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'भव-सागर'

17 मार्च 2019

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भव सागर, यह संसार है

जीवन, सागर मझधार है

घोर, गहन विपदा है घेरे

जीवन में है, तेेरे और मेरे

झंझावत ढेरों पारावार है

लहरों से उठती, हुँकार है

आशा और निराशा इसमें

जीवन की दो पतवार है

निराशा से होता कहाँ ?

जन-जीवन का उद्धार है

आशा से ही लगती यहाँ

नौका तूफानों से पार है

भव-सागर, यह संसार है

नश्वरता में बजती यहाँ

हर पल मौत की टंकार है

सागर की असीमितता में

फैली जीवन की बयार है

उलट-पलट है लहरों का

झंझावत जग में अपार है

आशा से ही जीवन नौका

भव-सागर से उस पार है।


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