!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *नारी को सृष्टि का मूल स्रोत मानते हुए सनातन
धर्म के आदि ग्रंथ वेदों में नारी का महिमामंडन किया गया है | हमारे वेदों में नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण गरिमामय एवं उच्च स्थान प्रदान किया गया है | स्त्रियों की शिक्षा- दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य किसी धर्मग्रंथ में नहीं है | वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और
देश की शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं | वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय| वेदों में नारी को
ज्ञान देने वाली, सुख – समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं वैदिककाल में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं था – उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है | वैदिक काल में नारी अध्ययन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी | जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी | कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं | अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं – अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि | वैदिककाल में सम्मान की पात्र बनी रहने वाली नारियां मध्यकाल में विदेशी आक्रांताओं के कारण दयनीय स्थिति में हो गयी | और लोग इसका दोष वैदिक परम्परा को देने लगे | जिन्होनें वेदों के दर्शन भी नहीं किए, ऐसे कुछ रीढ़ की हड्डी विहीन बुद्धिवादियों ने इस देश की सभ्यता, संस्कृति को नष्ट – भ्रष्ट करने का जो अभियान चला रखा है – उसके तहत वेदों में नारी की अवमानना का ढ़ोल पीटते रहते हैं |* *आज समाज की यह स्थिति हो गई है कि नारियों का संरक्षण करने के लिए हमें तरह-तरह के अभियान चलाने पड़ रहे हैं | कहीं "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" तो कहीं "राष्ट्रीय बालिका दिवस" के रूप में मना करके जैसे हम यह याद करने का प्रयास करते हैं कि यही बेटियां आगे चलकर के
भारत का भविष्य बनने वाली हैं | आज "राष्ट्रीय बालिका दिवस" के अवसर पर मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" समाज के सभी प्रतिनिधियों के साथ साथ आम जनमानस से भी यही कहना चाहूंगा कि नारी के बिना सृष्टि की कल्पना करना भी महज मूर्खता है | अतः अपने आसपास होने वाले नारी उत्पीड़न ( दहेज उत्पीड़न एवं भ्रूण हत्या ) जैसे पापाचार को रोकने के लिए हमें स्वयं के साथ-साथ समाज को जागरूक करना पड़ेगा , क्योंकि सृष्टि को प्रगतिशील रखने के लिए पुरुष के साथ नारी की भी आवश्यकता पड़ती है | जब नारी का प्रारंभिक जीवन जिसे बेटी कहा जाता है वही खतरे में पड़ जाएगा तो यह संकल्पना कैसे की जा सकती है | जिस दिन "बेटी संरक्षण" की संकल्पना प्रत्येक व्यक्ति कर लेगा उस दिन ना तो "राष्ट्रीय बालिका दिवस" की आवश्यकता पड़ेगी ना तो "बेटी बचाओ" का उद्घोष करना पड़ेगा | एक दिन किसी पर्व को मना लेने मात्र से उस पर्व की उपयोगिता नहीं सिद्ध की जा सकती है , जब तक उस पर्व के उद्देश्य को अपने जीवन में ढाला नहीं जाएगा | जहाँ बेटे सिर्फ एक कुल का मान रखते हैं वही बेटियां दो कुलों का मान-सम्मान एवं अभिमान बन कर के समाज में जीवन यापन करती हैं | अतः बेटियों का संरक्षण और उन्हें कुरीतियों से बचाने के लिए आज प्रत्येक व्यक्ति को कृत संकल्प होना पडेगा |* *जिस दिन इस धरा धाम पर बेटियां नहीं रह जाएंगी उस दिन शायद यह सृष्टि भी नहीं रह जाएगी अतः अभी से सजग होने की आवश्यकता है |*