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घन बन बरसने लगती

11 नवम्बर 2018

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मैं जाती हूँ जब तुम्हारे विस्मृत पथों पर घन बन बरसने लगती स्मृति भीग भीग मैं जाती हृदय के तार बज उठते जब तुम गाते थे मेरे साथ अश्रु बहने लगते नीरवता छा जाती तुम गा उठते मेरे हृदय तारों के साथ साथ कुछ यादें लहरों पर बहतीं कुछ तट पर रह जातीं दोनों में भरकर पुष्पों को एक बार बहा देती गंगा में, सोच विदा लेती मैं, भारी मन से घन बन बरसने लगती स्मृति भीग भीग मैं जाती डूब गया जो दोना बहाने से लगता है डर चलकर डिब्बी में कर लेती हूँ माला बंद फिर लौटूँगी तुम्हारे विस्मृत हुये पथों पर और तुमको लौटाउँगी तुम्हारे स्मृति चिन्ह बार बार का वादा मेरा टूट क्यों जाता है हर बार का मोह तुम्हारा छूट क्यों नहीं जाता है घन बन बरसने लगती स्मृति भीग भीग मैं जाती। हन .

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