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निज-भाषा हो निज-भाषा

30 नवम्बर 2018

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विशेष : आओ हिंदी भाषा को लेकर कुछ चर्चा करें, हिंदी की सेवा करें।


*** निज-भाषा हो निज-भाषा ***


(1) - ( प्रस्तावना )


मैं हिंदी भाषी हूं, हिंदी प्रेमी हूं;

पर हिंदी का विद्वान नहीं।


मैं भी हिंदी की सेवा करना चाहता हूं;

मैं स्वयं का हिंदी ज्ञान बढ़ाना चाहता हूं;

स्वयं की हिंदी सुधारना चाहता हूं;

पर किसी पर हिंदी थोपना नहीं।


(2) - ( हिंदी को लेकर कामना और उद्देश्य )


हिंदी का उपयोग बढ़ता जाए;

हिंदी-भाषी सभी कार्य हिंदी-भाषा में कर सकें, ऐसा हो जाए;

हिंदी को हमारे जीवन में, समाज में स्थान प्राप्त हो, दिलों में जगह मिलती जाए;

औपचारिक पद, मान्यता आदि की भी आवश्यकता है, बिना इन सब के पूर्ण कार्य संभव नहीं।


(3) - ( shabd.in और वेबपेज 'निराला मंच' )


इस वेबपेज " निराला मंच " को लेकर;

मैं बहुत ही उत्साहित हूं, उत्तेजित हूं;

पर मेरी भी सीमा है, मैं भाषाविद भी नहीं।


यहां शब्द.इन (shabd.in) में पूरा आधार ही हिंदी है;

इस से जुड़ने से मेरी हिंदी अवश्य ही सुधरेगी;

यहां सहायता करने को कौन तैयार नहीं।


(4) - ( वेबपेज 'निराला मंच' को लेकर कामना और उद्देश्य )


मैं सभी से, एक एक से निवेदन करता हूं,

रचना प्रकाशित करने के साथ साथ;

हिंदी को और भी प्रचारित प्रसारित करने केलिए, कुछ न कुछ और भी योगदान करें;

हिंदी को और सशक्त बनाने केलिए, कुछ सुझाव देने केलिए, इस उद्देश्य से जुड़े निज अनुभव साझा करने केलिए;

हिंदी भाषा के उपयोग की परेशानियां, कठनाइयां, और सीमाओं को जानने, समझने, और निवारण केलिए;

हिंदी भाषा के उपयोग की आसानी, सरलता, सहजता, और दिलों को दिल से जोड़ने की जो सुविधा हमको मिली है उसको समझने, और समझाने केलिए;

हरेक हिंदी भाषी, हरेक सामान्य हिंदी भाषी, कुछ न कुछ योगदान करे;

केवल कुछ विशेष व्यक्तियों का यह काम नहीं।


खुला आमंत्रण है, सब को, यहाँ जुड़ने केलिए;

सब का स्वागत है यहाँ जुड़ने केलिए;

यदि उचित समझें तो इस वेबपेज 'निराला मंच' का उपयोग करें, इस उद्देश्य प्राप्ति केलिए।।


(5) - ( निज भाषा का महत्त्व और आवश्यकता )


जीवन में सहज सफल कैसे होंगे ?

पूर्ण विकसित कैसे होंगे ?

स्वयं की जड़ों से कैसे जुड़े रहेंगे ?

आपस में एक दूसरे के दिल से कैसे जुड़े रहेंगे ?

स्वयं के दिल से भी कैसे जुड़ पाएंगे ?

यदि निज भाषा का आधार नहीं।


प्रगति हुई है, हो रही है,

पर मैं हर कार्य निज भाषा में कर सकूं;

मुझे यह सौभाग्य अभी मिला नहीं।


(6)

अन्य भाषाओं को सीखना, कई भाषाओं को जानना वांछनीय है;

किसी से जुड़ना है तो हम उनकी मातृ भाषा सीखें;

पर स्वयं के जीवन केलिए, अन्य भाषा को माध्यम रूप अपनाना स्वीकार नहीं।

भाषा केवल भाषा नहीं होती, उसके साथ उसकी संस्कृति और इतिहास भी चलता है;

अन्य भाषा को माध्यम रूप अपना कर, स्वयं की संस्कृति और इतिहास से कटते जाते हैं;

तो निज भाषा को ही माध्यम रूप में अपनाने के सिवा कोई उपाय नहीं।

(7)

स्पष्टता से समझने केलिए;

हिंदी भाषा और हिंदी भाषियों में, थोड़े समय केलिए, भेद कर लें;

हिंदी भाषियों की कमी, कमजोरी;

हिंदी भाषा की कमी, कमजोरी होती नहीं;

जब हिंदी-भाषी ही हिंदी-भाषा में कार्य करें तो यह हिंदी-भाषा की कमी नहीं

(8)

मैं एक हिंदी भाषी हूं और चाहता रहता हूं कि हर कोई मुझ से हिंदी में बात करे;

पर मैं स्वेच्छा से किसी की मातृ भाषा सीखता नहीं


अभी तक मैंने किसी और की मातृ-भाषा सीखी नहीं;

अन्य क्षेत्रों में, देशों में केवल अंग्रेजी माध्यम से जुड़ना चाहता हूं;

क्या इतना भी समझ में आता नहीं कि मात्र अंग्रेजी ही सभी अन्य देशों की भाषा नहीं ?

अधिकतर विकसित देशों की भाषा अंग्रेजी नहीं।


जब हम हिंदी भाषी, सामान्य तौर पर, किसी की मातृ भाषा सीखते नहीं;

तो वो क्यों हमारी मातृ भाषा सीखें ?

क्या यह भी समझ में आता नहीं ?

क्या अन्य क्षेत्रों में, देशों में हिंदी के अस्तित्व के न होने का यह कारण नहीं ??


(9) - ( मेरा दुख और व्यथा )


मेरे अंदर भावनाओं का बहना शुरूं हुआ तो यह लेखन शुरूं हुआ;

फिर भावना में अधिक ही बह गया;

याद रखें, हमें भावनाओं को सुखाना नहीं;

पर यह भी याद रखें, केवल भावना में बहते रहने से बड़ा-कार्य पूरा होता नहीं।


भावावेश की बात है, धृष्टता कर लेता हूं;

कहना चाहता हूं;

यहां जो जो लिखा है;

क्या किसी को मालूम नहीं ?

क्या किसी को समझ में आता नहीं ?

क्या किसी को इनका महत्त्व पता नहीं ??


हम इसमें किसी का दोष न देखें;

स्वयं का कार्य स्वयं न करें तो इस तरह का स्वयं का कार्य होगा नहीं।


निवेदन है;

मेरी धृष्टता केलिए, सभी मुझे क्षमा करना;

शायद, क्षमा करना आसान नहीं;

मैं जैसा भी हूं स्वीकार करो, फिर क्षमा करना कठिन रहेगा नहीं।


हिंदी को लेकर, यह मेरा भी दुख है, व्यथा है;

यहां किसी को भी दुखी करना;

अपमानित करना;

बलि का बकरा बनाना;

इस तरह का कोई उद्देश्य नहीं।


बिना निष्ठुरता के, बिना कटु बचनों के जगना, जगाना होता नहीं;

कोई अन्य उपाय, कम से कम मुझे तो आता नहीं।


मेरा जागना आसानी से होता नहीं;

नींद टूट भी जाए तो शीघ्र ही फिर सो जाता हूं;

जागते ही रहना है जब तक कार्य पूरा हुआ नहीं;

जागते ही रहना है अन्यथा स्वयं के पैरों पर सदा खड़े रहना होता नहीं।


(10) - ( नकल करने की अंधी आदत )


शायद तुमने भी देखा होगा;

अब कुछ-कुछ घरों में, माता-पिता मातृ-भाषा छोड़ अंग्रेजी-भाषा में ही बातचीत किया करते हैं;

बच्चों को छोटी उम्र से ही अंग्रेजी माध्यम स्कूल में डाल दिया करते हैं;

क्या हम इसका दुष्परिणाम देख सकते नहीं ?

क्या बच्चों की अच्छी नींव रखने में मातृ भाषा का महत्व जानते नहीं ?


हम क्यों नकल करते रहते हैं ?

पिछलग्गू बनने से अधिक से अधिक क्या होगा ?

दूसरा स्थान ही मिलेगा;

प्रथम स्थान मिल सकता नहीं;

स्वयं का सम्मान भी मिल सकता नहीं।


(11) - ( हरेक का दायित्व और उपसंहार )


जो जो भी व्यक्तिगत क्षमता में, सामूहिक क्षमता में हिंदी की सेवा कर रहे हैं;

हम उनके आभारी हैं;

पर हमें किसी के भी आसरे बैठे रहना नहीं;

किसी भी व्यक्ति, संस्था, सरकार के आसरे बैठे रहना नहीं।


हम में से प्रत्येक को योगदान करना है;

निज स्तर पर जो जो कर सकते हैं, करते रहना है;

निश्चय कर, लगन से, मेहनत से सेवा करते जाना है;

हम सब का सपना सच होगा, हम सब का सपना सच होगा;

अब वो दिन दूर नहीं, अब वो दिन दूर नहीं।


उदय पूना

९२८४७ ३७४३२;

92847 37432;

उदय पूना

उदय पूना

साधुवाद आभार

1 दिसम्बर 2018

रेणु

रेणु

जी आदरनीय सर -- हिन्दी के बारे में आपके चिंतन को नमन करती हूँ | हिन्दी के विकास में हम हिन्दी भाषी अतुलनीय सहयोग कर सकते हैं |इसमें जोड़ना चाहुगी ------- कम से कम बच्चो को समुचित हिन्दी ज्ञान प्रदान कर , उन्हें हिन्दी भाषी पुस्तकें- पत्रिकाएँ पढने के लिए प्रेरित कर , हस्ताक्षर हिन्दी में कर , पत्र पर पता हिंदी में लिखकर ,हिन्दी पुस्तकें खरीदकर और हिंदी लिखने वालों को सम्मान देकर हम हिन्दी में अमूल्य योगदान दे सकते हैं | आपका आत्म कथ्य बहुत प्रेरक लगा मुझे -- हिंदी| अनुराग वन्दनीय है | नमन और प्रणाम |

30 नवम्बर 2018

उदय पूना

उदय पूना

फिर से प्रकाशित किया

30 नवम्बर 2018

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रचनाएँ
NiraalaaManch
0.0
हिंदी प्रेम - निराला मंच -- हिंदी की सेवा केलिए यहां सबका, एक एक का स्वागत है. एक एक कुछ न कुछ योगदान करें हिंदी की सेवा केलिए. हिंदी को और सशक्त बनाने केलिए, कुछ सुझाव देने केलिए, इस उद्देश्य से जुड़े निज अनुभव साझा करने केलिए; हिंदी भाषा के उपयोग की परेशानियां, कठनाइयां, और सीमाओं को जानने, समझने, और निवारण केलिए; हिंदी भाषा के उपयोग की आसानी, सरलता, सहजता, और दिलों को दिल से जोड़ने की जो सुविधा हमको मिली है उसको समझने, और समझाने केलिए;
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निज भाषा

28 नवम्बर 2018
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विशेष : आओ हिंदी भाषा को लेकर कुछ चर्चा करें, हिंदी की सेवा करें।** निज भाषा ** (1) - ( प्रस्तावना )मैं हि

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निज-भाषा हो निज-भाषा

30 नवम्बर 2018
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क्या भात से चावल बनता है ?

3 दिसम्बर 2018
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भूमिका : जब हम महान उद्देश्य लेकर चलते हैं, महान अभियान पर चलते हैं;बड़े महत्वपूर्ण कार्य को पूर्ण करने केलिए हम सब मिलजुल कर आगे बढ़ते हैं;तब हम उद्देश्य प्राप्ति केलिए संवाद करते हैं। तब हम वास्तविकता से जुड़ते जाने केलिए संवाद करते हैं;जीवन को अच्छा बनाने केलिए संवाद

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विपरीत के विपरीत

5 दिसम्बर 2018
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विपरीत के विपरीत कुछ-कुछ लोग कुछ-कुछ शब्दों को भूल गए, बिसर गए;हमारे पास शब्द हैं, उपयुक्त शब्द हैं, पर कमजोर शब्द पर आ गए। कुछ-कुछ शब्दों के अर्थ भी भूल गए, बिसर गए;और गलत उपयोग शुरू हो गए;मैं भी इन कुछ-कुछ लोगों में हूं, हम जागरूकता से क्यों दूर हो गए।।अनिवार्य है,इस विपरीत धारा के विपरीत जाना;भाष

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10 दिसम्बर 2018
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कुछ कुछ - किस्त पहलीमेरी ओर से प्रयास, एक लघु कदम, मेरे हिंदी के ज्ञान में सुधार हेतु। जो भी हिंदी के जानकार हैं, विद्वान हैं, उनसे निवेदन है, आग्रह है की वो आगे आयें। इस कार्य में योगदान, सहयोग, सहायता करें। इस उद्देश्य के साथ लेख प्रक

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माध्यम की भाषा

13 दिसम्बर 2018
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माध्यम की भाषा (1)जिस कार्य-क्षेत्र में उपयोग में आती रहे जो भाषा; उस क्षेत्र केलिए विकसित होती रहती वो भाषा। काम केलिए उपयोग में न लाएं निज-भाषा; फिर क्यों कहें विकसित नहीं हमारी निज भाष।।(2)व्यक्तिगत क्षमता, सामूहिक क्षमता में; सार्वजनिक रूप में, सरकारी काम में;भ

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कुछ कुछ - किस्त दूसरी

23 दिसम्बर 2018
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हिंदी भाषा के अनुसार, हम जो हिंदी काम लाते हैं, उसे सुधारने का एक छोटा प्रयास। हम जो बोलना / कहना चाहते हैं, तो उच्चारण का ध्यान रखना आवश्यक है, तभी हमें सफलता मिलेगी, तब हम वो बोल पाएंगे। इसी तरह हम जो लिखना चाहते हैं, तो हम वही लिखें

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कुछ कुछ - किस्त तीसरी ( व्याकरण - भाषा की, जीवन की : मैं और हम )

24 दिसम्बर 2018
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***** कुछ कुछ - किस्त तीसरी ***** *** व्याकरण - भाषा की, जीवन की *** ** मैं और हम *

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