shabd-logo

आत्म-बोध

15 फरवरी 2019

127 बार देखा गया 127

कहानी

आत्म-बोध

विजय कुमार तिवारी

"आज कुछ ज्यादा ही उद्वेलित लग रही हो,सब सकुशल है ना?"गुरुदेव रमा को स्नेह से देखते हुए मुस्कराये।

"आपसे मेरा कुछ भी गोपन नहीं रह पाता,"पूर्ण समर्पण का भाव दिखाते हुए रमा हँस पड़ी,"आपकी गहरी दृष्टि मेरे दिल को धड़का देती है और मैं आपकी आँखों की चमक से हिरणी की तरह भयभीत होने लगती हूँ और सम्मोहित भी।"

गुरुदेव मुस्कराये।

रमा की पलकें उन्मिलित हो स्वतः झुक गयीं।गौरवर्णीय चेहरे पर उभर आये स्वेद-कणों को उसने अपने आँचल से पोंछा और गुरुदेव के तनिक समीप ही जमीन पर बैठ गयी।

"पहले पानी पी लो,"गुरुदेव ने बगल के टेबुल पर रखे हुए जग और गिलास की ओर संकेत करते हुए कहा,"तुम प्यासी लग रही हो रमा।"

"हाँ, मैं बहुत प्यासी हूँ गुरुदेव,"रमा ने गहरे भाव से उन्हें देखा और उठ खड़ी हुई।उसने जग से पानी गिलास में डाला परन्तु कुछ सोचकर गिलास को वहीं रख दी।

"क्या हुआ?"

"नहीं,यह आपका गिलास है गुरुदेव।मुझे पाप लगेगा।"रमा ने उन्हें देखा मानो बहुत बड़ा अपराध होते-होते रह गया हो।

"तुम भी तो मेरी हो रमा,"गुरुदेव के चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान फैल गयी।

रमा ने मन ही मन सोचा,"काश मैं आपकी अनुगामिनी हो पाती और आपके बताये मार्ग पर चल पाती।"

"आजकल देवव्रत नहीं दिखाई दे रहा,किस दुनिया में खोया हुआ है?"गुरुदेव के प्रश्न से मानो वापस लौटी हो,उसने सहजता से उनकी ओर देखा।

"तुम कुछ सोच रही हो?"गुरुदेव ने पूछा।

"सारी समस्यायें उसी को लेकर हैं गुरुदेव,"रमा ने चेहरे पर उभर रही चिन्ता की रेखाओं को सामान्य करते हुए कहा,"मेरी बातों को समझना ही नहीं चाहता।देश-भक्ति का ज्वार उमड़ता रहता है उसकी शिराओं में।आज के हालात पर बहुत दुखी होता है और कहता है-इतना पतित कैसे हो सकते हैं लोग?"

गुरुदेव सहसा गम्भीर हो गये और उपर छत की ओर देखते हुए बोले,"ऐसी आत्मायें परमात्मा के आदेश से धरती पर आती हैं।ये मशाल की तरह होती हैं,लोगों को ज्ञान का प्रकाश देती हैं।शेष असंख्य लोग अंधेरे में हैं और सारी व्यवस्थाओं को तहस-नहस करते रहते हैं।"

"तभी तो वह मुझे अच्छा लगता है परन्तु उसको लेकर बहुत चिन्ता होती है।शुरु से ही ऐसा है।उसकी बातें चमत्कृत करती हैं,जोश जगाती हैं और स्वयं से उपर उठकर चिन्तन करने को प्रेरित करती हैं।"

गुरुदेव ने अनुमोदन करते हुए कहा,"वह एक संस्कारी आत्मा है और उसका ध्येय उत्तम है।"

"भय होता है गुरुदेव।उसकी विचारधारा को लोग पसन्द नहीं करते।उसका विरोध होता है।अक्सर वह अकेला पड़ जाता है,"रमा ने बेचैनी में कहा।

"फिर भी देवव्रत डिगता नहीं,बदलता और झुकता नहीं क्योंकि उसे आत्म-विश्वास है और वह जानता है कि उसका मार्ग सही है,"गुरुदेव ने कहा,"उसके लिए भय मत करो,परमात्मा उसके साथ हैं।"

रमा के चेहरे पर सन्तोष उभरा और वह मुस्करा उठी,"आप कृपा बनाये रखें गुरुदेव।"

"तुम अभी भी कुछ छिपा रही हो?"गुरुदेव ने धीरे से रमा से कहा और पीछे मुड़कर किसी को पुकारा।एक युवा के उपस्थित होने पर उन्होंने आदेश दिया,"रमा के लिए जलपान और हम दोनो के लिए चाय की व्यवस्था करो।"

"आपसे कुछ भी छिपा नहीं है गुरुदेव,"रमा ने सिर झुकाये कहना शुरु किया,"मैंने घर में अपने दिल की बात बता दी है परन्तु देवव्रत अभी कुछ भी सोचने के लिए तैयार नहीं है।उसकी बातें अपनी जगह सही लगती हैं परन्तु मेरा मन सशंकित हो उठता है।"

थोड़ा रुककर रमा ने कहा,"उसका चिन्तन तो वहाँ से शुरु होता है कि आर्यो के देश का ऐसा पतन कैसे होता गया?मैंने बारहा उसे पुस्तकालयों की प्राचीन पुस्तकों में माथापच्ची करते देखा है।अनार्य आर्यो के विरोधी होते गये और उनका आचरण-व्यवहार इनके विपरीत था।आक्रान्ता के रुप में जो आये उनका उद्देश्य ही रहा कि यहाँ की संस्कृति-सभ्यता को नष्ट किया जाय।देवव्रत एक बात और कहता है--स्वतन्त्र होने के बाद भी हमारी सरकारें उन्हीं रास्तों पर चली हैं और स्थिति को सुधारने के बजाय और बिगाड़ कर रख दिया है।"

गुरुदेव चुपचाप सुनते रहे और गम्भीर मुद्रा में बैठे रहे।सहसा रमा मौन हो गयी और वहाँ नीरव शान्ति व्याप्त हो गयी।मौन तब टूटा जब

चाय पीते हुए उन्होंने कहा,"किसी दिन देवव्रत को साथ ले आना।"

रमा के जाने के बाद बहुत देर तक गुरुदेव चिन्तन करते रहे और स्वतन्त्रता आंदोलन के दिनों की सुनी हुई कहानियाँ याद करते रहे-तब यह देश कितना एक था,लोग एक होकर संघर्ष कर रहे थे। जाति-धर्म,उँच-नीच जैसी बातें नहीं थीं। ऐसा कैसे हो गया कि दुनिया के तमाम देश विकसित होते गये और हम पिछड़ते गये।

रमा की भेंट देवव्रत से उस मोड़पर हुई जहाँ वह किसी बस की प्रतीक्षा कर रहे थे।रमा ने मुस्कराकर अभिवादन किया और बोली,"गुरुदेव आपको याद कर रहे हैं।"

"हाँ,मैं भी मिलना चाहता हूँ गुरुदेव से,"देवव्रत ने भी उत्सुकता दिखाते हुए कहा,"आप गयीं थीं क्या उनका दर्शन करने?"

"हाँ,आज ही गयी थी,"रमा ने किंचित खुश होते हुए कहा।

"बहुत खुश लग रही हो?"देवव्रत गहरी दृष्टि से रमा को देखते हुए मुस्कराया।

"अच्छा लगा कि गुरुदेव ने आपके बारे में पूछा,"रमा ने भी मुस्करा कर कहा। शर्म की लाली उभर आयी उसके चेहरे पर और पलकें उठकर झुक गयीं।

देवव्रत को याद आया-रमा की ऐसी ही मुस्कान पर वह प्रभावित हुआ था जब दोनो पहली बार मिले थे।दोनो के विचारों,पसन्द-नापसन्द और प्राथमिकताओं में बहुत समानता है।देवव्रत जानता है कि रमा में धैर्य है और जीवन को सुन्दर बनाये रखने की अद्भूत क्षमता।रमा को पता है कि देवव्रत का दिल बहुत अच्छा है और वह एक नेक इंसान है।अच्छाई के लिए उसमें जुनून सवार हो जाता है।वह किसी को धोखा नहीं दे सकता।

देवव्रत ने कहा,"रमा,चलो कहीं बैठकर काॅफी पीते हैं।"

"आप कहीं जाने वाले थे?"रमा ने औपचारिकता बस पूछ लिया।मन ही मन खुश हुई और भीतर उमड़ आये भावों को दबाते हुए उसने प्यार से देवव्रत को देखा।

"आज की शाम तुम्हारे नाम,"देवव्रत ने उसके मुस्कान-युक्त सौन्दर्य में डूबकी लगाते हुए रमा को आमन्त्रित किया।मौसम बहुत सुहावना हो चला था और दोनो एक-दूसरे के करीब हो आगे बढ़ चले।

आत्मीय अनुभूति की प्रीतिकर भावनाओं में खोयी रमा को देवव्रत ने बहुत स्नेह से देखा,"कहाँ खो गयी?कुछ और लेना चाहोगी?"

"बस काॅफी ही,"रमा ने धीरे से कहा,"आप चाहें तो कुछ और ले लीजिए।"बस इतना ही कह पायी जबकि कहना चाहती थी कि आप अवश्य कुछ और ले लीजिए।उसे आश्चर्य हुआ कि उसकी वाणी उसका साथ नहीं दे रही है और अपना सही भाव व्यक्त नहीं कर पा रही है।उसकी आँखें भर आयी।उसने देवव्रत को देखा-कितना भोला लग रहा है।रमा को लगा,शायद उसे भी ऐसी ही अनुभूति हो रही होगी।शरारत भरी स्मित मुस्कान के भाव चेहरे पर उभरे और उसे विचित्र सुखानुभूति हुई।

साथ ही उसे ऐसा भी लगा कि देवव्रत को पुनः कोई बात याद गयी है और वह अधीर हो उठा है।उसने अपनी काॅफी थोड़ी तेजी से खत्म की और उठ खड़ा हुआ।रमा अब इन बातों की अभ्यस्त हो चुकी है।दोनो बाहर निकले और मन्दिर की ओर बढ़ चले। झील की सीढ़ियों से होते हुए वे दूर किनारे तक गये और बैठ गये।देवव्रत के चेहरे पर गम्भीरता छायी थी जिसे वह बनावटी मुस्कान से ढकना चाह रहा था।

"क्या बात है?"रमा ने धीरे से पूछा।

"आज तुम्हें जरुर बताऊँगा रमा," उसने कहा,"हमारी जनता बहुत भोली है और कुछ लोग बहुत मक्कार।"

रमा को समझते देर नहीं लगी कि देवव्रत ऐसे ही चिन्तन में उलझा हुआ है। उसने हामी भरी और हँस पड़ी।

"तुम्हें चिन्ता नहीं होती कि सभी दल एक हो रहे हैं जो हमेशा एक-दूसरे के विरोध में राजनीति करते रहे?"देवव्रत ने अपनी चिन्ता में रमा को भी शामिल करना चाहा।

रमा हँस पड़ी,"गुरुदेव के सामने इस विषय पर बातें करेंगे।आप चाहें तो कल ही चलें हम लोग।उनका मार्गदर्शन भी मिलेगा और दर्शन भी।"

"बातों को टालना कोई तुमसे सीखे,"देवव्रत भी हँस पड़ा।

"आज बहुत दिनों बाद हम मिले हैं।फोन पर बातें करना आपको पसन्द नहीं।जब से घर में मैंने आपके बारे में बातें की है,एक अघोषित दबाव महसूस करती रहती हूँ।पिता जी की आँखों में बेचैनी देखती हूँ।समझ में नहीं आता कि क्या करु?"

"तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं है क्या ?"सहसा देवव्रत गम्भीर हो गया।उसने भीतर कुछ ज्वार सा महसूस किया और रमा का हाथ थाम लिया।

रमा चौंक सी गयी परन्तु उसने अपना हाथ नहीं छुड़ाया। उसे विचित्र सी सिहरन महसूस हुई और रोमांचित हो उठी।उसने धीरे से कहा," आप कभी भी ऐसा नहीं सोचें।मुझे अपने आप से भी ज्यादा आप पर विश्वास है।"थोड़ा रुक कर उसने कहा,"यदि अन्यथा ना लें तो एक निवेदन करना चाहूँगी।"

"तुम्हारी बातों को अन्यथा लेने का सवाल ही नहीं है रमा।तुमने कभी कोई ऐसी बात नहीं की है कि अन्यथा लिया जाय।मैं जानता हूँ कि तुम मेरे जीवन को हर तरह से सजा-सँवार दोगी। मैं खुद ही अस्त-व्यस्त,बेतरतीब आदमी हूँ।"देवव्रत हँस पड़ा।

"मैं चाहती हूँ कि एक बार आप मेरे घर आओ और माँ-पिता से मिल लो,"रमा ने पूरी संजीदगी से कहा।

देवव्रत ने भी उसी गर्मजोशी से उत्तर दिया,"जैसी आपकी आज्ञा।" किंचित रुककर उसने कहा,"परन्तु गुरुदेव से मिलने के बाद।"

दोनो हँस पड़े।

रात में रमा ने गुरुदेव को फोन किया।"आपका आशीर्वाद इतनी जल्दी फलीभूत होगा,मैंने सोचा नहीं था,"प्रणाम करने के बाद उसने कहा,"कल हमदोनो आपका दर्शन करने रहे हैं।"

गुरुदेव ने कहा,"दस बजे के बाद ही आना और दोपहर का तुम दोनो का प्रसाद यहीं आश्रम में मेरे साथ ही होगा।"

रमा का मन प्रफुल्लित हो उठा।उसने इसे शुभ संकेत माना।गुरुदेव की उसके पूरे परिवार पर कृपा रहती है।बचपन से ही वह पिता-माँ के साथ आश्रम जाती रही है।एक बार मन में आया कि देवव्रत को फोन करके बता दे परन्तु उसने स्वयं को रोक लिया।कब तक जागती रही और कब सोयी,पता ही नहीं चला। प्रातः माँ ने जगाया।

समय से दोनो गुरुदेव के सामने उपस्थित हुए।

"मैं प्रतीक्षा कर ही रहा था,"गुरुदेव ने कहा,'दोपहर तक हम पूर्णतः स्वतन्त्र हैं और हमारी बातचीत थोड़ी दूर स्थित पंचवटी की शीतल छाया में होगी।"

रमा को यह स्थान बहुत आध्यात्मिक और शान्त लगा। स्निग्ध वातावरण मनोहारी तो था ही,रमा को लगा मानो कोई अदृश्य बोझ उतर रहा हो।

बिना देर किये गुरुदेव ने देवव्रत से कहा,"तुम्हारी चिन्तायें उचित और सामयिक हैं। देश के सभी नागरिकों,विशेष रुप से युवाओं को आज की हर स्थिति-परिस्थिति पर गहन विचार करना चाहिए।अच्छाई और बुराई आदिकाल से है।राम-रावण,कृष्ण-कंस,पाण्डव-कौरव,आदिशक्ति-दैत्यों,निशाचरों के बीच का युद्ध होता रहा है। आज स्थिति इसलिए भयावह है कि बुराई सभी के भीतर व्याप्त हो गयी है और अधिकांश लोग बुराई का ही पक्ष लेते हैं।"

देवव्रत और रमा ध्यान से सुनते रहे।

गुरुदेव ने अपना प्रवचन जारी रखा,"कर्म का फल सभी को भोगना है।कोई बच नहीं सकता। जो अच्छाई के खिलाफ एकत्र हो रहे हैं,उनसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है।कोई है जो हम सभी को देखता है और न्याय करता है। हमें उस शक्ति पर विश्वास करना होगा।हर व्यक्ति को अपना सही कर्म करना चाहिए।यह संसार परमात्मा का है और इसका संचालन वह सदैव सफलतापूर्वक करता है।जो हो रहा है, वही उसकी मर्जी है।"

देवव्रत को बहुत सी बातें असहज करने लगीं और उसके ध्यान में हत्यायें,मारकाट,घोटाले और गाली-गलौज के दृश्य उभरे।गुरुदेव समझ गये। उन्होंने कहा,"यह आत्माओं का खेल है।पतित और भटकी हुई आत्मायें भी अपना कल्याण चाहती हैं परन्तु उन्हें दुख-भोगना हॊ पड़ता है।आज की राजनीति ने लोगो को बाँट दिया है।लोग दूर तक देख नहीं पाते।तात्कालिक स्वार्थ में पड़कर अनुचित निर्णय करते हैं।एक पुरोहित ने अपने यजमानों से जीवन के अन्तिम दिनों में कहा कि आज तक आपलोगों को कथा सुनाता रहा और दान-दक्षिणा लेता रहा।आज सत्य कहता हूँ,आप लोग सही मन से ईश्वर को समर्पित हो जाओ,उसी में सद्गति है।

देवव्रत का मन शान्त होने लगा।उसने कहा,"गुरुदेव आपकी बातें समझ में रही हैं परन्तु कभी-कभी चिन्ता होने लगती है।"

"संसार में रहो,शादी करो और विवेक-सम्मत कर्म करो,"गुरुदेव ने मुस्कराते हुए कहा,"जो उचित लगे,करते रहो।शेष परमात्मा पर छोड दो।वह न्याय ही करेगा।"

विजय कुमार तिवारी की अन्य किताबें

1

तुम्हारे लिए

12 सितम्बर 2018
0
3
2

कविता-12/12/1984तुम्हारे लिएविजय कुमार तिवारीबाट जोहती तुम्हारी निगाहें,शाम के धुँधलके का गहरापन लिए,दूर पहाड़ की ओर से आती पगडण्डी पर,अंतिम निगाह डालजब तलक लौट चुकी होंगी। उम्मीदों का आखिरी कतरा,आखिरी बूँदतुम्हारे सामने हीधूल में विलीन हो चुका होगा। आशा के संग जुड़ी,सारी आकांक्षायेंमटियामेट हो ,दम

2

बदले की भावना

12 सितम्बर 2018
0
2
0

कहानीबदले की भावनाविजय कुमार तिवारीभोर की रश्मियाँ बिखेरने ही वाली थीं,चेतन बाहर आने ही वाला था कि उसके मोबाईल पर रिंगटोन सुनाई दिया। उसने कान से लगाया।उधर से किसी के हँसने की आवाज आ रही थी और हलो का उत्तर नही। कोई अपरिचित नम्बर था और हँसी भी मानो व्यंगात्मक थी। कौन हो सकती है? बहुत याद करने पर भी क

3

कोख की रोशनी

12 सितम्बर 2018
0
3
1

मौलिक कविता 21/11/1984कोख की रोशनीविजय कुमार तिवारीतुम्हारी कोख में उगता सूरज,पुकारता तो होगा?कुछ कहता होगा,गाता होगा गीत? फड़कने नहीं लगी है क्या-अभी से तुम्हारी अंगुलियाँ?बुनने नहीं लगी हो क्या-सलाईयों में उन के डोरे?उभर नहीं रहा क्या-एक पूरा बच्चा?तुम्हारे लिए रोते हुए,अंगली थामकर चलते हुए। उभर र

4

गांव की लड़की का अर्थशास्त्र

12 सितम्बर 2018
0
1
2

कहानीगाँव की लड़की का अर्थशास्त्रविजय कुमार तिवारीगाँव में पहुँचे हुए अभी कुछ घंटे ही बीते थे और घर में सभी से मिलना-जुलना चल ही रहा था कि मुख्यदरवाजे से एक लड़की ने प्रवेश किया और चरण स्पर्श की। तुरन्त पहचान नहीं सका तो भाभी की ओर प्रश्न-सूचक निगाहों से देखा। "लगता है,चाचा पहचान नहीं पाये,"थोड़ी मु

5

उसे कोई नहीं समझता

16 सितम्बर 2018
0
1
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:Sav

6

उसने कभी निराश नहीं किया

17 सितम्बर 2018
0
1
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

7

परम पूज्य सचिन बाबा का जाना

21 सितम्बर 2018
0
1
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

8

जन्म जन्मांतर के बैर के लिए प्रार्थना

23 सितम्बर 2018
0
1
1

जन्म-जन्मान्तर के वैर के लिए क्षमा और प्रार्थना विजय कुमार तिवारी अजीब सी उहापोह है जिन्दगी में। सुख भी है,शान्ति भी है और सभी का सहयोग भी। फिर भी लगता है जैसे कटघरे में खड़ा हूँ।घर पुराना और जर्जर है। कितना भी मरम्मत करवाइये,कुछ उघरा ही दिखता है। इधर जोड़िये तो उधर टूटता है। मुझे इससे कोई फर्क नहीं

9

आत्मा और पुनर्जन्म

23 सितम्बर 2018
0
1
2

आत्मा और पुनर्जन्मविजय कुमार तिवारी यह संसार मरणधर्मा है। जिसने जन्म लिया है,उसे एक न एक दिन मरना होगा। मृत्यु से कोई भी बच नहीं सकता। इसीलिए हर प्राणी मृत्यु से भयभीत रहता है। हमारे धर्मग्रन्थों में सौ वर्षो तक जीने की कामना की गयी है-जीवेम शरदः शतम। ईशोपनिषद में कहा गया है कि अपना कर्म करते हुए मन

10

आत्मा से आत्मा का मिलान

23 सितम्बर 2018
0
1
1

आत्मा से आत्मा का मिलनविजय कुमार तिवारीभोर में जागने के बाद घर का दरवाजा खोल देना चाहिए। ऐसी धारणा परम्परा से चली आ रही है और हम सभी ऐसा करते हैं। मान्यता है कि भोर-भोर में देव-शक्तियाँ भ्रमण करती हैं और सभी के घरों में सुख-ऐश्वर्य दे जाती हैं। कभी-कभी देवात्मायें नाना र

11

आँखों के मोती

26 सितम्बर 2018
0
1
0

कविता-20/07/1985आँखों के मोतीविजय कुमार तिवारीजब भी घुम-घाम कर लौटता हूँ,थक-थक कर चूर होता हूँ,निढ़ाल सा गिर पड़ता हूँ विस्तर में।तब वह दया भरी दृष्टि से निहारती है मुझेगतिशील हो उठता है उसका अस्तित्वऔर जागने लगता है उसका प्रेम।पढ़ता हूँ उसका चेहरा, जैसे वात्सल्य से पूर्ण,स्नेहिल होती,फेरने लगती है

12

उसने कभी निराश नही किया

26 सितम्बर 2018
0
0
0

कहानीउसने कभी निराश नहीं किया-4विजय कुमार तिवारीप्रेम में जादू होता है और कोई खींचा चला जाता है। सौम्या को महसूस हो रहा है,यदि आज प्रवर इतनी मेहनत नहीं करता तो शायद कुछ भी नहीं होता। सब किये धरे पर पानी फिर जाता। भीतर से प्रेम उमड़ने लगा। उसने खूब मन से खाना बनाया। प्रवर की थकान कम नहीं हुई थी परन्

13

उसने कभी निराश नही किया -3

26 सितम्बर 2018
0
0
0

कहानीउसने कभी निराश नही किया-3विजय कुमार तिवारीजिस प्रोफेसर के पथ-प्रदर्शन में शोधकार्य चल रहा था,वे बहुत ही अच्छे इंसान के साथ-साथ देश के मूर्धन्य विद्वानों में से एक थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की निर्धारित तिथि के पूर्व शोध का प्रारुप विश्वविद्यालय मे जमा करना था। मात्र तीन दिन बचे थे।विभागाध्य

14

उसने कभी निराश नही किया -2

26 सितम्बर 2018
0
1
0

कहानीउसने कभी निराश नहीं किया-2विजय कुमार तिवारीसौम्या शरीर से कमजोर थी परन्तु मन से बहुत मजबूत और उत्साहित। प्रवर जानता था कि ऐसे में बहुत सावधानी की जरुरत है। जरा सी भी लापरवाही परेशानी में डाल सकती है। पहले सौम्या ने अपनी अधूरी पढ़ायी पूरी की और मेहनत से आगे की तैयारी

15

उसने कभी निराश नही किया -1

26 सितम्बर 2018
0
1
0

कहानी उसने कभी निराश नहीं किया-1विजय कुमार तिवारी"अब मैं कभी भी ईश्वर को परखना नहीं चाहता और ना ही कुछ माँगना चाहता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैंने पहले कभी याचना नहीं की है और परखने की हिम्मत भी। हर बार मैं बौना साबित हुआ हूँ और हर बार उसने मुझे निहाल किया है।दावे से कहता हूँ-गिरते हम हैं,हम पतित होते है

16

तुम खुश हो

28 सितम्बर 2018
0
2
0

कवितातुम खुश होविजय कुमार तिवारीआदिम काल में तुम्हीं शिकार करती थी,भालुओं का,हिंस्र जानवरों का और कबीले के पुरुषों का,बच्चों से वात्सल्य और जवान होती लड़कियों से हास-परिहासतुम्हारी इंसानियत के पहलू थे। तुम्हारी सत्ता के अधीन, पुरुष ललचाई निगाहों से देखता था,तुम्हारे फेंके गये टुकड़ों पर जिन्दा थाऔर

17

सच्चा प्रेमी

9 नवम्बर 2018
0
1
1

कवितासच्चा प्रेमीविजय कुमार तिवारीतुमने तोड़ डाले सारे रिश्तेऔर फेंक दिया लावारिश राहों में। तुमने मुझे दोषी कहा,धोखेबाज और ना जाने क्या-क्या?तुम्हारे मधुर शब्द कितने खोखले निकले,दूर तक चलने की कसमें कितनी बेमतलबऔर तुम्हारी कोशिशें किसी मायाजाल सी। मुझे कुछ भी नहीं कहना,कोई शिकवा नहीं,कोई शिकायत नही

18

जीवन एक दर्शन है

15 नवम्बर 2018
0
0
0

जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं जिसमें इंसान अपने आप को निखारता है और फिर एक पक्का खिलाड़ी बनाता है। हर इंसान हर फील्ड में चैम्पियन नहीं बन सकता है और हर किसी की अपनी-अनपी स्किल्स होती है जिसके हिसाब से व्यक्ति उसमें आगे बढ़ता है। य

19

उसने भी प्यार किया है

27 नवम्बर 2018
0
2
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

20

देवरहा बाबा के बहाने

1 दिसम्बर 2018
0
2
1

देवरहा बाबा के बहानेविजय कुमार तिवारीजब हम एकान्त में होते हैं तो हमारे सहयात्री होते हैं-आसपास के पेड़-पौधे। वे लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसी अनुभूति होती है। मेरा दुर्भाग्य रहा कि मुझे पूज्य देवरहा बाबा जी का दर्शन करने का सुअवसर नहीं मिला। साथ ही सौभाग्य है कि आज मैं उन्हें श्रद्धा भाव से या

21

कौन सा पतझड़ मिले

2 दिसम्बर 2018
0
1
1

गीत कौन सा पतझड़ मिले? विजय कुमार तिवारी और गा लूँ जिन्दगी की धून पर, कल न जाने प्रीति को मंजिल मिले? दर्द में उत्साह लेकर बढ़ रहा था रात-दिन, आह में संगीत संचय कर रहा था रात-दिन। आज सावन कह रहा है बार-बार, क्यों लिया बंधन स्व-मन से रात-दिन? सोचता हूँ चुम लूँ वह पंखुड़ी, कल न जाने कौन सी बेकल खिल

22

एक प्यार ऐसा भी

11 दिसम्बर 2018
0
3
3

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

23

उसका चाँद

12 दिसम्बर 2018
0
4
3

कहानीउसका चाँदविजय कुमार तिवारीबचपन में चाँद देखकर खुश होता था और अपलक निहारा करता था। चाँद को भी पता था कि धरती का कोई प्राणी उसे प्यार करता है। दादी ने जगा दिया था प्रेम उसके दिल में, चाँद के लिए। बड़ी बेबसी से रातें गुजरतीं जब आसमान में चाँद नहीं होता। वैसे तो दादी नित्य ही चाँद को दूध-भात के कटो

24

अन्तर्मन की व्यथा

15 दिसम्बर 2018
0
1
1

कहानीअन्तर्मन की व्यथाविजय कुमार तिवारी"है ना विचित्र बात?"आनन्द मन ही मन मुस्कराया," अब भला क्या तुक है इस तरह जीवन के बिगत गुजरे सालों में झाँकने का और सोयी पड़ी भावनाओं को कुरेदने का?अब तो जो होना था, हो चुका,जैसे जीना था,जी चुका। ऐसा भी तो नही हैं कि उसका बिगत जीवन बह

25

माँ-बेटी

16 दिसम्बर 2018
0
1
1

कहानीमाँ-बेटीविजय कुमार तिवारीउम्र ढल रही है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है।शादी नहीं होने का दुख मुझे नहीं है।अम्मा की उदासी मेरा दुख बढ़ा देती है।कभी-कभी लगता है कि उसके सारे दुखों का कारण मैं ही हूँ।भीतर बहुत दर्द उभरता है।तब दर्द और बढ़ जाता है जब अम्मा कहीं दूर से म

26

प्यार के बहुतेरे रंग

17 दिसम्बर 2018
0
1
1

कविताप्यार के बहुतेरे रंगविजय कुमार तिवारीयाद करो मैंने पूछा था-तुम्हारी कुड़माई हो गयी?यह एक स्वाभाविक प्रश्न था,तुमने बुरा मान लिया, मिटा डाली जुड़ने की सारी सम्भावनायेंऔर तोड़ डाले सारे सम्बन्ध। प्यार की पनपती भावनायें वासना की ओर ही नहीं जाती,वे जाती हैं-भाईयों की सुरक्षा में,पिता के दुलार में,व

27

ट्रेन यात्रा

18 दिसम्बर 2018
0
1
1

कहानीट्रेन यात्राविजय कुमार तिवारी(यह कहानी उन चार लड़कियों को समर्पित है जो ट्रेन में छपरा से चली थीं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जा रही थीं।वे वहीं की छात्रायें थीं।)"खड़े क्यों हैं,बैठ जाईये,"एक लड़की ने जगह बनाते हुए कहा।थोड़े संकोच के साथ भरत बैठ गया।"आराम से बैठिय

28

स्नेह निर्झर

3 जनवरी 2019
0
0
1

कवितास्नेह निर्झरविजय कुमार तिवारीऔर ठहरें,चाहता हूँ, चाँदनी रात में,नदी की रेत पर।कसमसाकर उमड़ पड़ती है नदी,उमड़ता है गगन मेरे साथ-साथ। पूर्णिमा की रात का है शुभारम्भ,हवा शीतल,सुगन्धित।निकल आया चाँद नभ में,पसर रही है चाँदनी मेरे आसपास,सिमट रही है पहलू में।धूमिल छवि ले रही आकर,सहमी,संकुचित लिये वयभा

29

बूढ़ा आदमी

6 जनवरी 2019
0
1
1

कविता(मौलिक)बूढ़ा आदमीविजय कुमार तिवारीथक कर हार जाता है,बेबस हो जाता है,लाचारजबकि जबान चलती रहती है,मन भागता रहता है,कटु हो उठता है वह,और जब हर पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है,कुछ न कर पाने पर तड़पता है बूढ़ा आदमी। कितना भयानक है बूढ़ा हो जाना,बूढ़ा होने के पहले,क्या तुमने देखा है कभी-तीस साल की उम्र को बूढ

30

देश बचाना

13 जनवरी 2019
0
0
0

कवितादेश बचानाविजय कुमार तिवारीस्वीकार करुँ वह आमन्त्रणऔर बसा लूँ किसी की मधुर छबि,डोलता फिरुँ, गिरि-कानन,जन-जंगल, रात-रातभर जागूँ,छेडूँ विरह-तानरचूँ कुछ प्रेम-गीत,बसन्त के राग। या अपनी तरुणाई करुँ समर्पित,लगा दूँ देश-हित अपना सर्वस्व,उठा लूँ लड़ने के औजारचल पड़ूँ बचाने देश,बढ़ाने तिरंगें की शान। कु

31

विम्ब का ये प्यार

15 जनवरी 2019
0
1
0

गीत(09/05/1978)विम्ब का ये प्यारविजय कुमार तिवारीकौन दूर से रहा निहार?दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार, विम्ब का ये प्यार। पोखरी से फिसल चले हैं पाँव ये,जिन्दगी की कैसी है ढलाँव ये। आज हाथ केवल है हार,दिल ने कहा-खोलता हूँ द्वार,विम्ब का ये प्यार। धड़कने सिसकाव का सहारा ले,मिट रही बढ़त यहाँ किनारा ले। अदाय

32

बचपन की यादें

18 जनवरी 2019
0
0
0

कहानीबचपन की यादेंविजय कुमार तिवारीये बात तब की है जब हमारे लिए चाँद-सितारों का इतना ही मतलब था कि उन्हें देखकर हम खुश होते थे।अब धरती से जुड़ने का समय आ गया था और हम खेत-खलिहान जाने लगे थे।धीरे-धीरे समझने लगे थे कि हमारी दुनिया बँटी हुई है और खेत-बगीचे सब के बहुत से मालिक हैं।यह मेरा बगीचा है,मेरी

33

अन्तर्यात्रा का रहस्य

22 जनवरी 2019
0
1
0

अन्तर्यात्रा का रहस्यविजय कुमार तिवारीकर सको तो प्रेम करो।यही एक मार्ग है जिससे हमारा संसार भी सुव्यवस्थित होता है और परमार्थ भी।संसार के सारे झमेले रहेंगे।हमें स्वयं उससे निकलने का तरीका खोजना होगा।किसी का दिल हम भी दुखाये होंगे और कोई हमारा।हम तब उतना सावधान नहीं होते जब हम किसी के दुखी होने का का

34

गुरु और चेला

28 जनवरी 2019
0
0
0

व्यंग्यगुरु और चेलाविजय कुमार तिवारीबाबा गुरुचरन दास की झोपड़ी में सदा की तरह उजाला है जबकि सारा गाँव अंधकार में डूबा रहता है।पोखरी के बगल में पे़ड के पास उनकी झोपड़ी सदा राम-नाम की गूँज से गुंजित रहती है।बाबा ने कभी इच्छा नहीं की,नहीं तो वहाँ अब तक विशाल मन्दिर बन चुका ह

35

स्त्री-पुरुष

29 जनवरी 2019
0
2
1

कहानीस्त्री-पुरुषविजय कुमार तिवारीइसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं जिन्हें महिलाओं ने लिखा है और खूब प्रसिद्धी बटोर रही हैं।कहानियाँ तो अपनी जगह हैं,परन्तु उनपर आयीं टिप्पणियाँ रोचक कम, दिल जलाने लगती हैं।लगता है-यह पुरुषों के प्रति अन्याय और विद्रोह है।रहना,पलना और जीना दोनो को साथ-साथ ही है।दोनो के भीतर

36

आतंक

4 फरवरी 2019
0
1
1

कविता(मौलिक)आतंकविजय कुमार तिवारीचलो, मुझे उस मोड़ तक छोड़ दो,सांझ होने को है,अंधियारे जाया नहीं जायेगा। न हो तो बीच वाले मन्दिर से लौट आना,या उस मस्जिद से,जहाँ सड़क पार चर्च है।अस्पताल तक तो पहुँचा ही देनाचला जाऊँगा उससे आगे। ऐसा नहीं कि हिन्दुओं से डरता हूँ,मुसलमानों से भी नहीं डरता,सिखों या किसी

37

दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
0
0
0

38

दछिन भारत की भौगोलिक यात्रा

6 फरवरी 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

39

पुरानी यादे

7 फरवरी 2019
0
1
0

पुरानी यादेंविजय कुमार तिवारी1983 में 4 सितम्बर को लिखा-डायरी मेरे हाथ में है और कुछ लिखने का मन हो रहा है। आज का दिन लगभग अच्छा ही गुजरा है।ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे खुश भी करना चाहती हैं और कुछ त्रस्त भी।जब भी हमारी सक्रियता कम होगी,हम चौकन्ना नहीं होंगे तो निश्चित मानिये-हमारी हानि होगी।जब हम

40

प्रेम का मौसम

9 फरवरी 2019
0
1
0

प्रेम का मौसमविजय कुमार तिवारीप्रेम का मौसम चल रहा है और बहुत से युवा,वयस्क और स्वयं को जवान मानने वाले वृद्ध खूब मस्ती में हैं।इनकी व्यस्तता देखते बनती है और इनकी दुनिया में खूब भाग-दौड़ है।प्रयास यही है कि कुछ छूट न जाय और दिल के भीतर की बातें सही ढंग से उस दिल तक पहुँच

41

चुनाव 2019

10 फरवरी 2019
0
0
0

चुनाव-2019विजय कुमार तिवारीहम वोट देने वाले हैं।वोट देना हमारा अधिकार है और कर्तव्य भी।यह बहुत संयम, धैर्य और विचार का विषय है।आज से पहले शायद कभी भी हमने इस तरह नहीं सोचा।चुनाव आयोग और हमारे संविधान ने इस विषय में बहुत से दिशा-निर्देश जारी किये हैं।हम सभी सामान्य वोटर को बहुत कुछ पता भी नहीं है।कई

42

आत्म-बोध

15 फरवरी 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

43

पहली मुलाक़ात

21 फरवरी 2019
0
0
0

कवितापहली मुलाकातविजय कुमार तिवारीयह हठ था या जीवन का कोई विराट दर्शन,या मुकुलित मन की चंचल हलचल?रवि की सुनहरी किरणें जागी,बहा मलय का मधुर मस्त सा झोंका,हुई सुवासित डाली डाली, जागी कोई मधुर कल्पना।शशि लौट चुका थानिज चन्द्रिका-पंख समेटे। उमग रहे थे भौरे फूलों कलियों में,मधुर सुनहले आलिंगन की चाह संजो

44

शादी की पीड़ा

23 फरवरी 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedC

45

प्यार ही डसने लगा

28 फरवरी 2019
0
0
0

प्यार ही डंसने लगाविजय कुमार तिवारीतुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हो गये अपने पराये,आईना छलने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?हर हवा तूफान सी,झकझोर देती जिन्दगी,धुंध में खोया रहा,पतवार भी डुबने लगा। तुम चले गये,जिन्दगी में क्या रहा?चाँद तारे छुप गये हैं,दर्द के शैलाब में,ढल गया दिल का उजाला,

46

बदलते हुए लोग

1 मार्च 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedC

47

प्रश्न कीजिये

5 मार्च 2019
0
0
0

प्रश्न कीजिएविजय कुमार तिवारीबच्चा जैसे ही अपने आसपास को देखना शुरु करता है उसके मन में प्रश्न कुलबुलाने लगते हैं।वह जानना चाहता है,समझना चाहता है और पूछना चाहता है।जब तक बोलने नहीं सीख जाता,व्यक्त करने नहीं सीख जाता,उसके प्रश्न संकेतों में उभरते हैं।उसे यह धरती,यह आकाश,य

48

विज्ञापन

22 मार्च 2019
0
0
0

कविताविज्ञापनविजय कुमार तिवारीजागते ही खोजती है अखबार,झुँझलाती है-कि जल्दी क्यों नहीं दे जाता अखबार। अखबार में खोजती है-नौकरियों के विज्ञापन। पतली-पतली अंगुलियों से,एक -एक शब्द को छूती हुई,हर पंक्ति पर दृष्टि जमाये,पहुँच जाती है अंतिम शब्द तक। गहरा निःश्वांस छोड़ती है

49

महत् चिंतन

4 अप्रैल 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:Val

50

सुखी होने के उपाय

5 अप्रैल 2019
0
0
0

सुखी होने के उपायविजय कुमार तिवारीसंसार में सभी सुख चाहते हैं,दुख कोई नहीं चाहता,जबकि कोई सुखी नहीं है, सभी दुखी हैं।कबीर दास जी ने कहा है कि सारा संसार दुख से भरा है।मेरा मानना है कि हमें सत्य दिखता नहीं।हम असत्य देखने के आदी हो गये हैं।हम झूठ देखते हैं और अपनी सुविधा से

51

मि. ख़ का शहर

9 अप्रैल 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

52

प्रेम के भूख

5 सितम्बर 2019
0
1
1

प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

53

नदी के दावेदार

28 सितम्बर 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

54

छमा करना

1 अक्टूबर 2019
0
1
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

55

मशाल

4 अक्टूबर 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh

56

करूँ-ह्रदय

11 अक्टूबर 2019
0
0
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <o:OfficeDocumentSettings> <o:RelyOnVML/> <o:AllowPNG/> </o:OfficeDocumentSettings></xml><![endif]--><!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSc

57

दुःख

12 अक्टूबर 2019
0
0
0

दुनिया युद्ध के महाविनाश की ओर जा रही है।यदि ऐसा हुआ तो किसी न किसी रुप में हम सभी प्रभावित होंगे।वैसे ही दुनिया में लोग अनेकानेक कारणों से दुखी हैं।हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हे कोई न कोई दुख है।हम मिलकर उनका समाधान खोज सकते हैं और दुखों से बचाव कर सकते हैं।कम से कम हम चर्चा तो करें।कोई न कोई स

58

उद्बोधन

22 नवम्बर 2019
0
0
0

उद्बोधनविजय कुमार तिवारीलम्बे अन्तराल के बाद आज कुछ उद्बोधित होने की प्रेरणा जाग रही है।खिड़की से बाहर की दुनिया बड़ी मनोरम दिख रही है।आसमान नीला और शान्त है।मन भी नीरव-शान्ति की अनुभूति से ओत-प्रोत है।कौन कहता है कि हमारा जन्म दुख-भोग के लिए ही है?हमें स्वयं में डुबकी लगाने नहीं आता।हमारी सारी समस्

59

ईशावास्योपनिषद के आलोक में

11 जनवरी 2020
0
1
0

ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

60

विवेकानंद के बहाने

12 जनवरी 2020
0
1
0

विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

61

निर्भया के बहाने

20 मार्च 2020
0
2
0

निर्भया के बहानेविजय कुमार तिवारीअन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनै

62

जनता कर्फ्यू और हमारा देश

22 मार्च 2020
0
0
0

जनता कर्फ्यू और हमारा देशविजय कुमार तिवारीप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के आह्वान पर आज २२ मार्च २०२० को पूरे देश ने अपनी एकता,अपना जोश और अपना मनोबल पूरी दुनिया को दिखा दिया।इस जज्बे को मैं हृदय से सादर नमन करता हूँ।राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिकों तक ने ताली,थाली, घंटी,शंख और नगाड़े बजाकर अपना आभार

63

कोरोना और स्त्री

25 मार्च 2020
0
0
0

करोना और स्त्रीविजय कुमार तिवारीकल प्रधानमन्त्री ने देश मेंं कोरोना के चलते ईक्कीस दिनों के"लाॅकडाउन"की घोषणा की है।सभी को अपने-अपने घरों में रहना है।बाहर जाने का सवाल ही नहीं उठता।घर मेंं चौबिसों घण्टे पत्नी के साथ रह पाना,सोचकर ही मन भारी हो जाता है।किसी साधु-सन्त के पास इससे बचाव का उपाय नहीं है।

64

महर्षि अरविंद का पूर्णयोग

26 मार्च 2020
0
0
0

महर्षि अरविन्द का पूर्णयोगविजय कुमार तिवारीमहर्षि अरविन्द का दर्शन इस रुप में अन्य लोगोंं के चिन्तन से भिन्न है कि उन्होंने आरोहण(उर्ध्वगमन)द्वारा परमात्-प्राप्ति के उपरान्त उस विराट् सत्ता को मनुष्य में अवतरण अर्थात् उतार लाने की चर्चा की है।यह उनका एक नवीन चिन्तन है।गीता में दोनो बातें कही गयी हैं

65

जिंदगी सुखद संयोगो का खेल है .

27 मार्च 2020
0
0
0

कहानीजिन्दगी सुखद संयोगों का खेल है।विजय कुमार तिवारीरमणी बाबू को भगवान में बहुत श्रद्धा है।उसके मन मेंं यह बात गहरे उतर गयी है कि अच्छे दिन अवश्य आयेंगे।अक्सर वे सुहाने दिनों की कल्पना में खो जाते हैं और वर्तमान की छोटी-छोटी जरुरतों की लिस्ट बनाते रहते हैं।गाँव के लड़के स्कूल साईकिल पर जाते थे तो व

66

धिक्कार है ऐसे लोगो पर

31 मार्च 2020
0
0
0

धिक्कार है ऐसे लोगोंं परविजय कुमार तिवारीमन दहल उठता है।लाॅकडाउन में भी लाखों की भीड़ सड़कों पर है।भारत का प्रधानमन्त्री हाथ जोड़कर विनती करता है,आगाह करता है कि खतरा पूरी मानवजाति पर है।विकसित और सम्पन्न देश त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।विकास और ऐश्वर्य के बावजूद वे अपनी जनता को बचा नहीं पा रहे हैं।आज

67

शहर प्रयोगशाला हो गया है

1 अप्रैल 2020
0
0
0

कविताशहर प्रयोगशाला हो गया हैविजय कुमार तिवारीछद्मवेष में सभी बाहर निकल आये हैंं,लिख रहे हैं इतिहास में दर्ज होनेवाली कवितायें,सुननी पड़ेगी उनकी बातेंं,देखना पड़ेगा बार-बार भोला सा चेहरा।तुमने ही उसे सिंहासन दिया है,और अपने उपर राज करने का अधिकार।दिन में वह ओढ़ता-बिछाता है तुम्हारी सभ्यता-संस्कृति,उ

68

मेरे आनंद की बाते

2 अप्रैल 2020
0
0
0

मेरे आनन्द की बातेंविजय कुमार तिवारीकभी-कभी सोचता हूँं कि मैं क्योंं लिखता हूँ?क्योंं दुनिया को लिखकर बताना चाहता हूँ कि मुझे क्या अच्छा लगता है?मेरी समझ से जो भी गलत दिखता है या देश-समाज के लिए हानिप्रद लगता है,क्यों लोगों को उसके बारे में आगाह करना चाहता हूँ?क्यों दुनिया को सजग,सचेत करता फिरता हूँ

69

हर युग में आते है भगवान

3 अप्रैल 2020
0
1
0

कविताहर युग मेंं आते हैं भगवानविजय कुमार तिवारीद्रष्टा ऋषियों ने संवारा,सजाया है यह भू-खण्ड,संजोये हैं वेद की ऋचाओं में जीवन-सूत्र,उपनिषदों ने खोलें हैं परब्रह्म तक पहुँचने के द्वार,कण-कण में चेतन है वह विराट् सत्ता।सनातन खो नहीं सकता अपना ध्येय,तिरोहित नहीं होगें हमारे पुरुषोत्तम के आदर्श,महाभारत स

70

5 अप्रैल 2020 ,रात 9 बजे 9 मिनट का प्रकाश-पर्व

5 अप्रैल 2020
0
0
0

5 अप्रैल 2020,रात 9 बजे,9 मिनट का प्रकाश-पर्वविजय कुमार तिवारीविश्वास करें,यह कोई सामान्य घटना घटित होने नहीं जा रही है और ना ही आज का प्रकाश-पर्व एक सामान्य प्रकाश-पर्व है।ब्रह्माण्ड की ब्रह्म-शक्ति का आह्वान हम सम्पूर्ण देशवासी प्रकाश-पर्व मनाकर करने जा रहे हैं।हमारे भीतर स्थित वह दिव्य-चेतना जागृ

71

विपत्ति में ही

7 अप्रैल 2020
0
0
0

विपत्ति में हीविजय कुमार तिवारीप्राचीन मुहावरा है,"विपत्ति में ही अच्छे-बुरे की पहचान होती है।"मानवता के सामने सबसे भयावह और संहारक परिस्थिति खड़ी हुई है।पूरी दुनिया बेबस और लाचार है।हमारे विकास के सारे तन्त्र धरे के धरे रह गये हैं।कुछ भी काम नहीं आ रहा है।स्थिति तो यह हो गयी है कि जो जितना विकसित ह

72

हमउम्र बूढ़ों का परिवार

8 अप्रैल 2020
0
0
0

कविताहमउम्र बूढ़ोंं का परिवारविजय कुमार तिवारीमैंने सजा लिया है सारे हमउम्र बूढ़ों को अपने फ्रेम में,बना लिया है मित्रों का बड़ा सा समूह। रोज देखता रहता हूँ उनके आज के चेहरे,चमक उठती है पुतलियाँजीवन्त हो उठते हैं उनसे जुडे नाना प्रसंग। मुरझाये गालों और मद्धिम रोशनी लिये आँखें,आज भी कौंंध जाता है उनक

73

खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-१

12 अप्रैल 2020
0
1
1

कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-1विजय कुमार तिवारीसालों बाद कल रात उसने ह्वाट्सअप किया,"हाय अंकल ! कहाँ हैं आजकल?"उसने अंग्रेजी अक्षरों में "प्रणाम" लिखा और प्रणाम की मुद्रा वाली हाथ जोड़ेे तस्वीर भी भेज दी।प्रमोद को सुखद आश्चर्य हुआ और हंसी भी आयी।"कैसे याद आयी अंकल की इतने सालों बाद?"प्रमोद ने यूँ ही

74

खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-२

12 अप्रैल 2020
0
0
0

कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-2विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू भी इस माहौल से अछूते नहीं रहे।उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया।कार्यालय में बहुत लोगों के काम होते जिसे बड़े ही सहृदय भाव से निबटाते और कोशिश करते कि किसी को कोई शिकायत ना हो।स्थानीय लोगों से उनकी अच्छी जान-पहचान हो गयी है।सुरक्षा बल के लोगों के

75

खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-३

13 अप्रैल 2020
0
0
0

कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-3विजय कुमार तिवारी"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये।प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका।सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी,दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है।आपकी बात सही हो तब

76

खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-४

14 अप्रैल 2020
0
0
0

कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-4विजय कुमार तिवारी"ऐसा नहीं कहते,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"इतना ही कह सकता हूँ कि तुम अपनी उर्जा इन सब चीजों में मत लगाओ।"थोड़ा रुककर उन्होंने कहा,"दुनिया ऐसी ही है,लोग कहेंगे ही।तुम्हें तय करना है कि स्वयं को इन वाहियात चीजों में उलझाती हो और अपने को बरबाद करती हो या ब

77

खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-६

15 अप्रैल 2020
0
0
0

कहानीखूबसूरत आँखोंवाली लड़की-6विजय कुमार तिवारीप्रमोद बाबू दोनो महिलाओं और मोहन चन्द्र जी की भाव-भंगिमा देख दंग रह गये।सुबह दूध वाले की बातें सत्य होती प्रतीत होने लगी।उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा।अन्दर से पत्नी भी आ गयी।मोहन चन्द्र बाबू उन दोनो महिलाओं से कुछ पूछते-बतियाते रहे।थोड़ी देर में पत्नी

78

हमारी शादी की सैंतीसवी वर्षगाठ

27 अप्रैल 2020
0
0
0

हमारी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठविजय कुमार तिवारीआज 27 अप्रैल को हम अपनी शादी की सैंतीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और सम्पूर्ण मानवता को बताना चाहते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद से,विगत सैंतीस वर्षों से चला आ रहा हमारा अटूट सम्बन्ध पूर्णतः उर्जावान और मधुर प्रेम से भरा हुआ है।आप सभी सुहृदजनों,सखा-सम्बन

79

तुम्हारे प्रेम के नाम-२

1 मई 2020
0
1
0

कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-2विजय कुमार तिवारीदुनिया तो वही है जो सबकी होती है परन्तु मेरे लिए जैसे बिल्कुल अजनबी हो चुकी है।जो जानी-पहचानी दुनिया थी उसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ और यह नयी जगह,नयी दुनिया जैसे मुझे आत्मसात करने को तैयार ही नहीं है।इस दृष्टि से समूची नारी जाति के प्रति मेरा मन पूरी श

80

तुम्हारे प्रेम के नाम-३

3 मई 2020
0
1
0

कहानीतुम्हारे प्रेम के नाम-3विजय कुमार तिवारीतुमने अनेकों बार कुरेदा है मुझे,"कैसे मैं अपने को बचाता रहा और कैसे इस मतलबी दुनिया की शातिर चालों को समझ पाया।"तुमसे खुलकर कहना चाहता हूँ,सच बयान करता हूँ कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है।हर व्यक्ति को थोड़ा सजग रहना चाहिए।थो

81

वासना गद्दारो और नशेड़ियों का देश

5 मई 2020
0
1
0

वासना,गद्दारों और नशेड़ियों से भरा देशविजय कुमार तिवारीवासना,गद्दारी या नशे में डूबे रहना यह सब मनुष्य के अधःपतन का द्योतक है और आज की स्थिति देखकर लगता है कि हमारे देश में बहुतायत ऐसे ही लोग हैं।मैं मानता हूँ कि हमे निराश नहीं होना चाहिए परन्तु ये परिदृश्य कोई दूसरी कहानी तो नहीं कह रहे।कल देश में

82

डा नन्द किशोर नवल जी की यादें

14 मई 2020
0
0
0

डा0 नन्द किशोर नवल जी की यादेंविजय कुमार तिवारीपरमादरणीय मित्र,प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार डा.नन्द किशोर नवल जी नहीं रहे।मेरा तबादला धनबाद से पटना हुआ था।9अप्रैल 1984 की शाम में बी,एम.दास रोड स्थित मैत्री-शान्ति भवन में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से"राहुल सांकृत्यायन-जयन्ती"का आयोजन था।भाई अरुण कमल,ड

---

किताब पढ़िए