shabd-logo

झूठ और सच की लड़ाई

24 फरवरी 2019

545 बार देखा गया 545
featured image

झूठ और सच का खेल बड़ा ही निराला है। हैरानी होती है आदमी झूठ क्यों बोलता है और सच क्यों नहीं बोलता? आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी है जिस से व्यक्ति झूठ बोलता है? आज झूठ को क्यों इतनी प्रतिष्ठा मिली है? सच बोलने से व्यक्ति घबराता -कतराता क्यों है? ऐसे तमाम प्रश्न हैं, जो बताते हैं कि इस के कई कारण हैं। मनोवैज्ञानिक अपना तर्क लगाता है। सामान्यता मान्यता कुछ और बयान करती है और योगिक दृष्टिकोण अपने ढंग से व्याख्या करता है।

कारण जो भी हो, उक्ति तो है कि ‘सत्यं वद’- सदा सत्य बोलो, परंतु मनुस्मृति के सूत्र कहते है कि अप्रिय सत्य मत बोलो। पुराणों में उल्लेख मिलता है, ऊँचे उद्देश्य के लिए बोला गया झूठ भी सौ सच से बड़ा होता है।अब झूठ हमारे जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है और यह हम में इतना अभ्यस्त और विकसित हो चुका है कि इस के बोले बगैर चैन नहीं मिलता। सच बेहद खूबसूरत होता है, लेकिन झूठ के साथ भी कुछ ऐसा ही है। ऐसा लगता है कि झूठ बोलना इंसान की आदत में शुमार कर चुका है। आज सच बोलने से लोग कतराते हैं और झूठ बोलने में अजीब खुशी का अनुभव करते हैं।व्यक्ति कितना झूठ बोलता है, उसके लिए एक शोध किया गया, जिसमें उन्होंने गुप्त रूप से अजनबियों के साथ विद्यार्थियों की बातचीत को टेप किया। इस शोध से पाया गया कि विद्यार्थी प्रत्येक 10 मिनट में तीन बार झूठ बोलते हैं। एक लेखक के अनुसार झूठ हमारे अचेतन में प्रवेश कर गया है और अनजाने में भी हम झूठ बोलते चले जाते है। लोग प्रायः उन्हीं चीजों के बारे में झूठ बोलते है जिनसे वे अच्छा महसूस करना चाहते हैं। हमारे अंदर किसी अभाव-बोध का भाव पनप जाता है। यह तभी होता है जब हम किसी चीज को करना चाहते है और कर नही पाते हैं। हमें लगता है कि औरों की बराबरी नहीं कर पा रहे है या प्रभावित करना चाहते हैं या जिससे अपने बारे में स्वीकृति चाहते हैं, उसके सामने झूठ बोल जाते हैं। कुछ लोकप्रिय लोग भी झूठ बोलते है। जो लोग प्रशंसा पाने के आदी हो जाते है, अतः फिर से वही प्रशंसा पाने के लिए वे झूठ बोलते हैं।झूठ हमारे स्वाभिमान के साथ जुड़ा होता है। जैसे ही लोगों के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है, वे ऊंचे स्वर में झूठ बोलना शुरू कर देते है। झूठ नहीं बोलना चाहिए यह सच है, परंतु अप्रिय एवं कडु़आ सच भी किसी को नहीं बोलना चाहिए।नीति कहती है कि झूठ से नुक्सान न हो तो ठीक है, पर झूठे वादे कभी नही करने चाहिए। जो कहा है, उसे अंत तक निभाना चाहिए। बाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि भगवान राम सदा सत्य के पक्ष पर थे। वे एक लक्ष्य के लिए दो बार तीर नहीं चलाते थे और एक लक्ष्य के लिए दो बात नहीं कहते थे। यही सचाई की विशेषता एवं प्रखरता है।

जब इंसान की शुरूआत हुई, तब सबकुछ सच पर आधारित था। उस समय सच्चाई को तोड़-मरोड़कर बताना, अपने मतलब के लिए उसमें फेरबदल करना, या उसकी गलत तसवीर पेश करना, ऐसा कुछ नहीं था लेकिन बदलते समय में खुद को बडा दिखाने की चाहत और झूठ से काम निकालना लोगों की आदत बन गया और वर्तमान में हम सभी की बोली गई हर दूसरी लाइन में झूठ होता है:-


माना सच कहने में दम लगता है,

मगर झूठ बोलने से तो कम लगता है

देख लिया हमने दोनों को आज़मा कर

सच है कारगर कड़वी दवाई

और झूठ नकली मरहम लगता है !

मित्रों ,

मैंने लेख लिखा है इसका अर्थ ये नहीं कि मैं सच ही बोलता हूँ। मैं भी इस झूठ की बीमारी से महरूम नहीं।लेकिन हम एक प्रयास तो कर सकते हैं और वही प्रयास हमें सच्चा इंसान बनाता है।

अभिषेक मित्तल की अन्य किताबें

1

क्या आप राष्ट्रगान का सम्मान करते है??

24 फरवरी 2019
0
1
1

03.12.15देश में असहिष्णुता को लेकर छिड़ी बहस के बीच आज सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें कुछ लोगों द्वारा एक मुस्लिम परिवार को सिनेमाहाल से बाहर जाने के लिए कहा जा रहा है।बताया जा रहा है कि कुछ लोगों ने सिनेमाहाल में पिक्चर देखने आए एक मुस्लिम परिवार को बाहर निकाल दिया क्योंकि वो परिव

2

झूठ और सच की लड़ाई

24 फरवरी 2019
0
0
0

झूठ और सच का खेल बड़ा ही निराला है। हैरानी होती है आदमी झूठ क्यों बोलता है और सच क्यों नहीं बोलता? आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी है जिस से व्यक्ति झूठ बोलता है? आज झूठ को क्यों इतनी प्रतिष्ठा मिली है? सच बोलने से व्यक्ति घबराता -कतराता क्यों है? ऐसे तमाम प्रश्न हैं, जो बताते हैं कि इस के कई कारण हैं। मनोव

---

किताब पढ़िए