पुस्तक: ग्यारहवीं –A के लड़के
वर्ष: दूसरा संस्करण, अप्रैल 2018
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन प्रा. लि., नई दिल्ली.
मूल्य : रू 125, पृष्ठ 144
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“ग्यारहवीं–A के लड़के” गौरव सोलंकी की छह कहानियों का संग्रह है जो वर्तमान सामाजिक जीवन एवम् उसकी नैतिकता के बीच जूझ रहे युवाओं की मनोस्थिति को चित्रित करती हैं. जीवन की निर्थकता के साथ-साथ अधूरे प्यार की प्राप्ति एवम् भावनाओं के बाजारीकरण की वर्तमान स्थिति को दर्शाती हैं. ये कहानियाँ हमारे आस-पास के चरित्रों को लेखन से जीवन्त कर देती है और जाने –अनजाने ये चरित्र हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं. वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों की व्याख्या और उनके व्यावहारिक प्रयोग के बीच का अंतर हम इन कहानियों में अच्छे से देख सकते हैं. आज का युवा भावनाओं में बहता हुआ कैसे हिंसा और स्वार्थपन के चरम पर जा रहा है और वह अपने पतन से रूबरू होते हुए भी उसी दिशा में अपना फायदा देखता है. गौरव, स्वयम इन कहानियों को लिखते समय की अपनी मनसिकता का वर्णन ऐसे करता है, “वह सबसे अँधेरा वक्त था. कभी कभी मार्केज याद आते थे जिन्होंने लिखा था कि इस यातना को जी भर के भोग लो जब तक जवान हो, क्योंकि ये सब हमेशा नहीं रहेगा” (पृ.11) किसी न किसी कहानी में पाठक स्वयं को भी उन प्रश्नों से घिरा पाता है जो जाने अनजाने कहानी से निकल कर उसे विचलित कर देते हैं. लेखक बड़े अच्छे ढंग से पाठक को इन कहानियों के आधार से रूबरू करवाता है.
इन कहानियों में हमें सामाजिक कुरीतियों का भी वर्णन मिलता है जो समाज के बदलते चरित्र के साथ-साथ, स्त्री जीवन की कड़वाहट, युवाओं की बढती अपराधिक मानसिकता, समगौत्र विवाह, क्षेत्रवाद, धार्मिक संकीर्णता, देह-व्यापार, देह-लोलुपता एवम् अश्लीलता के वर्णन के साथ साथ भाषाई आकर्षण से हमें मोह लेती है. इन कहानियों का क्रम इस तरह से दिया गया है:
- 1. सुधा कहाँ है
- 2. ब्लू फ़िल्म
- 3. तुम्हारी बाँहों में मछलियाँ क्यों नहीं है
- 4. पतंग
- 5. यहाँ वहाँ कहाँ
- 6. ग्यारहवीं- A के लड़के
कभी कभी हमें इन कहानियों का कोई पात्र दार्शनिक सी मुद्रा में जीवन के प्रश्नों से उलझा दिखाई देता है और प्रशनों का स्वयं ही उत्तर खोजता है जैसे, “उदासी एक अलग ही किस्म का नशा है, बाकि नशे शुकून देते हैं, संतुष्टि देते हैं, जीवन के प्रति आस्था पैदा करते हैं, नशे के प्रति लगाव पैदा करते हैं जबकि उदासी वैराग्य जगाती है, उदासी से दूर भाग जाने की इच्छा जगाती है और एक प्यास बढाती है. उदासी धरती की सबसे पुरानी धरोहर होगी. यह प्यार से हजारों साल पुरानी होगी” (पृ.19)
लड़कपन को बड़े अच्छे से चित्रित करते हुए लेखक पुरुष और स्त्री मानसिकता को एक नियामक रूप में हमारे सामने रखता है जैसे “स्त्री गाँव दुनियादारी की बातें पहले तय कर लेती है” (पृ.34) “हम सब अपनी अपनी दिव्या दत्तायें ढूढ रहे थे” (पृ.37) “ऐसा भी नहीं था कि बाकी लड़कों या अपनी ही भाभियों के बारे में हमारे इरादे कुछ पवित्र हों लेकिन रानी की बात ही कुछ और थी. मस्तराम की कहानियों में पच्चीस साल की शादीशुदा लड़की का कोई भी नाम हो , उन्हें पढ़ते हुए हमारे जेहन में रानी की कलर्ड तस्वीर होती थी.” (पृ.129) अंतिम कहानी हमें जीवन में व्यक्तिगत भावनाओं की पूर्ति के लिए किये गये रिश्तों से समझोतों के साथ-साथ, भावनाओं के खिलवाड़ को चित्रित करती है और हमें एहसास करवाती है कि वर्तमान समय में कोमल भावनाएं केवल व्यक्तिगत संतुष्टि का साधन मात्र है.
कहानियाँ बेहद ही सरल भाषा में लिखी गयीं है पर कल्पना और वास्तविकता से रूबरू करवाती हैं. युवावस्था के दिनों को पूरी शिद्दत से कागज पर उकेरी, ये कहानियाँ, मानवीय मन के सफ़ेद और काले दोनों रूपों को हमें दिखाती हैं बेशक हम इन्हें सहर्ष स्वीकार करें या नैतिकता का अस्पष्ट चेहरा लगाकर इन्हें नकार दें. लेखक के शब्दों में कहें तो , “जिन्दगी भी एक ब्लू फ़िल्म थी जिसके सुखांत के लिए हम सब नंगे हो गये थे.”(पृ.68) सुखांत सबको पसंद होता है अंतर सिर्फ इतना है कि हम अपनी कहानी नहीं लिखते और गौरव सोलंकी ने इसे हमारे लिए लिख दिया है.