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मरा जा रहा हूँ

4 दिसम्बर 2018

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""""" """""मरा जा रहा हूँ (हास्य)""""" """' ************************* प्रिय मुझसे तेरा यूँ मुंह का फुलाना, नखरे दिखाना यूँ रूठ के सो जाना, गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है। न हँसना तनिक भी न सजना सवरना, न आँखें दिखाना न लड़ना झगड़ना, गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है। ओ तिरछी नजर से न मुझको रिझाना, न कसमों के ढाल को चलाना फसाना, गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है। ओ उंगली के पोरों पर हमको नचाना, न पीहर के डर से हमें वो डराना, गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है। ना गहनें न साड़ी न लहंगा को कहना, यूँ गुमसुम हमेशा मेरे संग रहना, गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है। तेरा हक से मुझपे वो चिखना चिल्लाना, ना कॉफी पिलाना, न गले से लगाना, गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है। न पिक्चर को जाना,न शापिंग ही जाना, सनम अब बता तुझको कैसे मनाना? मरा जा रहा हूँ , मरा जा रहा हूँ, यूँ हमसे न रूठो , मरा जा रहा हूँ। ********** स्वरचित, स्वप्रमाणित ✍ ✍ पं.संजीव शुक्ल ” सचिन” मुसहरवा (मंशानगर) पश्चिमी चम्पारण (बिहार)

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