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यादें

2 मार्च 2019

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"बहुत खूबसूरत होती है ये यादों की दुनियाँ ,

हमारे बीते हुये कल के छोटे छोटे टुकड़े

हमारी यादों में हमेशा महफूज रहते हैं,

यादें मिठाई के डिब्बे की तरह होती है

एक बार खुला तो, सिर्फ एक टुकड़ा नहीं खा पाओगे "


वैसे तो ये एक फिल्म का संवाद है परन्तु है सतप्रतिशत सही ,यादें सच मुच ऐसी ही तो होती है और अगर वो यादें बचपन की हो तो " क्या कहने "फिर तो आप उनमे डूबते ही चले जाते हो ,परत- दर -परत खुलती ही जाती हैं ,खुलती ही जाती ,कोई बस नहीं होता उन पर। उन यादों में भी सबसे प्यारी यादें स्कूल के दिनों की होती है। वो शरारते ,वो मस्तियाँ ,वो दोस्तों का साथ ,खेल कूद और वार्षिक उत्सव के दिन ,शिक्षकों के साथ थोड़ी थोड़ी चिढ़न और ढेर सारा सम्मान के साथ प्यार ,हाफ टाइम के बाद क्लास बंक करना और फिर अभिभावकों के पास शिकायत आना फिर उनसे डांट सुन दुबारा ना करने का वादा करना और फिर वही करना ,सब कुछ बड़ी सिद्दत से याद आने लगती हैं। सच बड़ा मज़ा आता था,क्या दौर था वो. ........


ऐसी ही मेरे बचपन की एक कभी ना भूलने वाली यादें है ,उस जमाने में तो हम सरकारी स्कूल में पढ़ते थे लड़को और लड़कियों का स्कूल ज्यादातर अलग अलग होता था। मैं तेज़,मेघावी मगर थोड़ी शरारती बच्चो की क्षेणी में आती थी। हमारी एक टीचर थी " उर्मिला दी "( हमारे स्कूल में टीचर को" दीदी " कह कर सम्बोधित करते थे )वैसे तो वो किरानी के पद पर कार्यरत थी पर जब भी किसी शिक्षिका की अनुपस्थिति होती तो उन्हें हिंदी पढ़ाने को भेज दिया जाता था। मेरी शरारतो की वजह से उनकी नजर हर वक़्त मुझपे ही रहती थी और उनके जरूरत से ज्यादा रोक टोक करने के कारण में उनसे थोड़ी चिढ़ी हुई। हम दोनों के बीच हमेशा एक शीतयुद्ध जैसे हालात बना रहता था.जब भी वो क्लास में प्रवेश करती दुर्भाग्य से मैं कोई न कोई गलती करते पकड़ी ही जाती थी और वो सजा सुना ही देती थी। कभी कभी तो मेरे कारण पुरे क्लास को सजा भुगतनी पड़ती क्योकि लगभग पूरी क्लास से मेरी दोस्ती थी अगर उन सब ने मेरे पक्ष में बोल दिया तो मेरे साथ साथ वो सब भी सजा की पात्र बन जाती थी। सजा भी क्या, सब को धुप में खड़ा कर देना। उनके इस सजा से हम सब परेशान हो गए थे।


एक दिन दोस्तों ने कहा -कामिनी कुछ तो कर यार ,हम सब धुप में खड़ा हो हो कर परेशान हो गए हैं। एक दिन जब उन्होंने हमे धुप में खड़ा किया तो 10 -15 मिनट बाद ही मैं गश खा के गिर पड़ी , मेरे अचानक गिरने से लड़कियां चिल्लाने लगी ,उनका शोर सुन सारी टीचरे और प्रिंसिपल तक आ गई। मुझे उठाकर क्लास रूम में लाया गया ,मुँह पर पानी के छींटे मरे गए ,पंखा किया गया तब मैंने आँखे खोली। प्रिंसिपल ने पूछा -किसने तुम सब को इतनी कड़ी धुप में खड़ा किया था। सबने एक स्वर में बोला- -उर्मिला दी ने ,वो हमेशा हमे यही सजा देदेती हैं। प्रिंसिपल ने उन्हें ऑफिस में मिलने को कहा और चली गई। उर्मिला दी के तो होश उड़ गए ,उन्हें सदमा सा लग गया वो मेरे पास आकर मेरे सर पर हाथ फेरती हुई पूछी -"तुम ठीक तो हो न " मैंने "हां "में सर हिला दिया , फिर वो चली गयी। सब के जाते ही मैं ढहाके लगाती हुई खड़ी हो गई। सारी लड़कियों ने चौकते हुए पूछा - "तू ये सब नाटक कर रही थी क्या ?"मैं इतराते हुए बोली -जी हां ,अब देखना वो हमे कभी धुप में खड़ा नहीं करेगी। सब ढहाके लगाने लगे और उधर उर्मिला दी को प्रिंसिपल ने खूब डॉटा कि अगर उस लड़की को कुछ हो जाता तो।



एक दिन दोस्तों ने कहा -कामिनी कुछ तो कर यार ,हम सब धुप में खड़ा हो हो कर परेशान हो गए हैं। एक दिन जब उन्होंने हमे धुप में खड़ा किया तो 10 -15 मिनट बाद ही मैं गश खा के गिर पड़ी , मेरे अचानक गिरने से लड़कियां चिल्लाने लगी ,उनका शोर सुन सारी टीचरे और प्रिंसिपल तक आ गई। मुझे उठाकर क्लास रूम में लाया गया ,मुँह पर पानी के छींटे मरे गए ,पंखा किया गया तब मैंने आँखे खोली। प्रिंसिपल ने पूछा -किसने तुम सब को इतनी कड़ी धुप में खड़ा किया था। सबने एक स्वर में बोला- -उर्मिला दी ने ,वो हमेशा हमे यही सजा देदेती हैं। प्रिंसिपल ने उन्हें ऑफिस में मिलने को कहा और चली गई। उर्मिला दी के तो होश उड़ गए ,उन्हें सदमा सा लग गया वो मेरे पास आकर मेरे सर पर हाथ फेरती हुई पूछी -"तुम ठीक तो हो न " मैंने "हां "में सर हिला दिया , फिर वो चली गयी। सब के जाते ही मैं ढहाके लगाती हुई खड़ी हो गई। सारी लड़कियों ने चौकते हुए पूछा - "तू ये सब नाटक कर रही थी क्या ?"मैं इतराते हुए बोली -जी हां ,अब देखना वो हमे कभी धुप में खड़ा नहीं करेगी। सब ढहाके लगाने लगे और उधर उर्मिला दी को प्रिंसिपल ने खूब डॉटा कि अगर उस लड़की को कुछ हो जाता तो।



लेकिन पता नहीं उन्हें मुझसे क्या बेर था वो हाथ धो के मेरे पीछे पड़ी रहती और उनका साथ देती क्लास की मोनिटर उषा जो मुझसे थोड़ी चिढ़ी रहती थी। मैं उनकी सजाओ से बचने का कोई न कोई रास्ता निकल ही लेती थी। आख़िरकार एकदिन हम दोनों के बीच खुल कर असली युद्ध हो ही गया। वाक्या प्रीबोर्ड परीक्षा के समय का है। परीक्षा के दौरान उषा नकल कर रही थी उसी दौरान क्लास में उर्मिला दी प्रवेश की उनको देखते ही उसने वो नकल का पर्चा मेरी डेस्क पर फेक दिया ,मैंने झट वो पर्ची उठा कर छुपाना चाहा कि कही उर्मिला दी देख ना ले। लेकिन मेरा दुर्भाग्य कि उन्होंने उषा को पर्ची फेकते तो नहीं देखा किन्तु मुझे पर्ची उठाकर छुपाते देख लिया। उन्हें तो जैसे सुनहरा अवसर मिल गया हो ,वो तेज़ी से भागती हुई मेरे पास आई और चिल्लाने लगी -कामिनी सीधे सीधे पर्चा निकल दो ,मैंने सब देख लिया है। मैं समझ गई कि आज अगर ये पर्चा उनके हाथ लग गया तो मेरा भविष्य चौपट हो ही जायेगा ,ये सारा खुंदक निकल लेगी और मुझे बोर्ड परीक्षा से निष्कासित करवा कर ही मानेगी। मैंने सोचा लगता है आज युद्ध का आखिरी दिन हैं तो क्यों न आज आर पार का युद्ध हो ही जाये ,पर्चा तो मैं किसी हाल में इन्हे नहीं दूंगी।

मैंने थोड़ी बुद्धि से काम लिया और अपने आप को संयमित रखते हुए कहा -"दी आप को गलतफहमी हुई है पर्चा मेरे पास नहीं है।"वो गुस्से से बोली - "झूठ मत बोलो ,मैंने अपनी आँखों से देखा है,चलो बाहर निकलो ,मैं चेकिंग करुँगी। "उनकी बेटी स्वर्णा जो मेरी दोस्त थी वो सब कुछ देख चुकी थी लेकिन उसने मेरा साथ देते हुए कहा- "उसके पास नहीं है माँ "लेकिन उर्मिला दी कहाँ मानने वाली थी ,मानती भी कैसे उन्होंने तो सब कुछ देखा था। चुकि लड़कियों का स्कूल था तो उन्हें ये अधिकार था कि वो मेरे कपडे उतरवा सकती थी। मैं सब जानती थी फिर भी शांत स्वर में बोली -" बेशक आप मेरे कपडे उतरवा ले और तसल्ली कर ले लेकिन ये काम प्रिंसिपल के सामने होगा। वो और गुस्सा हो गई लेकिन मैं भी उनको हाथ नहीं लगाने दी ,आख़िरकार दूसरी टीचर जाकर प्रिंसिपल को बुला लाई। मैंने प्रिंसिपल से कहा -आप मेरे कपडे उतरकर चेकिंग कर सकती है लेकिन यदि मेरे पास से पर्ची नहीं निकला तो आप इन्हे क्या कहेगी ये भी बताये क्योकि आप जानती है इनकी तो आदत हो गई है मुझे पर आरोप लगाने की, लेकिन आज तो ये मेरे भी भविष्य एवं सम्मान का प्रश्न है। मैंने अपनी बुद्धि लगायी और उनके हर वक़्त की मुझसे नाराजगी को ही अपना हथियार बना लिया। क्लास की आधी से ज्यादा लड़कियां तो मेरे साथ थी ही उन्होंने भी मेरा भरपूर समर्थन किया। प्रिंसिपल ने खुद ही मेरी तलाशी ली ,मेरा सौभाग्य जो उन्हें कुछ नहीं मिला। उन्होंने कहा -" सारे अपने अपने स्थान पर जाओ और पेपर करो ,उर्मिला मैम आप मेरे साथ ऑफिस में आये। " मेरे तो जान में जान आई और उर्मिला दी बड़बड़ाये जा रही थी -"ऐसा कैसे हो सकता है मैंने अपनी आँखों से देखा था मेरा यकीन करे। "


प्रिंसिपल बाहर जाते ही उन्हें डांटने लगी -" क्या बेर है आप को उससे ,हर वक़्त उस पर दोषारोपण ही करती रहती हैं और आज तो आपने हद ही कर दी। " भगवान के दया से उस दिन मैं बच गई लेकिन गुस्सा बहुत आ रहा था। मैंने उनकी बेटी से पूछ ही लिया - "क्या दुश्मनी है तुम्हारी माँ को मुझसे क्युँ हर वक़्त वो मेरे पीछे पड़ी रहती है ?" मेरी बात सुनते ही स्वर्णा रो पड़ी फिर जब उसने अपनी और अपनी माँ की सारी आपबीती बताई तो हम सब स्तब्ध रह गये। चार सालो से मैं उसके साथ थी मगर इस हकीकत से अनजान थी। उसने बताया कि - " मेरी माँ को मेरे पापा सालो पहले छोड़ कर कही चले गए है नहीं पता कहाँ है जिन्दा है या मर गये है ,माँ बड़ी मुश्किल से हम पांच भाई बहनो की परवरिश कर रही है ,नौकरी भी तो स्थाई नहीं हुई है अभी ,ये सारी परिस्थितियां झेलते झेलते वो चिड़चिड़ी हो गयी हैं, और अक्सर एक ही बात और एक ही व्यक्यि के पीछे पड़ जाती है ,जब भी कोई थोड़ा सा गलती करते दीखता है या कोई उन्हें गलत ढहरता है तो वो उस व्यक्ति के पीछे ही पड़ जाती है और अपने आप को सही साबित करने में लग जाती है ,तुम उन्ही व्यक्तियों में से एक हो बस, कामिनी तुम ऐसा समझो मेरी माँ मानसिक रूप से बीमार है ,कहते कहते वो रोने लगी।


स्वर्णा की सारी बाते सुन मुझे उर्मिला दी से सहानभूति हो गई ,उनके लिए दिल में इज्जत बढ़ गई और अपने किये पर पछतवा भी होने लगा। हमारे समय में प्रीबोर्ड के बाद स्कूल से छुट्टी मिल जाती थी सो हमारा स्कूल आना जाना बंद हो गया और उर्मिला दी से मुलाकात भी नहीं हुई। लेकिन खबर मिली कि - उनके पति की मौत की सुचना आई है। बोर्ड का परीक्षाफल आने पर मैं उर्मिला दी के घर जब मिठाई का डब्बा लेकर गई तो देखा -उर्मिला दी सफेद साडी में बड़े ही शांत मुद्रा में बैठी थी ,मैंने उनके पैर छुये और डब्बा उनकी तरफ बढ़ा दिया ,उन्हेने मेरे सर पर अपना हाथ रखा और एक टुकड़ा मिठाई लेकर खा ली। मैंने कान पकड़ कर कहा -" सॉरी दी ,मैंने स्कूल में आप को बहुत परेशान किया है न ,मैं उन सारी गलतियों के लिए आप से क्षमा चाहती हूँ ,मुझे माफ़ कर दे। उन्होंने बड़े शांत भाव से मुझे गले लगते हुए बोली -कोई बात नहीं बच्चे ,वो तो आप का बचपना हैं। फिर मैं एक एक करके अपनी सारी शरारते बताती गई और उसे सुन उर्मिला दी हंसती रही। मैंने इससे पहले कभी उन्हें इस तरह खुलके हँसते नहीं देखा था। मैंने स्वर्णा से पूछा - " ये तबदीली कैसे हुई?" उसने कहा -"जब से पापा की मौत की खबर आई है न माँ बदल सी गई है ,बिलकुल शांत हो गई है ,चिड़चिड़ाना और गुस्सा करना तो भूल ही गई है , नौकरी भी स्थाई हो गई है न,अब सब ठीक है कामिनी। "


उस वक़्त मेरा बालमन उन सभी बातो की गहराइयों को अच्छे से नहीं समझ पाया था ,खासतौर पर ये बात कि " पति के मरने के बाद वो शांत कैसे हो गई " जब बड़ी हुई तो समझ पाई कि जीते जी पति से दुरी और उसमे भी ये पता नहीं हो कि वो कहाँ है जिन्दा हैं या मर गया ऐसी अवस्था तो जीते जी वो अग्निचिता है जो औरत को मरता नहीं है बल्कि धीरे धीरे सुलगता है लेकिन जब पति चिता के हवाले हो जाता है तो सब्र आ जाता है। यकीनन उर्मिला दी का यही दुःख था।


मेरी हर गलती की स्वीकारोक्ति [ Confession ] के बाद उर्मिला दी मुझसे इतनी प्रभावित हो गई कि मुझे हद से ज्यादा प्यार करने लगी , उनसे एक घरेलू संबंध सा हो गया ,यहां तक कि जब मैं बड़ी हो गई तो मेरे लिए अपने बेटे का रिश्ता लेके आ गई। हमारे में जन्मपत्री मिलान को बहुत महत्व देते है और उनके बेटे से मेरी जन्मपत्री नही मिली। सो रिश्ता तो नहीं हुआ पर उनका प्यार मेरे लिए कभी कम नहीं हुआ। वो मेरी शादी में भी आई ,जब वो मेरे पति से मिली तो उनके यही शब्द थे -"ये मेरी सबसे प्रिये छात्रा है ,वैसे तो इसने मुझे बहुत तंग किया है लेकिन इसमें एक सबसे बड़ी खूबी हैं- ये दिल की बहुत अच्छी और सच्ची हैं ,आप इसके जुबान पर मत जाइएगा। " मेरे पति आज भी उनकी बातो को याद करते हैं। मेरे घर के हर उत्सव में वी शामिल रही। हमेशा उनके दिल से मेरे लिए दुआ ही निकली।


आज वो इस दुनियां में नहीं हैं लेकिन उनकी बेटी आज भी मेरी दोस्त हैं। उर्मिला दी की यादें अब भी मेरे साथ हैं ,उनका प्यार ,उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ बना रहा। उन्होंने मुझे जीवन की सबसे बड़ी सीख दी कि -" इंसान को उसके ऊपरी व्यवहार से मत जाँचो,क्युकि इंसान का ऊपरी व्यवहार तो परिस्थितियों का गुलाम होता है ,उसकी अंदरूनी खूबसूरती को जानने ,पहचानने और समझने की कोशिश करो। "सच ,गुरु हर रूप में ज्ञान ही दे जाते हैं ,तभी तो कहते हैं -


गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु , गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परब्रह्मा ,तस्मै श्री गुरुवे नमः।।



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