विधान- 13-11 की यति, चौपाई की अर्धाली व दोहा का सम चरण, सम चरण का अंतिम शब्द विषम चरण का पहला शब्द हो, यही इस दोहा की विशेषता है
"सिंहावलोकनी दोहा"
परम मित्र नाराज है, कहो न मेरा दोष।
दोष दाग अच्छे नही, मन में भरते रोष।।-1
रोष विनाशक चीज है, भरे कलेश विशेष।
विशेष मित्र से प्यार कर, करहु न गैर भरोष।।-2
भरोष हनन तो न करें, नाहक बढ़ती पीर।
पीर तीर से घातकी, दवा नहीं तपकीर।।-3
तपकीर तमस चासनी, करती बहुत अधीर।
अधीर कहाँ खुशाल है, नैन तरसते नीर।।--4
नीर निकलता आँख से, देह दुलार सुमार।
सुमार सहित परिधान पन, भूषन व्यसन विकार।।-5
विकार दुख देता सदा, मानो मन की बात
बात न कड़वी बोलिये, तड़फाये दिन-रात।।-6
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी