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उसने भी प्यार किया है

27 नवम्बर 2018

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कहानी
उसने भी प्यार किया है
विजय कुमार तिवारी
वह अपने सुख या दुख को नहीं समझता। खुशी इस बात की है कि उसने भी प्यार किया है।भले ही इस बात को कोई नहीं जानता,परन्तु यह सच्चाई है। उसने बारहा ईश्वर से कहा है कि वह प्यार करता है। ईश्वर मुस्करा देता है। पहले इस पर उसे चिढ़ होती थी कि ईश्वर उसकी इतनी सी दुआ क्यों नहीं पूरी करता और उपर से हँसता रहता है। कभी-कभी उसे ईश्वर के होने पर ही शक होने लगता। सुन रखा था कि ईश्वर स्वयं प्रेम का देवता है,सबसे प्रेम करता है और चाहता है कि सभी एक-दूसरे से प्रेम करें। फिर उसके प्रेम को क्यों नहीं मानता ? क्या उसका कोई विशेष विधान है या प्रेम की कोई अलग व्याख्या है?धीरे-धीरे उसने स्वीकार करना सीख लिया कि ईश्वर की हँसी में व्यंग या उपहास नहीं है,वल्कि सहानुभूति है। उसकी झल्लाहट कम होने लगी और यह शिकायत भी दूर होने लगी कि ईश्वर उसपर हँसता है। यह भी सुना था कि वह चाहे तो सबकुछ कर सकता है। फिर इतनी शिकायत तो थी ही कि ईश्वर उसके लिए कुछ क्यों नहीं करता।
पहली बार उसकी भेंट श्यामा से हुई, तब उसने कोई विशेष गौर नहीं किया था।ऐसा भी हो सकता है कि उसके मन में प्रेम या आकर्षण जैसा कुछ रहा ही ना हो,या ऐसा कुछ हो भी तो कहने की हिम्मत ना हो।खुशी इस बात की थी कि श्यामा के घर वाले उसे शुरु से पसन्द करने लगे थे और उसका उस घर में आना-जाना बेरोक-टोक था। आंटी अक्सर कुछ खाने को देतीं और अंकल उसे धर्म की कहानियाँ सुनाते। श्यामा बहुत मधुर स्वर में भजन गाती।
एक दिन श्यामा ने अपनी माँ से कहा,"मैं अपनी सहेली के घर जाना चाहती हूँ। हमें मिलकर पढ़ना है। आप मेरे साथ चलो माँ।"
"आज मेरी तबियत अच्छी नहीं लग रही। किसी दूसरे दिन चलेंगें।"
"बहुत जरुरी है माँ,"उदास होती हुई श्यामा ने कहा।
तभी वह आता हुआ दिखाई दिया।माँ ने कहा,"उसके साथ चली जाओ।"
वह थोड़ा असंयत हुआ। श्यामा भी खुश नहीं हुई।परिस्थिति देखते हुए माँ ने कहा," बहुत देर होने लगे तो तुम लौट आना।"
पूरे रास्ते श्यामा चुप रही और पलकें झुकाये बढ़ती रही।वह भी चुपचाप थोड़ी दूरी बनाकर चलता रहा। सहेली और उसके घर वालों ने गर्मजोशी से दोनो का स्वागत किया। श्यामा सहेली के साथ भीतर चली
गयी और वह बाहर कमरे में सोफे पर बैठ गया।थोड़ी देर में चाय और कुछ बिस्कुट लेकर आंटी जी आयीं। अंकल को कहीं जाना था,वे चले गये। चाय पी लेने के बाद उसने आंटी से पूछा,"मुझे रुकना है या चला जाऊँ?"
"अभी रुको ना। पहली बार तो आये हो। इतनी भी क्या जल्दी है?"उन्होंने टीवी आन किया और अखबार लाकर रख दी। कोई पत्रिका लेकर वह भी वहीं बैठ गयीं। बीच-बीच में उसके बारे में कुछ-कुछ पूछ लेतीं। वह बहुत शालीनता से उत्तर देता रहा। फिर उन्होने कहा,"कुछ खाने के लिए लाती हूँ,आप हाथ धो लो।"
उसने ना कर दिया और उठ खड़ा हुआ।
"अरे बैठो भी,नहीं लाती कुछ,"आंटी ने हँसकर कहा,"चाय तो पीनी ही पड़ेगी। देखो "ना" मत कहना।"
ऐसे स्नेहिल भावों के आगे वह कुछ बोल नहीं पाया। आंटी चाय बनाने चली गयीं और उसने पूरे कमरे का मुआयना शुरु कर दिया। कमरे की दीवारें साफ-सुथरी थीं और हर दीवार पर देवताओं के कलैण्डर टँगे हुए थे। खिड़की खुली हुई थी जिसके पार फूलों की क्यारियाँ थीं और सुन्दर खुशबू फैली हुई थी।
आंटी चाय लेकर गयीं और गिलास में पानी भी। उसने पानी पिया और "धन्यवाद" कहा।
"चीनी कम हो तो बताना,"
"नहीं,ठीक है,"उसने एक घूँट पीने के बाद कहा।
अचानक श्यामा और उसकी सहेली की उन्मुक्त हँसी सुनायी दी। दोनो का ध्यान उधर गया और आंटी के चेहरे पर मुस्कान उभर आयी," जरुर कोई मजाक की बातें हुई होंगी।"
उसे भी अच्छा लगा। स्मित हँसी की स्थिति बनी परन्तु उसने भावों को प्रस्फुटित होने के पहले ही रोक लिया।
आंटी ने कहा," यही तो समय है,बेटियाँ हँस-बोल लेती हैं,वरना जीवन में क्या होगा,समझना मुश्किल है।आज का दौर बहुत खराब है।"
उसने "हाँ" में सिर हिलाया परन्तु मन ही मन सहमत नहीं था। आंटी उसके भावों को समझ गयीं,"आप भले ही कुछ भी सोचो,आज के हालात ऐसे ही हैं। लड़कों को समझना बहुत कठिन है।"
दोनो लड़कियाँ बाहर आयीं। दोनो के चेहरे दमक रहे थे और दोनो की आँखों में चमक थी। उसने श्यामा को कभी इतना खुश नहीं देखा था। पहली बार उसे महसूस हुआ,श्यामा बहुत अच्छी है और सुन्दर भी।
आंटी ने पुछा,'किस बात पर तुम दोनो इतनी खुश थी?"
उसने भी उत्तर की प्रतीक्षा में दोनो को बारी-बारी से देखा। श्यामा से नजरें मिली। वह मुस्कराने लगी और उसकी सहेली हँस पड़ी।
रास्ते में श्यामा ने कहा,"मेरी सहेली और आंटी को आप बहुत अच्छे लगे।" थोड़ा रुककर उसने फिर कहा,"आज आपका बहुत समय हमने ले लिया।"
"नहीं-नहीं,कोई बात नहीं। मुझे भी अच्छा लगा उन लोगो से मिलकर। आंटी दुबारा चाय बनायीं और बहुत सारी बातें कीं।"
श्यामा पहले की तरह फिर गम्भीर हो गयी और चुपचाप चलने लगी। उसने भी चुप्पी साध ली। इन्हीं मुश्किल पलों में कभी-कभी दोनो एक-दूसरे को देख लेते और अपनी-अपनी मुस्कराहट को छिपा लेते थे।
उस रात उसे नींद नहीं रही थी और दिन भर का दृश्य उसके सामने उभर आता था।पहली बार उसे गुदगुदी जैसा लगा और स्नेहिल पलों को उसने बार-बार याद किया। श्यामा की भोली सी मुस्कराहट स्थायी तौर पर उसकी स्मृतियों में बस गयी। उसने श्यामा की मूर्ति को याद करने की कोशिशें की। हर बार लगा,उसका सौन्दर्य अद्भूत और अप्रतिम है। उसका बोलना,हँसना,शरमाना,पलकें उठाना और झुका लेना किसी के मन को बाँध लेने वाला है। आश्चर्य है कि अब तक उसने सौन्दर्यमयी मूर्ति को समझा क्यों नहीं। उसने यह भी गौर किया कि जाते समय श्यामा खुश नहीं थी परन्तु लौटते समय बदल गयी थी। उसने बहुत जोर देकर सोचा कि वहाँ ऐसा क्या हुआ कि श्यामा हँसने-मुस्कराने लगी। श्यामा की बातें मधुर हैं और उसका गायन भी। आकाश में बादल छाये हुए थे और उसके भीतर कोई मधुर गूँज फैली हुई थी। शरीर में मधुर सिहरन,आँखों के सामने सौन्दर्य की मूर्ति और पुरे ब्रह्माण्ड में प्रेम का संगीत।जरूर उसे प्यार हुआ है और मुस्करा उठा।

क्या सचमुच उसे प्यार हुआ है? क्या यही प्यार है?उसकी सोचने की दिशा बदल गयी और मन के भीतर मानो कुछ घटित हो रहा हो। विस्तर पर सोये-सोये उसने इस रुपान्तरण की पूरी प्रक्रिया को महसूस किया और मनमोहक खुशी से झूम उठा।साथ ही उसने यह भी सोचा-इतना उतावला होना उचित नहीं है। उसने अपनी उमड़ती भावनाओं को रोकना चाहा,उनपर लगाम लगाना चाहा परन्तु प्रवाह इतना तीव्र था कि सारी हदें पार कर जाने की उत्कन्ठा जाग उठी।श्यामा अभी पास होती तो----तो? नहीं,नहीं--उसकी तन्द्रा भंग हुई। उठ बैठा। उसने पानी पीया और कमरे से बाहर गया। उत्साह और खुशी की जगह मानो बेचैनी छाने लगी। बाहर हवा में थोड़ी ठंडक थी। उसका स्पर्श अच्छा लगा। उसने मान लिया कि कोई शक नहीं,प्रेम हो गया है। साथ ही यह भी माना कि यदि यही प्रेम है तो बहुत मधुर अनुभूति के साथ गहरी टीस पैदा करने वाला है।
वह बहुत भावुक है और चिन्तनशील भी। उसका अपना तरीका है जिन्दगी जीने का। उसमें आकर्षण है और मजबूती भी। बहुत बारीकी से उसने सम्बन्धों को समझने की कोशिश की है। उसके दोस्त उसका आदर करते हैं परन्तु अपना आदर्श उसे नहीं बनाते। उनका मानना है कि जिन्दगी जीने की चीज है,बहुत आदर्शवान होना मजे लेने में सहायक नहीं है। वह धार्मिक विचार रखता है और परमात्मा में विश्वास करता है।इसी से अंकल जैसे लोग स्नेह करते हैं। अक्सर वह लड़कियों से दूर रहता है और उदासीन भी। बांकपन और आशिकी जैसी बातें उसमे नहीं दिखती। लड़किया भी ध्यान नहीं देतीं। सभी को उसमें अपना भैया दिखता है और इसी भाव से वह सबका अपना है। श्यामा के लिए भी शायद ऐसा ही था और इससे पहले उसे भी कोई एतराज नहीं था। उसके चेहरे पर मुस्कान की पतली रेखा उभर आयी- ओह मेरा प्यार।
सुबह उसकी नींद बहुत देर से टूटी। जल्दी-जल्दी उसने स्नान किया और मन्दिर पहुँच गया। मन्दिर मे बहुत भीड़ थी। एक कोने मे जाकर बैठ गया और हाथ जोड़े भगवान को देखता रहा। धीरे-धीरे उसकी आँखें बंद हो गयी। उसने अपनी सारी बातें,भावनायें और उत्साह भगवान को समर्पित कर दिया और उठ खड़ा हुआ। पुनः हाथ जोड़ा और बाहर निकल आया। मन हुआ कि श्यामा के घर जाया जाये परन्तु फिर अपने को नियन्त्रित किया और घर गया। उसे पूरी उम्मीद थी कि भगवान जरुर सहयोग करेंगें और उसका प्रेम रंग लायेगा।
अगले चार दिनों तक ईधर-उधर घूमता रहा और भीतर जन्म ले चुकी प्रेम-भावना की तपन महसूस करता रहा। इसमें उसे अद्भूत सुखानुभूति होती रही। चौथे दिन की साँझ वेला में अंकल मिल गये। उन्होंने हालचाल पूछा और घर आने को कहा। उसने बहाना बनाया,"थोड़ी व्यस्तता है। शीघ्र ही आऊँगा।"
उस रात उसे अच्छी नींद आयी। लगभग आश्वस्त हुआ कि श्यामा के घर में ऐसा कुछ नहीं हुआ है कि उस पर किसी तरह की चर्चा की जा सके। साथ ही यह भी हो सकता है कि श्यामा के मन में भी वैसी ही अनुभूति हो रही हो जैसा कि वह अनुभव कर रहा है।मन के किसी कोने मे उपजा भय तिरोहित हो चुका था।
अगले दिन एक सुखद संयोग बना।श्यामा को कालेज से शाम 4 बजे आना था और अंकल-आंटी को खरीदारी करने बाजार जाना था। घर की चाभी श्यामा को देनी थी। उसने चाभी ले ली और शाम 4 बजने की प्रतीक्षा करने लगा। वह आयी। उसने ताला खोला और श्यामा के साथ बाहरी कमरे तक चला आया। श्यामा के चेहरे पर थकान थी और उसने भी पहले की तरह गम्भीरता ओढ़ ली थी। श्यामा कीचेन में गयी और पानी लाकर दी। उसने पानी पी लिया।
"चाय बना दूँ?" श्यामा ने पूछा।
उसने कहा,'नहीं,तुम तो स्वयं थकी हुई हो।"
"बनाती हूँ" कहकर श्यामा फिर से कीचेन में चली गयी।पहले तो उसे थोड़ी झिझक सी हुई कि अकेली लड़की के साथ उसके घर में है,फिर उसने स्वयं को समझा लिया कि अंकल-आंटी ने खुद चाभी दी है। श्यामा ने चाय का कप सामने रखा और भीतर चली गयी। थोड़ी देर में वह बाहर आयी।उसने अपना कपड़ा बदल लिया था।
"अब चलूँ?' उसने कहा और उठ खड़ा हुआ। श्यामा भी खड़ी हो गयी।
रात की नींद फिर गायब थी। उसकी खुशी बेचैनी में बदल गयी। किसी भी तरह का संकेत नहीं था कि उसे कोई उम्मीद जगे। उसने अपनी हरकतों और गतिविधियों पर गौर किया कि कहीं कोई गलती ना हो गयी हो। सबकुछ ठीक ही था। उसने श्यामा पर गौर किया। वह थकी भी थी और थोड़ी असहज भी। ऐसा होना स्वाभाविक है। उसने महसूस किया कि श्यामा के दिल में ऐसा कुछ भी नहीं है। उसे अपने पर किंचित ग्लानि भी हुई। इसी उहापोह में कब नींद लग गयी,पता ही नहीं चला।
सुबह मौसम में ताजगी थी और चारो ओर पक्षियों का शोर था। उसने देखा,फूलों की क्यारियों में भौंरें गुँजार कर रहे हैं। उसके भीतर भी कुछ ऐसे ही गुँजायमान सा हुआ। श्यामा की सुन्दर आकृति उभरी मानो वह भी मुस्करा रही हो। कल की स्थिति को याद करते हुए उसने तात्कालिक अनुभूतियों को झटक देना चाहा। एक मासूम उदासी उभर आयी। इस हालात में डूबे रहना उसे अच्छा लगने लगा-प्यार की मूर्ति आँखों में हो,दिल को सिद्दत से महसूस हो रहा हो कि दुनिया बहुत खुबसूरत है,प्यार की अनुभूति भी हो और शायद ना हो जाने की बेचैनी भी हो। जो भी हो,उसके भीतर खुशी की लहर थी और पूरे शरीर में सिहरन।
एक समस्या और उठ खड़ी हुई। उसे श्यामा के घर के सामने से किसी युवा का गुजरना नागवार लगने लगा। वह नहीं चाहता कि कोई श्यामा को देखे।पूरी दुनिया से वह उसे बचाकर रखना चाहता था। कभी कोई गुजरे और श्यामा बाहर खड़ी दिखती तो उसकी भावनायें आहत होने लगती। भीतरी तौर पर उद्वेलित हो उठता और घण्टों स्वयं को पीड़ित पाता। सामान्य होने में बहुत समय लगता। यह भी सोचता कि क्यों इतना व्यथित होता है? शीघ्र ही यह विचार हावी हो जाता कि उसकी चिन्ता करना अस्वाभाविक नहीं है। अजीब उधेड़बुन थी। कभी लगता सबकुछ अच्छा है और कभी लगता,कुछ भी अच्छा नहीं है। कभी खुश होता और कभी उसका दिल बैठने लगता।प्रेम की पीड़ा वही समझ सकता है जिसने प्रेम किया हो। उसे यह भी स्पष्ट नहीं था कि श्यामा क्या चाहती है? प्यार की कोई कली उसके दिल में खिल भी रही है या नहीं?
श्यामा के घर में कोई पूजा-पाठ का कार्यक्रम होनेवाला था। अंकल निमन्त्रित तो किये ही थे,साथ ही तैयारी में मदद करने की भी बातें हुई थी। वह सहर्ष तैयार था और सुबह ही पहुँच गया। अंकल आफिस नहीं गये और श्यामा कालेज नहीं गयी। बाहर वाले कमरे को खाली किया गया। सारी कुर्सियाँ,टेबुल,सोफा और पलंग हटाया गया। भारी सामान को हटाने में अंकल भी साथ लग जाते थे। श्यामा भी कुछ-कुछ कर रही थी। उसे श्यामा का आसपास होना बहुत अच्छा लग रहा था। एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थिति यह हुई जिसने उसे खूब रोमांचित किया,आज काम करने,झाड़ू बहारने आदि के चलते श्यामा ने दुपट्टा नहीं लिया था। उसके सामने उसकी प्रियतमा,जैसा कि उसने मान लिया था, इस नये रुप में बहुत सुन्दर लग रही थी। श्यामा की भीतर बसी मूर्ति को उसने हटाया और इस नये,मोहक रुप को स्थापित किया।
आंटी की मदद के लिये श्यामा की सहेली की माँ गयी थी और सहेली भी थोड़ी देर में आने वाली थी। अंकल के साथ उसने फल और मिठाई की खरीदारी की। अंकल फूल तोड़ने लगे और उसने माला बनाना शुरु कर दिया। श्यामा ने थाल में अक्षत,चन्दन,रोरी,चावल,आम के पत्ते आदि सजाया. उसने महसूस किया कि श्यामा कोई भजन गुनगुना रही है। आंटी ने श्यामा से कहा कि सबके लिए चाय बना दे। चाय पीकर सभी फिर से तैयारी में जुट गये।
अपने घर से स्नान करके जब वह वापस लौटा तो यहाँ का वातावरण भक्तिमय हो चुका था। अंकल पीले रंग का वस्त्र धारण कर चुके थे और श्यामा लाल रंग का मखमली सूट पहनी थी। उसने एक बार फिर उसे बहुत ध्यान से देखा। वह बहुत भव्य और सुन्दर लग रही थी। उसकी सहेली भी गयी थी। स्वाभाविक था कि दोनो सहेलियों में मित्रता,हास्य और थोड़ी शरारत की स्थिति बन चुकी थी। वे दोनो थोड़ी दूरी पर थी और कुछ-कुछ कर भी रही थी। अंकल के कहने पर उसने एक बाल्टी पानी और लोटा बाहर रखा ताकि लोग अपना हाथ-पैर धो कर बैठें।
पूजा का सारा कार्यक्रम बहुत देर तक चला और सभी भक्ति में डूबे हुए थे। उसका ध्यान दोनो तरफ था। जब भी वह श्यामा की ओर देखता,उसकी सहेली से निगाहें मिल जाती। बाद में उसने अपना पूरा ध्यान पूजा में लगा दिया। पूजा के बाद प्रसाद वितरण हुआ। फिर सभी को भोजन करवाया गया। उसने भोजन परोसने में दोनो सहेलियो की मदद की।
रात में जब वह सोने लगा तो नींद नहीं रही थी। बेचैनी भी थी। दिनभर साथ रहने,साथ काम करने और बातचीत के बावजूद कोई संकेत नहीं दिखा। उसने इस विचार को अपने तर्को से झटक देना चाहा। सुबह से शाम तक उसने उसे अनेक रुपों में देखा और खुश होता रहा।उसने अपना सौभाग्य माना कि दिनभर उसके साथ रहने का मौका मिला।
एक दिन श्यामा ने उससे कहा," आपको पता है-मेरी सहेली की शादी हो रही है?"
"यह तो बहुत शुभ समाचार है," उसने उत्तर दिया और मुस्करा दिया। श्यामा के चेहरे पर मुस्कान के साथ लाली उभर आयी। शादी के दिन श्यामा की खूबसूरती और निखर आयी थी। आज उसने साड़ी पहन रखी थी।गोरे रंग पर गुलाबी साड़ी खूब जँच रही थी। उसके हृदयपटल पर यह छवि भी अंकित हो गयी। उसकी स्मृतियों में श्यामा के अनेक रुप उभरते,मिटते रहते थे और हर रुप पर उसकी दीवानगी का आलम देखते बनता था।
लेकिन श्यामा में उसने एक परिवर्तन की झलक देखी। वह थोड़ी उदास और चुप सी रहने लगी। उसका यो चुप-चुप रहना उसे नागवार गुजरने लगा। सहेली से जुदाई कारण हो सकता है। उसने किसी दिन पूछ ही लिया परन्तु श्यामा ने कोई उत्तर नहीं दिया। बाद में बतायी कि उससे पढ़ायी में बहुत मदद मिलती थी।
उसने कहा," तुम चाहो तो मैं कुछ मदद कर सकता हूँ।"
श्यामा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी,परन्तु आंटी ने अपनी सहमति जता दी।अंकल को भी कोई एतराज नहीं था। मिलने-जुलने के सुअवसर बनने लगे। श्यामा में एक बदलाव और दिखा। अब वह तत्परता के साथ अध्ययन में जुट गयी। शायद उसने अपने लिए कोई बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर लिया था। गम्भीरता भी गयी थी। परीक्षा भी समीप थी। स्थिति यह हुई कि पास होकर भी वह उससे बहुत दूर दिखती। वह दुखी तो होता था परन्तु एक संतोष था कि सामने तो रहती है और मुलाकात हो जाती है।
परीक्षा के ठीक पहले आंटी के पिताजी की तवियत बहुत खराब हो गयी। हर हाल में अंकल,आंटी का जाना जरुरी था।आंटी अपने पिताजी को लेकर बहुत चिंतित थी। श्यामा को इस तरह छोड़कर जाने में भी उनका दिल धड़कता था। उन्होंने अपनी व्यथा को छिपाते हुए कहा,' देखो तुम मेरे बेटे के बराबर हो। बहुत विश्वास करके जा रही हूँ। ध्यान रखना।"
"आप बिल्कुल चिन्ता नहीं करें," उसने कहा।
'तुम यहीं सो जाना," आंटी की आवाज बहुत भारी लगी। आँखें भर आयीं। उसने फिर से चिन्ता ना करने की बात कही। श्यामा के चेहरे पर भी भय जैसी भावनायें थीं। उसने अपने दिल को कड़ा किया और अपने संस्कार के अनुसार तय कर लिया कि बहुत सावधानी से अपने वचन का निर्वाह करेगा।
श्यामा की परीक्षा का पहला दिन बहुत अच्छा रहा। उसने पूछा तो वह मुस्करा कर बोली,' बहुत अच्छा रहा। बहुत डर लग रहा था।"
उसने कहा," सब अच्छा होगा। तुम बिना किसी चिन्ता के,बिना किसी भय के तैयारी करो और परीक्षा दो। कोई भी असुविधा लगे तो बता दो,मैं उसे दूर कर दूँगा। खूब पढ़ो और मन से परीक्षा दो।"फिर उसने मुस्कराते हुए पूछा,"कोई चीज पसन्द हो तो बोल दो,बाजार से ला दूँगा।"उसके चेहरे पर मुस्कान उभर आयी। श्यामा थकी थी। वहीं लेट गयी और नींद गयी। सोयी हुई श्यामा को उसने देखा,"कितनी सुन्दर हो तुम।उसने अपनी भावनाओं को नियन्त्रित किया,बाहर निकल आया और आसपास घुमता रहा।थोड़ी देर में श्यामा भी बाहर गयी। साँझ ढलने वाली थी और अंधेरा छाने लगा था।चाय पीकर वह पढ़ने बैठ गयी और वह उसे देखता रहा। कभी कभी श्यामा कुछ पूछती तो बता देता।
अंकल-आंटी आये तो परीक्षा समाप्त हो गयी थी। आंटी रो पड़ी। उनके पिताजी का देहान्त हो चुका था। उनकी आँखों में खुशी के भी आँसू थे कि उनके विश्वास की रक्षा हुई है। एक खुशी यह भी थी कि उन लोगों ने श्यामा के लिए एक अच्छा लड़का भी देखा है
लेकिन यह बात उसे नहीं बतायी गयी। श्यामा अब मुखर हो चली थी और घर में हँसती खिलखिलाती रहती थी। उसने सोचा,शायद परीक्षा के दबाव से मुक्ति का अहसास हो।साथ ही उसे अपने पर भी चिन्ता हो रही थी। उसे कुछ नहीं आता। कहीं ऐसा ना हो कि वो देखता रह जाय और श्यामा किसी और की हो जाय। नहीं,ऐसा नहीं हो सकता। अपनी बात की पुष्टि के लिए उसके पास अनेकों तर्कसंगत आधार थे।उसे अपने प्यार पर विश्वास था। श्यामा की खुशी का कारण उसने जहाँ परीक्षा खत्म हो जाना माना,अंकल-आंटी का जाना माना,वहीं अपने प्रेम को भी माना।
एक दिन सुबह-सुबह अंकल ने कहा,"आज हम सभी बगल के शहर में एक धार्मिक कार्यक्रम में जा रहे हैं। तुम भी तो धर्म-अध्यात्म में रुचि रखते हो। हो सके तो हमारे साथ चलो।"
वह तैयार हो गया। उसने सोचा,' श्यामा का साथ तो रहेगा और दिनभर बहुत खुशी रहेगी।"
जल्दी ही वे सभी घर से निकल पड़े। मुख्य सड़क तक पैदल ही चलना पड़ा। आती-जाती गाड़ियों में भीड़ बहुत थी। कोई गाड़ी रुकती नहीं थी। थोड़ी प्रतीक्षा के बाद एक रुकी तो वे लोग चढ़ने लगे। बैठने की स्थिति सम्भव नहीं थी। पहले से ही बहुत लोग खड़े थे। अंकल,आंटी आगे हो लिये। श्यामा भीड़ में दबी उसके सामने थी और लगभग सटी हुई खड़ी थी। उसका नैतिक भाव जाग उठा। उसने पूरा बल लगाकर एक दूरी बनाये रखा। श्यामा ने मुस्कराकर उसके इस व्यवहार पर खुशी जतायी।फिर भी कभी-कभी ना चाहते हुए भी दोनो का स्पर्श हो ही जाता था।उसका मन हिलोरे मारने लगता।
कार्यक्रम स्थल पर समय से पहुँच जाने की खुशी अंकल के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही थी। उनके बहुत से परिचित लोग मिले और अंकल ने उसका परिचय बहुत लोगों से करवाया। भजन गाने के लिये दो लड़कियाँ बैठी थीं,श्यामा भी उन्हीं के साथ बैठ गयी। उसे बहुत अच्छा लगा क्योंकि सामने से उसे देखते रहने का सुअवसर था। उन तीनो ने अनेक भजन गाये और पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। कार्यक्रम लम्बा चला और अन्त में सभी ने महाप्रसाद लिया।
लौटते समय भीड़ और ज्यादा थी। सामने से कई गाड़ियाँ निकल गयीं। जिसमें वे लोग चढ़ पाये,भीतर पाँव रखने की जगह नहीं थी। बचाव का कोई उपाय नहीं था। दोनो सटे हुए खड़े थे और भीड़ के पूर्ण दबाव में थे। हालाँकि उसने लगातार पूरी कोशिश की जिसका सकारात्मक अहसास श्यामा को भी था।
बहुत कम समय के लिये श्यामा की सहेली अपने ससुराल से आयी। श्यामा ने कहा," चलिये मिल आते हैं।"उसने गौर किया-कितना बदल जाती है लड़कियाँ शादी के बाद और बहुत खुश हो जाती हैं। दोनो सहेलियाँ गले मिलीं और खूब खुश हुईं। बाहर वाले कमरे में ही सभी बैठे। उनकी बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं। बेझिझक दोनो कुछ भी बोलतीं और खूब हँसने लगतीं। श्यामा को खुश देखकर वह भी खुश होता और मुस्कराता रहता।
आंटी ने उससे कहा," हमलोग गाँव जाने वाले हैं और तुम यहीं सोया करना।"उसने घर की चाभी ले ली और सोचा,"मेरी स्थिति उलझती जा रही है। मैं इसे क्या समझूँ? श्यामा के चेहरे पर खुशी तो है लेकिन किस कारण से है,यह समझना आसान नहीं है। अचानक गाँव क्यों गये हैं?किसी ने कुछ बताया भी नहीं। श्यामा ने भी तो बातें करना शुरु कर ही दी है।बहुत कुछ बताती रहती है-सहेली के बारे में,घर के बारे में,अपनी रुचियों के बारे में। धीरे-धीरे उसने उसकी बहुत सी आदतों को जान लिया है।" फिर वह उदास हो जाता-कहाँ जान पाता है कि उसके दिल में क्या है?कभी-अभी उसे लगता है कि क्यों इस झमेले मे पड़ गया है?कहीं ऐसा तो नहीं कि ये लोग मुझे उसके योग्य ना मानते हों?फिर सोचता कि नहीं,ऐसा नहीं हो सकता।
जिस शाम वे लोग आये,बाहर बहुत बरसात हो रही थी। श्यामा पूरी तरह भीग चुकी थी और उसके कपड़े शरीर से चिपके हुए थे। उसने देखा परन्तु निहार नहीं सका।श्यामा शीघ्र ही भीतर चली आयी। उसने तौलिया बढ़ा दिया और बाहर निकल आया।
सप्ताह पर सप्ताह बीतने लगे। उसका श्यामा के घर आना-जाना अपेक्षाकृत कम होता गया। कभी जाता तो श्यामा से बहुत सी बातें करता और वह हँसती-मुस्कराती रहती।ऐसे हालात में उसका कलेजा मुँह को जाता परन्तु बहुत मुश्किल से अपने को रोक पाता। बहुत कुछ कहना चाहता था परन्तु कुछ भी नहीं कह पाता। श्यामा को खुश देख खुश हो जाता।
एक दिन उसने हिम्मत की और तय कर लिया कि आज श्यामा को सब कुछ बता देगा। श्यामा बाहर वाले कमरे में थी। उसने उत्साह के साथ स्वागत किया। चाय बनाने चली गयी। चाय का कप रखते हुए श्यामा ने कहा,"आप थोड़ी मेरी मदद कीजिये।"
चाय का कप उठाते हुए उसने पूछा,"क्या?"
"मुझे कुछ खरीदारी करनी है। आप मेरे साथ बाजार चलिये" श्यामा ने निवेदन किया।
"हाँ, जरुर" वह उठ खड़ा हुआ।
उस दिन श्यामा ने बहुत खरीदारी की और खूब खुश थी। श्यामा का उत्साह देखते बनता था। वह भी खुश था कि श्यामा खुश है। उसने उसकी पसन्द की दाद दी,उसके चातुर्य की सराहना की और खिले हुए चेहरे को बार-बार देखा। प्यार से देखा,उमंग और उत्साह से देखा। श्यामा ने हर बार उसके पसन्द की सलाह ली और बोलती रही,"आपकी पसन्द बहुत अच्छी है।"उसने श्यामा से कहा,' मैं भी तुम्हें कुछ गिफ्ट देना चाहता हूँ,अस्वीकार तो नहीं करोगी?"श्यामा खुश होती हुई बोली,"मुझे खुशी होगी।"उसने एक घड़ी खरीदी और दे दिया। श्यामा ने खुशी से स्वीकार कर लिया और वहीं अपनी कलाई में पहन ली।उसे बहुत प्रसन्नता हुई।
रात को जब उसने आज दिनभर के घटनाक्रम पर गौर किया तो भीतर बहुत संतोष और शान्ति महसूस हुई। अंकल,आंटी भी खरीदारी में लगे थे और कई दिन उसे भी साथ ले गये।
उसने देखा कि श्यामा उसके घर की तरफ रही है। आश्चर्य के साथ उसने दरवाजा खोला। श्यामा के चेहरे पर मुस्कान फैली थी।उसने कहा,"आज आप शाम में हमारे साथ खाना खायेंगें। माँ ने बुलाया है।"
जब वह उसके घर पहुँचा तो देखा भोजन तैयार था। सभी प्रसन्न थे। श्यामा कुछ ज्यादा ही चहक रही थी। उसने प्रश्न-सूचक दृष्टि से देखा। श्यामा ने कहा,"आप कहते थे ना कि मैं आपसे कुछ मागूँ। भाईजान मुझे एक सुन्दर सी भाभी ला दीजिये।"

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रेणु

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आदरणीय विजय जी -- जिसकी रही भावना जैसी -- प्रभु मूर्ति देखी तिन तैसी ---- बेहद रोचक और आपका सुंदर प्रस्तुतिकरण बहुत शानदार है | नायक के भीतरी उहापोह को बड़ी ही सहजता से लिखा आपने ||लेकिन बेचारे नायक पर बहुत ही करुणा हो आई , पर अतंतः तो सब नियति और सम्भाव्य है | आपकी इस पोस्ट को आज की सर्वश्रष्ठ रचना के रूप में शब्द नगरी पर प्रतिष्ठित होने के लिए आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनायें

28 नवम्बर 2018

उदय पूना

उदय पूना

प्रिय विजय कुमार तिवारी, हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं, आपकी कहानी - (उसने भी प्यार किया है) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना है.

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कविता-12/12/1984तुम्हारे लिएविजय कुमार तिवारीबाट जोहती तुम्हारी निगाहें,शाम के धुँधलके का गहरापन लिए,दूर पहाड़ की ओर से आती पगडण्डी पर,अंतिम निगाह डालजब तलक लौट चुकी होंगी। उम्मीदों का आखिरी कतरा,आखिरी बूँदतुम्हारे सामने हीधूल में विलीन हो चुका होगा। आशा के संग जुड़ी,सारी आकांक्षायेंमटियामेट हो ,दम

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बदले की भावना

12 सितम्बर 2018
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कहानीबदले की भावनाविजय कुमार तिवारीभोर की रश्मियाँ बिखेरने ही वाली थीं,चेतन बाहर आने ही वाला था कि उसके मोबाईल पर रिंगटोन सुनाई दिया। उसने कान से लगाया।उधर से किसी के हँसने की आवाज आ रही थी और हलो का उत्तर नही। कोई अपरिचित नम्बर था और हँसी भी मानो व्यंगात्मक थी। कौन हो सकती है? बहुत याद करने पर भी क

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कोख की रोशनी

12 सितम्बर 2018
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मौलिक कविता 21/11/1984कोख की रोशनीविजय कुमार तिवारीतुम्हारी कोख में उगता सूरज,पुकारता तो होगा?कुछ कहता होगा,गाता होगा गीत? फड़कने नहीं लगी है क्या-अभी से तुम्हारी अंगुलियाँ?बुनने नहीं लगी हो क्या-सलाईयों में उन के डोरे?उभर नहीं रहा क्या-एक पूरा बच्चा?तुम्हारे लिए रोते हुए,अंगली थामकर चलते हुए। उभर र

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गांव की लड़की का अर्थशास्त्र

12 सितम्बर 2018
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कहानीगाँव की लड़की का अर्थशास्त्रविजय कुमार तिवारीगाँव में पहुँचे हुए अभी कुछ घंटे ही बीते थे और घर में सभी से मिलना-जुलना चल ही रहा था कि मुख्यदरवाजे से एक लड़की ने प्रवेश किया और चरण स्पर्श की। तुरन्त पहचान नहीं सका तो भाभी की ओर प्रश्न-सूचक निगाहों से देखा। "लगता है,चाचा पहचान नहीं पाये,"थोड़ी मु

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उसे कोई नहीं समझता

16 सितम्बर 2018
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उसने कभी निराश नहीं किया

17 सितम्बर 2018
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परम पूज्य सचिन बाबा का जाना

21 सितम्बर 2018
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जन्म जन्मांतर के बैर के लिए प्रार्थना

23 सितम्बर 2018
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जन्म-जन्मान्तर के वैर के लिए क्षमा और प्रार्थना विजय कुमार तिवारी अजीब सी उहापोह है जिन्दगी में। सुख भी है,शान्ति भी है और सभी का सहयोग भी। फिर भी लगता है जैसे कटघरे में खड़ा हूँ।घर पुराना और जर्जर है। कितना भी मरम्मत करवाइये,कुछ उघरा ही दिखता है। इधर जोड़िये तो उधर टूटता है। मुझे इससे कोई फर्क नहीं

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आत्मा और पुनर्जन्म

23 सितम्बर 2018
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आत्मा और पुनर्जन्मविजय कुमार तिवारी यह संसार मरणधर्मा है। जिसने जन्म लिया है,उसे एक न एक दिन मरना होगा। मृत्यु से कोई भी बच नहीं सकता। इसीलिए हर प्राणी मृत्यु से भयभीत रहता है। हमारे धर्मग्रन्थों में सौ वर्षो तक जीने की कामना की गयी है-जीवेम शरदः शतम। ईशोपनिषद में कहा गया है कि अपना कर्म करते हुए मन

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आत्मा से आत्मा का मिलान

23 सितम्बर 2018
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आत्मा से आत्मा का मिलनविजय कुमार तिवारीभोर में जागने के बाद घर का दरवाजा खोल देना चाहिए। ऐसी धारणा परम्परा से चली आ रही है और हम सभी ऐसा करते हैं। मान्यता है कि भोर-भोर में देव-शक्तियाँ भ्रमण करती हैं और सभी के घरों में सुख-ऐश्वर्य दे जाती हैं। कभी-कभी देवात्मायें नाना र

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आँखों के मोती

26 सितम्बर 2018
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कविता-20/07/1985आँखों के मोतीविजय कुमार तिवारीजब भी घुम-घाम कर लौटता हूँ,थक-थक कर चूर होता हूँ,निढ़ाल सा गिर पड़ता हूँ विस्तर में।तब वह दया भरी दृष्टि से निहारती है मुझेगतिशील हो उठता है उसका अस्तित्वऔर जागने लगता है उसका प्रेम।पढ़ता हूँ उसका चेहरा, जैसे वात्सल्य से पूर्ण,स्नेहिल होती,फेरने लगती है

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उसने कभी निराश नही किया

26 सितम्बर 2018
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कहानीउसने कभी निराश नहीं किया-4विजय कुमार तिवारीप्रेम में जादू होता है और कोई खींचा चला जाता है। सौम्या को महसूस हो रहा है,यदि आज प्रवर इतनी मेहनत नहीं करता तो शायद कुछ भी नहीं होता। सब किये धरे पर पानी फिर जाता। भीतर से प्रेम उमड़ने लगा। उसने खूब मन से खाना बनाया। प्रवर की थकान कम नहीं हुई थी परन्

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उसने कभी निराश नही किया -3

26 सितम्बर 2018
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कहानीउसने कभी निराश नही किया-3विजय कुमार तिवारीजिस प्रोफेसर के पथ-प्रदर्शन में शोधकार्य चल रहा था,वे बहुत ही अच्छे इंसान के साथ-साथ देश के मूर्धन्य विद्वानों में से एक थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की निर्धारित तिथि के पूर्व शोध का प्रारुप विश्वविद्यालय मे जमा करना था। मात्र तीन दिन बचे थे।विभागाध्य

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उसने कभी निराश नही किया -2

26 सितम्बर 2018
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कहानीउसने कभी निराश नहीं किया-2विजय कुमार तिवारीसौम्या शरीर से कमजोर थी परन्तु मन से बहुत मजबूत और उत्साहित। प्रवर जानता था कि ऐसे में बहुत सावधानी की जरुरत है। जरा सी भी लापरवाही परेशानी में डाल सकती है। पहले सौम्या ने अपनी अधूरी पढ़ायी पूरी की और मेहनत से आगे की तैयारी

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उसने कभी निराश नही किया -1

26 सितम्बर 2018
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कहानी उसने कभी निराश नहीं किया-1विजय कुमार तिवारी"अब मैं कभी भी ईश्वर को परखना नहीं चाहता और ना ही कुछ माँगना चाहता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैंने पहले कभी याचना नहीं की है और परखने की हिम्मत भी। हर बार मैं बौना साबित हुआ हूँ और हर बार उसने मुझे निहाल किया है।दावे से कहता हूँ-गिरते हम हैं,हम पतित होते है

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तुम खुश हो

28 सितम्बर 2018
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कवितातुम खुश होविजय कुमार तिवारीआदिम काल में तुम्हीं शिकार करती थी,भालुओं का,हिंस्र जानवरों का और कबीले के पुरुषों का,बच्चों से वात्सल्य और जवान होती लड़कियों से हास-परिहासतुम्हारी इंसानियत के पहलू थे। तुम्हारी सत्ता के अधीन, पुरुष ललचाई निगाहों से देखता था,तुम्हारे फेंके गये टुकड़ों पर जिन्दा थाऔर

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सच्चा प्रेमी

9 नवम्बर 2018
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कवितासच्चा प्रेमीविजय कुमार तिवारीतुमने तोड़ डाले सारे रिश्तेऔर फेंक दिया लावारिश राहों में। तुमने मुझे दोषी कहा,धोखेबाज और ना जाने क्या-क्या?तुम्हारे मधुर शब्द कितने खोखले निकले,दूर तक चलने की कसमें कितनी बेमतलबऔर तुम्हारी कोशिशें किसी मायाजाल सी। मुझे कुछ भी नहीं कहना,कोई शिकवा नहीं,कोई शिकायत नही

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जीवन एक दर्शन है

15 नवम्बर 2018
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जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं जिसमें इंसान अपने आप को निखारता है और फिर एक पक्का खिलाड़ी बनाता है। हर इंसान हर फील्ड में चैम्पियन नहीं बन सकता है और हर किसी की अपनी-अनपी स्किल्स होती है जिसके हिसाब से व्यक्ति उसमें आगे बढ़ता है। य

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उसने भी प्यार किया है

27 नवम्बर 2018
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देवरहा बाबा के बहाने

1 दिसम्बर 2018
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देवरहा बाबा के बहानेविजय कुमार तिवारीजब हम एकान्त में होते हैं तो हमारे सहयात्री होते हैं-आसपास के पेड़-पौधे। वे लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसी अनुभूति होती है। मेरा दुर्भाग्य रहा कि मुझे पूज्य देवरहा बाबा जी का दर्शन करने का सुअवसर नहीं मिला। साथ ही सौभाग्य है कि आज मैं उन्हें श्रद्धा भाव से या

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कौन सा पतझड़ मिले

2 दिसम्बर 2018
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गीत कौन सा पतझड़ मिले? विजय कुमार तिवारी और गा लूँ जिन्दगी की धून पर, कल न जाने प्रीति को मंजिल मिले? दर्द में उत्साह लेकर बढ़ रहा था रात-दिन, आह में संगीत संचय कर रहा था रात-दिन। आज सावन कह रहा है बार-बार, क्यों लिया बंधन स्व-मन से रात-दिन? सोचता हूँ चुम लूँ वह पंखुड़ी, कल न जाने कौन सी बेकल खिल

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एक प्यार ऐसा भी

11 दिसम्बर 2018
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उसका चाँद

12 दिसम्बर 2018
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कहानीउसका चाँदविजय कुमार तिवारीबचपन में चाँद देखकर खुश होता था और अपलक निहारा करता था। चाँद को भी पता था कि धरती का कोई प्राणी उसे प्यार करता है। दादी ने जगा दिया था प्रेम उसके दिल में, चाँद के लिए। बड़ी बेबसी से रातें गुजरतीं जब आसमान में चाँद नहीं होता। वैसे तो दादी नित्य ही चाँद को दूध-भात के कटो

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अन्तर्मन की व्यथा

15 दिसम्बर 2018
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कहानीअन्तर्मन की व्यथाविजय कुमार तिवारी"है ना विचित्र बात?"आनन्द मन ही मन मुस्कराया," अब भला क्या तुक है इस तरह जीवन के बिगत गुजरे सालों में झाँकने का और सोयी पड़ी भावनाओं को कुरेदने का?अब तो जो होना था, हो चुका,जैसे जीना था,जी चुका। ऐसा भी तो नही हैं कि उसका बिगत जीवन बह

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माँ-बेटी

16 दिसम्बर 2018
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कहानीमाँ-बेटीविजय कुमार तिवारीउम्र ढल रही है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है।शादी नहीं होने का दुख मुझे नहीं है।अम्मा की उदासी मेरा दुख बढ़ा देती है।कभी-कभी लगता है कि उसके सारे दुखों का कारण मैं ही हूँ।भीतर बहुत दर्द उभरता है।तब दर्द और बढ़ जाता है जब अम्मा कहीं दूर से म

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प्यार के बहुतेरे रंग

17 दिसम्बर 2018
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कविताप्यार के बहुतेरे रंगविजय कुमार तिवारीयाद करो मैंने पूछा था-तुम्हारी कुड़माई हो गयी?यह एक स्वाभाविक प्रश्न था,तुमने बुरा मान लिया, मिटा डाली जुड़ने की सारी सम्भावनायेंऔर तोड़ डाले सारे सम्बन्ध। प्यार की पनपती भावनायें वासना की ओर ही नहीं जाती,वे जाती हैं-भाईयों की सुरक्षा में,पिता के दुलार में,व

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ट्रेन यात्रा

18 दिसम्बर 2018
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कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

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स्नेह निर्झर

3 जनवरी 2019
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कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा

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बूढ़ा आदमी

6 जनवरी 2019
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कविता(मौलिक)बूढ़ा आदमीविजय कुमार तिवारीथक कर हार जाता है,बेबस हो जाता है,लाचारजबकि जबान चलती रहती है,मन भागता रहता है,कटु हो उठता है वह,और जब हर पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है,कुछ न कर पाने पर तड़पता है बूढ़ा आदमी। कितना भयानक है बूढ़ा हो जाना,बूढ़ा होने के पहले,क्या तुमने देखा है कभी-तीस साल की उम्र को बूढ

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देश बचाना

13 जनवरी 2019
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कवितादेश बचानाविजय कुमार तिवारीस्वीकार करुँ वह आमन्त्रणऔर बसा लूँ किसी की मधुर छबि,डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल, रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तानरचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग। या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,उठा लूँ लड़ने के औजारचल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान। कु

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विम्ब का ये प्यार

15 जनवरी 2019
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गीत(09/05/1978)विम्ब का ये प्यारविजय कुमार तिवारीकौन दूर से रहा निहार?दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार, विम्ब का ये प्यार। पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये। आज हाथ केवल है हार,दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,विम्ब का ये प्यार। धड़कने सिसकाव का सहारा ले,मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले। अदाय

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बचपन की यादें

18 जनवरी 2019
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कहानीबचपन की यादेंविजय कुमार तिवारीये बात तब की है जब हमारे लिए चाँद-सितारों का इतना ही मतलब था कि उन्हें देखकर हम खुश होते थे।अब धरती से जुड़ने का समय आ गया था और हम खेत-खलिहान जाने लगे थे।धीरे-धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया बँटी हुई है और खेत-बगीचे सब के बहुत से मालिक हैं।यह मेरा बगीचा है,मेरी

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अन्तर्यात्रा का रहस्य

22 जनवरी 2019
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अन्तर्यात्रा का रहस्यविजय कुमार तिवारीकर सको तो प्रेम करो।यही एक मार्ग है जिससे हमारा संसार भी सुव्यवस्थित होता है और परमार्थ भी।संसार के सारे झमेले रहेंगे।हमें स्वयं उससे निकलने का तरीका खोजना होगा।किसी का दिल हम भी दुखाये होंगे और कोई हमारा।हम तब उतना सावधान नहीं होते जब हम किसी के दुखी होने का का

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गुरु और चेला

28 जनवरी 2019
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व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह

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स्त्री-पुरुष

29 जनवरी 2019
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कहानीस्त्री-पुरुषविजय कुमार तिवारीइसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं जिन्हें महिलाओं ने लिखा है और खूब प्रसिद्धी बटोर रही हैं।कहानियाँ तो अपनी जगह हैं,परन्तु उनपर आयीं टिप्पणियाँ रोचक कम, दिल जलाने लगती हैं।लगता है-यह पुरुषों के प्रति अन्याय और विद्रोह है।रहना,पलना और जीना दोनो को साथ-साथ ही है।दोनो के भीतर

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आतंक

4 फरवरी 2019
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कविता(मौलिक)आतंकविजय कुमार तिवारीचलो, मुझे उस मोड़ तक छोड़ दो,सांझ होने को है,अंधियारे जाया नहीं जायेगा। न हो तो बीच वाले मन्दिर से लौट आना,या उस मस्जिद से,जहाँ सड़क पार चर्च है।अस्पताल तक तो पहुँचा ही देनाचला जाऊँगा उससे आगे। ऐसा नहीं कि हिन्दुओं से डरता हूँ,मुसलमानों से भी नहीं डरता,सिखों या किसी

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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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पुरानी यादे

7 फरवरी 2019
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पुरानी यादेंविजय कुमार तिवारी1983 में 4 सितम्बर को लिखा-डायरी मेरे हाथ में है और कुछ लिखने का मन हो रहा है। आज का दिन लगभग अच्छा ही गुजरा है।ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे खुश भी करना चाहती हैं और कुछ त्रस्त भी।जब भी हमारी सक्रियता कम होगी,हम चौकन्ना नहीं होंगे तो निश्चित मानिये-हमारी हानि होगी।जब हम

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प्रेम का मौसम

9 फरवरी 2019
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प्रेम का मौसमविजय कुमार तिवारीप्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच

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चुनाव 2019

10 फरवरी 2019
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चुनाव-2019विजय कुमार तिवारीहम वोट देने वाले हैं।वोट देना हमारा अधिकार है और कर्तव्य भी।यह बहुत संयम, धैर्य और विचार का विषय है।आज से पहले शायद कभी भी हमने इस तरह नहीं सोचा।चुनाव आयोग और हमारे संविधान ने इस विषय में बहुत से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।हम सभी सामान्य वोटर को बहुत कुछ पता भी नहीं है।कई

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आत्म-बोध

15 फरवरी 2019
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पहली मुलाक़ात

21 फरवरी 2019
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कवितापहली मुलाकातविजय कुमार तिवारीयह हठ था या जीवन का कोई विराट दर्शन,या मुकुलित मन की चंचल हलचल?रवि की सुनहरी किरणें जागी,बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,हुई सुवासित डाली डाली, जागी कोई मधुर कल्पना।शशि लौट चुका थानिज चन्द्रिका-पंख समेटे। उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजो

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शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019
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प्यार ही डसने लगा

28 फरवरी 2019
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प्यार ही डंसने लगाविजय कुमार तिवारीतुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हो गये अपने पराये,आईना छलने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हर हवा तूफान सी,झकझोर देती जिन्दगी,धुंध में खोया रहा,पतवार भी डुबने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?चाँद तारे छुप गये हैं,दर्द के शैलाब में,ढल गया दिल का उजाला,

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बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिये

5 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिएविजय कुमार तिवारीबच्चा जैसे ही अपने आसपास को देखना शुरु करता है उसके मन में प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं।वह जानना चाहता है,समझना चाहता है और पूछना चाहता है।जब तक बोलने नहीं सीख जाता,व्यक्त करने नहीं सीख जाता,उसके प्रश्न संकेतों में उभरते हैं।उसे यह धरती,यह आकाश,य

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विज्ञापन

22 मार्च 2019
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कविताविज्ञापनविजय कुमार तिवारीजागते ही खोजती है अखबार,झुँझलाती है-कि जल्दी क्यों नहीं दे जाता अखबार। अखबार में खोजती है-नौकरियों के विज्ञापन। पतली-पतली अंगुलियों से,एक -एक शब्द को छूती हुई,हर पंक्ति पर दृष्टि जमाये,पहुँच जाती है अंतिम शब्द तक। गहरा निःश्वांस छोड़ती है

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महत् चिंतन

4 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपाय

5 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपायविजय कुमार तिवारीसंसार में सभी सुख चाहते हैं,दुख कोई नहीं चाहता,जबकि कोई सुखी नहीं है, सभी दुखी हैं।कबीर दास जी ने कहा है कि सारा संसार दुख से भरा है।मेरा मानना है कि हमें सत्य दिखता नहीं।हम असत्य देखने के आदी हो गये हैं।हम झूठ देखते हैं और अपनी सुविधा से

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मि. ख़ का शहर

9 अप्रैल 2019
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प्रेम के भूख

5 सितम्बर 2019
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प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

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नदी के दावेदार

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छमा करना

1 अक्टूबर 2019
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मशाल

4 अक्टूबर 2019
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करूँ-ह्रदय

11 अक्टूबर 2019
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दुःख

12 अक्टूबर 2019
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दुनिया युद्ध के महाविनाश की ओर जा रही है।यदि ऐसा हुआ तो किसी न किसी रुप में हम सभी प्रभावित होंगे।वैसे ही दुनिया में लोग अनेकानेक कारणों से दुखी हैं।हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हे कोई न कोई दुख है।हम मिलकर उनका समाधान खोज सकते हैं और दुखों से बचाव कर सकते हैं।कम से कम हम चर्चा तो करें।कोई न कोई स

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उद्बोधन

22 नवम्बर 2019
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उद्बोधनविजय कुमार तिवारीलम्बे अन्तराल के बाद आज कुछ उद्बोधित होने की प्रेरणा जाग रही है।खिड़की से बाहर की दुनिया बड़ी मनोरम दिख रही है।आसमान नीला और शान्त है।मन भी नीरव-शान्ति की अनुभूति से ओत-प्रोत है।कौन कहता है कि हमारा जन्म दुख-भोग के लिए ही है?हमें स्वयं में डुबकी लगाने नहीं आता।हमारी सारी समस्

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ईशावास्योपनिषद के आलोक में

11 जनवरी 2020
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ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

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विवेकानंद के बहाने

12 जनवरी 2020
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विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

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निर्भया के बहाने

20 मार्च 2020
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निर्भया के बहानेविजय कुमार तिवारीअन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनै

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जनता कर्फ्यू और हमारा देश

22 मार्च 2020
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जनता कर्फ्यू और हमारा देशविजय कुमार तिवारीप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर आज २२ मार्च २०२० को पूरे देश ने अपनी एकता,अपना जोश और अपना मनोबल पूरी दुनिया को दिखा दिया।इस जज्बे को मैं हृदय से सादर नमन करता हूँ।राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिकों तक ने ताली,थाली, घंटी,शंख और नगाड़े बजाकर अपना आभार

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कोरोना और स्त्री

25 मार्च 2020
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करोना और स्त्रीविजय कुमार तिवारीकल प्रधानमन्त्री ने देश मेंं कोरोना के चलते ईक्कीस दिनों के"लाॅकडाउन"की घोषणा की है।सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता।घर मेंं चौबिसों घण्टे पत्नी के साथ रह पाना,सोचकर ही मन भारी हो जाता है।किसी साधु-सन्त के पास इससे बचाव का उपाय नहीं है।

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महर्षि अरविंद का पूर्णयोग

26 मार्च 2020
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महर्षि अरविन्द का पूर्णयोगविजय कुमार तिवारीमहर्षि अरविन्द का दर्शन इस रुप में अन्य लोगोंं के चिन्तन से भिन्न है कि उन्होंने आरोहण(उर्ध्वगमन)द्वारा परमात्-प्राप्ति के उपरान्त उस विराट् सत्ता को मनुष्य में अवतरण अर्थात् उतार लाने की चर्चा की है।यह उनका एक नवीन चिन्तन है।गीता में दोनो बातें कही गयी हैं

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जिंदगी सुखद संयोगो का खेल है .

27 मार्च 2020
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कहानीजिन्दगी सुखद संयोगों का खेल है।विजय कुमार तिवारीरमणी बाबू को भगवान में बहुत श्रद्धा है।उसके मन मेंं यह बात गहरे उतर गयी है कि अच्छे दिन अवश्य आयेंगे।अक्सर वे सुहाने दिनों की कल्पना में खो जाते हैं और वर्तमान की छोटी-छोटी जरुरतों की लिस्ट बनाते रहते हैं।गाँव के लड़के स्कूल साईकिल पर जाते थे तो व

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धिक्कार है ऐसे लोगो पर

31 मार्च 2020
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धिक्कार है ऐसे लोगोंं परविजय कुमार तिवारीमन दहल उठता है।लाॅकडाउन में भी लाखों की भीड़ सड़कों पर है।भारत का प्रधानमन्त्री हाथ जोड़कर विनती करता है,आगाह करता है कि खतरा पूरी मानवजाति पर है।विकसित और सम्पन्न देश त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।विकास और ऐश्वर्य के बावजूद वे अपनी जनता को बचा नहीं पा रहे हैं।आज

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शहर प्रयोगशाला हो गया है

1 अप्रैल 2020
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कविताशहर प्रयोगशाला हो गया हैविजय कुमार तिवारीछद्मवेष में सभी बाहर निकल आये हैंं,लिख रहे हैं इतिहास में दर्ज होनेवाली कवितायें,सुननी पड़ेगी उनकी बातेंं,देखना पड़ेगा बार-बार भोला सा चेहरा।तुमने ही उसे सिंहासन दिया है,और अपने उपर राज करने का अधिकार।दिन में वह ओढ़ता-बिछाता है तुम्हारी सभ्यता-संस्कृति,उ

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मेरे आनंद की बाते

2 अप्रैल 2020
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मेरे आनन्द की बातेंविजय कुमार तिवारीकभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ

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हर युग में आते है भगवान

3 अप्रैल 2020
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कविताहर युग मेंं आते हैं भगवानविजय कुमार तिवारीद्रष्टा ऋषियों ने संवारा,सजाया है यह भू-खण्ड,संजोये हैं वेद की ऋचाओं में जीवन-सूत्र,उपनिषदों ने खोलें हैं परब्रह्म तक पहुँचने के द्वार,कण-कण में चेतन है वह विराट् सत्ता।सनातन खो नहीं सकता अपना ध्येय,तिरोहित नहीं होगें हमारे पुरुषोत्तम के आदर्श,महाभारत स

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5 अप्रैल 2020 ,रात 9 बजे 9 मिनट का प्रकाश-पर्व

5 अप्रैल 2020
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5 अप्रैल 2020,रात 9 बजे,9 मिनट का प्रकाश-पर्वविजय कुमार तिवारीविश्वास करें,यह कोई सामान्य घटना घटित होने नहीं जा रही है और ना ही आज का प्रकाश-पर्व एक सामान्य प्रकाश-पर्व है।ब्रह्माण्ड की ब्रह्म-शक्ति का आह्वान हम सम्पूर्ण देशवासी प्रकाश-पर्व मनाकर करने जा रहे हैं।हमारे भीतर स्थित वह दिव्य-चेतना जागृ

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विपत्ति में ही

7 अप्रैल 2020
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विपत्ति में हीविजय कुमार तिवारीप्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित ह

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हमउम्र बूढ़ों का परिवार

8 अप्रैल 2020
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कविताहमउम्र बूढ़ोंं का परिवारविजय कुमार तिवारीमैंने सजा लिया है सारे हमउम्र बूढ़ों को अपने फ्रेम में,बना लिया है मित्रों का बड़ा सा समूह। रोज देखता रहता हूँ उनके आज के चेहरे,चमक उठती है पुतलियाँजीवन्त हो उठते हैं उनसे जुडे नाना प्रसंग। मुरझाये गालों और मद्धिम रोशनी लिये आँखें,आज भी कौंंध जाता है उनक

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-१

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1विजय कुमार तिवारीसालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-२

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-३

13 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-3विजय कुमार तिवारी"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये।प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका।सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी,दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है।आपकी बात सही हो तब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-४

14 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4विजय कुमार तिवारी"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या ब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-६

15 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-6विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू दोनो महिलाओं और मोहन चन्द्र जी की भाव-भंगिमा देख दंग रह गये।सुबह दूध वाले की बातें सत्य होती प्रतीत होने लगी।उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।अन्दर से पत्नी भी आ गयी।मोहन चन्द्र बाबू उन दोनो महिलाओं से कुछ पूछते-बतियाते रहे।थोड़ी देर में पत्नी

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हमारी शादी की सैंतीसवी वर्षगाठ

27 अप्रैल 2020
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हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठविजय कुमार तिवारीआज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन

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तुम्हारे प्रेम के नाम-२

1 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-2विजय कुमार तिवारीदुनिया तो वही है जो सबकी होती है परन्तु मेरे लिए जैसे बिल्कुल अजनबी हो चुकी है।जो जानी-पहचानी दुनिया थी उसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ और यह नयी जगह,नयी दुनिया जैसे मुझे आत्मसात करने को तैयार ही नहीं है।इस दृष्टि से समूची नारी जाति के प्रति मेरा मन पूरी श

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तुम्हारे प्रेम के नाम-३

3 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-3विजय कुमार तिवारीतुमने अनेकों बार कुरेदा है मुझे,"कैसे मैं अपने को बचाता रहा और कैसे इस मतलबी दुनिया की शातिर चालों को समझ पाया।"तुमसे खुलकर कहना चाहता हूँ,सच बयान करता हूँ कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है।हर व्यक्ति को थोड़ा सजग रहना चाहिए।थो

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वासना गद्दारो और नशेड़ियों का देश

5 मई 2020
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वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देशविजय कुमार तिवारीवासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में

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डा नन्द किशोर नवल जी की यादें

14 मई 2020
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डा0 नन्द किशोर नवल जी की यादेंविजय कुमार तिवारीपरमादरणीय मित्र,प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार डा.नन्द किशोर नवल जी नहीं रहे।मेरा तबादला धनबाद से पटना हुआ था।9अप्रैल 1984 की शाम में बी,एम.दास रोड स्थित मैत्री-शान्ति भवन में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से"राहुल सांकृत्यायन-जयन्ती"का आयोजन था।भाई अरुण कमल,ड

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