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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019

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दक्षिण भारत की भौगोलिक यात्रा

(10 अक्तूबर 1977 से 05 नवम्बर 1977)

विजय कुमार तिवारी

(प्रस्तुत लेख काशी नरेश स्नात्कोत्तर महाविद्यालय,ज्ञानपुर,वाराणसी के भूगोल विभाग द्वारा संचालित "भूगोल परिषद" की पत्रिका "बसुन्धरा" के कार्यक्रम में पुरस्कृत और पठित)

"भौगोलिक अध्ययन परिभ्रमण"भूगोलवेत्ताओं के लिए प्रयोगशाला है।

भूगोल की विभिन्न परिभाषाओं तथा विषय-क्षेत्र के निरूपणोपरान्त यही निष्कर्ष निकलता है कि यह क्षेत्रीय विज्ञानों में प्रमुख है तथा इसे "विज्ञानों की माता" की उपाधि दी गयी है।इस विज्ञान का अध्ययन मूलतः प्राकृतिक एवं मानवीय भूदृश्यों तथा विभिन्न परिवेशों में मानवीय क्रियाकलापों का विवेचन तथा विश्लेषण है।यद्यपि हम लेखों तथा मानचित्रों के आधार पर महादीपों,देशो और क्षेत्रों का अध्ययन सैद्धान्तिक रुप में कर लेते हैं, परन्तु वस्तुस्थिति का वास्तविक एवं स्थायी ज्ञान सम्बद्ध क्षेत्रों के अवलोकन या पर्यटन द्वारा ही सम्भव होता है।भूगोल का वर्तमान विकसित स्वरुप जो हमारे सामने है वह प्राचीन भूगोलवेत्ताओं,वैज्ञानिको,दार्शनिकों के परिभ्रमण का ही प्रतिफल है।

अतः भूगोल की अभिव्यक्ति का स्रोत,प्राचीन भौगोलिक परम्पराओं का प्रतीक,"भौगोलिक पर्यटक"उपाधि प्रदाता,परिभ्रमण की प्रतिक्रिया स्वरुप,भूगोल विभाग द्वारा विशाल भारत के दक्षिणवर्ती प्रदेशों के अवलोकन के लिए भ्रमण कार्यक्रम निर्धारित किया गया।साथ ही बताता चलूँ कि विगत वर्ष भी हमने हिमालय के अधिकांश क्षेत्रों एवं दिल्ली सहित उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों का परिभ्रमण किया था।तब मैं एम. प्रथम वर्ष का छात्र था और आज एम. फाइनल में हूँ।बी. में पढ़ते हुए मुझे एन,सी.सी की ओर से "सम्पूर्ण भारत ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण कैम्प श्रीनगर(जम्मू-कश्मीर)-1975" में भाग लेने का सुअवसर मिला था।बाद में मैने असम,मेघालय और नागालैण्ड की यात्रायें भी की।

आवश्यक कार्यवाही और वांछित तैयारी के पश्चात हम सभी सदस्य(10 छात्र)दलनायक प्रो.विजय शंकर शुक्ला(विभागाध्यक्ष) और उनकी धर्मपत्नी के साथ 15 अक्तूबर 1977 को रात्रि के लगभग 8 बजे ज्ञानपुर रोड रेलवे स्टेशन पहुँचे और लगभग पौने दस बजे "त्रिवेणी एक्सप्रेस"से यात्रा प्रारम्भ किये।वाराणसी से दूसरे दिन प्रातः 7 बजे "गंगा-कावेरी एक्सप्रेस" से हम दक्षिण- भारत की यात्रा पर चल पड़े तथा 17 अक्तूबर 1977 को रात के लगभग 10 बजे मद्रास-बीच स्टेशन पहुँचे।मार्ग में हमलोग वनस्पति,कृषि,आवास स्वरुप तथा पठारी धरातल आदि के प्रसंग में कुतूहल जिज्ञासा से अभिप्रेरित जानकारी प्राप्त करते रहे।इस रेलयात्रा के बीच मध्यप्रदेश,आन्ध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु राज्यों के भौगोलिक क्षेत्रों के अवलोकन का सुअवसर हमलोगो को प्राप्त हुआ।हमलोगो में से कोई भी दक्षिण भारत के इस क्षेत्रों में पहले कभी नहीं आया था,फलस्वरुप गहरी उत्सुकता से विभिन्न भौतिक एवं मानवीय दृश्यावली को तुलनात्मक दृष्टि से अधिग्रहण करते रहे।मद्रास प्रवास के दौरान हमलोगो ने गाँधी मण्डपम,सर्पवाटिका,अन्नादुराई मेमोरियल,मैरिना बीच,अजायबघर,मद्रास म्यूजियम,मद्रास विस्वविद्यालय और शहर के बाजारों को देखा।हमारा निवास सिन्धी-हिन्दू धर्मशाला में था।निरन्तर वर्षा में भिगते रहने के वावजूद हमलोग प्रकृति को चुनौती देते हुए अपने अवलोकन कार्य में सलग्न रहे।

20 अक्तूबर 1977 की रात्रि में "रामेश्वरम एक्सप्रेस" से हमलोग रामेश्वरम के लिए प्रस्थान किये तथा विजयादशमी के 21अक्तूबर 1977 को दिन में लगभग 1 बजे पहुँचे।विशाल दीर्घाओं से युक्त प्राचीन ऐतिहासिक मन्दिर ही उस द्वीप का एक मात्र आकर्षण है।कहा जाता है कि रामेश्वरम मन्दिर की गैलरी संसार के सभी मन्दिरों से बड़ी तथा लम्बी है।यह भारत का महान तीर्थ है जहाँ मन्त्रोच्चार गूँजता रहता है।राम झरोखा तथा हार्वर अन्य दर्शनीय स्थल हैं।समुद्र के बीच से गुजरती हुई ट्रेन की यात्रा रोमांचित कर रही थी। मन्दिर के निकट स्थित छोटे से बाजार में सामुद्रिक जीवो के अवशेषों से निर्मित अलंकरण सामग्री बहुतायत से मिलती थी।

22 अक्तूबर 1977 को अपरान्ह 1 बजे हमलोग कन्याकुमारी के लिए प्रस्थान किये तथा मार्ग में मदुरई स्थित प्रसिद्ध "मीनाक्षी देवी मन्दिर" देखे।दक्षिण भारत का यह एक प्रतिष्ठित विशाल मन्दिर है जो शिल्प तथा चित्रकारी के चित्ताकर्षक स्वरुप से श्रद्धालु भक्तो के साथ-साथ पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।कन्याकुमारी की यात्रा के दौरान हमलोग तमिलनाडु और केरल राज्यों की अनुपम छटाओं का अवलोकन कर सके।इस रेलयात्रा के क्रम में हमलोग पश्चिमी घाट के मध्य स्थित सुरंगो से 1 दर्जन से अधिक बार गुजरे।प्राकृतिक सुषमा से मण्डित केरल प्रदेश की सम्पन्न वानस्पतिक झाँकी मनोहारी और मुग्धकारिणी थी।पर्वतीय ढाल की भूमि का कृषि प्रसंग में कितना स्वस्थ्य उपयोग विभिन्न वागानी फसलों को प्राप्त करने के लिए केरल राज्य में किया जा रहा है,यह अन्य क्षेत्रों के लिए दृष्टान्त उपस्थित करता है।हमारी रेलयात्रा त्रिवेन्द्रम में समाप्त हुई।वहाँ से हम लोग बस द्वारा नागरकोईल होते हुए चल पड़े।सभी बहुत आनन्दित और उत्साहित थे।

यहाँ हिन्दी के सुबोध होने के कारण हमलोगो को भाषा सम्बन्धी कठिनाई का सामना करना पड़ा तथा अंग्रेजी से काम चलाना पड़ा।भारत के दक्षिणी छोर-विन्दु पर पहुँच कर, जहाँ बंगाल की खाड़ी,हिन्द महासागर और अरब सागर एक-दूसरे से मिलते हैं,हमलोग आह्लादित हो उठे।23 अक्तूबर 1977 की सन्ध्या में हमलोग उसी गौरव की अनुभूति कर रहे थे जिसकी शायद 11अक्तूबर 1492 की प्रातः वेला में क्रिस्टोफर कोलम्बस को नयी दुनिया की भूमि पर पैर रखते ही हुआ होगा।बादल-वर्षा के सुहाने मौसम में हमलोग सूर्योदय और सूर्यास्त नहीं देख पाये।24 अक्तूबर 1977 को स्टीमर से समुद्र स्थित उस पवित्र चट्टान पर गये जहाँ विवेकानन्द जी ने कभी अपनी साधना की थी और आज "विवेकानन्द स्मारक शिला" के रुप में भव्य विशाल मन्दिर स्थित है।पर्यटकों के आते-जाते दल को देखकर इस स्थान के आकर्षण का पता चलता है।

अपरान्ह पुनः बस से यात्रा करके हमलोग त्रिवेन्द्रम आये और रात्रि में लगभग 9 बजे अपनी गोवा की यात्रा पर निकल पड़े।केरल तट के समानान्तर रेलमार्ग से गुजरते हुए हमलोगो ने बीच के स्थानो की झाँकी देखी।साथ ही तटवर्ती क्षेत्र के अतिरिक्त आन्तरिक पृष्टभूमि से भी परिचय प्राप्त करते रहे।नीलगिरी पर्वत पर स्थित उटकमण्ड का नयनाभिराम रुप हमने देखा। रेल की संकरी लाईन के सर्पिल मार्ग से होकर हम उटी गये। वहाँ के विशाल भवन,झील,बगीचे पर्यटकों के लिए आकर्षण के विन्दु हैं।फिल्मों मे यहाँ की छटायुक्त दृश्यावलियों का भरपूर उपयोग होता है।आज भी जोधपुर नरेश का महल प्राचीन शान-शौकत के प्रतीक के रुप में स्थित है।

27 अक्तूबर 1977 को हमलोग बस द्वारा प्रात 9 बजे मैसूर के लिए प्रस्थान किये और लगभग 1 बजे पहुँच गये।मार्ग के दोनो ओर बागानी-खेती का बिकसित स्वरूप देखने को मिला।यहाँ के मुख्य उत्पाद हैं-चाय,कहवा,काली मिर्च,पिपर,सिनकोना,संदल आदि।मैसूर के राजमहल और स्वच्छ बाजार खूब अच्छे लगे।यहाँ पर शिल्प उद्योग का बहुत बिकास हुआ है।दशहरा के समय निकलने वाले प्राचीन काल के जुलूस के भित्तिचित्र,रंग-विरंगे झाड़-फानुसों से युक्त विशाल कक्ष,स्वर्ण निर्मित सिंहासन एवं हाथी का हौदा शाही राजमहल के दर्शनीय गौरव हैं। मैसूर से लगभग 12 मील दूर स्थित "वृंदावन गार्डेन"को देख पाने का सुअवसर,उसके मुख्य द्वार पर पहुँच जाने पर भी,भीषण वर्षा के कारण हमलोगो को नहीं मिला और बस मे बैठे-बैठे ही लौट आये।रात लगभग 10 बजे ट्रेन से हमलोग बंगलोर के लिए निकले और 28 अक्तूबर 1977 को प्रातः लगभग 5 बजे पहुँचे।

बंगलोर जैसा हरा-भरा और स्वच्छ शहर हमारी सम्पूर्ण यात्रा में अन्यत्र कहीं नहीं मिला।बंगलोर के लिए "उपवनों का शहर" समीचीन संज्ञा है।उस दिन हमलोग घूमते रहे।लाल बाग,कम्बन-पार्क,विश्वेश्वरैया म्यूजियम,विधान-सभा भवन,उच्च न्यायालय तथा बड़े-बड़े बाजार हमलोगो ने देखा।उसी रात हमारी ट्रेन वास्कोडिगामा के लिए थी।इस दौरान एक बार फिर हमें पश्चिमी घाट की पर्वत-श्रेणियों की सुरंगों से गुजरना पड़ा और हम समुद्र के तटवर्ती क्षेत्र गोवा पहुँचे।

मछलियों और मैंगनीज का यह गोवा क्षेत्र पुर्तगालियों के शासन काल में मुक्त व्यापार का केन्द्र रहा है। इसे "सैलानियों के आरामगाह" की भी संज्ञा दी जाती है।गोवा प्रवास के दौरान हमलोग "जुआरी-खाड़ी" में स्टीमर से यात्रा करके गोवा की राजधानी पणजी देखने गये।वहाँ कालगौत का प्रसिद्ध समुद्र तटीय क्षेत्र है जहाँ भारतीय तथा विदेशी पर्यटक नौकारोहण और स्नान का आनन्द लेते हुए दिखे।तट पर समुद्री-लहरों का टकराना बहुत लुभावना और रोमांचित करता था।हमने पुराना गोवा भी देखा जहाँ समाधि में सन्त फ्रांसिस का लगभग 450 वर्षो से अधिक का शव आज भी चाँदी के सन्दूक में रखा है।

वास्कोडिगामा से 30 अक्तूबर1977 की रात्रि में चलकर 31 अक्तूबर 1977 को बम्बई में दादर पहुँचे।रानी बाग,गेटवे आफ इण्डिय़ा,हैंगिग गार्डेन,महालक्ष्मी मन्दिर, नेहरु प्लेनेटोरियम और बाजार देख पाये।हालीडे होटल में अभिनेता मनोज कुमार की फिल्म "सन्तोष" की सूटिंग चल रही थी,जिसे देखने का अवसर मिला।टीम-लीडर होने के नाते अभिनेता मनोज कुमार से हाथ भी मिलाया और चंद बातें हुई।हेमा मालिनी को दूर से अपनी गाड़ी मे बैठते हुए देखा। यह सुअवसर एक जुनियर कलाकार गणेश जी के सौजन्य से सम्भव हुआ।हमलोगो को गणेश जी अपने घर भी ले गये।

महानगरीय क्षेत्र से सम्बन्धित उपनगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों को देखने को मिला जो ज्ञानवर्धक और प्रयोजनीय था।इस क्रम में बम्बई से लगभग 51 किमी दूर उत्तर दिशा में हमलोग पालघर,जिला थाणे गये। बम्बई की दुग्धशालाओं के पशुओं के लिए यहाँ घास के बड़े-बड़े गोदाम हैं। यह घास यहाँ स्वतः पैदा होती है। उत्तर भारत के बहुत से किसान व्यवसायी पीढ़ियों से यहाँ बसे हुए हैं और घास का कारबार करते हैं।हमारे विभागध्यक्ष की ससुराल उन्हीं में से एक घर में है। उन लोगो ने हमारी बहुत अच्छी आवभगत की और घुमाये-फिराये। वहाँ से लगभग 6 मील दूर समुद्र तट पर स्थित नारियल के बगीचों का श्रीगाँव ग्राम भी देखा जहाँ उनकी अतिथिशाला है।पालघर से लगभग 30 मील दूर स्थित गणेशपुरी का आश्रम भी हमने देखा जो शहयाद्रि की तलहटी में आदिवासियों के क्षेत्र में विकसित हो रहा है।इस क्षेत्र की महिमा स्वामी मुक्तानन्द के आश्रम के कारण बढ़ी है जहाँ बहुत से विदेशी युवक-युवतियाँ योगाभ्यास करते हैं।आदिवासियों के लिए एक बड़े अस्पताल का निर्माण स्वामी जी करवा रहे हैं। आश्रम की मदद से बहुत से स्कूल भी चलते हैं। स्वामी मुक्तानन्द जी के गुरु ब्रह्मलीन स्वामी नित्यानन्द जी की समाधि और वही पास में गर्म-जल का स्रोत भी देखने को मिला।

सिन्धी-हिन्दू धर्मशाला के नेपाली कर्मचारी ने मुझे रोटी-सब्जी बनाकर खिलाया था और वहीं बगल की किसी शिव-भक्त परिवार की लड़की और उसके माँ-पिता से मिलवाया जो वाराणसी का जानकर हमारा आदर-भाव किये थे।एक व्यक्ति और भी याद आता है जिसने भारतीय दर्शन पर घण्टों मेरा मार्ग-दर्शन किया था। पालघर की वह भाभी जी भी याद हैं जो बहुत घुलमिल गयी थीं और मेरी कवितायें सुनती रहीं।वह लड़की भी जिसने मुझसे अपने प्रेम-प्रसंग पर सलाह माँगी थी और बाद में मैने उस घटना पर एक कहानी लिखी थी-"मिस्टर का शहर"

रामेश्वरम के "राम झरोखा" को अक्सर मैने अपने सपनो में बार-बार देखा है मानो कोई मुझे संसार की नश्वरता समझाने का प्रयास करता हो। मैं उस उँचाई पर हूँ और नीचे कोई सड़क है जिसपर बेतहाशा लोग भागे जा रहे हैं। शायद सभी मृत्यु की ओर भाग रहे हैं। मुझे परमात्मा की अनुभूति हो रही है।

मुम्बई में मायानगरी ने उस समय भी दिखा दिया कि लड़कियाँ किस तरह अपना सबकुछ खोती जा रही हैं।

हमे उस परिवार में भोजन करने का अवसर मिला जिनके लड़के से पालघर की लड़की की शादी तय हुई थी और उनका फिल्मी स्टूडियो था। उन्हीं के मित्र गणेश जी थे जो सूटिंग दिखाये और मनोज कुमार जी से मिलवाये थे।हम 4 को चलकर 5 नवम्बर को वापस आये।

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कहानीमाँ-बेटीविजय कुमार तिवारीउम्र ढल रही है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है।शादी नहीं होने का दुख मुझे नहीं है।अम्मा की उदासी मेरा दुख बढ़ा देती है।कभी-कभी लगता है कि उसके सारे दुखों का कारण मैं ही हूँ।भीतर बहुत दर्द उभरता है।तब दर्द और बढ़ जाता है जब अम्मा कहीं दूर से म

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प्यार के बहुतेरे रंग

17 दिसम्बर 2018
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कविताप्यार के बहुतेरे रंगविजय कुमार तिवारीयाद करो मैंने पूछा था-तुम्हारी कुड़माई हो गयी?यह एक स्वाभाविक प्रश्न था,तुमने बुरा मान लिया, मिटा डाली जुड़ने की सारी सम्भावनायेंऔर तोड़ डाले सारे सम्बन्ध। प्यार की पनपती भावनायें वासना की ओर ही नहीं जाती,वे जाती हैं-भाईयों की सुरक्षा में,पिता के दुलार में,व

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ट्रेन यात्रा

18 दिसम्बर 2018
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कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

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स्नेह निर्झर

3 जनवरी 2019
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कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा

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बूढ़ा आदमी

6 जनवरी 2019
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कविता(मौलिक)बूढ़ा आदमीविजय कुमार तिवारीथक कर हार जाता है,बेबस हो जाता है,लाचारजबकि जबान चलती रहती है,मन भागता रहता है,कटु हो उठता है वह,और जब हर पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है,कुछ न कर पाने पर तड़पता है बूढ़ा आदमी। कितना भयानक है बूढ़ा हो जाना,बूढ़ा होने के पहले,क्या तुमने देखा है कभी-तीस साल की उम्र को बूढ

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देश बचाना

13 जनवरी 2019
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कवितादेश बचानाविजय कुमार तिवारीस्वीकार करुँ वह आमन्त्रणऔर बसा लूँ किसी की मधुर छबि,डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल, रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तानरचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग। या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,उठा लूँ लड़ने के औजारचल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान। कु

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विम्ब का ये प्यार

15 जनवरी 2019
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गीत(09/05/1978)विम्ब का ये प्यारविजय कुमार तिवारीकौन दूर से रहा निहार?दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार, विम्ब का ये प्यार। पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये। आज हाथ केवल है हार,दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,विम्ब का ये प्यार। धड़कने सिसकाव का सहारा ले,मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले। अदाय

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बचपन की यादें

18 जनवरी 2019
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कहानीबचपन की यादेंविजय कुमार तिवारीये बात तब की है जब हमारे लिए चाँद-सितारों का इतना ही मतलब था कि उन्हें देखकर हम खुश होते थे।अब धरती से जुड़ने का समय आ गया था और हम खेत-खलिहान जाने लगे थे।धीरे-धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया बँटी हुई है और खेत-बगीचे सब के बहुत से मालिक हैं।यह मेरा बगीचा है,मेरी

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अन्तर्यात्रा का रहस्य

22 जनवरी 2019
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अन्तर्यात्रा का रहस्यविजय कुमार तिवारीकर सको तो प्रेम करो।यही एक मार्ग है जिससे हमारा संसार भी सुव्यवस्थित होता है और परमार्थ भी।संसार के सारे झमेले रहेंगे।हमें स्वयं उससे निकलने का तरीका खोजना होगा।किसी का दिल हम भी दुखाये होंगे और कोई हमारा।हम तब उतना सावधान नहीं होते जब हम किसी के दुखी होने का का

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गुरु और चेला

28 जनवरी 2019
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व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह

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स्त्री-पुरुष

29 जनवरी 2019
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कहानीस्त्री-पुरुषविजय कुमार तिवारीइसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं जिन्हें महिलाओं ने लिखा है और खूब प्रसिद्धी बटोर रही हैं।कहानियाँ तो अपनी जगह हैं,परन्तु उनपर आयीं टिप्पणियाँ रोचक कम, दिल जलाने लगती हैं।लगता है-यह पुरुषों के प्रति अन्याय और विद्रोह है।रहना,पलना और जीना दोनो को साथ-साथ ही है।दोनो के भीतर

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आतंक

4 फरवरी 2019
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कविता(मौलिक)आतंकविजय कुमार तिवारीचलो, मुझे उस मोड़ तक छोड़ दो,सांझ होने को है,अंधियारे जाया नहीं जायेगा। न हो तो बीच वाले मन्दिर से लौट आना,या उस मस्जिद से,जहाँ सड़क पार चर्च है।अस्पताल तक तो पहुँचा ही देनाचला जाऊँगा उससे आगे। ऐसा नहीं कि हिन्दुओं से डरता हूँ,मुसलमानों से भी नहीं डरता,सिखों या किसी

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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
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पुरानी यादे

7 फरवरी 2019
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पुरानी यादेंविजय कुमार तिवारी1983 में 4 सितम्बर को लिखा-डायरी मेरे हाथ में है और कुछ लिखने का मन हो रहा है। आज का दिन लगभग अच्छा ही गुजरा है।ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे खुश भी करना चाहती हैं और कुछ त्रस्त भी।जब भी हमारी सक्रियता कम होगी,हम चौकन्ना नहीं होंगे तो निश्चित मानिये-हमारी हानि होगी।जब हम

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प्रेम का मौसम

9 फरवरी 2019
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प्रेम का मौसमविजय कुमार तिवारीप्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच

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चुनाव 2019

10 फरवरी 2019
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चुनाव-2019विजय कुमार तिवारीहम वोट देने वाले हैं।वोट देना हमारा अधिकार है और कर्तव्य भी।यह बहुत संयम, धैर्य और विचार का विषय है।आज से पहले शायद कभी भी हमने इस तरह नहीं सोचा।चुनाव आयोग और हमारे संविधान ने इस विषय में बहुत से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।हम सभी सामान्य वोटर को बहुत कुछ पता भी नहीं है।कई

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आत्म-बोध

15 फरवरी 2019
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पहली मुलाक़ात

21 फरवरी 2019
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कवितापहली मुलाकातविजय कुमार तिवारीयह हठ था या जीवन का कोई विराट दर्शन,या मुकुलित मन की चंचल हलचल?रवि की सुनहरी किरणें जागी,बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,हुई सुवासित डाली डाली, जागी कोई मधुर कल्पना।शशि लौट चुका थानिज चन्द्रिका-पंख समेटे। उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजो

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शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019
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प्यार ही डसने लगा

28 फरवरी 2019
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प्यार ही डंसने लगाविजय कुमार तिवारीतुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हो गये अपने पराये,आईना छलने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हर हवा तूफान सी,झकझोर देती जिन्दगी,धुंध में खोया रहा,पतवार भी डुबने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?चाँद तारे छुप गये हैं,दर्द के शैलाब में,ढल गया दिल का उजाला,

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बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिये

5 मार्च 2019
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प्रश्न कीजिएविजय कुमार तिवारीबच्चा जैसे ही अपने आसपास को देखना शुरु करता है उसके मन में प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं।वह जानना चाहता है,समझना चाहता है और पूछना चाहता है।जब तक बोलने नहीं सीख जाता,व्यक्त करने नहीं सीख जाता,उसके प्रश्न संकेतों में उभरते हैं।उसे यह धरती,यह आकाश,य

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विज्ञापन

22 मार्च 2019
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कविताविज्ञापनविजय कुमार तिवारीजागते ही खोजती है अखबार,झुँझलाती है-कि जल्दी क्यों नहीं दे जाता अखबार। अखबार में खोजती है-नौकरियों के विज्ञापन। पतली-पतली अंगुलियों से,एक -एक शब्द को छूती हुई,हर पंक्ति पर दृष्टि जमाये,पहुँच जाती है अंतिम शब्द तक। गहरा निःश्वांस छोड़ती है

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महत् चिंतन

4 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपाय

5 अप्रैल 2019
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सुखी होने के उपायविजय कुमार तिवारीसंसार में सभी सुख चाहते हैं,दुख कोई नहीं चाहता,जबकि कोई सुखी नहीं है, सभी दुखी हैं।कबीर दास जी ने कहा है कि सारा संसार दुख से भरा है।मेरा मानना है कि हमें सत्य दिखता नहीं।हम असत्य देखने के आदी हो गये हैं।हम झूठ देखते हैं और अपनी सुविधा से

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मि. ख़ का शहर

9 अप्रैल 2019
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प्रेम के भूख

5 सितम्बर 2019
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प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

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नदी के दावेदार

28 सितम्बर 2019
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छमा करना

1 अक्टूबर 2019
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मशाल

4 अक्टूबर 2019
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करूँ-ह्रदय

11 अक्टूबर 2019
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दुःख

12 अक्टूबर 2019
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दुनिया युद्ध के महाविनाश की ओर जा रही है।यदि ऐसा हुआ तो किसी न किसी रुप में हम सभी प्रभावित होंगे।वैसे ही दुनिया में लोग अनेकानेक कारणों से दुखी हैं।हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हे कोई न कोई दुख है।हम मिलकर उनका समाधान खोज सकते हैं और दुखों से बचाव कर सकते हैं।कम से कम हम चर्चा तो करें।कोई न कोई स

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उद्बोधन

22 नवम्बर 2019
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उद्बोधनविजय कुमार तिवारीलम्बे अन्तराल के बाद आज कुछ उद्बोधित होने की प्रेरणा जाग रही है।खिड़की से बाहर की दुनिया बड़ी मनोरम दिख रही है।आसमान नीला और शान्त है।मन भी नीरव-शान्ति की अनुभूति से ओत-प्रोत है।कौन कहता है कि हमारा जन्म दुख-भोग के लिए ही है?हमें स्वयं में डुबकी लगाने नहीं आता।हमारी सारी समस्

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ईशावास्योपनिषद के आलोक में

11 जनवरी 2020
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ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

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विवेकानंद के बहाने

12 जनवरी 2020
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विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

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निर्भया के बहाने

20 मार्च 2020
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निर्भया के बहानेविजय कुमार तिवारीअन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनै

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जनता कर्फ्यू और हमारा देश

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जनता कर्फ्यू और हमारा देशविजय कुमार तिवारीप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर आज २२ मार्च २०२० को पूरे देश ने अपनी एकता,अपना जोश और अपना मनोबल पूरी दुनिया को दिखा दिया।इस जज्बे को मैं हृदय से सादर नमन करता हूँ।राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिकों तक ने ताली,थाली, घंटी,शंख और नगाड़े बजाकर अपना आभार

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कोरोना और स्त्री

25 मार्च 2020
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करोना और स्त्रीविजय कुमार तिवारीकल प्रधानमन्त्री ने देश मेंं कोरोना के चलते ईक्कीस दिनों के"लाॅकडाउन"की घोषणा की है।सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता।घर मेंं चौबिसों घण्टे पत्नी के साथ रह पाना,सोचकर ही मन भारी हो जाता है।किसी साधु-सन्त के पास इससे बचाव का उपाय नहीं है।

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महर्षि अरविंद का पूर्णयोग

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महर्षि अरविन्द का पूर्णयोगविजय कुमार तिवारीमहर्षि अरविन्द का दर्शन इस रुप में अन्य लोगोंं के चिन्तन से भिन्न है कि उन्होंने आरोहण(उर्ध्वगमन)द्वारा परमात्-प्राप्ति के उपरान्त उस विराट् सत्ता को मनुष्य में अवतरण अर्थात् उतार लाने की चर्चा की है।यह उनका एक नवीन चिन्तन है।गीता में दोनो बातें कही गयी हैं

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जिंदगी सुखद संयोगो का खेल है .

27 मार्च 2020
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कहानीजिन्दगी सुखद संयोगों का खेल है।विजय कुमार तिवारीरमणी बाबू को भगवान में बहुत श्रद्धा है।उसके मन मेंं यह बात गहरे उतर गयी है कि अच्छे दिन अवश्य आयेंगे।अक्सर वे सुहाने दिनों की कल्पना में खो जाते हैं और वर्तमान की छोटी-छोटी जरुरतों की लिस्ट बनाते रहते हैं।गाँव के लड़के स्कूल साईकिल पर जाते थे तो व

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धिक्कार है ऐसे लोगो पर

31 मार्च 2020
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धिक्कार है ऐसे लोगोंं परविजय कुमार तिवारीमन दहल उठता है।लाॅकडाउन में भी लाखों की भीड़ सड़कों पर है।भारत का प्रधानमन्त्री हाथ जोड़कर विनती करता है,आगाह करता है कि खतरा पूरी मानवजाति पर है।विकसित और सम्पन्न देश त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।विकास और ऐश्वर्य के बावजूद वे अपनी जनता को बचा नहीं पा रहे हैं।आज

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शहर प्रयोगशाला हो गया है

1 अप्रैल 2020
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कविताशहर प्रयोगशाला हो गया हैविजय कुमार तिवारीछद्मवेष में सभी बाहर निकल आये हैंं,लिख रहे हैं इतिहास में दर्ज होनेवाली कवितायें,सुननी पड़ेगी उनकी बातेंं,देखना पड़ेगा बार-बार भोला सा चेहरा।तुमने ही उसे सिंहासन दिया है,और अपने उपर राज करने का अधिकार।दिन में वह ओढ़ता-बिछाता है तुम्हारी सभ्यता-संस्कृति,उ

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मेरे आनंद की बाते

2 अप्रैल 2020
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मेरे आनन्द की बातेंविजय कुमार तिवारीकभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ

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हर युग में आते है भगवान

3 अप्रैल 2020
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कविताहर युग मेंं आते हैं भगवानविजय कुमार तिवारीद्रष्टा ऋषियों ने संवारा,सजाया है यह भू-खण्ड,संजोये हैं वेद की ऋचाओं में जीवन-सूत्र,उपनिषदों ने खोलें हैं परब्रह्म तक पहुँचने के द्वार,कण-कण में चेतन है वह विराट् सत्ता।सनातन खो नहीं सकता अपना ध्येय,तिरोहित नहीं होगें हमारे पुरुषोत्तम के आदर्श,महाभारत स

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5 अप्रैल 2020 ,रात 9 बजे 9 मिनट का प्रकाश-पर्व

5 अप्रैल 2020
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5 अप्रैल 2020,रात 9 बजे,9 मिनट का प्रकाश-पर्वविजय कुमार तिवारीविश्वास करें,यह कोई सामान्य घटना घटित होने नहीं जा रही है और ना ही आज का प्रकाश-पर्व एक सामान्य प्रकाश-पर्व है।ब्रह्माण्ड की ब्रह्म-शक्ति का आह्वान हम सम्पूर्ण देशवासी प्रकाश-पर्व मनाकर करने जा रहे हैं।हमारे भीतर स्थित वह दिव्य-चेतना जागृ

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विपत्ति में ही

7 अप्रैल 2020
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विपत्ति में हीविजय कुमार तिवारीप्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित ह

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हमउम्र बूढ़ों का परिवार

8 अप्रैल 2020
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कविताहमउम्र बूढ़ोंं का परिवारविजय कुमार तिवारीमैंने सजा लिया है सारे हमउम्र बूढ़ों को अपने फ्रेम में,बना लिया है मित्रों का बड़ा सा समूह। रोज देखता रहता हूँ उनके आज के चेहरे,चमक उठती है पुतलियाँजीवन्त हो उठते हैं उनसे जुडे नाना प्रसंग। मुरझाये गालों और मद्धिम रोशनी लिये आँखें,आज भी कौंंध जाता है उनक

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-१

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1विजय कुमार तिवारीसालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-२

12 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-३

13 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-3विजय कुमार तिवारी"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये।प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका।सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी,दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है।आपकी बात सही हो तब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-४

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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4विजय कुमार तिवारी"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या ब

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खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-६

15 अप्रैल 2020
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कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-6विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू दोनो महिलाओं और मोहन चन्द्र जी की भाव-भंगिमा देख दंग रह गये।सुबह दूध वाले की बातें सत्य होती प्रतीत होने लगी।उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।अन्दर से पत्नी भी आ गयी।मोहन चन्द्र बाबू उन दोनो महिलाओं से कुछ पूछते-बतियाते रहे।थोड़ी देर में पत्नी

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हमारी शादी की सैंतीसवी वर्षगाठ

27 अप्रैल 2020
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हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठविजय कुमार तिवारीआज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन

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तुम्हारे प्रेम के नाम-२

1 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-2विजय कुमार तिवारीदुनिया तो वही है जो सबकी होती है परन्तु मेरे लिए जैसे बिल्कुल अजनबी हो चुकी है।जो जानी-पहचानी दुनिया थी उसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ और यह नयी जगह,नयी दुनिया जैसे मुझे आत्मसात करने को तैयार ही नहीं है।इस दृष्टि से समूची नारी जाति के प्रति मेरा मन पूरी श

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तुम्हारे प्रेम के नाम-३

3 मई 2020
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कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-3विजय कुमार तिवारीतुमने अनेकों बार कुरेदा है मुझे,"कैसे मैं अपने को बचाता रहा और कैसे इस मतलबी दुनिया की शातिर चालों को समझ पाया।"तुमसे खुलकर कहना चाहता हूँ,सच बयान करता हूँ कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है।हर व्यक्ति को थोड़ा सजग रहना चाहिए।थो

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वासना गद्दारो और नशेड़ियों का देश

5 मई 2020
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वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देशविजय कुमार तिवारीवासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में

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डा नन्द किशोर नवल जी की यादें

14 मई 2020
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डा0 नन्द किशोर नवल जी की यादेंविजय कुमार तिवारीपरमादरणीय मित्र,प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार डा.नन्द किशोर नवल जी नहीं रहे।मेरा तबादला धनबाद से पटना हुआ था।9अप्रैल 1984 की शाम में बी,एम.दास रोड स्थित मैत्री-शान्ति भवन में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से"राहुल सांकृत्यायन-जयन्ती"का आयोजन था।भाई अरुण कमल,ड

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