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निर्वाचन आयोग की असमर्थता

5 नवम्बर 2018

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भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा स्वतंत्र निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण निर्वाचन हेतु कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है । हाल के वर्षों में आयोग द्वारा मतदान का प्रतिशत बढ़ाने अनेकानेक प्रशंसनीय प्रयास किए जा रहे हैं । स्वीप(Sweep) गतिविधियों के माध्यम से जनसमूह को जागरूक करने हेतु प्रयास किया जा रहा है एवं जन सहभागिता बढ़ाई जा रही है किंतु निर्वाचन आयोग का एक निर्णय ऐसा हुआ है, जिस की कटु आलोचना की जानी चाहिए निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश ,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ ,मिजोरम एवं तेलंगाना के लिए निर्वाचन कार्यक्रम प्रसारित किया है । छत्तीसगढ़ में दो चरणों में मतदान होना है ।मतदान का समय प्रातः 8:00 बजे से 5:00 बजे निर्धारित किया गया है किंतु छत्तीसगढ़ के कोंटा ,बीजापुर ,अंतागढ़ ,मोहला ,भानुप्रतापपुर ,कांकेर ,केशकाल ,नारायणपुर ,कोंडागांव ,दंतेवाड़ा के मतदान का समय प्रातः 7:00 बजे से 3:00 बजे तक रखा गया है, क्योंकि यह विधानसभा चरम वामपंथ से अत्यधिक प्रभावित है । मतदान दल की सुरक्षा सुरक्षाकर्मियों की सुरक्षा एवं मतदान करने वालों की सुरक्षा तथा किए गए मतदान, ईवीएम की सुरक्षा के लिए मतदान के समय में परिवर्तन किया गया है । नक्सलवादियों ने चरम वामपंथ प्रभावित जिलों में मतदाताओं को निर्वाचन प्रक्रिया का बहिष्कार करते हुए यह धमकी दी है कि यदि उन्होंने मतदान किया उनकी उंगलियां काट दी जाएगी । मतदान करने वाले निर्वाचक के उंगली में अमिट स्याही लगाना अनिवार्य है ,जिस का चिन्ह कई दिनों तक रहता है ऐसे में मतदान करने वाले व्यक्तियों की सहज ता एवं सरलता से नक्सलवादियों द्वारा पहचान की जा सकती है और इनके द्वारा नृशंस बदले की कार्यवाही की जा सकती है, भारत निर्वाचन आयोग संवैधानिक निकाय है जो कि निर्वाचन के लिए सर्वशक्ति संपन्न होता है उसका प्राथमिक दायित्व होता है कि वह अपने मतदाताओं को प्राथमिक सुरक्षा उपलब्ध करवाये । निर्वाचन के समय में परिवर्तन नक्सलवादियों के समक्ष समर्पण करने के जैसा है। सूर्यास्त होने के पूर्व मतदान दलों एवं सुरक्षाकर्मियों को सुरक्षित जगह लाने के उपक्रम में मतदाताओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी की गंभीर उपेक्षा की गई है और मतदाताओं को नक्सलियों के रहमों करम पर छोड़ने जैसा है। बहुत बड़ी संख्या में मतदान केंद्रों का शिफ्टिंग (shifting) एवं मतदान के समय में परिवर्तन इस बात का द्योतक है की एक बड़े भूभाग पर निर्वाचन आयोग एवं शासन की पहुंच एवं कब्जा नहीं है। मतदान के समय में परिवर्तन केवल औपचारिकताओं के निर्वहन मात्र है। येन केन प्रकारेण निप तारों की प्रवृत्ति है और वास्तविकता से आंख मूंदने जैसा है ।भारत निर्वाचन आयोग को अत्यंत कठोर रुख अख्तियार करते हुए मतदान के समय एवं मतदान केंद्रों के स्थल पर परिवर्तन कर देना चाहिए और भारत सरकार से सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपेक्षा करनी चाहिए ।बस्तर संभाग एवं राजनांदगांव जिले के 70000 पैरामिलिट्री फोर्स एवं ढेर सारे कैंप के मौजूदगी के उपरांत भी यदि 5 साल में एक बार निर्वाचन के दौरान मतदाताओं की एवं मतदान दलों की सुरक्षा नहीं की जा सके तो यह कायरता की श्रेणी में गिरा जाना चाहिए, होना तो यह चाहिए कि ऐसे मतदान केंद्रों को चिन्हित कर मतदान के 10 दिन पूर्व एवं 10 दिन बाद तक पूर्ण सुरक्षा वहां के मतदाताओं को उपलब्ध कराया जाए ताकि अमिट स्याही का प्रभाव भी समाप्त हो जाए, एवं मतदाता निशंक एवं निर्भीक होकर अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। 1000 करोड़ रुपिया व्यय कर चौड़ी चौड़ी सड़कों का निर्माण करने के बाद भी 5 साल में एक बार निर्वाचन के लिए यदि निर्वाचन आयोग अपने मतदाताओं को सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवा पाता है, तो यह निर्वाचन आयोग की गोरा सफलता है और अपने संवैधानिक दायित्वों से मुंह मोड़ने जैसा है ।इसकी कटु आलोचना की जानी चाहिए ।अभी भी समय है निर्वाचन आयोग को अपने आदेश पर पुनर्विचार करना चाहिए और हर स्थिति में एकरूपता रखते हुए कार्यवाही करनी चाहिए, भले ही कितना भी संसाधन क्यों ना झुकना पड़े, यह राष्ट्र की सार्वभौमिकता एवं प्रभुत्व का प्रश्न है, जिससे समझौता कदापि उचित नहीं है।article-image

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