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मेरे देश का किसान

12 मार्च 2019

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किसी ने उसे हिंदु बताया,

किसी ने कहा वो मुसलमान था,

खुद को मौत की सजा सुनाई जिसने,

वो मेरे देश का किसान था।


जिसकी उम्मीदाें से कहीं नीचा आसमान था,

मुरझाकर भी उसका हौंसला बलवान था,

जब वक्त ने भी हिम्मत और आस छोड़ दी,

उस वक्त भी वो अपने हालातों का सुल्तान था।


किस्मत उसकी हारी हुई बाजी का फरमान था,

बिना मांस की देह वाला वो जवान था,

खुशी उसकी समा गई थी धरती की दरारों में,

घर उसका बस भूख का रेगिस्तान था।


दुनिया के मेले में वो बस दुःखों का धनवान था,

दाना चुगने वाले पंछियों से उसका खेत विरान था,

नजरों से पानी को टटोलता वो बादल में,

जाने किस धुन में मस्त वो भगवान था।


खुशहाल भविष्य की आस लगाकर,

उसके आंगन में खेलता हर बच्चा नादान था,

वो बचपन नहीं समझता था बाप की मजबूरी,

परतों तलें दबी आग से वो मासूम अंजान था।


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