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मेरा प्यार कह रहा है,मैं तुझे खुदा बना दूँ

17 सितम्बर 2018

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featured imageमेरा प्यार कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ ***************************************** विडंबना यह है कि मन के सौंदर्य में नहीं बाह्य आकर्षक में अकसर ही पुरुष समाज खो जाता है। पत्नी की सरलता एवं वाणी की मधुरता से कहीं अधिक वह उसके रंगरूप को प्राथमिकता देता है ********************************************* मुझे देवता बनाकर, तेरी चाहतों ने पूजा , मेरा प्यार कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ, तेरी ज़ुल्फ़ फिर सवारूँ तेरी माँग फिर सजा दूँ , मेरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूँ... मेरा तब का पसंदीदा गीत है यह , जब स्वप्नों के हिंडोले में मचलता और उड़ानें भरता था। हर जवां दिल की कुछ तो ख्वाहिशें होती हैं न .. सो, हरितालिका तीज ,जो अभी पिछले ही दिनोंं बीता है, सुहागिन स्त्रियों के सोलह श्रृंगार देख स्मृतियाँ पुनः एक बार बचपन से लेकर जवानी तक की अनेक यादों, वादों और बातों में अटकती-भटकती रहीं । हाँ, और भी कुछ याद हो आया कि अपने पुरुष साथी को सम्मान में ये स्त्रियाँ अकसर ही कुछ यूँ कह दिया करती हैं, " तुम तो मेरे भगवान हो ।" पर सच तो यह है कि पति परमेश्वर तो पुरुष तब ही बनता है, जब विधिवत विवाह हो जाए। अन्यथा दो दिलों का रिश्ता कच्चे धागे से भी नाजुक होता है । कल तक जो साथ जीने- मरने का कसम खाते थें, मनमीत कहलाते थें, यूँ अनजान हो जाते हैं कि जुबां पर नाम भी भला कहाँ याद रहता है उनके। एक पत्रकार के तौर पर मेरा अपना अनुभव यही है कि यौवन की दहलीज़ पर जब भी दो प्यार करने वाले पकड़े जाते हैं। गुल पिंजरे (जेल) में होता है, तो बुलबुल डोली चढ़ बाबुल को छोड़ साजन की हो लेती है। गृहस्थी बस गई, बच्चे हो गये , वह भी अपने परिवार की हो गई। उधर, बेचारे गुल की पहचान को इस भद्रजनों के समाज में दुष्कर्मी, अपहर्ता और भी न जाने किस- किस रुप में बदल दिया जाता । उसके इस दर्द को यह समाज भला क्या समझ पाएगा। उसे तो बस दण्ड देना आता है, कभी - कभी मृत्यु दण्ड तक। मैं इसलिये यह कह रहा हूँ कि ऐसे किसी संबंध में कोई देवता कह भी दें, तो प्रेम के उमंग में धोखा न खा जाएं आप। प्यारे यह दुनिया है , जैसा दिखती है, वैसा है बिल्कुल नहीं। यदि नहीं जानते हो तो राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर देख आओ न और उस राजू से पूछों कि दिल की हसरतों ने उसे किस रंगमंच पर ला खड़ा किया ..? जाने कहाँ गए वो दिन, कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछाएंगे, चाहे कहीं भी तुम रहो, चाहेंगे तुमको उम्र भर तुमको ना भूल पाएंगे .... उसके इस गीत में न जाने कितने दर्द छुपे हैं, न यह जमाना समझ सका , न ही वे मीत ! बस सब ताली पिटते रहें। तो तमाशबीनों में वे बुलबुल भी शामिल रहीं, जिन्हें देख कभी गुल खिलखिला उठता था। जिन्हें उस रंगमंच पर वह अपने टूटे दिल को छुपा तमाशा दिखा रहा था। एक था गुल और एक थी बुलबुल दोनो चमन में रहते थे ... ऐसी कहानियों को अकसर झूठ होनी ही है। प्रेम में वियोग से अधिक पीड़ा उस छल से होता है ,जिससे इंसान अनभिज्ञ रहता है। जिस वेदना से उभरना आसान तो नहीं होता है , एक सच्चे प्रेमी के लिये , जो उस तिरस्कार को सहता है । यह सब इतना सहज न होता है। इस दिल के आशियान में बस उनके ख्याल रह गये। तोड़ के दिल वो चल दिये, हम फिर अकेले रह गये ... यह जख्म जो उसके नाजुक दिल के लिये नासूर सा बना रहता है कि कल तक जो देवता था , आज मानव भी नहीं रहा वह। फिर भी समाज में सिर उठा कर चलना है, सो हर ग़म को सीने में छुपाये रखना है। कहीं किस्मत उसे फिर रास्ते का पत्थर न बना दे , यह भय उसके जीवन में बहार लाने ही नहीं देती। भले ही दिल की यह लाख पुकार होती रहे ... कोई होता जिसको अपना, हम अपना कह लेते यारों, पास नहीं तो दूर ही होता, लेकिन कोई मेरा अपना ... फिर भी इस छलावे से आहत गुल अब वह नादान आशिक तो नहीं रहता है न ... उसे पता है कि शाम कितनी भी मस्तानी क्यों न हो, काली रात का आना तय है। उसका वह कोमल मन कोरा कागज या खाली दर्पण भी कहाँ रह गया होता है। अनगिनत उपहासों से वह गुजरा होता है, जीवन के उस डगर पर , जहाँ राह न सूझ रही होती है। यह जो भटकाव है जीवन का , उसे ही दूर करता है दाम्पत्य जीवन। जहाँ , शीघ्र ही सब कुछ खोने का भय नहीं होता है। और यदि संग में स्नेह का बंधन है , तो फिर .. मोरा गोरा अंग लइ ले मोहे शाम रंग दइ दे , छुप जाऊँगी रात ही में मोहे पी का संग दइ दे .. ऐसे ही मधु गीतों की झंकार होती है जीवन में और यह तीज पर्व है न जो उसका माधुर्य भी तो यही है। पार्वती ने अपने प्रेम(तप) से विरक्त शिव को फिर से वही जन कल्याणकारी महादेव बना ही तो दिया न। शिव पुत्र देवताओं के कष्टों का हरण जो किया। निर्जला व्रत कितना कठिन होता है, इन सुहागिन स्त्रियों का .. अपने पति को परमेश्वर मान उसके दीर्घायु के लिये वे यह सब करती हैं । चुटकी भर सिंदूर की सलामती के लिये वे अर्द्धांगिनी होने का वह हर कर्तव्य पूरा करती हैं, इस दिन जहाँ तक उनका सामर्थ्य है। सुबह गंगा स्नान ,पुनः सायं स्नान के पश्चात शिव-पार्वती का विधिवत पूजन और अगले दिन सुबह फिर से गंगा स्नान। फिर भी मैंने इस दिन इन स्त्रियों को कभी भी यह कहते नहीं सुना कि वे अनावश्यक अपने शरीर को कष्ट दे रही हैं। भले ही उनका पति कितना भी दुष्ट प्रवृत्ति का क्योंं न हो, इस दिन वह न दानव है ना ही मानव, वह तो उनका परमेश्वर है। सचमुच नारी में ही वह सामर्थ्य है कि वह पुरुष को देवता बना सके... और इस दिन चाहे जैसे भी हो कुछ तो देवगुण (देवत्व) इन पति परमेश्वर में जागृत हो ही जाता है। वे व्रती पत्नियों के मनुहार में एक-दो दिन पहले से ही लगे रहते हैं। गुझिया बनाने की सामग्री लाते हैं। नयी साड़ी और अन्य श्रृंगार सामग्री खरीदने के लिये अपनी अर्धांगिनी को सम्पूर्ण अधिकार देते हैं। व्रत वाले दिन के पूर्व संध्या पर वे सूतफेनी एवं खजला मिठाई लेकर आते हैं। जब वाराणसी में था तो मलाई भी लाकर दिया जाता था। वहीं जिस दिन उन्हें व्रत का पारण होता है, सुबह पांच बजे से ही पति देव स्वयं मिष्ठान के प्रतिष्ठान पर जलेबा लेने के लिये डट जाते हैं। स्वयं अपने हाथों से जल ग्रहण करवाते हैं। यूँ कहें कि वे अर्द्धनारीश्वर हो जाते हैं । कोलकाता में था , तो बीमार माँ को बाबा के लाख मनाही के बावजूद व्रत करते देखा था। कच्ची मिट्टी के शंकर- पार्वती की मूर्ति का भव्य श्रृंगार , मण्डप आदि बनाने में तो मैं माहिर था ही, उस छोटी अवस्था में भी। अपने इलेक्ट्रिकल लाइट वाले शंकर -पार्वती और उस समय झिलमिलाते हुये सुनहरे रंग के बिजली से जलने वाले दीपक को भी लाकर रख देता था। इन कार्यों में मेरी रूचि देख माँ खुश हो कहा करती थी कि मुनिया बस तेरी शादी कर यह खानदानी अमानत ( नाक में पड़े हीरे के कील ) उसे सौंप दूं, मेरी सेवा करे न करे वह , पर तू तो जरूर करेगा न रे ... इससे अधिक और शब्द नहीं रहता मेरे लिये और लेखन कठिन हो जाता है। नियति को यह सब मंजूर नहीं था। अतः हम बिछुड़ गये ,बिखर गये ,फिर भी वह तीज पर्व याद है मुझे। कोई स्मृति दोष नहीं है यहाँ। जीवन का यह सत्य है कि यदि आप समाज में हैं, तो आपके सद्गुण आपकों " संत " तो बना सकता है , परंतु " देवता " बनने के लिये अर्धांगिनी का स्नेह प्राप्त करना होगा। यह पत्नी ही होती है कि थाली में भोजन का स्वाद पता चलता है । वस्त्र जो हम पहने हैं, स्वच्छ हैं कि नहीं..केश क्यों बढ़ा है.. खांसी क्यों आ रही है ? तमाम सवालों की झड़ी सी लगा कर रख देती हैं वे ? ? माँ थीं तो बाबा जैसे ही बाहर निकलते थें , दोनों के ही जुबां पर श्री गणेश जी का सम्बोधन होता था। यह हम सभी को संस्कार में मिला था। हाँ , मुझे ईश्वर में कोई रुचि नहीं रह गई, अतः मैंने इस शुभ शब्द का त्याग कर दिया। विडंबना यह है कि मन के सौंदर्य में नहीं बाह्य आकर्षक में अकसर ही पुरुष समाज खो जाता है। पत्नी की सरलता एवं वाणी की मधुरता से कहीं अधिक वह उसके रंगरूप को प्राथमिकता देता है। और बावली औरतें फिर भी अपने देवता के लिये अपना प्यार छलकाते रहती हैं... आजा पिया तोहे प्यार दूँ , गोरी बैयाँ तोपे वार दूँ। किसलिए तू इतना उदास,सुखें सुखें होंठ, अँखियों में प्यास। किसलिए किसलिए ? (शशि)/ अपनी बात

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रेणु

रेणु

प्रिय शशि भाई -- बहुत ही सुंदर लेख लिखा आपने दाम्पत्य जीवन पर | सबसे ख़ुशी की बात है कि ब्लॉग जगत के सभी सशक्त हस्ताक्षरों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है इस सुंदर लेख पर | दाम्पत्य जीवन में जो समर्पित भाव से साथी के प्रति प्रतिबद्ध रहता है वही देवत्व का अधिकारी होता है | और ये हमारा सनातन संस्कार है जो हर माँ अपनी बेटी को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में देती है कि तुम्हारा पति तुम्हारा देवता है | मुझे भी लेख के बहाने से एक बात याद आई |पन्द्रह साल पहले मेरे पिताजी के कैंसर से आकस्मिक निधन के बाद मेरी माँ ने बड़ी वेदना से कहा कि हर नारी के दो भगवान होते हैं |एक तो जो सबका भगवान है जो परोक्ष है और कुछ भी देता है कभी हिसाब नहीं मांगता -तो दूसरा प्रत्यक्ष भगवान है जो पति के रूप में मिलता है -- वो भी पत्नी को सबकुछ सौपकर कभी हिसाब नहीं मांगता | शायद यही सोच दाम्पत्य जीवन में परस्पर विश्वास को चरमोत्कर्ष पर ले जाती है और सफल बनाती है | पर बढ़ते भौतिकवाद और सोशल मीडिया के विस्तार के बाद जैसे हर इंसान को दैहिक सौन्दर्य के आधार पर परखने की परम्परा चल पडी है | पर समझ में नहीं आता सुन्दरता ने दुनिया को क्या दिया ? संसार तो गुणों से चल रहा है - सुन्दरता से नहीं | क्षमा प्रार्थी हूँ देर से आ पायी | आपको हार्दिक शुभकामनायें इस मर्मस्पर्शी लेख के लिए |

20 सितम्बर 2018

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व्याकुल पथिक

11 जुलाई 2018
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इन रस्मों को इन क़समों को इन रिश्ते नातों को सुबह दो घंटे अखबार वितरण और फिर पूरे पांच घंटे मोबाइल के स्क्रीन पर नजर टिकाये आज समाचार टाइप करता रहा। वैसे, तो अमूमन चार घंटे में अपना यह न्यूज टाइप वाला काम पूरा कर लेता हूं, परंतु आज घटनाएं अधिक रहीं । ऊपर से प्रधानमंत्री के दौरे पर भी कुछ खास तो ल

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व्याकुल पथिक

12 जुलाई 2018
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रुठी लक्ष्मी नहीं छीन सकी तब हमारी खुशियाँ यदि हमारे पास संस्कार, शिक्षा और अपनों के प्रति समर्पण है ,तो अभावग्रस्त जीवन भी खुशियों से महक उठता है। सो, इसी कारण धन की चाहे कितनी भी कमी क्यों न रही हो , फिर भी परिवार के हम सभी सदस्य काफी खुशहाल थें , उन दिनों। म

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जीने की तुमसे वजह मिल गई है

13 जुलाई 2018
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"तुम आ गए हो नूर आ गया है नहीं तो चराग़ों से लौ जा रही थी जीने कि तुमसे वजह मिल गई है बड़ी बेवजह ज़िंदगी जा रही थी " कितना भावपूर्ण गीत है न यह ? उतनी ही खुबसूरती के साथ इसे लता जी ने किशोर दा के साथ गाया है। परस्पर प्रेम समर्पण है यहां। सो, बार - बार सुनने पर भी मन

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स्नेह बिन जीवन कैसा

15 जुलाई 2018
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स्नेह बिन जीवन कैसा

15 जुलाई 2018
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कर्म हमें महान बनाता है पर स्नेह इंसान तस्वीर तेरी दिल में जिस दिन से उतारी है फिरूँ तुझे संग ले के नए-नए रंग ले के सपनों की महफ़िल में तस्वीर तेरी दिल में... सचमुच तस्वीर दिल में उतारनी हो या फिर कागज पर , यह काम इतना आसान है नहीं । समर्पण, सम्वेदना एवं स्नेह से ही इसे आकर मिलता ह

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मन पछितैहै अवसर बीते

17 जुलाई 2018
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इस बार रविवार की छुट्टी मुझे नहीं मिल पाई, क्यों कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा का कवरेज जो करना था। सो, न कपड़े धुल सका और ना ही उनमें प्रेस ही कर पाया हूं। आराम करने की जगह इस उमस भरी गर्मी में शहर से कुछ दूर स्थित सभास्थल पर जाना पड़ा। इससे पहले वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी इसी मैद

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सच है दुनियावालों हम हैं अनाड़ी

18 जुलाई 2018
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(सचमुच हम पत्रकार बुझदिल हैं, जो अपने हक की आवाज भी नहीं उठा पाते हैं) "अमन बेच देंगे,कफ़न बेच देंगे जमीं बेच देंगे, गगन बेच देंगे कलम के सिपाही अगर सो गये तो, वतन के मसीहा,वतन बेच देंगे" पत्रकारिता से जुड़े कार्यक्रमों में अकसर यह जुमला सुनने को मिल ही जाता है औ

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चलते चलते मेरी ये बात याद रखना

21 जुलाई 2018
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ये भाई ! पापी पेट का सवाल है भीख मागों या कलम को असलहा बना डाका डालो । अपनी पत्रकारिता के सफर पर कुछ यूं गुनगुने का मन कर गया। " ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं" अब जब इस जिंदगी के सफर की पहेलियों से उभर कर

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प्यारे दुनिया ये सर्कस है और कोड़ा जो किस्मत है

22 जुलाई 2018
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गीतसम्राट गोपाल दास नीरज की स्मृति में एक श्रद्धांजलि ---------------------------------------------------------"दुनिया ये सर्कस है। बार-बार रोना और गाना यहाँ पड़ता है। हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है। " सचमुच कितनी बड़ी बात कह गये नीरज जी। सो, मैं उनकी इसी गीत में अपने अस्तित्व को तलाश रहा हूं - " ऐ

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सावन के झूले पड़े तुम चले आओ

24 जुलाई 2018
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सावन के झूले पड़े तुम चले आओ दिल ने पुकारा तुम्हें तुम चले आओ तुम चले आओ... रिमझिम बारिश के इस सुहावने मौसम में अश्वनी भाई द्वारा प्रेषित इस गीत ने स्मृतियों संग फिर से सवाल- जवाब शुरू कर दिया है। वो क्या बचपना था और फिर कैसी जवानी थी। ख्वाब कितने सुनहरे थें ,यादें कितनी सताती हैं। अकेले में यूं

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बाबू यह दुनिया एक जुगाड़ तंत्र है

26 जुलाई 2018
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न न्याय मंच है, न पंच परमेश्वर आज भी सुबह बारिश में भींग कर ही अखबार बांटना पड़ा। सो, करीब ढ़ाई घंटे लग गये। वापस लौटा तो बुखार ने दस्तक दे दी, पर विश्राम कहां पूरे पांच घंटे तक मोबाइल पर हमेशा की तरह समाचार संकलन और टाइप किया। तब जाकर तीन बजे फुर्सत मिली। मित्रों

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गुरु का ज्ञान नहीं उनकी सरलता चाहता हूं

28 जुलाई 2018
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गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं । भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि आज गुरु पूर्णिमा है। महात्मा और संत को लेकर मेरा अपना चिंतन है। यदि गुरु से अपनी चाहत की बात कहूं तो, मुझे गुरु से ज्ञान नहीं चाहिए, विज्ञान नहीं चाहिए, दरबार नहीं चाहिए एवं भगवान भी नहीं चाहिए। मैं तो

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व्याकुल पथिक

29 जुलाई 2018
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कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल एक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल -------------------------------------------- "किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार किसीके वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है " वॉयस आफ गॉड के इस गाने में छिपे संदेश को आत्मसात करने का प्

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कबीर की वाणी में है हमारा आत्मबल

30 जुलाई 2018
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महान समाज सुधारक संत कबीर को लेकर मेरा अपना चिंतन है। कबीर की वाणी में मुझे बचपन से ही आकर्षण रहा है । जब छोटा था, तो विषम आर्थिक परिस्थितियों में पापा (पिता जी) अकसर ही कहा करते थें - " रुखा सुखा खाई के ठंडा पानी पी। देख पराई चुपड़ी मत ललचाओ जी।।" जिसे सुन हम सभी अपनी सारी तकलीफों और श

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अंधेरे में जो बैठे हैं,नज़र उन पर भी कुछ डालो

1 अगस्त 2018
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जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं ये पुरपेच गलियाँ, ये बदनाम बाज़ार ये ग़ुमनाम राही, ये सिक्कों की झन्कार ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं दशकों पूर्व एक फ

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उपदेशक बनने से पहले बनें कर्मयोगी

2 अगस्त 2018
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“विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।" मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उनका यह उद्घोष मुझे फिर से याद हो आया। सो, मैंने अपने ब्लॉग पर एक बार दृष्टि डाली। अंतरात्मा से सवाल पूछा कि संघर्ष के प्रतीक, जीवन एवं अपनी रचना दोनों से ही और हम जैसों की लेखन शक्ति के ऊर्जा स्रोत के कथन

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एक कश्ती सौ तूफां, जाएं तो जाएं कहां

3 अगस्त 2018
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"समझेगा, कौन यहाँ दर्द भरे, दिल की ज़ुबां रुह में ग़म, दिल में धुआँ जाएँ तो जाएँ कहाँ... एक कश्ती, सौ तूफां " अपनों से जब वियोग हो जाता है, शरीर जब साथ छोड़ने लगता है, प्रेम जब धोखा देता है, कर्म जुगाड़ तंत्र में उपहास बन जाता है, लक्ष्मी जब रूठ जाती है, पथिक जब राह भटक जाता है, जब आत्मविश्

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सभी को देखो नहीं होता है नसीबा रौशन सितारों जैसा

6 अगस्त 2018
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सभी को देखो नहीं होता है नसीबा रौशन सितारों जैसा सच भले ही सूली हो और जुगाड़ तंत्र सिंहासन, फिर भी.. ------------------ शशि/ अपनी बात --------------- " एक बंजारा गाए, जीवन के गीत सुनाए हम सब जीने वालों को जीने की राह बताए ज़माने वालो किताब-ए-ग़म में खुशी का कोई फ़साना ढूँढो हो ओ ओ ओ ... आँखों में

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ना घर तेरा ना घर मेरा , चिड़िया रैन बसेरा

8 अगस्त 2018
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" माटी चुन चुन महल बनाया, लोग कहें घर मेरा । ना घर तेरा, ना घर मेरा , चिड़िया रैन बसेरा । " बनारस में घर के बाहर गली में वर्षों पहले यूं कहे कि कोई चार दशक पहले फकीर बाबा की यह बुलंद आवाज ना जाने कहां से मेरी स्मृति में हुबहू उसी तरह से पिछले दिनों फिर से गूंजने लगी। कैसे भागे चला जाता थ

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जहां में ऐसा कौन है कि जिसको ग़म मिला नहीं

11 अगस्त 2018
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दुख और सुख के रास्ते, बने हैं सब के वास्ते जो ग़म से हार जाओगे, तो किस तरह निभाओगे खुशी मिले हमें के ग़म, खुशी मिले हमे के ग़म जो होगा बाँट लेंगे हम जहाँ में ऐसा कौन है कि जिसको ग़म मिला नहीं इ

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ऐ मेरे प्यारे वतन, तुझ पे दिल कुर्बान

13 अगस्त 2018
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ऐ मेरे प्यारे वतन, तुझ पे दिल कुर्बान ------ सवाल यह है कि तिरंगे की आन बान और शान की सुरक्षा के लिये हमने क्या किया ------ एक बार बिदाई दे माँ घुरे आशी। आमी हाँसी- हाँसी पोरबो फाँसी, देखबे भारतवासी । ------- अमर क्रांति दूत खुदीराम बोस की शहादत से जुड़ा यह गीत, मैंने राष्ट्रीय पर्व पर कोलकाता

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यादों के झरोखे में तुझको बैठा कर रखूंगा अपने पास

16 अगस्त 2018
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यादों के झरोखे में तुझकों बैठा रखूंगा अपने पास नाग पंचमी पर याद आया अपना भी बचपन ------------------------------------------------------------------ सुबह जैसे ही मुसाफिरखाने से बाहर निकला , "ले नाग ले लावा " बच्चों की यह हांक चहुंओर सुनाई पड़ी। मीरजापुर में इसी तरह की तेज आवाज लगाते गरीब बच

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बाधाएं आती हैं आएं, कदम मिला कर चलना है

18 अगस्त 2018
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बाधाएं आती हैं आएं, कदम मिलाकर चलना है **************** अटल जी ऐसे राजनेता रहें , जिनका कर्मपथ अनुकरणीय है। उनके सम्वाद में कभी भी उन्माद की झलक नहीं दिखी *************************** राजनीति की यह दुनिया जहां मित्र कम शत्रु अधिक हैं । उसमें ऐसा भी एक मानव जन्म लेगा, जिसके निधन पर हर कोई नतमस

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साथी हाथ बढ़ाना ...

22 अगस्त 2018
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साथी हाथ बढ़ाना ... एक अकेला थक जाएगा , मिलकर बोझ उठाना ********************************************** पत्रकारिता में अपनों द्वारा उपेक्षा दर्द देती है, लेकिन गैरों से मिला स्नेह तब मरहम बन जाता है ********************************************* "आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख़

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जिंदा है जो इज्ज़त से , वो इज्ज़त से मरेगा

24 अगस्त 2018
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सुबह सड़कों पर एक जीवन संघर्ष दिखता है, इबादत, समर्पण और कर्मयोग दिखता है -------------------------------------------------------------------- " दुनियाँ में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन हैं अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा गिर गिर के मुसीबत में संभलते ही रहेंगे जल जाये मगर आग प़े चलते ही रहेंगे...."

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अपने पे हँस कर जग को हँसाना , ग़म जब सताये सीटी बजाना

28 अगस्त 2018
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परिश्रम यदि हमने निष्ठा के साथ किया है, तो वह कभी व्यर्थ नहीं जाता। भले ही कम्पनी की नजरों में हम बेगाने हो, तब भी समाज हमारे श्रम का मूल्यांकन करेगा। किसी को धन , तो किसी को यश मिलेगा । **************** मिसाइल मैन डा0 एपीजे अब्दुल कलाम का एक सदुपदेश पिछले दिनों सोशल मीडिया पर पढ़ा

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एक इंसान हूँ मैं तुम्हारी तरह

31 अगस्त 2018
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.. कबाड़ बटोरते इन बच्चों का स्वाभिमान देखें, इनका रूप रंग नहीं -------------------- कभी आपने अपनी गलियों में या फिर सड़कों पर बिखरे कूड़ों के ढ़ेर में से कबाड़ बटोरती महिलाओं को देखा है , नहीं देखा , तो दरबे से बाह

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एक अकेला इस शहर में, आशियाना ढूंढता है

3 सितम्बर 2018
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एक अकेला इस शहर में,आशियाना ढूँढता है *********************************** मैं कुछ ठीक से समझ नहीं पा रहा हूँ कि ये यादों की पोटली मुझे संबल प्रदान करती है या जंजीर बन मेरे पांवों को जकड़ी हुई है यह **************************** " एक अकेला इस शहर में,रात में और दोपहर में आब-ओ-दाना ढूँढता है, आशिय

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हार के ये जीवन, प्रीत अमर कर दी

4 सितम्बर 2018
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हार के ये जीवन , प्रीत अमर कर दी *************************** " तेरे मेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना जैसे बहार आने पर, तय है फूल का खिलना ओ मेरे जीवन साथी..." यौवन की डेहरी पर अभी तो इस युगल ने ठीक से पांव भी नहीं रखा था। वे पड़ोसी थें, अतः बाली उमर में ही प्रेम पुष्प खिल उठा। बसंत समीर को कितने

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मेरे खुदा कहाँ है तू ,कोई आसरा तो दे

10 सितम्बर 2018
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मेरे खुदा कहाँ है तू , कोई आसरा तो दे ****************************** साहब ! यह जोकर का तमाशा नहीं , नियति का खेल है। हममें से अनेक को मृत्यु पूर्व इसी स्थिति से गुजरना है । जब चेतना विलुप्त हो जाएगी , अपनी ही पीएचडी की डिग्री पहचान न आएँगी और उस अंतिम दस्तक पर दरवाजा खोलने की तमन्ना अधूरी रह जाएगी।

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विलायती बोली-बनावटी लोग

14 सितम्बर 2018
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विलायती बोलीः बनावटी लोग ****************************************** हमारे संस्कार से जुड़े दो सम्बोधन शब्द जो हम सभी को बचपन में ही दिये जाते थें , " प्रणाम " एवं " नमस्ते " बोलने का , वह भी अब किसमें बदल गया है, इस आधुनिक भद्रजनों के समाज में... *******************************************

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मेरा प्यार कह रहा है,मैं तुझे खुदा बना दूँ

17 सितम्बर 2018
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मेरा प्यार कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ ***************************************** विडंबना यह है कि मन के सौंदर्य में नहीं बाह्य आकर्षक में अकसर ही पुरुष समाज खो जाता है। पत्नी की सरलता एवं वाणी की मधुरता से कहीं अधिक वह उसके रंगरूप को प्राथमिकता देता है ****************************************

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किसी का दर्द मिल सके , तो ले उधार ...

22 सितम्बर 2018
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किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार ****************************** अब देखें न हमारे शहर के पोस्टग्रेजुएट कालेज के दो गुरुदेव कुछ वर्ष पूर्व रिटायर्ड हुये। तो इनमें से एक गुरु जी ने शुद्ध घी बेचने की दुकान खोल ली थी,तो दूसरे अपने जनरल स्टोर की दुकान पर बैठ टाइम पास करते दिखें । हम कभी तो स्वयं से पूछे क

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अपने पे भरोसा है तो एक दाँव लगा ले..

25 सितम्बर 2018
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अपने पे भरोसा है तो एक दाँव लगा ले...***********************पशुता के इस भाव से आहत गुलाब पंखुड़ियों में बदल चुका था और गृह से अन्दर बाहर करने वालों के पांव तल कुचला जा रहा था। काश ! यह जानवर न आया होता, तो उसका उसके इष्ट के मस्तक पर चढ़ना तय था। पर, नियति को मैंने इतना अधिकार नहीं दिया है कि वह मु

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ऐसा सुंदर सपना अपना जीवन होगा ...

26 सितम्बर 2018
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ऐसा सुंदर सपना अपना जीवन होगा *************************** मैं तो बस इतना कहूँगा कि यदि पत्नी का हृदय जीतना है , तो कभी- कभी घर के भोजन कक्ष में चले जाया करें बंधुओं , पर याद रखें कि गृह मंत्रालय पर आपका नहीं आपकी श्रीमती जी का अधिकार है। रसोईघर से उठा सुगंध आपके दाम्पत्य जीवन को निश्चित अनुराग से भ

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व्याकुल पथिकः

29 सितम्बर 2018
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आपके कर्मों की ज्योति अब राह हमें दिखलायेगी-----------------------------------------कुछ यादें कुछ बातें, जिनकी पाठशाला में मैं बना पत्रकार***************************एक श्रद्धांजलि श्रद्धेय राजीव अरोड़ा जी को***********************किया था वादा आपने कभी हार न मानेंगे ,बनके अर्जुन जीवन रण में जीतेंगे हा

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ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ लेले रे

30 सितम्बर 2018
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ओ दूर के मुसाफ़िर हम को भी साथ ले ले रे******************** मैं छोटी- छोटी उन खुशियों का जिक्र ब्लॉग पर करना चाहता हूँ, उन संघर्षों को लिखना चाहता हूँ, उन सम्वेदनाओं को उठाना चाहता हूँ, उन भावनाओं को जगाना चाहता हूँ, जिससे हमारा परिवार और हमारा समाज खुशहाली की ओर बढ़े । बिना धागा, बिना माला इन बिख

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गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा, हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा

1 अक्टूबर 2018
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गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा , हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा********************************आज रविवार का दिन मेरे आत्ममंथन का होता है। बंद कमरे में, इस तन्हाई में उजाला तलाश रहा हूँ। सोच रहा हूँ कि यह मन भी कैसा है , जख्मी हो हो कर भी गैरों से स्नेह करते रहा है।*************

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जागते रहेंगे और कितनी रात हम..

4 अक्टूबर 2018
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जागते रहेंगे और कितनी रात हम ... ************************सच कहूँ, तो मेरा अब तक का अपना चिन्तन जो रहा है, वह यह है कि पुरुष व्यर्थ में श्रेष्ठ होने के दर्प में जी रहा है ,क्यों कि वह नारी ही जो अपने प्रेम, समर्पण और सानिध्य से उसे सम्पूर्णता देती है। यहाँ उसका सहज कर्म योग है।**********************

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इस्तीफा जो नज़ीर न बना...

6 अक्टूबर 2018
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इस्तीफा जो नज़ीर न बना ..( बातें, कुछ अपनी- कुछ जग की ) ************************* सोच रहा हूँ कि जिस नज़ीर की बात उस समय शीर्ष पर स्थित राजनेता कर रहे थें। उनके उस चिन्तन का क्या हश्र हुआ ,इस आधुनिक भारत में ..? क्या आज शीर्ष पर बैठें राजनेता, अधिकारी से लेकर परिवार का मुखिया तक किसी भी मामले में

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माँ, महालया और मेरा बाल मन

7 अक्टूबर 2018
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माँ , महालया और मेरा बाल मन...************************** आप भी चिन्तन करें कि स्त्री के विविध रुपों में कौन श्रेष्ठ है.? मुझे तो माँ का वात्सल्य से भरा वह आंचल आज भी याद है। ****************************जागो दुर्गा, जागो दशप्रहरनधारिनी, अभयाशक्ति बलप्रदायिनी, तुमि जागो... माँ - माँ.. मुझे

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कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

12 अक्टूबर 2018
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कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है..******************** पुरुष समाज में से कितनों ने अपनी अर्धांगिनी में देवी शक्ति को ढ़ूंढने का प्रयास किया अथवा उसे हृदय से बराबरी का सम्मान दिया..? शिव ने अर्धनारीश्वर होना इसलिये तो स्वीकार किया। पुरुष का पराक्रम और नारी का हृदय यह किसी कम्प्यूटर के हार्डवेय

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जब किसी से गिला रखना

14 अक्टूबर 2018
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जब किसी से कोई गिला रखना ************************ यहाँ मैं गृहस्थ, विरक्त और संत मानव जीवन की इन तीनों ही स्थितियों को स्वयं की अपनी अनुभूतियों के आधार पर परिभाषित करने की एक मासूम सी कोशिश में जुटा हूँ। *************************मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नह

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जब तक मैंने समझा जीवन क्या है , जीवन बीत गया..

17 अक्टूबर 2018
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जब तक मैंने समझा जीवन क्या है ,जीवन बीत गया...********************************रावण का पुतला दहन हम नहीं भूले हैं। लेकिन, भ्रष्टाचार, अनाचार और कुविचार से ग्रसित हो हम

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है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर ..

21 अक्टूबर 2018
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है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर... ************************मैं और मेरी तन्हाई के किस्से ताउम्र चलते रहेंगे , जब तक जिगर का यह जख्म विस्फोट कर ऊर्जा न बन जाए , प्रकाश बन अनंत में न समा जाए।***************************(बातेंःकुछ अपनी, कुछ जग की)कल सुबह अचानक फोन आया ..अंकल! महिला अस्पताल में पापा ने आ

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वसुधैव कुटुम्बकम का दर्पण यूँ कैसे चटक गया...

22 अक्टूबर 2018
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वसुधैव कुटुम्बकम का दर्पण यूँ क्यों चटक गया..********************बड़ी बात कहीं उन्होंने ,यदि हम इतना भी त्याग नहीं कर सकते तो आखिर फिर क्यों दुहाई देते हैं वसुधैव कुटुम्बकं की ? शास्त्र कहते हैं कि आदर्श बोलते तो है पर उसका पालन नहीं करते तो पुण्य क्षीण होता है ।****************गुज़रो जो बाग से तो दु

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वो जुदा हो गये देखते देखते...

27 अक्टूबर 2018
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वो जुदा हो गए देखते देखते..*************************दबाव भरी पत्रकारिता हम जैसे फुल टाइम वर्कर के लिये जानलेवा साबित हो रही है। पहले प्रेस छायाकार इंद्रप्रकाश श्रीवास्तव की दुर्घटना में मौत और एक और छायाकार कृष्णा का घायल होना,वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर दिनेश उपाध्याय का मौत के मुहँ से निकल कर किसी तरह

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आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है..

29 अक्टूबर 2018
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दिवंगत पत्रकार की श्रद्धांजलि सभा में फफक कर रो पड़ी केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया ----------आदमी मुसाफिर है, आता है, जाता है************************** पत्रकारिता जगत ही नहीं समाजसेवा के हर क्षेत्र में यदि हम त्यागपूर्ण तरीके से अपना कर्म करेंगे, तो समाज हमारा ध्यान आज इस अर्थ प्रधान युग में भी रखता

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रस्म-ए- उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे

1 नवम्बर 2018
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रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे..********************** एक बात मुझे समझ में नहीं आती है कि इस अमूल्य जीवन की ही जब कोई गारंटी नहीं है, तो फिर क्यों इन संसारिक वस्तुओं से इतनी मुहब्बत है। खैर अपना यह जीवन आग और मोम का मेल है, कभी यह सुलगता है, तो कभी वह पिघलता है...***********************दर्द

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आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन..

4 नवम्बर 2018
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आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन ..***************************** यहाँ मंदिर पर बड़े लोग सैकड़ों डिब्बे मिठाई दनादन बंधवा रहे हैं। ये बेचारे मजदूर तो ऊपरवाले का नाम ले, अपने मन की इच्छाओं का दमन कर लेते हैं , परंतु इन गरीबों के बच्चों को कभी आप ने दूर से टुकुर-

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मुझसे पहले तू जल जाएगा...

7 नवम्बर 2018
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मुझसे पहले तू जल जायेगा.. दीपोत्सव पर्व को लेकर बजारों में रौनक है। कल धनतेरस पर करोड़ों का व्यापार हुआ है। बड़े प्रतिष्ठान चाहे जो भी हो,धन सम्पन्न ग्राहकों का प्रथम आकर्षण वहीं केंद्रित रहता है। छोटे -छोटे दुकानदार फिर भी कुछ उदास से ही दिख रहे हैं , इस चकाचौंध भरे त्योहार में। सो, हमारा प्रयास हो

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कितना मुश्किल है पर भूल जाना...

8 नवम्बर 2018
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कितना मुश्किल है पर भूल जाना...(दीपावली और माँ की स्मृति)*******************************हमें तो उस दीपक की तरह टिमटिमाते रहना है ,जो बुझने से पहले घंटों अंधकार से संघर्ष करता है, वह भी औरों के लिये, क्यों कि स्वयं उसके लिये तो नियति ने " अंधकार " तय कर रखा है..******************************बिछड़ गया

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दुनिया सुने इन खामोश कराहों को...

10 नवम्बर 2018
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दुनिया सुने इन खामोश कराहों को..***************************असली तस्वीर तो अपने शहर के भद्रजनों की इस कालोनी का यह चौकीदार है और उसके सिर ढकने के लिये प्रवेश द्वार पर बना छोटा सा यह छाजन है, जहाँ एक कुर्सी है और शयन के लिये पत्थर का पटिया है।****************************इस समूह में इन अनगिनत अनचीन्ही

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आदमी बुलबुला है पानी का..

13 नवम्बर 2018
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आदमी बुलबुला है पानी का..****************************मृतकों के परिजनों के करुण क्रंदन , भय और आक्रोश के मध्य अट्टहास करती कार्यपालिका की भ्रष्ट व्यवस्था के लिये जिम्मेदार कौन..************************* यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते ख़ुदा जाने यह

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ठहर जाओ सुनो मेहमान हूँ मैं चंद रातों का..

15 नवम्बर 2018
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मेरे दिल से ना लो बदला ज़माने भर की बातों का ठहर जाओ सुनो मेहमान हूँ मैं चँद रातों का चले जाना अभी से किस लिये मुह मोड़ जाते हो खिलौना, जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो मुझे इस, हाल में किसके सहारे छोड़ जाते हो खिलौना ... खिलौना फिल्म की यह गीत और यह मेहमान ( अतिथि ) शब्द मेरे जीवन की सबसे कड़वी

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ये ज़िद छोड़ो,यूँ ना तोड़ो हर पल एक दर्पण है..

20 नवम्बर 2018
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ये ज़िद छोड़ो, यूँ ना तोड़ो हर पल एक दर्पण है ..***************************ये जीवन है इस जीवन का यही है, यही है, यही है रंग रूप थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ यही है, यही है, यही है छाँव धूप ये ना सोचो इसमें अपनी हार है कि जीत है उसे अपना लो जो

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दिल से कदमों की आवाज़ आती रही

2 दिसम्बर 2018
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दिल से कदमों की आवाज़ आती रही************************हो, गुनगुनाती रहीं मेरी तनहाइयाँदूर बजती रहीं कितनी शहनाइयाँज़िंदगी ज़िंदगी को बुलाती रहीआप यूँ फ़ासलों से गुज़रते रहेदिल से कदमों की आवाज़ आती रहीआहटों से अंधेरे चमकते रहेरात आती रही रात जाती रही... कैसी विडंबना है मानव जीवन का कि कर्म नहीं नि

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ढूंढती हैं नजर तू कहां है मगर

6 दिसम्बर 2018
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ढूँढती हैं नज़र तू कहाँ हैं मगर*****************************हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ हैअब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमेंयाद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी सेरात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमेंज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमेंये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें ... कहने को तो पत

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आईना वोही हता है, चेहरे बदल जाते हैं

14 दिसम्बर 2018
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आईना वो ही रहता है , चेहरे बदल जाते हैं *****************************जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगेकिराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है.. तो मित्रों , सियासी आईने की तस्वीर एक बार फिर बदल गयी । जिन्हें गुमान था , उनका विजय रथ रसातल में चला गया। सिंहासन पर बैठे वज़ीर बदल गये हैं। भारी जश्न है चार

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यातना गृह

31 जुलाई 2019
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यातना गृह..!*********** मीरजापुर के एक रईस व्यक्ति के " करनी के फल " पर लिखा संस्मरण***************************** यह पुरानी हवेली उसके लिये यातना गृह से कम नहीं है..मानों किसी बड़े गुनाह के लिये आजीवन कारावास की कठोर सजा मिली हो .. ऐसा दंड कि ताउम्र इस बदरंग हवेली के चहारदीवारी के पीछे उस वृ

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रामनाम सत्य..!

3 अगस्त 2019
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रामनाम सत्य ..!!!***************( लघु कथा )रामनाम सत्य .. रामनाम सत्य.. क्या कोई शवयात्रा है ? सड़क पर तो ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा था.. फिर क्यों भरी दुपहरी में यह व्यक्ति ऐसे बुदबुदा रहा था .! क्या यह उसका अंतर्नाद है अथवा विरक्त मन की आवाज ..ठीक से समझ नहीं

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काकी माँ

11 अगस्त 2019
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काकी माँ..**************************** काकी माँ तो सचमुच बड़े घर की बेटी हैं। संकटकाल में भी वक्त के समक्ष न तो वे नतमस्तक हुईं , न ही अपने मायके एवं ससुराल के मान- सम्मान पर आंच आने दिया । वे संघर्ष की वह प्रतिमूर्ति हैं ।*************************** काकी माँ..

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माँ तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में

14 अगस्त 2019
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जन्म दिन पर एक बालक की अपनी माँ से प्रार्थना है कि वह अपने उस स्नेह को उसकी स्मृति से हटा ले ,जिसकी तलाश में उसे तिरस्कृत एवं अपमानित होना पड़ता है। ------------------------------------------------माँ तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में***********

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हम न संत बन सके

25 अगस्त 2019
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माँ की छाया ढ़ूंढने में सर्वस्व लुटाने वाले एक बंजारे का दर्द --( जीवन की पाठशाला )--------------------------------------हम न संत बन सके***************शब्द शूल से चुभे , हृदय चीर निकल गये दर्द जो न सह स

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ज़ख्म दिल के

2 सितम्बर 2019
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ज़ख्म दिल के************(जीवन की पाठशाला)कांटों पे खिलने की चाहत थी तुझमें,राह जैसी भी रही हो चला करते थे ।न मिली मंज़िल ,हर मोड़ पर फिरभी अपनी पहचान तुम बनाया करते थे।है विकल क्यों ये हृदय अब बोल तेरादर्द ऐसा नहीं कोई जिसे तुमने न सहा।ज़ख्म जो भी मिले इस जग से तुझेसमझ,ये पाठशाला है तेरे जीवन की।शुक्रिय

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ज़िंदगी तूने क्या किया

6 सितम्बर 2019
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ज़िदगी तूने क्या किया*****************( जीवन की पाठशाला से )जीने की बात न कर लोग यहाँ दग़ा देते हैं।जब सपने टूटते हैंतब वो हँसा करते हैं। कोई शिकवा नहीं,मालिक ! क्या दिया क्या नहीं तूने।कली फूल बन के अब यूँ ही झड़ने को है।तेरी बगिया में हम ऐसे क्यों तड़पा करते हैं ?ऐ

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ऐसे थें मेरे शिक्षक.. ( संस्मरण)

7 सितम्बर 2019
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ऐसे थें मेरे शिक्षक .. *************** विद्वतजनों से भरा सभाकक्ष , मंच पर बैठे शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी एवं सम्मानित होने वाले वे दर्जन भर शिक्षक जो स्नातकोत्तर महाविद्यालय से लेकर प्राइमरी पाठशालाओं से जुड़े हैं मौजूद थें। सभ

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सत्य का अनुसरणःएक यक्ष प्रश्न

10 सितम्बर 2019
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सत्य का अनुसरणः एक यक्ष प्रश्न ?************************( जीवन की पाठशाला से )*************************आज का मेरा विषय यह है कि यदि मैंने यह कह दिया होता - " हाँ, पिताजी यह स्याही की बोतल मुझसे ही गिरी है।" तो मेरे इस असत्य वचन से मेरा परिवार नहीं बिखरता।************************* जहां में सबसे ज

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ख़ामोश होने से पहले

12 सितम्बर 2019
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ख़ामोश होने से पहले **************** ख़ामोश होने से पहले हमने देखा है दोस्त, टूटते अरमानों और दिलों को, सर्द निगाहों को सिसकियों भरे कंपकपाते लबों को और फिर उस आखिरी पुकार को रहम के लिये गिड़गिड़ाते जुबां को बदले में मिले उ

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मयंक का हठयोग

15 सितम्बर 2019
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मयंक का हठयोग ( लघु कथा ) ********* अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सुबह का

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क्या खोया क्या पाया जग में

18 सितम्बर 2019
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क्या पाया क्या खोया जग में**********************गुरु कृपा से उपजे ज्योति गुरू ज्ञान बिन पाये न मुक्तिमाया का जग और ये घरौंदाफिर-फिर वापस न आना रे वंदे पत्थर-सा मन जल नहीं उपजेहिय की प्यास बुझे फिर कैसे.. भावुक व्यक्ति की सबसे बड़ी कमजोरी यह होती है कि वह अपने प्रति किसी के द्वारा दो बोल सहानुभूति

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सजदा

21 सितम्बर 2019
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सजदा*******न कभी सजदा कियाना दुआ करते हैं हम दिल से दिल को मिलाया बोलो,ये इबादत क्या कम है। दर्द जो भी मिला ख़ुदा ! तेरी दुनियाँ से कोई शिकवा न किया बोलो,ये बंदगी क्या कम है ।कांटों के हार को समझ नियति का उपहारहर चोट पे मुस्कुरायाबोलो,ये सब्र क्या कम है।अपनों से मिले ज़ख्म पे ग़ैरों ने लगाया

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माँ , महालया और मेरा बालमन

27 सितम्बर 2019
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माँ , महालया और मेरा बालमन...************************** आप भी चिन्तन करें कि स्त्री के विविध रुपों में कौन श्रेष्ठ है.? मुझे तो माँ का वात्सल्य से भरा वह आंचल आज भी याद है। ****************************जागो दुर्गा, जागो दशप्रहरनधारिनी,अभयाशक्ति बलप्रदायिनी, तुमि जागो... माँ - माँ.. मुझे भी महाल

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सुर मेरे..

29 सितम्बर 2019
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सुर मेरे...सुर मेरे ! उपहार बन जा जिसे पा न सका जीवन में सुन , मेरा वो प्यार बन जा फिर न पुकारे हमें कोई तू ही वह दुलार बन जा खो गये हैं स्वप्न हमारे दर्द की पहचान बन जा न कर रूदन, मौन हो अब सुर, मेरा वैराग्य बन जा जीवन की तू धार बन जा राधा का घनश्याम बन तू प्रह्लाद का विश्वास बन ना ध

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पथिक ! जो बोया वो पाएगा

1 अक्टूबर 2019
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पथिक ! जो बोया वो पाएगा------. अंतराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर********************* बारिश में भींगने के कारण पिछले चार-पांच दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ हूँ। स्थिति यह है कि बिस्तरे पर से कुर्सी पर बैठन

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गाँधी तेरा सत्य ही मेरा दर्पण

3 अक्टूबर 2019
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गाँधी तेरा सत्य ही मेरा दर्पण**********************" हम कोई महात्मा गाँधी थोड़े ही हैं कि समाजसेवा की दुकान खोल रखी है। किसी दूसरे विद्यालय में दाखिला करवा लो अपने बच्चे का.." पिता जी के स्वभाव में अचानक

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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ

9 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी- छोटी खुशियाँ********************* भाग -1 उस उदास शाम भी मैं जीवन की शून्यता और दर्द से स्वयं को उभारने की कोशिश में जुटा हुआ था कि किसी ने आवाज लगायी.. " सा'ब , खुरमा ताजा है, लेंगे ? " " ले आओं भाई दस का " -मैंने कहा। ठेलेवाले की पुकार सुनकर उस दिन न जाने क्यों मैं स्वयं को रोक न

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स्नेह भरे ये पर्व..

13 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ( भाग- 2)*************************** परम्पराओं के वैज्ञानिक पक्ष को तलाशने की आवश्यकता है , उसमें समय के अनुरूप सुधार और संशोधन हो , न कि उसका तिरस्कार और उपहास ..**************************** यह परस्पर प्रेम

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इक वो भी दीपावली थी..

18 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ( भाग- 3 )*************************** सच कहूँ तो पहले अभाव में भी खुशियाँ थीं और अब इस इक्कीसवीं सदी में सबकुछ होकर भी खुशियों का अभाव है।**************************** पिछले कुछ महीनों में स्वास्थ्य तेजी से गिरा है, फिर भी ठीक पौने चार बजे ब्रह्ममुहूर्त में शैय्या त्याग

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सामाजिक स्नेह की प्रथम अनुभूति (हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ)

23 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी- छोटी खुशियाँ ( भाग- 4) दीपावली की वह शाम************************** नियति ने हमारे लिये क्या तय कर रखा है, हम नहीं जानते, कहाँ तो मैं इस चिंता में दुःखी था कि घर पहुँचने पर भोजन क्या कर

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रोशनी के साथ क्यों धुआँ उठा चिराग से

30 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ (भाग -5)************************** मैं अपनी भावनाओं से ऊपर उठकर इन दीपकों की तरह अपने दर्द को अपनी खुशी बनाने की कला सीख रहा हूँ। आँसू को मोती समझना यदि आ गया ,तो जीवन की पाठशाला में हो रही इस कठिन परीक्षा में स्वयं को सफल समझूँगा। *************************** सुबह के स

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जेकर जाग जाला फगिया उहे छठी घाट आये.

2 नवम्बर 2019
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जेकर जाग जाला फगिया उहे छठी घाट आये..**************आठ दशक पूर्व खत्री परिवार ने मीरजापुर में शुरू की थी छठपूजा*******************काँच ही बांस के बहंगिया बहँगी लचकत जायेपहनी ना पवन जी पियरिया गउरा घाटे पहुँचायगउरा में सजल बाटे हर फर फलहरियापियरे पियरे रंग शोभेला डगरिया

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शब्दबाण

14 नवम्बर 2019
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शब्दबाण********************************* उसके वह कठोर शब्द - " कौन हूँ मैं ..प्रेमिका समझ रखा है.. ? व्हाट्सअप ब्लॉक कर दिया गया है..फिर कभी मैसेज या फोन नहीं करना.. शांति भंग कर रख दिया है ।" यह सुनकर स्तब्ध रह गया था मयंक.. ********************************** अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर

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कलुआ ( जीवन की पाठशाला )

20 नवम्बर 2019
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**************************कलुआ होने का उसे कोई मलाल नहीं है..यह तो उसके श्रम की निशानी है..। हाँ, उसके निश्छल हृदय को कोई काला-कलूटा न कहे..इंसानों की इस बस्ती में फिर कोई शुभचिंतक उसे न छले..और कोई कामना नहीं है उसकी..।*************************अरी सुनती हो.. !जरा देख

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नारी-सम्मान पर डाका ?

8 दिसम्बर 2019
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नारी-सम्मान पर डाका ?*********************************पुत्र के मामले में माता-पिता और पति के मामले में पत्नी की दृष्टि जबतक सजग नहीं होगी , पुरुषों के ऐसे पाशविक वृत्ति एवं कृत्य पर अंकुश नहीं लग सकेगा********************************

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माँ ! एक सवाल मैं करूँ ? ( जीवन की पाठशाला )

25 दिसम्बर 2019
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माँ ! एक सवाल मैं करूँ ? ( जीवन की पाठशाला )*************************** इस सामाजिक व्यवस्था के उन ठेकेदारों से यह पूछो न माँ - " बेटा-बेटी एक समान हैं , तो दो- दो बेटियों के रहते बाबा की मौत किसी भिक्षुक जैसी स्थिति में क्यों हुई.. क्रिसमस की उस भयावह रात के पश्चात हमदोनों के जीवन में उजाला क्यों

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पथिक! काहे न धीर धरे

30 दिसम्बर 2019
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पथिक! काहे न धीर धरे( जीवन की पाठशाला )----आत्म उद्बोधन---- ज़िदगी में ग़म है ग़मों में दर्द है दर्द में मज़ा है मज़े में हम है.. वर्ष 2019 का समापन मैं कुछ इसी तरह के अध्यात्मिक चिंतन संग कर रहा हूँ , परंतु ऐसा भी नहीं है कि इस ज्ञानसूत्र से मेरा हृदय आलोकित हो उठा है। असत्य बोल कर क्यों कथन

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नया सवेरा

27 जुलाई 2020
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नया सवेरा *************************** लॉकडाउन ने क्षितिज को गृहस्वामी होने के अहंकार भरे " मुखौटे" से मुक्त कर दिया था, तो शुभी भी इस घर की नौकरानी नहीं रही। प्रेमविहृल पति-पत्नी को आलिंगनबद्ध देख मिठ्ठू पिंजरे में पँख फड़फड़ाते हुये..*************************** क्षितिज कभी मोबाइल तो कभी टीवी

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आत्माराम

1 अगस्त 2020
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आत्माराम उसके घर का रास्ता बनारस की जिस प्रमुख मंडी से होकर गुजरता था। वहाँ यदि जेब में पैसे हों तो गल्ला-दूध , घी-तेल, फल-सब्जी, मेवा-मिष्ठान सभी खाद्य सामग्रियाँ उपलब्ध थीं।लेकिन, इन्हीं बड़ी-बड़ी दुकानों के मध्य यदि उसकी निगाहें किसी ओर उठती,तो वह सड़क के नुक्कड़ पर स्थित विश्वनाथ साव की कचौड़

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यादों की ज़ंजीर

6 अगस्त 2020
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यादों की ज़ंजीर रात्रि का दूसरा प्रहर बीत चुका था, किन्तु विभु आँखें बंद किये करवटें बदलता रहा। एकाकी जीवन में वर्षों के कठोर श्रम,असाध्य रोग और अपनों के तिरस्कार ने उसकी खुशियों पर वर्षों पूर्व वक्र-दृष्टि क्या डाली कि वह पुनः इस दर्द से उभर नहीं सका है। फ़िर भी इन बुझी हुई आशाओं,टूटे हुये हृद

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माँ का रुदन

13 अगस्त 2020
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माँ का रुदन************** अरे ! ये कैसा रुदन है..? स्वतंत्रता दिवस पर्व पर उल्लासपूर्ण वातावरण में देशभक्ति के गीत गुनगुनाते हुये चिरौरीलाल शहीद उद्यान से निकला ही था कि किसी स्त्री के सिसकने की आवाज़ से उसके कदम ठिठक गये थे। ऐसे खुशनुमा माहौल में रुदन का स्वर सुन च

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सज़ा

21 अगस्त 2020
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सज़ा**** पौ फटते ही उस मनहूस रेलवे ट्रैक के समीप आज फिर से भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी। यहाँ रेल पटरी के किनारे पड़ी मृत विवाहिता जिसकी अवस्था अठाइस वर्ष के आस-पास थी, को देखकर उसकी पहचान का प्रयास किया जा रहा था। सूचना पाकर पुलिस भी आ च

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इतनी बड़ी सज़ा

23 अगस्त 2020
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इतनी बड़ी सज़ा************* शहर की उस तंग गली में सुबह से ही तवायफ़ों के ऊपर तेजाब फेंके जाने से कोहराम मचा था। मौके पर तमाशाई जुटे हुये थे। कुछ उदारमना लोग यह हृदयविदारक दृश्य देख -- " हरे राम- हरे राम ! कैसा निर्दयी इंसान था.. ! सिर्फ़ इतना कह कन्नी काट ले रहे थे। " एक दरिंदा जो इस

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नौकरानी

27 अगस्त 2020
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नौकरानी********** समीप के देवी मंदिर में कोलाहल मचा हुआ था। मुहल्ले की सुहागिन महिलाएँ पौ फटते ही पूजा का थाल सजाये घरों से निकल पड़ी थीं। उनके पीछे- पीछे बच्चे भी दौड़ पड़े थे। उधर,आकाँक्षा इन सबसे से अंजान सिर झुकाए नित्य की तरह घर के बाहर गली में मार्निंग वॉक कर रही थी । वह भूल चुकी थी कि

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फेरीवाला

3 सितम्बर 2020
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फेरीवाला **********(जीवन के रंग) वही अनबुझी-सी उदासी फिर से उसके मन पर छाने लगी थी। न मालूम कैसे यह उसके जीवन का हिस्सा बन गयी है कि दिन डूबते ही सताने चली आती है। बेचैनी बढ़ने पर मुसाफ़िरख़ाने से बाहर निकल वह भुनभुनाता है-- किस मनहूस घड़ी में उसका नाम रजनीश रख दिया गया है ,जबकि उसके खुद की ज़िदगी म

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मोक्ष

7 सितम्बर 2020
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मोक्ष*****(जीवन के रंग) बचपन से ही वह सुनता आ रहा है कि जैसा कर्म करोगे-वैसा फल मिलेगा , किन्तु अब जाकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि पाप-पुण्य की परिभाषा सदैव एक-सी नहीं होती है। बहुधा उदारमना व्यक्ति को भी कर्म की इसी पाठशाला में ऐसा भयावह दंड मिलता है कि उसकी अंतर्रात्मा यह कह चीत्कार कर उठती है

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यादों की ज़ंजीर

12 सितम्बर 2020
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यादों की ज़ंजीर(जीवन के रंग) रात्रि का दूसरा प्रहर बीत चुका था, किन्तु विभु आँखें बंद किये करवटें बदलता रहा। एकाकी जीवन में वर्षों के कठोर श्रम,असाध्य रोग और अपनों के तिरस्कार ने उसकी खुशियों पर वर्षों पूर्व वक्र-दृष्टि क्या डाली कि वह पुनः इस दर्द से उभर नहीं सका है। फ़िर भी इन बुझी हुई आशाओं,टूटे

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