ध्यान से सुनिए ,एक और किस्सा सुनाने वाले हैं हम,
इसमें भटक रहा था इक राही,कुछ ढूंढता था हरदम.
प्यार की पूजा करता था, प्यार में ही गया था वो रम ,
अपनों की ख़ुशी में खुश रहता छुपा कर अपने गम.
हाँ एक बात और ढूंढने वाले को किस बात का गम,
बेफिक्र घूमता रहता, खुश रहने की खाई थी कसम.
महफ़िल को नहीं भूले, तन्हाई को न होने दे ख़तम ,
सब की वो सुनता रहता, अपनी लिखकर लेता दम.
एक दफा लिख गया राही कि हम ढूंढ रहे हैं सनम,
लिखते लिखते अचानक मिल गया इस को हमदम.
यारो अपनी ही हसीन दास्तान ताजा कर रहे हैं हम,
समझाकर मंजिल को अपने घर भी ले आये थे हम.