*सम्पूर्ण विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहाँ से "वसुधैव कुटुम्बकम्" का उद्घोष हुआ | हमारे मनीषियों ने ऐसा उद्घोष यदि किया तो उसके पीछे प्रमुख कारण यह था कि मानव जीवन में कुटुम्ब अर्थात परिवार का महत्त्वपूर्ण व विशिष्ट स्थान है | देवी - देवताओं से लेकर ऋषि - मुनियों तक एवं राजा - महाराजाओं से लेकर असुर - राक्षसों तक का उद्भव एवं विकास परिवार में ही रहकर हुआ | भारतीय विचारकों ने भारतीय पारिवारिक संस्कृति का अवलोकन करने एवं परिवार की महत्ता को समझने के बाद ही "वसुधैव कुटुम्बकम्" जैसा उद्घोष करने में सक्षम हो सके | परिवार की परिभाषा का वर्णन करते हुए हमारे मनीषियों ने बताया है कि :- परिवार का अर्थ एक पवित्र बन्धन से है | परिवार वह संस्था है जहाँ विभिन्न स्तर , सोंच एवं व्यवहार के व्यक्तियों का समुदाय न केवल एक साथ रहता है बल्कि परस्पर आत्मीयता के सूत्र में बँधता भी है | ऐसा करते हुए कर्तव्य एवं अधिकार की नीतियों का पालन भी करता है | इस प्रकार जहाँ भी ऐसा जनसमुदाय बनता हो नि:संकोच उसे परिवार कहा जा सकता है | हमारे विद्वानों ने परिवार को मात्र विवाह एवं कुटुम्ब तक सीमित न करते हुए उसे विश्वस्तरीय सोंच प्रदान की जिसका परिणाम "वसुधैव कुटुम्बकम्" के उद्घोष के रूप में समाने आया | परिवार के बिना कोई भी जीव उत्पन्न नहीं हो सकता अत: सभी को पारिवारिक भावना का ध्यान रखते हुए अपने क्रियाकलाप करने चाहिए | किसी भी परिवार को चलाने के लिए उसके मुखिया को पूरी कुशलता अपनाने की आवश्यकता होती है | परिवार का मुखिया किसी भी कंपनी के प्रबंधक की तरह होता है | प्रबंधन क्षमता प्रत्येक परिवार के मुखिया में स्वमेव प्रकट हो जाती है |* *आज के युग में जिस प्रकार संयुक्त परिवार खत्म होने की कगार पर हैं एवं एकल परिवारों के मध्य टकराव एवं बिखराव स्पष्ट नजर आता है उसका कारण सिर्फ मनुष्य की व्यक्तिवादी संकीर्णता है | आज मनुष्य में आत्मीयता , परस्पर स्नेह , सहयोग , सदाचार एवं आपसी विश्वास का अभाव दिख रहा है | चाहे वह अपना परिवार हो , कोई संगठन हो या वैश्विक स्तर पर बात की जाय तो वहां भी मनुष्य को व्यक्तिवादी संकीर्णता के स्थान पर वसुधैव कुटुंबकम जैसी आत्मीयता परक भावना को ही स्थान एवं महत्व देना होगा | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि परिवारों का मुख्य आधार होता है परस्पर विश्वास एवं आत्मीयता , जबकि संकीर्णता , शूद्र सोच व्यक्तियों को स्वार्थी एवं निष्ठुर बनाती है , एवं अनुदारता एक दूसरे के प्रति आक्रमण करने को उकसाती है | दूसरों की पीड़ा एवं मनोभावों को ना समझ पाना ही परिवारों के टूटने का कारण कहा जा सकता है | जिन आदर्शों पर सुखी परिवारों का निर्माण होता है आज मनुष्य उन्हें भुला देने के कारण ही व्यक्तिगत स्तर पर पतित होता चला जा रहा है | आज यदि एकल परिवारों में भी पति पत्नी के मध्य संबंध विच्छेद हो रहा है तो उसका कारण यही है कि हम अपने संस्कारों को किनारे कर चुके हैं | भारतीय संस्कृति के पारिवारिक सूत्रों को आत्मसात नहीं कर पा रहे हैं | इसी कारण हमारे परिवार उजड़ रहे हैं और हम खड़े होकर तमाशा मात्र देखते रह जा रहे हैं |* *किसी भी मनुष्य का उत्थान एवं पतन उसके परिवार से मिले वातावरण की ही देन है | व्यक्ति जब पारिवारिक भावना का त्याग करके एकाकी हो जाता है तभी उसका परिवार टूटता है | ऐसी स्थित से स्वयं को बचाने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करते रहना चाहिए |*