्रशिक्षण में तो यही सब होता है ।और क्या होता है। जैसे-तैसे
खाना खिलाकर केवल माल बनाया जाता है। कुछ बोलोगे तो बाबू साहब लोग आंखें लाल पीली
करेंगे। बीईईओ को बोलोगे तो उल्टे हम ही लोग पर एक्शन लेंगे। कार्रवाई की धमकी
मिलेगी दबी जुबान से। अंधेर नगरी है और चौपट राजा है।
भोला मास्टर ट्रेनर थे। इसलिए कुछ बोल नहीं रहे थे। सब की बात सुनकर स्थिति से
अवगतहो रहे थे और सोच रहे थे क्या इस समय कोई आवाज उठाई जा सकती है या नहीं?
अगर आवाज बुलंद न की गई तो मैं कैसा मास्टर ट्रेनर! हो सकता है कि कोपभाजन
बनना पड़े । पर ट्रेनिंग तो इन बाबू को भी देनी पड़ेगी और मैं दूंगा। मेरा सत्व बल
मेरे साथ है।
अपराह्न कालीन सत्र आरंभ हुआ । भोला ने भोजन में दिए गए चावल के संबंध में सदन
की राय मांगी। एक शिक्षक ने कहा- चावल खराब है सर , पर हम विरोध नहीं कर सकते
क्योंकि विरोध करने पर हम उनके आंखों की किरकिरी बन जाएंगे।
दूसरे ने कहा मैं तो सचिव हूं यदि मैं विरोध करूंगा तो बीपीओ मेरे विद्यालय को
चावल नहीं देंगे। नाटक शुरू हो जाएगा।
मैनुअल मास्टर ,जो पारा शिक्षक के अध्यक्ष थे, आवाज बुलंद की- सर आप डीएसई को
लिखिए मैं कहूंगा कि चावल घटिया है। मैं आपके साथ हूँ । अन्याय का विरोध नहीं
करेंगे तो अन्याय बढ़ता जाएगा। परिवर्तन कहीं नहीं दिखेगा। परिवर्तन तो होना ही
चाहिए। दबने से और दबाया जाएगा।
भोला के साथ एक और मास्टर ट्रेनर थे -अमित पाल बाबू। जो कि कोलाबाड़ी संकुल के
सम्माननीय सीआरपी थे, बड़े सज्जन, विनम्र और कर्मठ , इन्होंने भी कहा - हां भोला
सर! इसका प्रतिकार होना ही चाहिए।
दूसरे दिन भोला ने एक कविता जिला बदलाव दल के ग्रुप में पोस्ट किया था,
जो इस इस प्रकार थी –
“चावल ठीक नहीं है सर !
प्रतिभागी को कहते देखा।
मिड डे मिल के जैसा चावल
दबी जुबान से खाते देखा।
स्टेशनरी के सामानों में
कंजूसी भी करते देखा।
ट्रेनर बन बुनियाद का
नजदीक से मैंने ऐसा देखा
परिवर्तन का गीत गाता हूं
बाबूओं को सिर्फ हिलते देखा।
प्रिय सीआरपी भाइयों को
चुपचाप सब सहते देखा।
बुनियाद बीआरसी उधवा की
मनमानी को सिर चढ़ते देखा।”
बुनियाद के प्रशिक्षण का द्वितीय दिवस का सत्र ‘तू ही राम है तू रहीम है’
सर्वधर्म प्रार्थना के साथ आरंभ हुआ। राष्ट्रीय गान और सुविचार के बाद भोला मास्टर
ट्रेनर ने एक प्रेरणा गीत मध्य विद्यालय के शिक्षक अनल जी से गवाया। गीत था—
“इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चले नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना।।
दूर अज्ञान के हो अंधेरे तू हमें ज्ञान की रोशनी दे ।
हर बुराई से बचते रहे हम जितनी भी दे भली जिंदगी दे।
बैर हो ना किसीका किसी से भावना मन में बदले की हो ना।।
हम ना सोचें हमें क्या मिला है हम यह सोचे क्या किया है अर्पण।
फूल खुशियों के बाटें सभी को सबका जीवन ही बन जाए मधुबन।
अपनी करूणा का जल तू बहा के कर दे पावन हर एक मन का कोना।।
हर तरफ जुल्म है बेबसी है सहमा सहमा सा हर आदमी है।
पाप का बोझ बढ़ता ही जाए जाते जाने कैसे ये धरती थमी है।
बोझ ममता का तू उठा ले तेरी रचना का ही अंत हो ना।”
दोपहर के भोजन में कल की तरह सुगबुगाहट थी कि भोजन में चावल ठीक नहीं है ।
अपराहन कालीन सत्र आरंभ हुआ था। कई एक शिक्षक बोलने लगे -गर्मी में मन नहीं लगता
है, सर! जनरेटर है, मगर केवल देखने के लिए है।’
तब भोला ने प्रथम सत्र में अनल के गाए हुए गीत ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ के
अंतिम चरण ‘हर तरफ जुल्म है_ _ _ _ रचना का अंत हो ना’ की व्याख्या संक्षेप में
करने लगे- ‘जुल्म ,अत्याचार से हर आदमी सहमे हुए हैं । आखिर हम राष्ट्र के
निर्माता हैं, तो फिर क्यों नहीं निर्माण कार्य मैं अपनी शक्ति को लगावें? क्यों
नहीं अन्याय का विरोध करें ? हम अपने अधिकार के लिए क्यों नहीं आवाज उठावें?’
मैनुअल मास्टर ने खड़े होकर जोर से नारा लगा दिया “इंकलाब- जिंदाबाद’ शिक्षक
एकता’ जिंदाबाद’ -सभा सदन गूंज उठा ।सब शिक्षकों में जोश आ गया था ।
इस विषय को यहीं छोड़ सत्र का विषय आगे बढ़ाया गया।
भोला का कविता वाला मैसेज जो कि जिला बदलाव दल के ग्रुप में दिया गया था, उसकी
कार्रवाई आज तीसरे दिन के द्वितीय सत्र के समापन के समय दिखा । फटल भगत बाबू सदन
में आ धमके। सभी प्रतिभागी जो अब प्रस्थान के मूड में थे, उन्हे रोकते हुए फटल
बाबू ने कहा –‘सभी बैठ जाइए, कुछ जरूरी बातें करनी है।’ अब क्या था, सभी
प्रतिभागी-शिक्षक सहम गए और बैठ गए। फटल भगत बाबू ने शिक्षकों से कहा-‘आप लोग
बताइए, क्या चावल मिड डे मील का दिया जाता है? हां चावल थोड़ा मोटा हो सकता है,
लेकिन यह मिड डे मील का चावल नहीं है।’ सदन में सभी एक दूसरे की ओर देख रहे थे। सब
डरे हुए थे कि आखिर म्याऊ के गले में घंटी कौन और कैसे बांधी जाए ?
तब भोला जो बगल में बैठे थे, खड़े हो गए और कहने लगे – ‘देखिए फटल बाबू! आप
प्रथम दिन से ही बुनियाद प्रशिक्षण को महत्व नहीं दे रहे। आप स्टेशनरी मेटेरियल्स
में भी कोताही बरत रहे थे । आप कहते हैं कि मैं जानता हूँ , लेकिन आप अपने दिल में
हाथ रख कर के देखिए आप जब जानते हैं तो फिर मानते क्यों नहीं ,और सामग्री ससमय
उपलब्ध क्यों नहीं कराया आपने? दूसरी बात चावल की है, तो चावल आपका घटिया है ,
परंतु शिक्षक आप से डरे हुए हैं। सहमे हुए हैं । आप का प्रतिकार नहीं करते हैं।
सभी आपके मातहत हैं।
आप गलत मैसेज दे रहे हैं । अभी डीएसई जय हिंद को फोन लगाता हूँ’ और नंबर डायल
करने लगे। पर फोन लगा नहीं ।
भोला भी फटल बाबू के इस तरह सदन में फटने से सहम गए। पता नहीं इस जय हिंद के
नारे से कौन सा फरमान जारी हो जाए। परंतु भोला को इस बात की अच्छी तरह समझ थी कि
फटल भगत , उधवा बीईईओ, बोधन कुमार राय और साहिबगंज डीएसई जयहिन्द के संरक्षण में
कार्य निष्पादन कर रहे हैं, इनके उचित मार्गदर्शन में नहीं , अतः इनसे अच्छे कार्य
की अपेक्षा कदापि नहीं की जा सकती । तभी एक बुजुर्ग प्रतिभागी खड़े हुए और कहने
लगे ‘चावल मोटा है, पचपच करता है। झंझट करना ठीक नहीं। चावल बदल देने से ठीक
रहेगा।’
प्रतिभागियों ने दबी जुबान से ‘हाँ-हाँ, चावल बदल देना चाहिए । अच्छा रहेगा,
थोड़ा खराब है।’ कहा।
इससे अष्ट दिवसीय प्रशिक्षण के चौथे दिन मिनी केट चावल का भोजन बना था।
प्रतिभागियों के बीच चर्चा हो रही थी कि इस बैच के पूर्व की ट्रेनिंग मिड्डे मील
जैसे चावल ही हुई थी, परन्तु अब चावल में सुधार हुआ । पर गर्मी से निजात शायद ही
मिले । प्रतिभागी गण भोजन कर सदन में आ गए थे। मास्टर ट्रेनर भोला यूं ही बैठे थे।
उन्हें पता चला कि वे भोजन नहीं किए हैं और नहीं करेंगे। शिविर का भोजन करना
स्वाभिमान को बेचने के बराबर है और वह ऐसा कदापि नहीं करेंगे और अंतिम दिन तक उसने
शिविर का भोजन ग्रहण नहीं किया। प्रतिभागी गण इसके लिए बहुत दुखी थे। दूसरे दिन
अखबार में बीआरसी की लचर व्यवस्था पर खबर छपी थी—‘बीआरसी उधवा की मनमानी’।
अष्ट दिवसीय प्रशिक्षण का अंतिम दिन था। आज बीईईओ बोधन, बीपीओ फटल भगत और अन्य
संकुल संसाधन सेवी भोजन कर चुके थे। अपराह्न कालीन सत्र में सभी
प्रतिभागी बैठ चुके थे । उमस भरी गर्मी से सब परेशान थे। जनरेटर बंद थी। अभी
का सत्र समापन का था। कुछ विशेष टिप्स देने की मंसा थी मास्टर ट्रेनर अमित पाल और
भोला की। तभी एक संकुल संसाधन सेवी का संदेश आया कि ‘बीईईओ बोधन ने कहा है कि सभी
प्रतिभागियों को छोड़ दिया जाए।’ तुरंत भोला जी खड़े हो गए और सभी प्रतिभागियों को
हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक आग्रह करने लगा ‘यद्यपि प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी
श्री बोधन कुमार राय का आदेश है कि सभी प्रतिभागियों को छोड़ दिया जाए परंतु मैं
एक मास्टर ट्रेनर हूँ और आप लोगों के साथ आठ दिन तक समय बिताया हूँ ।अभी अंतिम
सत्र जारी है, और कुछ महत्वपूर्ण बातें आप सभी प्रतिभागियों से करनी भी है। अतः
मैं आपसे कर जोर प्रार्थना करता हूँ कि थोड़ा कष्ट कर एक घंटे का समय मुझे देने की
कृपा की जाए।’ इतना सुनने के बाद सभी प्रतिभागी हाथ खड़े कर भोला जी के समर्थन में
आ गए।
आध्यात्मिकता और नैतिकता से सने हुए अपने प्रबोधन में भोला ने प्रतिभागियों को
जो दिशानिर्देश दिए थे, उसका सारांश इस प्रकार है–‘आदरणीय शिक्षक भाइयों एवं
शिक्षिका बहनों! यद्यपि हमारे कार्य में विघ्न बाधाएं बहुत हैं। अफसरशाही भी कम
नहीं है, तथापि हम एक निर्माण कार्य से जुड़े हुए हैं और वह है- ‘ व्यक्ति निर्माण
का कार्य’। हमें अपने कार्य के प्रति समर्पित भाव रखना चाहिए । हमारा कार्य कोई
देखे या न देखे , हम तो खुद देखते ही हैं और ईश्वर तो देखता ही है । तत्काल हमें
आत्मीय सुख और शांति का अनुभव तो होगा ही और अंततः हमें ईश्वरीय प्रतिदान अवश्य
मिलेगा।’
मैनुअल मास्टर पारा शिक्षक के अध्यक्ष थे और प्रशिक्षण में प्रतिभागी भी थे।
बेबाक अपनी बात रखने की हिम्मत रखते थे। बुनियाद प्रशिक्षण की सारी गतिविधियों से
ये रूबरू हुए थे और अंदर से इन भ्रष्ट व्यवस्थाओं के प्रति बेहद क्षुब्ध थे। इनके
कड़े तेवर से फटल भगत ही नहीं वरन् बीईईओ बोधन कुमार राय भी भयभीत रहते थे। ये उभय
अर्थ-लोलुप नहीं चाहते थे कि कभी भी मैनुअल हमारे सामने उपस्थित हों, जैसे कि चोर
को चांदनी रात अच्छी नहीं लगती। फटल भगत के संबंध में मैनुअल मास्टर जी ने एक
व्यंग रचना लिखी थी, जिसे उन्होंने मुझे दिया था, जिसका शीर्षक था ‘फटल बाबू फटना
मत’। मैं उन्हीं के अल्फाज में यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ: -
“फटल बाबू फटना मत
जंगल, पहाड़ ,झरने आदि से सुसज्जित हमारा राज्य है , झारखंड। जो हाल हाल में
बिहार से बिछुड़ कर अलग राज्य का अस्तित्व ग्रहण किया है। इसी राज्य में साहब का
एक गंज है ,जिसे साहिबगंज भी कहते हैं । इसी साहिबगंज में इतिहास प्रसिद्ध एक शहर
है, जिसका नाम है- राजमहल । यह राजमहल गंगा नदी के किनारे बसा हुआ एक छोटा सा शहर
है। इसी शहर में गंगा नदी के पुल के लिए संघर्ष जारी है ।
इसी शहर से महज आठ मील की दूरी पर अवस्थित है - प्रखंड कार्यालय उधवा। इसी में
एक बहुत परिश्रमी कर्मी थे , जिनका नाम था फटल भगत । भगत सुनकर आप यह नहीं समझ
बैठे कि यह कोई भगवान के भगत थे ,अपितु एक ऐसे भगत जिनके बारे में लोग यही अर्थ
लगाते हैं कि जैसे छिछले पानी में बैठकर बगुला भगत हुआ करते हैं । मौका मिलने पर
वे अपनी लंबी चोंच से मछली को पकड़ने में देर नहीं लगाते । यह फलट भगत भी वैसे ही
थे । वक्त या मौका मिलते ही ये भी शिकार करने से बाज नहीं आते थे। इनके शिकार हुआ
करते थे -शिक्षक , क्योंकि शिक्षक ही एक ऐसे प्राणी हुआ करते हैं ,जो निरीह कहलाते
हैं। ये निरीह इसलिए हो जाते हैं क्योंकि फटल भगत जी पूरे प्रखंड को हैंडल करते
थे। जैसे लगता था मानो प्रखंड में शिक्षक का और कोई बोस ही नहीं हो । थे भी नहीं ।
अगर थे तो समझ लीजिए कि उनकी कोई औकाद नहीं थी , फटल भगत के सामने । क्योंकि बॉस
समझ बूझ कर बात करते हैं ,परंतु फटल तो बिल्कुल फटे थे औरये बिल्कुल फट कर के बात
करते थे और इनके फटने के चलते कोई शिक्षक इनके सामने डट नहीं पाते थे बल्कि सब हटे
रहते थे। यदि कोई डट जाते , तो यह बड़ी जोर से बंदे मातरम का तो नहीं अपितु जय
हिंद का नारा लगाते धे। जय हिंद कोई देश नहीं, हिंदुस्तान नहीं ,आर्यावर्त नहीं,
जंबूदीप नहीं, बल्कि यह एक आदमी थे। जिस प्रकार से कि विश्व में अमेरिका सुपर पावर
है और उससे छोटे बड़े सभी देश भयभीत रहते हैं ।ठीक वैसे ही ‘जय हिंद’ शिक्षा जगत
के जिलेभर में सुपर पावर थे। सुपर पावर से भला कौन नहीं हाथ मिलाना चाहेंगे या फिर
कौन नहीं उनसे दोस्ती करेंगे ? इन्ही का नारा लगाकर फटल भगत सभी शिक्षकों को बुखार
चढ़ा देते थे । ऐसा बुखार जिसका नाम शायद हम सभी सुने हैं -डेंगू बुखार। इस डेंगू बुखार
से शिक्षक परिचित हैं कि यदि यह बुखार एक बार लग गया तो फिर जीवन रूपी सचिव का पद
बाज पक्षी की तरह झपट लिए जाएंगे या फिर बगुले भगत का मछली सदृश शिकार बन जाएंगे ।
बिना ब्लड चढ़ाए सुना जाता है किये डेंगू देवता खुश नहीं होते। इसलिए सब फटल से
दूर हटकर रहते थे। और जब मिलते थे तो जोर से सलाम ठोक देते थे ताकि इनका वरद हस्त
मिलता रहे और मिड डे मील के पौबारह से वंचित न हो। शिक्षक भी कभी इनका विरोध नहीं
करते क्योंकि फटल भगत का विरोध करना, मतलब जय हिंद का कोपभाजन बनना।
इसलिए शिक्षक भाई लोग मन-ही-मन इनसे विनती करते रहते थे-"हे फटल बाबू !
मत फटना क्योंकि आपके फटने परहमारे अंदर डेंगू बुखार जैसी परेशानी आ धमकती है । इस
डेंगू को फटकारने में हम कभी-कभी असमर्थ हो जाते हैं फिर तो मेरा जीवन रूपी सचिव
डेंगू का शिकार हो जाएगा।"
यह रचना किन्हीं को भाये या न भाये सुधी पाठकों को अवश्य भायेगी। यह रचना
इसलिए भी प्रासंगिक हो गई थी क्योंकि इस समय शिक्षा में अशिक्षा का असर था तो
लोगों में डेंगू बुखार का कहर।
42.
अनल ऑफिस के सामने बैठे भोला मास्टर के पास आया और कहा- ‘सर मैंने मनोर मुखिया
जी को फोन लगाया, परंतु वे कहते हैं , मुझे फुर्सत नहीं है, फुर्सत मिलने पर
विद्यालय आ सकता हूँ । ऐसा लगता है कि मेरी बातों का मुखिया जी महत्व नहीं दे रहे
हैं। सर ! आपके फोन लगाने से हो सकता है, वह आ जाए।’
‘क्या समस्या है जो मुखिया जी को फोन लगाए हैं और फिर मुझे लगाना है।’
‘यही मिहिर हेडमास्टर कल अर्थात् एडवांस ही अपनी हाजिरी बनाकर विद्यालय से
गायब हैं। न किसी को प्रभार दिया न कुछ लिख कर गया।’
‘ठीक है अनल भाई, फोन लगाता हूँ।’ यह यह कहकर भोला ने मुखिया जी को फोन लगाया
‘आप स्कूल आइए और देखिए हेड मास्टर कल ही अपनी आज की हाजरी बना कर गायब हैं न किसी
को प्रभार दिया है न किसी को कुछ लिख कर दिया।’
10 मिनट में मुखिया जी मध्य विद्यालय उधवा आ गए । भोला ने शिक्षक उपस्थिति बही
दिखाई । मुखिया जी ने देखा , गौर से । हेडमास्टर की हाजरी बनी है, परंतु वह
विद्यालय में नहीं हैं । उसके बाद मुखिया जी ने मिहिर को फोन लगाया। मिहिर ने भी
तुरंत फोन उठाया ‘प्रणाम मुखियाजी ,कहिए क्या बात है?
कहाँ हैं आप ?
‘साहिबगंज आए हैं ।’
‘आपकी हाजरी कैसे बनी ?’
‘बनाकर आया हूँ।’
‘तो ये गलत है न ? और विद्यालय का प्रभार किनको दिए हैं ?’
‘ अ _ _ जल्दीबाजी में आ गए, लिख नहीं पाए, मुखिया जी।’
‘आप विद्यालय परिवार के मुखिया हैं और आपका स्कूल से ऐसे ही गायब होना उचित है
क्या ? आपका परिवार किसके दिशा निर्देश में चलेगा ? आप ही बताइए।’
‘हाँ मुखिया जी, आपका कहना बिलकुल सही है।’
‘जब मेरा कहना आपको सही लग रहा है, तो इसका मतलब है कि आप जानबूझकर ऐसा कर रहे
हैं । तो मैं बी.डी.ओ.को क्यों न रिपोर्ट कर दूँ ? इसके पहले भी आपको हिदायत दी गई
है कि ऐसी मनमानी न करें।
‘ शोरी मुखिया जी, और ऐसा कभी नहीं करूँगा ।’
दरअसल , शुक्रवार को विद्यालय बंद होने के समय मिहिर हेड मास्टर ने शनिवार के
लिए अपनी हाजिरी बना कर घर चले गए थे। शनिवार को जब सब शिक्षक पहुंचे तो देखा यह
गया कि मिहिर तो विद्यालय में उपस्थित नहीं है, परंतु उनकी हाजिरी बनी हुई है। सभी
शिक्षकों में इस बात की सुगबुगाहट थी, परंतु कोई कुछ नहीं बोल रहे थे। पर अनल ने
पहले पहल की और भोला ने मुखिया जी को फोन कर बुला ही लिया । ‘अकरमण और विकरमण आदि
अर्थ-लोलुप शिक्षकों की कठपुतली बने और इनके संरक्षण में समय काट रहे मिहिर एच एम
से विद्यालय उपेक्षित हो रहा है’- मुखिया जी ने अनल को बताया था। सोमवार को जब
मिहिर विद्यालय आया था, तो बहुत उदास था, क्योंकि मुखिया जी के द्वारा उन्हें वार्निंग
दिया गया था।
मिहिर मधुर-भाषी और बड़ों को आदर-सम्मान देकर बात करने वाले शिक्षक थे, परंतु
दावपेंच से।उनकी एक कमजोरी थी कि वे दुमका के रहने वाले थे। घर जाने पर एक-दो दिन
फ्रेंच लेने के लिए मजबूर हो जाते थे। दूसरी बात यह भी थी कि उधवा में रहने पर भी
ये समय पर विद्यालय नहीं पहुंच पाते थे और एक बहुत बड़ी मजबूरी यह थी कि ये कई
स्धानीय शिक्षकों की कठपुतली बने हुए थे । इन्हीं कारणों से ये भोला जैसे
प्रतिस्पर्धा रखने वाले शिक्षक के सामने मात खा जाते थे। भोला , मिहिर को एक दिन
भी फ्रेंच नहीं लेने देते परन्तु वे दिल से ऐसा कभी भी नहीं चाहते थे कि एक बाहर
से आए हुए शिक्षक के साथ सख्ती बरती जाए परंतु भोला को जिला शिक्षा अधीक्षक जय
हिंद के अनुचित निर्णय से आक्रोश था। भोला चाहते थे कि मिहिर खुद ही जिला शिक्षा
अधीक्षक जय हिंद के पास पहुंचकर अपनी फरियाद करें कि मुझे भोला से परेशानी है।
वहाँ हकीकत बयां कर सकते थे। पर मिहिर ऐसा नहीं कर रहे थे, कष्टसहिष्णु बने हुए
थे। प्रतिकार भी किया तो जुबान से नहीं, अपितु श्रेष्ठता सिद्ध करने के अभिनय से।
टीचर्स अटेंडेंस रजिस्टर छुपाना, एडवांस अटेंडेंस बनाकर चले जाना , भोला के साथ एडजस्टमेंट
न करने की प्रवृत्ति आदि, ऐसे में क्या दिन जाने वाला था ! पर दिल तो आखिर दिल ही
होता है । शील, विनय आदर्श आदि उद्धात चारित्रिक गुणों को महत्व देने वाला भोला का
दिल बदलने लगा। वह अपने सख्त रबैये से बाज आने लगा। उसकी आत्मा उसे अपने से दूर
जाने से रोकने लगी। अपने षड् रिपु से संघर्ष कर उन्हें परास्त करने के लिए अन्तः
प्रेरित करने लगी। जब वह एकान्त-साधना में, ध्यान-प्रार्थना में डूबता था तो जसे
ऐसा लगता मानो उसे कोई समझा रहा है – ‘अपने को संभालो , यह जिन्दगी दूसरों को
संवारने की प्राथमिकता में बर्वाद कदापि न करो अपितु अपनी संभाल करते हुए जो
उपकारी कार्य बन पड़े, करते चलो। स्वप्न पूर्वाग्रही मानसिकता की ऊपज है। यह जीवन
की वास्तविकता नहीं। यह तभी समझ में आती है जब व्यक्ति अव्यक्त की चिन्ता में
चित्त को समाहित करने की साधना करता है। भगवान बुद्ध के उस वचन को कि वीणा के तार
को इतना मत कसो कि वह टूट जाए और इतना ढीला भी मत करो कि सुर ही बिगड़ जाए अर्थात्
मध्यम मार्ग अपनाओ ? यही जीवन का राज है।’ मध्य विद्यालय उधवा के शांत और शिष्ट
माने जाने वाले शिक्षक मयमूल ने भी एक बार भोला से कहा था- सर, आदमी को सही
समझ हमारे इस्लाम के अनुसार नमाज के वक्त होता है, जब वह एकाग्र होकर नमाज अदा
करता है। उस समय भोला ने भी कहा था -बिल्कुल सही कहा मयमूल भाई आपने। ध्यान-साधना
के पवित्र समय में हमारे सनातन धर्म में भी ऐसी रहस्यमयी अनुभव साधक को प्राप्त
होता है और व्यक्ति अपने यथार्थ रूप से अवगत होता है। भोला अब तक के शिक्षक-जीवन
में अपने कर्म-मय जीवन से ही मतलब रखता आ रहा था। कौन क्या करता है, वह कभी किसी
को न निहारता था। वह यह अच्छी तरह समझता था कि दूसरों की अकर्मण्यता या सक्रियता
से व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। उसमें भी अकर्मण्यता, कमतर मनोबल वाले को
अपने गिरफ्त में बड़ी आसानी से फॅसा लेती हैं। कर्मण्यता तो कर्मयोगियों को ही
प्रभावित करती है और उन्हें कर्मशील बनाती है। भोला की इसी कर्मशीलता की उपज है कि
वह जिले भर में जाने माने शिक्षक हैं। यही वजह है कि दिनांक 25 नवम्बर 2017 को सम्पन्न
समाहरणालय, साहिबगंज के प्रांगण में अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के धरना-
प्रदर्शन में भोला को अध्यक्ष घोषित किया गया था।
सत्य के सामने आदमी जब नहीं झुकना चाहता है, तो समय उसे झुकने के लिए विवश कर
देता है। मिहिर हेडमास्टर के घर में कोई आकस्मिक घटना घटी थी, इधर नवंबर माह के
अंतिम तारीख में इनका 15 आकस्मिक अवकाश दर्ज हो चुका था। मात्र एक दिन ही बचा हुआ
था। हमेशा अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के चक्कर में यह बाबू कभी भोला के सामने
आकस्मिक अवकाश बचाने के लिए आग्रह नहीं किया था । बल्कि यह अपने कूटनीति चाल से
बचने का प्रयास करता था, परंतु आज इन्होंने भोला को फोन किया- ‘सर ! मेरे जीजाजी
के साथ कुछ घटना घट गई है , घर जाना जरूरी है, सर। घर निकल भी गया हूँ । मात्र एक
आकस्मिक अवकाश शेष रह गया है। सर थोड़ा दया करके आकस्मिक अवकाश बचाने की कृपा
करेंगे।’ इतना कहकर उन्होंने फोन से विदा मांगी। भोला एक शिक्षक था और शिक्षक ही
शिक्षक का दर्द वास्तविक रूप में समझ सकता है। भोला को यद्यपि डीएसई जय
हिंद,साहिबगंज के गलत निर्णय के प्रति आक्रोश था और इसी वजह से वह एक आदर्श शिक्षक
का रोल निभाकर अपने आक्रोश का इजहार कर रहा था ,परंतु मानव मूल्य भी महत्वपूर्ण
दर्शन है; जिसे मानवता की दृष्टि से स्वीकार करना अपरिहार्य हो जाता है। गत वर्ष
भी मिहिर हेड मास्टर का आकस्मिक अवकाश अधिक हो गया था । इस बार भी यही स्थिति थी,
पर भोला ने मिहिर के आग्रह को ठुकराना अनुचित समझा और आज उन्होंने निर्णय ले लिया
था कि 'मिहिर के उपस्थिति कॉलम में कुछ नहीं लिखना है। यूं ही छोड़ देना है, ईश्वर
के भरोसे । कठोरता का बर्ताव नहीं करना है। वीणा के तार को इतना कसना नहीं है।
मध्यम मार्ग अपनाने के लिए आज अपने मनः स्थिति को तैयार कर लेता है' और उनका
आकस्मिक अवकाश नहीं चढ़ाता है। इससे भोला को अपूर्व शान्ति का अहसास हो रहा था।
क्योंकि दूसरे को विशाद देकर हर्ष प्राप्त किया जाना असंभव है।
‘गोदान’ में होरी का बेटा गोबर एक नीच जाति की लड़की से प्रेम किया था । लड़की
गर्भवती हो गई थी। गांव में पंचायती बैठी। पंचों का निर्णय हुआ कि होरी उस लड़की
को घर से निकाल दे, अन्यथा वह दस मन अनाज का जुर्माना भरें, ऐसा नहीं करने
पर उनके साथ बिरादरी के सभी लोग उससे रोटी, पानी , हुक्का आदि का संबंध तोड़
देंगे। होरी इसे स्वीकार कर लेता है। जुर्माना में लगाए गए अनाज को वह अपने कंधे
लादकर कर पंचों को पहुंचा देता है, परंतु उस लड़की को घर से नहीं निकालता है। उसे
बहू बना लेता है। यही तो है मानव मूल्य। क्या होरी हार गया ? क्या भोला गिर गया ?
नहीं, दोनों ने मानव मूल्य को महत्त्व दिया है।
43.
ठीक बारह बजे दोपहर को एक बोलेरो बालिका विद्यालय फतेहपुर प्रखंड उधवा के
प्रांगण में लग गई । दो सज्जन गाड़ी से बाहर निकले ,एक थे- जिला सहायक कार्यक्रम
अधिकारी राजेंद्र और दूसरे थे - इसी प्रखंड के कार्यक्रम पदाधिकारी श्री फटल भगत।
इनके स्वागत में सभी शिक्षक खड़े हो गए । संसाधन केंद्र के अंदर पदार्पण हुआ ।
शिक्षकों की मंडली में ये दोनों महोदय शामिल हो गए । बैठ जाने पर शिक्षक सह
प्रतिभागी भोला तीन तालियों से सामूहिक स्वागत कराया। घर जाने के मूड में बाहर घूम
रहे मिहिर एचएम उधवा और उमर अंदर आ गए थे। इन दोनों बाबू के आने के पूर्व ही चार-
चाल रसगुल्ले बंट चुके थे। उस समय सदन में मात्र आठ प्रतिभागी उपस्थित थे और साहब
के आने के बाद भी यही स्थिति थी।
बैठते ही पतन बाबू से राजेंद्र बाबू ने प्रश्न किया ‘कौन-कौन सा कार्यक्रम अब
तक हुआ?, थोड़ा बताया जाए।’
‘आज सिर्फ एक प्रार्थना हुआ सर, भोला सर के माध्यम से बहुत ही सुंदर लय से और
कुछ नहीं हो पाया’ पतन ने बताया।
‘बस इतना ही और आपने सभी प्रतिभागियों को छोड़ दिया! गजब बात है ,यही उपस्थिति
और मात्र एक कार्यक्रम!’
सहायक कार्यक्रम अधिकारी श्री राजेन्द्र बाबू ने संकुल संसाधन सेवी श्री पतन
कुमार की ओर देखते हुए पूछा- ‘आज संकुल संसाधन केन्द्र की बैठक में उपस्थिति नगण्य
है, इसकी वजह क्या है,पतन कुमार जी ? क्या आपने समय पर सभी शिक्षकों को खबर नहीं
दी?’
‘हाँ, सर! खबर तो सबको है’ सिर ऊपर कर राजेनद्र बाबू की ओर ताकते हुए
संकोच-भाव से पतन ने कहा।
‘तो फिर इतनी कम उपस्थिति? माजरा क्या है?’
‘ आज कम उपस्थिति भी है और इनमें-से कुछ चले भी गए हैं।’
‘तो संकुल संसाधन केंद्र में आने जाने का कोई नियम वगैरह है या जब जिसका मन
हुआ आया और गया ? इसका मतलब है कि आप भी ऐसे ही करते होंगे, क्या मेरी बात सही
है?’ पतन बाबू संसाधन सेवी की बोली बंद, निरुत्तर हो गए। इसी समय घर जा चुके
शिक्षक अकरमण और मिसिर पुनः आ गए थे। इन्हें उमर ने फोन करके बुला लिया था।
आगे गुस्सैल मूड में जोर-जोर से फटकारते हुए कहने लगे ‘मैं आपके सेंटर की इस
प्रकार की उपस्थिति के संबंध में जिला मुख्यालय को क्या रिपोर्ट दूंगा? आपके बारे
में पदाधिकारी क्या सोचेंगे? देखें लाइए तो उपस्थिति पंजी।’ भींगी बिल्ली की तरह
हो गए थे ,पतन कुमार। अपनी अकर्मण्यता का एहसास तो था उनको परंतु सदन के समक्ष
फटकारे जाने से मुजरिम बन गए थे। संसाधन केंद्र ,केवल दिखावे का केंद्र था। साहब
तो जानते थे ,परंतु बगैर साक्ष्य के भला कोई अपराधी अपराध को अंगीकार करे तो कैसे
करे ? अरे भाई! अजीब बात है बत्तीस शिक्षकों की संख्या की जगह मात्र दस की
उपस्थिति ! यही स्थिति तो प्रत्येक सीआरसी के बैठक की रहती होगी?’
‘नहीं सर! आज ही ऐसा हुआ है’ सहमे हुए आवाज में पतन ने उत्तर दिया।
राजेंद्र बाबू पिछले सीआरसी बैठकों की उपस्थिति जांचने लगे, परंतु उनमें
अनुपस्थित पाना संभव नहीं था ,क्योंकि देर सवेर या तो शिक्षक अपनी हाजिरी बना लिया
करते थे या फिर संसाधन सेवी बनवा लेते थे। इस प्रकार के गतिविधि से राजेंद्र बाबू
अच्छी तरह रूबरू थे, पर करे तो क्या करे। ऊपर से नीचे एक ही हाल है। ढाक के तीन
पत्ते। जहां जाओ यही स्थिति। सुधार का कोई आधार नहीं। चारों तरफ निराधार चल रही है
संस्थाएं। प्रेरणा का यह गीत प्रासंगिक हो रहा है ‘शील विनय आदर्श श्रेष्ठता तार
बिना झंकार नहीं है, शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतिक आधार नहीं है।’
राजेंद्र बाबू अपने मोबाइल से उपस्थिति पेज का स्केन फोटो लेते हुए पतन को कहा
‘चलिए, पतन बाबू, ये सब देख कर क्या होगा! आप आज की उपस्थिति का एक सामूहिक फोटो
खींचिए।’ पतन कुमार उठ गए अपने स्मार्टफोन सेट मोबाइल लेकर और उपस्थित शिक्षक सहित
उनका भी ग्रुप फोटो खींचकर राजेंद्र बाबू के मोबाइल पर सेंड कर दिए।
‘शिक्षकों को आप ऐसी फटी -गुदड़ी दरी में बैठाते हैं ! इसके ऊपर एक चादर भी
नहीं दे सके! आप तो शिक्षक को सम्मान ही नहीं दे रहे हैं! आपको को अमित पाल बाबू
से सीखना चाहिए । जा कर देखिए उनका संकुल संसाधन केंद्र कोला बाड़ी में । शर्म आती
है आपका केंद्र देखकर।’ बिछी, फटी दरी की ओर देखते हुए फिर पतन एवं शिक्षक की ओर
ताकते हुए राजेंद्र बाबू ने कही। सदन में उपस्थित सभी शिक्षक कभी साधनसेवी पतन की
ओर निहार रहे थे तो कभी राजेंद्र बाबू की ओर। पतन नीचे मुंह गड़ाए मौन थे।
‘इस विद्यालय के शिक्षक कौन है ?’ राजेंद्र बाबू ने गरजकर कहा।
इस विद्यालय के शिक्षक सदन में बैठे थे नाम था- अरविंद। तुरंत राजेंद्र बाबू
की ओर मुखातिब होकर और हाथ जोड़ते हुए कहा ‘हाँ सर, मैं ही हूँ, इस विद्यालय के
प्रभारी प्रधानाध्यापक।’
आपका नाम ?
अरविंद प्रसाद।
कहाँ रहते हैं ?
प्रतिदिन साहेबगंज से आता हूँ , सर।
ठीक है ये बताइए ,संकुल संसाधन केंद्र में जो पैसे आते हैं, आप दोनों मिलकर ही
न निकालते हैं, और खर्च करते हैं ? तो आप लोगों को ये भी समझदारी नहीं है कि
संसाधन केंद्र को एक शिक्षा के केंद्र के रूप में सजाना चाहिए? जब आप दोनों की यह
मानसिकता है तो आपका संसाधन केंद्र आप ही के अनुकूल न होगा ! क्या खंडहर बना कर
रखे हैं, साहब ! आखिर सरकार आप लोगों को फंड क्यों देती है और उस फंड का आपलोग किस
रूप में उपयोग करते हैं ? ‘हाँ सर, इसकी समुचित व्यवस्था में तो ध्यान दिया जाना
ही चाहिए। आकर्षक बनाना ही चाहिए। लेकिन मैं क्या करूँ सर, मैं तो अपने
विद्यालय की बोझ से दवा रहता हूँ,’ अरविंद ने बड़ी सहजता से अपनी सफाई दे दी।
‘इसका मतलब है कि आप संकुल की व्यवस्था में रुचि नहीं रखते हैं । आप बिल्कुल
तटस्थ रहते हैं। और यहां का हाल बेहाल होता जा रहा है। क्या आपको अपनी भूमिका अदा
नहीं करनी चाहिए?’
‘जी सर, करनी चाहिए’ अरविंद ने धीरे से जवाब दिया मानो वह यह कहना चाह रहे थे
कि मेरी तो कोई गलती नहीं है, मुझे क्यों कर रहे हैं।
इसी बीच पतन ने दो प्लेट में चार चार रसगुल्ले, चनाचूर और बिस्किट लाकर
राजेंद्र बाबू और फटल बाबू के सामने रख दिए । राजेंद्र बाबू अकेले खाने से मना कर
रहे थे, परंतु जब सभी शिक्षकों ने कहा कि सर हम लोगों ने पा लिया है ,तब राजेंद्र
बाबू ने सिर्फ एक रसगुल्ले और एक बिस्किट लेकर रस्म निभा दी क्योंकि उपस्थिति की
बदतर स्थिति देख कर उनका मूड बिगड़ गया था।
उन्होंने यह भी कहा ‘मैं जो निरीक्षण करने आया, जरा विचार कीजिए सरकार का
इसमें कितना खर्च हुआ होगा या होता है और अचीवमेंट बिलकु जीरो। हमारी, आपकी यही
ड्यूटी है क्या ? हमें अपने गिरेबान में झांकने की आवश्यकता है । हम कितना गिर
चुके हैं और यही स्थिति रही तो और कितना गिरेंगे । समाज के लोग हमें गालियां क्यों
नहीं देंगे ? ताना क्यों नहीं मारेंगे? शिक्षक की उपस्थिति भी नगण्य है । आपलोग
अन्यथा न लेंगे मास्टर साहब । अपने कार्य के प्रति शिक्षक कितने उदासीन हैं ।
कितने अकर्मण्य हैं । क्यों नहीं गांव के लोग शिक्षक के प्रति फब्तियां कसेंगे?
उन्हें अपमान का घूंट क्यों नहीं पीना पड़ेगा? ऐसे ही शिक्षक के चलते अच्छे-अच्छे
शिक्षक बदनाम होते हैं। हम शिक्षाकर्मियों की उदासीनता , कर्तव्यहीनता , लापरवाही
के कारण पूरा शिक्षा समाज, पूरा शिक्षा विभाग बदनाम होता है। सुधार करने की
आवश्यकता है या नहीं है _ _ _?’
समवेत स्वर में उपस्थित सभी शिक्षकों ने सहमति जताई और कहीं- ‘नितांत आवश्यक
है, सर।
दोपहर के डेढ़ बज चुके थे। राजेंद्र बाबू और फटल भगत बाबू दोनों सदन से विदा
लेकर बाहर निकले। सभी प्रतिभागी उनके पीछे उनकी गाड़ी के निकट आए । उभय
महाशय गाड़ी में विराजित हुए। राजेंद्र बाबू प्रतिभागियों को देखते हुए हाथ हिला
रहे थे। फिर मिलेंगे, जता रहे थे। गाड़ी आगे बढ़ चली।
अनल , भोला और ज्ञानी मास्टर ये तीनों मध्य विद्यालय उधवा के शिक्षक थे और एक
ही साथ संसाधन केंद्र फतेहपुर से वापस अपने विद्यालय की ओर आ रहे थे। ज्ञानी ने
कहा था- ‘सर, पूरे झारखंड में यही स्थिति है। परियोजना द्वारा संचालित यह
कार्यक्रम केवल दिखावे का कार्यक्रम है। इससे जुड़े हुए व्यक्ति केवल माल कमाने के
फेर में हैं । गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा में अभिरुचि बहुत कम दिखाई पड़ती है। यदि आप
एक सौ संसाधन केंद्र लेंगे तो इनमें से दस की स्थिति ही व्यवस्थित मिल सकती है ,
अन्यथा सब के सब केवल खानापूरी कर रहे हैं।’
अनल और भोला ने कहा- ‘ हंड्रेड परसेंट राइट ,बड़े पैमाने पर शिक्षा व्यवस्था
में यह परियोजना एक नाटकीय मंच बना हुआ है, घोटाले का और लूट-खसोट का।’
इस निरीक्षण के एक सप्ताह बाद एक दिन फतेहपुर संसाधन केंद्र के संसाधन सेवी
पतन बाबू ने भोला मास्टर को फोन किया ‘सर आप , आगामी संकुल संसाधन की बैठक में कुछ
तैयारी करके आएंगे।’
‘हाँ आऊंगा, मगर मेरी तैयारी से पहले आप की तैयारी होनी चाहिए। संसाधन केंद्र
की साज-सज्जा, बैठने की समुचित व्यवस्था , प्रतिभागियों की उपस्थिति और उपस्थिति
के साथ उनके ठहराव की प्रशासनिक जिम्मेदारी आप नहीं उठाते हैं। ऐसी स्थिति में आप
मुझे ट्रेनर के रूप खड़े कर देते हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं तो एक प्रतिभागी
बनकर आता हूँ ,परंतु आप मुझे जो दायित्व सौंपते हैं, तो मैं कुछ बताने के लिए खड़ा
हो जाता हूँ , परंतु आपकी कमजोरी के कारण , आपकी कमी के कारण सब गुड़ गोबर हो जाता
है। क्या आप कुछ सुधार कर रहे हैं? दरी ,चादर ,टेबल में टेबल क्लॉथ, समय की पाबंदी
आदि की ?’
‘हां सर, आप आइए। इस बार अवश्य आपको मेरी तैयारी नजर आएगी।’
‘ठीक है , अवश्य आऊॅगा। मिलजुल कर हम संसाधन केंद्र को एक नया रूप देने का
प्रयास करें। कुछ परिवर्तन की ओर आगे बढ़े हैं। सब को प्रेरित करें।’
आज सीआरसी की मासिक बैठक थी। भोला कुछ तैयारी करके ही गए थे। परंतु पतन बाबू
के फतेहपुरी संकुल संसाधन केंद्र की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। वही
ढाक के तीन पात । फटी हुई दरी में सबको बैठना पड़ा पहले की तरह। उपस्थिति में
थोड़ी इजाफा हुआ था परंतु प्रतिभागियों के ठहराव की वही स्थिति, पलायन की। बहुत
मुश्किल से भोला मास्टर ने एक कहानी कही थी और एक गतिविधि कराई थी। नाश्ता-पानी की
तो व्यवस्था बिल्कुल नहीं थी।
ज्ञानी बता रहे थे ‘देख लिए सर , बीते संकुल संसाधन की बैठक में राजेंद्र
बाबू, एपीओ ने कितनी सारी बातें कही थी, डांट फटकार भी की थी, परंतु व्यवस्था में
कोई परिवर्तन नहीं हुआ । यही है- परियोजना।’
44.
इसी प्रखंड के शिक्षक उमर कुमार जो कि उधवा मध्य विद्यालय में पदास्थापित पारा
शिक्षक थे, ने आज 20 शिक्षकों की उपस्थिति में, फतेहपुर के संकुल संसाधन केंद्र के
सदन में दो प्रश्न रखे थे । पहला यह कि ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता तो फिर एक
शिक्षक अपनी क्रियाशीलता से क्या विद्यालय को संभाल सकेंगे ?’
दूसरा सवाल था कि ‘रवींद्र नाथ ठाकुर की यह उक्ति कि जोदी तोर डाक शुने केऊ ना
आसे तबे एकला चोलो रे, अर्थात् यदि आप की पुकार सुनकर कोई न आए तो अकेले चलो, तो
क्या कोई आदमी अकेले चलकर कुछ कर सकता है ? यदि उनका कोई साथ न दे? जैसा कि पहले
प्रश्न में है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता । ये दोनों उक्तियां आपस में टकराती
हैं। आप सभी यह भी जानते हैं कि करीब- करीब सभी विद्यालयों में इसी प्रकार की
स्थिति देखी जाती है। किसी-किसी शिक्षक को ऐसा देखा जाता है कि वह दौड़ लगाते हैं
,अपनी क्रियाशीलता से। लेकिन क्या हमेशा कोई दौड़ सकता है? उसे कभी चलना भी होगा।
कभी आराम भी करना होगा? अकेले दौड़ कर वे क्या कर लेंगे? सभी उसके साथ दौड़ भी
नहीं सकते, चलना तो दूर की बात है। इसलिए इसका समाधान मैं सदन से चाहता हूँ।’
उपस्थित सभी प्रतिभागी उमर कुमार की ओर देख रहे थे। प्रश्न सुनकर भी चुपचाप
थे। उमर कुमार के सहयोगी शिक्षकों में मास्टर मिहिर , भोला , बदलू , मिसिर ,ज्ञानी
और अकरमण बाबू उपस्थित थे। सबके सब यही सोच रहे थे कि उमर तो हमारे मध्य विद्यालय
उधवा की ही बात कर रहे हैं। भोला ही तो है जो अकेले चना बनकर भाड़ फोड़ना चाहते
हैं और उनकी बात कोई नहीं सुनता परंतु वह अकेले चलने को ठान लिया है। यद्यपि इस
तरह की बातें अक्सर विद्यालयों में देखी जाती है तथापि उमर कुमार का लक्ष्य तो
भोला ही था। दोनों ही उक्तियां उन्हीं को लक्ष्य करके पूछी गई थी। अपने प्रश्न को
उमर कुमार विस्तार से समझाने के क्रम में भोला की ओर देखता भी था। पूरा सदन मौन
था। भोला और ज्ञानी की ऑखें मिल रही थी और दोनों मुस्करा रहे थे।
चूँकि अकरमण शिक्षकों की श्रेणी में सीनियर में से थे इसलिए उन्होंने कहा था
‘शिक्षक भाइयों! उमर कुमार ने जो समस्याएं रखी हैं ,जो जानते समझते हैं, वे इनका
उत्तर दें।’
‘ठीक है,सर ! मैं पहले प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करता हूँ’ ज्ञानी ने
कहा। और वे प्रवचन के मूड में बोलने लगे-
‘यह एक कहावत है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता, लेकिन ऐसा भी देखा जाता है कि
भाड़ में अगर चना भरा हुआ हो तो भी भाड़ नहीं फुटता क्योंकि सब के सब चने भुने हुए
होते हैं अर्थात बेजान होते है, इसलिए उन पर मौसम का कोई असर नहीं पड़ता। मौसम का
असर तभी पड़ेगा जब सब के सब चने कच्चे अर्थात अच्छे होंगे तब भाड़ अवश्य फूटेगा
अर्थात अन्याय का विरोध होगा, क्योंकि इनमें सृजन की क्षमता होती है। तात्पर्य यह
है कि ऐसे व्यक्तियों का ग्रुप जो भुने हुए चने के सदृश सिर्फ भोग्य वस्तु बने हुए
हैं, सृजनशीलता उनमें नहीं है, अंकुरण की शक्ति उनमें नहीं है, इसलिए वे कुछ नहीं
कर पाते हैं। अतः अन्याय की दीवार सदृश भाड़ को वे भला कैसे फोड़ेंगे ? बस इतना
ही, मैंने जो समझा वह आपलोगों को सुनाया।’
नमाजुद्दीन एक अच्छे नमाजी शिक्षक थे। उन्होंने भी अपनी राय देने की अनुमति
मांगी, बांग्ला भाषा में। शिक्षकों ने सहर्ष स्वीकृति दे दी। उन्होंने जो कहा,
यहाँ उसका हिंदी अनुवाद दिया जा रहा है-
'ऐसा मनुष्य जिनकी कामनाएं समाप्त हो गई हो , दग्ध बीज कहे जाते हैं । यदि
कामनाएं होती भी हैं, तो परहितार्थ । स्वहितार्थ नहीं। इनकी चेष्टएं लोकोपकारी
होती है। दग्ध बीज व्यक्ति संगठित हो सकते हैं और अन्याय की दीवारें तोड़ सकते
हैं। ऐसे व्यक्तियों में द्वंद्व आपस में हो लेकिन काम करना चाहिए वाली उक्ति
चरितार्थ होती है। दग्ध बीज हुए बगैर व्यक्ति में संगठित होने की शक्ति नहीं होती।
वे द्वंद्व में फंस कर रह जाते हैं , स्वार्थ में लिप्त हो जाते हैं। उनमें सृजन
भावनाएं गौन हो जाती। उनकी भी आत्मा उन्हें चेताती जरूर है । संकेत देती जरूर है।
उनकी भी आत्म- एलार्म बजती है। परंतु वह आत्मा की एलार्म को अनसुनी कर जाते हैं ।
ऐसी स्थिति में वह कुछ नहीं कर पाता। ऐसे व्यक्तियों से संस्था या समाज के उत्थान
की कल्पना नहीं की जा सकती। वह भुने हुए चने के समान ही हो जाता है। अपने ही मुल्क
में आजादी हासिल करने के लिए ऐसे ही दग्ध बीज व्यक्तियों का समूह हुआ करता था जो
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ते थे। आज हमारे समाज में या हमारे विद्यालय में एक
व्यक्ति अगर दग्ध बीज है भी तो वह अकेले पड़ जाते हैं। व्यक्ति तो बहुत हैं लेकिन
दग्ध बीज नहीं है, इसलिए वे आलस्य, प्रमाद, अहंकार, स्वार्थ आदि से घिरे रहते हैं
और वे प्रगति पथ के रोड़े बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में एक दग्ध बीज व्यक्ति की वही
दशा होती है जो अकेले चने की होती है , जो भाड़ को फोड़ नहीं पाता। परंतु वह अपना
जीवन तो धन्य करता ही है। यही मैंने उमर कुमार जी के पहले प्रश्न के जवाब के तौर
पर रखने का प्रयास किया।’
दरअसल व्यक्तिमात्र स्खलनशील होते हैं। वह कभी पूर्ण नहीं होता, परंतु जो
जितने अंशों में पूर्ण रूप परम पिता परमेश्वर के कार्य में लग जाते हैं , वे ऊतने
ही अंशों में पूर्णता की ओर अग्रसर होते हैं और वे हमेशा सकारात्मक सोंच लिए रहते
हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि जो जितने अंशों में दग्ध बीज होते हैं
वे उतने अंशों में पॉजिटिव होते हैं । सृजनात्मकता लिए रहते हैं। प्रत्येक संस्था
,समाज या विद्यालय में कुछ व्यक्ति या शिक्षक अवश्य ही इस प्रकार के होते हैं।
परंतु ऐसे व्यक्ति की संख्या कम होती है अर्थात सभी इसके विपरीत नहीं होते , इसलिए
देखा यह जाता है कि कुछ व्यक्ति अवश्य ही सृजनात्मक कार्यों में हाथ बंटाते हैं ।
अपना सहयोग देते हैं। उधवा विद्यालय में ज्ञानी, अनल, मयमूल, संतु ऐसे ही शिक्षकों
में थे, जो अपनी क्षमता के अनुसार पॉजिटिव रहते थे । बाधक नहीं बनते थे। परंतु उमर
कुमार इन मेंसे कुछ अलग थे। ये दोहरे चरित्र के व्यक्ति थे। कभी पॉजिटिव बात करते
तो कभी नेगेटिव । कभी भोला जैसे शिक्षक के समक्ष हेड मास्टर मिहिर , अककरण,
बिकरमन, मिसीर आदि की शिकायतें दबी जूबान से करते तो कभी उनकी प्रशंसा करते । भोला
के विरोध में उमर कुमार गुप्त साजिश रचने में सफल हुए थे , परन्तु उमर को सत्य का
एहसास हो रहा था। इसी कारण वह ऐसे प्रश्नों से जूझ रहे थे। उनके मन में यह स्थिति
टकराती रहती थी। अपने मन के विकारों से ग्रसित था। इसलिए वह सदन के समक्ष इस
प्रकार के प्रश्न रखे थे। जिस व्यक्ति की मानसिक दशा जैसी होती है ,वह उसी प्रकार
की भाषाएं बोलता है। फलतः मन के विचार मुख से प्रकट हो ही जाते हैं। कभी-कभी मन के
भाव चेहरे में भी दिखाई पड़ते हैं। जैसा आहार वैसा डकार। इसलिए कहा गया है - फेस
ईज दी इंडेक्स ऑफ माइंड। दोहरे चरित्र के व्यक्ति और अधिक घातक होते हैं । ऐसे
व्यक्तियों से परिवार ,समाज ,संस्था सब कुछ त्रस्त होता है। समय-समय पर यह अलग-अलग
चालें चलते हैं। उधवा विद्यालय से संबंधित नीलू बाबू इसके सर्वोत्तम उदाहरण माने
जाते थे । अतः दोहरे चरित्र से सावधान रहने की आवश्यकता है । स्वामी विवेकानंद ने
कहा था ‘चालाकी से महान कार्य नहीं हो सकता।’
सदन में फतेहपुर मध्य विद्यालय के सूरज बाबू बंगाली शिक्षक थे और वे रवींद्र
नाथ ठाकुर के संबंध में अच्छी खासी जानकारी रखते थे। वे नैतिकता से ओतप्रोत शिक्षक
थे और आध्यात्मिकत की भी पकड़ थी उनमें । सदन की ओर हाथ जोड़ते हुए कहा- ‘उमर
कुमार के दूसरे सवाल का जवाब मैं देना चाहता हूँ । कृपया मूझे सदन की ओर से अनुमति
दी जाए।’ सहर्ष स्वीकृति मिल गई । तब बड़ी विनम्रता के साथ अपनी बातें सदन में पेश
करने लगे-
‘कवि रवींद्र नाथ ठाकुर ने कहा है यदि आपकी बात सुनकर कोई न आए तो अकेले चलो।
बांग्ला में कहा है- जोदि तोर डाक शुने केऊ ना आसे तबे एकला चोलो रे। इसमें कवि की
सोच यह है कि मैंने तो ठान लिया है कि मेरा जो कार्य है वह बिल्कुल पवित्र है और
करने योग्य है। इसे नहीं करना मानव मूल्य को खोने के समान है, परंतु मेरे आह्वान
को कोई महत्व नहीं देता क्योंकि वह इस पवित्र कार्य की मर्यादा और महत्त्व को नहीं
समझता, तो उनके चलते मैं क्यों अपने महत्वपूर्ण जीवन को व्यर्थ गॅवा दूँ ? इसलिए
मैं आह्वान तो करता हूँ, लेकिन मेरी बात अगर कोई न सुने तो मुझे अकेले चलना है,
अपने मानव जीवन को कृतार्थ करना है। एक शायर ने कहा है- मंजिले मक्सूद
मिले-न-मिले, गम नहीं/ मंजिल की राह में मेरा कारवां तो है। मूल बात यह है कि
प्रयत्नशील होना ही मनुष्य की विजय है।’
इसके पश्चात् सूरज बाबू ने एक छोटी-सी कहानी सुनाई थी। कहानी का शीर्षक था-
‘चतुर कौवा’। कहानी के बाद सूरज ने कई महत्वपूर्ण बिंदु सदन के पटल पर रखे थे ।
यथा - इस कहानी के माध्यम से बच्चों में शब्द भंडार विकसित करेंगे। बच्चों से अपने
वर्ग में कहानी को टूटी-फूटी भाषा में ही सही बोलने कहेंगे । इससे बच्चों में
अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास होगा आदि । शिक्षकों में उमर कुमार को बच्चों को
पढ़ाने की यह प्रणाली अच्छी लगी और हॅसते हुए सूरज सर को इन्सल्ट करने के लहजे से
सवाल किया। ‘सर क्या आप अपने स्कूल में ऐसा करते हैं?’
सूरज सर ने कहा था ‘बिल्कुल, मैं तो करता हूँ, क्या आप नहीं कर सकेंगे?’
सूरज सर के उल्टे सवाल से उमर बिल्कुल साइलेंट हो गया, मानो उनके मुंह में
ताला लग गया हो।
भोला मास्टर मन ही मन सोच रहा था ‘मैं तो मास्टर ट्रेनर रह चुका हूँ , बुनियाद
प्लस का और लगातार 16 दिनों तक। इस प्रकारकी नाकारात्मक मानसिकता से मैं तो खूब
रूबरू हुआ हूँ , और ऐसा प्रतीत होता है कि पचास प्रतिशत शिक्षक ऐसी ही मानसिकता
लेकर प्रशिक्षण में बैठते हैं , जिन्हें अच्छी बातें नहीं भाती। यों तो पारा
शिक्षक बंधुओं में वेतन को लेकर असंतोष की भावना है और इसके कारण वे उदासीन रहते
हैं, परंतु अच्छे खासे वेतन पाने वाले सरकारी शिक्षकों की भी ऐसी मानसिकता देखी
जाती है।’
चक्रधर बाबू ऐसे ही एक सरकारी शिक्षक थे। सदन में जब कभी विषय वस्तु की चर्चा
होती, ये कुछ न कुछ उलूल- जुलूल बड़-बड़ाते हुए ट्रेनर का अनादर करने का प्रयास
करते। बदलू मास्टर को कभी भी पूरे समय तक बैठते नहीं पाया गया था। जबकि ये लोग
उधवा प्रखंड के वरीय सरकारी शिक्षकों में थे। संपूर्ण साहिबगंज जिले के जाने माने
संसाधन सेवी अमित पाल जो कि कोलाबारी में सीआरपी थे, ने कहा भी था कि आप जिले के
किसी भी प्रशिक्षण शिविर में चले जाइए , प्रतिभागी बिलंब से आते हैं और पहले जाते
हैं। ट्रेनर की भी करीब-करीब ऐसे ही करते हैं । पदाधिकारी अपनी कमजोरी के कारण
इन्हें कुछ नहीं कह पाते। नतीजा यह होता है कि एंड़ी से चोटी तक काला बाजारी
व्यापक पैमाने पर चलता रहता है। डॉ. हरिप्रसाद दूबे ने ठीक ही कहा कि ‘आज आदमी में
बुद्धि है , सद्बुद्धि नहीं। चित्र है, पर चरित्र नहीं। संसार है, पर संस्कार
नहीं। मनुष्य आकृति है, पर प्रकृति नहीं । व्यक्ति है, पर व्यक्तित्व नहीं। जो
अपनी गलती सुधार का प्रायश्चित करता है , वह साधु है । जो गलती मान कर खेद जताता
है, वह सज्जन है। जो हठ करता है वह अच्छा इंसान नहीं है और जो सही गलत में गलत को
सही कहता है और सही को गलत कहता है वह भी नेक इंसान नहीं।’ तो क्या हमारे जीवन में
कर्तव्य का कुछ भी मायने नहीं ? मानवता के नाते हम से अपेक्षा की जाती है और की
जाती रहेगी कि हम जिस क्षेत्र में रहें, जिस विद्यालय में रहें या फिर जिस संस्था
में पदस्थापित रहे वहाँ कुछ ऐसी छाप छोड़कर जाएं कि वहाँ की जनता हमेशा हमें याद
रखें। पर _ _।
45.
कन्या विद्यालय फतेहपुर के संकुल संसाधन के सदन में मिसिर ने कहा था ‘ हम लोग
स्थानीय टीचर हैं। हमारी बातें नहीं बिकती । बच्चे भी हमारी अवज्ञा कर देते हैं।
गांव के ही बच्चे हैं , रात दिन हमारे सामने ही घूमते -फिरते रहते हैं। घर की
मुर्गी दाल बराबर वाली बात हो जाती है। सम्मान की भावना नहीं रहती। इससे हम लोगों
को विद्यालय की व्यवस्था, पढ़ाने-लिखाने आदि में कुछ दिक्कतें होती है।’
अकरमण बाबू भी स्थानीय शिक्षक थे। इन्होंने भी कहा ‘बिल्कुल सही बात। घर की
मुर्गी दाल बराबर वाली कहावत हम लोगों के लिए चरितार्थ होती ही है। हमें महत्व
नहीं दिया जाता। बच्चे भी हमें कुछ नहीं समझते। पर, मेरे सामने ये सब बातें कोई
महत्व नहीं रखती। जैसे भी हो मैं सब को ठंडा करके रखता हूँ। उस दिन की बात याद
करिए मिसिर जी, मैंने ऐसी फटकार लगाई कि सब सीधे गए, याद है न।’
मिसिर ने सिर हिलाते हुए कहा -हाँ हाँ हाँ, याद है।’ लेकिन अकरमण के इस डायलाग
को कोई नहीं समझ पाया। भोला, ज्ञानी, उमर , मिहिर कोई नहीं। सब के सब उनकी ओर देख
रहे थे और मुस्कुरा रहे थे।
‘आप की दबंगई से तो मध्य विद्यालय उधवा ही नहीं प्रखंड के प्रखंड शिक्षा
प्रसार पदाधिकारी तक चुप्पी साध लेते हैं , फिर विद्यालय के हेडमास्टर या अन्य
सहायक शिक्षक या बच्चे तो भींगी बिल्ली बनते ही हैं। यह कौन नहीं जानता है? जैसा
आपका प्रभाव है, उसी प्रकार आप का विद्यालय है, राजनीति का अड्डा।’ मन-ही-मन भोला
ने कहा। भोला के सामने बैठे ज्ञानी मुस्कुरा रहे थे और अपना सिर हिला रहे थे ।
उपस्थित शिक्षकों के चेहरे में भी मंद मुस्कान दिखाई पड़ रही थी। मानो सब कह रहे
हों –‘आप अपनी बड़ाई स्वयं कर लीजिए। पर आप को कौन नहीं जानता ? आपकी हरकतों से
कौन परेशान नहीं है? आपके गांव, मोहल्ले, विद्यालय भला कैसे बचेगा ? आप तो अपने
हेड मास्टर को कठपुतली बनाकर रखें हैं, साहब।’
भोला ने कहा ‘मैं जब मैट्रिक में पढ़ रहा था , उस समय अपने घर के अपने अध्ययन
कक्ष में एक सत्संग मंडली चलाया करता था। खासकर रामचरितमानस और गीता पाठ हुआ करता
था। कबीर ,गोस्वामी तुलसीदास, रविदास रसखान आदि के पद गाए जाते थे। इस संगत में
ढोलक, हारमोनियम आदि भी बजाए जाते थे। अगल-बगल के वृद्ध, युवक ,तरूण संगत में बैठते
थे। इसमें मेरे द्वारा समय की पाबंदी रहती थी। निर्धारित समय पर सभी जुटते भी थे।
यह सिलसिला मेरी नौकरी में योगदान करने तक चलता रहा। इसमें व्यक्ति निर्माण का
कार्य हुआ। इनमें रामप्रवेश एक अच्छे समाज सेवी निकले, जो अभी इसी प्रकार की
संस्था चलाया करता है और इन्होंने एक विशाल मंदिर का निर्माण भी कराया है। यदा-कदा
वे प्रवचन में मेरी चर्चा भी किया करते हैं। मेरा मतलब है, यदि आपके कार्य में
समर्पण का भाव हो तो स्थानीयता बाधक नहीं बनती। आप अगर दिखावे से दूर हैं , तो
व्यक्ति आप का साथ अवश्य देंगे , हम लोग पढ़े भी हैं- धर्मो रक्षति रक्षितः। और
गौरतलब है कि ज्ञात-अज्ञात रूप में आपसे व्यक्ति अवश्य प्रेरित होंगे। भोजपुरी में
एक कहावत है - घरे दीया बारी के मस्जिदीं दीया बारी अर्थात पहले घर में दीया जला
लें तब मस्जिद में जलावें। पहले खुद कुछ करें तब दूसरों को सिखावें। प्रभाव अवश्य
पड़ेगा । इसी में चमत्कार है। परम आराध्य मेरे गुरुदेव ने कहा है- सदाचार सबसे
बड़ा चमत्कार है। लिहाजा हमारे अंदर केवल व्यक्ति निर्माण की भावना होनी चाहिए।’
नमाजुद्दीन ने भोला से पूछा-‘सर आपके विद्यालय में आपको, जिला शिक्षा अधीक्षक
का आदेश प्राप्त हुआ था प्रभारी प्रधानाध्यापक की हैसियत से परंतु आपके विद्यालय
के शिक्षकों ने , आपके विद्यालय के प्रबंधन समिति के अध्यक्ष ने , फिर प्रखंड
शिक्षा प्रसार पदाधिकारी आदि किसी ने भी आपका समर्थन नहीं किया। सर, क्या इन
लोगों को आप का समर्पण दिखाई नहीं पड़ा?’
‘नहीं पड़ा, तो मैं क्या करूँ ! यदि उनका चित दूषित हो तो अच्छी बातें उन्हें
कैसे सुहाएंगी? इसमें मेरा क्या कसूर? आप ग्रामीणों से पूछें, जिनके बच्चे
विद्यालय में पढ़ते हैं । मुखिया से पूछें। वार्ड मेंबर से पूछें। प्रबंधन समिति
के अन्यान्य मेंबर से पूछें। रसोईया से पूछें। बच्चे तो अपने माता-पिता के पास जा
कर बताते हैं न , कि भोला कैसा टीचर है। आप जाकर पूछ कर देखें, शत प्रतिशत अभिभावक
मेरी प्रशंसा करते नहीं अघाते। आप कैसे कह सकते हैं कि मेरे समर्पण का, मेरे त्याग
का, मेरी कर्तव्यनिष्ठा आदि का किसी पर असर नहीं पड़ता ? जनता जनार्दन है ,वह नहीं
चूक सकती और कोई चुके तो चुके। इसलिए मैं निराश भी नहीं होता। मुझे पूरा विश्वास
है , अपने कर्तव्य परायणता पर। क्या नमाजुद्दीन भाई, मेरे बारे में आप नहीं जानते?
पूरा उधवा प्रखंड जानता है। 24 वर्ष हो गया इसी प्रखंड में मेरा।’ भोला ने
आत्मविश्वास के साथ कहा।
‘ बिल्कुल सही बात है सर, स्वार्थी लोगों को अच्छी बातें नागवार लगती ही हैं’
नमाज ने कहा। मध्य विद्यालय उधवा के शिक्षक गण सिर झुका लिए थे। किसी के मुंह से
कोई आवाज न थी, क्योंकि सब के सब भोला की ईमानदारी से परिचित थे।
अपराहन के 2:00 भी नहीं बजे थे कि संकुल से शिक्षकगण निकलने लगे थे। संकुल
संसाधन सेवी पतन का भी कोई शिकंजा नहीं था। अपने कमरे में चुपचाप बैठे थे। गोया,
वह भी इंतजार कर रहा था कि सब चले जाएंगे तो मैं भी चलता बनूॅगा। नाश्ता वगैरह तो
देना था नहीं।
ज्ञानी, अनल, मयमूल और भोला चारों पैदल ही अपने विद्यालय की ओर प्रस्थान कर
गए। अनल ने बदलू मास्टर के दिल के दर्द का राज भोला को सुनाने लगा ‘ कल बदलू सर,
बहुत मायुस थे, मिहिर हेड सर के वयवहार से। कह रहे थे कि अब तो वह मुझको कुछ नहीं
समझता। मिड डे मील का रजिस्टर कल तक मेरे पास ही रहता था। वह सिर्फ दस्तखत करता था
और अब तो मुझे देखने भी नहीं देता। लगता मैं शेयर ले लूँगा। यही सोंचता है। यह
आदिवासी नहीं। पक्का भूमिहार निकला। भोला मास्टर को तो मना लिया है , आरजू मिन्नत
करके और अब वह भी इसका आकस्मिक अवकाश नहीं चढ़ाता। आज भी बिना सूचना के गायब है,
आकस्मिक अवकाश नहीं चढ़ेगा। अकरमणवा के इशारे पर नाचता है। पोसा कुत्ता कामड़
मारता ही है।’
बोलते-बोलते गंभीर हो गया और कहा ‘अनल जी मैं बैंक जाता हूँ, स्कूल देखिएगा।’
बाईक में चढ़ा , भारी मन से और राजमहल की ओर चला गया।
ज्ञानी कहने लगा ‘बदलू बहुत दुखी था, सर । वह बोल नहीं पाता था। अपना दर्द
छुपा रहा था । अपराधबोध अब होने लगा था । और करता भी क्या ? गिनकर तो 3 महीने बचे
थे। नो ड्यूज सर्टिफिकेट और विदाई भी लेना जो था , मिहिर से।
याद कीजिए उस दिन हम सभी बाहर बैठे बातें कर रहे थे। ऑफिस से गिड़गिड़ाते हुए
बदलू बाहर निकला था। हम लोगों के बगल में रखे कुर्सी में बैठकर बोलने लगा था ‘
मेरी कुछ सुनता ही नहीं है। मैं जो भी कहता हूँ मानता ही नहीं है। अकरमण जो कहेगा
वही करेगा। उसी की बात में हाँ में हाँ मिलाता है।’
मयमूल ने कहा ‘ हाँ सर उस दिन मैं भी आप लोगों के साथ बैठा था। मैट्रिक
परीक्षा की सीट प्लानिंग चल रही थी। उसी में बदलू सर कुछ सजेशन दे रहे थे । पर
मिहिर हेड सर को उनका सजेशन मानना चाहिए था। पर मानने से मना कर दिया। कदाचित बदलू
सर कुछ चोरी कराने के इरादे से ऐसा करना चाहते थे । मिहिर तो बदलू का केवल दिखावे
का कदर भर करता है। एज यू शो सो यू रीप वाली कहावत फिट हो गई, सर।’
‘यदि उनके इरादे नेक नहीं थे तो मिहिर की गलती नहीं कही जा सकती। उनके गंदे
सजेशन का बहिष्कार तो होना ही चाहिए। स्थानीय बच्चे हैं । उन्हें चोरी में वह कुछ
मदद करना चाहते होंगे । परंतु यह तो अनुचित है। यह तो मुझे भी नागवार है भाई’ भोला
ने कहा।
बातें करते हुए सभी मित्र विद्यालय पहॅच गए। बच्चे घर चले गए थे। उमर बरामदे
में अखबार पढ़ रहा था। सभी मेज के चारों ओर बैठे ही थे कि मिसिर भी आ गए। मंदिर
में माइक की आवाज सुन अनल ने कहा ‘ हम लोगों के स्कूल में एक साउंड सिस्टम कब हो
सकता है, सर?’
‘यह सवाल मुझको नहीं करना चाहिए, अनल जी’ भोला ने कहा
मिसिर ने लंबी सांस खींचते कहा ‘ बदलू सर से तो नहीं हुआ। अब मिहिर से भी होने
की उम्मीद नहीं दिखाई पड़ती। ये भी बहुत अच्छे खिलाड़ी निकले। अपना काम निकालने
में माहिर हैं। विद्यालय विकास इनके भी डिक्शनरी में नहीं दिखता।’
उमर आवेश में आकर कहने लगा - ‘एक की तो फजीहत में समय बीत रहा है। दूसरे
दाव-पेंच से समय काट रहा है। लोकल रहे कुछ लाज भी हो। देखिए न मेरा भी फोटो स्टेट
वगैरह का पैसा बाकी है, देने का नाम ही नहीं लेता। उस दिन नाश्ते-पानी की व्यवस्था
होने वाली थी, तो दुकानदार ने भी साफ कह दिया, नहीं दूंगा। नया हेडमास्टर तो पैसा
देने का नाम ही नहीं लेता। बदलू सर गुस्सा कर कहा था चलिए तो अकरमण जी देखते हैं,
हम लोगों को नाश्ते का सामान मिलता है कि नहीं। मिहिर की बात का कोई दाम नहीं। कोई
ठिकाना नहीं। यह अव्वल दर्जे का चालाक निकला। कुछ देर बाद बदलू सर और अकरमण सर
दोनों दुकान से लौटकर आ गए। दुकानदार ने साफ कह दिया कि पहले पुराना पैसा दो तभी
सामान दूँगा। अब बताइए क्या आशा किया जाए कि हमारे यहां साउंड सिस्टम होगा ?’
मयमूल ने कहा सर, मैं आप लोगों को एक दुख भरी दास्तान सुनाता हूँ । बात उस समय
की है जब ठाकुर जी हम लोगों के मध्य विद्यालय में हेडमास्टर हुआ करते थे। मेरी
एडजस्टमेंट की बात चल रही थी इस विद्यालय में। ठाकुर जी अड़ंगा लगा रहे थे और उस
अड़ंगे में अकरमण भी शामिल थे । मैं आरजू-मिन्नतें कर रहा था। राजमहल के चेयरमैन
को भी लगाया। परंतु बात किसी भी सूरत में नहीं बन रही थी। बात वही बैकडोर यानी
रिश्वत की आई। बीस हजार लगा था सर, मेरा। ठाकुर जी और अकरमण दोनों मिल बांट कर खाए
थे। तीसरे किसी शिक्षक के हाथ एक रूपया भी नहीं लगने दिए थे। मैंने एक पाक-साफ बात
कही थी कि इस पैसे को सार्वजनिक काम में लगाया जाय। क्या उस समय मेरे पैसे से
साउंड सिस्टम नहीं हो सकती थी? क्या मेरे पैसे से दरी नहीं आ सकती थी ? परंतु इन
लोगों ने अपने पॉकेट में ही माल डाल लिया। हजम कर गया। ऐसे तो चरित्र हैं , इन
लोगों के। वही हाथी के दाॅत दिखाने के और, खाने के कुछ और। बनते हैं बहुत सज्जन।
उपदेश खूब देते हैं । परंतु करनी इतनी ओछी कि मुंह तरफ देखने का मन न करे। मैं तो
कहता हूँ सर, जब तक अकरमण मास्टर रहेगा इस विद्यालय में , इस विद्यालय का कोई भी
डेवलपमेंट कार्य नहीं हो सकता। हर एक कार्य में इन्हें परसेंटेज चाहिए।’
‘परंतु इस कथा को आप अपने अंदर छिपाए रखे थे, मुझे तो कभी नहीं सुनाया आपने।’
भोला ने कहा।
‘क्या करूँ ,सर लाचार होकर छुपाना जरुरी समझा था। मरता आखिर क्या नहीं करता।’
मयमूल ने गंभीर सांस लेते हुए कहा।
अपराह्न के 3:00 बज चुके थे। सभी मित्र अपने-अपने आशियाने को प्रस्थान कर गए।
46.
आज ‘दैनिक जागरण’ अखबार के साहिबगंज पेज में उधवा प्रखंड के गुलामुद्दीन टोला
प्राथमिक विविद्यालय के संबंध में समाचार आया था , जिसमें लिखा था ‘प्रकाश कुमार,
सचिव प्राथमिक विद्यालय गुलामुद्दीन (उधवा) को उनके पद से मुक्त करते हुए
अमरेन्द्र कुमार को विद्यालय का सचिव बनाया गया है, इसका आदेश उधवा प्रखंड के
प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी बोधन कुमार ने दिया है। जज साहब के मौखिक आदेश पर
बोधन कुमार ने यह आदेश जारी किया है। जज साहब ने बीईईओ बोधन को मौखिक आदेश दिया है
कि प्रकाश कुमार की कार्यप्रणाली सही नहीं है, इसलिए इस प्रकार के सचिव को पद में
बनाए रखना विद्यालय हित में नहीं होगा। इसी का हवाला देते हुए बोधन कुमार ने
प्रकाश को सचिव पद से मुक्त कर दिया है और उसके स्थान पर उसी विद्यालय के पारा
शिक्षक अमरेंद्र कुमार को सचिव नियुक्त किया है।’
एक पखवाड़े बाद की बात है। शाम का समय था। राजमहल कोर्ट कंपाउंड में भोला टहल
रहे थे। प्रकाश कुमार भोला को देखते ही नजदीक आया। दोनों मखमली घास में बैठ गए।
‘अखबार में तुम्हारे विद्यालय का समाचार दिखा प्रकाश, क्या माजरा है बाबू?’
भोला ने बात उठाई ।
क्या कहूँ मामा , आप तो जानते ही हैं , बीईईओ बोधन का दस्तूर किसी से छिपा है
क्या ?
मतलब?
मतलब यही कि मंथली पूजा मैंने नहीं की और क्या !
इसका मतलब है कि अमरेंद्र कुमार ने अच्छी तरह बोधन की पूजा की होगी।
बांग्ला में एक कविता है मामा ‘क्रोधी के वस करिबो मिनोती करिया आर लोभी के वस
करिबो किछु धन दिया’ अर्थात क्रोधी को आरजू मिन्नत कर के वस में किया जा सकता है
और लोभी को तो कुछ धन देकर वस में कर सकते हैं। इसी तथ्य के आधार पर लोभी बोधन
कुमार को अमरेंद्र कुमार ने अपने वस में कर लिया ,उधर जज साहब का मौखिक आदेश तो था
ही , मौका मिल गया , गोटी सेट हो गई। परंतु, इतना आसान भी नहीं है। मैं जिले के
अपने सबसे बड़े हाकिम जयहिन्द के सामने चारा डालूॅगा। जो न करे बाबा भैया सो कै
रूपैया, मामा जी। मानता हूँ कि अफसरशाही का दौर है, पर पैसे के सामने सबके सब
जनहित को नजरअंदाज करते तनिक भी देर नहीं करते। परिवर्तन टरिवर्तन तो केवल दिखावा
है दिखावा।
हाँ, तो और क्या ? ये तो बताओ प्रकाश, मिड डे मील चालू है, तूम्हारे स्कूल
में?
चावल बावल मिलेगा तब न ? मैं चावल का डिमांड करता हूँ तो जवाब मिलता है, बीईईओ
बोधन कुमार के आदेशानुसार गुलामुद्दीन टोला के स्कूल का सचिव तो अमरेन्द्र कुमार
है। आपको चावल कैसे दूँ? मिड डे मील भी बंद है, इसका परिणाम यह हुआ है कि बच्चे
स्कूल आना बंद कर दिए हैं । निकासी भी बाधित है। सचिव के रूप में अमरेन्द्र का नाम
भी बैंक में इन्ट्री नहीं हो रहा है। बीईईओ बोधन का कहना है ‘अभी तो सिर्फ सचिव के
आदेश का माल मिला है। बैंक में सिग्नेचर एटेस्टेड का आदेश मोटी रकम बिना संभव नहीं
है।’
भोला के मोबाइल में वंदे मातरम् का रिंग टोन बजा। मिसेज गीता का फोन था। भोला
प्रकाश कुमार से इजाजत लेकर घर की ओर चल दिया। प्रकाश कुमार भी चले गए ।
अच्छी खासी दक्षिणा लेकर बोधन कुमार ने अमरेंद्र का नाम सचिव के रूप में
अकाउंट में प्रेषित कर दिया। अमरेंद्र ने अपनी समिति गठित कर ली थी। विकास मद से
कुछ निकासी भी कर लिए थे, परंतु बोधन कुमार का यह आशीर्वाद अधिक दिन तक नहीं टिका।
जितनी रकम पुजाई में लगे थे, उतनी भी नहीं उठी। उसकी आधी भी नहीं । एक दिन अचानक
जय हिंद का पत्र विद्यालय में हाजिर हो गया कि सचिव के पद में पूर्व सचिव प्रकाश
कुमार ही बरकरार रहेंगे।
प्रकाश कुमार की मौसी माया दासी रिश्ते में भोला मास्टर की सिस्टर इन ला थी।
रोज की भांति भोला कोर्ट कंपाउंड में टहलने गए थे। वहीं भोला की माया दासी से भेंट
हो गई । दोनों घास में बैठे-बैठे इधर-उधर की बातें करने लगे । भोला ने प्रकाश
कुमार की समस्या के संबंध में पूछी। मजाकिए तौर पे मुस्कान भरी लहजे कहने लगी
‘ऋषियों-मुनियों, राजा-महाराजाओं आदि को अपने वस में करने या उनसे काम निकालने के
लिए युगों से कामिनी का उपयोग होता आया है। आज भी ऐसा देखा और सुना जाता है। परंतु
कंचन का इस रूप में प्रयोग तो आज सरेआम हो रहा है। एन्टी करप्शन ब्यूरो द्वारा
पकड़े जाने और हावालात में डाले जाने के समाचार अखबारों में प्रायः पढ़े जाते हैं
तथापि इसमें कंट्रोल नहीं हो रहा। आखिर कंट्रोल हो भी तो कैसे? इसमें शामिल दोनों
ही पक्ष स्वार्थ-साधना में निपुण जो होते हैं। यही तो है शिक्षितों का नैतिक पतन।
कदाचित, इसी वजह से बीबीसी लंदन से समाचार प्रसारण में कहा जाता था ‘चलो अब
घोटालों का देश भारत।’ साहिबगंज डीएसई जय हिन्द को भी प्रकाश कुमार ने कंचन के
जरिए आकृष्ट करने में सफल हो गया। इस कार्य में उधवा के सलम मास्टर प्रकाश और
डीएसई जय हिन्द के बीच ब्रोकरी का महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहे थे। दो पदाधिकारियों
की चिठ्ठी लड़ गई। बैंक मैनेजर निकासी को होल्ड कर डाले। भंडार से चावल उठाव में
रोक लग गई।’
और कुछ
मिड डे मील बंद । इसके चलते दोनों का मानदेय भी बंद।
स्कूल चलता है कि नहीं ?
पागल हो क्या? ऐसे में स्कूल क्या कपार चलेगा?
इस झगड़े में नुकसान किसका हुआ? बच्चों का, शिक्षकों का या फिर पदाधिकारियों
का?
अरे भाई ,शिक्षक को तो वेतन देर-सबेर मिल ही जाएगा। पदाधिकारियों को
इससे लाभ ही लाभ हुआ। निसंदेह नुकसान यदि किसी का हुआ तो बच्चों का हुआ। शिक्षा का
हआ। इसी को न कहते हैं शिक्षा आंसू बहा रही है ।
विरमित होने के 1 दिन पूर्व प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी बोधन कुमार
गुलामुद्दीन टोला स्कूल गए थे। लेन-देन का कुछ पैसा बाकी रह गया था। प्रकाश कुमार
की मौसी माया दासी आंगनवाड़ी सेविका थी। प्रकाश के विरोध में पत्र निर्गत करने के
कारण उनकी मौसी बोधन कुमार को अग्निमय नेत्र से देख रही थी। प्रकाश कुमार ने डीएसई
जय हिंद को फोन लगा दिया । उधर से जवाब मिला ‘इसकोशर्म नहीं है, मारो चप्पल से।
अंत-अंत में भी इसको मोह नहीं छोड़ रही है।’ प्रकाश अपनी मौसी के साथ चले गए बुधन
कुमार के नजदीक ।
‘क्या करने आए हैं आप, और भी कुछ बाकी है क्या ?’ कोपमय नेत्रों से तरेरते हुए
खिसियाकर मौसी चिल्लाई।
‘क्या क्या हुआ’ भींगी बिल्ली की तरह बोधन मौसी की ओर देखते हुए बोला।
देखिएगा क्या हुआ है? गरजते हुए मौसी ने चप्पल उठाया और बोधन कुमार के माथे पर
जड़ने ही वाली थी कि बोधन कुमार के दो कारकुनों ने मौसी की हाथ पकड़ लिए और चप्पल
खींच कर दूर फेंक दिए।
अभी आप लोगों को दिखाता हूँ ,जाता हूँ थाना। केस दर्ज करूँगा । पुलिस आएगी।
नौकरी चली जाएगी, समझे। यह कहते हुए बोधन अपने कारकुनों के साथ प्रस्थान कर गए ।
प्रकाश और उनकी मौसी ऑखें लाल कर बिना हिले-डुले, निर्भीक खड़े-खड़े देख रहे थे ,
मन ही मन कह रहे थे, जाओ तुमको जो करना है करो , मेरे ऊपर जय हिन्द डीएसई का
आशीर्वाद है।
पैसे में सब बिकते हैं।
मोबाइल का जमाना ठहरा। इस समाचार को फैलते देर नहीं लगी। उधर बोधन ने भी राधा
नगर थाने में रपट लिखा दी । दूसरे दिन अखबार में समाचार भी छप गया कि 'उधवा में
बोधन कुमार के साथ हाथापाई हुई है गुलामुद्दीन टोला में।' परंतु इज्जत के साथ
समाचार लिखा गया था। चप्पल उठने की बात नहीं दर्शाई गई।
8 महीने गुजर गए । बैंक में भोला से प्रकाश कुमार की मुलाकात हो गई। हमेशा
मुस्कुरा कर बात करने वाला प्रकाश कुमार का चेहरा बहुत उदास था। भोला के नजदीक आकर
बैठ गया। भोला मामा, एक बात कहूँ ? 30 हजार रूपये की सख्त जरुरत है । 1 महीने के
अंदर मानदेय मिल जाएगा। आपको दे दूंगा । विद्यालय वाली समस्या में लाखों रुपए गल
गए ,मामा ! परंतु अभी तक निदान नहीं हुआ है। कोई उपाय है? इसी टेंशन में शुगर का
पेशेंट भी हो गया हूँ ।
‘हे भगवान! इतना खर्च ! मेरे हाथ भी अभी खाली है, प्रकाश। संभव नहीं है बाबू।’
लंबी सांस लेते हुए भोला ने कहा।
भोला मन ही मन सोचने लगा कि मनुष्य स्वार्थ-वस गलती तो कर लेता है ।पर
पश्चाताप भी करता है। आत्मा आखिर ईश्वर का अंश ही तो है । उसे देर-अबेर सत्य का
आभास तो हो ही जाता है । उधवा बीईईओ बोधन ने जाने के दूसरे दिन ही मुझे आत्मग्लानि
भरा एक छोटा-सा संवाद व्हाट्सेप में भेजा था----
‘*मनुष्य अपने दुःखों का कारण स्वंय है।
(भागवात महापुराण)
*प्रधानाध्यापक होने से शिक्षक होना श्रेष्ठ है।
*स्वाभिमान कब अभिमान में बदल जाता है मनुष्य को पता नहीं चलता।
*कमी ढूँढना आसान है,कार्य संपादित करना कठिन।
भोला जी, क्षमा करेंगे और कान्हा जी से मेरे लिए सद्बुद्धि हेतु प्रार्थना
करेंगें।
---बोधन कुमार राय,बीईईओ ,उधवा (साहिबगंज)’
2017 में ही एक दिन ‘दैनिक जागरण’ के संपादकीय पेज में ‘शिक्षा समीक्षा’ लेख
में ठीक ही लिखा था ‘आदमी पढ़ा लिखा हो या अनपढ़, प्रभु ने सबको इतना ज्ञान तो
अवश्य दे रखा है कि उसे भले- बुरे का ज्ञान हो जाता है। पशु पक्षी भी हित-अनहित
जान लेता है , मनुष्य तो गुण और ज्ञान का निधान है। परंतु जब वासनाओं की आंधी चलती
है तो ज्ञान का दीपक बुझ जाता है। तब उस अंधकार में मनुष्य को भले-बुरे का फर्क
समझ में नहीं आता। जब उच्च पदस्थ व्यक्ति इस कुत्सित भाव से ग्रसित हो जाता है तो
स्थिति और बदतर हो जाती है। लिहाजा, जनकल्याण में बहुत बुरा और दूरगामी प्रभाव
पड़ता है। यही स्थिति हमारी शिक्षा व्यवस्था की भी है। चूँकि प्रखंड और जिला
स्तरीय शिक्षा पदाधिकारी महोदयों का शिक्षकों से डायरेक्ट कनेक्शन होता है जिनका
बुरा प्रभाव छात्र जीवन पर पड़ता दिख रहा है। साहिबगंज जिले में यह स्थिति इतनी
बदतर है कि यहाँ के आठवीं कक्षा तक के 54 प्रतिशत बच्चे पुस्तक तक नहीं पढ़ सकते
हैं।’
47.
प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी, उधवा के बोधन कुमार के तबादले के साथ ही पतना
प्रखंड के साहब को उधवा का प्रभार मिला, जिनका नाम था धर्मेंद्र इनसे भोला का
पुराना परिचय था । जब भोला पाकुड़ में पदास्थापित थे। भोला के संबंध में साहिबगंज,
डीएसई जयहिन्द का स्पष्टीकरण पृछा आदेश पत्रांक 1785 दिनांक 14 सितम्बर 2017 को
निर्गत हुआ था। इसी के संबंध चर्चा करने और परामर्श हेतु भोला साहब से मिलने आए
थे।
‘प्रणाम सर’ कहते हुए भोला ने कुर्सी पर बैठे धर्मेन्द्र साहब के दफ्तर में
प्रवेश किया।
क्या हाल है , भोला जी।
ठीक ही है सर, मगर डीएसई साहब ने मेरे एगेन्स्ट में स्पष्टीकरण पृछा आदेश
निकाल दिया है। इसी के संबंध आपसे राय मरामर्श लेने आया हूँ।
हाँ भोला जी , मैंने भी यह खबर सुनी है कि आपसे बड़ा सख्त स्पष्टीकरण पूछा गया
है। परन्तु अभी तक मैंने देखा नहीं है। देखिए भोला जी, जमाने के अनुसार चलना
चाहिए। जब सब लोग ऐसे ही मिल जुलकर खाते ,लूटते हैं, तो फिर सिद्धांत को लेकर जीना
संभव नहीं है।
तभी कार्यालय में प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी संदीप कुमार प्रवेश किया।
धर्मेंद्र को प्रणाम करने के साथ ही उसने भोला को भी प्रणाम किया। उनके कान में एक
बात आ गई थी कि साहब भोला को सिद्धांत में न जीने की हिदायत दे रहे हैं । संदीप
कुमार ने कहा ‘ भोला सर मेरे मामा हैं । बहुत ही सिद्धांत वादी। मैं मामा को कितनी
बार समझा चुका हूँ कि आज के दौर में इस प्रकार के सिद्धांत में चलना संभव नहीं है।
परंतु मामा अपने सिद्धान्त और उसूल को छोड़ते ही नहीं है।’
धर्मेंद्र कुमार ने कहा ‘यही तो मैं भी कह रहा हूँ, संदीप जी। खैर आप इमानदारी
से चल रहे हैं। आपका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। मैं आपके साथ हूँ । आप इत्मिनान रहें ।
धर्मेंद्र कुमार और संदीप कुमार को दफ्तर के काम में व्यस्त होते देख , भोला
ने साहब को प्रणाम कर वहाँ से निकल गया।
बाहर में आदेशपाल अजय कुमार टूल में बैठे सारी बातें सुन रहा था । कुछ दूर तक
भोला के पीछे-पीछे आया और कहने लगा ‘ मैं तो यही देखता आ रह हूँ कि अच्छे शिक्षक
की आवाज को ऊपर से नीचे तक के पदाधिकारियों द्वारा दबाने का प्रयास किया जाता रहा
है और सब चिल्लाते हैं कि विद्यालय में परिवर्तन हो। परिवर्तन क्या खाक होगा।
गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, ये सब केवल अधिकारियों के बोलने के अल्फाज है और कुछ भी
नहीं।’
डीएसई की चिठ्ठी मेरी आवाज दबाने का प्रयास ही तो है। परंतु अच्छे कार्य का
सतत प्रयास कभी नहीं त्यागना चाहिए, यही तो मानव धर्म है।
‘बेशक , और यही जीत भी है।’ अजय ने कहा और वह दफ्तर की ओर मुड़ गया।
मासिक गुरूगोष्ठी का दिन था। बीईईओ धर्मेन्द्र कुमार अपने कार्यालय में बैठे
थे और शिक्षक- शिक्षिकाएं अपने-अपने काम के लिए उन्हें घेरे हुए थे। भोला वार्षिक
वृद्धि में दस्तखत कराने हेतु धर्मेन्द्र कुमार के पास आए थे। ‘ अरे भोला जी, आइए-
आइए। सब ठीक है न, कहिए कैसे आना हुआ? ‘जी हाँ सर, सब ठीक है। सेवा पुस्तिका में
वार्षिक वृद्धि चढ़ा दी गई है , केवल आपका सिग्नेचर चाहिए।’ धर्मेंद्र कुमार के
सामने भोला ने सेवा पुस्तिका खोल कर रख दी और साहब सिग्नेचर करने लगे। अंत में
उन्होंने फिर वही बात कही ‘ जैसी चले बयार तैसे पीठ कीजै जी’ वाली नीति अपनाई जाए
भोला जी। इसी में सबकी भलाई है।’ कर्मीगण भोला की ओर देख रहे थे और भोला हाँ में
हाँ मिला रहे थे। भोला साहब से विदा लेकर अपने आशियाने की ओर चले यह गीत गुनगुनाते
हुए ‘हम लोग हैं ऐसे दीवाने दुनिया को झुका कर मानेंगे, मंजिल को पाने आए हैं
मंजिल को पाकर मानेंगे _ _।’
भोला अपने चाल में तो मस्त है। परंतु होता क्या है? जीवन की शुरूआत होती है
हमारे अपने रास्ते के चुनाव से, पर बाद में वही रास्ता हमारा चुनाव करता है।
रास्ता तो हम कोई भी चुन सकते हैं, पर रास्ते की उलझनें, परेशानियाँ आदि का हमें
कोई पता नहीं होता। हम समस्याओं का सामना करते जाते हैं और बस चलते जाते हैं। इसी
तरह गुजरते हुए हम अपनी नियति पाते हैं। स्पष्ट है कि हमारी आज की करनी हमारा कल
का भविष्य तय करती है। यह तो ऐसा ही है जैसे बीज वर्तमान में बोओ और फसल भविष्य
में काटो। विगत का असर वर्तमान पर होगा और वर्तमान भविष्य को प्रभावित करता है।
हमारा जीवन इन्हीं विगत, प्रस्तुत और आगत घटनाओं की आवृत्ति, पुनरावृत्ति और
प्रवृत्ति पर बनता है। जीवन को उत्कृष्ट बनाने की चाहत है तो आज पर ध्यान दें
क्योंकि एक सुदृढ वर्तमान से ही एक बेहतर भविष्य का निर्माण हो सकता है। बावजूद इन
सबके स्थितियां, परिस्थितियां कर्मवीरों को भी लाचार कर देती है। लिहाजा, होता वही
है जो मंजूरे खुदा होता है। इन द्वंद्वों में भी भोला को अपने कर्म पर भरोसा है।
गीता के अनुसार वैसे व्यक्तियों का जीवन शववत् ही होता है, जो अधर्म के धरातल पर
टिका होता है। अपने आपको हमें निमित्त मात्र करने की आवश्यकता है- ‘निमित्त मात्र
भव सव्यसाचिन।’
48.
2018 के जनवरी माह में वंदना एवं मकर संक्रांति की छुट्टी के बाद स्कूल खुला
था। मिहिर दो दिनों से गायब था। उमर कुमार समय पर विद्यालय आया और भोला से
उपस्थिति पंजी लेकर मिहिर हेडमास्टर का डूप्लीकेट हाजरी बना दिया। उसे आशंका थी कि
कहीं भोला मिहिर का आकस्मिक न बैठा दे। इस विद्यालय में इस कार्य को अंजाम देने
वाले माहिर और मुँहफट शिक्षक रहे अकरमण और अब उसके नक्शे कदम पर उमर भी चलने लगा
था । भोला जानकर भी अनजान बने रहा । छुट्टी के बाद मिहिर भोला की बाईक में होटल आ
रहे थे। भोला को सुनाने लगे ‘ बिक्रान्त बाबू जो हमारे विद्यालय के प्रबंधन समिति
के नये अध्यक्ष बने हैं , ये बाबू भी नीलू बाबू से कम नहीं है। बरहरवा वाले
डेस्क-बेंच कम्पनी से खुद ही बात कर लिए हैं। ड्रेस में भी वही होगा और क्या। क्या
करें, देखते हैं कि हर एक स्कूल की यही स्थिति है। सिर्फ लूटो और कुछ नहीं।’
मुझे पता था, मिहिर जी। जनता मेम्बर का चयन करती है और मेम्बर मिलकर अध्यक्ष
का चुनाव करते हैं तो इन्हें तो जनता की आवाज बननी चाहिए। परंतु ऐसा कतई नहीं देखा
जाता । तीन अध्यक्ष ललन सिंह, मनोरम और नीलू बाबू को देख चुके हैं ।
और लम्बी-चौड़ी बातें करने वाला उमर नम्बर वन का ठग निकला। सिर्फ एक डिस्क से
दूसरे में कापी-पेस्ट का खर्च मुझसे 600 सौ रूपये ले लिया है। मेरी कमजोरी का
फायदा उठा रहा है। नहीं देते हैं तो मुँह फुलाते हैं। मदद ही नहीं करेगा । लालच के
कारण मेरे पीछ-पीछे घुरता है। फ्रेन्च लिभ लेना मेरी कमजोरी और मजबूरी है, तो उन
सबकी भी कमजोरी और मजबूरी बन जाती है ।
बिलकुल सही। अरे माई डियर! उमर की मुस्कान ही छल-कपट से भरी होती है। मैं तो
यही देखता आ रहा हूँ । कैंची है कैंची । आप कुछ भी बोलिए हर एक बात को काट देगा।
बिना बात काटे वह रह नहीं सकता है।
भोला मन ही मन सोचने लगा- ‘ये बाबू साहब अध्यक्ष , विक्रांत बाबू और उमर
के बारे में तो कह दिया लेकिन ये अपने बारे में नहीं बतालाते हैं । 2 दिन बिलंब से
विद्यालय आए और आने के साथ केवल रिपोर्ट में उलझे रह गए। न पढ़ाई-लिखाई से मतलब न
किसी को पढ़ाई-लिखाई के लिए ताकिद करने का कोई प्रयोजन । फिर 2 दिन फ्रेंच के लिए
प्रस्थान । यही है बच्चों की नियति निर्धारकों की स्थितियाँ।’
49.
‘बुलाओ तो मिहिर हेड मास्टर को’ गरजते हुए अकरमण ने कहा । उनके बगल में मिसिर,
बिकरमण, संतू ,अनल और उमर खामोश बैठे हुए थे, सभी अकरमण के मौन समर्थक थे। अनल
मास्टर आदेश सुनते ही चले गए ऑफिस में मिहिर हेड मास्टर को बुलाने के लिए । भोला
और मयमूल भी पहुंच गए, अकरमण का गरम और मूडियल रवैये को भांपकर। ‘मैं कोई हिजड़ा
नहीं हूँ । मुझे किसी का डर नहीं।’ ऑखें तरेरते हुए, सबकी ओर देख- देखकर अकरमण गरज
रहा था ।
‘क्या हुआ अकरमण बाबू ?’ भोला ने पूछा
‘दही-चूड़े का भोज का कार्यक्रम स्थगित हो गया और क्या’ धीरे-से मयमूल ने कहा।
‘और 5 केजी दही का जो बयाना हुआ था, उसका क्या होगा?’ भोला ने पूछा ।
‘आपलोगों को पता नहीं है। सुनिए, बयाना भी हुआ और बयाना फिर वापस भी हो गया।’
अकरमण फिर गरजे, मानो प्रेसर बढ़ गया हो और आपे से बाहर हो गए हों।
मयमूल ने भोला के कान में फुसफुसाते हुए कहा ‘खासकर विद्यालय में फंड के खर्च
में अकरमण की ऑखें गड़ी रहती हैं। लार टपकने लगती हैं। जब ये देखते हैं कि मेरा
शेयर गड़बड़ हो सकता है तो साम दाम दण्ड और भेद चारों नीतियों भरपूर प्रयोग करते
हैं और पासा अपने पक्ष में करके ही दम लेते हैं।’
‘एक दिन मेरे सामने मिसिर कह रहा था कि हम सभी इस बार ग्यारह- ग्यारह हजार से
कम नहीं लेंगे, छोड़ेंगे नहीं । अरे भाई 19 लाख रूपये मध्य विद्यालय उधवा के फंड
में आया है।’ भोला ने मयमूल से कहा।
‘भीतर-मीतर मंत्रणा चल रही है। सब मिलकर दबाव बना रहे हैं। सब लंघीमार है औवल
दर्जे का लंघीमार’ मयमूल बोला ।
एक ओर बच्चे विद्यालय में ज्ञान दायिनी माँ सरस्वती की पूजा की तैयारी में
व्यस्त थे। दूसरी ओर विद्यालय के शिक्षक गण सुनहरी धूप में बैठकर विद्यालय फंड से होने
वाले आय के संबंध मे षड्यंत्र में व्यस्त थे। सरस्वती पूजनोत्सव के पश्चात
दही-चूड़ा , गुड़, मिठाई आदि का भोज होना तय हुआ था। दही का बयाना भी हो गया था।
मिहिर ने कार्यक्रम को स्थगित कर दिया था। कदाचित् , इसमें अकरमण की इजाजत नहीं ली
गई थी। इसी विषय को मोहरा बनाकर अकरमण शिक्षकों को गोलबंद कर रहे थे, परंतु
निगाहें कहीं और थीं और निशाना कहीं और। सब काम छोड़-छाड़ कर सबके सामने हाजिर हो
गए मिहिर। खाली पड़े कुर्सी में बैठ गए । कुछ देर सबके सब खामोश रहे। तत्पश्चात
मिहिर ने ही सब की ओर देखकर पूछा ‘ क्या बात है भाई जरा जल्दी से कहा जाए मुझे अभी
एक रिपोर्ट बनाकर प्रखंड कार्यालय भेजना है।’
अकरमण ने पूछा ‘ मिहिर सर, ये बताइए कि भोज का कार्यक्रम क्यों स्थगित
हो गया , हम लोगों को कुछ पता नहीं है ?
क्योंकि मैं नहीं रहूँगा बदलू और ज्ञानी सर भी नहीं रहेंगे। इसलिए स्थगित कर
दिया। अब आप लोग अगर चाहते हैं कि होना चाहिए तो होगा।’ लघुता के सामने प्रभुता
हार गई । अंततः यही निर्णय हुआ कि जब सभी शिक्षक उपस्थित नहीं रहेंगे तो पूजा के
दिन भोज का कार्यक्रम नहीं होगा विसर्जन के दिन ही होगा।
आज फिर छुट्टी के उपरांत मिहिरजी, भोला के बाईक में होटल की ओर जा रहे थे।
भोला ने कहा ‘अकरमण जो चाहेंगे वही होगा मिहिर भाई, उसके बिना एक पत्ता तक नहीं
हिल सकता।’
मिहिर ने कहा ‘ सर, उसको कुछ करना तो है नहीं। लेकिन हर चीज में इनको शेयर
चाहिए। नहीं मिलेगा तो बवंडर खड़ा कर देगा। इनकी बात काटने का मतलब है आ बैल मुझे
मार।’
मिहिर होटल में उतर गए और भोला सीधे अपने आशियाने की ओर चले। मन ही मन भोला
विचारने लगा ‘मैंने मिहिर का आकस्मिक अवकाश बैठाना छोड़ दिया कि दिल की बातें अपने
ही जुबान से मुझे बताने लगे। यह बिल्कुल रियल बात है कि जब कुछ समझ में न आए, कुछ
करते बात न बने, सब के सब उल्टे चले, तो अपने आप को ईश्वर के हवाले, परिस्थिति के
हवाले छोड़ कर अपने कर्तव्य में लीन रहना चाहिए। मेरी मां भी बचपन में मुझे यही
सीख देती थी कि तुम किसी की बात न सुनो, हरि बोला कर दो अर्थात अपने आप को भगवान
के हवाले कर दो। द्रोपदी-चीरहरण में जब तक द्रोपदी अपनी शक्ति लगाती रही, गोविंद
ने उनकी रक्षा नहीं की। जब वह अपने हाथों अपनी आबरू बचाने का प्रयास छोड़ दी, तब
गोविन्द ने वस्त्र प्रदान करना शुरू कर दिया। किसी कवि ने कितनी अच्छी कविता
लिखी-- 'साड़ी है कि नारी है, नारी है कि साड़ी है, साड़ी बीच नारी है कि नारी बीच
साड़ी है।’ भोला इन अध्यात्म परक तथ्यों में डूबता आनंद मग्न था।
सरस्वती माता की पूजा हो गई । सभी शिक्षक वृंद अपने- अपने गंतव्य को प्रस्थान
कर गए। भोला और अनल विद्यालय प्रांगण में बैठे थे। चारों तरफ बच्चे-बच्चियां घूम
फिर रहे थे। इसी समय मध्य विद्यालय उधवा के नवनिर्वाचित प्रबंधन समिति के अध्यक्ष
विक्रांत बाबू आए। भोला मास्टर ने उन्हें कुर्सी में बैठने के लिए कहा। विक्रांत
बाबू बैठते ही कहने लग गए ‘भोला सर, मेरी समझ में नहीं आ रही है, मध्य विद्यालय
उधवा की पॉलिटिक्स। सब केवल लूटने के ही फेर में है। जब मैं फर्नीचर कंपनी बरहरवा
के पास गया था तो उन्होंने भी कहा कि मुझे जिला के बड़े हाकिम को परसेंटेज देना
पड़ता है। मैं क्या करूं केवल आपके विद्यालय की बात नहीं है। जितनी फर्नीचर मैं
देता हूँ , गिनती के अनुसार जिला शिक्षा अधीक्षक को भी मुझे परसेंटेज देना पड़ता
है, अन्यथा मेरा व्यवसाय नहीं चल सकता, विक्रांत बाबू। यह सुनकर तो मैं आश्चर्य
में पड़ गया हूँ । क्या सर ये सब सही है?
यदि सचिव, अध्यक्ष और मेंबर मिलकर खाएंगे तो बाबुओं को भी चटाना ही पड़ेगा।
यदि सचिव, अध्यक्ष और मेंबर परसेंटेज लेना छोड़ दें। जितनी बचत हो सभी पैसे को सही
ढंग से विद्यालय को चमकाने और दमकाने में लगा दें तो जिला शिक्षा अधीक्षक को भी
एहसास हो जाएगा कि आपके विद्यालय में बचत पैसे का सदुपयोग हो रहा है। ऐसी स्थिति
में वे कुछ न बोलेंगे, कुछ न बोलेंगे।
ऐसी बात है सर?
हाँ , मैं आपको उदाहरण देता हूँ । इसी जिले की बात है। कालू यादव बोरियो
प्रखण्ड के छोटा पचगढ़ मध्य विद्यालय में प्रधानाध्यापक हैं। उनका विद्यालय जा कर
देखिए बाहर से ही लग जाएगा कि यह एक संस्कार का केंद्र है। चारों तरफ साफ-सुथरा,
आकर्षक रंग रोगन । जिला शिक्षा अधीक्षक महोदय भरी मीटिंग में कहते रहते थे कि ऐसे
हेड मास्टर से हम क्या कुछ मांग सकते हैं? उनका काम ही इतना सुंदर होता है कि दिल
खुश हो जाता है। पैसे उनके पास कहाँ से आते हैं, मैं जानता हूँ मगर मैं
उन्हें कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि वह अच्छे काम कर रहे हैं। अच्छे काम की सराहना
क्यों नहीं करेंगे?
पूजोपरान्त अनल मास्टर, भोला को भोजन हेतु अपने घर ले जा रहे थे । रास्ते में
भोवोन से मुलाकात हो गई । दोनों को अपने घर ले गए । चाय बनने लगी। इस बीच अनल ने
भोवोन से पूछा- डेस्क-बेंच किस रेट में लिए हैं, भोवोन दा?
आपको ये सब जानने का और पूछने का अधिकार नहीं है।
आपके भाई नीलू बाबू भी तो विद्यालय प्रबंधन का अध्यक्ष था, कभी पूछे थे ? कौन
सा चमत्कार कर दिया विद्यालय में । बाईक कहाँ से आई ? अध्यक्ष न होते तो मजाल था
कि बाईक खरीद लेते ? और बदलू घर बना लिया । कौन नहीं जानता है? पढ़ाई-लिखाई से किनको
मतलब है ? इन लोगों के पीरियड में चौपट हो गया स्कूल।
आपका कहना बिलकुल सही है। परंतु क्या कुछ सुधार नहीं करना है?
अरे यार! ऊपर से नीचे तक कहीं ईमानदारी दिखती भी है क्या?
भोवोन पढ़ा-लिखा न था परंतु बात सोलह आने सच करते थे। अनल और आगे कुछ न कह
सका।
‘एरा सबाई मिले भोला मास्टर के हेड मास्टर होतेई दिलो ना। एरा कि मानुष!’ बंग
भाषा में भोवोन की स्त्री बोली । भोला ने भी बंग भाषा में धीरे से कहा ‘ छाड़ेन
बौदी , उगूलू कथा बोले कोनो लाभ नाई।’
आवेश में आकर भोवोन ने कहा ‘छोड़ तो देंगे मास्टर साहब, लेकिन इतना आप जान लीजिए
कि नीलू प्रमाणिक की तरह गद्दार और स्वार्थी इन्सान उधवा में टार्च लेकर खोजने से
भी नहीं मिलेगा। मैं तो यह ढोल पीट कर कहता हूँ और नीलू के मुंह में भी कह सकता
हूँ ।’ अनल मास्टर नीलू के सहोदर भाई थे परंतु भोवोन के इस कथन से कुछ भी प्रतिवाद
न कर सके। भोवोन की स्त्री चाय लेकर आई थी , देकर कुछ ही पल खड़ी थी। चली गई । चाय
पीकर भोला और अनल चले गए । भोला गा रहे थे-
‘जिले में मैं अपना देखा एक स्कूल बुधवा।
इस स्कूल के हेडमास्टर बाबू हो गए जो सधुवा।।
इससे सब मास्टर साहब बन गए सहजदवा।
धीरे-धीरे बन रहे बच्चे सब बदमसुआ।।’
50.
2018 के सरस्वती पूजा का सांस्कृतिक कार्यक्रम संपन्न हो गया था। रात्रि में WhatsApp
पर एक चिट्ठी आई।
सेंडर था: उमर कुमार , सहायक शिक्षक, मध्य विद्यालय उधवा । इसमें लिखा था:
दिनांक: 23 जनवरी 2018
उधवा ।
आदरणीय भोला सर ,
सप्रेम चरण स्पर्श।
जो मनुष्य समाज से अलग- थलग हो कर चलते हैं, उन्हें जीवन भर कठिनाइयों का
सामना करना पड़ता है, जबकि जो व्यक्ति समाज के साथ मिल कर चलते हैं , उनकी बड़ी से
बड़ी समस्या तक मिनटों में हल हो जाती है । इसका कारण यही है कि सामाजिक होने के
कारण ही प्रत्येक व्यक्ति हमारी समस्या या चिंता का निदान खोजने की कोशिश करता है।
अतः आप भी सभी शिक्षकों के साथ मिलकर रहे ताकि आपकी समस्या पर सभी विचार करेंगे।
भवदीय
उमर कुमार
भोला ने उमर कुमार को एक लाईन टाईप कर दिया ‘ क्या कल आपके घर में इस मसले पर
बैठकर डिस्कस कर सकता हूँ?
‘हाँ सर’- उमर का जवाब मिला।
दूसरे दिन भोला मास्टर, उमर कुमार के घर गए और विगत दिन के कथनानुसार बात आरंभ
की।
शिक्षक समाज की एक परम्परा बन गई है कि अपनी निजी जिंदगी को आरामतलवी के साथ
जीते हुए जितनी बन पड़े उतनी सेवा करना।
हाँ सर, सर्वत्र यही तो चल रहा है। हमें भी यही करना चाहिए और क्या?
इसका मतलब है , बच्चों का भविष्य आपकी दृष्टि में कुछ भी मायने नहीं रखता ?
सरकार हमें वेतन जो खुब देती है। 5-10 हजार में कितना मत्था- पच्ची किया जा
सकता है? इसलिए हम पारा शिक्षकों को ऐसे ही हेडमास्टर की आवश्यकता है और रहेगी जो
हमें समझे।
क्या इन्हीं वजहों से आपलोगों ने मेरा समर्थन नहीं किया?
आप तो सब समझ ही रहें हैं सर, आपके सिद्धांतों को देखकर हमें यह आभास हो गया
था कि आपके हेडमास्टर होने से हम बेमौत मरेंगे। मिहिर सर के सामने हमलोगों ने पहले
ही शर्त रखी थीं और वे सहमत भी हो गए। आपसे इस तरह की उम्मीद न थी। आप बच्चों और
अभिभावकों के प्रिय हैं। आप अभिभावकों की सहायता से हमारे ऊपर कड़ाई करने की कोशिश
करते और कदाचित इसमें आप सफल हो जाते, इससे हम लोगों की मुसीबतें बढ़ जाती।
ऐसी स्थिति में तो साफ जाहिर हो गया कि आप पारा शिक्षकों की सोंच ओछी है। समाज
ने जिन अपेक्षाओं के लिए आप लोगों को चुनकर शिक्षक बनाया है, आप पारा शिक्षक
समुदाय उन आकांक्षाओं में खरे नहीं उतर रहे हैं। आपके द्वारा समाज को धोखा दिया जा
रहा है और माई डियर, मुझे आप इन पारा शिक्षक समुदाय या समाज से मिलकर रहने की और
चलने की नसीहत देते हैं। क्या यह आपको उचित लगता है ? क्या मानवता के ख्याल से
इसका औचित्य है? हाँ, मैं आप लोगों से लडूंगा भी नहीं परंतु आपके पदचिन्हों पर
चलूंगा भी नहीं। मेरा आदर्श है बच्चों का हर प्रकार से उत्थान करना। मेरी सहायता
आप करें या न करें, ईश्वर मेरे साथ अवश्य हैं और रहेंगे। अलौकिक आनंद से आप वंचित
हैं। बगैर नजरिया बदले आप इससे वंचित ही रह जाएंगे। जो सरकारी शिक्षक आपकी जैसी
सोंच रखते हैं उनकी जिंदगी भी ऐसे ही बीत जाती है।
आपके जैसे उच्च आदर्श तो मैंने कभी नहीं सोचा है, सर। परंतु अपने विद्यालय,
अपने प्रखंड, जिला और संपूर्ण झारखंड राज्य के सभी शिक्षकों की यही मनःस्थिति है।
इतना तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ । आपके जैसे आदर्शवादी शिक्षक हैं कितने ?
ठीक है आप मेरे जैसे उच्च आदर्श मार्ग पर नहीं चल सकते हैं नहीं चलिए परंतु
मेरे जैसे शिक्षक के मार्ग में आप जैसे व्यक्ति रोड़े अटकाए, क्या यह आप को शांति
व चैन दे रही है ? इस बात को लिख लो मिस्टर उमर, इसका प्रभाव तुम्हारे भावी जीवन
पर पड़ेगा । इसका प्रभाव तुम्हारे बाल बच्चों पर पड़ेगा और पड़ता है। एस यू शो सो
यू रीप। क्या आपको आत्मग्लानि का एहसास नहीं होता ?
भोला ने कुछ आवेशित मूड में कहा था।
होता तो है पर क्या करें मजबूर हैं।
आपने हमें जिस समाज के साथ मिलकर चलने की नसीहत दी है वह इन्हीं निर्जीव समाज
की नसीहत है ? जिनके कोई सामाजिक सरोकार नहीं? जिनमें सृजन की कोई परिकल्पना नहीं
?
उमर कुमार के पास भोला के इस गूढ़ कथन का कोई काट नहीं था , जिनके साथ भोला का
कर्म जुड़ा हुआ है। ऐसे वह कैंची के नाम से जाने जाते हैं बात काटने में, परंतु
कुछ ऐसी बातें होती है कि जिसे बड़े- से -बड़े अस्त्र-शस्त्र भी नहीं काट सकते।
परिणाम यह हुआ कि वह निरुत्तर हो गया। इतना कह भोला निकल गए।
दरअसल, जनहित के कार्य से जितने भी लोग प्रभावित-लाभान्वित होते हैं, वे बदले
में हमें प्यार, स्नेह, आशीर्वाद और दुआ देते हैं, जिससे हमारे कष्ट अप्रभावी हो
जाते हैं या फिर हममें उन्हें सहने की असीम ताकत आ जाती है। इसी तरह यदि हमसे
भूतकाल में जाने- अनजाने कोई पाप या गलत कार्य हो गया हो तो भी जनहित से जुड़े
कार्य करके मनुष्य पश्चाताप या मुक्ति प्राप्त कर सकता है । जनहित के कार्य करने
के लिए मनुष्य को केवल एक छोटा-साथ प्रयास करना होता है। दुःख- दर्द सभी के जीवन
में है,लेकिन जो व्यक्ति अपने दुःखों को ही सबसे बड़ा और जटिल मान लेता है , उससे
जनहित के कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसके विपरीत जो दूसरों के दुःखों
को महसूस करे और उनके सामने अपने दुःख को भूल जाए ,वास्तव में वही जनहित के बारे
में सोंच सकता है।
भोला निकल ही रहे थे तभी ज्ञानी मास्टर मोबाइल रिचार्ज करने के लिए उमर की
दुकान आए थे। भोला को उमर कुमार के घर से निकलते हुए ज्ञानी ने देखा था। ज्ञानी ने
पूछा ‘भोलासर किस काम से आए थे, उमर जी’? फिर दोनों में बातें होने लगी । ज्ञानी
ने कहा ‘ वाकई भोलासर के चलते ही विद्यालय में थोड़ी बहुत पढ़ाई होती है। उनको
देखकर हम लोगों को भी बच्चों के साथ समय बिताने की इच्छा होती है। हम लोग भी क्लास
चले जाते हैं। दीपक की तरह है भोलासर। हमेशा अंधकार को दूर भगाने का ही प्रयास
करते हैं ।
वह तो ठीक है ज्ञानी जी, लेकिन उस दीपक को तो हम लोग फूँक कर बुझा दिए कि
नहीं। मिहिर सर तो अगरबत्ती है, जो हमेशा खुशबू ही फैलाता हैं और अगरबत्ती को हम
फूँककर बुझा भी नहीं सकते ।
अरे यार , यह नहीं जानते कि अगरबत्ती खुशबू फैलाता है, परंतु याद रखो उसकी
खुशबू प्रदूषण फैलाती है। वातावरण को अशुद्ध करती है। देखते नहीं हो किस प्रकार की
हेडमास्टरी है। सबको छूट देकर रखा है। कोई ससुराल जाता है तो कोई बेटी के घर। कोई
सामाजिक कार्य का बहाना बनाता हैं तो कोई बाजार का । कोई पाबंदी है ? बच्चे भटकते
रहते हैं। खुद भी जब मन तब घर चल देता है । जिस दिन गायब रहता है उस दिन का मिड डे
मिल का एसएमएस का रिपोर्ट स्कूल से बिकरमण मिहिर के पास भेजता है और फिर मिहिर
विभाग को । बाद में आकर अपना हाजरी भी बना लेता है। इतना लूज विद्यालय कभी नहीं
था। तुमको पता है मिहिर लालू के दुकान से, जहां से की मिड डे मील का राशन लिया
जाता है , हर एक हफ्ते 500 तो कभी 1000 रुपए लेकर घर जाता है। मिड डे मील का
पैसा ही तो लेता है। संयोजिका भी लालू के दुकान से पेक्ट ही गई है। नया अध्यक्ष नए
ढंग से लूट रहा है।
दियारा क्षेत्र के लगभग स्कूलों में मिड डे मील नहीं चलता है । केवल कागजी
घोड़ा दौड़ता है। सीआरपी, बीआरपी और बीईईओ का मंथली बंधा हुआ है , जिला तक का ।
यही हाल पूरे झारखंड की है। इसमें मत्था पेंची क्यों करते हैं ज्ञानी दा ? सरकार
जानती नहीं है क्या ? जान कर के भी अनजान है। --- हँसी के अंदाज में हे हे हे करते
हुए उमर ने कहा।
और भी सुनिए ज्ञानी दा, 2017 के दिसंबर की बात है । अखिल झारखंड प्राथमिक
शिक्षक संघ के एक्टिव नेता मनोर बाबू जो कि जिले के महासचिव हैं। शिक्षा विभाग से
संबंधित भ्रष्टाचार के हर एक मोर्चे पर आवाज उठाते हैं। शिक्षक के दुख- सुख के
सहभागी हैं। जिला शिक्षा अधीक्षक के कोप के भाजन हो गए। दूसरे प्रखंड में इनका
ट्रांसफर कर दिया गया। उधर दूसरे ग्रुप के शिक्षक संघ के नेता बुखारी साह , जो की
जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द से मिले हुए रहते हैं। विरोध करते हैं परंतु मिलकर भी
रहते हैं । उनका ट्रांसफर नहीं होता है। उनको कोई परेशानी भी नहीं होती है। और तो
और इस जिले में मरे हुए शिक्षक का भी ट्रांसफर हो गया। पेपर बाजी हुई। उप विकास
आयुक्त नम्रता सहाय द्वारा जय हिंद को स्पष्टीकरण पूछा गया। परंतु क्या हुआ, कुछ
हुआ? उधर शिक्षा सचिव साराधना पटनायक के द्वारा नए शिक्षकों के जिला स्थानांतरण की
बात हुई। आदेश भी जारी हो गया। दूसरे नवनियुक्त सचिव मृगेन्द्र कुमार सिंह आए,
उन्होंने साराधना के आदेश को तुरंत रद्द कर दिया कि नहीं जो शिक्षक जिस जिले में
पदस्थापित हो चुके हैं, उन्हें उसी जिले में रहना होगा । अब जो शिक्षक अपने गृह
जिले से दूसरे व दूर स्थित जिले में पदस्थापित हैं, उनका मन भला पढ़ाई-लिखाई में
लगेगा ? क्या उनके बाल बच्चे नहीं है? क्या उनका परिवार नहीं है ? क्या वह घर जाने
के लिए उत्सुक नहीं होंगे ? जाने-आने में जो समय बर्बाद होगा इससे क्या पढ़ाई-
लिखाई बाधित नहीं होगी ? पूरे झारखंड में गोलमाल चल रहा है, यार। केवल प्रयोग ही
प्रयोग हो रहा है। यहाँ सुधार की आशा बिल्कुल निराशा में बदल चुकी है । अधिकार की
बात करोगे तो जवाब मिलेगा जय हिंद का कि आप शिक्षक हैं, शिक्षक बने रहिए, अधिकार
की बात न कीजिए, ये तो हाल है ज्ञानी दा। मानसिक रूप से तनावग्रस्त और प्रताड़ित
रहते हैं शिक्षक। ऐसे में बच्चों के प्रति उनके भाव चाह कर के भी अच्छे नहीं बन पाते।
परिणाम यह होता है कि हमारे झारखंड के बच्चे बस हल्के-फुल्के मिड डे मील खा कर के
ही अपनी पढ़ाई पूरी समझ लेते हैं।
बहुत सुनाए झारखंड कि शिक्षा-व्यवस्था की करूण-गाथा। अब चलता हूँ, उमर जी --
कहकर ज्ञानी चलते बने।
51.
माइक्रोफोन अपने मुंह से लगाते हुए साहिबगंज जिला शिक्षा अधीक्षक जय हिंद ने
उद्घोष किया ‘जिले भर के सभी प्रखंडों के प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी एवं
विद्यालयों की प्रधानाध्यापक , आप लोग अवगत हो गए होंगे कि हमारे शिक्षा सचिव
साराधना पटनायक ने इस बार विद्यालय की वार्षिक परीक्षा एक नए ढंग से लेने जा रही
है। इसमें विद्यालय के शिक्षक वीक्षण कार्य नहीं करेंगे । दूसरे विद्यालय के
शिक्षक वीक्षण कार्य करेंगे । परीक्षा की कॉपियाॅ संकुल में जमा होंगी । संकुल
स्तर पर जांच केंद्र बनाए जाएंगे। संकुल के शिक्षक संकुल में प्रतिनियोजित होंगे।
वे प्रतिदिन वहीं आकर कॉपियाॅ जांचेंगे । ध्यान रहे कि अपने विद्यालय की कॉपी कोई
भी शिक्षक नहीं जाचेंगे। परीक्षाफल वहीं पर तैयार होगा। परीक्षाफल की प्रतियां
प्रखंड में जमा होंगी। एक प्रति प्रत्येक विद्यालय के प्रधानाध्यापक को दिया जाएगा
, जो कि उस विद्यालय के परीक्षाफल पंजी में अंकित होगा। उसी के आधार पर बच्चों की
उपस्थिति पंजी बनेंगी । आज की बैठक के बाद प्रत्येक प्रखंड के प्रखंड शिक्षा
प्रसार पदाधिकारी अपने-अपने प्रखंड में परीक्षा की नई नियमावली के संबंध में
विद्यालय प्रधानों को बताएंगे और कड़ी हिदायत देंगे कि परीक्षा में बच्चों की
उपस्थिति शत-प्रतिशत हो । हमारे जिले में अक्सर सभी विद्यालयों में बच्चे आधे की
संख्या में ही उपस्थित होते हैं । ऐसे तो संपूर्ण झारखंड की यही स्थिति है, फिर भी
हमें अपना काम चालाकी से करके निकल जाना है।’
एक सप्ताह के बाद उधवा प्रखंड के प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी बोधन कुमार
के इशारे पर प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी फटल भगत ने सभी शिक्षकों को अवगत कराया ‘
आप सभी प्रधान शिक्षकों को ज्ञात हो ही गया है कि इस बार की वार्षिक परीक्षा में
वीक्षण-कार्य दूसरे विद्यालय के शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति होगी। उत्तर पुस्तिकाएं
भी संकुल-स्तर पर जांची जाएगी। अतः सभी अपने- अपने विद्यालय के परीक्षा- फल परिणाम
के लिए खुद जिम्मेदार होंगे। उपस्थिति ठीक न रहीं तो आप सभी अभिभावकों के कोप-भाजक
बनेंगे।’
प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी के कार्यालय से एक सामूहिक चिठ्ठी निकली,
जिसके तहत संपूर्ण प्रखंड में शिक्षकों का एक दूसरे विद्यालय में वीक्षण कार्य
हेतु प्रतिनियुक्त कर दिया गया।
झाड़ू लगाते हुए बगैर कुछ पूछे ही भोला मास्टर को देखकर एजाजूल ईक्सप्रेस मेल
की तरह भाषण देने लगे थे - ‘क्या करें सर, सुबह से ही गाँव में घूम-घूम कर सब गार्डियन
को बोलकर आया हूँ कि आज से स्कूल में परीक्षा है। दूसरे स्कूल के शिक्षक परीक्षा
लेंगे। बच्चे परीक्षा में नहीं बैठेंगे तो असफल हो जाएँगे। फिर भी 100 बच्चों में
10 बच्चे ही अभी तक पहुँचे हैं। प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को भी अभी गाँव भेजा
हूँ।’ भोला वीक्षक बनकर आए थे। उर्दू प्राथमिक विद्यालय बगानपाड़ा में। एजाजूल
अंसारी ,प्रधान शिक्षक अपने स्कूल प्रांगण में झाड़ू लगा रहे थे। भोला को बरामदे
में रखे कुर्सी में बैठने का संकेत देते हुए एजाजूल सफाई में लगे रहे। एक बुजुर्ग
अभिभावक पहले से ही वहाँ बैठे थे। उसने धीरे- धीरे दबी जुबान में बातचीत आरंभ की ।
‘स्कूल तो केवल कागज में चलता है, मास्साव। आज परीक्षा के कारण सब डरे
हुए हैं।
अरे दादा, यही राम कहानी तो पूरे जिले की है।
आपका कोई बच्चा यहाँ पढ़ता है, क्या?
हाँ, मास्साब। इसीलिए तो यहाँ आया हूँ । मेरा पोता है। बगल के सरस्वती शिशु
मंदिर में पढ़ता है। यहाँ भी नाम है। नवोदय में फार्म भरवाने का इरादा है। बचुआ
बीमार है और भागलपुर में एक नर्सिंग होम में भर्ती है। दया करके बचुआ की हाजरी बना
दीजिएगा, मास्साब।
उसके लिए परीक्षा कौन देगा?
मास्टर एजा साहब व्यवस्था कर देंगे, बोले हैं ।
अब तक आधे बच्चे आ चुके थे । भोला मास्टर प्रश्न पत्र बांटने लगे । एजाजुल
अंसारी प्रश्न का उत्तर हल करने लगे। श्यामपट्ट पर सभी प्रश्नों के उत्तर अंसारी
साहब ने लिखना आरंभ कर दिया। दिनभर सभी क्लासों के बच्चों की उत्तर पुस्तिका तैयार
करने में लगे रहे । जो बच्चे नहीं आए थे , दूसरे बच्चों से उनकी भी कॉपियाॅ लिखाई
गईं।
भोला मास्टर ने कहा ‘इस तरह परीक्षा देना उचित नहीं होगा और न मैं इस प्रकार
की उत्तर पुस्तिका में हस्ताक्षर करूँगा। अनुपस्थित बच्चों की हाजिरी भी न बनेगी।’
अब क्या था, देखते ही देखते गरीब 20 अभिभावक विद्यालय पहुँच गए। सबने मिलकर भोला
से कहा ‘जब पूरे झारखंड में ऐसे ही चलता है तो आपके अड़ जाने से क्या व्यवस्था में
सुधार हो जाएगा ? यदि आप इन बच्चों की उत्तर पुस्तिका में हस्ताक्षर नहीं करेंगे
तो ये सब अनुत्तीर्ण हो जाएंगे। क्या आपको यह सब अच्छा लगेगा?
जब तक इन अव्यवस्थाओं का विरोध नहीं किया जाएगा, बात ऊपर नहीं जाएगी, व्यवस्था
में परिवर्तन कैसे होगा? आप लोगों को भी चाहिए कि इस विक्लांग व्यवस्था का विरोध
करें, न कि गलत तरीके से बच्चों को परीक्षा दिलाएॅ और उनकी उपस्थिति बनवाएँ ।
हम लोग ऊपर कुछ नहीं कर सकेंगे मास्टर साहब, आप अपने अड़ियल रवैया को छोड़
दीजिए, इसी में सबकी भलाई है।
भोला ने देखा, बातें बढ़ सकती है। अतः उन्होंने अपने रवैया को नरम कर दिया और
कहा- ‘ ठीक है, तब सब बच्चों को बैठा दीजिए। सबकी कॉपी आप ही लोग मिलकर लिख लीजिए।
लेकिन कल यह खबर पेपर में निकल जाएगी।’
जैसा कीजिए मास्टर साहब।
अंसारी एवं अध्यक्ष द्वारा उपदेश मिला कि ‘हर जगह तो ऐसे ही चलता है। आप और हम
ईमानदार बनकर क्या सुधार कर सकते हैं?’
परंतु सुधार की शुरुआत का पहल तो किसी न किसी को तो करना पड़ेगा, या नहीं ?
दोनों बाबू साईलेंट हो गए। वीक्षक के रूप में भोला को सभी उत्तरपुस्तिकाओं पर
हस्ताक्षर करने पड़े। अनुपस्थित बच्चों की उपस्थिति भी बनानी पड़ी।
प्रत्येक दिन परीक्षा इसी तरह ली गई और बंडल बनते गए । सभी बंडलों को एजाजुल
अंसारी मास्टर ने संकुल संसाधन केंद्र फतेहपुर पहुंचा दिया, जहां के संसाधन सेवी
पतन कुमार थे, जो अपने नाम को चरितार्थ करते रहे हैं।
संकुल संसाधन केंद्र फतेहपुर में परीक्षा की कॉपी जांच का केंद्र बनाया गया
था। संकुल के करीब-करीब सभी शिक्षक इस कार्य में प्रतिनियुक्त थे। केंद्र में कॉपी
जांचने हेतु प्रतिदिन 10:00 बजे से 5:00 बजे तक सबकी ड्यूटी थी। कॉपियों की
अदला-बदली की गई थी। एक विद्यालय के शिक्षक दूसरे विद्यालय की कॉपी जांचेंगे, ऐसा
नियम बनाया गया था। अमानत के प्रेमपुर मध्य विद्यालय के शिक्षकों ने उधवा मध्य
विद्यालय के शिक्षकों को घेरा और कहा ‘क्या आप लोगों ने हमारे विद्यालय की कॉपी
जांच ली? देखिए भाई , नंबर जरा ठीक से दिया कीजिएगा।’
‘ठीक से मतलब? बच्चे जिस तरह लिखे हैं, उसी आधार पर न नंबर दिया जाएगा। यदि हम
मनमाना करें, सादे कॉपी में नंबर दे दें, तो फिर सरकार के इस तरह कॉपी जांचने की
व्यवस्था से क्या लाभ?’ ज्ञानी ने बेहिचक कहा। ज्ञानी के विचारों का समर्थन करते
हुए विकरमण ने जवाब दिया ‘ अरे भाई, आपके विद्यालय के बहुत सारे बच्चों की कॉपी तो
बिल्कुल खाली है, नंबर कैसे देंगे आप ही लोग बताइए ?
प्रेमपुर विद्यालय के नईमुद्दीन ने बड़ी सहजता के साथ जवाब दिया ‘ देखिए भाई ,
हमारे विद्यालय के बहुत सारे बच्चे एब्सेंट थे। हम लोगों ने उनकी उपस्थिति बना दी
है और कॉपी में रोल नंबर , नाम आदि लिख कर बंडल में डाल दिए हैं। उसको तो पास करना
ही होगा और नहीं तो सारे अभिभावक हम लोगों के माथे पर सवार हो जाएंगे। हम कहीं के
नहीं रहेंगे। आप इस बात कोसमझते हैं कि नहीं?
उमर कुमार कैंची की तरह बात काटते हुए कहा ‘ 10- 20 बच्चों की बात रहे तो
हिसाब-किताब लगाया जा सकता है। परंतु यहाँ तो आधे बच्चों की कॉपियों की यही स्थिति
है।’
प्रेमपुर के हेड मास्टर ने कहा - प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी बोधन कुमार
ने भी यही बात कही है कि कॉपी क्या देखना है, केवल औपचारिकता निभानी है। अच्छे से
अच्छे अंक देकर बच्चों का रिजल्ट बना लेना है। इस पर मत्था- पच्ची करने की
आवश्यकता नहीं है। जब पदाधिकारी इस तरह की बात करते हैं तो फिर हम , आपको इस पर
शिकंजा कसने की आवश्यकता नहीं है, भाई। मध्य विद्यालय उधवा की कॉपी प्रेमपुर के
शिक्षकों के पास है। आपके विद्यालय की कॉपी भी खूब अच्छी नहीं है आप लोग अगर डट
जाएॅगे तो मजबूरन हम लोग भी डट जाएॅगे। फिर स्थिति खराब हो सकती है।
भोला मास्टर इन सारी बातों को चुपचाप सुन रहे थे। अंत में उन्होंने कहा कि ‘हम
सब को डट ही जाना चाहिए। पीछे नही हटना चाहिए । जो वास्तविक नंबर है, वही कॉपियों
में देना चाहिए और उसी के आधार पर परीक्षाफल तैयार करना चाहिए। चाहे सिर फुटौव्वल
हो चाहे कपार फुटौव्वल। सरकार के पास यह संदेश जाना ही चाहिए कि हमारी वास्तविक
स्थिति यही है। अन्यथा परिवर्तन ......, नहीं हो सकता है। क्या मैं गलत कह रहा
हूँ? ? सभी शिक्षक साइलेंट हो गए और कुछ देर तक साइलेंट रहे।
उधवा और प्रेमपुर के शिक्षकों के बीच हो रहे बहस से संकुल संसाधन केन्द्र गरम
हो रहा था। संकुल संसाधन सेवी पतन कुमार को रहा न गया। बीच में टपक पड़े। छिड़ी
बहस के मुद्दे से अवगत हुआ। उन्होंने कहा ‘ आप लोग बेकार की बहस में पड़े हैं।
कॉपी वगैरह देखना -उखना कुछ नहीं है । सीधे टेबुलेशन लिस्ट पकड़ लीजिए। सभी बच्चों
को अच्छे से अच्छे अंक देकर रिजल्ट तैयार करके एक दूसरे विद्यालय को हैंड ओवर कर
दीजिए। आप लोग देख नहीं रहे हैं कि शिक्षकों का संसाधन केंद्र में ठहराव ही नहीं
है। बीईईओ बोधन कुमार आए और सबकी हाजिरी भी काट डाले। परंतु कोई सुधार नहीं। सब से
माल ले रहे हैं और सब को फ्री छोड़ दिए हैं। उन्होंने मुझसे खुद कहा है कि पूरा
जिला क्या, पूरे झारखंड की यही स्थिति है। ये सब आई ए एस अधिकारियों की प्लानिंग
है। परंतु सरजमीन पे ये अमल में आना बहुत दूर है ....।’ सारगर्भित और यथार्थ विचार
में सबको मौन स्वीकृति मिल गई । धकाधक टेबुलेशन लिस्ट तैयार होने लगी। जो बच्चे
अच्छे अंक लाने वाले थे, वे जेनेरल मार्किंग के घेरे में आ गए और जो फेल होने वाले
थे, वे अच्छे अंक पा गए। सब धान बाईस पसेरी। कुछ शिक्षकों के बच्चे भी रिजल्ट से
प्रभावित थे। ऐसे शिक्षक पैरवी करते देखे जा रहे थे। अपनी संतान को पीछे भला कौन
देखना चाहेंगे? इनकी संतानें ही फिर से फर्स्ट सेकंड होने लगे। इस प्रकार गड़बड़
झाले वाले रिजल्ट प्रणाली से बच्चों में प्रतियोगिता की भावना बिल्कुल समाप्त
होंगी, इसकी चिंता न पदाधिकारियों की रही और न शिक्षकों की। शिक्षा की मर्यादा गिर
गई। बच्चे का भविष्य अंधकारमय हो गया ।
अनल, ज्ञानी, भोला, शुभ और मयमूल एक ही टेबल में बैठकर परीक्षा फल तैयार कर
रहे थे। ज्ञानी ने कहा ‘आप लोगों को कुछ पता है ? हम लोगों के स्कूल के शिक्षक
विकरमन जिन-जिन बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है, उन सबका रोल नंबर ऊपर करने के फेर
में, प्रेमपुर के शिक्षक के पीछे-पीछे घूम रहा है। अपने स्कूल का रिजल्ट भी यह
बर्बाद करके रख देगा।’
‘बर्बाद करके रख देगा क्या, बर्बाद कर दिया है’ अनल ने कहा।
‘अल्लाह ताला सब देख रहा है, सर। उसके घर देर है, अंधेर नहीं। मयमूल ने गहरी
सांस लेते हुए कहा।
तब तक 5:00 बज चुके थे। सभी शिक्षक घर जाने की तैयारी में लग गए।
52.
वर्ग अष्टम की बोर्ड परीक्षा पहली बार हो रही है। परीक्षा आरंभ होने में मात्र
एक सप्ताह शेष है। प्रधानाध्यापक मिहिर ऑपरेशन हेतु 15 दिनों की छुट्टी में घर जा
रहे हैं। कार्यालय की चाबी भोला को सौंप दिए हैं । कल ऑपरेशन की तैयारी हेतु रक्त
वगैरह जांच होनी है। रात्रि में मिहिर अपने माता, पिता, प्रेम विवाहिता पत्नी
सुजाता भगत और शिक्षक मित्र दानियाल के साथ बैठे बातचीत कर रहे हैं।
पिता- तुम्हारे विद्यालय का क्या समाचार है बेटा?
मिहिर- मेरे विद्यालय का समाचार क्या रहेगा पापा। मेरे स्कूल में आठ पारा
शिक्षक है । सब के सब मनमानी करते हैं। इन्हें थोड़ा सा भी कसने का प्रयास करते
हैं ,तो वे मुंह फुला लेते हैं। साफ-साफ कह देते है कि हम लोगों को आप लोगों की
तरह वेतन थोड़े मिलता है जो हम आप लोगों की तरह ड्यूटी करें?
सुजाता भगत- हम लोगों के गांव के स्कूल में भी पारा शिक्षक ऐसे ही करते हैं।
कोई नेतागिरी करते हैं ,तो कोई दुकानदारी। हेड मास्टर यदि कुछ बोलते हैं, तो वे
साफ कह देते हैं जो करना है करो।
माता- अच्छा बेटा यह बताओ, वो जो भोला मास्टर के बारे में बोल रहा था कि जब भी
मैं घर आता हूँ तो वह मेरी छुट्टी बैठा दिया करता है, क्या कुछ परिवर्तन हुआ कि
नहीं उनके विचारों में?
मिहिर- हाँ माँ, भोला सर शांत हो गए हैं । मैंने जो उनके सामने गिड़गिड़ाया कि
सर, मेरे ऊपर कृपा दृष्टि रखिएगा। मेरा आकस्मिक अवकाश चढ़ाना छोड़ दिए हैं। मेरी
ही गलती थी, उनसे रिजिड होकर काम नहीं चलने वाला है माँ । वे बच्चों और अभिभावकों
के लोकप्रिय टीचर हैं। यदि एक दिन वे विद्यालय नहीं आते हैं तो बच्चों को एहसास हो
जाता है कि भोला सर नहीं है। उनके आने पर बच्चे उन्हें घेर लेते हैं और पूछने लगते
हैं कि सर आप कल कहाँ गए थे। आपके नहीं आने पर सर, हम लोगों का मन नहीं लग रहा था।
माता- हाँ बेटा, ऐसे शिक्षक से रीजिड होना अच्छी बात नहीं और सकोगे भी नहीं ।
मिहिर- बिल्कुल सही बोली। कल मैं उनके मोटरसाइकिल में आ रहा था और कह दिया था
कि सर मैंने कल की हाजिरी बना ली है और उस के दूसरे दिन की हाजिरी अकरमण सर
डुप्लीकेट कर देंगे तो इस पर उन्होंने धीरे से कहा- ठीक है। आज अकरमण से फोन पर
बात किया हूँ तो उन्होंने कहा आप कोई चिंता नहीं कीजिए मैंने आपकी डुप्लीकेट
हाजिरी बना दी है। मेरे रहते आपका कोई बाल बांका नहीं कर सकता।
सुजाता भगत- अकरमण तो बड़ा दबंग टीचर लगता है जी।
मिहिर- हाँ जी, सब दिन नेतागिरी करके आया है और अभी जो वे टीचर बना है, तो इस
स्कूल में भी नेतागिरी करता है। छूट चाहिए तो इनसे मिलकर रहिए। मैं भी मिलकर रहता
हूँ , क्योंकि मुझे भी छूट चाहिए। विद्यालय में सबका राम राज्य ही है।
दानियाल- अरे दादा उपस्थिति पंजी गायब करने वाली घटना माँ, पिताजी और सुजाता
जी को सुना दीजिए।
मिहिर- मैं दीपावली की छुट्टी के ओपनिंग डेट में नहीं पहुँच सका था। अब उस दिन
तो मेरा आकस्मिक अवकाश बैठना ही था। भोला सर चैलेंजिंग मूड में रहा करते थे।
बिकरमण ने कमाल कर दिया । मैंने सिर्फ उनको फोन करके कहा जरा मेनेज दीजिएगा बिकरमण
जी, बस क्या हुआ कि उन्होंने उपस्थिति पंजी ही गायब कर दी और मेरा आकस्मिक अवकाश
चढ़ने से बच गया। दूसरे दिन विद्यालय गए। फिर उपस्थिति पंजी निकली और उपस्थिति
बनी।
सुजाता भगत- बड़ा कमाल का नाटक करते हो जी।
मिहिर- ये तुम जानती ही हो सुजाता, कि आज के अधिकांश आदमी को संचालित करने
वाला स्वार्थ ही है। स्वार्थ संचालित व्यक्ति को आप आसानी से अपना बना सकते हैं ।
सिर्फ उनके स्वार्थ में दीवार मत बनिए। बिकरमण को थोड़ा खिला-पिलाकर रखते हैं, तो
यह मेरे पीछे -पीछे घूमते रहता है। यूं कहा जाए कि वह विद्यालय में एक तरह से
चपरासी बना हुआ है। विद्यालय खोलना, लगाना , सब करता है। उसके रहने पर मुझे कोई
चिंता नहीं रहती। यही कल परसों की घटना है। एक औरत स्थानांतरण प्रमाण पत्र लेने आई
थी। बिकरमण उनके साथ मिल गया और छुट्टी के बाद उन्हें बुलाया। उन्होंने नामांकन
पंजी से उसका नाम खोज कर निकाला, और 200 रूपये में सौदा पटा लिया, आधा वो
लिया और आधा मुझको दिया।
माताजी- इसका कोई विरोध नहीं करता है क्या?
मिहिर- माँ , विरोध थोड़ा बहुत होता है , लेकिन सब दब जाता है, क्योंकि थोड़ी
बहुत चोरी सबको चाहिए ही चाहिए और उसकी एक खासियत है कि वह विद्यालय में समय भी
पूरा देता है और मुँह जोर भी कम नहीं है।
पिता- भोला मास्टर कुछ नहीं बोलता है क्या?
माता- चोरों के गांव में एक साधु बन कर विरोध करेगा तो सब चोर मिलकर उसको गाली
ही देगा न, इसलिए वह भी चुप रहता है।
दानियाल- माँ बिल्कुल ठीक कह रही है, यही तो होता है।
पत्नी सुजाता भगत भोजन परोसने चली गई। सभी भोजन करने चले गए , क्योंकि कल
ऑपरेशन संबंधी जांच होने की तिथि है।
मिहिर बाबू का ऑपरेशन हुए आज चौथा दिन बीता। आज शाम को उन्होंने व्हाट्सेप चेक
करना आरंभ किया। जिसमें भोला द्वारा विद्यालय की गतिविधियों को बहुत अच्छी तरह
डाला गया था। चूँकि भोला अभी विद्यालय के प्रभार में है और इसी अवधि में
झारखंड अधिविध परिषद द्वारा वर्ग अष्टम की वार्षिक परीक्षा संचालित है। इस परीक्षा
का केन्द्र मध्य विद्यालय उधवा को भी बनाया गया है जिसमें 350 बच्चे परीक्षा दे
रहे हैं। नजदीक के 3 विद्यालय को मध्य विद्यालय उधवा से टैग भी किया गया है। इन
सभी बच्चों की परीक्षाएं मध्य विद्यालय उधवा केंद्र में हो रही है। इस केंद्र के
केंद्राधीक्षक के रूप में भोला मास्टर कार्य कर रहे हैं । आज भोला द्वारा पोस्ट
किए गए वीडियो और फोटो देखकर मिहिर बहुत ही आश्चर्यचकित हैं। वह अपनी भावनाओं
को अपने परिवार और अपने मित्र दानियाल के साथ शेयर कर रहे हैं।
सुजाता भगत- मोबाइल में क्या देखते रहे हो जी?
मिहिर- देखो तुम भी देखो। मेरे विद्यालय का कितना सुंदर वीडियो है। आज तक इतना
सुंदर व्यवस्थित प्रार्थना- सभा मैंने अपने विद्यालय में कभी नहीं देखा है और न
मैं कर सका हूँ । इस वीडियो में एक बहुत बड़ी खासियत है कि आज जितने भी शिक्षक
विद्यालय में उपस्थित हैं और जो बाहर से आए हुए हैं , सभी बच्चों के सामने पंक्ति
में खड़े हैं। इस तरह कभी भी मैंने शिक्षकों को प्रार्थना सभा में पंक्तिबद्ध खड़ा
नहीं किया । माइक्रोफोन से कार्यक्रम का दिशा- निर्देश हो रहा है। सभी
परीक्षार्थी प्रार्थना में शामिल है और अच्छी तरह से। भोला सर भी माइक में कुछ बोल
रहे हैं। कदाचित यही कह रहे होंगे कि परीक्षा कदाचार मुक्त हों।
सुजाता भगत- आखिर तुम भोला सर के तरह क्यों नहीं कर सके? तुम्हारी रुचि में
कमी होगी। भोलासर इंटरेस्टेड है।
मिहिर-यस एब्सोल्यूटली राईट। मेरी तुलना उनसे नहीं हो सकती। वे बहुत ही
मैच्योर्ड टीचर है। दूसरी बात है कि भोलासर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला के
बौद्धिक प्रमुख का दायित्व निभा चुके हैं। इसलिए भी उनकी काबिलियत में चार चांद
लगी हुई है। केवल मेरे विद्यालय ही नहीं अपितु पूरे जिले में वे जाने-माने
शिक्षकों की श्रेणी में आते हैं। दूसरी बात है कि मेरे विद्यालय में एक टीचर है
अकरमण, सबका उस्ताद। सब को बिगाड़ने वाला। सबका डुप्लीकेट हस्ताक्षर करने वाला। जब
प्रार्थना होता है तो ये गप्पे लड़ाता है। यदि इनको कुछ कहा जाए तो हेकड़ीबाजी
शुरू कर देता है। हाउस का निर्माण करना था तो ये बिचक कर कहते हैं कि मुझको ऐसा
नहीं करना है, जिनको कंप्लेन करना है करो। बस इनको देख कर सब के सब सरक गए और आज
तक मध्य विद्यालय उधवा में हाउस का निर्माण नहीं हो सका। जानती हो, अभी अकरमण की
ड्यूटी दूसरे स्कूल में है । ये विद्यालय से गायब हैं , इसलिए भोला सर इस अवसर पर
अपनी प्रतिभा को दिखला पा रहे हैं । कदाचित वे रहने पर कुछ न कुछ बाधा अवश्य
डालते। फिर भी भोला सर इनसे भी जूझते रहते हैं और कुछ न कुछ करते ही रहते हैं।
सुजाता भगत – ओह माई डियर ! आप को इतने काबिल शिक्षक के साथ कार्य करने का
अवसर मिला है परंतु आप उनसे सीख नहीं रहे हैं। उनसे सीखिए और नहीं तो आप प्रयास
करके उनको विद्यालय का हेड मास्टर बना दीजिए। आप प्रभार से मुक्त हो जाइए। आप इसके
चलते घर में भी समय नहीं देते हैं। आप आते हैं विद्यालय से तो रात भर ठहरते हैं और
दूसरे ही दिन विद्यालय जाने की तैयारी करते हैं। प्रभार से मुक्त हो जाएगा तो आप
घर में भी समय दीजिएगा और उधर भोला सर भी अपनी प्रतिभा दिखा पाएँगे । आप ही न कह
रहे थे कि वह प्रभार के लिए, अपनी प्रतिभा को दिखलाने के लिए प्रयासरत रहे हैं।
परंतु रिश्वतखोर पदाधिकारी जय हिंद ऐसे शिक्षक को नजरअंदाज कर रहे हैं ।
मिहिर -देखो सुजाता, एक बात बड़े गौर करने की है कि छोटे कर्मचारी हो या
शिक्षक, इहें सब कोई देखता है, लेकिन बड़े अफसरों की गलती कोई नहीं देखता। बहुत कम
पदाधिकारी हैं ,जो अपनी गलत हरकत के कारण जेल जाते हैं या निलंबित होते हैं, परंतु
हम लोगों की थोड़ी सी गलती में, तुरंत वेतन बंद होगा, स्पष्टीकरण पूछा जाएगा,
अनुशासनिक और प्रशासनिक कार्रवाई की जाती है । और तुम इनके विरुद्ध कंप्लेन
करो तो कोई सुनने वाला नहीं होगा जैसे लगेगा कि सभी ऑफिसर लंबी छुट्टी में चले गए
हैं। अगर सच कहा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है मानो ईमानदारी और नैतिकता जैसे मानव
मूल्य छोटे कर्मचारियों के लिए मजबूरी है और ठगी ,बेईमानी ,रिश्वतखोरी
पदाधिकारियों के लिए आभूषण। जैसे लगता है वे डंका बजा कर कह रहे हों कि हमारा कोई
कुछ नहीं बिगाड़ सकता और ऐसा दिखता भी है। भोलासर के बारे में मुझे पता है , वह
अपने प्रभार के लिए मुख्यमंत्री तो दूर प्रधानमंत्री तक को लिखा लेकिन कुछ नहीं
हुआ। बेचारे को शिक्षा विभाग से विरक्ति हो गई है। मैंने भी मिड डे मील की दैनिक
पंजी पहले भी नहीं दी और इस बार भी। पहले भी उन्होंने प्रखण्ड से लेकर क्लक्टर तक
को सूचित किया था परंतु किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। इस बार भी मैं ऐसे ही कर रहा
हूँ। कहा था पंजी आपको मिल जाएगा पर अभी नहीं दिया हूँ और न दिला रहा हूँ।
दानियाल- बुरा न माने तो एक बात कहूँ मिहिर बाबू?
मिहिर- हाँ हाँ कहिए न।
दानियाल- आप भी छल प्रपंच में कम नहीं है और इसी वजह से भोला सर आपको पसंद
नहीं करते हैं । आप को भी इस संबंध में अपने आप में बदलाव लाना चाहिए। मैं मानता
हूँ कि पदाधिकारी भोलासर के फेवर में नहीं है परंतु आपको ऐसे निष्ठावान शिक्षक का
अनादर करना भी उचित नहीं है।
मिहिर- बिल्कुल सही कहा दानियाल बाबू आपने और एक बात कह दूँ , जब से भोलासर
मेरा आकस्मिक अवकाश बैठाना छोड़ दिये है, तब से मैं उनका आदर करने लगा हूँ और उनकी
एक्टिविटी में अब सहयोग करने लगा हूँ और अब करूँगा भी और दिल से करूँगा ।
इस बात पर दानियल और सुजाता भगत दोनों ने तालियाँ बजाई और कहा –‘ वाह भाई वाह
चलिए कुछ बदलाव तो आ रहा है न’। इसी समय उधवा से उमर कुमार का फोन आया। सुजाता भगत
ने फोन उठाई और मिहिर को दिया।
मिहिर- हेलो उमर सर , कहा जाए। कैसे हैं ?
उमर- आप कैसे हैं सर?
मिहिर- ठीक है आज ही अस्पताल से घर आया हूँ । ऑपरेशन अच्छी तरह हो गया है और 5
दिन के बाद स्टीच कटवाने के लिए जाऊॅगा।
मिहिर- वहाँ का हाल- समाचार बताइए ।
उमर- यहाँ का समाचार बहुत ही अच्छा है सर। भोलासर बहुत अच्छी तरह
केंद्राधीक्षक का दायित्व निभा रहे हैं।
मिहिर- हाँ वह तो वीडियो और फोटो से पता चल ही रहा है। प्रार्थना सभा का
आकर्षण रूप भी वीडियो में देखा हूँ ।
उमर- लेकिन, सर हम लोगों की ड्यूटी जो फुदकीपुर में पड़ी है, अकरमण सर हम
लोगों को परेशान कर रहे हैं। एक ही दिन ड्यूटी में गए हैं और जाना ही बंद कर दिए
हैं । सुनने मिला हैं कि बीआरसी गए थे नाम कटवाने परंतु नाम कटा नहीं और ड्यूटी
में भी नहीं जाते हैं।
मिहिर- जैसा उनका नाम है वैसा ही उनका गुण भी है, लेकिन उनका दोनों पुत्र
अच्छे मुकाम पर पहुँच चुके हैं इसलिए उनको थोड़ा त्याग भाव से समाज की सेवा करनी
चाहिए अन्यथा उनको अंत में पछताना पड़ेगा अपने किए हुए कर्म को याद करके। ऐसे तो
समाज उनको सही निगाह से नहीं देख रहा है और डर से उनके मुंह में कोई बोल भी नहीं
पाता है। दबंगई के चलते वह समाज को धोखा दे रहे हैं ।
उमर – बहुत से विद्यालय में इस तरह के एक-दो टीचर देखने को मिलता है सर।
राजनीतिक का सहारा लेकर ये समाज को धोखा देते हैं और नेताओं से इन्हें संरक्षण भी
मिल जाता है । बड़ी दयनीय स्थिति है हमारी झारखंड की शिक्षा व्यवस्था की।
मिहिर- और इन सब का बुरा असर बच्चों की भावी जिंदगी पर पड़ रहा है। ऐसे लोगों
को ईश्वर अभिशाप अवश्य देंगे । ये ईश्वरीय दंड से बच नहीं पाएँगे चाहे वे शिक्षक
हों या पदाधिकारी।
उमर कुमार- इस चिरंतन सत्य को भला कौन काट सकता है ,सर। गुड नाइट सर ,माँ डीनर
के लिए बुला रही है, रात भी हो गई, कल बात करेंगे।
मिहिर- ओ के सर, गुड नाइट ।
मिहिर हो या उमर कुमार, मजबूरी में सभी कुछ न कुछ गलतियाँ करते हैं, परंतु
आत्मा को अच्छाई और बुराई दोनों ही दिखती है परंतु . .........।
53
आज विद्यालय में अष्टम वर्ग की बोर्ड परीक्षा का चौथा दिन था। भोला
केंद्राधीक्षक के कार्य में व्यस्त थे। बनावटी गंभीरता लिए मिसिर ने भोला के बगल
में रखी कुर्सी में बैठते हुए पूछा – भोला सर ! मिहिर जी का 4 दिन का आकस्मिक
अवकाश बैठा दिये हैं ?
भोला - क्या......करूं ! उन्होंने आदेश पंजी में आदेश दे दिया है। अब देखिए कि
पहले वह अग्रिम हस्ताक्षर करके गया और 1 दिन की हाजिरी अकरमन ने बना दिया है। इसकी
जानकारी उन्होंने दी थी। फिर वह नहीं आएंगे तो उनका कॉलम खाली रहेगा।
मिसिर- बिल्कुल ..... खाली रखना ही है। उसके कॉलम में कुछ नहीं लिखना है।
भोला- हाँ, तो वैसा ही होगा।
भोला को कोई नहीं रोकता-टोकता था। कभी किसी ने नहीं कहा कि आप उनका आकस्मिक
अवकाश क्यों दर्ज करते हैं, परंतु आज मिसिर ने दबी जुबान से दबाव डाल ही दिया कि
उनका आकस्मिक अवकाश न चढ़ाया जाए। यदि भोला मिसिर से यह कह देते हैं कि आप को इस
संबंध में पैरवी करने या कहने की आवश्यकता नहीं है या आपको नहीं कहना चाहिए तो
दोनों में अंतर्द्वंद आरंभ हो जाने की संभावना है। मिसिर ने 15-20 दिन टूर में गया
था और उसकी डुप्लीकेट हाजिरी अकरमण ने बनाई थी। उस समय बदलू हेड मास्टर थे और
मिहिर सहायक थे , उसने कोई आपत्ति नहीं की थी, इसी कृतज्ञता के वशीभूत होकर आज
मिसिर मास्टर, मिहिर मास्टर को बचाने की वकालत करने के लिए मजबूर हैं। कर्मपथ का
विधान ही ऐसा है कि आप कुछ अच्छा करना चाहें तो बाधाएं ही बाधाएँ हैं। गलत करने के
लिए विवश किया जाता है, क्योंकि इसमें उनका स्वार्थ निहित होता है।
उधर उमर कुमार भोला की एक्टिविटी से नाराज थे। व्हाट्सेप में डाले गए वीडियो
और फोटो जो उनकी सक्रियता को दर्शा रहे थे । वह इससे जल रहे थे । अपनी जलन को
उन्होंने फुदकीपुर से आते वक्त अनल से कहा था ‘भोलासर अनाप-शनाप क्या डाल रहे हैं,
वीडियो-इडियो बना-बना कर के?
अनल -क्या डाल रहे हैं , बस वह जो करते हैं ,उसको डाल रहे हैं । क्या बुराई
है? अच्छा ही तो है, आकर्षक प्रार्थना सभा, अपना साउंड सिस्टम लेकर आते हैं,
राष्ट्रगान साउंड सिस्टम के माध्यम से होता है । सभी परीक्षार्थियों को प्रार्थना
सभा में ही मार्गदर्शन करते हैं। इसमें तो मुझे कहीं बुराई नजर नहीं आ रही है।
उमर- हाँ .... सब ठीक है, परंतु यह सब जिला के परिवर्तन ग्रुप में डालने की
क्या आवश्यकता है?
अनल- डीएसई जय हिंद भी तो कहते हैं कि अपने विद्यालय की गतिविधियों को
परिवर्तन ग्रुप में डालें।
उमर कुमार ने एक लंबी स्वांस लेते हुए कहा - ठीक ही है, मगर .....।
होली छुट्टी होने के 1 दिन पूर्व मिसिर मास्टर ने भोला सर के सामने प्रस्ताव
रखा कि होली मिलन समारोह के रूप में मिड डे मील के माध्यम से एक स्पेशल भोज का
कार्यक्रम होना चाहिए। अकरमण मास्टर ने भी इसका समर्थन किया। भोला विद्यालय के
प्रभार में थे। उन्होंने भी अपनी सहमति दे दी। दूसरे दिन आटा, तेल, सब्जी मंगाई
गई। रसोईयों को समय पर भोजन तैयार करने की हिदायत दी गई, परंतु मध्य विद्यालय उधवा
तो बुधवा विद्यालय ही है। 12 बजते-बजते विद्यालय से सब गायब हो गए । भोला और मयमूल
थे। डेढ़ बजे बिकरमण घर से वापस आये। बच्चे को व्यवस्थित ढंग से खिलाने की समस्या
थी, क्योंकि स्पेशल भोज है और जिनकी हाजिरी नहीं है, वे बच्चे भी आ जाएंगे।
अंततोगत्वा भोला ने बिकरमण को आग्रह पूर्वक तैयार किया और बच्चों को पंक्ति में
बैठा कर खिलाना आरंभ किया। भोज अभी शुरू ही हुआ था कि ज्ञानी ने भी सहयोग के लिए
कमर कस ली। मुसलमान होने के बावजूद मयमूल भी आ गए। सभी बच्चों को पंक्ति में बैठा
कर भोजन कराया गया। बाल संसद के बच्चियों ने बड़े ही प्रेम से भोजन कराईं। फोटो
खींचे गए। इन सभी फोटो को वीडियो बनाकर जिला परिवर्तन ग्रुप में डालने की सोची गई।
अकरमण बहाने मार कर लापता रहे। मिसिर पुरोहिती के काम से गए तो चले ही गए । उमर
कुमार तो विषादग्रस्त था ही, वह कब चले गए किसी को पता ही नहीं चला। बाल संसद के
बच्चे भी भोजन ग्रहण कर लिए थे और उन्हें भी भोला ने छुट्टी दे दी । अब रह गई बारी
शिक्षकों के भोजन की। 4 कुर्सियों में बिकरमण, भोला, मयमूल और ज्ञानी बैठे थे।
भोला ने जानी से कहा- ज्ञानी जी, जिस तरह से शिक्षकों का सहयोग ऐसे कार्यक्रम
में नहीं होता है, हम लोगों को इस प्रकार का कार्यक्रम नहीं करना चाहिए।
ज्ञानी- ऐसी बात नहीं है सर, सब लोगों की रुचि होती भी नहीं है। बातें
बढ़-चढ़कर करेंगे, परंतु सहयोग नहीं करेंगे । जब देश की आजादी की बात आई थी तो
क्या पूरे देशवासी अंग्रेजों से लड़े थे। बस 5- 10 ही तो हाईलाइटेड थे। यही समझिए।
मैं तो आर्य समाज का कार्यक्रम करता हूँ । इन सब का अनुभव मुझको है। बोलेंगे सब
परंतु करने वाले 1-2 ही होते हैं। उन्हीं के इशारों में सब कुछ होता है। इसलिए आप
चिंता मत कीजिए। आप हैं , मैं हूँ और बिकरमण है। यही काफी है। इतने में सब
देख लेंगे ऐसे ही लोगों को यश मिलता है। बाकी हाथ मलते रह जाते हैं । जैसे एक ही
उल्लू काफी है बर्बाद ए गुलिस्तां करने को उसी प्रकार एक ही मर्द काफी है सजाने
गुलिस्ता स्कूल को।
इस पर सबने ठहाका ली और मयमूल ने कहा- आपने बहुत महत्वपूर्ण बात कही ज्ञानी
भाई।
ज्ञानी- आज नहीं देखा आपने प्रार्थना सभा में, हम दोनों मिलकर बच्चों को होली
की सावधानी के संबंध में समझा रहे थे और बाकी शिक्षकों को इस से कोई मतलब ही नहीं
था, सब ऑफिस में बैठकर क्या जो बात कर रहे थे, कौन-सा पुराण पढ़ रहे थे कि वे ही
जाने।
बिकरमण- उन लोगों के लिए विद्यालय एक क्लब की तरह है बस आते हैं टाइम पास करने
के लिए।
भोज के समय अकरमण, मिसिर और उमर कुमार गायब रहे। बाकी सभी प्रेम पूर्वक भोजन
किया। भोला ने बदलू के गाल में अबीर लगाए। मयमूल बगल में खड़े थे, भोला ने उन्हें
भी अबीर लगाई और गले मिले। तब तक 3:00 बज चुके थे। सभी अपने-अपने आशियाने को चलते
बने। विद्यालय का होली मिलन समारोह कैसा रहा अब आगे बताने की आवश्यकता प्रतीत नहीं
होती।
आज के होली मिलन समारोह और बच्चों के प्रेम भोज आदि का सुंदर वीडियो जिला
परिवर्तन ग्रुप में डाल दिया गया ताकि उमर और मिहिर भी घर बैठे देख ले।
रात्रि के 8:00 बजे थे , उमर ने मिहिर को फोन लगाया।
मिहिर- गुड इभनिंग उमर जी। अभी मैं आपको फोन लगाने ही वाला था और आप कर दिए
इसके लिए आपको धन्यवाद। कहिए कुछ विशेष।
उमर कुमार – गुड इवनिंग सर। विशेष क्या सर, जिला परिवर्तन ग्रुप में भोला सर
द्वारा डाले गए एक पोस्ट ने मेरे मन को झकझोर कर रख दिया है, आप भी पढ़े होंगे,
उसमें लिखा हैं कि जब हमें अपने बुरे कर्मों के प्रति आत्मग्लानि होने लगे और
सुधरने की प्रवृत्ति जगे तो समझिए आपका आत्मकलयाण होने वाला है, अन्यथा अधो गति
निश्चित है। भले ही कुछ भौतिक एषनाओं की पूर्ति क्यों न हो जाए, जोकि क्षणभंगुर
है।
मिहिर- यह उक्ति तो बहुत ही गूढ़ अर्थ रखता है। आप आध्यात्मिकता से जुड़े हुए
हैं इसलिए आपको यह उक्ति झकझोर रही है, अन्यथा 99% आदमी को इससे कोई फर्क ही नहीं
पड़ता।
उमर कुमार - बात दरअसल यह है कि मैंने एक बार भोला सर को कह दिया था कि आप
मध्य विद्यालय उधवा में दीवार बने हुए हैं जबकि वह दीवार नहीं विद्यालय की छत है
जिसके नीचे बच्चे प्रेम ,प्रेरणा के साथ सहानुभूति पूर्वक कुछ पा रहे हैं । दीवार
समझना और उनको कह देना मेरी आत्मा को चोट पहुंचा रही है, जब कि उनकी एक्टिविटी
विद्यालय को समर्पित है। विद्यालय में नई जान डाल दी है उसने । आपके , मेरे,
बिकरमण और अकरमण के नहीं रहने से उन्होंने और अच्छी तरह अपना परफॉर्मेंस दिखाया है
। मुझे भी पता नहीं था उनकी काबिलियत , परंतु अष्टम वर्ग की बोर्ड परीक्षा के
संचालन में उनकी काबिलियत ने मेरे दिल को झकझोर दिया है। मुझे अपनी गलतियों के
प्रति आत्मग्लानि हो रही है।
मिहिर हॅसते हुए कहा - तो अच्छा ही है। यदि आपको आत्मग्लानि हो रही है तो
समझिए आपका भी आत्मकल्याण होने वाला है जैसा कि भोलासर ने पोस्ट किया है।
उमर कुमार - इन्हीं बातों के चलते उनके अंदर बहुत कुछ चल रहा है सर और इसी वजह
से वह हेड मास्टर की कुर्सी में भी नहीं बैठते हैं जबकि आपने उनको आदेश पंजी में
लिखित प्रभार दिया है। बाहर में ही टेबुल-कुर्सी निकालकर बैठ जाते हैं और सारे कार्य
का संपादन करते हैं। हॅसते- खेलते रहते हैं, बच्चों के साथ । कभी उदास भी नहीं
देखता हूँ । बच्चे भी उन्हें घेरे रहते हैं ।
मिहिर- सो बात तो है । भोला सर की खासियत ही अनुकरणीय है, हम शिक्षकों के
लिए..........। अच्छा शुभरात्रि उमर जी। पर हम सभी शिक्षक उनसे कटे रहते हैं, यह
हम लोगों की आत्मीय कमजोरी है।
उमर- शुभ रात्रि सर।
डीनर के पश्चात उमर कुमार बेडरूम पर गया। आधे घंटे से अधिक हो गया परन्तु नींद
का कहीं अता-पता नहीं । भोला सर की यह उक्ति कि ‘जब हमें अपने बुरे कर्मों प्रति
आत्मग्लानि होने लगे और सुधरने की प्रवृत्ति जगे तो समझिए आपका आत्मकल्याण होने
वाला है, अन्यथा अधो गति निश्चित है। भले ही कुछ भौतिक एषनाओं की पूर्ति क्यों न
हो जाए, जोकि क्षणभंगुर है’ उमर के मन में बार-बार प्रहार कर रही थी। भोला
के प्रभार संबंधी आदेश में अपने किए गए नाटकीय कुकृत्य को वह याद करता है और
छटपटाता है। उन्होंने ही मिहिर का ब्रेनवाश कर प्रभार के लिए तैयार किया था। जबकि
विद्यालय हित के लिए उनकी गतिविधि खरी नहीं उतरी। अक्सर अनुपस्थित रहने से
विद्यालय की व्यवस्था बिगड़ गई है। भोला ही है जो संभाले हुए हैं। भोला की गतिविधि
बच्चों के हित में है परंतु उसके मन में भी उनके प्रति द्वेष भाव उत्पन्न हो जाता
है। आखिर आखिर वह करें तो क्या करें मन में विचार आता है। एक बार भोलि सर के सामने
बैठकर अपनी गलतियों के लिए माफी मांगे, परंतु अहंकार दीवार बनकर खड़ा हो जाता है।
परिणाम क्या होता है कि वह आत्मग्लानि के दौर से गुजर रहा है। भोला शिक्षकों को
अपनी तरफ खींचने का कोई नाटक नहीं करता ,न ही कोई चापलूसी करता है और न चाटुकारिता
। उनका संपूर्ण समर्पण विद्यालय के बच्चों के प्रति है, जिसमें वह शत-प्रतिशत सफल
है। इसी तरह सोचतें, विचाते , छटपटाते घंटों बीत गए, तब कहीं नींद आई।
सुबह भोला ने मिसिर मास्टर को फोन लगाया।
मिसिर- कहा जाए सर, कैसे याद किए?
भोला- मिसिर बाबू, होली छुट्टी के दिन आपने बच्चों के लिए विशेष भोज का आयोजन
करने के लिए कहा था, सो मैंने करवा दिया, परंतु आप नहीं थे, तो अच्छा नहीं लगा।
मिसिर- क्या करूँ, पुरोहिती का काम ही ऐसा है कि जाना पड़ गया। एक प्लास्टिक
पूरी-मिठाई मेरे घर भेज देते।
भोला- गलती हो गई । किसी ने कोई चर्चा नहीं की।
मिसिर- आप चर्चा करते और भेज देते। आपको बोल्ड होना चाहिए। अब तो विद्यालय आप
ही को संभालना है।
भोला- अच्छा ठीक है आगे देखा जाएगा।
मिसिर- ओ के, गुड नाईट सर।
भोला ने इसकी चर्चा अपनी पत्नी गीता और संतानों के बीच की कि विद्यालय संभालने
की बात कह रहे हैं मिसिर जी । कहते हैं कि आपको बोल्ड होना है जबकि ये मुझे बोल्ड
आउट करने की साजिश रच रहे थे। इनके भाई मंगलू मिसिर तो मुझको थाना और जेल भेजने की
तैयारी कर रहे थे।
गीता- ये लोग काले नाग से भी अधिक खतरनाक होते हैं जी, इसीलिए तो बुजुर्गों ने
कहा है यदि आपके घर में एक मिसिर -बभना घुस आये हो और एक काले नाग तो पहले आप बाभन
को मारिए। नाग के काटे जाने पर उसका विष तो उतर जाएगा लेकिन इन के चाटने पर ही विष
लग जाता है और फिर इनका विष नहीं उतरता है। ये लोग बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ ।
षड्यंत्र रचने में ये लोग माहिर होते हैं। ऐसे लोगों की हरकतों से मैं अच्छी तरह
परिचित हूँ । मैंने अपने मायके में भी ऐसे लोगों को नजदीक से देखा है।
बच्चों ने कहा- हाँ, बिल्कुल ठीक कह रही है, मम्मी । इस सब्जेक्ट को अब
स्टॉप कर दीजिए पापा और टीभी में न्यूज़ सुनिए, सुधीर चौधरी द्वारा श्रीदेवी का
निधन समाचार विश्लेषण डीएनए।
54.
झारखंड अधिविध द्वारा संचालित वर्ग अष्टम की वार्षिक परीक्षा समाप्त हो
गई । इसके बाद आरंभ हुई माध्यमिक परीक्षा। मध्य विद्यालय उधवा को भी परीक्षा
का केंद्र बनाया गया। इस केंद्र के केंद्राधीक्षक बने फतेहपुर उच्च विद्यालय के
प्रधानाध्यापक अरूप सेन ने मध्य विद्यालय उधवा आकर इस के प्रधानाध्यापक की
खोज की। प्रधानाध्यापक अभी तक विद्यालय से नदारद थे। ऑपरेशन की वजह से विद्यालय
नहीं आ रहे थे । भोला बाबू विद्यालय के प्रभार में थे ।अरुप सेन ने भोला बाबू को
जिला शिक्षा पदाधिकारी साहिबगंज का वह पत्रादेश दिखाया जिसमें लिखा था कि विद्यालय
के वरीय शिक्षक ही सहायक केंद्राधीक्षक रहेंगे। एतदर्थ अरूप सेन ने भोला बाबू को
सहायक केंद्राधीक्षक के रूप में नामित किया और उसे जिला शिक्षा पदाधिकारी के समक्ष
अनुमोदनार्थ प्रेषित कर दिया। अब झारखंड अधिविध परिषद द्वारा संचालित मध्य
विद्यालय उधवा के केंद्र में भोला बाबू सहायक केंद्राधीक्षक बने। उधर उधवा प्रखंड
के संकुल संसाधन केंद्र में बीपीओ फटल भगत और बीआरपी बैजू बाबू भोला के
समक्ष प्रश्न खड़ा कर रहे थे कि आखिर मिहिर प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय उधवा कौन-
सी छुट्टी में हैं? मेडिकल छुट्टी भी उन्हें नहीं मिल सकती क्योंकि अभी उनकी
नौकरी की 3 वर्ष पूरी नहीं हो पाई है। भोला ने सहमे हुए लहजे में बताया - मिलीभगत
का जमाना है । मिहिर विद्यालय से कैसे आउट हैं, ये सब आप लोगों से छिपी हुई
नहीं है । आप सभी जानते हैं। मैं क्या बताऊं?
फटल बाबू- मैं समझ रहा हूँ , परंतु आप इतनी छूट क्यों देते हैं?
भोला- क्या करूँ ? अगर मैं आकस्मिक अवकाश बैठाता हूँ तो बाकी सभी शिक्षकों एवं
मिहिर का कोपभाजन बनता हूँ । सीधी मुॅह मुझसे कोई बात नहीं करना चाहते।
फटल बाबू- इस बात का अनुभव मुझे भी है। मैं बीपीओ के नाते ऐसा देखता हूँ कि जब
मैं अपने अधीनस्थ कर्मियों का आकस्मिक अवकाश बैठाता हूँ , तो वे भी मुॅह फुलाते हैं। ठीक
है, मैं प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी धर्मेन्द्र बाबू से इस संबंध
में बात करता हूँ।
बैजू बाबू- मैंने तो सुना है कि मध्य विद्यालय उधवा में डुप्लीकेट सिग्नेचर का
मार्केट गरम है । कोई टूर में जाते हैं , कोई इलाज कराने जाते हैं, वैसी स्थिति
में डुप्लीकेट हाजरी बनाने वाले टीचर भी यहां मौजूद है। इस समझौते के कारण
विद्यालय की पढ़ाई लिखाई चरमरा गई है ।
फटल भगत- ये तो होना ही है। जितना समझोता होगा उतना भ्रष्टाचार फैलेगा।
समझौता ही भ्रष्टाचार की जननी है।
बैजू बाबू - भोला जी, आपके विद्यालय के बच्चों का टेबुलेशन लिस्ट में अंक दर्ज
कर दिए गए हैं । उस टेबुलेशन लिस्ट में सभी बच्चों का व्यवहारिक अंक दर्ज करना है।
आप 2 शिक्षक यहाँ आकर दर्ज कर दीजिए। और जोड़ करके हमें दे दीजिए।
भोला - लेकिन हमारे विद्यालय में माध्यमिक परीक्षा का सेंटर है और सभी
शिक्षकों को आप उस ड्यूटी में लगा चुके हैं । कुछ शिक्षक यहाँ कॉपी जांच रहे
हैं । ऐसी स्थिति में हम आपके यहाँ कैसे आएंगे?
बैजू बाबू - तो ऐसा करते हैं , इस गोपनीय फाइल को आप अपने घर लेकर चले जाइए और
घर में ही अंक दर्ज कर सभी छात्रों के अंको का कुल योग निकालकर और हमें चुपचाप दे दीजिए
। गोपनीयता बनाए रखेंगे। कोई जैसे जाने नहीं।
फटल भगत- हाँ ,गोपनीयता बनाए रखिएगा। भोला सर जी, कहीं पत्रकार को भनक न मिले,
अन्यथा हम कहीं के नहीं रहेंगे।
भोला- ठीक है भाई, जैसी आप लोगों की मर्जी। दे दीजिए फाइल । जैसा आप चाहते हैं
वैसा करके मैं आपको दे दूँगा।
भोला मास्टर टेबुलेशन लिस्ट को लेकर विद्यालय पहुँचा। अकरमण को
पूरा करने का आग्रह किया। अकरमण बड़ी तन्मयता के साथ 3 दिनों के अंदर सभी बच्चों
का अंक जोड़कर भोला को सुपुर्द कर दिया। भोला जी ने भी उसे बैजू बाबू को थमा दिया
।
झारखंड माध्यमिक बोर्ड की परीक्षा समाप्त हो गई थी। मिहिर हेड मास्टर स्कूल
में ही थे। सभी शिक्षक चले गए थे। एकांत पाकर मिहिर के समक्ष बिकरमण ने कुछ गुप्त
बातें आरंभ की। 20 दिनों से उनसे कुछ बातें नहीं हो पाई थी। कुछ कमाई रुकी सी थी।
स्थानांतरण प्रमाण पत्र लेनेवाले कई पुराने छात्रों को अभी दूर ही रखा था। सबको
डेट दे दिया था कि मिहिर हेड मास्टर आएंगे तो काम होगा। भोला सब कुछ सुनता था पर
इस पर दखल नहीं देता था। अब मिहिर के साथ बात हो रही है कि किन-किन विद्यार्थियों
को स्थानांतरण प्रमाण पत्र देना है और किन से कितनी रकम ऐंठनी है।
बिकरमण- 10 दिनों से 3- 4 विद्यार्थी चक्कर मार रहा है सर, स्थानांतरण
प्रमाण-पत्र के लिए। मैंने सबको कहा है कि मैट्रिक परीक्षा समाप्त हो जाएगी तब
आना।
मिहिर- ऐसी बात है तो उन लोगों को 2:00 बजे के बाद कल बुला लीजिए।
बिकरमण- ठीक कहते हैं सर, उस समय विद्यालय में कोई शिक्षक नहीं रहेंगे
,क्योंकि लेन-देन में कोई नहीं रहे तो अच्छा होता है।
मिहिर- बिलकुल सही।
बिकरमण- सर, आज से 10 बरस पहले एक लड़का यहाँसे सातवीं पास करके पढ़ाई छोड़
दिया था। वह अभी आठवीं पास का सर्टिफिकेट मांगता है। मैंने उन्हें नहीं कहा तो वह 500 तक देने को तैयार
हो गया है। मैंने एक हजार कहा है। अभी वह 500 रूपये मुझे दे दिया है । सर्टिफिकेट
देने के बाद वह एक हजार पूरा कर देगा।
मिहिर- ले लीजिए। दे देंगे।
संकुल संसाधन केंद्र फतेहपुर में संकुल की बैठक
थी। मिहिर मास्टर भोला की बाइक में बैठकर जा रहे थे। कहने लगे- बिकरमण भी गजब का
टीचर अपने मन से अनाप-शनाप निर्णय ले लेता है। आज उधवा के बगान पाड़ा स्कूल में
स्वच्छता का कार्यक्रम है। जिसमें उप विकास आयुक्त नम्रता सहाय आएगी। उसमें स्वागत
गीत गाने के लिए अपने विद्यालय की बच्चियों को भेजने की क्या आवश्यकता है? क्या हम
लोगों के विद्यालय में कोई आदेश या निर्देश आया है? किस आदेश के तहत हम अपने
शिक्षक को वहाँ भेजेंगे? बिरोध करेंगे तो खराब लगेगा, परंतु अनधिकार चेष्टा क्या
ठीक है सर?
भोला- इसीलिए तो मैं जाना नहीं चाहा ।
मिहिर - और इसीलिए मैं आपको संकुल में खींचकर लेकर आ गया हूँ सर । अब उनको जो
करना हो करें। क्योंकि सिद्धांतों के साथ समझोता करना मानवीयज दुर्बलता है और यदि
यह समष्टिगत हो तो मानव उत्थान का बाधक बनता है । अतः हमें सावधान रहना चाहिए
क्योंकि यदि हम कर्ता होते हैं तो हम इसके पातक से बच नहीं सकते।
झारखंड बोर्ड
द्वारा संचालित वर्ग अष्टम की परीक्षा की कॉपी की जांच हो चुकी थी और अब उमर,
संतु, अनल, जानी आदि सभी विद्यालय आ चुके थे। ऑफिस में सभी बैठे इधर-उधर की बातें
कर रहे थे, तभी भोला कार्यालय में प्रवेश किया । संतू ने मिहिर से कहा - सर मुझे 4
दिनों के लिए बाहर जाना है। छुट्टी चाहिए।
उमर - जो भी छुट्टी लेंगे उसे आकस्मिक अवकाश स्वीकृत करा कर एक प्रति लेनी
होगी।
भोला- ऐसा क्यों? पहले तो कभी ऐसा नहीं होता था?
बिकरमण- आजकल व्हाट्सेप और फेसबुक आ गया है न।
भोला- व्हाट्सेप और फेसबुक क्या आज आया है? जो आज इस तरह की बातें
कर रहे हैं कि आकस्मिक अवकाश स्वीकृत कराकर एक प्रति लेकर जाना है?
बिकरमण- जब हाजिरी बही की छाया प्रति फेसबुक में दिखाई पड़ती है, तो
हमलोगों को अब ऐसा करना ही पड़ेगा।
मिहिर- भोला सर, हाजिरी बही की छाया प्रति फेसबुक में कैसे चली गई?
भोला- सेभ करने के चक्कर में गलती से से सेंड हो गई और कुछ नहीं।
दरअसल मिहिर द्वारा लिए गए आकस्मिक अवकाश की
छुट्टी उपस्थिति पंजी में दर्ज थी। पहले जिस तरह से उपस्थिति पंजी गायब की गई थी।
डुप्लीकेट हाजिरी बनाए गई थी। उसी तर्ज पर फिर से आकस्मिक अवकाश मिटाकर हाजिरी न
बन जाए, इसकी निगरानी हेतु भोला ने उपस्थिति पंजी का स्कैन किया था । सेव करने की
जल्दीबाजी में वह फेसबुक में सेंड हो गया था, जिसे बीईईओ और बैजू बाबू ने देख लिया
था। इसकी चर्चा मिहिर उमर, संतू और बिकरमण के बीच हुई थी। इसी पर कटाक्ष मारते हुए
बिकरमण ने भोला को घेरने का प्रयास किया था , परंतु भोला अपने इरादे पर
बिल्कुल सही था। थोड़ी सी चर्चा होकर बातें बंद हो गई। भोला ने आकस्मिक अवकाश के
लिए मिहिर को आवेदन दिया तो मिहिर ने स्वीकृत कर भोला को आवेदन वापस कर दिया, जैसा
की उमर ने कहा ,वैसा ही मिहिर ने किया भी। छुट्टी का समय हो गया। भोला घर निकल
गया।
उमर कुमार भोला सरकारका इंटेंशन ठीक नहीं है सर।
बिकरमण- उमर तुम ठीक कह रहे हो।
मिहिर- नहीं भाई ऐसा नहीं है। भोला सर का समर्पण देखते हैं कि नहीं । एक
दिन भी फ्रेंच लीभ नहीं लेते हैं । समय पर विद्यालय आते हैं। समय पर ही विद्यालय
छोड़ते हैं । जब तक विद्यालय में रहते हैं , पढ़ाई-लिखाई में ही व्यस्त रहते हैं ।
फिर उनका इंटेंशन खराब है, कैसे कह सकते हैं? अगर उनका हेड मास्टर बनने का ही
इरादा है तो इसे भी बुरा नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि वह हर प्रकार से सक्षम भी
है।
उमर - बात तो ठीक है सर। परंतु जब उन्हें हेड मास्टरी नहीं मिली
तो फिर इसके बारे में सोचना नहीं चाहिए।
मिहिर- नहीं भाई, सोचना क्यों नहीं चाहिए। हर एक आदमी को सोचना चाहिए कि मैं
क्या हूँ ,मुझे क्या करना चाहिए । इसमें बुराई नहीं है।
बिकरमण- आप भी उसी का सपोर्ट करते हैं ?
मिहिर- नहीं भाई, सपोर्ट करने की बात नहीं है। दिसंबर महीने में मेरा
आकस्मिक अवकाश समाप्त हो गया था। मैंने फोन पर आग्रह किया कि सर, मेरा
आकस्मिक अवकाश समाप्त होने वाला है । थोड़ी दया कीजिएगा । इस पर उन्होंने
आकस्मिक अवकाश बैठना छोड़ दिया । उनके अंदर भी तो मानवता हम देखते हैं। मेरे
साथ बेरहमी से तो पेश नहीं आए। ऐसे में उनका इंटेंशन हम कैसे खराब कैसे कह
सकते हैं ? अब अगर मेरे साथ सख्ती के साथ व्यवहार करते हैं। मुझे ड्यूटी फूल
बनने को विवश करते हैं, विद्यालय हित में उचित कदम कहा जा सकता
है। इसमें कोई दो राय नहीं है।
बिकरमण – हाँ सर, यह बात तो है । हम उन्हें कहीं न कहीं गलत
अवश्य समझ रहे हैं।
इसी समय ज्ञानी कार्यालय में
प्रवेश किया। उनके कान में यह बात घुस चुकी थी कि ‘हम कहीं न कहीं उन्हें
गलत अवश्य समझ रहे हैं।’ मिहिर को प्रणाम
करने के उपरांत कुर्सी में बैठ गए और सुनी हुई बातों को लेकर सबके
सामने उसने इच्छा जाहिर की कि आप लोग किस सबंध में यह कह रहे थे कि हम
कहीं न कहीं उन्हें अवश्य गलत समझ रहे हैं? उमर कुमार ने भोला द्वारा
फेसबुक में सेंड किए गए उपस्थिति पंजी की छाया प्रति की बातें ज्ञानी को सुनाई। यह
सुनकर ज्ञानी ने कहा मैं तो कहता हूँ कि भोला सर के इरादे सोलह आने सही हैं ।
हमारी सुविधा में विघ्न न पड़े इसलिए हमलोग उन्हें गलत समझ रहे हैं । इस पर
मिहिर थोड़ा मुस्कुराए और उमर , बिकरमण का मुँह देखने लगे । आगे कुछ बोल नहीं पाए।
इसी रात्रि 9 बेजू बाबू ने भोला को फोन पर बताया कि मैं जब बीआरसी
में बैठा था , तभी प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी, धर्मेंद्र कुमार का फोन आया।
उन्होंने बताया कि भोला मास्टर अपने विद्यालय की उपस्थिति पंजी की छाया प्रति
फेसबुक में भेज दिए हैं। देखिए तो क्या माजरा हैं ? इस पर मैंने भी देखा,
पाया कि बात बिल्कुल सही है । धर्मेन्द्र कुमार ने कहा, भोला मास्टर को ऐसा नहीं करना चाहिए। इस पर
भोला ने अपने पक्ष से बैजू को समझाया कि बैजू भाई गलती से यह फेसबुक में
सेंड हो गया है। मेरा इरादा फेसबुक में सेंड करने का नहीं था अपितु
उसे सेव करने का था ताकि मिहिर आदि शिक्षकों द्वारा लिए गए आकस्मिक अवकाश को डिलीट
नहीं किया जा सके। बैजू बाबू ने भोला को समझाते कहा- ‘भोला सर, सभी कार्यालय की
यही स्थिति है, बीआरसी में
भी यही होता है। हाजिरी मिटाई जाती है। पेज फाड़े जाते हैं । जिला शिक्षा अधीक्षक
कार्यालय में भी यही होता है । सभी परिस्थितियों से समझौता करके चलते
हैं।’
भोला- आप कहते तो ठीक हैं । आप लोग एक ओर सिद्धांत और उसूल की बात करते
हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर समझौते से जीने की सलाह
देते हैं ! या तो दिन रहेगा या रात रहेगी। दोनों एक साथ नहीं मिल सकते। हॅसना और
गाल फुलाना एक साथ नहीं होता बैजू बाबू ।
55.
आज झारखंड अधिविध परिषद द्वारा संचालित माध्यमिक परीक्षा के 5 वें विषय की
परीक्षा होने वाली है। 12 दिनों के बाद आज मिहिर हेड मास्टर विद्यालय पहुँचे हैं
।1 सप्ताह की पेंडिंग हाजिरी उन्होंने बना ली। 2 दिन सी सी टी भी कैमरा चलने के
कारण आकस्मिक अवकाश बैठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। अपराहन 2:00 बजे मिहिर
भोला के बाइक में बैठकर भोजन के लिए प्रस्थान किया। यद्यपि उन्होंने स्कूल में सभी
शिक्षकों के समक्ष कही थी कि अभी आया हूँ, तो इस सप्ताह अवश्य रहूँगा
परन्तु उन्होंने भोला के कानों में कह दिया-सर, मैं आज ही घर जा रहा हूँ ।
ऑफिस की चाबी आप रखिए।
आज अकरमण की पत्नी सुनीता ने उससे पूछा- आपके विद्यालय के हेड मास्टर का क्या
हाल है जी ? सुनते हैं कि 20 दिनों से विद्यालय से नदारद हैं।
अकरमण- हाँ , है तो। ऑपरेशन कराए हैं न, हाइड्रोसील का। जब तक घाव नहीं
सुखेगा, तब तक भला स्कूल कैसे आएगा ।
सुनीता- तो उनकी हाजरी कैसे हो रही है? सुनते हैं कि जब तक 3 साल
नौकरी नहीं होती है, तब तक मेडिकल छुट्टी भी नहीं मिलती है ।
अकरमण- हाजिरी मैं बना देता हूँ उनकी। कुछ खाली रहती है तो बाद
में आकर वह बना लेता है। कुछ आकस्मिक अवकाश भी बैठ जाता है। ऐसे ही चल रहा है और
क्या। पूरे झारखंड राज्य के शिक्षकों की यही राम कहानी है , सुनीता।
सुनीता – गाँव में चर्चा है जी। औरत लोग भी अपनी बैठकी में बतियाती है कि इस
हेड मास्टर ने विद्यालय को चौपट कर दिया। स्कूल में रहता ही नहीं। आठवीं क्लास की
बोर्ड परीक्षा हुई उसमें अंग्रेजी विषय की पढ़ाई नहीं के बराबर हुई थी। जबकि
अंग्रेजी के मास्टर वही है।
अकरमण- इसको हेड मास्टर बनाकर बहुत बड़ी भूल हो गई । यह केवल नागा ही
नहीं करता है, लूटने में भी माहिर है। जब घर जाता है तो मध्यान भोजन के नाम
पर दुकान से पैसा लेकर चला जाता है।
सुनीता - और आप लोग चुपचाप देखते हैं ।
अकरमण - क्या करेंगे? परदेशी है। छोड़ देते हैं। कुछ बेनिफिट तो हम लोगों
को भी मिलता है। हम लोगों को नहीं देंगे तो उसको छोड़ेंगे? मेरा नाम सुन कर
ही उसको बुखार आ जाता है। हमेशा मुझ से सटके रहने का प्रयास करता है। इसी वजह से
कोई उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता है।
सुनीता- आप भी माहिर खिलाड़ी हैं जी। आप बचपन से नेता है न, नेता के बारे
में ठीक ही कहा गया है ‘ऐसा कोई सगा नहीं जिसको नेताओं ने ठगा नहीं।’
अकरमण- हाँ, भाई हाँ, मैं तो तुमको भी ठगता हूँ न।
सुनीता - अरे भाई, पत्नी को तो हर एक मर्द ठगता है ।
अकरमण- औरमर्द लोग को ठगना, पत्नी छोड़ देती है क्या ?
सुनीता- अजी ! मजाक छोड़िए, मेरा कहने का मतलब यह था कि आप लोग की इस
प्रकार की एक्टीभीटी से बच्चे ठगे जा रहे हैं। आप लोगों को बच्चों के विकास के
बारे में सोचना चाहिए परंतु आप लोग आलसी और प्रमादी तो हैं ही लोभवृत्ति भी आप
लोगों में भयंकर हैं। बदलू मास्टर झगड़ते-झगड़ते हेडमास्टरी खो बैठे और अब वह
रिटायर होने वाला है। उसने कुछ भी अच्छा नहीं कर किया, भोला मास्टर को हेडमास्टरी
से दूर करके । उसने केवल अपने अहंकार का पोषण ही किया। आप उसके सहयोगी रहे और शेयर
भी लिए। अभी मिहिर हेड मास्टर कूटनीति में माहिर हैं। मीठी वाणी दगाबाज की निशानी
। आप लोग स्थानीय टीचर होकर भी उन्हें सुधारने की कोशिश न कर उल्टे उनके कंधे- से
-कंधे मिलाकर अनुचित का ही समर्थन करते हैं, महाभारत के शकुनी की तरह । इससे
गरीब परिवार के बच्चे शोषित और ठगे जा रहे हैं। यह सब आप लोग अच्छा नहीं कर
रहे हैं। यही मेरा कहना था। नीलू और ज्ञानी बोल रहे थे की मध्य विद्यालय
उधवा, राष्ट्रीय उपलब्धि टेस्ट से बाहर रहा और मांडल स्कूल भी कोलाबाड़ी को बना
दिया गया है। इससे इस विद्यालय की अपूरनीय क्षति हुई है।
अकरमण- तुम ठीक कहती हो सुनीता, परंतु मैं चाह कर के भी कुछ नहीं कर पाता।
मेरे साथ वही बात लागू होती है- ‘सिग्नेचर और नेचर कैन नॉट बी
चेंज्ड।’ क्या करूँ लाचार हूँ ।
सुनीता – आपको तो पता होगा कि इस बार नगर निकाय का चुनाव होने वाला है जिसमें
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने नगर निकाय चुनाव में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों
को नहीं लगाने का आदेश दिया है । यह कितना सुंदर पहल है। शिक्षा में सुधार
लाने के लिए। अब सोचिए अगर सरकार शिक्षकों को चुनाव से मुक्त रखती हैं, तो
आशा की जानी चाहिए कि शिक्षकों का स्कूल में ठहराव हो और गुणवत्ता पूर्ण
शिक्षा देने के लिए उचित सहयोग करें। सिर्फ शिक्षकों के स्कूल आने भर से ही काम
नहीं चलेगा अपितु शिक्षकों को बच्चों के कौशल बढ़ाने से लेकर गुणवत्ता सुनिश्चित
करने पर भी जोर देना होगा अन्यथा सरकार एक और उसे गैर शैक्षणिक कार्य से मुक्त कर
रही है दूसरी ओर शिक्षक अपने घर में ढोल और करताल बजाएंगे, अपने बीवी बच्चों के
साथ ऐश करेंगे, तब तो सरकार का निर्णय कोई काम का नहीं रह जाएगा। जैसा कि हमारे
झारखंड राज्य में हो रहा है।
अकरमण- ठीक कहती हो सुनीता। शिक्षकों का ठहराव विद्यालय में एक दम नहीं
है। बायोमेट्रिक मशीन आने से कुछ हो सकता है।
सुनीता- सरकार कोशिश में है कि आप लोगों को विद्यालय से बाहर नहीं जाने
दें। टैबलेट मशीन भी आने वाली है।
अकरमण- हाँ बिल्कुल । देखो, सरकार कहाँ तक सफल हो पाती है।
सुनीता- स्कूली एवं साक्षरता विभाग का आदेश व निर्देश भी बेतुका हुआ करता है।
बच्चे की परीक्षा नहीं हुई है या फिर परीक्षा बाद में होगी। उसके पहले ही उसे अगले
कक्षा में प्रमोशन मिल जाएगा। क्या यह भी कोई नीति है? इसका मतलब है कि परीक्षा का
कोई महत्व ही नहीं है। मजाक बनाकर रख दिया है शैक्षणिक व्यवस्था को।
अकरमण- बिल्कुल सही कहा तुमने। आज के दैनिक समाचार पत्रों में सरकार की
इस नीति की आलोचना भी हुई है कि ‘पहले क्लास में प्रमोशन और उसके बाद परीक्षा ,
यही है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा?’ जैसे लगता है झारखंड की शिक्षा व्यवस्था विक्षिप्त
लोगों के हाथ में है। एक और सीसीई पंजी तैयार करने की ताकिद हो रही है परीक्षा की
कॉपी संकुल संसाधन केन्द्रमें जांच की जा रही है, टेबुलेशन लिस्ट वहीं पर
तैयार करने की व्यवस्था हो रही है जबकि इसके पहले ही बच्चों को उसके अगले
क्लास में प्रोन्नति दी जा रही है। इस मूल्यांकन की नीति को देखिए तो प्रतीत होता
है कि गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा एक मजाक का विषय बना हुआ है।
सुनीता- मैं तो कहती हूँ सरकार की इस बदबूदार शिक्षा व्यवस्था के
संबंध में प्रधानमंत्री को लिखा जाए ताकि झारखंड सरकार की शिक्षा नीति पर लगाम
लगाई जा सके।
अकरमण- बेशक। परंतु क्या नरेंद्र मोदी सरकार को इसकी भनक नहीं है? अरे। मैं तो
कहता हूँ, सबके सब अंधे हो चुके हैं, उन्हें कुछ देखती ही नहीं और दिखती भी है तो
अनदेखी करते हैं। क्योंकि पदाधिकारियों और नेताओं के बच्चे तो ऐसे ही स्कूल में
पढ़ते ही नहीं है। उनको इस से क्या मतलब !
सुनीता- हमारे यहाँ के बच्चों के लिए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा बहुत दूर है
जी, बहुत दूर। दैनिक
जागरण के संपादकीय पेज में ‘बिखरता बचपन’ शीर्षक में ठीक ही
लिखा गया है, मैं उसे पढ़कर सुना रही हूँ , लिखा है – ‘झारखंड में बचपन
लगातार बिखर रहा है। इसका कारण पढ़ाई के लगातार बोझ के बीच अपनों की बेतहाशा
उपेक्षा तो है ही । शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार की स्पष्ट नीति भी इसके लिए
कहीं न कहीं उत्तरदाई है। आए दिन पढ़ाई के बोझ से संघर्ष करते बच्चों का दुनिया को
अलविदा कहने की खबरें आती रहती है। विगत शुक्रवार को भी हजारीबाग के कोरा थाने के
साकेत पुरी से भी ऐसी ही एक दर्दनाक खबर आई । यहाँ नमन विद्या मंदिर
की आठवीं की छात्रा ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। छात्रा का रिजल्ट आना था।
किशोरी अंकों के तिलिस्म और शायद अंकों के आधार पर खुद को आगे रखने की होड़
में, खुद को पिछड़ा हुआ समझ पाने का बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकी । ऐसे में कुछ
सही गलत का भेद समझ न पाने की वजह से, शायद उसने दुनिया को अलविदा कह देने का
निर्णय ले लिया। लेकिन किशोरी की मौत ने समाज , शिक्षा जगत और सरकारी तंत्र के
सामने एक बेहद सुलगता हुआ सवाल छोड़ दिया है कि आखिर हमारी शिक्षा व्यवस्था, हमारी भावी पीढ़ी को किस ओर ले जा रही है।
किशोरी द्वारा अपने अपने सुसाइट नोट में यह लिखा कि मम्मी पापा आई एम सॉरी .......
50 फीसद से कम अंक वालों के लिए दुनिया नहीं है, भी इसी बात की पुष्टि करता है कि
हमारी शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक मानसिकता में कहीं न कहीं कोई न कोई खोट जरूर
है। ऐसा भी नहीं है कि यह इस तरह की पहली घटना है। हाल के दिनों में झारखंड के
विभिन्न स्थानों में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं।’
अकरमण- अच्छा मैडम। बहुत हुआ। काश ! अगर हमारी इस टेबल टाकिंग का मैसेज
झारखंड के बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों पदाधिकारियों, नेताओं और सुधी पाठकों तक
पहुंच सके ! समय देखो, रात्रि के 9 बज
चुके हैं। अब भोजन का समय हो गया है । छोड़िए इन बातों को।
सुनीता- हाँ चलिए भोजन कीजिए। बिटिया भोजन परोस दी है।
56.
प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में बीते वर्ष की भांति इस
वर्ष विक्षण कार्य हेतु शिक्षकों को दूसरे विद्यालय में प्रतिनियोजित नहीं किया
गया, परंतु मूल्यांकन के लिए पुनः संकुल संसाधन केंद्र को चुना गया। फतेहपुर संकुल
संसाधन केंद्र के संसाधन सेवी पतन बाबू थे। पदाधिकारियों की हिदायत थी कि 3 दिनों
के अंदर मूल्यांकन कार्य समाप्त कर लेना है। एक कमरे में प्रेमपुर और मध्य
विद्यालय उधवा के शिक्षक मूल्यांकन कार्य में लगे हुए थे। मुख्तियार बाबू प्रेमपुर
मध्य विद्यालय के गणित के शिक्षक थे । उन्होंने सभी शिक्षकों के बीच मूल्यांकन
संबंधी समस्याएँ रखीं- प्रेमपुर मध्य विद्यालय के 1500 कॉपियों की जांच मध्य
विद्यालय उधवा के शिक्षकों को करनी और मध्य विद्यालय उधवा के 1200 बच्चों की कॉपी
प्रेमपुर के शिक्षकों को जांचनी है। टेबुलेशन लिस्ट बनानी है। ग्रेडिंग करनी है और
फाइनल करके हैंडओवर करना है । और वह भी मात्र 3 दिनों के अंदर। इस पर विचार किया
जाए , क्या यह मुमकिन है? यदि मुमकिन है तो केवल खाना पूरी होगा। इस स्थिति
में परीक्षा फल , बच्चे का सही दस्तावेज नहीं हो सकता। शिक्षा विभाग यही चाहता है।
बिकरमण, जो कि मध्य विद्यालय उधवा के पारा शिक्षक थे उन्होंने कहा -
व्यवस्था भी गजब है। न शिक्षकों के आने का टाइम टेबल ठीक है न जाने का। मेरे
विद्यालय का हेड मास्टर मिहिर सर जी एक घंटा बैठे और कॉपी लेकर घर चले गए और
उम्मीद है कल नहीं आएंगे। मेरे विद्यालय के शिक्षक ज्ञानी तो केवल प्रवचन ही करते
हैं। अमल करना उनका काम नहीं है। वह भी गायब है।
अकरमण इसी कमरे में प्रवेश किया। संकुल संसाधन केन्द्र में कापी वितरण एवं
नास्ते आदि की व्यवस्था यही कर रहे थे । इन्हें चिढ़ाते हुए अनल ने कहा- नाश्ता कब
आएगा पांड़े बाबा ? सार्वजनिक स्थल पर गुणानुसार अपना उपनाम सुनकर अकरमण दांत
किचकिचाते हुए अनल को थप्पड़ दिखाते हुए कहा – तुमको मार बांकि है का ?
सहमते हुए अनल ने कहा-क्या हुआ? गलती बोल रहा हूँ क्या? पतन कुमार का
ट्रू कापी आप ही न हैं? कापी आप बितरित करते हैं, शिक्षकों की उपस्थिति की
जिम्मेदारी आप ही संभालते हैं, तो मैंने क्या गलती कह दी?
इतना कहना था कि अकरमण ने एक थप्पड़ अनल के गाल में यह कहकर रसीद कर दिया –
जुबान संभाल कर रखो, समझा । मैं शिक्षक हित में यह सब करता हूँ, समझा कि
नहीं?
कमरे में उपस्थित शिक्षक स्तब्ध रह गए। सबके सब मौन। सभी एक दूसरे का मुँह देख
रहे थे।
बाहर बरामदे में बैठे मैनुअल मास्टर जो कि पारा शिक्षक संघ के प्रखण्ड
अध्यक्ष थे, सब सुन रहे थे। अनल को लगी थप्पड़ की आवाज सुनकर वहाँ से शीघ्र
कमरे में आ गया। अकरमण द्वारा शिक्षक हित की बात अध्यक्ष साहब को रास नहीं
आई। अकरमण को आड़े हाथों लेते हुए कहा- बाह रे! शिक्षकों का हितैषी ! खा गए मध्य
विद्यालय उधवा को शिक्षकों का हित करते- करते। शिक्षकों का डूप्लीकेट
उपस्थिति करते- करते सबको निकम्मा बना दिए हैं न? यही है शिक्षक हित? स्कूल
पीरियड में अपने घर के दरवाजे में आराम कुर्सी में पैर पसारे बैठ अखबार चांटते
हैं, इसमें किसका हित करते हैं? है जवाब? आपही न हैं प्रबंधन समिति में शिक्षक
प्रतिनिधि मेंबर? आपके जैसे शिक्षक प्रतिनिधि अगर प्रत्येक विद्यालय में हों तो
पूरा एडूकेशन डिपार्टमेंट जहन्नुम बन जाएगा। अनल को तो थप्पड़ लगा दिए। है हिम्मत
तो मुझे भी लगाइए । आप जैसे शिक्षकों के कारण ही मध्य विद्यालय उधवा को राष्ट्रीय
उपलब्धि जांच परीक्षा में अवसर नहीं मिला। इस परीक्षा में जिन-जिन विद्यालयों को
अवसर मिला है उसे विशेष सुविधाएं प्राप्त होगी जिससे कि मध्य विद्यालय उधवा वंचित
रह गया जबकि मध्य विद्यालय उधवा प्रखंड का विद्यालय है। इसे मॉडल स्कूल होना
चाहिए था लेकिन आप लोगों की काली करतूत के कारण यह मॉडल विद्यालय नहीं बन पाया। यह
शुभ अवसर कोलाबाड़ी को मिला। पता है न ? पता कर लीजिए । आप जैसे व्यक्ति को शिक्षक
के रूप में चुन कर तो उधवा की जनता ने अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार ली
है।
अकरमण चुप्पी साधे सिर झुकाए सब सुन रहा था। अध्यक्ष का सामना करना उनके वश की
बात नहीं थी। ईंट को पत्थर से जवाब मिल गया । अध्यक्ष साहब भी बाहर चले गए।
तब अकरमण भी हिलते-डुलते कमरे से बाहर निकल गया। जाते समय सिर्फ इतना बोलता गया
कि मैनुअल जी, आप जो भी कहें लेकिन मैं इस प्रकार शिक्षक हित करता रहूँगा।
हा हा हा हा।
सब शिक्षकों ने भी उनकी निर्लज्ज हॅसी से हॅस पड़े।
अनल ने शिक्षकों से कहा – जवाब मिल गया न पांडे को?
मुख्तियार- बिलकुल । जिंदगी भर राजनीति किया है । अंत समय में पारा शिक्षक बना
है। राजनीति वाला संस्कार भला कैसे जाएगा। इस प्रकार के व्यक्ति जहाँ रहेंगे, ऐसे
ही करेंगे। ऐसे लोगों से केवल स्कूल ही नहीं, पूरा समाज परेशान है और रहेंगे। इस
तरह के शिक्षक हमारे प्रेमपुर मध्य विद्यालय में भी है। इनसे स्कूल भी परेशान है
और समाज भी। कुछ भी अच्छा करो तो बाधक बन कर सामने आता है। इन लोगों के दिमाग
में सदैव राजनीति की खिचड़ी पकते रहती है।
अनल- बिलकुल सही कहा सर आपने । किसी ने अच्छा कहा है सर ‘खिड़की यदि रसोईघर
में पके तो बीमार के लिए औषधि का काम करती है और दिमाग में पके तो अच्छे भले को
बीमार कर देती है।’ अनल के इस कथन से सबने तालियाँ बजाईं।
तभी अकरमण पुनः कमरे में प्रवेश किया ,नास्ते का पेकेट लेकर। माजरा उसे समझ
में आ गई थी। सबको एक-एक पेकेट देकर चले गए । मानो होटल का बैरा हो। एक
शिक्षक फुसफुसाते नजर आए कि यह अकरमणवा कापी चेक नहीं करता है क्या? दूसरे ने कहा-
अकरमण तो दलाल है, यार। पतन से कमाता है। इसी के बल पर पतन का संकुल चलता है। एम
एल ए उसकी मुट्ठी में है। तब न वह दबंगई करता है। पेकेट लेकर सबके सब प्रस्थान कर
गए। इस समय अपराह्न के दो बजे थे।
दूसरे दिन मुख्तियार बाबू ने उमर से पूछा- आप लोगों की कापी जांच
कितने प्रोग्रेस में है , उमर बाबू ?
उमर- कॉपी क्या जायेंगे सर। कॉपी केवल देखते हैं। जांचना संभव नहीं है।
मैंने कल एक घंटे में 300 कॉपी देखी है। यही मेरा प्रोग्रेस है। कल टेबुलेशन लिस्ट
भी तो तैयार करना है। हम लोगों को मात्र 3 दिन का ही समय मिला है। फिर जैसा देश
वैसा वेश। मेरे विद्यालय के भोलासर तो कल और अभी दोपहर तक में 500 कॉपी देख चुके
हैं। बिकरमण भैया और मिसिर भैया का भी यही हाल है। अब कुछ देर बाद टेबुलेशन
लिस्ट का काम शुरू कर देंगे।
बिकरमण- पतन कुमार और अकरमण ने फरमान जारी कर दिया है कि अपने- अपने
विद्यालय का टेबूलेशन लिस्ट बनाइए और एक दूसरे विद्यालय के शिक्षक से हस्ताक्षर
करा लीजिए और लेकर अपने अपने विद्यालय चले जाईए।
कोलाबाड़ी संकुल संसाधन केन्द्र केसंसाधन सेवी अमित पाल ने पतन को फोन किया –
पतन सर, आपके संकुल से शिक्षक कॉपी लेकर घर भी जाते हैं ?
हां जाते तो हैं । इस पर अगर कड़ाई करेंगे तो काम समय पर नहीं हो पाएगा,
यार।
बिल्कुल सही बात है सर। मैंने भी छूट दे दी है, सभी शिक्षकों को कड़ी
हिदायत दे दी है कि कॉपी लेकर घर जाइए या यहाँ देखिए, मगर हमें समय पर रिजल्ट
चाहिए ।
अमित पाल बाबू, यह बताइए कि जिले के और सब संसाधन केंद्र का क्या हाल है?
अरे भाई! सभी संसाधन केंद्र का यही हाल है। केवल अपने जिले में नहीं
बल्कि पूरे झारखंड राज्य की यही स्थिति है। भला सोचिए, क्या कोई जादुई खेल है कि
मात्र 3 दिनों में इतना बड़ा काम निबटा लिया जाए।
अमित पाल के तर्ज पर पतन कुमार भी सभी शिक्षकों को
कानों-कान हिदायत दे दी कि कल तक येन केन प्रकारेण टेबुलेशन लिस्ट बनाइए और
हैंडओवर- टेकओवर करके काम
समाप्त कीजिए। कल तीसरे दिन किसी भी सूरत में परीक्षा फलका काम पेंडिंग नहीं रहे।
फिर क्या था। सभी शिक्षक अपने- अपने विद्यालय का
टेबुलेशन लिस्ट अपने- अपने ढंग से बनाने लगे। मध्य विद्यालय उधवा की कमान
उमर कुमार ने संभाली। वर्ग सप्तम का टेबुलेशन लिस्ट उमर ने तैयार किया। जिन
बच्चों को पांचवा स्थान मिलना चाहिए था, उसे फर्स्ट करके रख दिया। जिसे सेकंड होना
चाहिए उसे छठे पायदान पर रख दिया। मूल्यांकन कार्य की पूर्णाहुति चौथे दिन हो गई।
पांचवें दिन सभी शिक्षक अपने - अपने विद्यालय चले गए।
आज भोला मास्टर वर्ग अष्टम में हिंदी पढ़ाने गए थे। इन के समक्ष बच्चे खुलकर
बातें करते थे। पियुष कुमार जो अक्सर वर्ग में अच्छा प्रदर्शन करता था इनकी
करीब-करीब प्रत्येक विषय में अच्छी पकड़ थी। अपने गांभीर्य पूर्ण व्यक्तित्व
लिए हुए भोलासर के समक्ष आकर टेबल के सामने खड़ा हो गया और पूछा- सर, हम लोगों की
कॉपी कौन चेक किया है ?
मतलब?
मतलब यह कि कॉपी चेक हुआ है कि ऐसे ही नंबर दे दिया गया है? आप तो जानते हैं
सर, कि मैं वर्ग में कैसा छात्र हूँ लेकिन मुझे चौथे पायदान में कर दिया गया
है। सर, इसके लिए मैं बहुत दुखी हूँ । मुझे नींद नहीं आती है सर। मैं बहुत
टेंशन में हूँ। सर, आखिर ऐसा कैसे हुआ?
इतना कहते-कहते पियुष फफक- फफक कर रो पड़ा। सभी बच्चे-बच्चियां खामोश थे और
पियुष की ओर टकटकी लगाए देख रहे थे। भोला ने पियुष को अपने गले से लगा लिया और उसे
उसके सीट पर बैठाया। पियुष बैठ तो गया पर उसका बिलखना और सिसकना बंद नहीं
हुआ। पूरा क्लास स्तब्ध था। प्रियम्बदा भी भोला सर के समक्ष आ गई।
उसने भी यही शिकायत की और उनकी भी ऑखें डबडबा गईं , मोतियों जैसे ऑसू छलक पड़े।
भोला ने उसे भी ढाढ़स देते हुए बैठने को कहा – मायूस न हो बेटा, बैठो
। दरअसल, प्रियम्बदा वर्ग सप्तम में बच्चियों में टोप थी और वह थर्ड हो गई थी। इसी
प्रकार की शिकायत कई और बच्चे-बच्चियों ने की।
भोला सर ने कहा- मेरे प्यारे बच्चे-बच्चियों ! झारखंड सरकार की शिक्षा
व्यवस्था रूपी ट्रेन पटरी पर नहीं चल रही। है। ट्रेन बेपटरी हो तो परिणाम क्या
होता है? मेरे प्यारे बच्चे-बच्चियों इससे आप सभी परिचित हैं । परंतु हमें टूटना
नहीं है। इस रिजल्ट से हमें घबराना नहीं है। आज भी मेरी दृष्टि में पियुष कुमार
वर्ग में प्रथम है और प्रियम्बदा द्वितीय । इतना कहना था कि वर्ग में तालियाँ बजने
लगी। तभी पियुष भोला सर के सामने आकर उनके चरण स्पर्श किए। । पियुष को देखकर
प्रियम्बदा भी अपने को रोक नहीं पाई और उसने भी भोला सर के चरण स्पर्श किए। मानो
आज वास्तविक मूल्यांकन हुआ हो और बच्चे शिक्षक से आशीर्वाद ले रहे हों ।
57.
प्रार्थना हो चुका था। कुछ शिक्षक क्लास चले गए थे, परंतु
अभी तक कुछ शिक्षक प्रधानाध्यापक के सामने गप्पे लड़ा रहे थे। बाहर बच्चे उछल-कूद
रहे थे। विद्यालय के कार्यालय-कक्ष में मिहिर प्रधानाध्यापक बैठे कुछ लिख रहे थे।
उनके दाहिनी ओर बैठे उमर कुमार अपने डिजाइनदार मार्कशीट को कैंची से काट-काट
कर अलग-अलग कर रहे , जिसके लिए वह प्रत्येक बच्चों से दस रूपये वसूला करते थे।
बिकरमण क्लास जाने की तैयारी में थे, तभी वह मिहिर से पूछा - अकरमणचा,
अभी तक नहीं आए हैं क्या सर? मिहिर कुछ बोलना ही चाह रहे थे कि उमर कुमार टपक
पड़े- नहीं पहुंचे हैं, बिकरमण भैया। मिसिर भैया, क्या आपने अकरमण सर को
देखा है?
मिसिर कुछ बोलना ही चाह रहे थे, तभी बिकरमण बोलने लगा – 8:00 बजे तक
प्रार्थना हो चुका, अभी 8:30 बज चुके हैं , फिर भी अकरमणचा का कोई खबर नहीं।
रोज-रोज हमें ही उनका क्लास खींचना पड़ता है, पागल हो जाता हूँ , दोनों सेक्शन की
हाजिरी लेते-लेते।
उमर- बिकरमण भैया, अकरमण सर, आपके चाचाजी हैं न ? तो फिर भतीजे को चाचाजी के
लिए इतना तो करना ही पड़ेगा न ?
एक दिन की बात रहे तो चले। यह तो प्रतिदिन का ड्रामा हो गया है।
चाचाजी को शिक्षक प्रतिनिधि बनाने में आप ही का न एक नम्बर हाथ था ?
तो क्या करते ? रोज सिफारिश की गुहार जो लगाता था ?
तो फिर भोगिए। रोइए मत। समझौता किए हैं तो गम भी खाइए बिकरमण भैया ।
मुस्कुराहट भरी लहजे में हे हे हे हे करते हुए उमर ने व्यंग्य कसा।
बिकरमण और मिसिर दोनों क्लास चले गए। ऑफिस में केवल मिहिर और उमर कुमार बैठे
थे , दोनों गले के हार जैसे थे। उमर ने मिहिर को धीरे- धीरे कुछ सुनाने लगा
– अकरमण भी कम कमीना नहीं है। इनके पहले मैं शिक्षक प्रतिनिधि था। पैरवी करके
शिक्षक-प्रतिनिधि बना है। बिकरमण का भी इसमें बहुत बड़ा रोल था। चाचाजी हैं न
उनके।
मिहिर टुडू – इसलिए तो यह विद्यालय चाचा और भतीजे वाला बना हुआ है। जब सुनो
वही अकरमणचा। बुरा न मानिए उमरजी, बिकरमण आपका बिकरमण भैया है और मिसिर भी
आपका मिसिर भैया। संतू भगत का भी चाचा है अकरमण । इतने रिश्ते- नाते हैं इस
विद्यालय में , प्रशासन क्या खाक रहेगा। पराये यदि कोई हैं, तो मैं और भोला
सर। जब तक इन रिश्ते नातों का बाजार गर्म रहेगा तब तक पढ़ाई-लिखाई का बाजार नरम
रहेगा। इसी कारण आप सब मिलकर भोला सर को हेडमास्टर नहीं बनने दिए। यदि वे
हेडमास्टर होते तो आपलोगों के रिश्ते- नातों के बाजार को अवश्य कुछ-न-कुछ ठंडा कर
देते।
उमर कुमार- हंडरेड परसेंट राइट, सर।
दस बज चुके थे। सभी शिक्षक कार्यालय में बैठे थे। मिहिर प्रधानाध्यापक नामांकन
में व्यस्त थे। उमर कुमार मार्कशीट बेचने में मशगूल थे तो अकरमण टीसी लिखने में।
बिकरमण विशेष प्रदर्शन में लगे थे। जिस किसी भी प्रकार की समस्याएं आती थी ,
वह अपने मुंह – जोर जवाब से उसे ध्वस्त कर देते। मिहिर के सामने मिसिर बैठे
ठकुरसोहाती में लगे थे, जो इस कार्य में माहिर थे। संतू मास्टर ने प्रधानाध्यापक
से कहा- सर, मुझको एक नामांकन करवाना है। मेरे घर में एक नौकरानी रहती है।
उसी की बेटी है । वह विद्यालय परिसर क्षेत्र से 5 किलोमीटर दूर की है। क्या सर,
संभव है? बीच में ही उमर कुमार टपक पड़ा और कहा— नहीं, विद्यालय परिसर क्षेत्र से बाहर का नामांकन
नहीं होगा। हरगिज नहीं ।
संतू मास्टर क्रोध से आग बबुला हो गया। ऊॅची आवाज में चिल्लाया -
क्या मैं तुमसे पूछ रहा हूँ ? तुम क्या हेड मास्टर हो? मैं हेड मास्टर से पूछ रहा
हूँ । बीच में आप क्यों टपक पड़े? बहुत बुरी आदत है, आपकी, समझे। आप
अपनी औकाद में रहिए। उमर चुप हो गया। मानो उनके पैर के नीचे की जमीन खिसक गई
हो। सभी एक दूसरे के मुंह देख रहे थे। मिहिर बीच बचाव करते हुए कहा- बात मत बढ़ाइए
भाई। इस पर हम लोग बिचार करेंगे।
संतू—ठीक है सर, लेकिन उमर को ………।
अकरमण-- विषय बदलिए तो। बच्चों को आने दीजिए । टी सी दिया जाय।
एडमिशन आगे बढ़ाइए। बाहर बरामदे में गारडियन लोग खड़े हैं ।
दूसरे दिन सभी शिक्षक आ गए थे , पर मिहिर नहीं थे। वह एडभांस सिग्नेचर कल ही
बनाकर घर चले गए थे। इसलिए प्रार्थना की घंटी भी नहीं बज रही थी। ज्ञानी ने अनल से
पूछा- हेडमास्टर एडभांस सिग्नेचर बना के भागा है। भोला सर भी परीक्षा ड्यूटी में
चले गए हैं । चार्ज भी किसी को नहीं दिया है। बिना मालिक का स्कूल । इसलिए तो
7:30ड़ बज गया है परन्तु प्रार्थना अभी तक नहीं हुआ है। मियाँ गया घर दाहिने बायें
हर। इसको हेडमास्टर बना के स्कूल और हिल गया।
अनल- प्रत्येक सप्ताह एक या दो दिन तो ऐसे ही चलता है, हेडमास्टर का।
बिकरमण मिहिर का पक्षधर था। बोला- बाहरी है न। मजबूर है।
ज्ञानी- उनकी इसी मजबूरी का गलत इस्तेमाल मिडडेमिल से लेकर हरेक फण्ड में होता
है।
उमर- संयोजिका का चेहरा चमक गया है। लकड़ी थी। ब्यूटी पार्लर से हेयर और
भौं बनाकर आती है।
बिकरमण- उमर जी , आप भी गजब हैं । यही सब देखते हैं ।
ज्ञानी- उमर की मिसेज यहाँ रहती नहीं है। प्यासा रहता है न । थोड़ा बहुत
ताक-झांक तो न चाह कर के भी हो जाता है।
उमर - क्या करें ज्ञानी दा ! आप हर हफ्ते मिहिर सर के तरह चले न जाते
हैं, आसनसोल आशा जी के पास।
ज्ञानी- हाँ उमर , सही बात है। मर्द धधकता हुआ अंगार है, तो औरत जल की शीतल
फुहार है। इससे जीवन में आती , खुशियाँ अपार है।।
उमर - बाह ज्ञानी दा। बहुत बढ़िया डायलाग है, इसको लिखकर रखना होगा।
ज्ञानी- जरूर ।
अनल- भोला सर का मद्रसा परीक्षा में ड्यूटी कैसे हो गया?
बिकरमण- माँग कर लिया है कि ऐसे हो गया है।
ज्ञानी- बिलकुल सही । भोला सर भी यहाँ की गंदी राजनीति से अब ऊब चुके हैं। एक
समय था कि वे अपना प्रतिनियोजन तुड़वाकर हाई स्कूल से यहाँ आने के लिए पब्लिक
पीटीशन तैयार करवाते धे। परंतु अब यहाँ से जाने के लिए आतुर हैं ।
मयमूल- क्या करेंगे। एक तो डीएसई के आदेश का अनुपालन न हो पाने से उन्हें
हेडमास्टरी नहीं मिली। दूसरे वर्ग सप्तम और अष्टम का हिन्दी विषय भी उनके हाथ से
छिन लिया गया जबकि वे सब दिन इन वर्गों में हिन्दी पढ़ाते आए हैं। जब वे उधवा हाई
स्कूल में थे तो वहाँ भी वर्ग नवम और दशम के बच्चों हिन्दी पढ़ाते थे।
हिन्दी से एम ए हैं, भोला सर। उनको मैट्रिक की कापी भी जांचने मिलता था।
बिकरमण- पर, यह बताइए यह सब क्या कौन?
ज्ञानी- जिनके इशारे में हेडमास्टर चलता है , वही न कर सकता है। दूसरे भला
कैसे करेंगे ।
बिकरमण रूखाई के गरज कर कहा- मतलब मैंने किया है?
ज्ञानी भी तैश में आकर कहा – हाँ जी। आप हैं और उमर। थोड़ा अकरमण का भी
हाथ होगा।
उमर- मेरा नाम तो उठना ही था ।
ज्ञानी- भोला सर को आप ही न कहे थे कि सर, आप कहीं प्रवचन करने चले जाइये । आप
यहाँ दीवार बनकर हैं । जब आप उनको दीवार समझते हैं, तो हटाने का प्रयास आप
ही न कीजिएगा। इसमें कोई शक है। इस पर संतू, अनल , मिसिर और मयमूल चारों एक स्वर
में बोल उठे -बिलकुल सही कहा आपने ज्ञानी दा।
मिसिर- हाँ भाई । भोला सर एक बार मुझे भी अपनी आपबीती सुनाए थे।
अनल बिकरमण की ओर मुख करके कहा - एक बार बिकरमण भैया आप वर्ग सप्तम के
बच्चों से पूछे थे न कि तुम लोग हिन्दी किनसे पढ़ोगे ? मुझसे या भोला सर से? यह
मैसेज भी उनसे छिपा नहीं है ।
बिकरमण और उमर दोनों बिलकुल चुप हो गए। इन्हें सही जवाब मिल गया था। परंतु
इनकी घिनौनी हरकत से अभिभावक गण बिलकुल अनभिज्ञ थे। चापलूस अच्छा बनकर बुरा करता
हैं जबकि आलोचक बुरा बनकर अच्छा करते हैं । उमर और बिकरमण हेडमास्टर के साथ मिलकर
अपनी रोटी में घी मिलाया करते थे। बिकरमण की संयोजिका के साथ मिलीभगत की चर्चा तो
विद्यालय के शिक्षकों , रसोईयों , विद्यालय प्रबंधन के सदस्यों के बीच
होती ही रहती थी। पर, दबी जुबान से। उनकी मुडियल और कर्कश आवाज से सभी सहमें रहते
हैं । एक बार एक रसोईया की मदद करने के लिए जिला मुख्यालय में बिकरमण ने फोन किया
था । इसपर इन्हें कड़ी फटकार लगी थी कि ‘क्या तुम हेठमास्टर हो ,जो मुख्यालय
में फोन करते हो?’ इस पर इन्होंने माफी भी मांगी थी। विद्यालय का शैक्षणिक माहौल
दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा था। फलतः उधवा जैसे छोटे बाजार में भी निजी
विद्यालयों का स्कोप बढ़ता ही जा रहा था । बच्चों की संख्या नामांकन पंजी के
अनुसार तो बहुत अधिक थी, परंतु वे सभी ट्यूशन में पढ़ते थे। प्रातः से ही बच्चे
ट्यूशन पढ़ने चले जाते थे । लेटलतीफ विद्यालय आते। प्रार्थना सभा में उपस्थिति आधे
से भी कम रहती । उपस्थित बच्चों में आधे मध्यान्ह भोजन नहीं करते । इन सब का
फायदा विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष, सचिव , संयोजिका और
विद्यालय के गुर्गे उठाते रहते ।
मिसिर मास्टर कार्यालय में बैठे सभी शिक्षकों को उधवा प्रखण्ड का
एक मुख्य समाचार सुनाने लगे- प्रेमपुर मध्य विद्यालय में एक शिक्षक 4 दिन से गायब
थे , जिनकी फर्जी उपस्थिति विद्यालय के शिक्षक-मित्र द्वारा बनाई जा रही थी।
शिक्षक पकड़े गए। जिला शिक्षा अधीक्षक, जयहिन्द ने प्रखंड शिक्षा प्रसार
पदाधिकारी, धर्मेन्द्र कुमार को जांच का आदेश दिए हैं ।
अनल हाजिर जवाबी के चलते अक्सर डॉट और फटकार सुनते रहते थे। उसे नहीं रहा गया।
तुरंत उबल पड़ा- यह कौन-सी बड़ी बात है। हम लोगों के मध्य विद्यालय में यह सब नहीं
होता है क्या? 15-20 दिन तक यहाँ फर्जी सिग्नेचर हुआ है। वहाँ तो 4 ही
दिन हुआ है। यहाँ तो करीब-करीब हर हफ्ते होता है और एडवांस तो कोई बड़ी बात
नहीं है। कार्यालय में बैठे मिहिर और मिसिर का चेहरा सूख गया क्योंकि इशारा उन्हींत
की ओर थी। इसी समय चार रसोईयों द्वारा विद्यालय के मिड डे मील के चावल चोरी
का शोर हुआ । सड़क पर बैठी विद्यालय प्रबंधन समिति की सदस्या सरिता देवी ने थैले
में चावल और दाल ले जाती रसोईयों को धर दबोची। ग्रामीणों ने देखा और विद्यालय की
विधि व्यवस्था पर सवाल उठाया । सरिता ने आवाज लगाई कि मिहिर हेड मास्टर की
लापरवाही से यह सब हो रहा है । हेड मास्टर बदलना बहुत जरूरी हो गया है । विद्यालय
के शिक्षक लोग भी वहाँ पहुॅच गए थे । मिसिर और ज्ञानी ने पूछा- किन्हे
हेड मास्टर बनाना चाहती हो? तो सरिता ने बताई - भोला सर को । भोला सर ही विद्यालय
को संभाल सकते हैं।
ज्ञानी और मिसिर एक साथ घर जा रहे थे। मिसिर ने कहा – भोला सर हेडमास्टर
रहते तो इतनी लापरवाही नहीं होती, ज्ञानी दा। मिहिरवा लुटता भी और सबको
लुटने भी दे रहा है।
ज्ञानी- हम लोगों के विद्यालय का कर्म टूटा हुआ है कि उनको हेडमास्टर नहीं
बनने दिया गया। अरे भाई! उनके हेड मास्टर बनने से हम लोगों का भी मान-सम्मान
बढ़ता।
मिसिर- आठ दिनों तक अष्टम वर्ग की परीक्षा में वे केन्द्राधीक्षक थे। इतना
सुन्दर संचालन किया था कि वह काबिलेतरीफ है। फेसबुक में सारी एक्टीभीटी आज भी देखी
जा सकती है।
ज्ञानी ने लम्बी सांस ली और कहा- हाँ हाँ देखे तो हैं...........।
और हम लोग कर ही क्या सकते हैं ? बोलने के सिवाय, जिला शिक्षा अधीक्षक ,जय हिंद भी
ऐसे ही हेडमास्टर को पसंद करते हैं, क्योंकि उनको भी शेयर चाहिए।
मिसिर- बिल्कुल सही बात।
58.
महर्षि मेंहीं की 134 वीं पावन जयंती के दिन भोला प्रातः
अपने जीवन के श्रेष्ठ मार्गदर्शक श्री हीरा गुरु जी के साथ कुप्पाघाट
भागलपुर, बिहार जा रहे थे । इन्हीं के साथ 1985 में कुप्पाघाट भागलपुर जाकर भोला
ने गुरु दीक्षा मंत्र प्राप्त किया था । आज वही स्मृति भोला के ह्रदय
में आ गई थी। दोनों में ध्यान भजन आदि के विषय में गंभीर चर्चा हो रही
थी। बातचीत के क्रम में हीरा गुरुजी ने पूछा- तुम्हारे स्कूल के बारे में समाचार
पत्रों में बहुत खबरें आती थी । आजकल क्या स्थिति है भोला?
डीएसई जय हिंद आए थे और उन्होंने फैसला कर दिया कि आप दोनों में से कोई
प्रभारी नहीं रहेंगे
एक नए आदिवासी टीचर हैं मिहिर टूडू नाम का, उन्हीं को प्रभार दिया गया
है।
ठीक है बाबू, प्रभारी बनना एक ईमानदारशिक्षकके लिए ठीक नहीं हैऔर साधनाके लिए तो बाधक है ही। पढ़ाई-लिखाई से तुम्हारा
कनेक्शन भी कट जाएगा।
सर, आप तो सदैव मेरे मार्गदर्शक रहे हैं। एक प्रश्न मेरे दिमाग में है सर।
कहो न क्या प्रश्न है?
जब विद्यालय के प्रधानाध्यापक बगैर सूचित किए विद्यालय से बाहर रहे तो बरीय
सहायक शिक्षक उनके कॉलम में आकस्मिक अवकाश आदि कुछ लिख सकते हैं या नहीं?
कभी नहीं, प्रधानाध्यापक के कॉलम में किसी को लिखने का राइट नहीं है । उसके
कॉलम में पदाधिकारी ही कलम चला सकते हैं। हां , जब तुमको प्रभार लिखकर
जाए और न आए तो उनके कॉलम में तुम लाल कलम तक चला सकते हो और वह जब तक नहीं आए तब
तक तुम लाल कलम से लकीर लगा सकते हो। ऐसी स्थिति में वह बुरी तरह फंस जाएगा ।
लेकिन अगर प्रभार न दे और तुम उसके कॉलम में आकस्मिक अवकाश या कुछ भी लिखते हो और
तुम फंस जाओगे।
बगैर सूचित किए अक्सर आउट रहते हैं । फिर आकर अपनी उपस्थिति बना लेते
हैं। कभी-कभी तो कुछ शिक्षक उनकी फर्जी उपस्थिति भी बना दिया करते हैं। विद्यालय
की स्थिति चरमरा रही है। उनको देखकर बाकी शिक्षक भी ऐसे ही करते हैं। तो क्या मैं
कुछ भी नहीं कर सकता हूँ ? विद्यालय हित में मेरा कुछ फर्ज नहीं बनता?
इसके लिए तुम ग्रामीणों को आगे बढ़ाओ। खुद नहीं। परंतु हाँ , तुम कुछ भी करोगे
तो द्वेष भाव पैदा होगा। वह तुमसे द्वेष करेगा। तुम से ठीक से बातें नहीं
करेंगे। तुम्हारी किसी भी एक्टिविटी में उनका सहयोग नहीं होगा। ऐसे में तुम्हारा
पर्फॉर्मेंस खराब हो जाएगा। तुम तनावग्रस्त रहोगे। साधना में विघ्न आएगी।
ध्यान-भजन नहीं बनेगा। बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा। यह जानकर रखो भोला कि द्वेष भाव, द्वेष भाव को उत्पन्न करता है। एक साधक को
इससे खूब बचके रहना चाहिए।
हाँ सर ऐसा ही तो हो रहा है । मैं उनका आकस्मिक अवकाश वगैरह बैठा दिया करता
हूँ जिससे वे मुंह फुलाए रहते हैं। हंसी खुशी की बातें होती ही नहीं है।
यह तो मानव प्रकृति है। तुम जैसा बोओगे वैसा ही न मिलेगा माय डियर। हाँ
एक बात जरूर है ,वह भी तुम्हारे विरोध में आगे नहीं बढ़ेगा, क्योंकि यदि वह आगे
बढ़ता है तो वह भी फंसता है। बगैर सूचित किए संस्थान छोड़ने के अपराध में। दंडित
दोनों ही हो जाओगे । पनिशमेंट दोनों को ही मिलेगा , परंतु वह तो किसी न किसी
प्रकार निकल जाएगा, परंतु तुम्हारे ऊपर यह इल्जाम लग जाएगा कि इनकी मानसिक स्थिति
अच्छी नहीं है। यह प्रधानाध्यापक बनने के लिए प्रधानाध्यापक के पीछे पड़े हुए हैं।
यह सिद्ध हो जाएगा और ऐसे में तुम्हारा ट्रांसफर निश्चित हो जाएगा। तुम काफी बदनाम
हो जाओगे। इसलिए आज से ही इस प्रकार की प्रवृत्ति को छोड़ दो।
तो क्या विद्यालय बिगड़ने दे सर ?
तुम ये बताओ, क्या तुमने विद्यालय का ठेका लिया है? पदाधिकारी नहीं जान
रहे हैं क्या? सभी जानते हैं । सब के सब मिले हुए हैं । ऐसे में तुम अपने आपको
क्यों जलाओगे? तुम्हारा जो काम है , वह करो। तुम समय पर विद्यालय जाओ। विद्यालय
में होने वाले कार्यक्रम में सम्मिलित हो जाओ। अपना क्लास रुचिपूर्वक लो।
छुट्टी हो घर प्रस्थान करो । इसके अलावा किसी प्रकार की एक्टिविटी में दखल देने की
आवश्यकता नहीं है। खासकर एक साधक के लिए। यू ट्यूब से रजनीश आदि
महात्माओं का प्रवचन सुना करो। बहुत काम आएगा । तुम्हारा दिमाग वाश हो जाएगा।
अक्सर सुना करो। और हो सके तो प्रतिदिन। आज से ही सुना करो। कभी कभी तो ऐसा प्रतीत
होगा कि महात्मा गण तुम्हारी ही बात कर रहे हैं। तुम्हें और किसी के परामर्श
की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। तुम बहुत प्रसन्नचित रहोगे। अपने तन मन धन का सही उपयोग
करो। इसी में मानव देह की उपादेयता है। व्यर्थ विवाद से बचो।
ट्रेन भागलपुर पहुंच चुकी थी। दोनों उतर गए और ओटो पकड़ कर कुप्पाघाट की
ओर जाने लगे।
शाम 5:00 बजे भोला और हीरा गुरुजी दोनों महर्षि
मेंहीं उद्यान में टहल रहे थे। गुरुजी ने उन्हें एक कहानी सुनाई। एक बार एक नगर
में एक जादूगर आया था। नगर के एक चौराहे पर उन्होंने अपना खेल आरंभ किया । लोग
एकत्र हुए। सब ने खेल देखा। परंतु जब पैसे देने की बारी आई तो पैसे बहुत कम मिले।
जादूगर बहुत निराश हुआ। उन्होंने इस तरह कम आमदनी की समीक्षा की । पता चला कि गांव
के लोग पढ़े लिखे हैं । शिक्षित हैं और इसलिए इन लोगों को जादू टोने वाला खेल
मजाक-सा लगता है। कदाचित इसलिए वे पैसे नहीं दिए थे। गुस्से में आकर जादूगर
ने गांव के चौराहेवाले कुएं में एक रासायनिक पदार्थ डाल दिया और गांव से भाग गया।
उस गांव में मात्र दो ही कुएँ थे । एक राजा जी के चारदीवारी के अंदर और एक नगर के
चौराहे पर। सवेरे जब कुएं के पानी ग्रामीणों द्वारा अपने अपने घर ले जाया गया और
उसका उपयोग किया तो सब के सब पागलों की तरह नाचने गाने लगे। बड़बड़ाने लगे। झुंड
के झुंड लोग इधर-उधर नाच गा रहे थे। केवल राजा, रानी , मंत्री और राजा के बाल
बच्चे सही सलामत थे। सभी प्रसन्नचित गांव के लोगों की तमाशा देख रहे थे।
देखते-देखते गांव के सभी लोग राजा के दरवाजे पर पहुंच गए । पागलों से हरकत
करने लगे । कोई राजमहल में पत्थर फेंक रहे थे तो कोई गालियां दे रहे थे।
राजा हैरान हो गया। अब उसे महल में रहना मुश्किल हो गया। कोई उपाय न देख कर वह
अपने महल के पीछे के रास्ते से बाहर भागा । साथ में रानी, मंत्री और उनके बाल
बच्चे भी थे । पता लगाया कि ऐसा क्यों हुआ। उन्हें मालूम हुआ कि नगर के चौराहे
वाले कुएं के पानी पीने से ऐसा हुआ है। बस क्या था ! झटपट राजा उस कुएं पर गया और
उसके पानी का सेवन किया। मंत्रियों और रानी को दिया । उनके बाल बच्चे भी पी गए।
देखते ही देखते वे भी पागलों की तरह नाचने गाने लग गए। अर्थात वे लोग भी पागल हो
गए। अब गाँव के लोगों के साथ राजा राजा-परिवार सहित पागलों की तरह नाचने गाने लगे
। परिणाम यह हुआ कि राजा की समस्या समाप्त हो गई। अब न तो उनके ऊपर कोई पत्थर
बरसाते न कोई कीचड़ उछालते और न उन्हें कोई गालियां देते । मतलब यह है कि जहाॅ जैसे लोग हैं उसी तरह बन के रहने से समस्याएं
नहीं आती है। अब तुम अपने विद्यालय में एक शिक्षक अकेले हो जो कुछ करना चाहते हो।
परंतु बाकी सभी निष्क्रिय रहना पसंद करते हैं । ऐसे में तुम्हारी
क्रियाशीलता उन्हें अच्छी नहीं लगती। तुम उनके लिए किरकिरी बने हुए हो। यही
परेशानी का कारण है । उनके साथ तालमेल बैठाना होगा। उसी तरह जीना होगा तभी तुम जी
सकते हो अन्यथा तुम्हारा जीना मुश्किल कर देगा।
भोला ने कहा - यही तो हो ही रहा है, सर।
आज से तुम उन्हें सुधारने की प्रवृत्ति खत्म कर डालो । तुम्हारे हिस्से का जो
काम है वह करो और किसी के क्रियाकलाप पर दखल न दो। यही तो जमाना है। संत महात्माओं
ने किसी का विरोध नहीं किया। बस वे अपने कर्म करते चले गए । इसी को कहते हैं
‘महाजनो येन गत; स पंथा।’ जिन्होंने विरोध किया उन्हें समय से पहले जाना पड़ा।
संघर्ष और समर्पण में क्या अंतर है, सर?
संघर्ष का तात्पर्य है , अपने विचारों में सबको ढालने का प्रयत्न करना।
इसमें भी दो तरहकेभाव होते हैं। यदि संघर्ष में आसक्ति का भाव रहा तो तनाव होगा।
विरोध होगा। यदि सफलता न मिली तो मन में ग्लानी होगी। विषाद ग्रस्त हो जाओगे,
परंतु यदि अनासक्त भाव से संघर्ष करोगे तो सफलता असफलता का विचार मन में नहीं
रहेगा। असफल हो जाओगे फिर भी कोई विषाद नहीं होगा। यह स्थिति बहुत ही उत्तम
प्रकृति के कर्म योगी की होती है।
मेरे संघर्ष में आसक्ति का भाव दिखाई पड़ा है सर। लेकिन मैंने बहुत हद तक
अनासक्त होकर संघर्ष किया है और कर भी रहा हूँ ।
माई डिअर तुम संघर्ष का रास्ता छोड़ दो। अपने आप को बदलने का यत्न करो। समर्पण
का भाव रखो। समर्पण में अपने आप को समाप्त कर देना होता है। जिस के प्रति समर्पण
होता है उसी के मुताबिक अपने आप को ढालना होता है । यहाँ अहंभाव की इति होती है
। किसी भी प्रकार का तनाव नहीं होता और न विरोध का सामना करना पड़ता है। इस
भाव में सिर्फ एक तत्व की ओर ध्यान रखना है कि तुम अपने साधकत्व से नीचे न गिरो।
हो सकता है वहाँ गिरे हुए लोग हो। जैसा कि आजकल विद्यालयों में रहा करता है।
इसी समय उधवा मध्य विद्यालय से अनल का फोन आया – भोलासर,
आज स्कूल में उमर सुना रहा था कि भोलासर आजकल कार्यालय से दूरी बनाकर रहते
हैं। कार्यालय में एकदम बैठते ही नहीं ।
अनल- बिल्कुल ठीक करते हैं। समय की यही मांग है । कार्यालय में नहीं
बैठते हैं। पढ़ाने-लिखाने में तो किसी से पीछे नहीं हैं ।
उमर लंबी श्वास लेते हुए - यह तो बिल्कुल सच है।
अनल- आज प्रबंधन समिति की बैठक थी। अकरमण, बिकरमण, ज्ञानी, उमर सभी बाहर ही बैठे
थे। अंदर कोई नहीं जा रहे थे मानो सब लोग विरोध कर रहे हो। कई महिला प्रबंधन समिति
की सदस्या मिड डे मील के संबंध में आवाज उठा रहीं थी। बच्चे को समय पर खाना नहीं मिलता
है। लेट से खाना बनता है तो खाना क्या मिलेगा ? आदि। सरिता इन सब में एक थी।
भोला- बाद में बात करेंगे । कहकर भोला ने फोन काट दिया।
हीरागुरूजी- किनका फोन था माय डियर।
भोला- स्कूल के एक पारा शिक्षक का ही फोन था।
तो चर्चा भी स्कूल की ही हो रही थी। घड़ी देखो कितना समय हुआ?
6:30 बज चुके हैं सर।
ठीक है, चलो अब ध्यान का
समय हो गया है।
59.
साहिबगंजजिलेमेंएचआरएमएस, वेतननिर्धारणआदिसेसंबंधितविरोधाभासीवक्तव्यव्हाट्सेपपरडालेजारहेथे।इसमेंजिलापरिवर्तनदलनामकएकग्रुपथाऔरदूसराग्रुपथा- सशक्तशिक्षकदलनामका।इनग्रुपोंमेंजिलाशिक्षाअधीक्षकजयहिंदबाबूजीसेलेकरजिलेकेजाने-मानेशिक्षकरीसीपिएंटसम्मिलितथे। व्हाट्सेपपरशिक्षकगणउक्तविषयोंपरअपने-अपनेविचारपोस्टकियाकरतेथे।आक्षेप-प्रक्षेपकासिलसिलाजारीथा।जिलाशिक्षाअधीक्षकजयहिन्दपरअनशनकादबावथा । 3 दिनपूर्वगर्मीछुट्टीघोषितकरदी।परिणामयहहुआकिअनशनठंडेबस्तेमेंचलागया।
जून 2018 का महीना था। गर्मी की छुट्टी होने वाली थी । आज क्लोजिंग
डेटथा।स्कूल के कार्यालय कक्ष मेंभोला, मिसिर , ज्ञानीऔर उमरकुमार बैठे थे।मिहिर प्रवेश करते हीभोला की ओर
गुड मॉर्निंगकहते हुएबोला– सर, कल ही साहिबगंज
गया था, फिक्सेशन को लेकरपरंतु सफलता नहीं मिली।वहां तो
अच्छा खासानाटक होता है।कल जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय के बाहरअजप्ता के
महासचिवमनोर सर और अध्यक्षसगुननआदि खड़े थे।उसमें मैं भी था।भैंसा मारी मध्य
विद्यालय केजाने मानेनवनियुक्तशिक्षकगौतम बाबू भी
थे।दो मंजिले केकमरे सेक्लर्क लोग
देख रहे थे कि शिक्षक लोग नीचे कुछ बातें कर रहे हैं।मैंने देखा कि गौतम बाबू
चुपके से निकल कर ऊपर चले गएऔर किरानी से मिल गए।मैं तो नीचे ही रह गया कि संगठन
के पदाधिकारी है तो यहां से हटना भी ठीक नहींहै। परंतुपता चला कि गौतम बाबूरिश्वत
देकर अपना फिक्सेशन करा चुके हैं।जिन लोगों कोशिक्षक संघ के नेताओं के बीच
मड़राते देखा उन लोगों से किरानियों ने भी
दूरी बना ली थी।उनसे नफरत भी करते थेताकि शिक्षक संघ के नेताओं से दूर रहें और
हमें पैसे देकर अपना काम करावे।
भोला सर ने कहा- देखिए मिहिर जी, यही गौतम
नाटकमेंराज्य- स्तरीय शिक्षक पुरस्कार प्राप्तकर चुके हैं।जब
जिले में शिक्षक समागमकार्यक्रम हुआ था।एक ओर यह संगठन में भी शामिल होने का
स्वांगरचते दूसरी और यह चुपके सेबैक डोर से अपना काम भी निकाल लेते हैं।पीएचडी की
उपाधि भी प्राप्त किए हुए हैं।अबविचारिए
कैसी है इनकी नैतिकता।ऐसी मनःस्थिति वाले शिक्षकों सेक्या गुणवत्तापूर्ण
शिक्षा की आशा की जा सकती है? क्या ऐसे शिक्षकों से परिवर्तन की बयार बह सकती है? जब
शिक्षक की मानसिकता ही फटी हुई हो तो ठोसविचारवान छात्रकैसे बना सकते हैं? क्योंकि
गुरु के सत्व बल का प्रभाव शिष्य के
अंतकरण को उजागर करता है और यदि गुरु ही सर्वश्रेष्ठबल से वंचित हो तो ऐसे गुरु
सेक्या उम्मीद की जा सकती है ?
मिहिर नेहामी भरते हुए कहा-- दांत खाने के
कुछ औरदिखाने के कुछ और होते हैं, सर।
सशक्तशिक्षक दल के
ग्रुपया फिर जिला परिवर्तन दल के ग्रुप में शिक्षक संगठन से जुड़े नेता अगर कुछ
विचार डालते हैं तोहमारे शिक्षक बंधुडरते हैं, समर्थन या कमेंट
करने से कि कहीं जिला शिक्षा अधीक्षक के कोप का भाजन न बनना पड़े। क्या कहूँ
यदिशिक्षक मित्र कुछ अच्छे कमेंट कर देते हैं तो जिला शिक्षा अधीक्षक और उनके
गुर्गेफोन करके इत्तिला करते हैं कि ऐसा क्यों करते हो यार।इसब मत कर।यह तो हाल है
शिक्षकों का।मेरे एक मित्र है सुनामा जी, उनको भी लोगों ने मना किया था।धनबाद जिले से एक
आदेश निकला था कि पुराने शिक्षक विद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक माने जाएंगे।इस संदर्भ
में मैंने एक विचार जिला परिवर्तन दल और सशक्त शिक्षक दल में रखा था कि अपने जिले
साहेबगंज में भी इस प्रकार का एक आदेश निर्गत होना चाहिए।भैसामारी मध्य विद्यालयके
एकमेरे मित्र सुनामा जी ने मेरे इस विचार का समर्थन किया था।बस क्या था जिले से कई
नामी गिरामीतथाकथितजिला शिक्षा अधीक्षक के प्रिय पात्रशिक्षकों ने सुनामा जी को
मना कियाकिआप ये सब क्यों करते हैं।ऐसीमानसिकता वाले शिक्षकों से क्या अपेक्षा की
जा सकती है कि जिले में परिवर्तन की बयार चलेगी? ये शिक्षक लोग अपहृत मानसिकता वाले
हैं।भ्रष्टाचार के पोषक हैं।अच्छे शिक्षकों के शोषक हैं।समय केचोषक हैं।खुदबचने के
लिएजिला शिक्षा अधीक्षक के समक्ष मंडराते रहते हैंताकि जिला शिक्षा अधीक्षक इनकी
गलतियों पर ध्यान न दें।
मिहिर ने कहा – बिल्कुलसही।ऐसे
ही शिक्षकों से जिला शिक्षा अधीक्षक घिरे रहते हैं।इसलिए तो जिले में स्वच्छ वातावरण
नहीं बन पाता है।जो शिक्षक जिला शिक्षा अधीक्षक के साथमिले हुए नहीं रहते हैं या
भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं ऐसे शिक्षकों का तबादला भीदूर के विद्यालयों में कर
दिया जाता है।जिले के महासचिव मनोर सरका यही हाल हुआ।तालझारीप्रखंड से सीधे उनको
उधवा के विद्यालय मेंभेज दिया गया।इनको विरमित भी कर दिया गया और इन्हें योगदान भी
देना पड़ा।इसके विपरीत जिला शिक्षा अधीक्षक के गुर्गे दो झा जी मास्टर न विरमितहुए
न योगदान दिया।
भोला ने कहा --अरे भाई, इस जिले में
जिला शिक्षा अधीक्षक के आदेश का सरेआम उल्लंघन होता है और वे पैसे लेकर अपना
उल्लंघन करवाते भी हैं।उपायुक्त महोदय भी सब जानते हैं।परंतु वे भी तटस्थ रहते
हैं।तटस्थता भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।परंतुइन लोगों का स्पीच आदर्श वाक्य से
भरा रहता है।अखबारों में लिखते हैं--शिक्षक नपेंगे यदि
विद्यालय में शिक्षक ठीक से काम नहीं करेंगे.........।
और यदि आपपूरी ईमानदारीव निष्ठा के साथ काम करेंगेतो भी
आफतहै।ज्ञानीने कहा।
भोला- मतलब?
ज्ञानी- आप उधवाप्रखण्डसे
बुनियादप्रशिक्षणमेंमास्टरट्रेनरथे।आपको ऐसे कार्योंमेंअबक्यों नहींलिया जाता है?
उमर ने हॅसते हुएकहा—भोलासर से फटल
भगत की भोजनएवंव्यवस्थाको लेकर अनबनहो गई थी।सदन मेंहोटटाकिंग हो गया था।फटल डीएसई
जय हिन्दकी धमकी दिए थे।यह खबर अखबारमेंभी आई थी।तभी मैंनेकहा था कि अब आगे भोला
सर को मास्टरट्रेनरमेंनामित नहींकिया जाएगा।मेरी बात सहीनिकली भोलासर?
बिलकुलसही।
यही वजह है कि अब मुझकोइसके लिए बुलाया
जाता है।ज्ञानीने कहा।
और ज्ञान सेतु
कार्यक्रममेंआपको नामित किया गया है।फटलऔर
बैजू बोल रहे थे।भोला सर को छोड़दीजिएवे क्रांतिकारी है।तहलकामचा देगा।उमर ने
पुनःहॅसते हुएकहा।
अरे दादा, सहायककार्यक्रमपदाधिकारीसाहब का मैसेजजिलेसेआ गयाहैजिला
स्तरीयप्रशिक्षण के लिए ज्ञानी जी को साहिबगंज जाना होगा।गर्मी छुट्टीसमाप्त होने
पर साहिबगंज में प्रशिक्षण लीजिए औरप्रखंड में प्रशिक्षण दीजिए।
गर्मी की छुट्टी समाप्त हो गई और आजविद्यालयखुला।कार्यालय
मेंमिसिर अखबार पढ़ रहे थे।अनल खड़े-खड़अखबारदेख रहे
थे।बिकरमणआलमारीमेंफाईलसजा रहे थे।भोलाकार्यालयमेंघुसकतेहुए मिसिरको
प्रणामीदी।कुर्सीमेंबैठते ही उसने मिसिरसे शिक्षक-पंजीकी
मांगकी।कहाँहैपंडीजी शिक्षक-पंजी?
कहाँ है हो, नहीं मिल रही है,मैंने भी खोजा
है।
भोलाबिकरमणजी ओर देखते हुएपूछा है – कहाँहै बिकरमण जी, शिक्षकों की
हाजरी बही?
बिकरमण-मैं कैसे कहूँ ? हो सकता
है अंदर के कमरे में रखा होगा।
मिसिर-हाजिरी बही छुपाने की आदत
बहुत गिरी हुई आदत है।जूते से मार खाने की आदत है।आखिर यह कौनसा स्टैंडर्डहै।यदि
इस समय पदाधिकारी आ गए तो क्या होगा?
भोला-क्या होगा? कुछनहीं
होगा।किनको पता नहीं है? डीएसईजय हिंद नहींजानते
हैंक्या ?
मिसिर- यह कौन सा स्टैंडर्ड है सर?
भोला-हाई लेवल का स्टैंडर्ड है
और कौन-सा स्टैंडर्ड रहेगा?
अभी तक मिहिर हेडमास्टर विद्यालय नहीं आए थे। 9:00 बजने को
थे।बिकरमणसंयोजिका जी कोकुछ मंत्रणा दे रहे थे।खाना बनेगा या नहींऔर बनेगा तो कितना
चावल दिया जा सकता है ?अपने मन का हेडमास्टरबने बिकरमणने15 किलो चावल बनवा
दिया।तीन ही रसोईया आई थी।मिहिर भी विद्यालय आ चुके थे।उमर कुमार नेबिकरमण से पूछा
– बिकरमणभैया,अकरमणसर आए?
बिकरमण- मुझेक्योंपूछतेहो?
उमर-क्योंकिवेआपकेखास आदमी है।
बिकरमण- बोलनेका तमीजहै तुमको।
इसी समय अकरमणहिलते डोलते स्कूलकार्यालय में प्रवेश
किया।जोर से नमस्कारकिया, हेडमास्टरको।पूरा
कार्यालय गूंज गया।सभी उसकी ओर देखने लगे।हेहे हे करते हुए बोला-नींद ही नहीं
टूटी थी।एक बार टूटी तो फिर सो गया।बिकरमणने व्यंग्यभरे लहजे मेंबोला-सोए ही रहते उठे
क्यों? बिकरमणके इस वक्तव्यसे सबने जोरोंकी ठहाका मारी।एक बार फिर कार्यालय गूंज
गया।
10:30 बजे संयोजिका कार्यालय के बरामदे में आकर हेडमास्टर
से कह रही थी- सर, आज 15 किलो चावल बना है जबकि मात्र 10 बच्चे
ही खाए हैं । रसोईया लेकर हम लोग मात्र तीन ही हैं । सब चावल धरले है। क्या करेंगे
सर? एक बार ऐसे ही चावल ले जाने में प्रबंधन समिति की सदस्या सरिता ग्रामीणों के
साथ हमलोगों को पकड़ ली थी। हम लोगों से लेकर विद्यालय कीभी फजिहत हुई थी। अभी तो
महीना भी नहीं हुआ है।
मिहिर- सभी रसोईयों को बुला लो और बांट लो । सावधानी से
लेकर चले जाओ। बिकरमण सर, जरा सोच समझकर न चावल
देना चाहिए।
हॅसते हुए भोलाने कहा-सोच समझकर क्या
काम किया जाएगा मिहिरजी।यहां सभी अपनी-अपनी जरूरत के
हिसाब से जीते हैं।विद्यालय की जरूरत के आधार पर नहीं।सभी अपनी- अपनीजरूरतके गुलाम भीहुए हैं, और कुछ नहीं।यह सुनकरसबके सब चुप हो
गए।
शिक्षक पंजी छिपाए जानेकी बात भोला ने प्रखंड शिक्षा प्रसार
पदाधिकारी धर्मेंद्र कुमार को व्हाट्सेपमें मैसेज कर दिया‘श्रीमान जी जानना
चाहूंगा कि यदि कोई प्रधानाध्यापक विद्यालय न आवे या विलंब से आवें
और इसके पहले वह शिक्षक पंजी छुपा कर रखे
तो इसके लिए क्या किया जाए।’धर्मेंद्र कुमार ने भी इस मैसेज को कुछ बदल कर
प्रधानाध्यापक मिहिर को सेंड कर दिया।मिहिरबाबू, उमर को स्कूल में इस मैसेज को
दिखा रहा था।इस दिन मिहिर और उमर दोनों नेभोला से बातें नहीं की। प्रणाम आदि करना
तो दूर।मुंह फुलाए रहा ।सत्य का स्वरूप वास्तव मेंअत्यधिक कड़वा होता है।
60.
सर कैसे हैं ? –अनल ने रात्रि के
9:00 बजे भोलासे पूछा।
सब ठीक है अनल जी, कहिए कैसे याद
किएएक सप्ताह से कोई बात नहीं हुई थी।
ज्ञान-सेतु का प्रशिक्षणहो न
गया सर? कैसा रहा प्रशिक्षण?
देखिए अनल भाई, कोई भी
प्रशिक्षण बुरा नहीं होता, बुरा वह तब हो जाता है
जब उसको धरातल पर उतारा नहीं जाता, और इसका दायित्व शिक्षक
पर है। आप याद कीजिए इसके पहले बुनियाद का प्रशिक्षण हुआ , परंतु बुनियाद
प्रशिक्षण में अपने विद्यालय में ही अंतर्विरोध हो गया। जमीन पर नहीं उतारा गया।अकरमण
सीधे कहता थाकि मैं हाउस निर्माण के कार्य में शामिल नहीं होऊंगा ।उमरकैंची की
तरहबुनियादप्रशिक्षण में लिए गए तथ्यों को
काटने लगा था।कहता था किये सब करके क्या होगा।अंततः बुनियाद प्रशिक्षण
बेबुनियाद बनकर रह गया।
बिल्कुल सही कहा सर आपने।अनल ने लंबी सांसे लेते हुए कहा।
ज्ञान सेतुकार्यक्रम के तहत क्लास 1 से लेकर क्लास 9 तक के
बच्चों के शैक्षणिक स्तर में जो गिरावट हो गई है , उसको सुधारने का
प्रयास है। अभी तकसभी बच्चों को उत्तीर्ण करने की प्रणाली थी जिसकी वजह से 10 क्लास तक के बच्चे पुस्तक वगैरह नहीं पढ़ पाते हैं। ऐसी स्थिति में उसे ज्ञान-सेतुके माध्यम से
स्तर के अनुसार विभाजित कर उसके स्तर में सुधार लाने की योजना है। योजना है तो
बहुत अव्वल दर्जे का। परंतु शिक्षकों के समर्पणऔर पदाधिकारियोंके उचित समर्थन के अभाव में योजनाओं का तर्पण हो जाता है।इसके अलावा पदाधिकारियों का खुद उदासीन हो जाना स्पीड ब्रेकर का काम
करता है।
अनल ने कहा- अपने स्कूल में उमर और विकरमण
बोल रहा था कि जब हम शिक्षकों को वर्ग 6 से 8 तक का वेतन नहीं मिलता है तो फिर हम वैसे बच्चों के
लिए इतनी कड़ी मेहनत क्यों करें?
अच्छा इन बातों कोछोड़ दीजिए और सब स्कूल का समाचारसुनाइए।
अपने स्कूल में आज प्रबंधन समिति की बैठक हुई थी जिसमें
लालूकपड़िया का स्कूल ड्रेस ठुकरा दिया गया।लालू जी बहुत ही उत्तम क्वालिटी का ड्रेस
दे रहा थे। 3 महीने हो गए, बकाए पर लालू जी ने सभी
शिक्षकों को फुल पैंट और शर्ट का पीस दिया था और अब तक उसका पैसा बकाया है और इस
पर भी इन लोगों ने नजर फेर दी।
तो किस दुकानदार सेड्रेस लिया जा रहा है?
वहीपाकीजा मोड में जो दुकान है कलाल टोली के एक कलाल काउसी
से लिया जा रहा है। एकदम घटिया क्वालिटी का ड्रेस है सर।बाल-संसद का
अध्यक्षद्वारा भी इसका विरोध किया जा रहा हैसर। परंतु इन बच्चोंकोडांटकर कर के भगा
दिया जाता है।
कौन डांटता है हो।
वही हेड मास्टर औरअकरमण और कौन?
अच्छा गुड नाइट अनल भाई, कल आते हैं तो
फिर बात करते हैं।
दूसरेदिन भोलासमयानुसारविद्यालयनिकले ।रास्तेमेंही लालू
कपड़िया की दुकान थी।लालू अपनी दुकान के सामने सड़क में खड़े अपने पड़ोसियों से
बातें कर रहे थे । तभी भोला गुजर रहे थे ।लालूसे आंखें मिल गई ।भोला ने गाड़ी रोक
दी। अभी कुछ ही दिन हुए थे उनके दुकान से सभी शिक्षकों के लिए बकाये में कपड़े
खरीदी गई थी, भोलाभीउसदिनदुकानआएथे। आखिर कैसेनहींरूकते!ऑखें लजातीही है।
अपने विद्यालय के हेड मास्टर को समझाइएसर। एकदम घटिया किस्म
का स्कूल ड्रेस लेने के लिए बात कर लिया है ,सर।लालू ने
भोलाको गाड़ीके सामने से प्रणामकरते हुए कहा।
अरे भाई , अजीबबात है! आपकी दुकान
से सबशिक्षकोंने ड्रेस लिया ,वहभीबकाएपरऔरआप को ठुकरा
दिया? आपके गांव का ही शिक्षक
हैअकरमण, उसने ऐसा कर दिया! तब मैं क्या कर सकता हूँ
लालू जी ? आपके
गांव के अध्यक्ष, सभी शिक्षक आपके गांव के ही हैं। केवल मैं और
हेड मास्टर मिहिर जी बाहर के हैं। कहिए इन लोगों का ही न वर्चस्व है।
लालू के कर्मचारी और उनके पड़ोसियों ने कहा- हाँसर, यह बात तो सही
है। सब के सब बिके हुए हैं।
तो हम बाहर से आने वाले शिक्षक, इनलोकल शिक्षकों
से लड़ें,टकराएं। मुझे नौकरी करनी है न । अब यदि आपके
गांव के ही लोग कुछ बोलेंगे, करेंगे तो संभव है । आप
लोग आवाज उठाइए।जब तक कोई आगे नहीं बढ़ेगा, तो सुधार भी
नहीं होगा।यह कहकर भोला ने उन लोगों से इजाजत ली। विद्यालय चलते बने।
टिफिन का समय था।भोलाविद्यालय प्रांगण के वृक्ष की छांव में
कुर्सी लिए बैठे थे, तभी बाल संसद के अध्यक्ष अंकन कुमार और कई
छात्र भोला के समक्ष खड़े हो गए।कहनेलगे-सर,आपसे कुछ कहना है।
भोला- कहो।
अंकन– सर,स्कूलड्रेसएकदम
घटियाकिस्मका तय हुआहै।हमबालसंसद के
सदस्यहेडमास्टरके पास गए तो वे यह कहकरभगादिए कि तुम लोगोंकी बात
नहींसुनीजाएगीक्योंकिइससेझमेला बढ़जाएगा।ड्रेसका आर्डर क्रय समिति के दायरे की चीज
है।
तो मैंक्याकर सकता हूँ?
कुछ तो कहिएसर।हमलोग आप से
सलाहचाहते है।हम लोग हड़तालकरने वाले हैं।
इस विद्यालयमेंबच्चोंको दब्बू
बनाया जा रहा है।बालसंससदसक्षम नहींहो सकता।उसे डांटकर चुप कर दिया जाता है।मैं
कुछ बोलूंगा तो हेड मास्टर एवं अन्य शिक्षक कहेंगे भोला बच्चों को
भड़का रहे हैं ।विद्यालय में अशांति पैदा कररहे हैं।मेरे ऊपर आरोप पत्र दायर हो
सकता है।
ऐसा क्यों कहते हैं सर, बिल्कुल जायज बात
करने में क्या डर है?
जायज कहना ही तो आज के जमाने में सबसे बड़ा कसूर है,बाबू।जो भी मिल
जुलकर, समझौता करके जीते हैं वही आज के जमाने में अव्वल माने जाते हैं।
हाँ , सर आपकी यह बात हमें जंच
गई। बिल्कुल सही लग रही है । मेरे पापा भी आप के संबंध में यही कह रहे थे।और जानते
हैं सर, जब हम लोगों ने विद्यालय में इस विषय को लेकर
शोर मचाने लगे तो अकरमण सर हम लोगों को बहुत जोर से डांट दिए। मारने-पीटने की धमकी
दिए।छड़ीदिखाते हुए बाघकीतरहगरजकरकहाकि छड़ी देखतेहोपीठ फाड़ देंगे मार के,समझे। बस सभी
बच्चे अपने अपने क्लास में चले गएजैसे चूहा बिल्ली को देखकरनौ-दो ग्यारह हो
जाताहै।
ओह!अकरमणसर के सामने कोई कुछ बोल सकेगा । वही तो दबंगई करते
हैं। अरे बाबू! उसने तो खा लिया बालसंसद को।
सर, हम लोग कह देते हैं।
ड्रेस आने दीजिए । ड्रेस घटिया तो रहेगा ही । हम लोग वीडियो के पास ब्लॉक जाएंगे ,सभी बाल संसद के
सदस्य।तब तो पोल खुलेगा न?
यदि ऐसा कर पाओगे तब तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। परिवर्तन
की हवा चल जाएगी।सरकार कीजो मंशा है वह पूरी होगी।सरकार द्वारा दिए गए अनुदान का
सही उपयोग होगा।
सभी बच्चों ने एक स्वर से कहा- हाँ सर, हम सभीबच्चेऐसा
ही करेंगे।आपका वह सुभाषित हम नहीं भूलें हैं सर, ‘जो होता है सो
होने दो, यह पौरुष हीन कथन है । हम जो चाहेंगे वह होगा, इन शब्दों में
जीवन है।।’
वाह ! बहुत अच्छा , मेरा आशीर्वाद
तुम लोगों के साथ है। चलो अब क्लास चलें।
और सभी बच्चे भोला के साथ क्लास चले गए।
दरअसल, विद्यालयों में बाल संसद
केवल नाम मात्र की संसद है ।बैठकोंमें केवल खानापूर्ति होती है। बाल संसद के
सदस्यों को शिक्षकों द्वारा सशक्त करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है, क्योंकि बाल
संसद का सशक्तिकरण शिक्षक की लापरवाही पर अंकुश का काम करेगा।अधिकांश शिक्षक यह
नहीं चाहते कि उनके ऊपर कोई अंकुश लगावे।वे स्वतंत्र विचरण करते रहें।उन्हें कोई
कसे नहीं।प्रबंधन समिति के सदस्यगण अनुदान का बंटवारा करते हैं , जिसमें मुख्य
भूमिका विद्यालय के सचिव की होती है।अक्सरऐसे विद्यालयों में एक या दो दबंग शिक्षक
होते हैंजिनके सहारे सचिव भी अपनाउल्लूसीधाकर लेता है। अध्यक्षको कमाई चाहिए।प्रबंधन
समिति की एक भी अध्यक्ष ऐसा नहीं देखे जाते हैं जो विद्यालय की प्रगति चाहे, विद्यालयमें सुव्यवस्था
कायम करें, त्याग भावना प्रदर्शित करें।यही हाल प्रबंधन
समिति के सदस्यों का भी है।परंतु हां, विद्यालय के
प्रधानाध्यापक जो कि प्रबंधन समिति से लेकर विद्यालय के प्रधान होते हैं । सिर्फ
और सिर्फ यदि वे त्यागी , तपस्वी ,समर्पित और कुछ
करने की मनसा रखें , तो कदाचित विद्यालय का कायाकल्प हो जाए, जैसा कि जिले
में कुछ विद्यालयों में देखा जाता है।ऐसे सचिवपढ़े लिखे ग्रामीणों की बैठक करते हैं।उनसे
सपोटएवं सजेशन लेते हैं। ऐसे में नकारात्मक सोच करने वाले की नाकेबंदी हो जाती है।
फलतःलुटेरों को मुंह की खानी पड़ती है।शिक्षाकासुंदर
और स्वस्थ वातावरण तैयार होता है।शिक्षा में गुणात्मक प्रगति होती है।काश! हरेक
विद्यालय के सचिव इस प्रकार के विचार लेकर चलें, तो.........।
मगरअफसोसहै किपदाधिकारियों का रवैया भी सपोटिंग नजर नहीं आती।इन्हें
अपनी दुकान चलाने से मतलबहै।दुख की सबसे बड़ी बात यह है कि ये बाबू लोग चाटुकारों
से घिरे रहते हैं,जिनका अपना कोई वजूद नहीं होता।येलल्लो- चप्पो
करके जिंदगी काटते हैं।इनके जीवन मेंन कोई पुरुषार्थ होता है न कर्तव्य की भावना
होती है।अपने जिले साहिबगंज में बुखारी बाबू इसके सर्वोत्तम उदाहरण हैं।इनके साथ
इनके गुर्गे भी जुड़े हुए हैं।संक्षेप में कहा जाए तोये बाबू लोग स्पीड ब्रेकर का
काम करते हैं।ऐसी स्थितिमेंभोला जैसेशिक्षककोकिसीशायरकीयहशायरीढाढ़सदेती है-[1]
‘माझी तेरी कश्ती
के तलवदार बहुत है, इस पार कुछ मगर उस पार बहुत है।
जिस शहर में तू ने
खोली शीशे की दुकान, उस शहर में पत्थर के खरीददार बहुत हैं।।’
61.
‘ज्ञान सेतु’
प्रशिक्षण का दौर चल रहा था । भोला भी इस प्रशिक्षण में शामिल था। आज उनका
प्रशिक्षण समाप्त हुआ था। रात्रि के 8:00 बज रहे थे । भोला ने साहिबगंज जिला
परिवर्तन ग्रुप के ग्रुप एडमिन शर्मा बाबू को फोन लगाया।उन्हें स्थानांतरण संबंधी
जानकारी लेनी थी । किसी वजह से शर्मा बाबू फोन रिसीव नहीं किए ।रात्रि के 9:00 बजे
शर्मा बाबू ने भोला को फोन लगाया और कहा- भोलासर, बहुत सीरियस
मैटर पर चर्चा हो रही थी इसी वजह से आपका फोन रिसीव नहीं किया था।
क्या हुआ शर्माबाबू ? आश्चर्यचकित होकरभोला ने पूछा।
शर्मा जी ने डिटेल में बताया - अपने जिले के
शिक्षा संघ के सचिव बुखारी बाबू जो बहुत नामी शिक्षक है , उनके स्कूल मेंआजबहुत
बड़ी घटना घट गईहै।उनके स्कूल में एक शिक्षक है, अमित कुमार दास।इनके
ऊपर स्कूल की बच्ची के साथ छेड़खानी का आरोप लगाहै ।ग्रामीण बहुत अधिक संख्या में
विद्यालय पहुँच गए थे।सब कह रहे थे कि अमित कुमार दास को बाहर निकालो।वरना हमलोग
स्कूल में आग लगा देंगे। शोरगुल मचा रहे थे औरबार-बार यही कह रहे थे कि निकालो उस
मास्टर को नहीं तो बहुत बुरा होगा।किसी ने कहा साले मास्टर को जिंदा जला देंगे।उनकी
बेटी-बहनहै कि नहीं।अमित कुमार दास को एक कमरे में
सील कर दिया गया थाताकि उसे कोई मारन कर सके ।अन्य सभी शिक्षक प्रधानाध्यापक के
साथ सुरक्षित कमरे में घुसेथे। दरवाजे बंद कर दिए। फिर क्या था, वे लोग तोड़फोड़
करने लगे। विद्यालय के मुख्य गेट को क्षतिग्रस्त कर दिया। विद्यालय के प्रभारी
प्रधानाध्यापक भगत बाबूने थाना प्रभारी को फोन कर दिया। तुरंत थाना प्रभारी अपने
दल बल के साथ विद्यालय पहुँचगए । भीड़ को काबू करने का प्रयास किया । परंतु भीड़
बेकाबू हो रही थी। लोग गाली-गलौज भी कर रहे थे।भीड़
के लोगों ने पुलिस पर पथराव कर दिया। बाध्य होकर पुलिस को लाठी चार्ज करनी पड़ी। करीब आधे घंटे तक यही मशक्कत चलता रहा।
अंततोगत्वाएसपीको भी वहाँ आना पड़ा।तब कहीं भीड़ पर काबू
पाया गया।एस पीअमित कुमार दास को अपनी गाड़ीमें लेकर पुलिस स्टेशन चले गए।बुखारी
बाबू भी अपने मोबाइल से जिला शिक्षा अधीक्षक जय हिंद को इस खबर की पुष्टि कर दी कि
अमित कुमार दास के द्वारा छेड़खानी की घटना को अंजाम दिया गया है।जिला शिक्षा
अधीक्षक को कार्रवाई करने में देर नहीं हुई और उन्होंने तुरंत कार्यालय आदेश जारी
कर दिया कि‘अमित कुमार दास ,सहायक शिक्षक,उत्क्रमित उच्च
विद्यालय मिर्जापुरद्वारा विद्यालय की एक बच्ची के साथ छेड़खानी करने और
प्रधानाध्यापक द्वारा इसकी पुष्टि किए जाने पर निलंबित किया जाता है।’अमित कुमार
दास का कहना है कि मुझे षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है।मेरे द्वाराऐसी निकृष्ट
हरकत नहीं की गई है।उसके बाद शर्मा जी ने कहा-भोलासर, फोन रखता
हूँ। फिर आगे बात होगी। शुभ रात्रि।
भोला ने भी कहा—शुभरात्रि।
भोला मास्टरने फोन तो रख दिया परंतु उनके कान में बातें गुंजने
लगी। मिर्जापुर का पूरा दृश्य आंखों के सामने नाचने लगा।गोयाभोला खुद जाकर इन सारी घटनाओं को अपनी
आंखों से देखा हो। सोचने लगा शिक्षण इतने नीचे गिर गए! जिस बच्ची को बेटी के रूप
में देखना चाहिए उसे ही अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए आसक्त हो गया! क्या वाकई
यह आरोप सही है या फिर कोई षड्यंत्र !मेरे संबंध में भीषड्यंत्र रचे गए थे, परंतु किन्हींकी हिम्मत नहीं हुई थी, विद्यालय में
आकर हंगामा कर ले।शिक्षक की पहचान अगर एक वास्तविक शिक्षक के रूप में हो तोक्या यह संभव हैकि कोई उसे फंसा दे! भोलाकीधर्मपत्नी गीता नेसारी बातें सुनी
थी।भोला का पुत्र रवि नेभी सुनी।
रवि ने पिता से कहा- बाबा आप भी स्कूल
में बहुत रुचि लेते हैं ।सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन करते हैं। बच्चियों से
गाना गवाते हैं ।रिकॉर्डिंग डांस करवाते हैं। सावधान हो जाइए।आपके विभाग में इतना
बड़ा षड्यंत्रकि किसी शिक्षक को इसकेतहत मारने-पीटने
और जेल भेजने की नौबत आ जाए।
मुझे विश्वास नहीं होता बेटा, कि इसमें केवल षड्यंत्र
ही होगा। उस शिक्षक में शिक्षकत्व का अभाव अवश्य होगा।ग्रामीणों के बीच उनकी पहचान
एक रियल शिक्षक के रूप में नहीं होगी।क्या षड्यंत्र में कोई उनके पक्षधर नहीं
थे?एक अच्छे शिक्षक के पक्ष में भी बच्चों के माता-पिता खड़ेहोते हैं । उनकी
सहानुभूति अच्छे शिक्षकों के प्रति रहती है।याद है न, मैंने जो बताया था। एक बार उधवा का अंतूनेता अपने बेटे को लेकर मेरा स्कूल आया था। मेरे ऊपर
झूठा इल्जाम लगाया था। परंतु जब क्लास में गए थे , तो सभी बच्चों ने
अंतूनेता को इनकार कर दिया था। उन्हें मुंह की खानी पड़ीथी।मेरे स्कूल में कुछ
शिक्षक ऐसे हैं जो मेरे विरुद्ध षड्यंत्र रचने का प्रयास करते हैं परंतु मेरी अच्छीछवि के कारण वे कुछ नहीं कर पाते।खैर
मैं मिर्जापुर की सारी गतिविधियों की जानकारी अन्य शिक्षक बंधुओं से लूँगा।
दूसरे दिनभोर 5:00 बजे ही जिला परिवर्तन दल और सशक्त शिक्षक
दल के ग्रुप में मिर्जापुर में घटी घटना का समाचार दिखाई पड़ा।‘दैनिक जागरण’ और ‘हिंदुस्तान’ दोनों अखबारों के पेपर कटिंग करकेव्हाट्सेप
ग्रुपमें शिक्षकोंने डाल दिया था।हेडिंग था ‘छेड़खानी के आरोप में शिक्षक जेल
गए।’भोला नेहकीकत जानने के लिए जिले के दर्जनों शिक्षकों से संपर्क साधा जिनमें
प्रमुख थे,ए. के. प्रमाणिक , डी. एन. चौरसिया, बी. के. रजक,एस. मंडलआदि।सबनेकुछ
सच्चाई के साथ षड्यंत्र की ही बात बताई।
शर्मा बाबू ने सारी
नाटकीय घटनाएं बताईं।बच्ची को बैंच में खड़ा किया गया था।छड़ी से चमकाई गई थी। इसी
दरमियान उसके संवेदनशील अंग मेंशिक्षक का स्पर्श हो गया था।उसके इरादे कैसे थे, यह उनकी
अंतरात्मा ही जानें।बच्ची नेअपनीमां से शिकायत कर दी। बच्ची की मांविद्यालय आ गई।प्रधानाध्यापक
के सामने सारी बातें रखीं।शिक्षक ने अपनी गलती
स्वीकारी। माफी मांगी। मामला खत्म हो चुका था। फिर भी दूसरे दिन............।श्री अमित कुमार
दास जी का लंबा समय विभिन्न कार्यालयों में प्रतिनियोजन के रूप में ही बिताथा। पठन-पाठन कार्य से
दूरी बनी हुई थी। 30 वर्षों की सेवा में मात्र ढाई वर्षों से विद्यालय में थे।ऐसी
स्थिति में ग्रामीणों की सहानुभूति मिलना असंभव था।दूसरी ओर शिक्षकों के बीच
तालमेल नहीं था जैसा आज कल देखा जाता है।हरएकविद्यालयमेंईर्ष्या-द्वेष का बाजार
गर्म है। सब एक दूसरे को नीचे दिखाने के चक्कर में लगे
रहते हैं।
जो हो गया,
सो हो गया।शर्मा बाबू, यह बताइए किबचाव के लिए कुछ प्रयास किया जा रहा
है कि नहीं?
लंबी सांस लेते हुए शर्मा बाबू ने कहा –हल्की-फुल्की
सुगबुगाहट है परंतु खुलकर कोई सामने नहीं आता।कुल मिलाकर स्थिति अच्छी नहीं कही जा
सकती।
प्राथमिक शिक्षक संघ साहेबगंजके वी के सिन्हाद्वारा एक बैठक
बुलाई गई थी , परंतु अफसोस की बात यह हैकिउस बैठक में मिर्जापुर विद्यालय के एक भी शिक्षक उपस्थित
नहीं थेऔरन जिला के सचिव बुखारी थे।जो आए थे वे उसी तरह औपचारिकतादिखा रहे थेजैसे
कि स्मशानघाट मेंशवयात्रीदिखाया करते हैं।अब आप सोच सकते हैं कि किस प्रकार की
उदासीनता है उस शिक्षक के प्रति।जेल में भीशिक्षक उनसे मिलने से डरते हैं कि कहीं
हम जांच के दायरे में न आ जाएं।फिर भी कुछ प्रयास जारी है। हो सकता है, जांच में जब आयोअर्थात्जांच
अधिकारीआएंगे तो मामले को थोड़ा ठंडा करने का प्रयास किया जाएगा ताकि कम से कम जमानत
मिल जाए।
इसीलिए तो भोलाने भी जिलासशक्त शिक्षक दल के ग्रुप में एक
छोटा सा आर्टिकल डाला था:
‘*अपने जिले की वर्तमान
समस्या की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम सभी शिक्षक अपनी-अपनी आवश्यकताओं के गुलाम
बने हुए हैं।
*तटस्थता हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बनी हुई है। समस्याएँ मुँह
खोले खड़ी हैं परंतु तटस्थता हमें उठने नहीं देती, बोलने ही नहीं देती, आवाज उठाने
ही नहीं देती।
* सहने की क्षमता भी उस
मेढ़क की तरह समाप्त होती जा रही है जिसे हम पानी में रखकर गरम करते जाएँ तो वह उठने व उछालने का
यत्न ही नहीं करता अपितु सहने का यत्न करता है और अंततः दम तोड़ देता है।
*हम उस सांप की तरह बने हुए हैं जो दंश लगाकर बिल में घुसे
हुए रहते हैं। इस संदर्भ में रामधारी सिंह दिनकर ने ठीक ही कहा है :
' कहो
धर्मराज! शांति वह क्या है?
अनीति पर आश्रित
होकर बनी हुई सरला है?'
कुछ गलत लिख
दिया हूँ, तो आशा है, आप क्षमा करेंगे।’
जिले के एक ख्याति प्राप्तएवं लब्ध प्रतिष्ठित स्टेट
रिसोर्सपरसनदीनबंधु चटर्जी इस संबंध में एक छोटा सा चैटिंग किया था ताकि शिक्षकों
में जागरूकता आए:
‘अभी भी बहुत सारे लोग इस दम्भ /घमंड मे जी रहे है कि उनकेजैसा ताकतवर और
होशियार दूसरा कोई नहीँ है ।हम इस भ्रम मे हैं कि हम परदे के भीतर जो भी गलत -सही
करते हैं उसे कोई देख /समझ नहीँ पा रहा है किंतु जनता के कण -कण मे बसा ऊपरवाला सब
कुछ देख भी रहा है और समझ भी रहा है और जब इनका आक्रोश रूपी डंडा चलता है , तब ऐसे लोगों की होशियारी धरी की धरी रह जाती
है ।अत:आवश्यकता से ज्यादा तेज और होशियार बनने की कोशिश न करें। और न ही गलत
तरीकों से करोड़पति /अरबपति बनने की नशा से ग्रसित होवें।’परंतुइन मगरमच्छोंके
सामने ये सारे नसीहत पंगु होतेदिख रहेहैं।
भोलाका कवि हृदय नहीं माना और उस की कलम से भीही निकल पड़ी
यह नसीहत भरी कविता:
‘आत्मजासरीखे बच्ची पर कुत्सित नजरोंसे वार किया।
क्षमा-याचनाकर उसने आत्मसुधार का इजहार किया।[2] ।
पर, रचषड्यंत्रस्कूल-हेडों ने पब्लिकको भड़कादिया।
शिक्षकने अपने शिक्षकत्व को खुद ही शर्मसार किया।।
तोड़-फोड़और लाठीचार्जसे
हाय!विद्यालयगरमाया।
बहगए ऑसू शिक्षाके भोलाका दिलयों शरमाया।।
बंदी हो गएहाय ! गुरुका हुआजेल आशियाना।
जिले भर मेंडिसकस की बनगया एक अफसाना।।
द्वेष-पूरित
शिक्षकनेता ने जय हिन्दको आगाह किया।
जय हिन्दने भी अतिशीघ्र निलंबन कर परमानदिया।।
मुकबने शिक्षकबंधुगण
किसी नेन प्रतिवादकिया।
मानव-मूल्यगंवा सबने पशुता कोस्वीकार किया।।
मानवता की सीख यही
सुकर्म पंथ अंगीकार करें।
बड़े भाग मानुष तन पाए न अपना अपकार करें।।’
62.
अंकन बालसंसद के अध्यक्षहैं और ममता प्रधानमंत्री।पियुष , प्रियम्बदा , लालन, अंशुमाला, रितुआदि
वर्गअष्टम् केसबसेअच्छे विद्यार्थीहैंऔर बालसंसद केकुछ समझदार सदस्योंमेंसे
हैं।कहा जाएतो ये बच्चेहीभोला मास्टरकेमध्यविद्यालयके नाजहैं।
अभी तक ज्ञान-सेतु कार्यक्रम
का क्रियान्वयन विद्यालयों में नहीं हुआ था।मध्यान्ह का समय था।भोला विद्यालय
प्रांगण में बैठे अखबार पढ़ रहे थे।बगल में अनल सर भी बैठे थे ।तभी बाल संसद के
अध्यक्ष अपनी टीम के साथ उनके पास आकर उन्हें घेर लिए।कहने लगे- सर हम
लोगों के क्लास आठवें में गणित की पढ़ाई नहीं हो पा रही है।
क्योंजी, अनल सर तुम लोगों को गणित नहीं पढ़ाते हैं , प्रथम घंटी में?
नहीं सर, प्रथम घंटी में तो अकरमण सर ही आते हैं और वही
नागरिक शास्त्रमें संविधान की विशेषता, न किताब देखते हैं न पोथी– अंकनने कहा।
प्रियम्बदा-औरसिलेबससेबाहर की बात अधिक।
पियुष- बस भाषण मेल
की तरह भाषण दे देते हैं ।
अंशूमाला-और लाठी चमका देते हैं। डांट-फटकार के चले आते हैं
।
रितु- हम लोग उनसे
उब गए हैं सर।आप कोई रास्ता निकालिए सर।
सभी-आप ही पर भरोसा है सर , कुछ कीजिए आप।
इतना खुलकर गुरुजन की शिकायतनहीं करनी चाहिए......।
सभी—हम लोग मजबूर हो गए हैं सर।
क्या अनल जी, बच्चे क्या बोल
रहे हैं? आपके द्वारा वर्गअष्टममेंगणित
नहीं पढ़ाई जाती है क्या ?
बच्चे जो बोल रहे हैं। बिल्कुल सही बोल रहे हैं।आप भी देखते
ही होंगे। अकरमणहर रोज प्रथम घंटी में घूस जाते हैं।दूसरी घंटी में विज्ञान है उसमेंकभी
उमर जाता है तो कभी एहसाससर इतिहासपढ़ाते है।घर जाने के लिए सभी टिफिन के पहले ही
क्लास जाने के लिए उतावले हो जाते हैं।हेड मास्टर जी
गूंगे हैं।मुझे तो मौका ही नहीं मिलताऔरटिफिनकेबादगणित पढ़ाई नहीं हो पाती।टिफिन
के पश्चात आपका क्लासहै।
मध्यान्ह के पश्चात की घंटी लग गई। सभी बच्चे वर्ग में जाने
लगे। भोला वर्ग अष्टम में हिंदी पढ़ाने के लिए जाने के मूड में था तभी उनके सामने
से उमर वर्ग अष्टम की ओर मुखातिब हो रहे थे।भोला मन ही मनताड़ गए थे कि ये बाबू
अभी इस घंटी को पढ़ा कर बस सीधे छुट्टी से एक घंटे पहले घर भागने के फिराक में हैं।परंतु
इस प्रवृत्ति में अंकुश लगाना अनिवार्य है।ज्ञानी भी इसी तरह किया करता है।मिसिर , मयमूल, अकरमण, संतु सब के सब मध्यान्ह के पश्चात्तो धीरे-धीरे रफूचक्कर
हो ही जाते हैं।मिसिर तो प्रथम घंटीमें हाजिरी लेने के बाद ही सीधे साइकिल लेकर घर
चले जाते थे। आजकल इनका थोड़ा ठहराव हुआ है।
‘मेरे वर्ग में जाने के लिए अतिक्रमण न करो उमर जी, अभी मेरी घंटी है।’भोला ने खड़े होकर कहा।उमर
कुमार भीदन से पीछे मुड़कर कार्यालय की ओर आ गए।बच्चे वर्ग अष्टम के दरवाजे से सब
देख रहे थे। कुछ मुस्कुराए भी।भोला अपने वर्ग में चले गए।
दूसरे दिन भोलामध्यान्ह के समय कार्यालय में आकर बैठे थे।हेड
मास्टर मिहिर,अकरमण, मिसिर, अनल, संतू , बाबू पूरप्राथमिकविद्यालय के विलय होने से आए
शिक्षक एहसान, एजा हक आदिभी
बैठे थे।तभीभोला ने मिहिर से प्रश्न किया– मिहिर जी, मैं
आपसे जानना चाहता हूँ कि बदलू मास्टर की सेवानिवृत्ति के बाद अपने विद्यालय में
वर्ग अष्टम में गणित पढ़ाने वालेसबसेअच्छे शिक्षक कौन है?
अभी तो अनलसर ही है गणित पढ़ाने वाले सबसे अच्छे शिक्षक
वर्ग अष्टम में,मिहिरने कहा।
वर्ग अष्टम के बच्चों ने मेरे सामने शिकायत की है कि गणित
की पढ़ाई नहीं होती है जबकि सरकारी नियम के अनुसार प्रथम दो घंटी तक गणित की पढ़ाई
होनी है।
‘अरे भाई, अनल को दूसरी
घंटी तो दी जाती ही है’ अकरमणने अतिक्रमण करते हुए ऊॅचीआवाजमेंजवाब
दिया।
सुनिएअकरमण बाबू, प्रथम घंटी में ही
गणित की पढ़ाई होनी है और वह भी लगातार 2 घंटी तक यह सरकारी नियम है । आप रूटिंग
देख लीजिए। रूटीन भी मिहिरहेडमास्टर ने इसी तरह से बनाया है। परंतु आप उस क्लास
में चले जाते हैं। जबकि आप की प्रथम घंटी वर्ग षष्ठ मेंहै। यह अच्छी बात नहीं है
और आप जाकर गणित भी नहीं पढ़ाते हैं । बच्चे आप से नाखुश हैं कि आप अनाप-शनाप बकते
रहते हैं। वह भी प्रथम घंटी में। इसलिए मैं तो कहूँगा कि गणित के लिए जब अनल सर
उपयुक्त शिक्षक हैं तो उन्हें वर्ग अष्टम में लगातार 2 घंटी तक गणित पढ़ाने दिया
जाए।आत्मविश्वासके साथ भोला ने पलटवारकिया।
हाँ तो जाएंगे अनल जी ।मैं नहीं जाऊंगा- अकरमण नेठंडे
स्वर मेंजवाब दिया।
बहुत अच्छी बात है
कि इस मसले समाधान हो गया। अब मैं मिहिर जी से दूसरा प्रश करना चाहूँगा।
मिहिर समेत सभी शिक्षक भोला की ओर ताकने लगे।
तभी मिहिर ने भोला की ओर मुँह करके पूछा- कहिए सर।
भोला- वर्ग अष्टम की परीक्षा में मैं केन्द्राधीक्षक था।
जिला शिक्षा अधीक्षक जयहिन्द का फरमान था कि सभी परीक्षार्थियों को मध्यान्ह भोजन
दिया जाए। मध्य विद्यालय पतौड़ापुर और मध्य विद्यालय उधवा दियारा और अपने विद्यालय
का केन्द्र था और कुल 280 परीक्षार्थी
शामिल हुए थे। मैंने सभी कक्षाओं में जा-जाकर पूछा था कि
कौन-कौन भोजन करेंगे पर एक भी बच्चे तैयार नहीं
हुए। सबका एस एम एस हुआ था। करीब 15000 रूपए का हिसाब हुआ होगा। मिहिर जी से मैंने
उसी समय कहा था कि उस पैसे सेअपने विद्यालयके लिए साउण्ड सिस्टम लिया जाना चाहिए,प्रार्थना सभा या विद्यालय के किसी छोटे-मोटे सांस्कृतिक
कार्यक्रम में काम आएगा। मिहिर जी उस समयकहे भी थे ‘जरूर सर, जरूर लिया जएगा।’
आज 5 महीने हो गए परन्तु अभी तक मिहिर जी
को इस संबंध में मौन देख रहा हूँ। स्वतंत्रता दिवस सामने है।......
बिकरमण: अच्छी सोंच है।
ज्ञानी: स्कूल में बाजा जरूरी है।
भोला : मैं इसके लिए अलग
से किसी फंड की बात नहीं करता हूँ। मध्यान्ह भोजन की अवैध बचत की बात कर रहा हूँ।
मिहिर : ठीक है सर। विचार
करते हैं। हिसाब मिलाते है।
भोला: जरूर विचारिए।
सभी शिक्षक : हाँ भाई, हो जाना चाहिए।....
भोला ने गंभीर सांसें ली।अपने बाइक में रखे थैले से अमरूद मंगाया, खाया और कार्यालय से बाहर निकला। मन ही मन सोंचने
लगा-देखता हूँ कुछ होता है या नहीं।
अनल मास्टर भोला के साथ बाहर निकला था। भोला से कहा— आपकी
बात से मिहिर पर दवाब पड़ गया। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
भोला वर्ग अष्टम में जाकर बच्चों को सुनाया- आप लोगों की शिकायत दूर हो गई। कल सेअनल सर
प्रतिदिन 2 घंटी तक गणित पढ़ाएंगे आप लोगोंको।यह सुनते ही बच्चों ने तालियाँ बजाई।
भोला ने कहा -नहीं, ताली नहीं बजाना
है।आपकी एक समस्या थी पढ़ाई से संबंधित। इसलिए मैंने प्रयास किया। सभी शिक्षकों के
बीच बात रखी। तो फिर इसमें ताली बजाने की कोई बात नहीं।
बाल संसद केअध्यक्षअंकन खड़ा हो गया और कहा- वी आर
सॉरी सर।
सभीबच्चों ने समवेत स्वर में आवाज दी - वी...आर... सॉरी.... सर..।
स्वतंत्रता दिवस की तैयारी के लिए बाल संसद की बैठक बुलाई गईथीजिसमेंमिहिरने
भोलाको शामिलकिया।बैठकमेंमिहिरने भोला सेसाउण्डसिस्टमअर्थात्बाक्सवगैरहकी जानकारीली।दूसरे ही दिन प्रबंधनसमितिकी बैठक बुलाईगईऔर
साउण्डसिस्टमखरीदने की चर्चाहुई।स्वतंत्रतादिवस के तीन दिन पूर्वही साउण्डसिस्टम(बाक्स)के साथ ड्रमऔर साइडड्रम भी विद्यालयको उपलब्धहुआ।भोला ने इन
सबको अनैतिता पर नैतिकताकीजीत मानी।और हकीकतभी यही थी। उसने दिवंगत अटल
बिहारीवाजपेयी जी की इन पंक्तियों को हृदयंगम करते हुए दुहराने लगे ‘हार नहीं
मानूंगा , रार नई ठानूंगा।’
[1]63.
‘लगताहैअब अपने
विद्यालयमेंहंगामाहोगा।’उमर नेदबी जुबानसे बोलते हुए भोला की ओर देखा।भोला अखबारसे
माथाउठाते हुए उमर की ओर ताकतेहुए पूछा –‘कैसा और किस बात का हंगामा?’
यही घटियास्कूलड्रेसकेवितरणको रोकने के लिएगाँवसे 10-15 नवयुवकआए थे।बालसंसद के बच्चेभी उन लोगोंके साथ शामिलहो गए
हैं।मामलागंभीरहो गया है।
बच्चेतोपहलेसेहीसुगबुगा रहे हैं। विरोध करने के
लिए, परंतु उसे दबाया जा रहा था।हम शिक्षकों को ही
अकरमणबाबू शिक्षक प्रतिनिधि होकर कम बेवकूफ नहींबनाए।हम लोगोंकोलालू कपड़िया
कीदुकानले गए।सभी शिक्षकोंके कपड़ेलिए मगर उनकी दुकान से मालनहींलिए जाने से हमारी
नैतिकतारही ? इससे कितनेनीचे गिरे? सोचिए उमरजी।
उनको तो पैसा दे दिया गया न
सर।
अरे माय डियर, वह पैसे के लिए हमें
कपड़े नहीं दिए थे उधार में। उनका मकसद था कि विद्यालय के 1100 बच्चे का स्कूल
ड्रेस मेरी दुकान से खरीदा जाएगी। यह उनका उद्देश्य था।
भोला के उक्त युक्ति संगत
जवाब से उमर बिलकुलचुप हो गया। ऑफिसमें इधर-उधर चहलकदमी करते मिहिर भी भोला और उमर
के बीच हुए तर्क को सुन रहे थे।टिफिन का समय समाप्त हो गया। भोला पानी पीकर वर्ग
आठवें में पढ़ाने के लिए चले गए।हिंदी में टॉपिक था,हजारी प्रसाद द्विवेदी
की लिखी रचना ‘क्या निराश हुआ जाए।’भोलाने बच्चोंके समक्षपाठकीप्रासंगिकता को
विद्यालयमेंचल रहे ड्रेस-काण्डको उदाहरणबनाया।पाठमेंठगी, भ्रष्टाचार,बेईमानी, झूठ व फरेबआदि के
सहारेजीवनजीनेवालेकी भर्त्सनाकी गई है।सरकारअपनी योजनाओंके क्रियान्वयनके लिए
जिन्हेंकुर्सीमेंबैठाते हैं,वे पवित्रनहींरह
पाते।वे अपनी व्यक्तिगत स्वार्थमेंआकण्ठडूबजाते हैं,परिणामयह होता है कि जनहितकी राशिका बंदरबांट हो जाताहै।बच्चोंके मिड डे मिल
हो या ड्रेस।यही वजह है कि आज अपने विद्यालयमेंभी जनाक्रोश दिखाईपड़रहा है।बाल
संसदके बच्चोंको भी जागरूकहोने की आवश्यकताहै।यह पाठ हमेंयह संदेशदेता है।
‘हम लोगसंघर्षमेंउतर गए
हैंसर।जब तक घटिया ड्रेसचेंजनहीं होगा, हम लोग नहीं लेंगे सर।’अंकन ने जोर से कहा।सभी बच्चों ने
अंकन के इस कथन का समर्थन किया और सब ने जोरों से आवाज
बुलंद की‘ हम लोग भी ड्रेस नहीं लेंगे
सर, जब तक कि
ड्रेस नहीं बदलेगा।’
दरअसल बच्चों को डरा दिया दिया था।मिहिरहेडमास्टर भी
बच्चों की आवाज को दबाने के लिए प्रयासरत थे।लालू कपड़िया के पड़ोस में रहने वाले नवयुवकविद्यालय में हंगामा करने आए थेकि बच्चों
के स्कूल का ड्रेस बहुत ही घटिया किस्म का है।सभी नवयुवक अपनी टीम के साथ प्रत्येक
क्लास के बच्चों को इस बात के लिए तैयार कर लिया थाकि विद्यालय में आया हुआ स्कूल
ड्रेस, जो कि घटियाकिस्मका है,उसेचेंज कर
जबतकअच्छीएवं ब्रांडेडक्वालिटी का
ड्रेस नहीं आ जाता है तब तक संघर्षरत
रहेंगे।प्रधानाध्यापक को भी फटकार दी गई
कि आप किसी भी सूरत में इस ड्रेस को नहीं बाटेंगे। प्रधानाध्यापक ने भी इसकी
स्वीकृतिदी कि‘ठीक हैभाई,नहींबांटाजाएगा।’विद्यालय
के शिक्षकों में खलबली मच गई थी। कोई षड्यंत्र बता रहे थे,
तो कोई हकीकत।वर्ग अष्टम की 10-15
बच्चियों ने भोला से कहा ‘सर ड्रेस बहुत घटिया है,ओढ़नीभीछोटी
और ओछी’और यही था हकीकत।दूसरेदिनतीनोंस्थानीयदैनिकअखबारप्रभात,हिन्दुस्तानऔरदैनिकमेंफोटोकेसाथखबरेंआईं‘पूर्वीउधवापंचायतअंतर्गतनामचीनमध्यविद्यालयमेंघटियापोशाकवितरणकोलेकरअभिभावकोंनेजमकरहंगामाकिया।प्रधानाध्यापकऔरविद्यालयके बच्चोंने विद्यालयप्रबंधनसमितिकेअध्यक्षपरमिलीभगतकाआरोपलगायाकिइनलोगोंनेमिलीभगतकेसहारेघटियाकिस्मकापोशाकबच्चोंमेंवितरनकररहेथे,जोकिसीभीब्रांडेडकंपनीसेसंबंधितनहींथा।विरोधकिएजानेपरसचिवमिहिरटुडूनेजांचहोनेतकपोशाकवितरणमेंरोकलगादीहै।10-15अभिभावकोंमेंहंगामेंकानेतृत्वरूहुलभगतकररहेथेजिनमेंविद्यालयकेबालसंसदकेअध्यक्षअंकनकुमारऔरसदस्यभीशामिलहोगएथे।’
नित्य की तरह दूसरे दिनभीप्रार्थना
के पश्चात ऑफिस में टेबल टॉकिंग चल रहा था। विषय था कि ड्रेस के संबंध में हुए
घोटाले से कैसेनिपटा जाय।आजभोलाभी बैठ गया।बिकरमणविशेषपरामर्श देते हुए कहा कि 3--4 कंपनी का ड्रेस सेलेबल
हटाकर बाल संसद के सदस्यों को सेलेक्ट
करने के लिए कहा जाए।
अकरमण–हाँभई,यह बिल्कुल सही ट्रिक है।
उमर - और हां कार्यालय में कोई मत रहिए।सभी अपने-अपने क्लास के
लिएचलिए।हो सकता है, कोईशिक्षकबच्चों
को आंख मार दे।
बिकरमण- केवलअकरमणचाऔर मिहिरसर ही रहेंगे।और किसी को
रहना ठीक नहीं रहेगा।
अपने बचाव के पक्षधरों को समर्थन देते हुए
मिहिर ने भी हामी भर दी।भोला मन ही मन सोच रहा था कि इस विद्यालय के सभी शिक्षक फटे हुए केले की
भांति प्रधानाध्यापक की सिलाई में जुटे हुए दिख रहे हैं।उसने भी कह दिया –‘हाँभाई, यही ठीक रहेगा चलिए हम लोग, अपने अपने क्लास।
सभी शिक्षक अपने-अपने क्लास को चले गए। ऑफिस
में मिहिर और अकरमण बैठे थे।
परन्तु
कपड़े का सेट उपलब्ध नहीं रहने के कारणसारा प्लान फेल हो गया।इसके ठीक दूसरे दिन
हंगामा करनेवालेपुनः विद्यालय आ धमके। कार्यालय में जमकर शोर मचाया।मिहिर को फटकार
लगाई।उसका मुंह सूख कर छोटा हो गया। हंगामा करने वाले मेंसे किसी ने हंगामे की
वीडियो बना ली।बचनभगत ने तो यहाँ तक कह दियाकि‘ यदि कपड़ा बांटा गया तो आग लगा दिया जाएगा।इसके
बादबचावपक्ष बिलकुलध्वस्तहो गया।’प्रबंधन समिति के अध्यक्ष
और प्रधानाध्यापक मिहिर अपने गुर्गों
के साथ,ब्रांडेड कंपनीटूटूल
और ड्यूलाईट कपड़ेकी व्यवस्थामेंलग गए थे।
एक सप्ताह के पश्चात कपड़े आ भी गए और बंटने भी
लगे थे।ऑफिस में चार शिक्षक उमर , अनल,बिकरमण और मिहिर बैठे थे ।घोटाले के पक्षधरबिकरमणनेउमर कुमारको
ताना मारते हुए कहा—सभी शिक्षकों कोकपड़े दिखादिए जाए ताकि फिर कोई हंगामा न हो जाए ।स्कूल में कैंची के नाम से
जाने पहचाने नाम वाले शिक्षक उमर ने कहा- सभी शिक्षकों को दिखा कर क्या कीजिएगा, अनल को दिखा दीजिएसर, वही
तो गांव वालों को बहकता है। गुस्से में तमतमाते हुए अनल ने तुरंत पलटवार किया- कौन कहता है कि मैंने गांव के लोगों को भड़काया है, प्रमाण दो वरना जूते से मारूंगा? उस समय उमर भींगी बिल्ली की तरहअनल की ओर देख
रहे थाऔर मिहिर चुपचाप बैठे उमर को देख रहा था। उमर कोकिसी का समर्थन नमिला था।
बातें शांत हो गई पर उमर को तो जूते................।
ड्रेस- कांड
अभी समाप्त नहीं हुआ था। भीतर ही भीतर आग सुलगीही थी। पता नहीं किस दिन फिर गांव के नवयुवक
विद्यालय प्रांगण में आ धमकेऔर आगेभड़कउठे।
64.
इसी
समय बायोमेट्रिक मशीन टैबलेट के वितरण और प्रशिक्षण का दौर चल रहा था ।शिक्षक
दिवस के दूसरे ही दिन सभी शिक्षकोंको प्रखंड मुख्यालय में बुलाया गया। उधवा मध्य
विद्यालय के शिक्षक भी आए थे । इस विद्यालय को तीन बायोमेट्रिक टैबलेट दिया गया ।
प्रधानाध्यापक मिहिर ने तीनों टैबलेट को रिसीभ किया। विद्यालय के तीन शिक्षक मिहिर
,भोला और उमर को दिया
जाना निश्चित हुआ।तीनों के नाम से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन आरंभ हुआ परंतु नेटवर्क पुअर
रहने के कारण रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया।मिहिर भी यही चाह रहे थे कि रजिस्ट्रेशन न
हो तो ठीक होगा क्योंकि रजिस्ट्रेशन हो जाने से बायोमेट्रिक उपस्थिति आरंभ हो जाएगी। इसके लिए उन्होंने भोला से
रिक्वेस्टभी कियाकि‘सर , अभी छोड़ दिया जाए
क्योंकि रजिस्ट्रेशन होने पर कल से ही बायोमेट्रिक उपस्थिति आरंभ करनी होगी’ , परंतु भोलाकार्यकेप्रति
प्रतिबद्धदिखे कि इस कार्य को अवश्य ही किया जाना चाहिए। इसमें विलंब नहीं होनी
चाहिए क्योंकि सरकार की यही अपेक्षा है।
मिहिर अपने बैग में तीनों टैबलेट भर लिए और
बीआरसी भवन से बाहर निकल गए। भोला भी अपनी बाइक में सवार हो रहे थे।बिकरमणसर
अभी-अभी आए ही थे और मिहिर के पास बगल में खड़े थे। भोला ने मिहिर को सजेस्ट किया।‘बी.पी.ओ.फटल भगत जी का नंबर
ले लीजिए। हम लोग अपने स्कूल में ही इसका रजिस्ट्रेशन कर लेंगे। ओटीपी फटलबाबू जी से मांग लेंगे। यहां आने की
जरूरत नहीं पड़ेगी।’इतना सुनते हीबिकरमण
ने भोला की ओर ताकते हुएऔर भिनभिनाते हुएजोर से चिल्लाया‘काहे माथा खराब करते हैं,बेसी माथा खराब मत कीजिए,समझे कि नहीं।’ भोला को बहुत बुरा लगा।बिकरमणकी अनावश्यकदखलीऔरवर्चस्व वादीइंट्री से।उबल
पड़े।बिकरमणको आड़ेहाथोंलेते हुएभोला मास्टर ने गरज कर जवाब दिया‘इसमें माथा खराब
करने जैसी कौन सी बात हो गई? माथा खराब आपका हो रहा है क्या? मैं मिहिर जी को
सजेस्ट कर रहाहूँ। बीआरसी आने की आवश्यकता नहीं है ।फटल जी के नंबर पर आए ओटीपी सेहम
लोग काम कर लेंगे।तो फिर ऐसी कौन-सी बात हो गई।आप ही का माथा खराब हो रहा है क्या? रांची केकांके
में भर्ती हो जाइए।
बिकरमण- समय आने दीजिए न, देखिएगा कौन रांची के कांके में भर्ती होता है।
यहबिकरमणद्वारा भविष्य में सहयोग न करने की धमकी थी।
भोला- समय सबका आता है
केवल भोला का थोड़े आएगा। समय आपका भी आएगा। समय की मार सबको लगती है ।भोला को अगर
समय मारेगा तो क्या आपको छोड़ देगा?
बिकरमणभोला का तेवर देखकर बिल्कुल खामोश हो गया।भोला उसी मूड में बीआरसी
भवन में घुस गए।फटलबाबूऔर बैजूआदि से कुछ बातें की, जिन्होंनेभोलाऔरबिकरमणकोझगड़तेऔर
चिल्लाते बीआरसी की खिड़कीसे देखा था।संघर्षऔर परिवर्तनकी डगरपर चलने वाले भोला की
बातों को सबने सुनी परंतु किसी ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की क्योंकि ये बाबू
लोग भी मिलीभगत कीड्यूटी निभा रहे थे।ये सब के सब भोला की अच्छाई और उच्चता को
अपने अहंकार के कारण स्वीकार नहीं कर पा रहे थे ।यही तो वह माननीय दुर्बलता है जिसके
वशीभूत होकर मनुष्य अच्छाई से
दूर हो जाता हैऔर जीवन मूल्य से वंचित रह जाता है।
भोला बाहर निकले, तोदेखामिहिरऔरबिकरमणनिकल गए थे।
बायोमेट्रिक के तर्ज पर उपस्थिति बनाने
सेबिकरमण जैसे शिक्षक कन्नी काटना चाह रहे थे। टालमटोल कर इससे दूरी बनाने केफेरमें
लगे थे।मिहिरभीयहीविचार रखता थापरन्तु बड़े सलीके सेऔर बिकरमणमुँहजोरी से।
इसी दिन
एकीकृत पारा शिक्षक बंधुओं ने बायोमेट्रिक हस्ताक्षर के माध्यम से उपस्थिति
से इनकारकरते हूएप्रस्तावपारित करइसकी
प्रति प्रखंडों को भेज दिया था।पारा शिक्षक बंधुओं की लंबे समय से मांग चल
रहे थी कि उन्हें समान काम के लिए समान वेतन दिया जाए,
परंतु सरकार इस संबंध में कोई उचित निर्णय नहीं ले रही थी। इससे इन लोगों के अंदर
काफी आक्रोश था और संघर्ष भी जारी था।यह बात भी बिल्कुल यथार्थ थी कि मात्र दसहजारमानदेयपर
कार्य करना बहुत ही मुश्किलहै।भोला के विद्यालय में भी 10 पारा शिक्षकइसी बात की
चर्चा को लेकर अक्सर उलझे रहते थे।बिकरमणने भोला से एक दफे यह कह भी दिया था ‘ आप
के कहने पर हम थोड़े कार्य कर सकेंगे , आपके समान हमें वेतन मिलता है क्या?’इस बात में भोला खामोश हो गए थे और तब से
पारा शिक्षक बंधुओं पर कोई हुक्मनहीं चलाते थे।पारा शिक्षक बंधुओं कीइसदीनावस्था के कारण शिक्षा का स्तर भी दिन-प्रतिदिन नीचे
गिरता जा रहाहै क्योंकि हर एक विद्यालय में इनकी संख्या सरकारी शिक्षकों की
अपेक्षा अधिक है।
नित्यकी भांतिभोलाकीनींद भोर3 बजे नींद टूट गईथी।‘समय आने दीजिए न, देखिएगा कौन रांची के कांके में भर्ती होता है।‘
बिकरमण की चेतावनी भरी यह डायलॉग भोला के मस्तिष्क में बार- बार कौंध रहा था।क्योंकिबिकरमणथातोमुहॅजोर
लेकिन कर्मठ भी कम नहीं था। विद्यालय की चाबी वही रखता था। अंतिम समय में विद्यालय
वही बंद करता था।अभावी था। कुछ लाभ के लिए वह यह सब करता था । चाहेस्थानांतरण प्रमाण पत्र में कुछ पैसे
कमाने की बात हो,चाहे संयोजिका से
मिलकर मिड डे मील के पैसे में कुछ घपले करने कीबात।इसी कमाई के लिए वह हेड मास्टर
का एक नंबर चमचा बना हुआ था और विद्यालय का एक एक्टिव टीचर । वह अपने निहित
स्वार्थ के चलते संचालित था।ऐसी स्थिति में उनके स्वार्थ में बाधा पड़ने पर वह
किसी भी हद तक जा सकता था।हेड मास्टर को सहयोग करने की बात तो दूर, वह उसका बहुत बड़ा बाधक
बनने की भी सामर्थ्य रखता था।हेड मास्टर मिहिर के बाद भोला का ही नंबर था, हेड मास्टर बनने का , और यही वजह था किबिकरमण
ने भोला को आने वाले समय की समस्या से अवगत करा रहा था या डर दिखा रहा था कि मेरे
बगैर आप चल नहीं सकेंगे। यदि आप मेरे मार्ग का रोड़ा बनेंगे तो आपको पागल बनना
पड़ेगा और रांची के कांके वाले पागलखाना में भर्ती होना पड़ेगा।अकरमणने तो एक बार
भोला के एक मित्र, कोलाबाड़ी के
हेडमास्टर को कह दिया था कि मैं जब तक रहूंगा भोला को एक हेड मास्टर नहीं होने दूंगा।अतः
भोला को अब यह एहसास होने लगा था कि मध्य विद्यालय उधवा जैसे स्कूल में उसे हेड
मास्टर नहीं बनना चाहिए । इसी में उनकी भलाई है। शांति मी है, क्योंकि वह अगर हेड मास्टर बनेंगे तो उन्हें
कठपुतली बनना कतई स्वीकार नहीं करेंगे और परिणाम यह होगा किजैसेएक शेर को सभी जंगली
कुत्ते वक्त कुवक्त नोचकर खा सकताहै, भोला को भी पागल बना कर छोड़ेगा। प्रजातंत्र मूर्खों का
शासन है , सभी मूर्ख जब एक हो जाएंगे तो , पंडित को चकमा अवश्य दे
देंगे।हीरा गुरु जी की कहानी उन्हेंयाद आने लगीजिसमें एक राजा के ऊपर सभीमतवाले
गांव वाले पत्थर और गालियां बरसा रहे थे।
दरअसल अपनी बुद्धि के कारण
मनुष्य कठिन विषयों को सरलता से समझ पाता है। बुद्धि बल से मनुष्य में सत्य-असत्य को जानने की
क्षमता रहती है और उसके मन में किसी प्रकार का संदेह नहीं रहता। बुद्धि द्वारा
व्यक्ति अपना अपने समाज और राष्ट्र का कल्याण कर सकता है।गीता में कहा गया
हैविषयों का चिंतन करने वाले मनुष्यों की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है,आसक्तिसे कामना उत्पन्न
होती है और कामना में बिघ्नपड़ने पर क्रोध उत्पन्न होता है।क्रोधसे मूढ़ता उत्पन्न
होती है यानी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाने सेस्मरणविलुप्त हो
जाता है अर्थात्ज्ञानशक्तिका नाश हो जाता हैऔर बुद्धि अथवा स्मृति के विनाश होने
पर सब कुछ नष्ट हो जाता है।
भोला इन्हीं तथ्यों का चिंतन
करता हुआ अपने बुद्धिबल को पवित्र कर रहा था और विद्यालय के किसी भी बखेड़े मेंन
पड़ केवल बच्चों को सजाने-संवारने, पढ़ाने-लिखाने पर ही ध्यानदियाकरता था।इस कार्य में उनकी
आंतरिकअभिरुचिभी काफी थीऔरवह अपनेइस संस्कारको और अधिकनिखारनेमेंलगे थे ।वह अपनी
इस अभिरुचि के फलस्वरूपबच्चों में काफी लोकप्रिय भी थे ।इससेव्यक्तिगत साधनामेंलाभ
होता था।इस लाभसे वंचितहोना परमार्थको बिगाड़नेके समानही है।इसी को कहते हैं अपनी पहरेदारी।विद्वानों
ने इसी को सचेत होना कहा है।यहीवह तप है जिससे मनुष्यकी
बुद्धि पवित्रहोती हैऔरइससेसत्कर्मकासंग्रहभीहोताहै।विद्यालय का प्रधान चाह कर भी पढ़ाई में समय नहीं दे सकते
हैं , इसके अलावे वे अक्सर कलह-कोलाहल से भी घिरेभी रहते हैं,; इसलिए भीभोलाकोहेडमास्टरीनागवार लगने लगा था।इससे
उन्हेंविरक्तिहो रही थी।पूर्वप्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी सह एरिया आफिसर बोधन
कुमार राय ने भोला से एक बार कहा भी था कि ‘भोला जी आपके जैसे शिक्षक को हेड
मास्टर नहीं बनना चाहिए। पढ़ाई-लिखाने में जो स्वर्गीय आनंद है,वह आनंद हेड मास्टरी में
नहीं है।हेडमास्टरी फूलों का सेज नहीं, कांटों का ताज है।’ आजभोला को उनकी बातें अक्षरशः सत्य
प्रतीत होने लगी थी।इन्हींआचार- विचारोंकेफलस्वरूप आजकल कुछ बच्चे इनका चरण स्पर्श भी किया
करते थे।