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अगर पुरानी मम्मी होतीं...

21 अक्टूबर 2018

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https://amitnishchhal.blogspot.com/?m=1 मकरंद

अगर पुरानी मम्मी होतीं...

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✒️

बैठी सोच रही है मुनिया, मम्मी की फटकार को

दुखी बहुत है कल संध्या से, क्या पाती दुत्कार वो?

अगर पुरानी मम्मी होतीं...


अगर पुरानी मम्मी होतीं

क्या वो ऐसे डाँट सुनातीं?

बात-बात पर इक बाला को

कह के क्या वह बाँझ बुलातीं?

पापा जो अब चुप बैठे हैं,

क्या वे चुप हो, बातें सुनते?

मेरे हँसी ठहाकों पर क्या

ऐसे ही वे चाँटे जड़ते?

कहाँ गयी पापा के मुख की, प्यारी सी लहकार वो?

बैठी सोच रही है मुनिया, मम्मी की फटकार को।


बहुत समय से सुनती आयी

मम्मी हैं भगवान सहारे

उनको देख नहीं पाती अब

चश्मे ना हैं पास हमारे

मेरी मम्मी बहुत समय से

चली गईं भगवान के पास

कब तक आयेंगीं मिलकर वो

मन में लिये हूँ बैठी आस

बिलख रही थी रुदन घड़ी में, चंबल की फ़नकार जो

बैठी सोच रही है मुनिया, मम्मी की फटकार को।


जब आँखों में आँसू आकर

तत्काल लुप्त हो जाते थे

रो रोकर कंठों के जुमले

कातर स्वर जब हो जाते थे

बूढ़ी ताई पास बुलाकर

बड़े प्यार से समझाती थीं

नयी-नयी मम्मी लायेंगीं

मेरे मन को बहलाती थीं

मेरी बेटी तुम्हीं एक हो, माँ के प्रथम करार को

बैठी सोच रही है मुनिया, मम्मी की फटकार को।


बहुत काम अब करने पड़ते

हाथ पड़े हैं पीले छाले

सखे-बंधु सब खेल रहे हैं

मुन्नी के कपोल हैं काले

झुकी लगाने को जब झाड़ू

इक कराह तब मुख से आयी

दादी ने देखा जब जाकर

दाग पीठ पर, लाल कलाई

बिलख पड़ीं जब बूढ़ी आँखें, बचपन सुख, आसार को

बैठी सोच रही है मुनिया, मम्मी की फटकार को।

...“निश्छल”

chandan singh

chandan singh

Bahut shandar

5 नवम्बर 2018

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रचनाएँ
Amitnishchchal
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हिंदी पद्य के कोरे पन्ने
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आहत ठुमके

16 अगस्त 2018
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मानवता की हार

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कितनी वांछित है?

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कितनी वांछित है?✒️युवा वर्ग जो हीर सर्ग है, मर्म निहित करता संसृति काअकुलाया है अलसाया है, मोह भरा है दुर्व्यसनों कापिता-पौत्र में भेद नहीं है, नैतिकता ना ही कुदरत का;ऐसी बीहड़ कलि लीला में, आग्नेय मैं बाण चलाऊँकहो मुरारे ब्रह्म बाण की, महिमा तब कितनी वांछित है?जो भविष्य को पाने चल दे, वर्तमान का भा

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रद्दी में फेंकी यादों को

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पन्नों पर भी पहरे हैं✒️ बैठ चुका हूँ लिखने को कुछ, शब्द दूर ही ठहरे हैं,ज़हन पड़ा है सूना-सूना, पन्नों पर भी पहरे हैं।प्रेम किया वर्णों सेभावों कलम डुबोयासींची संस्कृति अपनीपूरा परिचय बोया,झंकृत अब मानस हैचमक रही है स्याहीपद्य सृजन में ठहराभटका सा एक राही;उभरें नहीं विचार पृष्ठ पर, सोये वे भी गहरे

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बिखरो मेरे ज़ज़्बातों✒️बिखरो मेरे ज़ज़्बातोंतुम तो धीरे-धीरे,करुण स्वरों को मेरे अब तकहर जीवित ठुकराया है।रखा सुरक्षित जिन्हें जन्म से, हीरे-मोती से शृंगारितचक्षु तले निशि-दिन, संध्या को, रखा सवेरे भी सम्मानित;स्वर्ण सलाखों के पिंजर में, मुझे छोड़कर क्यों जाते हो?मुड़कर देखो रंज-रुदन को, उपहासों से क्या प

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जीवन की अबुझ पहेली✒️जीवन की अबुझ पहेलीहल करने में खोया हूँ,प्रतिक्षण शत-सहस जनम कीपीड़ा ख़ुद ही बोया हूँ।हर साँस व्यथा की गाथाधूमिल स्वप्नों की थाती,अपने ही सुख की शूलीअंतर में धँसती जाती।बोझिल जीवन की रातेंदिन की निर्मम सी पीड़ा,निष्ठुर विकराल वेदनासंसृति परचम की बीड़ा।संधान किये पुष्पों केमैं तुमको पु

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मुझमें, मौन समाहित है

12 अगस्त 2021
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मुझमें, मौन समाहित है✒️जब खुशियों की बारिश होगीनृत्य करेंगे सारेलेकिन,शब्द मिलेंगे तब गाऊँगामुझमें, मौन समाहित है।अंतस् की आवाज़ एक हैएक गगन, धरती का आँगन।एक ईश निर्दिष्ट सभी मेंएक आत्मबल का अंशांकन।।बोध जागरण होगा जिस दिनबुद्ध बनेंगे सारेलेकिन,चक्षु खुलेंगे तब आऊँगामुझमें, तिमिर समाहित है।वंद्य चरण

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