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रविंद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कहानियां - भिखारिन (Bhikharin story in hindi by Rabindranath Tagore) अन्धी प्रतिदिन मन्दिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती,

21 दिसम्बर 2018

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रविंद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कहानियां - भिखारिन (Bhikharin story in hindi by Rabindranath Tagore)

  • अन्धी प्रतिदिन मन्दिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती, दर्शन करने वाले बाहर निकलते तो वह अपना हाथ फैला देती और नम्रता से कहती- "बाबूजी, अन्धी पर दया हो जाए।"

वह जानती थी कि मन्दिर में आने वाले सहृदय और श्रद्धालु हुआ करते हैं। उसका यह अनुमान असत्य न था। आने-जाने वाले दो-चार पैसे उसके हाथ पर रख ही देते। अन्धी उनको दुआएं देती और उनको सहृदयता को सराहती। स्त्रियां भी उसके पल्ले में थोड़ा-बहुत अनाज डाल जाया करती थीं।

सुबह से शाम तक वह इसी प्रकार हाथ फैलाए खड़ी रहती। उसके पश्चात् मन-ही-मन भगवान को प्रणाम करती और अपनी लाठी के सहारे झोंपड़ी का पथ ग्रहण करती। उसकी झोंपड़ी नगर से बाहर थी। रास्ते में भी याचना करती जाती किन्तु राहगीरों में अधिक संख्या श्वेत वस्त्रों वालों की होती, जो पैसे देने की अपेक्षा झिड़कियां दिया करते हैं। तब भी अन्धी निराश न होती और उसकी याचना बराबर जारी रहती। झोंपड़ी तक पहुंचते-पहुंचते उसे दो-चार पैसे और मिल जाते।

झोंपड़ी के समीप पहुँचते ही एक दस वर्ष का लड़का उछलता-कूदता आता और उससे चिपट जाता। अन्धी टटोलकर उसके मस्तक को चूमती।

बच्चा कौन है? किसका है? कहां से आया? इस बात से कोई परिचय नहीं था। पांच वर्ष हुए पास-पड़ोस वालों ने उसे अकेला देखा था। इन्हीं दिनों एक दिन संध्या-समय लोगों ने उसकी गोद में एक बच्चा देखा, वह रो रहा था, अन्धी उसका मुख चूम-चूमकर उसे चुप कराने का प्रयत्न कर रही थी। वह कोई असाधारण घटना न थी, अत: किसी ने भी न पूछा कि बच्चा किसका है। उसी दिन से यह बच्चा अन्धी के पास था और प्रसन्न था। उसको वह अपने से अच्छा खिलाती और पहनाती।

अन्धी ने अपनी झोंपड़ी में एक हांडी गाड़ रखी थी। संध्या-समय जो कुछ मांगकर लाती उसमें डाल देती और उसे किसी वस्तु से ढांप देती। इसलिए कि दूसरे व्यक्तियों की दृष्टि उस पर न पड़े। खाने के लिए अन्न काफी मिल जाता था। उससे काम चलाती। पहले बच्चे को पेट भरकर खिलाती फिर स्वयं खाती। रात को बच्चे को अपने वक्ष से लगाकर वहीं पड़ रहती। प्रात:काल होते ही उसको खिला-पिलाकर फिर मन्दिर के द्वार पर जा खड़ी होती।


  • काशी में सेठ बनारसीदास बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। बच्चा-बच्चा उनकी कोठी से परिचित है। बहुत बड़े देशभक्त और धर्मात्मा हैं। धर्म में उनकी बड़ी रुचि है। दिन के बारह बजे तक सेठ स्नान-ध्यान में संलग्न रहते। कोठी पर हर समय भीड़ लगी रहती। कर्ज के इच्छुक तो आते ही थे, परन्तु ऐसे व्यक्तियों का भी तांता बंधा रहता जो अपनी पूंजी सेठजी के पास धरोहर रूप में रखने आते थे। सैकड़ों भिखारी अपनी जमा-पूंजी इन्हीं सेठजी के पास जमा कर जाते। अन्धी को भी यह बात ज्ञात थी, किन्तु पता नहीं अब तक वह अपनी कमाई यहां जमा कराने में क्यों हिचकिचाती रही।

उसके पास काफी रुपये हो गए थे, हांडी लगभग पूरी भर गई थी। उसको शंका थी कि कोई चुरा न ले। एक दिन संध्या-समय अन्धी ने वह हांडी उखाड़ी और अपने फटे हुए आंचल में छिपाकर सेठजी की कोठी पर पहुंची।

सेठजी बही-खाते के पृष्ठ उलट रहे थे, उन्होंने पूछा- 'क्या है बुढ़िया?'

अंधी ने हांडी उनके आगे सरका दी और डरते-डरते कहा- 'सेठजी, इसे अपने पास जमा कर लो, मैं अंधी, अपाहिज कहां रखती फिरूंगी?'

सेठजी ने हांडी की ओर देखकर कहा-'इसमें क्या है?'

अन्धी ने उत्तर दिया- 'भीख मांग-मांगकर अपने बच्चे के लिए दो-चार पैसे संग्रह किये हैं, अपने पास रखते डरती हूं, कृपया इन्हें आप अपनी कोठी में रख लें।'

सेठजी ने मुनीम की ओर संकेत करते हुए कहा- 'बही में जमा कर लो।' फिर बुढ़िया से पूछा-'तेरा नाम क्या है?'

अंधी ने अपना नाम बताया, मुनीमजी ने नकदी गिनकर उसके नाम से जमा कर ली और वह सेठजी को आशीर्वाद देती हुई अपनी झोंपड़ी की राह चली गई।


  • दो वर्ष बहुत सुख के साथ बीते। इसके पश्चात् एक दिन लड़के को ज्वर ने आ दबाया। अन्धी ने दवा-दारू की, झाड़-फूंक से भी काम लिया, टोने-टोटके की परीक्षा की, परन्तु सम्पूर्ण प्रयत्न व्यर्थ सिद्ध हुए। लड़के की दशा दिन-प्रतिदिन बुरी होती गई, अंधी का हृदय टूट गया, साहस ने जवाब दे दिया, निराश हो गई। परन्तु फिर ध्यान आया कि संभवत: डॉक्टर के इलाज से फायदा हो जाए। इस विचार के आते ही वह गिरती-पड़ती सेठजी की कोठी पर आ पहुंची। सेठजी उपस्थित थे।

अंधी ने कहा- 'सेठजी मेरी जमा-पूंजी में से दस-पांच रुपये मुझे मिल जायें तो बड़ी कृपा हो। मेरा बच्चा मर रहा है, डॉक्टर को दिखाऊंगी।'

सेठजी ने कठोर स्वर में कहा- 'कैसी जमा पूंजी? कैसे रुपये? मेरे पास किसी के रुपये जमा नहीं हैं।'

अंधी ने रोते हुए उत्तर दिया- 'दो वर्ष हुए मैं आपके पास धरोहर रख गई थी। दे दीजिए बड़ी दया होगी।'

सेठजी ने मुनीम की ओर रहस्यमयी दृष्टि से देखते हुए कहा- 'मुनीमजी, जरा देखना तो, इसके नाम की कोई पूंजी जमा है क्या? तेरा नाम क्या है री?'

अंधी की जान-में-जान आई, आशा बंधी। पहला उत्तर सुनकर उसने सोचा कि सेठ बेईमान है, किन्तु अब सोचने लगी सम्भवत: उसे ध्यान न रहा होगा। ऐसा धर्मी व्यक्ति भी भला कहीं झूठ बोल सकता है। उसने अपना नाम बता दिया। उलट-पलटकर देखा। फिर कहा- 'नहीं तो, इस नाम पर एक पाई भी जमा नहीं है।'

अंधी वहीं जमी बैठी रही। उसने रो-रोकर कहा- 'सेठजी, परमात्मा के नाम पर, धर्म के नाम पर, कुछ दे दीजिए। मेरा बच्चा जी जाएगा। मैं जीवन-भर आपके गुण गाऊंगी।'

परन्तु पत्थर में जोंक न लगी। सेठजी ने क्रुद्ध होकर उत्तर दिया- 'जाती है या नौकर को बुलाऊं।'

अंधी लाठी टेककर खड़ी हो गई और सेठजी की ओर मुंह करके बोली- 'अच्छा भगवान तुम्हें बहुत दे। और अपनी झोंपड़ी की ओर चल दी।'

यह अशीष न थी बल्कि एक दुखी का शाप था। बच्चे की दशा बिगड़ती गई, दवा-दारू हुई ही नहीं, फायदा क्योकर होता। एक दिन उसकी अवस्था चिन्ताजनक हो गई, प्राणों के लाले पड़ गये, उसके जीवन से अंधी भी निराश हो गई। सेठजी पर रह-रहकर उसे क्रोध आता था। इतना धनी व्यक्ति है, दो-चार रुपये दे देता तो क्या चला जाता और फिर मैं उससे कुछ दान नहीं मांग रही थी, अपने ही रुपये मांगने गई थी। सेठजी से घृणा हो गई।

बैठे-बैठे उसको कुछ ध्यान आया। उसने बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया और ठोकरें खाती, गिरती-पड़ती, सेठजी के पास पहुंची और उनके द्वार पर धरना देकर बैठ गई। बच्चे का शरीर ज्वर से भभक रहा था और अंधी का कलेजा भी।

एक नौकर किसी काम से बाहर आया। अंधी को बैठा देखकर उसने सेठजी को सूचना दी, सेठजी ने आज्ञा दी कि उसे भगा दो।

नौकर ने अंधी से चले जाने को कहा, किन्तु वह उस स्थान से न हिली। मारने का भय दिखाया, पर वह टस-से-मस न हुई। उसने फिर अन्दर जाकर कहा कि वह नहीं टलती।

सेठजी स्वयं बाहर पधारे। देखते ही पहचान गये। बच्चे को देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि उसकी शक्ल-सूरत उनके मोहन से बहुत मिलती-जुलती है। सात वर्ष हुए तब मोहन किसी मेले में खो गया था। उसकी बहुत खोज की, पर उसका कोई पता न मिला। उन्हें स्मरण हो आया कि मोहन की जांघ पर एक लाल रंग का चिन्ह था। इस विचार के आते ही उन्होंने अंधी की गोद के बच्चे की जांघ देखी। चिन्ह अवश्य था परन्तु पहले से कुछ बड़ा। उनको विश्वास हो गया कि बच्चा उन्हीं का है। परन्तु तुरन्त उसको छीनकर अपने कलेजे से चिपटा लिया। शरीर ज्वर से तप रहा था। नौकर को डॉक्टर लाने के लिए भेजा और स्वयं मकान के अन्दर चल दिये।

अंधी खड़ी हो गई और चिल्लाने लगी-'मेरे बच्चे को न ले जाओ, मेरे रुपये तो हजम कर गये अब क्या मेरा बच्चा भी मुझसे छीनोगे?'

सेठजी बहुत चिन्तित हुए और कहा-'बच्चा मेरा है, यही एक बच्चा है, सात वर्ष पूर्व कहीं खो गया था अब मिला है, सो इसे कहीं नहीं जाने दूंगा और लाख यत्न करके भी इसके प्राण बचाऊंगा।'

अंधी ने एक जोर का ठहाका लगाया-'तुम्हारा बच्चा है, इसलिए लाख यत्न करके भी उसे बचाओगे। मेरा बच्चा होता तो उसे मर जाने देते, क्यों? यह भी कोई न्याय है? इतने दिनों तक खून-पसीना एक करके उसको पाला है। मैं उसको अपने हाथ से नहीं जाने दूंगी।'

सेठजी की अजीब दशा थी। कुछ करते-धरते बन नहीं पड़ता था। कुछ देर वहीं मौन खड़े रहे फिर मकान के अन्दर चले गये। अन्धी कुछ समय तक खड़ी रोती रही फिर वह भी अपनी झोंपड़ी की ओर चल दी।

दूसरे दिन प्रात:काल प्रभु की कृपा हुई या दवा ने जादू का-सा प्रभाव दिखाया। मोहन का ज्वर उतर गया। होश आने पर उसने आँख खोली तो सर्वप्रथम शब्द उसकी जबान से निकला, 'माँ।'

चहुं ओर अपरिचित शक्लें देखकर उसने अपने नेत्र फिर बन्द कर लिये। उस समय से उसका ज्वर फिर अधिक होना आरम्भ हो गया। माँ-माँ की रट लगी हुई थी, डॉक्टरों ने जवाब दे दिया, सेठजी के हाथ-पाँव फूल गये, चहुं ओर अंधेरा दिखाई पड़ने लगा।

क्या करूँ, एक ही बच्चा है, इतने दिनों बाद मिला भी तो मृत्यु उसको अपने चंगुल में दबा रही है, इसे कैसे बचाऊँ?

सहसा उनको अन्धी का ध्यान आया। पत्नी को बाहर भेजा कि देखो कहीं वह अब तक द्वार पर न बैठी हो। परन्तु वह वहाँ कहाँ? सेठजी ने फिटन तैयार कराई और बस्ती से बाहर उसकी झोंपड़ी पर पहुँचे। झोंपड़ी बिना द्वार के थी, अन्दर गए। देखा अन्धी एक फटे-पुराने टाट पर पड़ी है और उसके नेत्रों से अश्रु धार बह रही है। सेठजी ने धीरे से उसको हिलाया। उसका शरीर भी अग्नि की भांति तप रहा था।

सेठजी ने कहा- 'बुढ़िया! तेरा बच्च मर रहा है, डॉक्टर निराश हो गए, रह-रहकर वह तुझे पुकारता है। अब तू ही उसके प्राण बचा सकती है। चल और मेरे...नहीं-नहीं अपने बच्चे की जान बचा ले।'

अन्धी ने उत्तर दिया- 'मरता है तो मरने दो, मैं भी मर रही हूं। हम दोनों स्वर्ग-लोक में फिर माँ-बेटे की तरह मिल जाएंगे। इस लोक में सुख नहीं है, वहाँ मेरा बच्चा सुख में रहेगा। मैं वहां उसकी सुचारू रूप से सेवा-सुश्रूषा करूंगी।

सेठजी रो दिए। आज तक उन्होंने किसी के सामने सिर न झुकाया था। किन्तु इस समय अन्धी के पांवों पर गिर पड़े और रो-रोकर कहा- 'ममता की लाज रख लो, आखिर तुम भी उसकी माँ हो। चलो, तुम्हारे जाने से वह बच जायेगा।'

ममता शब्द ने अन्धी को विकल कर दिया। उसने तुरन्त कहा- 'अच्छा चलो।'

सेठजी सहारा देकर उसे बाहर लाये और फिटन पर बिठा दिया। फिटन घर की ओर दौड़ने लगी। उस समय सेठजी और अन्धी भिखारिन दोनों की एक ही दशा थी। दोनों की यही इच्छा थी कि शीघ्र-से-शीघ्र अपने बच्चे के पास पहुंच जायें।

कोठी आ गई, सेठजी ने सहारा देकर अन्धी को उतारा और अन्दर ले गए। भीतर जाकर अन्धी ने मोहन के माथे पर हाथ फेरा। मोहन पहचान गया कि यह उसकी माँ का हाथ है। उसने तुरन्त नेत्र खोल दिये और उसे अपने समीप खड़े हुए देखकर कहा- 'माँ, तुम आ गईं।'

अन्धी ने स्नेह से भरे स्वर में उत्तर दिया -"हाँ बेटा, तुम्हें छोड़ कर कहाँ जा सकती हूँ।

अन्धी भिखारिन मोहन के सिरहाने बैठ गई और उसने मोहन का सिर अपने गोद में रख लिया। उसको बहुत सुख अनुभव हुआ और वह उसकी गोद में तुरन्त सो गया।

दूसरे दिन से मोहन की दशा अच्छी होने लगी और दस-पन्द्रह दिन में वह बिल्कुल स्वस्थ हो गया। जो काम हकीमों के जोशान्दे, वैद्यों की पुड़िया और डॉक्टरों के मिक्सचर न कर सके वह अन्धी की स्नेहमयी सेवा ने पूरा कर दिया।

मोहन के पूरी तरह स्वस्थ हो जाने पर अन्धी ने विदा माँगी। सेठजी ने बहुत-कुछ कहा-सुना कि वह उन्हीं के पास रह जाए परन्तु वह सहमत न हुई, विवश होकर विदा करना पड़ा। जब वह चलने लगी तो सेठजी ने रुपयों की एक थैली उसके हाथ में दे दी। अन्धी ने मालूम किया, "इसमें क्या है?"

सेठजी ने कहा-"इसमें तुम्हारे धरोहर है, तुम्हारे रुपये। मेरा वह अपराध.......!"

अन्धी ने बात काट कर कहा-"यह रुपये तो मैंने तुम्हारे मोहन के लिए संग्रह किये थे, उसी को दे देना।"

अन्धी ने थैली वहीं छोड़ दी। और लाठी टेकती हुई चल दी। बाहर निकलकर फिर उसने उस घर की ओर नेत्र उठाये उसके नेत्रों से अश्रु बह रहे थे किन्तु वह एक भिखारिन होते हुए भी सेठ से महान थी। इस समय सेठ याचक था और वह दाता थी।

साभार- (चाँद सितारे) - रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियां, सहगल प्रकाशन, दिल्ली

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इतिहास के पन्नो में 23 अक्टूबर यानि आज के दिन काफी महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज हुई है… आज के ही दिन तुलसीदास का निधन हुआ था.आइये जानते है 23 अक्टूबर के दिन की प्रमुख घटनाएं : 1623 - रामचरितमानस के रचयता एवं प्रसिद्ध कवि तुलसीदास का निधन।1764 - बक्सर की लड़ाई में आज ही के द

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हिंदी साहित्य के सूर्य महात्मा सूरदास के प्रमुख 11 दोहे - Surdas ke dohe

24 अक्टूबर 2018
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सूरदास के दोहे और उसका हिंदी अर्थ | Surdas ke dohe Hindi meinकृष्ण भक्ति के कवियों में सर्वोपरि सूरदास के दोहे में भगवान श्री कृष्ण की महिमाओं का सुन्दर वर्णन देखने को मिलता है. Surdas ke dohe कृष्ण के प्रति उनकी अनन्य आस्था को दिखाते है. सूरदास की प्रमुख रचनाएं ब्रज

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एमआईटी के निदेशक माइकल डर्टौज़ोस को गूगल ने डूडल बनाकर उनके 82 वें जन्मदिन पर याद किया - Michael Leonidas Dertouzos in Hindi

4 नवम्बर 2018
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Michael Leonidas Dertouzos मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में ग्रीक प्रोफेसर थे | आज Google डूडल के माध्यम से माइकल डर्टौज़ोस की 82 वीं जयंती मना रहा है।माइकल लियोनिडास डर्टौज़ोस एमआईटी (Massachusetts Institute of Technology) के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस विभाग में ग्रीक प्रोफ

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हिंदी कविता | Best Hindi Poems | Hindi Poetry | Poems In Hindi | Hindi Kavitayein | हिंदी काव्य | Poets

23 नवम्बर 2018
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हिंदी की सर्वश्रेष्ठ कवितायेँ एवं गीत. Best Hindi Poems के इस संग्रह में हम लेकर आये है हिंदी कवितायेँ , हिंदी काव्य, हिंदी गीत, ग़ज़ल ।कविता एक ऐसी प्रयोजनीय वस्तु है जो संसार के सभ्य और असभ्य सभी जातियों में पाई जाती है. जब इतिहास न था, न विज्ञान था और न ही दर्शन तब भी कुछ थी तो वो थी कवितायेँ | कवि

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Whatasapp के मज़ेदार जोक्स हिंदी में | Download 15+ funny whatsapp images in Hindi

26 नवम्बर 2018
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दोस्तों, आज हम आपके लिए लेकर आये है 15+ funny whatsapp images in Hindi जिसे download कर आप अपने फ्रेंड और फैमिली के साथ शेयर कर उन्हें गुद-गुदा सकते है |यह best funny whatsapp images आप अपने स्टेटस में भी लगा सकते है |Best whatsapp funny images in hindiWhatsapp Status FunnyFunny Images for Whatsap

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अतहर आमिर से शादी करने वाली आईएएस टॉपर टीना डाबी ने इंस्टाग्राम पर बदला अपना नाम |

11 दिसम्बर 2018
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2016 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) परीक्षा की टॉपर रहीं टीना डाबी और दूसरे स्थान पर रहे अतहर आमिर का इश्क शादी के पवित्र बंधन में बंधने के बाद से ही दोनों मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर की हसीन वादियों में दोनों की प्रेम कहानी शादी के बंधन में तब्दील हो गई। टीना और

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रविंद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कहानियां - भिखारिन (Bhikharin story in hindi by Rabindranath Tagore) अन्धी प्रतिदिन मन्दिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती,

21 दिसम्बर 2018
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रविंद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कहानियां - भिखारिन (Bhikharin story in hindi by Rabindranath Tagore)अन्धी प्रतिदिन मन्दिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती, दर्शन करने वाले बाहर निकलते तो वह अपना हाथ फैला देती और नम्रता से कहती- "बाबूजी, अन्धी पर दया हो जाए।"वह जानती थी कि मन्दिर में आने वाले सहृदय और श्रद्ध

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मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूं - डॉ. धर्मवीर भारती | Hindi Poem | Dharmvir Bharti

28 दिसम्बर 2018
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श्री धर्मवीर भारति हिंदी साहित्य के प्रयोगवादी कवि थे | डॉ. भारति हिंदी की साप्ताहिक पत्रिका 'धर्मयुग' के प्रधान संपादक थे। भारत सरकार द्वारा 1972 में डॉ. धर्मवीर भारती को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। रथ का टूटा हुआ पहिया हूं धर्मवीर भारति की सर्वश्रेस्ट और लोकप्रिय कविताओं में से एक है | महाभारत

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