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प्रकृति और हम ( बच्चों केलिए )

16 नवम्बर 2018

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कविता को हमेशा इंसान को जीना चाहिए और उनसे कुछ ना कुछ सीखना चाहिए। यहां पर मैंने जो कविता लिखी है वो उनके लिए है जो दिल और दिमाग से पूरे बच्चे हैं।, जिन्होंने स्वयं के अंदर स्वयं का बचपन जीवित रखा है। अपने आपको इन कविता से जोड़कर देखिए आपको बहुत पसंद आएगा, क्योंकि इसमें आपको बहुत सी ऐसी चीजें मिलेंगी जिसे एक बार ही सही अपने जीवन से जरूर जोड़ेंगे।


प्रकृति और हम


प्रकृति का साथ देने का वादा करें;

हम सब मिलकर,

प्रकृति का साथ देने का वादा करें।



सब में ऊर्जा भरने को, सूरज नित काम करता;

हमारे जीवन हेतु, प्रकृति में नित काम चलता।


हमको धूप, हवा, पानी, भोजन आदि कौन देता ?

प्रकृति के बिना यह कैसे मिलता ? यह कैसे मिलता ?


हम यह, क्यों नहीं देख सकते ?

प्रकृति की जयकार क्यों नहीं कर सकते ?


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हम सब मिलकर,

हम सब मिलकर सहयोग करें;


हरियाली और पेड़ों की रक्षा करें;

हरियाली और पेड़ों में वृद्धि करें;


प्रकृति का साथ देने का वादा करें।

प्रकृति का साथ देने का वादा करें;


हम सब मिलकर,

प्रकृति का साथ देने का वादा करें।


स्वयं के लिये, सब के लिए;

मुन्ना केलिए, और मुन्नी केलिए;


भावी पीढ़ी के लिये;

हो अच्छा भविष्य, हो अच्छा भविष्य;


पक्का करें, हम यह पक्का करें;

प्रकृति का साथ देने का वादा करें।


प्रकृति का साथ देने का वादा करें;

हम सब मिलकर,

प्रकृति का साथ देने का वादा करें।


उदय पूना

उदय पूना

उदय पूना

आज इस सोच की आवश्यकता है;

16 नवम्बर 2018

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प्रकृति और हम ( बच्चों केलिए )

16 नवम्बर 2018
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कविता : जीवन और परम्परा

16 नवम्बर 2018
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कवि एक ऐसा व्यक्ति होता है जो कल्पनाओं में ही इंसान को चांद पर ले जा सकता है और वहां की ताकत ये खुद ही बता सकता है। ऐसी कई कविताओं में वे पूरे ब्राह्मांण को जमीन पर उतार सकते हैं। कविताओं में बहुत ताकत होती है और जिस कवि की कविता दिल को छू जाती है उन्हें हमें और लोगों

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मैं कट्टर नहीं हूं स्वयं को भारतीय कहना, मानव कहना कट्टरता नहीं है; अपनी जड़ों से जुड़े रहना; जो समूचे विश्व को एक माने, एक कुटम्ब माने, ऐसी जड़ों से जुड़े रहना कट्टरता नहीं है।

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उल्टा सीधा

18 नवम्बर 2018
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शीर्षक - उल्टा सीधा प्रस्तुत है उल्टा पर सीधा करके। जीवन में पूरी पूरी स्वतंत्रता है;जीवन में पूरी पूरी छूट है।हम स्वयं की ऐसी तैसी करते रहें; स्वयं की ऐसी की तैसी करते रहें;स्वयं की पूरी दुर्दशा करते रहें;इसकी भी पूरी पूरी छूट है;हम इसका उल्टा भी कर सकते हैं, यहां इ

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यह मेरा जीवन कितना मेरा है ?

20 नवम्बर 2018
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** यह मेरा जीवन कितना मेरा है ? ** यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, वो किस का है? वो किस किस का है? हम में से प्रत्येक यह प्रश्न, इस तरह के प्रश्न स्वयं से कर सकता है। यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, मैं उसको मेरा कहता हूं, समझता हूं। पर यह मेरा जीवन कितना मेरा है? हम कह

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क्या यह समझदारी है

20 नवम्बर 2018
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* क्या यह समझदारी है * ? ? ?हर समय समझदारी का बोझ लिये रहना (गंभीर बने रहना), क्या समझदारी है;हर बार समझदारी दिखलाते रहना, क्या समझदारी है। ???कुछ कुछ गलती करते रहना (सीखते रहना), भी समझदारी है;कभी कभी समझदारी न दिखलान

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" गुस्सा -- Balance Sheet दर्पण " हम गुस्सा, करते रहते हैं;और गुस्सा करने को, उचित भी ठहराते रहते हैं;और साथ साथ, यह भी, मानते रहते हैं;कि गुस्सा देता, सिर्फ घाटा; . . . सिर्फ हानी;और होते, कितने नुकसान हैं। . . . इस उलझन को, हम देखते हैं।।1।।. . . जब जब हमारा काम हो जाता है, गुस्सा करने से;स

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मैं भटकता रहा

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*गहराई की छिपी वर्जनाओं के स्वर*( "स्वयं पर स्वयं" से ) मैं भटकता रहामैं भटकता रहा; समय, यूं ही निकलता रहा; मैं भटकता रहा। उथला जीवन जीता रहा;तंग हाथ किये, जीवन जीता रहा। न किसी को, दिल खोल कर अपना सका;न किसी का, खुला दिल स्वीकार कर सका;न आपस की, दूरी मिटा सका;न सब कु

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जीवन जीना आता ही नहीं

23 नवम्बर 2018
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जीवन जीना आता ही नहीं हम को जीना आता ही नहीं; हम को जीना आता ही नहीं ; हम को जीना आता ही नहीं। कहीं पहुंच जाने के चक्कर में रहते हैं;जीवन यात्रा का आनंद जाना ही नहीं। और, और, और अधिक चाहते रहते हैं;नया पकड़ने केलिए, मुट्ठी ढ़ीली करना आता ही नहीं। दूसरों को जिम्मेदार ठहरता रहता है;बदलना तो स्वयं को है,

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