*हमारे पुराणों में वर्णित व्याख्यानों के अनुसार सनातन हिन्दू धर्म में अनेक तिथियों को विशेष महत्व देते हुए विशेष पर्व मनाया जाता है | इस संसार को प्रकाशित करने वाले जिन दो प्रकाश पुञ्जों का विशेष योगदान है उनमें से एक है सूर्य और दूसरा है चन्द्रमा | चन्द्रमा की चाँदनी में रात्रि अपना श्रृंगार करती है | पौराणिक एवं वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार चन्द्रमा में सोलह कलायें होती हैं परंतु चन्द्रमा हर समय अपनी कलाओं से पूर्ण न होकर घटता - बढता रहता है | चन्द्रमा अपनी कलाओं से परिपूर्ण होता है आज अर्थात आश्विन (क्वार) मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को , जिसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है | यह वह दिन होता है जब प्रतीक्षा होती है रात्रि के उस प्रहर की जिसमें सोलह कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा पृथ्वी पर करता है | वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है | आज के दिन से ही हेमंत ऋतु काल प्रारम्भ होता है | प्राचीनकाल से ही इसके महत्व और उल्लास शास्त्रों में भी वर्णित है | पुराणों के अनुसार आज चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है | अर्द्धरात्रि (१२बजे) होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के समय गगन तले खुले आसमान में खीर या दूध रखा जाता है जिसका सेवन रात्रि १२ बजे के बाद किया जाता है |* *आज की ही रात्रि में लीलापुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना के तट पर गोपियों के साथ "महारास" की लीला की थी | शरद पूर्णिमा की रात्रि के चन्द्रमा का सौन्दर्य वर्णन करते हुए हुए भगवान वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत महापुराण में लिखा है :-- "दृष्ट्वा कुमुद्वन्तमखण्डमण्डलं , रमाननाभं नव कुंकुमारुणम् ! वनं च तत्कोमल गोभिरंजितं , जगौ कलं वामदृशां मनोहरम् !! अर्थात :- उस शरदपूर्णिमा के चन्द्रमा का मण्डल अखण्ड था | पूर्णिमा की रात्रि थी | चन्द्रदेव नूतन केशर के समान लाल हो रहे थे | कुछ संकुचित अभिलाषा से युक्त चन्द्रदेव का मुखमण्डल लक्ष्मी के समान मालूम हो रहा था | उनकी कोमल अमृतमयी किरणों से सारा वन अनुराग के रंग में रंग गया था आदि - आदि | मेरे "आचार्य अर्जुन तिवारी" के कहने का तात्पर्य यह है कि आज की रात्रि मानवमात्र के विए एक विशेष अवसर लेकर आती है | रोगियों के लिए आज की चन्द्रकिरणें औषधि का कार्य करती हैं तो साधकों के लिए आज की रात्रि महतिवपूर्ण होती है | आज रात्रि में जागरण करके महालक्ष्मी जी का पूजन करने का विधान भी बतलाया गया है | ऐसी मान्यता है कि अर्द्धरात्रि के बाद महालक्ष्मी प्रत्येक घर में विचरण करती हैं और जहाँ लोग जग रहे होते हैं वहाँ निवास करती हैं और सोते हुए मनुष्यों से रुष्ट हो जाती हैं | अत: आज की रात्रि मनुष्य को जागरण करके महालक्ष्मी का आराधन करना चाहिए |* *रोगियों (विशेषकर :- दमा , अस्थमा वालों) को आज की रात्रि चन्द्रमा की किरणों से स्नान करना चाहिए , जिससे उनका रोग शान्त हो सकता है | यह है सनातन धर्म की दिव्यता एवं मान्यता |*