मनुष्य अपने संपूर्ण जीवन काल में चार अवस्थाओं से गुजरता है | बाल्यावस्था , युवावस्था , प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था | यह चारों अवस्थाएं अपने आप में महत्वपूर्ण हैं , परंतु सबसे महत्वपूर्ण है बाल्यावस्था क्योंकि बाल्यावस्था पर मनुष्य का संपूर्ण जीवन आधारित होता है | जिस प्रकार मनुष्य का बचपन होता है उसी प्रकार उसका पूरा जीवन निर्मित हो जाता है , या यूं कहा जाए की जीवन रूपी मकान की नींव होता है बचपन | नींव जितनी मजबूत होती है मकान उतना ही मजबूत होता है | बचपन की नींव को मजबूत करने का कार्यभार माता पिता के ऊपर होता है जिसमें मुख्य जिम्मेदारी मां की होती है | कहा जाता है कि मां जैसा चाहे वैसी संतान बना सकती है |
इसी को ध्यान में रखते हुए हमारे पूर्वजों ने इसकी व्यवस्था गर्भावस्था से ही प्रारंभ कर दी थी | क्योंकि हमारे ऋषि - महर्षि यह जानते थे की गर्भ काल में मां का जैसा आचरण होता है वैसे ही संतान पैदा होती है , इसीलिए गर्भवती माताओं को रामायण गीता का पाठ सुनने एवं पढ़ने का निर्देश दिया जाता था | गर्भ काल में कोई भी अनुचित कार्य न करने की सलाह माताओं को दी जाती थी | बच्चे के जन्म के बाद बच्चे के बचपन का निर्माण , उनमें संस्कारों का आरोपण करना माता का मुख्य कर्तव्य होता है | क्योंकि जो संस्कार बचपन मिल जाते हैं वह जीवन भर के क्रियाकलापों में एवं उसके आचरण में दिखाई पड़ते हैं | मनुष्य की चारों अवस्थाओं में बाल्यावस्था का प्रमुख स्थान माना गया है|
राम , कृष्ण , ध्रुव , प्रहलाद , वीर शिवाजी एवं अनेक महापुरुष यदि महापुरुष बने तो उनमें उनके बचपन के संस्कार एवं माता पिता के द्वारा दी गई शिक्षा की मुख्य कारक बनी | इसलिए यदि अपने बच्चों को महापुरुषों की श्रेणी में देखना है तो प्रत्येक माता पिता को उनके बचपन को संभालना चाहिए |* *आज यदि मानव समाज इतना विकृत होता जा रहा है तो इसका मुख्य कारण है आज की नयी पीढियों के मन में पड़़ने वाले संस्कार | आज माता-पिता अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पा रहे हैं | जहां प्राचीन काल में माताएं गर्भावस्था में सच्चरित्र का पालन करते हुए धर्म ग्रंथों का अध्ययन या श्रवण किया करती थीं , वही आज इस अवस्था में माताएं अपने कमरे में बैठकर दूरदर्शन के माध्यम से अनेकों दर्शनीय एवं आदरणीय कार्यक्रम देखा करती हैं जिनका गर्भस्थ शिशु पर व्यापक असर पड़ता है |
सीधी सी बात है जब माता के भोजन करने पर गर्भ में पल रहे बच्चे को भोजन मिल जाता है और वह हृष्ट - पुष्ट होता चला जाता है उसी प्रकार माता के द्वारा जो देखा जाएगा या जो आचरण किया जाएगा वह बच्चे के ऊपर भी प्रभाव डालता है | आज "बाल दिवस" के अवसर पर मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कहना चाहूंगा कि बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं , इसलिए बच्चों के ऊपर माता पिता एवं समाज को विशेष ध्यान देना चाहिए | बच्चे परिवार में, घर में, समाज में खुशी का कारण होने होते हैं | हम पूरे जीवन भर माता-पिता, शिक्षकों और अन्य संबंधियों के जीवन में बच्चों की भागीदारी और योगदान को नजअंदाज नहीं कर सकते | बच्चे सभी के द्वारा पसंद किए जाते हैं और बिना बच्चों के जीवन बहुत ही नीरस हो जाता है | वे भगवान का आशीर्वाद होते हैं और अपनी सुन्दर आँखों, मासूम गतिविधियों और मुस्कान से हमारे दिल को जीत लेते हैं तो हमारी भी यह जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें ऐसा संस्कार दें कि उनकी यह मुस्कान जीवन पर्यन्त बनी रहे |* *कोई भी पर्व मनाना तभी सार्थक हो सकता है जब हम उसकी गहराईयों में जाकर उसके मर्म को समझ सकें ! अन्यथा दिखावा करना व्यर्थ है |