shabd-logo

पुस्तक-समीक्षा :आधुनिक युवा-मानसिकता एवम् उसके नैतिक पतन की कहानियाँ

6 दिसम्बर 2018

499 बार देखा गया 499
featured image


पुस्तक: ग्यारहवीं –A के लड़के

लेखक: गौरव सोलंकी

वर्ष: दूसरा संस्करण, अप्रैल 2018

प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन प्रा. लि., नई दिल्ली.

मूल्य : रू 125, पृष्ठ 144

********************

“ग्यारहवीं–A के लड़के” गौरव सोलंकी की छह कहानियों का संग्रह है जो वर्तमान सामाजिक जीवन एवम् उसकी नैतिकता के बीच जूझ रहे युवाओं की मनोस्थिति को चित्रित करती हैं. जीवन की निर्थकता के साथ-साथ अधूरे प्यार की प्राप्ति एवम् भावनाओं के बाजारीकरण की वर्तमान स्थिति को दर्शाती हैं. ये कहानियाँ हमारे आस-पास के चरित्रों को लेखन से जीवन्त कर देती है और जाने –अनजाने ये चरित्र हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं. वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों की व्याख्या और उनके व्यावहारिक प्रयोग के बीच का अंतर हम इन कहानियों में अच्छे से देख सकते हैं. आज का युवा भावनाओं में बहता हुआ कैसे हिंसा और स्वार्थपन के चरम पर जा रहा है और वह अपने पतन से रूबरू होते हुए भी उसी दिशा में अपना फायदा देखता है. गौरव, स्वयम इन कहानियों को लिखते समय की अपनी मनसिकता का वर्णन ऐसे करता है, “वह सबसे अँधेरा वक्त था. कभी कभी मार्केज याद आते थे जिन्होंने लिखा था कि इस यातना को जी भर के भोग लो जब तक जवान हो, क्योंकि ये सब हमेशा नहीं रहेगा” (पृ.11) किसी न किसी कहानी में पाठक स्वयं को भी उन प्रश्नों से घिरा पाता है जो जाने अनजाने कहानी से निकल कर उसे विचलित कर देते हैं. लेखक बड़े अच्छे ढंग से पाठक को इन कहानियों के आधार से रूबरू करवाता है.


इन कहानियों में हमें सामाजिक कुरीतियों का भी वर्णन मिलता है जो समाज के बदलते चरित्र के साथ-साथ, स्त्री जीवन की कड़वाहट, युवाओं की बढती अपराधिक मानसिकता, समगौत्र विवाह, क्षेत्रवाद, धार्मिक संकीर्णता, देह-व्यापार, देह-लोलुपता एवम् अश्लीलता के वर्णन के साथ साथ भाषाई आकर्षण से हमें मोह लेती है. इन कहानियों का क्रम इस तरह से दिया गया है:

  1. 1. सुधा कहाँ है
  2. 2. ब्लू फ़िल्म
  3. 3. तुम्हारी बाँहों में मछलियाँ क्यों नहीं है
  4. 4. पतंग
  5. 5. यहाँ वहाँ कहाँ
  6. 6. ग्यारहवीं- A के लड़के

कभी कभी हमें इन कहानियों का कोई पात्र दार्शनिक सी मुद्रा में जीवन के प्रश्नों से उलझा दिखाई देता है और प्रशनों का स्वयं ही उत्तर खोजता है जैसे, “उदासी एक अलग ही किस्म का नशा है, बाकि नशे शुकून देते हैं, संतुष्टि देते हैं, जीवन के प्रति आस्था पैदा करते हैं, नशे के प्रति लगाव पैदा करते हैं जबकि उदासी वैराग्य जगाती है, उदासी से दूर भाग जाने की इच्छा जगाती है और एक प्यास बढाती है. उदासी धरती की सबसे पुरानी धरोहर होगी. यह प्यार से हजारों साल पुरानी होगी” (पृ.19)


लड़कपन को बड़े अच्छे से चित्रित करते हुए लेखक पुरुष और स्त्री मानसिकता को एक नियामक रूप में हमारे सामने रखता है जैसे “स्त्री गाँव दुनियादारी की बातें पहले तय कर लेती है” (पृ.34) “हम सब अपनी अपनी दिव्या दत्तायें ढूढ रहे थे” (पृ.37) “ऐसा भी नहीं था कि बाकी लड़कों या अपनी ही भाभियों के बारे में हमारे इरादे कुछ पवित्र हों लेकिन रानी की बात ही कुछ और थी. मस्तराम की कहानियों में पच्चीस साल की शादीशुदा लड़की का कोई भी नाम हो , उन्हें पढ़ते हुए हमारे जेहन में रानी की कलर्ड तस्वीर होती थी.” (पृ.129) अंतिम कहानी हमें जीवन में व्यक्तिगत भावनाओं की पूर्ति के लिए किये गये रिश्तों से समझोतों के साथ-साथ, भावनाओं के खिलवाड़ को चित्रित करती है और हमें एहसास करवाती है कि वर्तमान समय में कोमल भावनाएं केवल व्यक्तिगत संतुष्टि का साधन मात्र है.


कहानियाँ बेहद ही सरल भाषा में लिखी गयीं है पर कल्पना और वास्तविकता से रूबरू करवाती हैं. युवावस्था के दिनों को पूरी शिद्दत से कागज पर उकेरी, ये कहानियाँ, मानवीय मन के सफ़ेद और काले दोनों रूपों को हमें दिखाती हैं बेशक हम इन्हें सहर्ष स्वीकार करें या नैतिकता का अस्पष्ट चेहरा लगाकर इन्हें नकार दें. लेखक के शब्दों में कहें तो , “जिन्दगी भी एक ब्लू फ़िल्म थी जिसके सुखांत के लिए हम सब नंगे हो गये थे.”(पृ.68) सुखांत सबको पसंद होता है अंतर सिर्फ इतना है कि हम अपनी कहानी नहीं लिखते और गौरव सोलंकी ने इसे हमारे लिए लिख दिया है.




डॉ. देशराज सिरसवाल की अन्य किताबें

1

दर्शन, सृजनात्मकता और मानवीय सम्बन्ध

29 जनवरी 2015
0
1
0

मानवीय-सम्बन्ध सदियों से दर्शन और साहित्य के अध्ययन का मुख्य विषय रहा है. जब भी हम मानवीय सम्बन्धों के विवेचन पर जाते है तब हम इनकी प्रकृति, व्यक्तिगत और सामाजिक सम्बन्धों की प्रमाणिकता के सम्बन्ध में बात करते हैं और हम केवल दार्शनिक विचारों तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि हमें मनोविज्ञानिकों, समाजशास

2

दर्शनशास्त्र की वर्तमान शिक्षा में उपयोगिता

29 जनवरी 2015
0
2
0

दर्शनशास्त्र को 'मानविकी ' संकाए के अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। मानविकी बड़ा ही सुगम्य शब्द है , जिसकी परिभाषा एवम अर्थ-विस्तार की रेखाएं उतनी सुनिश्चित, सुनिर्धारित नहीं हैं, न ही इसके क्षेत्र की व्यापकता के विषय में सर्वत्र सहमती है। एक सामान्य और प्रचलित परिभाषा के अनुसार, "मानविकी " के अंतर

3

भारत में नारी समस्याएं एवम सह -शिक्षा

29 जनवरी 2015
0
1
0

भारत जैसे देश में जहाँ नारी को देवी जैसा पद दिया गया हैं, वहाँ पर नारी का बहुत सी समस्याओं से गुजरना इसके सांस्कृतिक मूल्यों और यथार्थ के बीच के अंतर को स्पष्ट करता है। आज के परिवेश में जहाँ पर नारी और गरीब लोगों की सामाजिक सुरक्षा दाव पे लगी है और वहाँ के तथाकथित नेता अपने घोटालों और सुखभोग में

4

गांधीवाद और मजदूर -वर्ग

29 जनवरी 2015
0
1
0

अंतर राष्ट्रीय मजदूर दिवस हर वर्ष मनाया जाता है इसे मई दिवस के नाम से भी पुकारा जाता है . 8 0 के करीब देशों में आज राष्ट्रीय अवकाश होता है। आज का दिन मजदूरों के संघर्ष को याद करने का दिन है और एक प्रेरणा स्त्रोत भी है. भारत जैसे देश के सम्बन्ध में ये कितना मायने रखता है इस पर भी विचार करना जरूरी

5

समाज में मूल्यों एवं मानवाधिकार शिक्षा की उपयोगिता

29 जनवरी 2015
0
2
1

भारतीय समाज अपनी विभिन्न्ता और सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्वभर के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में भी हमें विभिन्न मूल्यों की शिक्षा का वर्णन मिलता है। लेकिन देश के विशाल आकार और विविधता, विकसनशील तथा संप्रभुता संपन्न धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी

6

डॉ अम्बेडकर महात्मा क्यों नहीं बन पाये ?

29 जनवरी 2015
1
1
0

जब हम किसी भारतीय विचारक कि चर्चा करते हैं तब दो बातों पर पूरा ध्यान देते हैं। पहली बात तो यह है कि इस विचारधारा का भारत भारत के ज्ञान के भंडार को क्या योगदान है. मतलब है, इस विचारक का भारतीय समाज से क्या सरोकार है ? इसने समाज की समस्याओं को किस तरह उठाया है और दूसरा क्या निदान दिया है। और दूसरी

7

गाँधीवाद की मृत्यु (गाँधी-जयंती विशेष)

29 जनवरी 2015
1
1
0

२ अक्टूबर को गाँधी -जयंती बड़ी धूमधाम से मनायी जाती है और सरकार द्वारा जनता के पैसे का खूब दुरूपयोग किया जाता है । सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात है की एक भी गाँधीवादी वर्तमान में भारतीय समाज की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत नहीं है, क्यूंकि वर्तमान की ज्यादातर समस्याएँ उनके ही गुरु भाई राजनीति

8

संत कबीर और दलित-विमर्श (संत कबीर दास जयंती पर विशेष )

29 जनवरी 2015
0
1
0

कबीर का काव्य भारतीय संस्कृति की परम्परा में एक अनमोल कड़ी है। आज का जागरूक लेखक कबीर की निर्भीकता, सामाजिक अन्याय के प्रति उनकी तीव्र विरोध की भावना और उनके स्वर की सहज सच्चाई और निर्मलता को अपना अमूल्य उतराधिकार समझता है।कबीर न तो मात्र सामाजिक सुधारवादी थे और न ही धर्म के नाम पर विभेदवादी। वह

9

दलित विमर्श और सह आस्तित्व

29 जनवरी 2015
0
1
0

अक्सर ऐसा देखा जाता है की जब भी कोई व्यक्ति किसी विशेष विचारधारा का समर्थक बन जाता है और गहराई से केवल उसी पर एकमात्र चिन्तन करता है तो उसके मन में दूसरी अन्य विचारधाराओं के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा हो जाता है. ऐसा ही कुछ दलित चिंतकों और चिंतन में देखने को मिल रहा है. दलित के दो स्वरूप हमारे

10

भारतीय युवा और भ्रष्टाचार का भविष्य

29 जनवरी 2015
0
3
1

भारत देश एक ऐसा देश बनता जा रहा है जो कागजों में तो लोकतान्त्रिक देश कहलाता है पर वास्तविकता देखे तो कुछ और ही नजारा हमारे सामने दीखता है . कुछ तथ्य देखें : पिछले कुछ वर्षों से लगातार इन मुद्दो पे बातचीत हो रही और वर्तमान सरकार बेशर्म और नपुसंक बनकर जनता का शोषण रही है . नेता लगातार घोटाले करते

11

दलित और हरियाणा की राजनीति

29 जनवरी 2015
0
1
0

हरियाणा सरकार लगातार हरियाणा को नंबर वन बताने का दावा करती है पर यह दावा तब फीका पड़ जाता है जब बात दलितों और महिलाओं की सुरक्षा की आती है। हरियाणा में हो रही दलितों पर ज्यादतियों से तो यही लगता है की आज भी हरियाणा उसी युग में जी रहा है जहाँ पर जनजातियाँ और कबीले होते थे। एक कबीला दुसरे कबीलों के

12

दर्शन सम्बन्धी प्रयासों और साहित्य के लिंक

30 जनवरी 2015
0
1
0

अब तक जितनी भी कवितायेँ और लेख यहाँ प्रकाशित हैं सभी हमारी पहले के अलग अलग पेजों से लिए गए हैं .यहां पर मैं अपने सभी लिंक्स दे रहा हूँ जो शायद आपके लिए भी उपयोगी रहें : Society for Positive Philosophy and Interdisciplinary Studies (SPPIS) Haryana http://sppish.blogspot.in Philosophy

13

गांधी बनाम गोडसे बनाम लोकतंत्र

30 जनवरी 2015
0
2
4

आज गांधी जी की पुण्य-तिथि है। अख़बार और नेट पर भी एक दो ही सन्देश देखने को मिले। शायद महापुरुषो की महानता भी हमारी राजनीति की मोहताज है। शायद इस सरकार में गांधी को गोडसे से रेप्लेस कर दिया जाये, क्योंकि हिंदुत्व, हिन्दूदेश का नारा तो यही दे सकते हैं। संविधान के महत्वपूर्ण शब्दों में बदलाव का प्रयास

14

दलित संत बनाम हिन्दुवाद (संत रविदास जी के जन्मदिवस पर विशेष)

2 फरवरी 2015
0
1
0

शायद आप सभी को "दलित संत" शब्द अजीब लगे लेकिन मुझे यह शब्द प्रयोग करने में कोई संकोच नहीं है. यहां पर यह शब्द उन संतों के लिए प्रयोग किया गया है जो की दलित समुदाय या दलित चिंतन के आदर्श है. कितनी बड़ी विडंबना है की हम उन्हें संत भी कहते हैं और भेदभाव भी करते हैं. मह्रिषी वाल्मीकि, संत रविदास और बहुत

15

मानवाधिकार अध्ययन की प्रमाणिकता

10 फरवरी 2015
0
1
0

पिछले दिनों मानवाधिकार सम्बन्धी एक सेमिनार में हिस्सा लिया. कुछ अच्छे वक्तत्ता भी सुनने को मिले किन्तु कुछ शोध पत्रों में व्यवहारिकता की कमी लगी. उसी के बारे लिख रहा हूँ. मैंने कई लोगों को उन विचारकों के बारे में शोधपत्र पढ़ते देखा जिनका सीधा सम्बन्ध परम्परागत जीवन शैली से रहा है और मानवतावाद या मा

16

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हार्दिक बधाई

8 मार्च 2015
0
2
0

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। यह दिन हमें महिलाओं को दोयम दर्जे से मुक्ति के फलस्वरूप किय

17

अध्यापक ....

23 मार्च 2015
0
1
0

बचपन से ही आदर्श अध्यापक के बारे यही सुनते आ रहे हैं कि उसके जीवन का उद्देश्य अपने विद्यार्थी को हर सम्भव सहायता और प्रेरणा देना होता है जिससे वह जीवन में सफलता प्राप्त करते है। लेकिन समय के साथ साथ या यूँ कहे की हमारी उम्र बढ़ने के साथ साथ यह बात मन में द्वन्द पैदा करती है की क्या वास्तव में ऐसा ही

18

भारत में वैचारिक दरिद्रता

3 अप्रैल 2015
0
1
1

एक बात तो स्पष्ट हो चुकी है की भारत में राजनीतिक पार्टियां अपना स्वरूप बिलकुल स्पष्ट कर चुकी हैं चाहे कोई गांधी के नाम पर राजनीति करे या हिन्दू धर्म के नाम पर। ...लोगों की मूर्खता की वजह से वो सत्ता में तो आ गए हैं लेकिन चरित्रहीन होकर। भाजपा की जनविरोधी नीतियां और आप का बचकानापन यह स्प्ष्ट कर चूका

19

भारत रत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के जन्मदिवस पर विशेष-2015

14 अप्रैल 2015
0
3
2

सामाजिक एकता, सामाजिक समानता और भ्रातृत्व के पक्षधर, ज्ञान के प्रतीक, भारतीय लोकतन्त्र के प्रणेता, दलितों के मसीहा, भारत में बुद्ध धर्म के पुनरुद्धार करने वाले प्रबुद्ध विचारक, शिक्षाशास्त्री और समकालीन दार्शनिक भारत रत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के जन्मदिवस पर आप सभी को हार्दिक बधाई। बाबा साहेब का जीव

20

69वें भारतीय स्वतन्त्रता दिवस-2015 की हार्दिक शुभकामनायें

16 अगस्त 2015
0
2
1

Yesterday’s Reflection:स्वतन्त्रता दिवस हम सभी के मन में उमंग और जोश भर देता है। साल के कुछ चुनिंदा दिनों को छोड़ कर हम देशभक्ति या देशप्रेम को एक तरफ रख देते हैं। भारतीयता की भावना सभी में बराबर होती है लेकिन हममे से कुछ एक ऐसे भी हैं जो मानवधिकार या अम्बेडकरवाद की बात करते हैं उनको देश द्रोही या सम

21

विश्व दर्शन दिवस की हार्दिक बधाई

18 नवम्बर 2015
0
2
0

सभी साथियों को विश्व दर्शन दिवस की हार्दिक बधाई। दर्शन सिर्फ अवधारणाओं पर चिंतन नहीं है बल्कि उनको फलीभूत करने से भी जुड़ा है। जिस दिन दार्शनिक और विचारक अपने इस दायित्व को समझ जायेंगे उस दिन समझ लेना भारत सचमुच में आजाद हो गया। वरना धर्म और निम्न मुद्दों को उठाकर जनता को आपस में भिड़ाने वाले नेता औ

22

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

24 दिसम्बर 2015
0
4
3

23

जय हिन्द और वंदे मातरम् जैसे नारे लगाने से देशभक्त नहीं हो जाते

16 फरवरी 2016
0
3
2

जय हिन्द और वंदे मातरम् जैसे नारे लगाने से देशभक्त नहीं हो जाते। असली देशभक्ति है समाज की कमियों के बारे बोलने के साथ साथ सही काम करने की। जोकि भाजपा, संघ, ए बी वी पी के बस से बाहर की चीज़ है। सच को जानते हुए भी, बेशर्मों की तरह हर रोज सुन रहे हैं बात कर रहे हैं हम लोग। भारतीय समाज की मानवीयता बस पैस

24

डॉ अम्बेडकर, भारतीय संविधान एवं भारतीय समाज पर कार्यक्रम

16 फरवरी 2016
0
3
2

25

भारतवासियों को संविधान दिवस (26 नवम्बर) की हार्दिक बधाई ।

27 नवम्बर 2018
2
0
0

सभी भारतवासियों को संविधान दिवस (26 नवम्बर) की हार्दिक बधाई । भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा के निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने भारत के महान संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। गणतंत्र

26

गौरव सोलंकी की पुस्तक "ग्यारहवीं A के लड़के"

27 नवम्बर 2018
0
0
0

आजकल घर से यूनिवर्सिटी पढ्ने के लिये जाना मुझे उन दिनों की याद दिलाता है कॉलेज और यूनिवर्सिटी पढ्ने जाता था । मोबाईल की जगह हाथ और बैग मे किताबें ही होती थी।काश वो आदत दोबारा पड़ जाये ।आजकल गौरव सोलंकी की पुस्तक "ग्यारहवीं A के लड़के"पढ़ रहा हुँ।इसके किरदार आपके शहर में भी होंगे तो जरूर, भले ही आपक

27

पुस्तक-समीक्षा :आधुनिक युवा-मानसिकता एवम् उसके नैतिक पतन की कहानियाँ

6 दिसम्बर 2018
0
1
0

पुस्तक: ग्यारहवीं –A के लड़के लेखक: गौरव सोलंकी वर्ष: दूसरा संस्करण, अप्रैल 2018प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन प्रा. लि., नई दिल्ली.मूल्य : रू 125, पृष्ठ 144********************“ग्यारहवीं–A के लड़के” गौरव सोलंकी की छह कहानियों का संग्रह है जो व

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए