shabd-logo

कविता

6 दिसम्बर 2018

130 बार देखा गया 130

कर्ण को जो शांति दे,
वीणा का वो मधुर क्रंदन हो तुम।
मेरे ह्दय बाग कि,
महकती कुमुदिनी हो तुम।
कुण्ठित अस्तगामी इंसान को,
जो बचा सके वो पतवार हो तुम।
मधु के सरस स्वभाव सी,
एक मीठी अनुभूति हो तुम।
कलेवर की तपिस को जो हर सके,
नीर की वो शीतल बौछार हो तुम।
वृहद अनुराग प्रेम की,
अनुपम निशानी हो तुम।
क्षुब्धा पिपासा जो मिटा सके,
उस तेज का प्रतिरूप हो तुम।
सबको धारण कर सके,
वो विशाल धरा हो तुम।
कतिपय अतिशय नहीं होगा,
मेरे बीमार अस्तित्व की,
औषधि हो तुम।
अब और क्या मैं तुमसे कहूं?
थकित व्यथित मानव को जागृत
करने वाली “जागृति" हो तुम!

-अजीत मालवीया “ललित”
गाडरवारा,नरसिंहपुर
(मध्यप्रदेश)

अजीत मालवीया ललित की अन्य किताबें

उदय पूना

उदय पूना

प्रिय अजीत मालवीया “ललित” - प्रणाम, उपमा देना कोई तुम से सीखे; प्रशंसा करना कोई तुम से सीखे; मां का सम्मान, इतनी सुन्दर शैली में प्रशंसापूर्वक, करना कोई तुम से सीखे. बधाई,

9 दिसम्बर 2018

उदय पूना

उदय पूना

सुन्दर रचना, बधाई, प्रणाम

9 दिसम्बर 2018

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए