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एक प्यार ऐसा भी

11 दिसम्बर 2018

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एक प्यार ऐसा भी-
विजय कुमार तिवारी

रमेश बाबू की जिन्दगी के सारे उतार-चढ़ाव समतल धरातल में बदल चुके हैं और लोग उनको आदर के भाव से देखने लगे हैं। जीवन की जिम्मेदारियाँ निपट गयी हैं और कीर्तन-भजन में मन लगने लगा है।उनका चिन्तन चलता रहता है और अनेक तरह के अनुभव याद आया करते हैं। संतोष एक ही है कि उन्होंने किसी को धोखा नहीं दिया है और कोई बड़ा सा मतभेद भी किसी के साथ नहीं रहा। वैसे जीवन में थोड़े-बहुत झमेले तो होते ही हैं जिसे हमेशा उन्होंने शान्ति और बुद्धिमता से सुलझाया है।यह भी मानते हैं कि परमात्मा की उनपर बड़ी कृपा सदैव बनी रही है।
उन्हें पता है कि खाली बैठकर जीवन काटना आसान नहीं होगा। उन्होंने स्वयं को व्यस्त रखने की कोशिशें शुरु कर दीं और उन कार्यो पर चिन्तन करना उचित समझा जो उनके मनोनुकूल हो। साहित्यिक पुस्तकें पढ़ना,धार्मिक साहित्य मँगाना, यह तो उनका पहले से ही शौक रहा है। मित्रों की सलाह पर उन्होंने लैपटाप ले लिया और नेट की दुनिया में कदम रखा। शुरु में बड़ी परेशानी हुई परन्तु धीरे-धीरे उन्होंने काम चलने भर ज्ञान प्राप्त कर लिया। मोबाईल तो था ही। ह्वाट्सअप में सारे सगे-सम्बन्धियों को जोड़ लिया और फेसबुक,ट्वीटर,मैसेञ्जर पर भी आनन्द उठाने लगे।उनको बहुत शान्ति मिली कि घर बैठे आप दुनिया भर के लोगों के सम्पर्क में रह सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि आप अपनी भावनाओं के अनुसार चुनाव कर सकते हैं और अपने मनोनुकूल जीवन जी सकते हैं।
उन्होंने एक काम और शुरु किया। वल्कि ऐसे कहिये कि परमात्मा ने उन्हें यह काम सौंप दिया और पूरी तन्मयता से उन्होंने इसे पूरा किया। पड़ोस में रहने वाले बुजूर्ग-दम्पति की सुविधा और स्वास्थ्य के लिए उन्होंने चिन्तन किया। अन्तःप्रेरणा हुई तो उन्होंने 21 दिनों तक श्रीमद्भभागवद गीता का पाठ किया। अद्भूत अनुभव हुआ कि ऐसे भी जीवन में सुख,शान्ति और स्वास्थ्य लाया जा सकता है। इसतरह उनके साथ कुछ लोग आने-जाने लगे और धर्म चर्चा,ईश्वर चर्चा होने लगी।
फेसबुक और ट्वीटर पर उनके मित्रों,अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। पहले उन्होंने छोटे-छोटे लेख लिखे जिसको लोगों ने खूब पसन्द किया। बहुत लोग टिप्पणियाँ भी करते और कुछ तो अपनी समस्यायें भी बताने लगे। इस तरह दूर बैठे किसी को मार्गदर्शन देने का अनुभव बड़ा रोचक और प्रिय लगा। दुनिया में बहुत दुख है और अधिकांश लोग तो जानकारी के अभाव में दुखी हैं।उन्होंने यह भी अनुभव किया कि लोग अपने दुखों को समझ ही नहीं पाते और यह भी नहीं जान पाते कि सचमुच का दुख क्या होता है।
बहुत सी महिलाओं ने अपनी समस्यायें बतलायीं। अधिकांशतः समस्यायें घरेलू जीवन की होतीं जिनका समाधान अपने अनुभव के आधार पर बतलाते। कुछ ने अपनी नौकरी और कार्यालय की बातों की चर्चा की।
एक दिन उन्हें एक महिला का सन्देश मिला।उसने उनके लगभग सभी रचनाओं,कहानियों,लेखों और उपदेशों को पढ़ा है और उनके प्रति श्रद्धा का भाव रखती है। रमेश बाबू को इसतरह किसी ने कभी नहीं कहा है। उनको एक अलग सी अनुभूति हुई और उन्होने उसकी पूरी प्रोफाईल देखी। सूचनायें सामान्य ही थीं जैसे अमूमन होती हैं। फोटो में वह बहुत सुन्दर लग रही थी। उसने अपने बहुत से फोटो डाल रखे थे। कुछ फोटो उसके परिजनों के साथ भी थे।अच्छा भला परिवार था और सबकुछ ठीक-ठाक लगा।
उन्होंने लिखा," आप तो बहुत सुन्दर लग रही हो। चेहरे पर खुशी के भाव हैं,दुख या परेशानी तो होनी नही चाहिए।"
"आपकी बातें सही हैं," उसने लिखा,"मुझे किसी भी तरह की कमी नही है।"
"फिर क्या बात है?"
"कैसे बताऊँ मैं?" उसने बहुत देर के बाद उत्तर दिया।
रमेश बाबू ने थोड़ी शंका और थोड़े उत्साह से पूछा," आप अपना सही परिचय दीजिए। अपना सही नाम,आपकी उम्र और यह भी कि क्या ये फोटो आपके ही है ना।"
शायद उसने बुरा मान लिया। बहुत देर तक कोई उत्तर नहीं दी। रमेश बाबू उत्सुकता से प्रतीक्षा करते रहे।
उसने लिखा,"दुख हुआ कि आपने मुझे गलत समझा।मन में आया कि आप से मित्रता का सम्बन्ध त्याग दूँ। ऐसे ही शंका करोगे तो छोड़ भी दूँगी।"
"आप तो नाराज हो गयीं। मैंने ऐसे ही पूछ लिया था। आपको पता होगा ही कि फेसबुक पर जाने कितने लोगों ने गलत नाम से खाते खोल रखे हैं,"रमेश बाबू ने लिखा।
"मैं वैसी नहीं हूँ,"उसने कहा,"मैं आपको सब बताऊँगी। बस मुझे चिढ़ाना नहीं।"
"मैं किसी को चिढ़ाता नहीं और नारियों के प्रति आदर,सम्मान का भाव रखता हूँ," रमेश बाबू ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया,"आप तो बहुत अच्छी लग रही हो। आपको कैसे चिढ़ा सकता हूँ?"
"ओहो---क्या बात है--"उसने कहा,"बड़े रोमैण्टिक हो रहे हो।"
रमेश बाबू को किंचित आश्चर्य हुआ। थोड़ा अच्छा भी लगा।उन्होंने कहा," "आप इतनी सुन्दर हो,कोई भी हो जायेगा," रमेश बाबू ने उत्तर दिया। उन्होंने फिर से उसकी पूरी प्रोफाईल देखा और मन ही मन मान लिया कि सुन्दरता के साथ-साथ उसमें वाक्चातुर्य भी है।सभ्य भी है, खुशमिजाज और मिलनसार भी।उन्होंने मन ही मन आशीर्वाद दिया,"ऐसे ही हमेशा खुश रहो और तुम्हारे जीवन में सुख-शान्ति बनी रहे।"
"आपको ही सुन्दर लगती हूँ। जाने क्या देख रहे हो मुझमें?" उसने जैसे इतरा कर कहा होगा। रमेश बाबू मुस्करा उठे। भीतर एक विचित्र सी अनुभूति हुई जो बहुत प्रीतिकर लगी।
"देखने को तो बहुत कुछ देख रहा हूँ, पर कह नहीं सकता"रमेश बाबू ने कहा और मधुर अनुभूतियों के सागर की तरंगों में डूबने-उतराने लगे।मौसम मानो बासंती हो गया है,मलय पवन सभी को रोमांचित कर रहा है,कोयल ने तान छेड़ दी है,क्यारियों में फूल खिले हैं और भौंरे गुँजार कर रहे हैं। प्यार की जाग रही भावनाओं को उन्होने जोर देकर सुला दिया और नैतिकता की दुहाई देकर दिल को समझाने की कोशिशें कीं कि यह किसी भी तरह उचित नहीं है।
"बातें तो की ही जा सकती हैं,"उनके दिल ने दलील पेश की। उन्होंने मान लिया कि बातें करने में कोई बुराई नहीं है। खुशी हुई कि उधर से भी तो सकारात्मक भाव दिख रहा है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि किसी की भावनाओं का सम्मान करना उचित नहीं है।

जितनी तेजी से यह सम्बन्ध आगे बढ़ रहा था और रमेश बाबू को आनन्द आना शुरु हुआ था,उसी रफ्तार में स्थिति बदल भी गयी। उसने उत्तर देना बंद कर दिया और उनको लगा किसी ने सामने परोसा हुआ थाल खींच लिया है। अपने स्वभाव के अनुसार पहले उन्होंने अपनी गलती की पड़ताल की और बारीकी से अपने सभी वार्तालापों की जाँच की।स्थिति थोड़ी भिन्न तो है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बहुत गलत माना जाय। उन्होंने स्वयं को साफ-सुथरा माना और उसे भी बहुत अच्छा दोस्त समझा।मित्रता भले ही नहीं थी परन्तु रमेश बाबू को उसकी यादें आती रहती। कभी-कभी वे उसकी प्रोफाईल पर जाते और फोटो देखते। कभी-कभी सुप्रभात भी लिख देते लेकिन वह कोई जवाब नहीं देती।
किसी शाम उन्होंने लिखा,"क्या आपको बातें करना पसन्द नहीं है?"
उसने उत्तर दिया,"मैं एक घरेलू,शादी-शुदा औरत हूँ और बच्चे सम्भालने हैं। खाली समय नहीं मिलता।"
"जी,बहुत अच्छा,"रमेश बाबू ने कहा।
उसने फिर लिखा,"मुझे आप बड़ी बुआ के रिश्ते-नाते में लगे,इसलिए जोड़ ली थी।आप की कहानियाँ बहुत अच्छी लगती हैं।सोचा कि आपकी रचनायें पढ़ा करुँगी।बातें करने का समय तो बिल्कुल नहीं है मेरे पास।"
"कोई बात नहीं।आप वही कीजिए जो आपका मन करे।"रमेश बाबू ने थोड़ी निराशा के भाव से कहा। एक समस्या और खड़ी हो गयी कि वे अपनी ओर से मित्रता का प्रस्ताव भेज नहीं सकते थे।उन्होंने लिखा," देखिये,यदि अच्छा लगे तो जुड़िये मुझसे और सम्पर्क में रहिए।"
रमेश बाबू को सुखद आश्चर्य हुआ कि उसने मित्रता का प्रस्ताव भेजा जिसे उन्होंने तुरन्त स्वीकार कर लिया।धीरे-धीरे बातें भी होने लगी।
एक बार फिर उसकी खूबसूरती और मधुर बातों ने रमेश बाबू को प्रभावित किया। वह भी प्रभावित थी,उनकी बातों,कहानियों और लोगों के अन्तर्सम्बन्धों की जटिलताओं की व्याख्या से। उसने किसी दिन पूछ ही लिया," आप नारी-मन की इतनी सटीक व्याख्या कैसे कर लेते हो?कैसे समझ जाते हो कि मेरे मन में क्या है?"
रमेश बाबू ने उत्तर तो दिया परन्तु वह बात नहीं बतायी जो उनके मन में थी।
वह हँस पड़ी,"मैं सब समझती हूँ।"
"यही तुम्हारी विशेषतायें मुझे प्रभावित करती हैं,"रमेश बाबू भी हँस पड़े।साथ ही एक शंका भी उन्हें चिन्ता में डाल रही थी,"कौन सा कारण है कि वह इस कदर आत्मीय होती जा रही है?हालाँकि उसका आत्मीय होना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। रमेश बाबू उसकी भावनाओं को समझ नहीं पा रहे थे और अपनी सोच में बहुत निम्न स्तर पर थे जिसके लिये उन्होंने उस से माफी भी माँगी। उसने जब कहा,"आपसे एक बात बोलूँ।"तो उन्होने कहा," कुछ माँगना चाहती हो क्या?"
वह विफर उठी,"आपने मुझे समझ क्या रखा है?मेरे पास सबकुछ है-धन-दौलत,बंगला,गाड़ी और भरा-पुरा परिवार। सभी बहुत अच्छे हैं और मुझे सबका भरपूर स्नेह-आदर मिलता है।"
रमेश बाबू को लगा- वह नाराज हो जायेगी और फिर दोस्ती खत्म। शुक्र है,ऐसा कुछ भी नहीं हुआ परन्तु उसने अनेक बार उलाहनायें दीं कि उन्होंने उसे माँगनेवाली समझा।उन्हें आत्मग्लानि हुई और बार-बार उन्होंने इसके लिए पश्चाताप की बातें की।खुशी हुई कि उसने इस बात को भूल जाने को कहा। रमेश बाबू को वह एक बहुत समझदार और सुलझी हुई महिला लगी। उनके दिल में प्यार,सहानुभूति के साथ उसके लिए आदर-सम्मान की भावना उभरी।उन्होंने इस अनुभूति की चर्चा भी की जिसे उसने यह कहकर नकार दिया,"उसके दिल में आपके लिए प्यार पहले से ही है। हाँ,यह आदर वाला प्यार है,प्यार वाला प्यार नहीं।"उसने पुनः कहा," आपकी सत्यवादिता ने मुझे बहुत प्रभावित किया जब आपने कहा कि मैं उम्रदराज आदमी हूँ।पहले तो मैं खूब हँसी थी उस दिन और मन हुआ कि अपना माथा दीवार में दे मारूँ। अरे दोस्ती भी की तो ऐसे इंसान से? फिर मुझे आपकी सच्चाई ने खींच लिया अपनी ओर, और मैं आदर वाले प्यार के साथ आपकी हो गयी।"
एक बात और कहना चाहूँगी," मैं पहले बहुत नकचढ़ी थी। मेरे मन के खिलाफ कोई मुझसे कुछ भी नहीं करवा सकता था।मेरे पति भी मेरी भावनाओं को समझते हैं और उसी के अनुसार व्यवहार करते हैं। कई बार वे अपनी भावनाओं को दबा लेते हैं जब मैं किसी दूसरी स्थिति-परिस्थिति में होती हूँ। इसलिए मैं उनका बहुत सम्मान करती हूँ। यह तभी हो सकता है जब कोई आपको बहुत प्यार करता हो। भगवान सभी महिलाओं को ऐसा प्यार करने वाला पति दे।"
वह पूरे रौ में बोले जा रही थी,"आपको बताती हूँ-बचपन में ही मेरी माँ की मृत्यु हो गयी। पिता और दादी की देखरेख में बड़ी हुई। अनुशासन में रहना था और लगता था कि माँ होती तो कुछ और होता। शादी की बात चली तो इनके पिता ने मुझे देखा और पसन्द किया। इनका तर्क दूसरा था। अपनी माँ को बोलते थे कि गाँव की लड़की से शादी नहीं करूँगा।इनके पिताजी ने कहा कि पहले एक बार जाकर देख तो लो। फिर जैसा कहोगे,वही होगा।"
"फिर क्या हुआ?" रमेश बाबू ने पूछा।
वह हँस पड़ी," आप को सच बता रही हूँ। मैं तो इनको देख ही नहीं पायी। जब पलकें उठाऊँ तो यही निहारते मिले। ऐसे लट्टू हुए कि पूछिये नहीं।शादी हो गयी और मैं चली आयी। सभी ने मेरा खूब स्वागत किया और बहुत प्रेम से रखा। मैंने भी अपनी ओर से कोई कमी नहीं की और पूरे घर को सम्भाल लिया। दादी ने सिखाया था कि वही तुम्हारा घर है। जैसा करोगी वैसा ही मिलेगा। सचमुच कह रही हूँ-मुझे बहुत स्नेह और प्यार मिला।"
"आप हो ही इसके लिए काबिल,"रमेश बाबू ने उसकी आँखों की खूबसूरती को देखते हुए कहा,"आपको कौन नहीं प्यार करेगा?"
"अब इतना भी मत चढ़ाईये।"उसने धीरे से कहा।रमेश बाबू को लगा-शायद शरमा रही होगी। मृदुल हँसी का भाव उनके चेहरे पर उभरा।
उसने कहा,'ऐसा क्या है आपमें, मैने अपनी सारी बातें साझा की और आपको अपना परिजन ही एक मान रही हूँ। दरअसल आपने मेरा वह रिक्त स्थान भर दिया है जो मुझे खाली-खाली लगने लगा था।सास-ससुर अपनी दुनिया में,देवर-देवरानी अपनी मस्ती में,पतिदेव आफिस और बच्चे अपने स्कूल। अब मैं आपको पढ़ती हूँ,आपसे बातें करती हूँ, स्वयं को बदल रही हूँ और आपको प्यार भी करती हूँ।

विजय कुमार तिवारी की अन्य किताबें

Tushar Thakur

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उसने कभी निराश नहीं किया

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कवितातुम खुश होविजय कुमार तिवारीआदिम काल में तुम्हीं शिकार करती थी,भालुओं का,हिंस्र जानवरों का और कबीले के पुरुषों का,बच्चों से वात्सल्य और जवान होती लड़कियों से हास-परिहासतुम्हारी इंसानियत के पहलू थे। तुम्हारी सत्ता के अधीन, पुरुष ललचाई निगाहों से देखता था,तुम्हारे फेंके गये टुकड़ों पर जिन्दा थाऔर

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कवितासच्चा प्रेमीविजय कुमार तिवारीतुमने तोड़ डाले सारे रिश्तेऔर फेंक दिया लावारिश राहों में। तुमने मुझे दोषी कहा,धोखेबाज और ना जाने क्या-क्या?तुम्हारे मधुर शब्द कितने खोखले निकले,दूर तक चलने की कसमें कितनी बेमतलबऔर तुम्हारी कोशिशें किसी मायाजाल सी। मुझे कुछ भी नहीं कहना,कोई शिकवा नहीं,कोई शिकायत नही

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देवरहा बाबा के बहानेविजय कुमार तिवारीजब हम एकान्त में होते हैं तो हमारे सहयात्री होते हैं-आसपास के पेड़-पौधे। वे लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसी अनुभूति होती है। मेरा दुर्भाग्य रहा कि मुझे पूज्य देवरहा बाबा जी का दर्शन करने का सुअवसर नहीं मिला। साथ ही सौभाग्य है कि आज मैं उन्हें श्रद्धा भाव से या

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2 दिसम्बर 2018
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गीत कौन सा पतझड़ मिले? विजय कुमार तिवारी और गा लूँ जिन्दगी की धून पर, कल न जाने प्रीति को मंजिल मिले? दर्द में उत्साह लेकर बढ़ रहा था रात-दिन, आह में संगीत संचय कर रहा था रात-दिन। आज सावन कह रहा है बार-बार, क्यों लिया बंधन स्व-मन से रात-दिन? सोचता हूँ चुम लूँ वह पंखुड़ी, कल न जाने कौन सी बेकल खिल

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एक प्यार ऐसा भी

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उसका चाँद

12 दिसम्बर 2018
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कहानीउसका चाँदविजय कुमार तिवारीबचपन में चाँद देखकर खुश होता था और अपलक निहारा करता था। चाँद को भी पता था कि धरती का कोई प्राणी उसे प्यार करता है। दादी ने जगा दिया था प्रेम उसके दिल में, चाँद के लिए। बड़ी बेबसी से रातें गुजरतीं जब आसमान में चाँद नहीं होता। वैसे तो दादी नित्य ही चाँद को दूध-भात के कटो

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कहानीअन्तर्मन की व्यथाविजय कुमार तिवारी"है ना विचित्र बात?"आनन्द मन ही मन मुस्कराया," अब भला क्या तुक है इस तरह जीवन के बिगत गुजरे सालों में झाँकने का और सोयी पड़ी भावनाओं को कुरेदने का?अब तो जो होना था, हो चुका,जैसे जीना था,जी चुका। ऐसा भी तो नही हैं कि उसका बिगत जीवन बह

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कहानीमाँ-बेटीविजय कुमार तिवारीउम्र ढल रही है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है।शादी नहीं होने का दुख मुझे नहीं है।अम्मा की उदासी मेरा दुख बढ़ा देती है।कभी-कभी लगता है कि उसके सारे दुखों का कारण मैं ही हूँ।भीतर बहुत दर्द उभरता है।तब दर्द और बढ़ जाता है जब अम्मा कहीं दूर से म

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प्यार के बहुतेरे रंग

17 दिसम्बर 2018
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कविताप्यार के बहुतेरे रंगविजय कुमार तिवारीयाद करो मैंने पूछा था-तुम्हारी कुड़माई हो गयी?यह एक स्वाभाविक प्रश्न था,तुमने बुरा मान लिया, मिटा डाली जुड़ने की सारी सम्भावनायेंऔर तोड़ डाले सारे सम्बन्ध। प्यार की पनपती भावनायें वासना की ओर ही नहीं जाती,वे जाती हैं-भाईयों की सुरक्षा में,पिता के दुलार में,व

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ट्रेन यात्रा

18 दिसम्बर 2018
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कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

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स्नेह निर्झर

3 जनवरी 2019
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कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा

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बूढ़ा आदमी

6 जनवरी 2019
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कविता(मौलिक)बूढ़ा आदमीविजय कुमार तिवारीथक कर हार जाता है,बेबस हो जाता है,लाचारजबकि जबान चलती रहती है,मन भागता रहता है,कटु हो उठता है वह,और जब हर पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है,कुछ न कर पाने पर तड़पता है बूढ़ा आदमी। कितना भयानक है बूढ़ा हो जाना,बूढ़ा होने के पहले,क्या तुमने देखा है कभी-तीस साल की उम्र को बूढ

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देश बचाना

13 जनवरी 2019
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कवितादेश बचानाविजय कुमार तिवारीस्वीकार करुँ वह आमन्त्रणऔर बसा लूँ किसी की मधुर छबि,डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल, रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तानरचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग। या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,उठा लूँ लड़ने के औजारचल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान। कु

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विम्ब का ये प्यार

15 जनवरी 2019
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गीत(09/05/1978)विम्ब का ये प्यारविजय कुमार तिवारीकौन दूर से रहा निहार?दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार, विम्ब का ये प्यार। पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये। आज हाथ केवल है हार,दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,विम्ब का ये प्यार। धड़कने सिसकाव का सहारा ले,मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले। अदाय

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बचपन की यादें

18 जनवरी 2019
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कहानीबचपन की यादेंविजय कुमार तिवारीये बात तब की है जब हमारे लिए चाँद-सितारों का इतना ही मतलब था कि उन्हें देखकर हम खुश होते थे।अब धरती से जुड़ने का समय आ गया था और हम खेत-खलिहान जाने लगे थे।धीरे-धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया बँटी हुई है और खेत-बगीचे सब के बहुत से मालिक हैं।यह मेरा बगीचा है,मेरी

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अन्तर्यात्रा का रहस्य

22 जनवरी 2019
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अन्तर्यात्रा का रहस्यविजय कुमार तिवारीकर सको तो प्रेम करो।यही एक मार्ग है जिससे हमारा संसार भी सुव्यवस्थित होता है और परमार्थ भी।संसार के सारे झमेले रहेंगे।हमें स्वयं उससे निकलने का तरीका खोजना होगा।किसी का दिल हम भी दुखाये होंगे और कोई हमारा।हम तब उतना सावधान नहीं होते जब हम किसी के दुखी होने का का

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गुरु और चेला

28 जनवरी 2019
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व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह

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स्त्री-पुरुष

29 जनवरी 2019
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कहानीस्त्री-पुरुषविजय कुमार तिवारीइसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं जिन्हें महिलाओं ने लिखा है और खूब प्रसिद्धी बटोर रही हैं।कहानियाँ तो अपनी जगह हैं,परन्तु उनपर आयीं टिप्पणियाँ रोचक कम, दिल जलाने लगती हैं।लगता है-यह पुरुषों के प्रति अन्याय और विद्रोह है।रहना,पलना और जीना दोनो को साथ-साथ ही है।दोनो के भीतर

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आतंक

4 फरवरी 2019
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कविता(मौलिक)आतंकविजय कुमार तिवारीचलो, मुझे उस मोड़ तक छोड़ दो,सांझ होने को है,अंधियारे जाया नहीं जायेगा। न हो तो बीच वाले मन्दिर से लौट आना,या उस मस्जिद से,जहाँ सड़क पार चर्च है।अस्पताल तक तो पहुँचा ही देनाचला जाऊँगा उससे आगे। ऐसा नहीं कि हिन्दुओं से डरता हूँ,मुसलमानों से भी नहीं डरता,सिखों या किसी

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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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पुरानी यादे

7 फरवरी 2019
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पुरानी यादेंविजय कुमार तिवारी1983 में 4 सितम्बर को लिखा-डायरी मेरे हाथ में है और कुछ लिखने का मन हो रहा है। आज का दिन लगभग अच्छा ही गुजरा है।ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे खुश भी करना चाहती हैं और कुछ त्रस्त भी।जब भी हमारी सक्रियता कम होगी,हम चौकन्ना नहीं होंगे तो निश्चित मानिये-हमारी हानि होगी।जब हम

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प्रेम का मौसम

9 फरवरी 2019
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प्रेम का मौसमविजय कुमार तिवारीप्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच

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चुनाव 2019

10 फरवरी 2019
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चुनाव-2019विजय कुमार तिवारीहम वोट देने वाले हैं।वोट देना हमारा अधिकार है और कर्तव्य भी।यह बहुत संयम, धैर्य और विचार का विषय है।आज से पहले शायद कभी भी हमने इस तरह नहीं सोचा।चुनाव आयोग और हमारे संविधान ने इस विषय में बहुत से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।हम सभी सामान्य वोटर को बहुत कुछ पता भी नहीं है।कई

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आत्म-बोध

15 फरवरी 2019
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पहली मुलाक़ात

21 फरवरी 2019
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कवितापहली मुलाकातविजय कुमार तिवारीयह हठ था या जीवन का कोई विराट दर्शन,या मुकुलित मन की चंचल हलचल?रवि की सुनहरी किरणें जागी,बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,हुई सुवासित डाली डाली, जागी कोई मधुर कल्पना।शशि लौट चुका थानिज चन्द्रिका-पंख समेटे। उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजो

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शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019
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प्यार ही डसने लगा

28 फरवरी 2019
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प्यार ही डंसने लगाविजय कुमार तिवारीतुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हो गये अपने पराये,आईना छलने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हर हवा तूफान सी,झकझोर देती जिन्दगी,धुंध में खोया रहा,पतवार भी डुबने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?चाँद तारे छुप गये हैं,दर्द के शैलाब में,ढल गया दिल का उजाला,

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बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिये

5 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिएविजय कुमार तिवारीबच्चा जैसे ही अपने आसपास को देखना शुरु करता है उसके मन में प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं।वह जानना चाहता है,समझना चाहता है और पूछना चाहता है।जब तक बोलने नहीं सीख जाता,व्यक्त करने नहीं सीख जाता,उसके प्रश्न संकेतों में उभरते हैं।उसे यह धरती,यह आकाश,य

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विज्ञापन

22 मार्च 2019
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कविताविज्ञापनविजय कुमार तिवारीजागते ही खोजती है अखबार,झुँझलाती है-कि जल्दी क्यों नहीं दे जाता अखबार। अखबार में खोजती है-नौकरियों के विज्ञापन। पतली-पतली अंगुलियों से,एक -एक शब्द को छूती हुई,हर पंक्ति पर दृष्टि जमाये,पहुँच जाती है अंतिम शब्द तक। गहरा निःश्वांस छोड़ती है

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महत् चिंतन

4 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपाय

5 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपायविजय कुमार तिवारीसंसार में सभी सुख चाहते हैं,दुख कोई नहीं चाहता,जबकि कोई सुखी नहीं है, सभी दुखी हैं।कबीर दास जी ने कहा है कि सारा संसार दुख से भरा है।मेरा मानना है कि हमें सत्य दिखता नहीं।हम असत्य देखने के आदी हो गये हैं।हम झूठ देखते हैं और अपनी सुविधा से

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मि. ख़ का शहर

9 अप्रैल 2019
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प्रेम के भूख

5 सितम्बर 2019
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प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

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नदी के दावेदार

28 सितम्बर 2019
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छमा करना

1 अक्टूबर 2019
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मशाल

4 अक्टूबर 2019
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करूँ-ह्रदय

11 अक्टूबर 2019
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दुःख

12 अक्टूबर 2019
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दुनिया युद्ध के महाविनाश की ओर जा रही है।यदि ऐसा हुआ तो किसी न किसी रुप में हम सभी प्रभावित होंगे।वैसे ही दुनिया में लोग अनेकानेक कारणों से दुखी हैं।हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हे कोई न कोई दुख है।हम मिलकर उनका समाधान खोज सकते हैं और दुखों से बचाव कर सकते हैं।कम से कम हम चर्चा तो करें।कोई न कोई स

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उद्बोधन

22 नवम्बर 2019
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उद्बोधनविजय कुमार तिवारीलम्बे अन्तराल के बाद आज कुछ उद्बोधित होने की प्रेरणा जाग रही है।खिड़की से बाहर की दुनिया बड़ी मनोरम दिख रही है।आसमान नीला और शान्त है।मन भी नीरव-शान्ति की अनुभूति से ओत-प्रोत है।कौन कहता है कि हमारा जन्म दुख-भोग के लिए ही है?हमें स्वयं में डुबकी लगाने नहीं आता।हमारी सारी समस्

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ईशावास्योपनिषद के आलोक में

11 जनवरी 2020
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ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

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विवेकानंद के बहाने

12 जनवरी 2020
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विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

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निर्भया के बहाने

20 मार्च 2020
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निर्भया के बहानेविजय कुमार तिवारीअन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनै

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जनता कर्फ्यू और हमारा देश

22 मार्च 2020
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जनता कर्फ्यू और हमारा देशविजय कुमार तिवारीप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर आज २२ मार्च २०२० को पूरे देश ने अपनी एकता,अपना जोश और अपना मनोबल पूरी दुनिया को दिखा दिया।इस जज्बे को मैं हृदय से सादर नमन करता हूँ।राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिकों तक ने ताली,थाली, घंटी,शंख और नगाड़े बजाकर अपना आभार

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कोरोना और स्त्री

25 मार्च 2020
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करोना और स्त्रीविजय कुमार तिवारीकल प्रधानमन्त्री ने देश मेंं कोरोना के चलते ईक्कीस दिनों के"लाॅकडाउन"की घोषणा की है।सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता।घर मेंं चौबिसों घण्टे पत्नी के साथ रह पाना,सोचकर ही मन भारी हो जाता है।किसी साधु-सन्त के पास इससे बचाव का उपाय नहीं है।

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महर्षि अरविंद का पूर्णयोग

26 मार्च 2020
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महर्षि अरविन्द का पूर्णयोगविजय कुमार तिवारीमहर्षि अरविन्द का दर्शन इस रुप में अन्य लोगोंं के चिन्तन से भिन्न है कि उन्होंने आरोहण(उर्ध्वगमन)द्वारा परमात्-प्राप्ति के उपरान्त उस विराट् सत्ता को मनुष्य में अवतरण अर्थात् उतार लाने की चर्चा की है।यह उनका एक नवीन चिन्तन है।गीता में दोनो बातें कही गयी हैं

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जिंदगी सुखद संयोगो का खेल है .

27 मार्च 2020
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कहानीजिन्दगी सुखद संयोगों का खेल है।विजय कुमार तिवारीरमणी बाबू को भगवान में बहुत श्रद्धा है।उसके मन मेंं यह बात गहरे उतर गयी है कि अच्छे दिन अवश्य आयेंगे।अक्सर वे सुहाने दिनों की कल्पना में खो जाते हैं और वर्तमान की छोटी-छोटी जरुरतों की लिस्ट बनाते रहते हैं।गाँव के लड़के स्कूल साईकिल पर जाते थे तो व

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धिक्कार है ऐसे लोगो पर

31 मार्च 2020
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धिक्कार है ऐसे लोगोंं परविजय कुमार तिवारीमन दहल उठता है।लाॅकडाउन में भी लाखों की भीड़ सड़कों पर है।भारत का प्रधानमन्त्री हाथ जोड़कर विनती करता है,आगाह करता है कि खतरा पूरी मानवजाति पर है।विकसित और सम्पन्न देश त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।विकास और ऐश्वर्य के बावजूद वे अपनी जनता को बचा नहीं पा रहे हैं।आज

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शहर प्रयोगशाला हो गया है

1 अप्रैल 2020
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कविताशहर प्रयोगशाला हो गया हैविजय कुमार तिवारीछद्मवेष में सभी बाहर निकल आये हैंं,लिख रहे हैं इतिहास में दर्ज होनेवाली कवितायें,सुननी पड़ेगी उनकी बातेंं,देखना पड़ेगा बार-बार भोला सा चेहरा।तुमने ही उसे सिंहासन दिया है,और अपने उपर राज करने का अधिकार।दिन में वह ओढ़ता-बिछाता है तुम्हारी सभ्यता-संस्कृति,उ

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मेरे आनंद की बाते

2 अप्रैल 2020
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मेरे आनन्द की बातेंविजय कुमार तिवारीकभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ

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हर युग में आते है भगवान

3 अप्रैल 2020
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कविताहर युग मेंं आते हैं भगवानविजय कुमार तिवारीद्रष्टा ऋषियों ने संवारा,सजाया है यह भू-खण्ड,संजोये हैं वेद की ऋचाओं में जीवन-सूत्र,उपनिषदों ने खोलें हैं परब्रह्म तक पहुँचने के द्वार,कण-कण में चेतन है वह विराट् सत्ता।सनातन खो नहीं सकता अपना ध्येय,तिरोहित नहीं होगें हमारे पुरुषोत्तम के आदर्श,महाभारत स

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5 अप्रैल 2020 ,रात 9 बजे 9 मिनट का प्रकाश-पर्व

5 अप्रैल 2020
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5 अप्रैल 2020,रात 9 बजे,9 मिनट का प्रकाश-पर्वविजय कुमार तिवारीविश्वास करें,यह कोई सामान्य घटना घटित होने नहीं जा रही है और ना ही आज का प्रकाश-पर्व एक सामान्य प्रकाश-पर्व है।ब्रह्माण्ड की ब्रह्म-शक्ति का आह्वान हम सम्पूर्ण देशवासी प्रकाश-पर्व मनाकर करने जा रहे हैं।हमारे भीतर स्थित वह दिव्य-चेतना जागृ

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विपत्ति में ही

7 अप्रैल 2020
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विपत्ति में हीविजय कुमार तिवारीप्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित ह

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हमउम्र बूढ़ों का परिवार

8 अप्रैल 2020
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कविताहमउम्र बूढ़ोंं का परिवारविजय कुमार तिवारीमैंने सजा लिया है सारे हमउम्र बूढ़ों को अपने फ्रेम में,बना लिया है मित्रों का बड़ा सा समूह। रोज देखता रहता हूँ उनके आज के चेहरे,चमक उठती है पुतलियाँजीवन्त हो उठते हैं उनसे जुडे नाना प्रसंग। मुरझाये गालों और मद्धिम रोशनी लिये आँखें,आज भी कौंंध जाता है उनक

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-१

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1विजय कुमार तिवारीसालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-२

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-३

13 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-3विजय कुमार तिवारी"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये।प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका।सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी,दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है।आपकी बात सही हो तब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-४

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4विजय कुमार तिवारी"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या ब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-६

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-6विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू दोनो महिलाओं और मोहन चन्द्र जी की भाव-भंगिमा देख दंग रह गये।सुबह दूध वाले की बातें सत्य होती प्रतीत होने लगी।उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।अन्दर से पत्नी भी आ गयी।मोहन चन्द्र बाबू उन दोनो महिलाओं से कुछ पूछते-बतियाते रहे।थोड़ी देर में पत्नी

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हमारी शादी की सैंतीसवी वर्षगाठ

27 अप्रैल 2020
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हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठविजय कुमार तिवारीआज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन

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तुम्हारे प्रेम के नाम-२

1 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-2विजय कुमार तिवारीदुनिया तो वही है जो सबकी होती है परन्तु मेरे लिए जैसे बिल्कुल अजनबी हो चुकी है।जो जानी-पहचानी दुनिया थी उसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ और यह नयी जगह,नयी दुनिया जैसे मुझे आत्मसात करने को तैयार ही नहीं है।इस दृष्टि से समूची नारी जाति के प्रति मेरा मन पूरी श

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तुम्हारे प्रेम के नाम-३

3 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-3विजय कुमार तिवारीतुमने अनेकों बार कुरेदा है मुझे,"कैसे मैं अपने को बचाता रहा और कैसे इस मतलबी दुनिया की शातिर चालों को समझ पाया।"तुमसे खुलकर कहना चाहता हूँ,सच बयान करता हूँ कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है।हर व्यक्ति को थोड़ा सजग रहना चाहिए।थो

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वासना गद्दारो और नशेड़ियों का देश

5 मई 2020
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वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देशविजय कुमार तिवारीवासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में

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डा नन्द किशोर नवल जी की यादें

14 मई 2020
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डा0 नन्द किशोर नवल जी की यादेंविजय कुमार तिवारीपरमादरणीय मित्र,प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार डा.नन्द किशोर नवल जी नहीं रहे।मेरा तबादला धनबाद से पटना हुआ था।9अप्रैल 1984 की शाम में बी,एम.दास रोड स्थित मैत्री-शान्ति भवन में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से"राहुल सांकृत्यायन-जयन्ती"का आयोजन था।भाई अरुण कमल,ड

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