*इस धरा धाम पर आने के बाद मनुष्य का लक्ष्य होता है परमात्मा को प्राप्त करना | परमात्मा को प्राप्त करने के लिए कई साधन बताए गए हैं , परंतु सबसे सरल साधन है भगवान की भक्ति करना | भगवान की भक्ति करने के भी कई भेद बताये गये हैं | वैसे तो भगवान की भक्ति सभी करते हैं परंतु गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण भक्त के चार लक्षण बताये हैं :- "चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन ! आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ !! अर्थात :-भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन! आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी- ये चार प्रकार के भक्त मेरा भजन किया करते हैं | इनमें से सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी है | उससे श्रेष्ठ आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु, और जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी है | यह चार प्रकार के भक्त अपनी - अपनी श्रद्धा एवं आवश्यकता के अनुसार भगवान का भजन करके उनको प्राप्त करने का प्रयास करते हैं | जैसा कि हमारे पुराणों में कथाएं पढ़ने को मिलती है कि भगवान मूढ व्यक्ति को शीघ्रता से प्राप्त हो जाते हैं परंतु ज्ञानी उनको पाने के लिए अनेक साधन करता है फिर भी उनके दर्शन नहीं प्राप्त कर पाता | इसका कारण यही है कि जब मनुष्य मूढ होता है तो उसे कुछ भी
ज्ञान नहीं होता है वह सिर्फ भगवान को जानता है और उन्हीं से अपना नेह लगाता है , और ज्ञानी व्यक्ति क्योंकि भगवान को प्राप्त करने की अनेक साधन जानता है तो उन्हीं साधनों में वह भटका रहता है कि कौन सा साधन करूँ तो भगवान को प्राप्त कर पाऊँ | यही करने में उसका जीवन व्यतीत हो जाता है और उसको भगवान नहीं प्राप्त हो पाते |* *आज के युग में कोई भी मूर्ख नहीं है | आज मनुष्य ने स्वयं के विकास के लिए
विज्ञान धर्म एवं अध्यात्म आदि क्षेत्रों में प्रगति की है , इस प्रगति के कारण उसने अनेकों विधान प्राप्त किये , इन्हीं विधानों का प्रयोग करके मनुष्य विद्वान बना | परंतु आज एक चीज अवश्य देखने को मिलती है की पूर्व काल के विद्वानों की अपेक्षा आज के विद्वान स्वयं को विद्वान मानते हैं | और जब व्यक्ति स्वयं को कुछ मानने लगता है तो उसे कुछ भी नहीं प्राप्त होता है | भगवान को वही प्राप्त कर सकता है जो स्वयं को कुछ न समझे | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह कह सकता हूं कि आज स्वयं को कुछ न समझने वाला संसार में शायद ही कोई मिले | यही कारण है कि आज भगवान को प्राप्त करना एक सपना बनकर रह गया है | आज देखने को मिल रहा है किंचित मात्र भी विद्वता आ जाने के बाद मनुष्य में अहंकार प्रकट हो जाता है | और जिस में किंचित भी अहंकार है वह कभी भगवान को नहीं प्राप्त कर सकता है ! क्योंकि भगवान का भोजन ही अहंकार है | यह सार्वभौमिक सत्य है कि अहंकारी व्यक्ति भगवान के आस पास भी नहीं पहुंच सकता है | भगवान या तो महामूर्ख को मिलते हैं या फिर परम ज्ञानी को बीच के मनुष्य अपनी मोह माया काम क्रोध मद लोभ आदि विकारों में भ्रमित होकर भगवान को प्राप्त करने का दिखावा मात्र करते हैं और अपने कर्मों के फलस्वरूप उनको कुछ भी नहीं कर पाता |* *भगवान को प्राप्त करने के लिए स्वयं के मैं को नष्ट करना पड़ता है | जिसे आज का मनुष्य नहीं कर पा रहा है |*