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जीवन का अनमोल "अवॉर्ड "

8 जनवरी 2019

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" नववर्ष मंगलमय हो "

" हमारा देश और समज नशामुक्त हो "


नशा जो सुरसा बन हमारी युवा पीढ़ी को निगले जा रहा है ,

अपने आस पास नजरे घुमाये देखे ,आये दिन कई घर और ज़िंदगियाँ

इस नशे रुपी सुरसा के मुख में समाती जा रही है। मेरे जीवन से जुड़ा मेरा ये

संस्मरण नशामुक्ति के खिलाफ एक आवाज़ है........


सुबह सुबह अभी उठ के चाय ही पी रही थी कि फोन की घंटी बजी मैंने फोन उठाये तो दूसरी तरफ से चहकते हुये शालू की आवाज़ आई हैलो माँ --" Merry Christmas " मैंने कहा -" Merry Christmas you too" बेटा , मैं अभी अभी सो कर उठी हूँ और उठते ही मने सोचा सबसे पहले अपने सेंटा को Wish करू--वो चहकते हुये बोली। मैंने कहा --बेटा, मैं तो आप से इतनी दूर हूँ और पिछले साल से मैंने आप को कोई गिफ्ट भी नहीं दिया,फिर मैं आप की सेंटा कैसे हुई। उसने बड़े प्यारी आवाज़ में कहा -" आप जो हमे गिफ्ट दे चुकी है उससे बड़ा गिफ्ट ना किसी ने दिया है और ना दे सकता है, उससे बड़ा गिफ्ट तो कोई हो ही नहीं सकता " मैं थोड़ी सोचती हई बोली --ऐसा कौन सा बड़ा गिफ्ट मैंने दे दिया आप को बच्चे, जो मुझे याद भी नही। रुथे हुए गले से वो बोली -" पापा " आपने हमे हमारे पापा को वापस हमे दिया है माँ। ये सुन मैं निशब्द हो गई।


मुझे ऐसा लगा जैसे इस जीवन का सबसे बड़ा अवॉर्ड दे दिया हो मेरी बेटी ने मुझे। ईश्वर ने मुझे जो ये मनुज तन दिया है उससे मैंने कुछ तो ऐसा काम किया जो मेरी बेटी ने मुझे इतना बड़ा सम्मान दिया। सार्थक हो गया मेरा जीवन। मुझे वो सारी परेशानियां ,सारी कठिनाइयाँ ,लोगो की गालियाँ सब याद आने लगी लेकिन वे मुझे तकलीफ नहीं दे रही थी बल्कि एक सुखद एहसास करा रही थी। मैं ईश्वर को धन्यवाद देने लगी -हे प्रभु अगर आप ने मुझे उस वक़्त वो शक्ति ना दी होती तो शायद मैं उस वक़्त एक दृढ निश्चय के साथ एक कठोर फैसला नहीं ले पाई होती और आज मेरी शालू उस उपहार से वंचित रह जाती जो उसके जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी है।


सच ,उस दिन पता नहीं मुझमे कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई थी जो मैंने सारे परिवार के सामने कह दिया -" गुड्डी वापस अपने घर नहीं जायेगी वो यही रहेगी हमारे साथ दिल्ली में " सुन के सब स्तब्ध रह गये ,माँ पापा घबड़ा गये और भैया गुस्से में उठ कर चले गए। मैंने अपनी बात पुरी की - उसे वहां उस नर्क में भेजने से अच्छा है हम तीनो बच्चे समेत गुड्डी को मार डाले ,अपनी बहन का यु रोज रोज घुट घुट कर मरना मुझसे नहीं देखा जाता। " पापा ने कहा - लेकिन ये कोई समाधान नहीं है बेटा ,कोई और रास्ता होगा। कोई रास्ता नहीं है पापा,उस नशेड़ी आदमी को जब तक उस के वातावरण से बाहर नहीं निकला जायेगा और सही तरीके से इलाज नहीं करवाया जायेगा वो ठीक नहीं होंगे, रातो- दिन वो नशे में डूबे रहते है ,सड़को पर यहां -वहां गिरे पड़े मिलते है ,घर आ के कितने तमाशे करते है ,पापा आप एक बार इन बच्चो के डरे सहमे चेहरे तो देखे ,जब वो चीखते चिल्लाते है तो बच्चे कैसे सहमे से डुबुक जाते है ,पापा समझने की कोशिश कीजिये वो नेपाल का बॉडर इलाका है जहां ७-८ साल के बच्चे भी नशा करते है वहां अपने रॉनी का भविष्य क्या होगा ,ये दोनों लड़किया जो अभी मात्र सात साल और दस साल की है उनके जेहन पर कैसा असर होगा जब वो देखेगी कि रोज रात को उसके पापा इधर - उधर नाले में पड़े होते है और उनकी माँ उन्हें उठा कर लाती है तो कैसी मानसिकता बनेगी उनकी ,मैं एक सांस में अपनी बात बोले जा रही थी। आप देखे तो पापा शालू अभी से कितनी डरी सहमी रहती है ,पापा इन बच्चो का भविष्य खराब होते और अपनी बहन को यु तिल - तिल कर मरते मैं नहीं देख सकती ,उसके ससुराल वाले हाथ पर हाथ धरे तमाशबीन बने है ,ऐसे हालत में हमे तो कुछ न कुछ तो करना होगा न पापा - ये कहते कहते मैं रो पड़ी।


पापा थोड़े फिक्रमंद हुए और बोले -बेटा दामाद जी को कैसे रोकेंगे वो तो यहां किसी कीमत पर रूकने को राज़ी नहीं होंगे। मैंने कहा - मेरे पास एक उपाय है, हम किसी बहाने से गुड्डी को यहां रोक लेते है और उन्हें जाने देते है,थोड़े थोड़े दिन करके गुड्डी को एक महीने रोकेंगे फिर उन से कह देंगे की गुड्डी अब वहां नहीं जाएगी आप को ही यहां आना होगा ,पापा मैं जानती हूँ वो मना करेंगे ,वो और उन के घरवाले गुस्सा भी होंगे लेकिन मुझे पका यकीन है वो एक न एक दिन यहां जरूर आएंगे क्योकि मैं उनकी सबसे बड़ी कमजोरी जानती हूँ वो गुड्डी को बहुत प्यार करते उससे दूर वो नहीं रह पाएंगे, हमे उनके इसी कमजोरी का फायदा उठा कर उन्हें उस नर्क से वापस ले कर आना है। पापा बहुत डरे हुए थे बोले -बेटा कही दमाद जी और उनके घर वाले गुड्डी को हमेशा के लिए छोड़ दिए उसे तलाक दे दिये तो मेरी बच्ची का क्या होगा। मैंने पापा को समझाया -पापा पहली बात तो ये कि वो लोग ऐसा कुछ नहीं करेंगे और अगर तलाक दे भी देते है तो क्या हमारी बहन इस काबिल है कि वो अपने बच्चो को पाल सकती है। एक ऐसा इंसान जिसे अपने परिवार से ज्यादा नशा प्यारा है और उसका परिवार जो तमाशबीन बना एक औरत और तीन बच्चो को तिल तिल कर मरते हुए देख रहा है ,वैसे पति और वैसे ससुराल से अच्छा है वो अकेली जिये। मैंने अपनी बातो पर जोर देते हुए कहा -पापा आप मुझ पर यकीन करे,भरोसा रखे मैं अपनी बहन का घर तोड़ नहीं रही बल्कि उसके टूटे हुए घर को बसाने की बात कर रही हूँ ,मेरे पास पुख्ता प्लान है बस आप मेरा साथ दे।


मेरे समझने पर पापा माँ मान गए। मैंने गुड्डी को समझाया कि -मेरी बहन एक बात याद रखना, एक बार जो हम कदम उठा लगे तो पीछे मूड कर नहीं देखना है फिर चाहे जीत हो या हार वापस नहीं लौटेगे ये कसम खाओ ,मैं तुम्हारा घर बसाऊंगी यकीन रखना बहन मुझ पे। मेरी बहन ने मुझ पर भरोसा किया और मैंने भगवान पर और हम चल पड़े एक इंसान को नशामुक्त करा उसके पत्नी और बच्चो के पास वापस लेके आने के अभियान पर।


मेरे पति ने और छोटे भाई ने भरपूर साथ दिया। मैं अपनी बहन और बच्चो को अपने घर ले के आ गई। पापा ने कहा था कि मैं उन्हें मायके में ही रहने दूँ, पर मैंने पापा को समझाया कि-ये संघर्ष बहुत बड़ा है पता नहीं कितने दिन लगे,मैं अपनी बहन और बच्चो को भाभियों पर बोझ नहीं बनने दूंगी ,आप सारा खर्च उठालेगे फिर भी अगर भाभियो ने बच्चो को किसी चीज़ के लिए रोका टोका तो गुड्डी क्या मैं नहीं सह पाऊँगी,ये बच्चे मेरे भी है माँ कहते है मुझे उनका किसी चीज़ के लिए तरसना मैं नहीं सह पाऊँगी। मैं कोई धना सेठ नहीं लेकिन फिर भी मेरे पास जो कुछ होगा हम प्यार से मिल बाँट के खा लगे। फिर जैसा हमने सोचा था वही हुआ जैसे ही हमने दमाद जी से कहा -गुड्डी नहीं जाएगी आपको दिल्ली आना होगा ,उसी पल युद्ध का शखनाद हो गया,सारे प्रतिक्रिया वैसे ही हुये जैसे हमने सोच रखा था।


पहले तो उसके ससुराल वालो ने पापा को उल्टा सीधा सुनाया फिर तलाक की धमकी भी देने लगे। मैंने पापा को समझाया था कि आप उन लोगो से कोई बहस नहीं करेंगे बस इतना ही कहेगे कि -आप सब को जो उचित लगे करे लेकिन मेरी बेटी वापस नहीं जाएगी,आप अपने भाई को यह भेजे हम उनका इलाज करवाएंगे ,उनका उस माहौल से निकलना जरुरी है,वहां रहते हुए वो कभी नशामुक्त नहीं हो पायेगे ,पापा ने वैसा ही किया। मेरे बहनोई और उनके घरवालों को समझ आ गया था कि ये सब किया-धरा मेरा है और मेरी बहन मेरे घर में है। वो जब भी बहन को फोन करते तो मुझे गन्दी गंदी गालिया देते ,यह तक कि शालू जो मेरी बहन की बड़ी बेटी है और मात्र १० साल की थी उसे भी फोन कर मेरे लिए गन्दी गालिया और बदुआएँ देते। फ़ोन रख शालू मुझे पकड़कर रोने लगती और बोलती - माँ वो लोग और पापा आप को बहुत कोसते है ,गालिया देते है मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। तो मैं उसे समझती कि -कोई बात नहीं बच्चे ,उनकी गालिया मेरे लिए फूल बन जाएगी जिस दिन आप के पापा अच्छे हो जायेगे।


बहन को मेरे पास रहते हुए जब ३-४ महीने हो गए और उधर बहनोई ने पी पी कर अपना बुरा हाल कर लिया। मैंने बहन को समझाया था कि - जब भी नशे के हालत में वो फोन करे तुम एक ही बात बोलना " आजाये मेरे पास "आख़िरकार मेरे बहनोई टूटने लगे और एक दिन उन्होंने मुझे गन्दी गाली देते हुए बोले कि -" मैं आऊँगा लेकिन उसके घर में नहीं आऊँगा " मैं बस इसी पल के इंतज़ार में थी मैंने १० दिन के अंदर ही बहन को एक अलग घर लेके अपने घर से सारे सामन की व्यवस्था कर उसे बसा दिया ,साथ के साथ २५००० के एक छोटी सी रकम से उसके लिये एक छोटी सी स्टेशनरी की दुकान भी कर दी। जैसे ही मेरी बहन ने उन्हें बताया की अब वो अलग घर में है तो मेरे बहनोई अपने घर वालो की मर्ज़ी के खिलाफ अपने बच्चो के पास आ गए। लेकिन समस्या ये थी कि यहाँ आनेके बाद भी वो दिन रात नशे में धुत ही रहते थे। हमने लाख समझाया लेकिन कोई असर ना होता। तब हमने उन्हें नशामुक्ति केंद्र में भेजवा दिया जहां वो एक साल रहे,फिर उनकी कांसलिग हुई तब जाकर धीरे धीरे उनका नशा छूटा


इन सारे घटनाक्रम में ३-४ साल लग गए क्योकि मेरे बहनोई दिल्ली आते तो जरूर मगर १ - २ महीने से ज्यादा नहीं रुकते थे। बच्चो की याद आती तो आजाते और फिर जब घर वालो का दबाव होता तो वापस चले जाते। तब तक बहन के घर का सारा खर्च बच्चो की पढाई- लिखाई का खर्च मैं और पापा उठाते। जब हमने बहनोई को नशामुक्ति केंद्र में डाला तो उनके घरवालों को थोड़ा बहुत समझ आने लगा कि हमलोग उनका घर नहीं तोड़ रहे है बल्कि उनके भाई की जान बचा रहे है ,वो ये समझे की उनके भाई को उस माहौल से दूर करना कितना जरुरी था फिर वो लोग नॉर्मल हो गए और आर्धिक रूप से मदद भी करने लगे। आज मेरे बहनोई पूर्णतः स्वस्थ हो चुके है। वो इस व्यसन के शिकार शुरू से नहीं थे शादी के १० साल बाद गलत संगत की वजह से उन्हें नशे की लत लग गई थी। पैसे की कमी तो उनके पास थी नहीं बस कर्म ही खोटे थे सो मेरे समझने पर बच्चो के भविष्य के लिए वो अपना घर बना दिल्ली में ही बस गए। २५००० की छोटी रकम से खोली गई दुकान आज बड़ी हो गई है।


मेरे बहनोई मुझे अपनी बड़ी बहन मानते थे और है भी लेकिन नशे का गुलाम व्यक्ति जब खुद का नहीं होता तो मेरा क्या होता इसीलिए वो जब बुरे हालमें थे तो मुझे अपना दुश्मन समझ भला बुरा कहते थे ये बात मैं अच्छे से समझती थी इसलिए उस वक़्त के उनके किसी भी बातो को मैंने महत्व नहीं दिया था। आज मेरे वही बहनोई मेरे एक आवाज़ पर आधी रात को भी आ जायेगे। शालू जिसका बालमन एक एक घटनाक्रम का साक्षी था और जो इन सारी बातो को दिल से लगाई हुई थी और कहती थी कि -" माँ ना होती तो हमारा क्या होता "(वो सारे बच्चे मुझे माँ ही कहते है ) और आज क्रिसमस के दिन वो मुझे " सेंटा " कह अपनी कृत्यज्ञता जताई है। जब मैं इन सारे जंग से गुजर रही थी तो मैंने ये सबकुछ अपना फ़र्ज़ समझ कर कर रही थी क्योकि मैं अपनी बहन और उसके बच्चो को यूँ घुट घुट कर मरते नहीं देख पा रही थी बस इसीलिए मैंने अपने जीवन के ५ साल उसके साथ संघर्ष मे गुजरे। मेरे अंदर ये डर भी था कि मैंने जैसा सोचा है ऐसा नहीं हुआ और गुड्डी को उनलोगो ने छोड़ दिया या बहनोई को कुछ हो गया तो क्या होगा,सारा इलज़ाम मेरे सर होगा सब मुझे ही दोषी कहेगे। लेकिन दिल में ये विश्वास था कि मैं इन बच्चो को खुशियां देने निकली हूँ तो मेरा भगवन मेरे साथ है और मैं जरूर कामयाब रहूँगी।गुड्डी को बसा कर मैं खुश थी लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा बच्चा मेरे किये का इतना बड़ा अवार्ड देगा मुझे ,सेंटा कह कर सम्मानित करेगा। आज मैंअपने आप को सौभाग्यशाली मानती हूँ कि-" मैं शालू की माँ हूँ "


मैं यहां अपनी और अपनी बहन की जीवनगाथा नहीं सुना रही बल्कि इस आपबीती के माध्यम से ये बताना चाहती हूँ कि -आज कई औरतो का घर इस नशे की आग में झुलस रहा है और उसका साथ उसके ही परिवार वाले नहीं देते बल्कि दोष भी उस औरत को ही दिया जाता है कि -" तुम्ही में कोई कमी होगी जो वो इस नशे की राह पर चल निकला है "मेरी बहन के साथ भी ऐसा ही होता था। ( हां मैं मानती हूँ कि कभी कभी औरत भी कसूरवार होती है ) परिवार के सदस्य बस एक दूसरे पर इलज़ाम लगते हुए तमाशबीन बने रहते है और एक इंसान मौत के मुह में चला जाता है और एक परिवार बर्बाद। ऐसे वक़्त में परिवार के हर सदस्य को मिल कर इस समस्या का समाधान ढूढ़ना चाहिए और भटके हुये राही को राह पर ले आना चाहिए। .इसके लिए साम -दाम -दंड -भेद सारी तरकीबे लगा उसे नशामुक्त करवा एक परिवार को जीते जी मरने से बचाना चाहिए।इन दिनों मेरी एक दोस्त का भाई जो मात्र ३५ साल का है ,शराब पी - पीकर उसका लिवर ख़त्म हो चूका है औरआज वो ज़िंदगी और मौत से जूझ रहा है, तीन छोटे छोटे बच्चे है ,क्या करेगी वो औरत ,कैसे पालेगी बच्चो को,तरस आता है ऐसे आदमियों पर।ऐसा एक घर का किस्सा नहीं है आज कल तो ये व्यसन मुँह फाड़े खड़ा है।


मैं अक्सर सोचती हूँ कि -नशे में ऐसी क्या बात है जो लोग इसके मोहपाश में गिरफ्त होकर इसके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते है ,घर -परिवार ,सुख -चैन ,वर्तमान -भविष्य यहां तक कि अपने स्वस्थ और प्राणो तक की बाज़ी लगा देते है। कोई क्यों हो जाता है यकायक नशे का दीवाना , गुलाम ,कठपुतली बन रह जाता है वो नशे का। क्यों हो जाता है वो पराधीन ,विवश और सम्मोहित। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है आंतरिक ,मनोवैज्ञानिक या भौतिक। क्या वो यथार्थ से कन्नी काटने के लिए पीता है या यथार्थ से भागने के लिए ,पलायन के लिए या आत्मविश्वाश जगाने के लिए। वास्तव में अलग अलग लोग अलग अलग कारणों से पीते है जबकि समान्य कारणों से इसके गुलामो जाते है।


जब हम सोचते हैकि -लोग पीते क्यों है ? तो समान्यतः इन बातो पर ध्यान जाता है कुछ लोग तो बेकारी में पीते है तो कुछ काम की अधिकता के कारण पीते है ,कुछ लोग सोहबत में पीते तो कुछ अपनी ऊब मिटने के लिए ,कभी गम बहाना बनता है पीने का तो कभी ख़ुशी ,कोई बंधन के आकर्षण में पीता है तो कोई बंधनमुक्त होने के लिए ,कोई गरीबी से परेशान होकर पीता है तो किसी के लिए सुख सम्पनता के अधिकता पीने का कारण बनती है। पीने का कारण कुछ भी हो पर अंजाम एक सा होता है " बर्बादी और सिर्फ बर्बादी " ये सब जानते है ,सब समझते है फिर भी जो एक बार इस मदिर को अपना लिया तो उससे छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है।


लोग कहते है कि नशा महबूबा है साथ लेके जाती है लेकिन मैं मानती हूँ कि -वो महबूबा नहीं बल्कि एक बेश्या और रखैल है। क्योकि कोई महबूबा अपने महबूब को और उसके घरौदे को सलामत देखना चाहती है,उसका बुरा नहीं चाहती वो तो एक रखैल या बेश्या का काम है जो पहले अपना गुलाम बनती है फिर बर्बाद कर देती है। तो ऐसी परिस्थिति में अगर सारा परिवार एक होकर इस नशे रुपी राक्षसनी के खिलाफ खड़े हो जाये तो वो हार मानेगी ही जरूर। ये मुहीम सिर्फ एक वयक्ति बिशेष के लिए नहीं बल्कि पुरे समाज के लिए जरुरी है। वैसे कई जगहो पर औरतो ने इस नशे खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है परन्तु इसमें परिवार का सहयोग मिलना बहुत जरुरी है। तभी हमे पूर्णतः सफलता मिलेगी। जैसे हमारे परिवार ने हमारी शालू को उसके पापा के रूप मैं उसकी खुशियां लौटाई।


" मेरी बेटी शालू को समर्पित "

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उम्र के तीसरे पड़ाव में हूँ मैं .बचपन और जवानी के सारे खुबसुरत लम्हो को गुजर कर प्रौढ़ता के सीढ़ी पर कदम रख चुकी हूँ .तीन पीढ़ियों को देख लिया है या यूँ कहे की उनके साथ जी लिया है. बदलाव तो प्रक्रति का नियम है इसलिए घर परिवार, संस्कार और समाज में भी निरंतर बदलाव होत

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"बहुत खूबसूरत होती है ये यादों की दुनियाँ , हमारे बीते हुये कल के छोटे छोटे टुकड़े हमारी यादों में हमेशा महफूज रहते हैं,

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हे! मानस के दीप कलशतुम आज धरा पर फिर आओ।नवयुग की रामायण रचकर मानवता के प्राण बचाओं ।आज कहाँ वो राम जगत में जिसने तप को गले लगाया ।राजसुख से वंचित रह जिसने मात - पिता का वचन निभाया । सुख कहाँ है वो राम राज्य का ?वह सपना तो अब टूट गया ।कहाँ

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सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ"

30 अगस्त 2021
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<p>कहते हैं, सब मुझको "सैनिक"</p> <p>पर, सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ" </p> <p>मैं सपूत इस

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दे दो ऐसा वरदान...

31 अगस्त 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

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10 फरवरी 2022
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बसंत अर्थात "फुलों का गुच्छा", बसंत, अर्थात  "शिव के पांचवें मुख से निकला एक राग" बसंत जिसके "अधिष्ठाता देवता ही कामदेव" हो, ऐसे ऋतु के क्या कहने।"बसंत" इस शब्द के स्मरण मात्र से ही दिलों में  फुल

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